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Monday, 24 September 2018


काल के कपाल पर लिखता हूं मिटाता हूं..गीत नया गाता हूं-अटल बिहारी वाजपयी

सर्वमंगला मिश्रा
जनता के बीच माइक के सामने हवा के सागर में सफेद कुर्ते में लहराता हाथ जब उठता था, आंखें पलक झपकाती थीं और पूरे जनता समुद्र में सन्नाटा पसर जाता था अटल जी के अगले शब्द को सुनने के लिए। ऐसा ओजस्वी भाषणकर्ता जिसकी चुप्पी में शब्दों की गहराई थी और भावनाओं का आह्वाहन होता था। लोग एक बार नहीं बार बार उनको सुनना पसंद करते थे। उनके अंधभक्तों की फहरिस्त भी उनके कार्यकाल की तरह लम्बी थी। भले ही राजनीति में पदार्पण के उपरांत अपने निजी फायदे के लिए अलगाव दिखाई दिया हो पर उन सभी नेताओं की अंतरात्मा जानती थी कि उन सभी के गुरु अटल बिहारी जी ही रहे हैं। रामविलास पासवान जी ने अपने एक इंटरव्यू के दौरान बहुत बेबाकी से कहा- कि हमलोग स्कूल से बस्ता लेकर भाग –भाग कर अटल जी का भाषण सुनने जाते थे

जो कल थे,
वे आज नहीं हैं।
जो आज हैं,
वे कल नहीं होंगे।
होने, न होने का क्रम,
इसी तरह चलता रहेगा,
हम हैं, हम रहेंगे,
यह भ्रम भी सदा पलता रहेगा।
सत्य क्या है?
अटल बिहारी वाजपेयी जी की यह कविता जीवन के अकाट्य सत्य को दर्शाती है। उनकी सोच उनके जीवन शैली को भी दर्शाती है। हिन्दू हृदय सम्राट, कुशल राजनितिज्ञ, अद्भुत वक्ता, संजीदा कवि, शत्रु दल में भी जय जयकार करवाने में सक्षम अटल बिहारी वाजपेयी जी धरती पर रहने वाले एक सूरज थे।
वाजपेयी का जन्म 25 दिसम्बर 1924 को ग्वालियर में हुआ। उनके पिता का नाम कृष्णा बिहारी वाजपेयी और माता का नाम कृष्णा देवी था। उनके पिता कृष्णा बिहारी वाजपेयी अपने गाव के महान कवि और एक अध्यापक थे।
अटल बिहारी वाजपेयी जी ने ग्वालियर के बारा गोरखी के गोरखी ग्राम की गवर्नमेंट हायरसेकण्ड्री स्कूल से शिक्षा ग्रहण की थी। बाद में वे शिक्षा प्राप्त करने ग्वालियर विक्टोरिया कॉलेज (अब लक्ष्मीबाई कॉलेज) गये और हिंदी, इंग्लिश और संस्कृत में डिस्टिंक्शन से पास हुए। उन्होंने कानपुर के दयानंद एंग्लो-वैदिक कॉलेज से पोलिटिकल साइंस में अपना पोस्ट ग्रेजुएशन एम.ए में पूरा किया। इसके लिये उन्हें फर्स्ट क्लास डिग्री से भी सम्मानित किया गया था।
ग्वालियर के आर्य कुमार सभा से उन्होंने राजनैतिक काम करना शुरू किये, वे उस समय आर्य समाज की युवा शक्ति माने जाते थे और 1944 में वे उसके जनरल सेक्रेटरी भी बने।
1939 में एक स्वयंसेवक की तरह वे राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में शामिल हो गये। और वहा बाबासाहेब आप्टे से प्रभावित होकर, उन्होंने 1940-44 के दर्मियान आरएसएस प्रशिक्षण कैंप में प्रशिक्षण लिया और 1947 में आरएसएस के फुल टाइम वर्कर बन गये। विभाजन के बीज फैलने की वजह से उन्होंने लॉ की पढाई बीच में ही छोड़ दी। और प्रचारक के रूप में अटल जी को उत्तर प्रदेश भेजा गया और जल्द ही दीनदयाल उपाध्याय के साथ राष्ट्रधर्म (हिंदी मासिक ), पंचजन्य (हिंदी साप्ताहिक) और दैनिक स्वदेश और वीर अर्जुन जैसे अखबारों के लिये काम करने लगे।
अटल एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने अपने और गैरों दोनों को दिल खोलकर गले लगाया और जरुरत पड़ने पर अपने नाम की तरह अटल हिमालय बनकर देश के गौरव के लिए खड़े हो गये। पाकिस्तान के नवाज़ शरीफ से दोस्ती की बस रही हो या कारगिल युद्ध..दोनों में ही अटल जी ने अपनी कटिबद्धता दिखाई। वीर, निडर अटल जी ने देश को सदैव सर्वोपरि रखा। एक बार संसद में अपने पहले 13 दिन के कार्यकाल के दौरान भाषण में कहा- पार्टियां आयेंगी-जायेंगी, बनेंगी –टूटेंगी पर, देश हमेशा रहना चाहिए। तभी तो देश की सुरक्षा में बुलंद हौसले के साथ अडिग कदम उठाने से नहीं हिचके और पोखरण में परमाणु परीक्षण डंके की चोट पर करवा कर यह ऐलान भी कर दिया कि- भारत पहले बिना वजह इसका प्रयोग नहीं करेगा। अटल जी की जीवनी में यदि एक शक्स का उल्लेख ना हो यह तो संभव ही नहीं। उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले उनके परम स्नेही मित्र लालकृष्ण आडवाणी उनके हमराज और परम सहयोगी जीवनपर्यन्त रहे। उनकी कविताओं में इंसानियत का पुट स्पष्ट रुप से झलकता है-
पेड़ के ऊपर चढ़ा आदमी
ऊंचा दिखाई देता है।
जड़ में खड़ा आदमी
नीचा दिखाई देता है।
आदमी न ऊंचा होता है, न नीचा होता है,
न बड़ा होता है, न छोटा होता है।
आदमी सिर्फ आदमी होता है।

अटल बिहारी मात्र कवि और कुशल राजनेता ही नहीं थे बल्कि वो एक दूरदर्शी और विचारक भी थे। 1980 में भाजपा की स्थापना का श्रेय भी अटल जी को ही जाता है। दो सांसदों वाली पार्टी से लेकर आज एकछत्र शासन करने वाली पार्टी भाजपा ही है। तभी तो उन्होंने महिलाओं को राजनीति में और समाज में काम करने का भरपूर मौका दिया। सुषमा स्वराज, उमा भारती, वसुंधरा राजे सिधिंया और जैसी एक लम्बी फहरिस्त है। शिवराज सिंह चौहान, अरुण जेटली, रविशंकर प्रसाद और नरेंद्र मोदी सरीकों को बनाने वाले अटल जी ही रहे। यही कारण रहा कि प्रधानमंत्री मोदी उनके शव के साथ अंतिम संस्कार स्थली तक पैदल चले और साथ ही पूरा कैबिनेट और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी चलकर उन्हें सच्ची श्रद्धांजली दी। व्यथित मन से अटल जी के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ब्लाग में लिखा- अटल जी अब नहीं रहे.. मन नहीं मानता.. अटल जी, मेरी आंखों के सामने हैं, स्थिर हैं। जो हाथ मेरी पीठ पर धौल जमाते थे, जो स्नेह से, मुस्कराते हुए मुझे अंकवार में भर लेते थे, वे स्थिर हैं। अटल जी की ये स्थिरता मुझे झकझोर रही है, अस्थिर कर रही है। एक जलन सी है आंखों में, कुछ कहना है, बहुत कुछ कहना है लेकिन कह नहीं पा रहा। मैं खुद को बार-बार यकीन दिला रहा हूं कि अटल जी अब नहीं हैं, लेकिन ये विचार आते ही खुद को इस विचार से दूर कर रहा हूं। क्या अटल जी वाकई नहीं हैं? नहीं. मैं उनकी आवाज अपने भीतर गूंजते हुए महसूस कर रहा हूं, कैसे कह दूं, कैसे मान लूं, वे अब नहीं हैं।
प्रधानमंत्री ने आगे लिखा- वे पंचतत्व हैं. वे आकाश, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, सबमें व्याप्त हैं, वे अटल हैं, वे अब भी हैं. जब उनसे पहली बार मिला था, उसकी स्मृति ऐसी है जैसे कल की ही बात हो. इतने बड़े नेता, इतने बड़े विद्वान. लगता था जैसे शीशे के उस पार की दुनिया से निकलकर कोई सामने आ गया है, जिसका इतना नाम सुना था, जिसको इतना पढ़ा था, जिससे बिना मिले, इतना कुछ सीखा था, वो मेरे सामने था. जब पहली बार उनके मुंह से मेरा नाम निकला तो लगा, पाने के लिए बस इतना ही बहुत है. बहुत दिनों तक मेरा नाम लेती हुई उनकी वह आवाज मेरे कानों से टकराती रही. मैं कैसे मान लूं कि वह आवाज अब चली गई है। कभी सोचा नहीं था कि अटल जी के बारे में ऐसा लिखने के लिए कलम उठानी पड़ेगी। देश और दुनिया अटल जी को एक स्टेट्समैन, धारा प्रवाह वक्ता, संवेदनशील कवि, विचारवान लेखक, धारदार पत्रकार और विजनरी जननेता के तौर पर जानती है, लेकिन मेरे लिए उनका स्थान इससे भी ऊपर का था. सिर्फ इसलिए नहीं कि मुझे उनके साथ बरसों तक काम करने का अवसर मिला, बल्कि मेरे जीवन, मेरी सोच, मेरे आदर्शों-मूल्यों पर जो छाप उन्होंने छोड़ी, जो विश्वास उन्होंने मुझ पर किया, उसने मुझे गढ़ा है, हर स्थिति में अटल रहना सिखाया है।

उनके लिए राष्ट्र सर्वोपरि था-बाकी सब का कोई महत्त्व नहीं. इंडिया फर्स्ट-भारत प्रथम, ये मंत्र वाक्य उनका जीवन ध्येय था. पोखरण देश के लिए जरूरी था तो चिंता नहीं की प्रतिबंधों और आलोचनाओं की, क्योंकि देश प्रथम था. सुपर कंप्यूटर नहीं मिले, क्रायोजेनिक इंजन नहीं मिले तो परवाह नहीं, हम खुद बनाएंगे, हम खुद अपने दम पर अपनी प्रतिभा और वैज्ञानिक कुशलता के बल पर असंभव दिखने वाले कार्य संभव कर दिखाएंगे. और ऐसा किया भी। दुनिया को चकित किया। सिर्फ एक ताकत उनके भीतर काम करती थी- देश प्रथम की जिद।   
काल के कपाल पर लिखने और मिटाने की ताकत, हिम्मत और चुनौतियों के बादलों में विजय का सूरज उगाने का चमत्कार उनके सीने में था तो इसलिए क्योंकि वह सीना देश प्रथम के लिए धड़कता था। इसलिए हार और जीत उनके मन पर असर नहीं करती थी। सरकार बनी तो भी, सरकार एक वोट से गिरा दी गई तो भी, उनके स्वरों में पराजय को भी विजय के ऐसे गगन भेदी विश्वास में बदलने की ताकत थी कि जीतने वाला ही हार मान जाय।
अटल जी कभी लीक पर नहीं चले. उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में नए रास्ते बनाए और तय किए। 'आंधियों में भी दीये जलाने' की क्षमता उनमें थी। पूरी बेबाकी से जो कुछ भी बोलते थे, सीधा जनमानस के हृदय में उतर जाता था। अपनी बात को कैसे रखना है, कितना कहना है और कितना अनकहा छोड़ देना है, इसमें उन्हें महारत हासिल था।
बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
हास्य-रूदन में, तूफानों में,

कौन भूल सकता है। 13 दिनों की सरकार को बचाने की नाकाम कोशिशों के बाबजूद भी वाजपेयीजी का अचूक, गगनभेदी भाषण। वहीं संसद की दीवारों मे अटल की यादें आज भी ताजा हैं। अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के सिर्फ एक नेता ही नहीं हैं वे भारतीय लोकतंत्र के सिर्फ एक प्रधानमंत्री भी नहीं है अटल भारतीय शासन की सिर्फ शख्सियत नहीं है बल्कि वो भारत के अनमोल रत्न हैं जिन्होनें राजनीति के इतिहास में एक अमिट कहानी लिखी है ..वाजपेयी  एक विरासत हैं.. एक ऐसी विरासत जिनके इर्द -गिर्द भारतीय राजनीति का पूरा सिलसिला चलता है। 13 दिन के बाद 13 महीने की सरकार और अंततोगत्वा पूरे 5 साल की सरकार चलाने का श्रेय और अंनंत पार्टियों को साथ लेकर चलने के बावजूद जे जयललिता और ममता बनर्जी की बनरघुड़कियों से हरबार जूझते रहे। 3 बार प्रधानमंत्री बनने का मौका जवाहरलाल नेहरु के बाद अटल जी को ही यह सौभाग्य प्राप्त हुआ।
काल के कपाल पर लिखता हूं मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं....मैं गीत नया गाता हूं....
सत्य ही है अटल जी ने सदा नवगीत का ही सृजन किया। उनका राजनैतिक पदार्पण 1957 से शुरु हुआ।  जब उन्होनें पहली बार भारतीय संसद में दस्तक दी थी। जब आजाद हिन्दुतान के दूसरे आमचुनाव हुए। अटलजी भारतीय जनसंघ के टिकट से तीन जगह से खड़े हुए थे। मथुरा में जमानत जब्त हो गई। लखनऊ से भी वे हार गए लेकिन बलराम पुर में उन्हें जनता ने अपना सांसद चुना। और यही उनके अगले 5 दशकों के संसदीय करियर की शुरुआत थी। अटल बिहारी वाजपेयी अब तक नौ बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं।
1962 से 1967 और 1986 में अटलजी राज्यसभा के सदस्य भी रहे। 1980 में भाजपा के संस्थापक सदस्य रहे।
1968 से 1973 तक वो भारतीय जन संघ के अध्यक्ष रहे। मोरारजी देसाई के कैबिनेट में वे एक्सटर्नल अफेयर मंत्री भी रहे।
विपक्षी पार्टियों के अपने दूसरे साथियों की तरह उन्हें भी आपातकाल के दौरान जेल भेजा गया। 1977 में जनता पार्टी सरकार में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया।
इस दौरान संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में अटलजी ने हिंदी में भाषण दिया और वह इसे अपने जीवन का अब तक का सबसे बेहतरीन पल मानते थे। यह गौरवशाली पल सम्पूर्ण भारत के लिए आकाशगंगा के समान था। भारत के इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में यह पल लिखा जा चुका है।
1980 से 1986 तक वो बीजेपी के अध्यक्ष रहे और इस दौरान वह बीजेपी संसदीय दल के नेता भी रहे। अटल बिहारी वाजपेयी अब तक नौ बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं।
ख़ासतौर से 1984 में जब वो ग्वालियर में कांग्रेस के माधवराव सिंधिया से उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। 1962 से 1967 और 1986 में वो राज्यसभा के सदस्य भी रहे। 1996 में देश में परिवर्तन की बयार चली और बीजेपी को सबसे ज्यादा सीटें मिलीं और अटल जी ने पहली बार इस देश के प्रधानमंत्री पद को सुशोभित किया। कहते हैं जवाहरलाल नेहरु भी अटल जी का भाषण मंत्रमुग्ध होकर सुनते थे। उनके उन्मुक्त स्वभाव के कारण ही उन्हें 1994 में बेस्ट संसद व्यक्ति का पुरस्कार भी मिला।
हालाकि उनकी यह सरकार महज 13 दिन ही चली। लेकिन 1998 के आमचुनावों में फिर वाजपेयी जी ने  सहयोगी पार्टियों के साथ  लोकसभा में अपने गठबंधन का बहुमत सिद्ध किया और इस तरह एक बार फिर प्रधानमंत्री बने।
अटलजी के  इस कार्यकाल में भारत  परमाणुशक्ति-संपन्न राष्ट्र बना। इन्होने पाकिस्तान के साथ कश्मीर विवाद सुलझाने, आपसी व्यापार एवं भाईचारा बढ़ाने को लेकर कई प्रयास किये। लेकिन 13 महीने के कार्यकाल के बाद इनकी सरकार राजनीतिक षडयंत्र के चलते महज एक वोट से अल्पमत में आ गयी।जिसके बाद अटल बिहारी जी ने राष्ट्रपति को त्याग पत्र दे दिया और अपने भाषण में कहा कि-
जिस सरकार को बचाने के लिए असंवैधानिक कदम उठाने पड़ें उसे वो चिमटे से छूना पसंद नहीं करेंगे। उनकी भावना देशभक्ति से ओतप्रोत थी।
पंद्रह अगस्त का दिन कहता -
आज़ादी अभी अधूरी है।
सपने सच होने बाकी है,
रावी की शपथ न पूरी है।।
इसके बाद 1999 के आमचुनाव से पहले बतौर कार्यवाहक प्रधानमंत्री ने कारगिल में पाकिस्तान को उसके नापाक कारगुजारियों का करारा जवाब दिया और भारत कारगिल युद्ध में विजयी हुआ। कालांतर में आमचुनाव हुए और जनता के समर्थन से अटलजी ने सरकार बनाई। प्रधानमंत्री के रूप में इन्होने अपनी क्षमता का बड़ा ही समर्थ परिचय दिया।
ऊँचे पहाड़ पर,
पेड़ नहीं लगते,
पौधे नहीं उगते,
न घास ही जमती है।
जमती है सिर्फ बर्फ,
जो, कफ़न की तरह सफ़ेद और,
मौत की तरह ठंडी होती है।

ऐसी ऊँचाई,
जिसका परस
पानी को पत्थर कर दे,
ऐसी ऊँचाई
जिसका दरस हीन भाव भर दे,
अभिनंदन की अधिकारी है,
आरोहियों के लिये आमंत्रण है,
उस पर झंडे गाड़े जा सकते हैं,

पद्म विभूषण अटल जी आजीवन अविवाहित ही रहे। उन्होने कौल परिवार की पुत्रियों को गोद लिया और अंतिम समय में संस्कार भी उनकी दत्तक पुत्री ने ही किया। समाज को जाते जाते भी अटल जी ने एक परिवर्तित पथ पर समाज को चलने का निर्देश दे डाला। उनके जीवन की छवि को कुछ यूं समझा जा सकता है-
शून्य में अकेला खड़ा होना,
पहाड़ की महानता नहीं,
मजबूरी है।
ऊँचाई और गहराई में
आकाश-पाताल की दूरी है।
जो जितना ऊँचा,
उतना एकाकी होता है,
हर भार को स्वयं ढोता है,
चेहरे पर मुस्कानें चिपका,
मन ही मन रोता है।
ज़रूरी यह है कि
ऊँचाई के साथ विस्तार भी हो,


न वसंत हो, न पतझड़,
हो सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,
मात्र अकेलेपन का सन्नाटा।
मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
ग़ैरों को गले न लगा सकूँ,
इतनी रुखाई कभी मत देना।
अटल बिहारी वाजपेयी-
भारतमाता के महान सपूत और विभूति को हमारी ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि..







Sunday, 22 July 2018


बुराड़ी रहस्य

सर्वमंगला मिश्रा
विश्व आधुनिकता जगत की सीढियां चढ़ रहा है जबकि सच यह है कि आधुनिकता के साथ अंधविश्वास आज तक जिंदा है। बुराड़ी हत्याकांड इसका ज्वलंत उदाहरण है। एक साथ एक ही परिवार के 11 लोगों की मौत किसी दर्दनाक कहानी की ओर इशारा करता है। आसपास और जाननेवालों के अनुसार परिवार में सबकुछ सामान्य था। पुलिस को भी किसी बाहरी व्यक्ति के घर में जबरन प्रवेश के कोई निशान या सुराग नहीं मिले हैं। ऊपर से सबकुछ ठीक था पर घर के भीतर का माहौल किसी को कभी समझ ही नहीं आया। किसी को भी उनके घर के भीतर चल रहे अंधविश्वास की भनक तक नहीं लगी। सवाल उठता है राजस्थान के मूल निवासी, इस परिवार के सिर पर क्या सचमुच मोक्ष प्राप्ति के अंधविश्वास का ऐसा भूत सवार था कि जिंदगी समाप्त करते समय एक पल की भी तकलीफ नहीं हुई ? या हुई तो बहुत पर बताने वाला अब कोई नहीं बचा। क्योंकि परिवार के बीच पला एक बेजुबान को घर की छत पर बांध दिया गया था। इस परिवार में बूढ़े, जवान और बच्चे सभी थे। तीन पी​ढ़ी के इस परिवार की एक साथ सबने अपनी जीवन को समाप्त कर डाला। इसी परिवार की एक लड़की की अगले महीने शादी भी होने वाली थी। पुलिस की प्राथमिक जांच कहती है कि इस भयानक घटना में बाहर के किसी व्यक्ति का हाथ नहीं है। 'मोक्ष' पाने की एक भ्रामक चाह ने उन सभी को इतना बड़ा कदम उठाने और कथित तौर पर एक साथ अपनी जान लेने के लिए मजबूर कर दिया। परिवार के सदस्य ललित की आध्यात्म में ख़ास रुचि उसके पिता की मृत्यु के बाद से और खासकर उसकी आवाज वापस आने के बाद से बढ़ गयी थी। उनकी डायरी में मोक्ष, मृत्यु के बाद का जीवन और उसे पाने के लिए किसी भी हद तक जाने की तैयारी, ये सभी बातें लिखी थीं।
शेयर्ड साइकोसिस – क्या होता है-
बुराड़ी में रहने वाले भाटिया परिवार में हुई इस घटना के पीछे भी यही मुख्य कारण नज़र आता है। जांच में सामने आया है कि साल 2008 में ललित के​ पिता की मृत्यु के बाद अंधविश्वास और उससे जुड़ी विधियों की तरफ उनका झुकाव बढ़ गया था। उन्हें महसूस होता था कि ध्यान लगाने पर उनके पिता उनसे बात करते हैं और उन्हें निर्देश देते हैं। मृत लोगों के साथ बात करना अपने आप में एक मानसिक बीमारी है। यह भ्रम की आप मरे हुए व्यक्ति की आवाज़ सुनते हैं या आपको उसके ज़िंदा होने का आभास होता है, तो ये एक तरह की मनोविकृति है। ऐसे मामलों में कोई शख्स अपने आपको हक़ीक़त से बहुत दूर कर लेता है और काल्पनिक दुनिया में रहने लगता है। ललित का व्यवहार भी कुछ इसी तरह का था। अंधविश्वास के कारण दूसरों का भी भरोसा होता है इसलिए वो बीमारी की तह तक नहीं पहुंच पाते। उस व्यक्ति में ख़ास शक्तियां हैं-ऐसा लोग मानने लगते हैं। ऐसे लोग परिवार के दूसरे सदस्यों पर भी प्रभाव डालते हैं। फिर वो भी कुछ ऐसा ही अनुभव करने लगते हैं और ख़ुद अंधविश्वास की चपेट में आ जाते हैं। वहीं इसी बीच पुलिस के हाथ ललित की भांजी प्रियंका की एक नीजि डायरी लगी है जिससे 11 मोतौं की गुत्थी और उलझ गई है । इस डायरी में अंधविश्वास या तंत्र-मंत्र नहीं बल्कि प्रेम प्रसंग का जिक्र है जिसने इस केस को नये मोड़ ​पर ला खड़ा कर दिया है। प्रियंका की डायरी के कवर पेज पर सुंदर लड़की लिखा है और यह पेज दिल के आकार में कटा है। अंदर के पन्नों में प्रियंका ने मॉडल टाउन में रहने वाले एक युवक का जिक्र किया है। डायरी की शुरूआत में लिखा कि मैं जो बात आपको बताने जा रही हूं, उससे मैं आपकी नजरों से गिर सकती हूं। उसने एक लड़के का नाम बताते हुए लिखा कि अब वह घर खाली करके जा चुका है। इसके लिए उसने अपने मामा ललित से माफी भी मांगी। उसने यह भी भरोसा दिलाने की कोशिश की है कि वह शादी के बाद अपने ससुराल में ठीक से रहेगी। वहां सबको खुश रखेगी और किसी को शिकायत का मौका नहीं देगी। अब उस लड़के की तलाश जारी है जिसका जिक्र इस डायरी में किया गया है। पुलिस उस लड़के से पूछताछ कर यह भी जानकारी जुटाने की कोशिश करेगी कि क्या प्रियंका ने कभी मोक्ष प्राप्ति के इस विधि के बारे में चर्चा की थी। वहीं जांच से जुड़े पुलिस अधिकारियों का कहना है कि डायरी में कही गई बातें कब लिखी गई हैं इसका पता लगाया जा रहा है। हो सकता है कि यह डायरी पुरानी हो। लिखावट प्रियंका की हैंडराइटिंग से मिलती है। जांच में पता चला कि ललित जब परिजनों से कहता था कि उसके अंदर पिता की आत्मा प्रवेश कर गई है तो उसकी आवाज और शरीर कांपने लगते थे। इस हालात में प्रियंका ही रजिस्टर में वो सबकुछ लिखती जो ललिल बोलता था। ललित अपने पिता की आवाज में पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठान, परिवार के लोगों की दिनचर्या और सजा संबंधी निर्देश देता था। अगर किसी कारणवश प्रियंका घर में मौजूद नहीं होती थी तो ललित की पत्नी टीना रजिस्टर लिखने का काम करती थी। सीसीटीवी फुटेज में भुवनेश की पत्नी सविता व उनकी बड़ी बेटी नीतू को दो स्टूल लेकर घर के अंदर जाते हुए देखा गया। जांच के क्रम में पता चला कि अलग अलग फर्नीचर दुकानों से स्टूल खरीदे गए थे। शायद एक दुकान से इसलिए स्टूल नहीं खरीदे गए जिससे दुकानदार शक न कर बैठे या फिर कोई सवाल न पूछ बैठे। पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज की तस्दीक के लिए दोनों फर्नीचर दुकानदारों से पूछताछ की। दुकानदारों ने पुष्टि भी कर दी है। घटना से छह सात दिन पूर्व ही मार्केट से दस चुन्नियां खरीदी गई थीं। पुलिस ने मौका-- वारदात से टेलीफोन के तार, टेप के बंडल, कई रूमाल, प्लास्टिक की रस्सियां भी बरामद की थीं। इन सभी सामानों का इस्तेमाल फंदा लगाने से लेकर मुंह, हाथ आदि बांधने के लिए किया गया था।
मृतकों में सात महिलाएं व चार पुरुष थे, जिनमें दो नाबालिग थे। एक महिला का शव रोशनदान से तो नौ लोगों के शव छत से लगी लोहे की ग्रिल से चुन्नी व साड़ियों से लटके मिले। एक बुजुर्ग महिला का शव जमीन पर पड़ा मिला था। नौ लोगों के हाथ-पैर व मुंह बंधे हुए थे और आंखों पर रुई रखकर पट्टी बांधी गई थी। एक ही बेड़शीट की चादर के कई टुकड़े करके भी लोगों के चेहरों को ढका गया था। क्या यह किसी हड़बड़ाहट का नतीजा था। जब सबकुछ तय तरीके से हो रहा था तो मुंह को ढ़ाकने के लिए जरुरत की चीज भी मार्केट से लायी जा सकती थी।
बुराड़ी-संत नगर मेन रोड से सटे संत नगर की गली नंबर दो में बुजुर्ग महिला नारायण का मकान है। इसमें वह दो बेटों भुवनेश व ललित, उनकी पत्नियों, पोते-पोतियों व विधवा बेटी संग रहती थीं। ये लोग मूलरूप से राजस्थान के निवासी थे और 22 साल पहले यहां आकर बसे थे। बुजुर्ग महिला के तीसरे बेटे दिनेश सिविल कांटेक्टर हैं और राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में रहते हैं। बुजुर्ग महिला के दोनों बेटों की भूतल पर एक परचून व दूसरी प्लाईवुड की दुकान है। साथ ही पहली व दूसरी मंजिल पर परिवार रहता था। रोज सुबह ललित घर के सामने रहने वाले दिल्ली पुलिस से सेवानिवृत्त तारा प्रसाद शर्मा के साथ मार्निंग वॉक पर जाते थे। उससे पहले शर्मा ललित की दुकान से दूध लेते थे। रविवार सुबह दुकान नहीं खुली तो शर्मा दरवाजा खटखटाने गए, पर दरवाजा खुला था तो वह ऊपर चले गए। ऊपर का दरवाजा भी खुला था। आगे जाने पर उनकी रूह कांप सी गई। बरामदे वाले हिस्से में दस लोगों के शव लटके थे, जबकि एक महिला का शव कमरे में पड़ा था। यहां एक बात समझ नहीं आती कि जब सारी क्रिया घर के अंदर गुप्त तरीके से चल रही थी तो दरवाजा कैसे खुला रह गया या जिसने घटना को अंजाम दिया वो फरार हुआ और घर का दरवाजा खुला रह गया हो। हालांकि पोस्ट मार्टम की रिपोर्ट में क्लोरोफार्म जैसी वस्तु का किसी भी मृत व्यक्ति के शरीर से मिलने की बात नहीं कही गयी है अथवा शरीर से किसी जहरीले वस्तु की भी पुष्टि नहीं हुई है।
इन बातों से जहन में कहीं न कहीं एक बात तो जरुर कौंधती है कि जब कोई देनदारी नहीं थी, कोई विवाद नहीं था, कोई शत्रु भी खुले तौर पर नहीं पकड़ में आया जिसपर आशंका व्यक्त की जाय। क्या ऐसा संभव है कि कोई ऐसा शक्स हो जिसने बहुत ही चतुराई के साथ किसी पुरानी शत्रुता के खेल को अंजाम दिया हो। पर यदि यह अंधविश्वास का खुला चिट्ठा है तो ऐसे अंधविश्वास को इंसानियत की जड़ से उखाड़ फेंकना होगा अन्यथा ऐसी कितनी मासूम जिंदगियां मोक्ष पाने के नाम पर खूबसूरत जिंदगी से हाथ धो बैठेंगी।







बंगाल में किसकी चित किसकी पट

सर्वमंगला मिश्रा

आजकल बंगाल की स्थिति कभी धूप तो कभी छांव की तरह नजर आ रही है। भाजपा अपने अश्वमेध यज्ञ को पूर्ण करना चाहती है तो ममता दीदी हर हाल में भाजपा को रोकना चाहती हैं। हाल ही में हुए पंचायत चुनाव में भाजपा और तृणमूल पार्टी की जद्दोजहद जगजाहिर हो गयी है। पंचायत चुनाव और विधानसभा चुनाव के दौरान यूं तो भाजपा का प्रदर्शन कुछ उत्साह जनक नहीं कहा जा सकता। लेकिन, उप चुनावों के दौरान भाजपा का प्रदर्शन सराहनीय रहा। भाजपा ने बंगाल में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा दी। अब अमित शाह की रणनीति, जिसने भाजपा का अमूमन पूरे भारत में, एक नया वर्चस्व कायम करवा दिया है। उसी रणनीति की असल परख बंगाल में देखने को पूरा भारत उत्सुक है। अमित शाह ने अब तक कुल 18 बार बंगाल का दौरा किया है। अमित शाह को पूर्ण विश्वास है कि भाजपा 2019 के चुनाव में बंगाल फतह कर लेगी लेकिन, दीदी का अपना बनाया और बिछाया हुआ चक्रव्यूह है जो कब और कैसे तोड़ना है यह वही निश्चय करती है।
2016 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा 11 प्रतिशत पर सिमट सी गयी थी। वहीं हाल ही में हुए पंचायत चुनाव में भाजपा ने ग्रामीण इलाकों में अपनी पहुंच बढ़ायी है। लोगों में जोश पनपा पर हिंसा के आगे शायद कहीं न कहीं दम तोड़ दिया। जोश और उत्साह को पुनर्जीवित करने मिदनापुर में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहुंचे और लोगों से अपने हौसले को बुलंद करने को कहा। मोदी जी देश के उस हिस्से को मजबूत करना चाहते हैं जहां आदिवासियों का इलाका है जिसे बंगाल में जंगलमहल का इलाका कहा जाता है। यही वह इलाका है जिसने भाजपा को वोट करने का साहस किया और भाजपा ने इतनी मशक्कत के बाद वोट प्रतिशत में एक तरह की छलांग सी मार ली और वोट प्रतिशत 24 तक पहुंच गया। भाजपा की असल मायने में यही जीत है। बंगाल में जीत की पहल का पहला पायदान भाजपा चढ़ चुकी है। जहां विधानसभा चुनावों में शहरों और जिलों के पढ़े लिखे लोग भाजपा को बंगाल में लाने से हिचकिचा रहे थे वहीं आदिवासी तबका बंगाल में परिवर्तन लाने को उत्सुक नजर आ रहा है। दिल्ली से चली आवाज नगर के लोगों को शायद अब तक नहीं जगा पायी है। लेकिन, वहीं दूरस्थ इलाकों में बसने वाले अनपढ़ लोगों ने परिवर्तन की आवाज़ को पहचाना है। आगामी चुनाव का रुख़ जबरदस्त होगा जब आदिवासियों के कानों तक पहुंची आवाज शहर में रहने वाले लोगों के कानों को भी छू जाय।
आदिनाथ, टैक्सी ड्राइवर, छपरा के निवासी हैं। पिछले 22 सालों से टैक्सी चलाते हैं। टैक्सी चलाते मोदी के गुणगान करते नहीं थकते। उन्हें पूरा यकीन है कि बंगाल में भी मोदी का जादू चलेगा और तभी बंगाल के लोग भी बाकी राज्यों की तरह उन्नति के पथ पर आगे चलेगें। मोदी को वह एक दूरदर्शी और सही निर्णायक मानते हैं। मोदीजी सही टाइम पे सही काम करेगा आदिनाथ की तरह ही तारकेश्वर और अनीस अंसारी भी यही मानते हैं कि मोदी यानी भाजपा के आने से ही बंगाल की स्थिति में सुधर होगा। वरना बंगाल में मनमानी चाहे सिंडीकेट की हो या किसी माफिया की या दादागिरी चलती ही रहेगी।
पंचायत चुनावों में हुई हिंसा के मद्देनजर भाजपा पुरुलिया में अपनी स्थिति मजबूत करने में लगी हुई है। भाजपा के तीन कार्यकर्ताओं की मृत्यु से भाजपा जहां सतर्क हो गयी है वहीं अपनी दावेदारी मजबूत करने के साथ वहां की परिस्थितियों से लड़ने के लिए अखाड़े में उतर चुकी है। अमित शाह का दौरा यकीनन स्थानीय निवासियों में उत्साह भर देता है। जिससे वो ऊर्जावान होकर भाजपा को बंगाल में लाने के लिए हर संभव प्रयास में जुट जाते हैं जिससे हिंसा का सामना आने वाले समय में उनकी आने वाली पीढ़ी को न करना पड़े।
भाजपा के लिए यह समय बंगाल में प्रवेश करने का बेहतरीन समय है। जहां कांग्रेस पार्टी अपना वर्चस्व खोती जा रही है और सीपीएम अपनी दावेदारी। एकमात्र तृणमूल से सामना 2019 में भाजपा का ही होना है। एक तबका जहां मोदी को बंगाल में देखना चाहता है तो दूसरी ओर कट्टरपंथी तबका परिवर्तन से दूर भागता नजर आता हैं। उन्हें बाहरी शासन पसंद नहीं। बंगाल की परिस्थिति भाजपा के लिए करो या मरो के समान है। एक तरफ जहां पूरे भारत को भगवा रंग से रंग देने वाले मोदी और शाह बंगाल की ओर नजरें जमाये हुए हैं। वहीं बंगाल की सल्तनत को दीदी खोना नहीं चाहती हैं इसीलिए, मोदी विरुद्ध एकजुट महागठबंधन गुट में चन्द्रबाबू नायडु, मायावती, अखिलेश, तेजस्वी यादव और सोनिया के साथ ममता दीदी ने भी सहयोग करने का हाथ बढ़ाया है और मोदी को बंगाल से दूर रखने का बीड़ा भी।
बंगाल में 70 प्रतिशत बूथ समितियां स्थापित की गयीं हैं जिससे 2019 के चुनाव में कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़े। इससे आने वाले चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत भी बढ़ेगा। भाजपा बंगलादेश से पलायन कर आये लोगों के लिए भी सहयोग का हाथ बढ़ा रही है। बंगाल में जितना पिछड़ा समाज अथवा वर्ग है, जिसपर तृणमूल सरकार की कृपादृष्टि आजतक नहीं हुई, भाजपा उन सभी को अपने साथ कर लेना चाहती है। जिससे चुनाव का रुख 2019 में परिवर्तित हो सके। उधर जंगलमहल के स्थानीय लोगों ने अपना मन खुलकर भाजपा के प्रति बना लिया है जिसका कारण स्पष्ट है कि तृणमूल सरकार उनकी आशाओं पर खरी नहीं उतरी। आज भी वो संसाधन विहीन हैं। जीवन की सामान्य सुख सुविधा भी जीवनयापन के लिए उन तक नहीं पहुंच पायी है। इसलिए पूरे भारत में जो हो चुका है बंगाल के ग्रामीण इलाकों के लोग अब वही परिवर्तन बंगाल में भी देखना चाहते हैं। हर चुनाव में होने वाली हिंसा और उससे जूझता उनका परिवार त्रस्त हो चुका है। चुनावी हिंसा उनके जीवन को झकझोर कर रख देती है।
बंगाल में आज बेरोजगार युवाओं की संख्या दिन प्रति दिन बढ़ती चली जा रही है। रोजगार के नाम पर तृणमूल सरकार भले ही कागजी आंकड़े घोषित कर विपक्ष को करारा जवाब देने में समर्थ हो परन्तु हकीकत इससे बिल्कुल विपरीत है। शहर को सुंदर बनाने का बीड़ा तृणमूल सरकार ने अवश्य उठाया है लेकिन, शहर सुंदर बनाने से आम जिंदगी सुंदर हो जायेगी इसकी तो कोई गारंटी नहीं होती।
भाजपा की लहर और जनता का विश्वास अब बंगाल की रगों में भी कहीं न कहीं धीरे धीरे प्रवेश कर चुका है। जिसका खुला प्रमाण उप चुनावों में स्थानीय पार्टियों को भाजपा ने दिया और अब आने वाले लोकसभा चुनाव में फतह की तैयारी में जुटे और आश्वस्त अमित शाह दूसरे राज्यों की भांति बंगाल को भी भगवा रंग की चादर ओढ़ा देना चाहते हैं।






भारत पर्यटन की दृष्टि से

सर्वमंगला मिश्रा
भारत वर्षों से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता आया है। चाहे फाह्यान हो या महमूद गजनवी, जिसने 17 बार सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया था। भारत की धरती पर जिसने भी आजतक कदम रखा, इतिहास गवाह है वह निहाल होकर ही गया। राम, कृष्ण, आदिगुरु शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस, गौतम बुद्ध, विवेकानन्द, गुरुनानक की इस धरती पर हर शक्स जीवन में एकदफा तो कदम रखना ही चाहता है। यह वही भारत है जहां से आध्यात्म का बीज हर मानव के अंदर पनपता है।  
भारत का पर्यटन और स्वास्थ्यप्रद पर्यटन मुहैया कराने की दृष्टि से विश्व में पाँचवा स्थान है। पर्यटन गरीबी दूर करने, रोजगार सृजन और सामाजिक सद्भाव बढ़ाने का सशक्त साधन है। भारत जैसे विरासत के धनी राष्ट्र के लिए पुरातात्विक विरासत केवल दार्शनिक स्थल भर नहीं होती वरन् इसके साथ ही वह राजस्व प्राप्ति का स्रोत और अनेक लोगों को रोजगार देने का माध्यम भी होती है| पर्यटकों के लिए कैम्पिंग स्थलों के संचालन करने से भी स्थानीय युवकों को रोजगार मिल सकता है। इसके लिए उन्हें प्रशिक्षित जनशक्ति की जरूरत पड़ेगी। कुछ स्थानीय युवकों को गाइड के रूप में काम करने के अवसर मिल सकता है। ये आने वाले पर्यटकों को आस पास की पहाडि़यों और जंगलों की सैर कराकर उन्हें अपने इलाके से परिचित करा सकते हैं। जिससे देश के स्वाभिमान में वृद्धि होगी। अपने इलाके की वनस्पतियों और जीव-जन्तुओं तथा ऐतिहासिक और पौराणिक स्थलों की तरह अपने समुदाय और लोक जीवन का परिचय दे सकते हैं।  स्थानीय पर्यटन स्थलों को रोचक ढंग से प्रस्तुत करके ये नाम कमा सकते हैं। स्थानीय बुनकर और कारीगर अपने उत्पाद प्रदर्शित करके पर्यटकों को आकर्षित कर सकते हैं। जिससे ज्यादा पर्यटक आकर्षित होंगे। कारीगरों को अपने हस्तशिल्प और बनाए गए परिधानों को पर्यटकों के सामने प्रस्तुत करने के अवसर दिए जा सकते हैं। पर्यटन से स्थानीय युवकों को नए-नए क्षेत्रों में रोजगार के अवसर मिलते हैं। पर्यटन से सांस्कृतिक गतिविधियों में तेजी आती है और पर्यटकों तथा उनके मेजबानों के बीच बेहतर और समझदारी पूर्ण सम्बन्ध विकसित होते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर इससे विदेशी मुद्रा की मोटी कमाई होती है जो किसी भी देश के लिए महत्वपूर्ण है। सच्चाई यह है कि दुनिया के 83 प्रतिशत विकासशील देशों में पर्यटन विदेशी मुद्रा अर्जित करने का प्रमुख साधन है। मोदी सरकार ने अपने तीन साल के कार्यकाल में पर्यटन क्षेत्र का कायाकल्प कर दिया है। पर्यटन के क्षेत्र में देश ने जिस गति से तरक्की हुई है उससे लगता है कि, भविष्य में दुनिया के पर्यटन मानचित्र पर भी भारत अव्वल देशों में शामिल हो जाएगा। मात्र तीन वर्षों में देसी मानदंडों पर ही नहीं विदेशी मानदंडों पर भी पर्यटन के क्षेत्र में भारत की रैंकिंग काफी सुदृढ़ हुई है। विदेशी सैलानियों ने भारत को काफी अधिक महत्व देना शुरू कर दिया है। यही वजह है कि देश में विदेशी सैलानियों के साथ ही विदेशी मुद्रा का भंडार भी भरने लगा है। मोदी सरकार ने देश की कमान संभालते ही जिन चीजों पर सबसे अधिक जोर देना शुरू किया था उनमें से पर्यटन भी एक है। इसके लिए प्रधानमंत्री ने खुद अपने स्तर पर पहल शुरू की थी। पीएम मोदी ने दुनियाभर में जाकर भारत के पर्यटन क्षेत्र को जीवंत बनाने की कोशिश की है। उनके उन्हीं प्रयासों और प्राथमिकताओं का असर अब दिखाई देने लगा है।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 मार्च को अपने मन की बात में कहा था - ये बात सही है कि टूरिज्म सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला क्षेत्र है। गरीब से गरीब व्यक्ति कमाता है और जब टूरिस्ट, टूरिस्ट डेस्टिनेशन पर जाता है। टूरिस्ट जाएगा तो कुछ न कुछ तो लेगा। अमीर होगा तो ज्यादा खर्चा करेगा और टूरिज्म के द्वारा बहुत रोजगार की संभावना है। विश्व की तुलना में भारत टूरिज्म में अभी बहुत पीछे है। लेकिन हम सवा सौ करोड़ देशवासी तय करें कि हमें अपने टूरिज्म को बल देना है तो हम दुनिया को आकर्षित कर सकते हैं। विश्व के टूरिज्म के एक बहुत बड़े हिस्से को हमारी ओर आकर्षित कर सकते हैं और हमारे देश के करोड़ों-करोड़ों नौजवानों को रोजगार के अवसर उपलब्ध करा सकते हैं। सरकार हो, संस्थाएं हों, समाज हो, नागरिक हों, हम सब को मिल करके ये काम करना है
भारत प्रतिवर्ष विश्व पर्यटन दिवस मनाता है। प्रकृति की गोद में जो परम आनंद मिलता है, ज़ो सुकून मिलता है, शांति का आभास होता है वो और कहीं नहीं मिल सकता। भारत के पास नैसर्गिक संसाधन बेशूमार है। कुदरत का करिश्मा विश्व के हर कोने में हैं। प्रकृति का आलोकिक रूप देखकर आनंदित होता है। रमणीक स्थलों में कुदरत का नज़ारा मन को अद्भुत शांति प्रदान करता है। प्राकृतिक खजाना चहुंओर फैला पड़ा है। उँचे पहाड़, कल-कल करते झरने, मधुरतान अलापते रंग बिरंगे पंछी, महकते फूल, चारों ओर जैसे प्रकृति अपने आप सज धज हमे पुकार रही हो। भारत का आध्यत्म विश्व को आमंत्रित करता है। भारत अपनी सभ्यता, संस्कृति और परंपरा को परिलिक्षित करता है और विश्व का हर पर्यटक आने को विवश हो जाता है। यह स्वाभाविक है कि भारत पर्यटन के क्षेत्र में देश जैसे-जैसे विकास करेगा, रोजगार के मौके भी बढ़ते जाएंगे और विदेशी मुद्रा भंडार में भी बढ़ोत्तरी होती जाएगी।
मार्च 2006 में अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश जब भारत आये, तब भारत और अमेरिका के बीच परमाणु करार होना था और वह हुआ भी लेकिन इस गंभीर मुद्दे के बीच उनका एक बयान भी छाया रहा कि अमेरिका भारतीय आम खाना चाहता है। इसके उपरांत अमेरिका ने भारतीय कृषि उत्पादों के आयात पर भी एक समझौता किया। उसके अगले साल से ही 17 वर्षों के उपरांत ही सही अमेरिकावासी भारतीय आम का स्वाद चखने लगे। इससे जाहिर होता है कि भारत की मिट्टी पर चाहे कोई आया हो या मिट्टी की खुशबू उस तक पहुंची हो वो शक्स भारत का दीवाना हो जाता है।
वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम के अनुसार मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद भारत में पर्यटन के क्षेत्र में काफी सुधार हुआ है। डब्लूईएफ की ट्रैवल एंड टूरिज्म की काम्पिटीटिव रिपोर्ट 2017 (WEF की Travel & Tourism, Competitiveness Report 2017) की हालिया रैंकिंग में भारत ने 12 अंकों की ऊंची छलांग लगाई है। भारतीय टूरिज्म की रैंकिंग 52वें पायदान से ऊपर चढ़कर 40वें पायदान पर पहुंच गई है। जहां साल 2013 में भारत 65वें नंबर पर था, वहीं 2015 में 52वें नंबर पर आ गया और महज डेढ़ साल के भीतर 12 अंकों की छलांग लगाते हुए 40वें पायदान पर जा पहुंचा है। पर्यटकों के आगमन के मामले में जापान के पांच और चीन के दो अंक के मुकाबले भारत को 12 अंकों का फायदा हुआ है। जबकि अमेरिका शून्य से दो अंक नीचे और स्विट्जरलैंड शून्य से चार अंक नीचे रहा है। सबसे बड़ी बात ये है कि पर्यटकों की सुरक्षा के मामले में भी भारत 15वें स्थान पर आ गया है। यही नहीं पर्यटन से राजस्व में भी भारी बढ़ोत्तरी हुई है। यह 2015 में 1.35 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2016 में 1,55,650 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। इस तरह से विदेशी मुद्रा की कमाई में 15.1 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई। पर्यटन मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2017 में देश में 1.01 करोड़ पर्यटक आए जबकि 2016 में यह आंकड़ा 88.04 लाख था। इस तरह 2017 में भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्या में 15.06 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। खास बात यह है कि भारत आने वाले सबसे ज्यादा विदेशी पर्यटक बांग्लादेशी हैं। कुछ समय पहले तक भारत में सर्वाधिक विदेशी पर्यटक अमेरिका जैसे विकसित देशों से आते थे लेकिन बीते दो साल में बांग्लादेश ने इस मामले में विकसित देशों को पीछे छोड़ दिया है
वैसे 2016-17 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 2015 में 80.3 लाख पर्यटक भारत घूमने आए थे, तो 2016 में उससे 10.7 प्रतिशत अधिक यानि 88.9 लाख विदेशी पर्यटक भारत की यात्रा पर पहुंचे थे। बड़ी बात ये है कि ई-वीजा की सुविधा मिलने के बाद से भारत के प्रति विदेशी सैलानियों की रूचि और बढ़ी है और वो बड़ी संख्या में भारत का रुख कर रहे हैं। जैसे इस साल जनवरी से मार्च के बीच 4.67 लाख विदेशी सैलानी ई-वीजा पर भारत आए जो कि पिछले साल इसी अवधि के 3.21 लाख पर्यटकों की तुलना में 45.6 प्रतिशत अधिक है। भारत आने वाले पर्यटकों को किसी तरह की असुविधा न हो इसे देखते हुए अभी 161 देशों के नागरिकों को ये सुविधा दी जा रही है। भारत ने अपने पर्यटकों को वेलकम कार्ड देना भी शुरू किया है, जिनसे सैलानियों को सभी महत्वपूर्ण जानकारियों मिल जाएं और उन्हें किसी तरह की दिक्कतों का सामना न करना पड़े। केंद्र सरकार स्वदेश दर्शन के तर्ज पर टूरिस्ट सर्किट का विकास कर रही है। इस योजना के तहत 13 सर्किट को चुना गया है। पूर्वोत्तर भारत, हिमालयन, बौद्ध, तटीय, मरुस्थल, जन जातीय, कृष्णा, इको, ग्रामीण, आध्यात्मिक, रामायण और विरासत सर्किट योजना के तहत आते हैं। इस योजना के तहत 2601.76 करोड़ रुपये की लागत वाली सभी 31 परियोजनां पर कार्य पूर्ण करने की योजना है।
पर्यटन, सेवा क्षेत्र का एक ऐसा उभरता हुआ उद्योग है जिसमें अपार संभावनाएं निहित हैं। भारत अतुलनीय प्राकृतिक स्थलों के साथ ही वैश्विक स्तर पर एक बड़े जैविक आयामों के क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। पर्यटकों के लिए भारतीय बाजार विविधताओं भरा स्थान है। इन विविधताओं के आर्थिक पहलुओं को देखते हुए शिल्प आदि क्षेत्रों के संवर्धन हेतु ठोस सरकारी प्रयासों का परिणाम एक नई आर्थिक संभावना के रूप में देखा जा सकता है तथा नए चिन्हित पर्यटन स्थलों पर ढांचागत सुविधाओं का विकास कर न केवल शहरी बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी रोजगार के अवसरों की उपलब्धता बढ़ाई जा सकती है। सुरक्षा के साथ विदेशियों को भी भारत के गांवों की सैर करायी जा सकती है। जिससे पर्यटन को बहुत बढ़ावा मिल सकता है और वहां के लोगों को रोजगार।


Sunday, 15 April 2018


  कैंडल मार्च की लौ कितनी बुलंद ?
सर्वमंगला मिश्रा
युवा हर देश के भविष्य का प्रतिनिधित्व करता है। युवा सुरक्षित है तो देश सुरक्षित है। युवा वर्ग की अपनी पहचान हर युग में, हर समाज में परिलक्षित होती आई है। नव युवक यदि संतुलित, समझदार और निर्णय लेने की क्षमता रखता है तो देश का भविष्य और आज के युग की बनाई गयी धरोहर भी सुरक्षित रहेगी। परन्तु देश का युवा वर्ग जब संयम नियम से विपरीत दिशाहीन हो जाता है तब देश का भविष्य खतरे में नजर आने लगता है।
आज का युवा सोशल मीडिया से ओतप्रोत रहता है। उसकी दुनिया इंटरनेट से शुरु होती है और वहीं लगभग समाप्त भी होती है। जीवन में दिखावापना और हठधर्मीता दिन पर दिन बढ़ती ही चली जा रही है। व्यक्तित्व में गंभीरता का अभाव सा रहने लगा है। हर शक्स अजीब सी उधेड़ बुन में उलझा रहता है। नौकरी ढूंढनी है –इंटरनेट पर, दोस्तों से बात करनी है वाट्सअप या फेसबुक पर, देखकर बात करनी है वीडियो कालिंग। विडियो कालिंग भी कई किस्म की है- वाट्सअप पर, फेसबुक पर, ज़ीमेल पर, आईएमओ पर..इसके अलावा भी हजार संसाधन उपलब्ध हैं।
देश या विदेश में कोई भी घटना घटती है तब युवा वर्ग प्रो- एक्टिभ हो जाता है। सारे वाट्सअप ग्रूप में सारी खबरें फार्वर्ड करेगा। उत्तेजित होगा फेसबुक पर एसी कमरों में बैठकर देश के लिए चिंता करेगा। कालेज में बहस होगी। आफिस में चाय पर चर्चा होगी। विरोध प्रदर्शन में हक ती लड़ाई लड़ने के लिए बैनर पोस्टर बनवाएगा और दोस्त एक दूसरे की अच्छे पोज़ में फोटो खींचकर तुरंत फेसबुक पर अपलोड कर देंगें। अथवा मकड़ी के जाल जैसी उलझी और दुनिया को एक मंच पर ला देने वाली सुविधा इंटरनेट पर लाइभ अपने मोबाइल से हो जायेगा। ऐसे कामों में तो न्यूज चैनलों को भी मात देने का दम भरता है आज का युवा। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी गर्व से हाथ उठाकर कहते हैं कि आज का युवा माउस पर उंगली घुमाता है और एक क्लिक से पूरी दुनिया घूम लेता है। बिल्कुल सही बात है इसमें कोई दो राय नहीं परन्तु, मंगल पांडे, सुभाषचंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह इनके जैसी ऊर्जा आज के युवा वर्ग के मानस पटल से नदारद है। इन सभी क्रांतिकारियों के समय सोशल मीडिया नदारद था। उसके बावजूद भी अंग्रजों के विरुद्ध कितनी तगड़ी सोशल नेटवर्किंग थी।  न्यूजपेपर छापकर सारे क्रांतिकारियों तक गपचुप तरीके से, जानपर खेलकर पहुंचाना उनके अंदर की ज्वाला और देशप्रेम की भावना को उजागर करता है।
राजनैतिक लोग राजनीति करते आये हैं और करते रहेंगें। एक सोच युवा वर्ग की होनी चाहिए कि वह कैसे देश या समाज में जीवन जीना चाहता है। उसके भविष्य का सपना कैसा है। क्या बापू जैसा सपना है या जे पी जैसा या उसकी कोई नयी विचारधारा। आज वही सोच न जाने किन सपनों में खोई हुई है। सिर्फ अपना काम बना लेना ही मात्र उद्देश्य रह गया है। हम किसी से कम नहीं- बस इसी जद्दोजहद में जीना शान सा बन गया है। अच्छी व्यवसायिक पढ़ाई कर लेना और जुगाड़ लगाकर मोटी तनख्वाह वाली नौकरी पा लेना एकमात्र लक्ष्य रह गया है। कंपनी से देश का नुकसान हो रहा हो तो भी युवा वर्ग को फर्क नहीं पड़ता। उसकी ख्वाहिशें किसी भी कीमत पर पूरी होनी चाहिए। देश से उसे क्या ? उसका जीवन खुशियों से भरा होना चाहिए। जहां वो और उसका परिवार खुशी के मायने महसूस कर सकें।
आज का युवा सोशल मीडिया क्रांतिकारी बन चुका है। जोश तो है पर होश कहीं खो गया है। विरोध प्रदर्शन सिर्फ टायर जलाने, पुतला फूंकने, रोड जाम करने, पत्थरबाजी या स्टेटस अपडेट करने से धरातल की दुनिया में हलचल तो संभव है पर परिवर्तन असंभव। आज का युवा क्रांति तो लाना चाहता है। रातोंरात विश्व परिवर्तन कर देना चाहता है। पर अदृश्य बंधनों ने मानो उसको विवश कर रखा हो।
आज से तकरीबन 40 वर्ष पूर्व से पाश्चात्य सभ्यता ने अपने पैर भारत में पसारने शुरु किये तो किसीने यह अनुमान भी नहीं लगाया होगा मशाल जलाकर अपना विरोध प्रदर्शन करने वाला यह भारत देश सभ्यता के नये पैमाने रचेगा और मोमबत्ती की तरह कुछ समय तक आवाज उठाएगा और फिर सब समाप्त।
देश को बदलना है तो आचरण मजबूत करना होगा। आचरण मजबूत रहेगा तो डगमगाने का खतरा भी कम रहेगा। सोशल मीडिया का उपयोग यदि युवा सही ढंग से करे तो इससे बेहतर कोई साधन नहीं। ग्रूप तो बनते हैं पर पार्टी करने के लिए और हंसी चुटकुल्ले या वायरल मेसेज पढ़ने पढ़ाने के लिए। आज जेसिका, निर्भया या कठुआ कांड सबके लिए कैंडल मार्च, मुंह पर काली पट्टी बांधकर मौन प्रदर्शन करने की जरुरत क्यों पड़ती है। क्योंकि आज के युवा को देश के भविष्य से कोई सरोकार नहीं है। भविष्य से सरोकार हो भी तो उसे अपने भौतिक सुखों की इतनी चाह होती है कि उसके आगे देश असुरक्षित हो तो हो। उसे फर्क तो पड़ता है। पर उसका एहसास बाहोश हो गया है। आजाद पंक्षी बनकर उड़ना चाहता है मस्त गगन में। स्वछंदता होनी चाहिए पर देश को सिर्फ राजनैतिक वर्ग ही क्यों चलाये। सारी जिम्मेदारी राजनेताओं की ही क्यों हो। आज देश में ऐसी कुछ संस्थाएं हैं और लोग भी जो सोशल मीडिया का उपयोग देश को बचाने या सहयोग करने में उत्तम भूमिका निभा रहे हैं। सिर्फ कुछ लोगों से देश एकजुट नहीं हो सकता है। स्वछंदता, एकजुटता और एकनिष्ठता का समागम स्वयं में करना होगा। तभी देश में ऐसे विभत्स कृत्य पर लगाम लग सकेगी।
इंसाफ कैंडल मार्च करने से नहीं मिलता। इंसाफ के लिए कानून व्यवस्था को मजबूत करना होता है। ऐसी सभ्यता का उदय करना होता है जहां सुशासन परिलक्षित हो एवं उसमें पारदर्शिता हो। जब तक किसी देश का न्याय विधान कठोर नहीं होगा तब तक देश समाज के लोग मशाल जलायेंगें या कैंडल मार्च करते रहेंगे।
  

Monday, 9 April 2018


डिजिटल चुनावी प्रक्रिया ?




-सर्वमंगला मिश्रा-
राजनीतिक हलचल राजनीति की सौगात होती है। हलचल कभी परिणामस्वरुप सामने आता है तो कभी विद्रोह के रुप में। आजकल बंगाल में पंचायत चुनाव को लेकर संग्राम छिड़ा हुआ है। 22 राज्यों में अपना परचम लहरा चुकी केंद्र सरकार बंगाल में जीत का परचम लहराने को बेताब है। वहीं बंगाल की शेरनी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पुरु की तरह सिकंदर यानी भाजपा को बंगाल में न घुसने देने के लिए अपनी सेना के साथ बंगाल की हर सीमा पर चौकस है। पर, सिंकदर को रोक पाना क्या इतना भी सहज है?
बंगाल में विधानसभा चुनाव से लेकर पंचायत चुनाव तक भाजपा हर मोड़ पर अपने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर रही है। जिससे भाजपा को बंगाल में विजय हासिल हो सके। परन्तु, ममता दीदी किसी भी कीमत पर अपना सिंहासन खोने को तैयार नहीं है। तृणमूल पार्टी के कार्यकर्ता इतने चौकस हैं कि भाजपा सदस्य अपना नामांकन तक भरने के लिए कड़ी मशकक्त कर रहे हैं। चुनाव के लिए नामांकन कर पाना भाजपा प्रत्याशियों के लिए अपने आप में एक बड़ी जीत है। पूर्व मेदिनीपुर जहां तृणमूल का गढ़ माना जाता है, वहां भाजपा के प्रत्याशियों ने अपने नामांकन दाखिल कर जीत का सेहरा पहनने की तैयारी तो मानो कर ही ली है। पंचायत चुनाव में विद्रोह का आलम ऐसा है कि महिला प्रत्याशी पुलिस प्रशासन द्वारा पटक पटक कर पीटी जा रही हैं। ऐसे में क्या चुनावी प्रक्रिया बदलने की आवश्यकता नहीं है। जिससे नामांकन भरना सरल हो सके। डिजिटल इंडिया जहां ईवीएम मशीनों का इस्तेमाल वोट डालने के लिए किया जाता है। वहीं नामांकन भरने का तौर तरीका इतना पुराना होने से ही बंगाल में विद्रोह पनपा। यदि आधुनिककरण अब भी नहीं लाया गया तो अन्य राज्यों में जहां आने वाले समय में चुनाव होंगे, ऐसे दृश्य परिलक्षित होते रहेंगे।  
भारत डिजिटल मोड में परिवर्तित हो रहा है। भारत अब डिजिटल इंडिया बन रहा है। ऐसे में चुनाव के नामांकन भी आनलाइन ही होने चाहिए। जिससे महिला प्रत्याशियों को पुलिस के हाथों अपमानित न होना पड़े। देश का संविधान इस बात को स्पष्ट करता है कि हर भारतीय नागरिक को चुनावी प्रक्रिया में शामिल होने का पूर्णरुप से अधिकार है। पर बंगाल की दशा इससे बिल्कुल विपरीत नजर आती है। भारत के संविधान का, बाबा साहेब अंबेडकर का खुले रुप से उल्लंघन हो रहा है। क्या ऐसे भारत का सपना बापू ने देखा था या अंबेडकर जी ने। चुनावी संग्राम में हार जीत अलग मुद्दा होता है। परन्तु व्यक्ति के अधिकारों का हनन, यह भारत के संविधान का अपमान है।
तीन चरण में होने वाला बंगाल पंचायत चुनाव, जिसमें 48751 ग्राम पंचायत सीटें, 9240 पंचायत समिति और 825 जिला परिषद की सीटें हैं। बंगाल का इतिहास इस बात का गवाह है कि अपने समय में सीपीएम हो या तृणमूल निर्विरोध कई सीटों पर बिना लड़े कब्जा किया है। सन् 2003 में 6800 सीटों पर निर्विरोध सीपीएम पार्टी ने कब्जा किया तो 2013 में 6274 सीटों पर तृणमूल ने। क्या पंचायत चुनावों में ऐसी हरकतों को तवज्जों देना चाहिए। ऐसी स्थिति में चुनाव करवाने का क्या फायदा। क्या फायदा इतने पोलिंग बूथ बनवाने, पुलिस प्रशासन बल और तमाम खर्च करने का क्या फायदा। अगर चुनावी प्रक्रिया में स्वाभाविक स्वतंत्रता का अभाव रहता है।
अधिकारों के हनन को लेकर पार्टीयां चैतन्य तो रहती हैं परन्तु, वर्चस्व की लड़ाई में विद्रोह के शामियाने में कब, कहां और कैसी आग भड़क जाती है कि खबर ही नहीं होती। क्या मालदा, क्या वीरभूम पूरा बंगाल जैसे पंचायत चुनाव के पहले ही जल रहा है तो चुनाव के वो तीन दिन जो आने वाले हैं क्या होगा...इसका अंदाजा बहुत आसानी से लगाया जा सकता है। बंगाल की सीमा इतनी चौकस है कि केंद्र से पुलिस बल यदि आ भी जाती है तो बंगाल के अंदर कितनी देर शांति का माहौल बना रह पायेगा। इसकी कोई गारंटी नहीं है। भाजपा और तृणमूल की आमने सामने की यह लड़ाई आर या पार की बन चुकी है।
भारत विश्व का दूसरा बड़ा लोकतांत्रिक देश है। लेकिन, अधिकारों की स्वतंत्रता का हनन देखकर ऐसा कहने पर मन व्यथित हो उठता है। जिले के गांवों में रहने वाले वो निरीह लोग हर बार चुनावी संग्राम के शिकार हो जाते हैं। जिनका चुनाव से कोई सरोकार नहीं होता। रिज़वानुर रहमान भी एक ऐसा ही शक्स था। ऐसे में चुनावी प्रक्रिया को नया रुप देने की आवश्यकता है। जहां भारत का आम नागरिक चाहे चुनाव लड़ने की बात हो या मतदान करने की, अपने हक का उपयोग कर सके। तभी तो लोकतंत्र की जीत सही मायने में संभव हो पायेगी।
राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार आम नागरिक को उनके हक से उन्हें वंचित रखना एक तरह का अपराध है। राजनैतिक भाषा में जनता पर अंकुश लगाने के समान है जो धीरे धीरे निरंकुशता की ओर अग्रसर होती है।
यह पंचायत चुनाव भाजपा का लिटमस परिक्षण है। 2019 अब सिर पर है। बंगाल लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए कितनी अहम भूमिका निभाएगा इसकी झलक पंचायत चुनाव के परिणाम से ही मिल जायेगी। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह या बंगाल की दीदी किसकी रणनीति कितनी दमदार है यह परिक्षण की घड़ी है। भाजपा बंगाल में सेंध लगाना चाहती है तो दीदी केंद्र सरकार में। महागठबंधन में गठबंधन भी कितना शानदार होगा यह कहना बहुत मुश्किल है। कठिन परिस्थिति में तिकड़ी काम आएगी या नहीं परन्तु संविधान का सच आज कितना धरातल पर उतरा है यह पूरा देश देख रहा है।


लिंगायत से किसको फायदा?

सर्वमंगला मिश्रा

कर्नाटक राज्य में कांग्रेस ने भाजपा के विरुद्ध तब अपने फन फैलाकर फुफकारना शुरु कर दिया था जब सिद्दारमैया ने अपने राज्य के लिए एक अलग झंडे की मांग कर डाली। भारत देश का तिरंगा उन्हें न जाने क्यूं अप्रिय सा लगने लगा। देश में सुलगता यह बवाल कर्नाटक के चुनावी रणनीति का एक अहम हिस्सा था। जनता को इस बात का एहसास कराना था कि कांग्रेस ने कर्नाटक की जनता के हक के लिए केंद्र से ऊंची आवाज करने में भी नहीं हिचकिचाती है। 
22 राज्यों में अपना केशरिया परचम लहरा चुकी केंद्र सरकार कर्नाटक की जीत के लिए उद्दत है। जाहिर सी बात है पूरब से लेकर पश्चिम, उतर से लेकर दक्षिण तक केशरिया रंग में देश रंगा हुआ सा नजर आता है। कर्नाटक में भाजपा की जीत दक्षिण में फिर से एक नया अध्याय शुरु करेगी। जिससे भाजपा के विश्व विजय मिशन को यानी अश्वमेध यज्ञ को पूरा करने में एक सीढ़ी और चढ़ जायेगी। यूं तो कांग्रेस और भाजपा की नकेल कस टक्कर सदैव से चली आ रही है। वैसे हाल ही में हुए कुछ चुनाव और उप-चुनाव से राहुल गांधी भी उत्साहित नजर आ रहे हैं परन्तु अमित शाह को अपनी रणनीति पर पूरा भरोसा है। भरोसा है-लिंगायत वर्ग से मिलने वाली सत्ता के समर्थन का। हाल ही में हिन्दू धर्म से अलग हटकर अपनी अलग पहचान बनाने वाला लिंगायत धर्म को विश्व के समक्ष एक पहचान सी मिल गयी है। पर, राजनीति के विचारक इसे वोट बैंक के तौर पर आंकते हैं।
लिंगायत का भविष्य
कुछ लोगों को मानना है कि वीरशैव और लिंगायत एक ही आस्था के प्रतीक होते हैं। परन्तु, दक्षिण भारतीय खुद को वीरशैव से बिल्कुल अलग मानते हैं। वीरशैव शिव के उपासक होते हैं तो लिंगायत शिव की पूजा अर्चना नहीं करते बल्कि अपने शरीर पर ईष्टलिंग धारण करते हैं। इसकी आकृति गेंदनुमा होती है। इसे लिंगायत धर्म को मानने वाले समुदाय आतंरिक चेतना के रुप में देखते हैं। राजनीति की रेत वाली जमीन पर राहुल गांधी के अंदर गुजरात चुनावों के दौरान जो धार्मिक चेतना जगी उसकी चर्चा पूरी राजनीति के गलियारों से निकलकर आम जनता तक पहुंच गयी। जनेउधारी राहुल शिव भक्ति में अब सराबोर हो चुके हैं। वहीं वर्षों से तपोबल और शिव भक्त भारत के प्रधानमंत्री की आस्था किसी से छुपी भी नहीं है। शिव में आस्था के बल पर कांग्रेस शतरंज की बिसात बिछाना चाहती है तो भाजपा के बड़े नेता इस खेल में जनता की नजर में कहीं आगे चल रहे हैं। अमित शाह ने जहां लिंगायत प्रमुख शिवकुमार स्वामीजी से आशीर्वाद ले चुके हैं। वहीं राहुल गांधी भी पीछे नहीं रहना चाहते हैं और शिवकुमार स्वामीजी से आशीर्वाद लेकर कांग्रेस की दशा और दिशा बदलना चाहते हैं। स्वामी जी तो दोनों ही पार्टी के अध्यक्षों को हाथ उठाकर आशीर्वाद दे देंगें। पर, मन से किसको दिया ये तो परिणाम आने पर ही निर्णय किया जा सकेगा। लिंगायत समुदाय हमेशा से बड़ा वोट बैंक रहा है। जाहिर सी बात है वोट बैंक बड़ा है तो प्रयास और उसके अधिकार भी बड़े होने चाहिए। जो अब लिंगायत समुदाय को कहीं न कहीं मिलने की आस है। भविष्य में नौकरियां आरक्षित हो जायेंगी, स्कूल-कालेजों में कम नम्बर लाने के बावजूद आरक्षण के तहत दाखिला मिल जायेगा। रेल के सफर से लेकर संसद तक का सफर आसान हो जायेगा।
धर्म का कार्ड
कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के सबसे बड़े नेता के रुप में यदुरप्पा उभरे परन्तु जिस तरह दलितों के नाम पर देश को कहीं जोड़ने तो कहीं तोड़ने का काम किया वर्षों पहले किया गया था। उसी तरह कांग्रेस ने फिर एक बार अपनी पुरानी चाल नये अंदाज में खेली है। लिंगायत समुदाय को ओबीसी समुदाय के तहत ही आंका जाता है।
2019 -सेमीफाइनल मैच
कर्नाटक का चुनाव 2019 का सेमी फाइनल मैच के समान है। यहां चार में से एक नेता लिंगायत समुदाय से जुड़ा हुआ है। राहुल गांधी यदि 2019 का सपना देख रहे हैं तो यह करो या मरो की स्थिति है। वहीं भाजपा के लिए 23वां राज्य झोली में आयेगा। साथ ही 2019 के पहले, दक्षिण भारत की जनता का विश्वास उनके उन्नत कार्यशैली पर मुहर लगाने का काम करेगी।
राहुल गांधी ने कर्नाटक के तकरीबन 70 प्रतिशत जिलों का दौरा कर लिया है। परन्तु जनता पर इस दौरे का क्या असर पड़ेगा..ये तो जनता ही बता सकेगी। समाज को बांटकर होने वाली राजनीति अभी और न जाने कितने धर्मों के टुकड़े करेगी। भारत की अनेकता में एकता की मजबूती को तोड़ने के मनसूबे न जाने कितनी बार कामयाब होंगें और देशवासी कामयाब होते हुए देखते रहेंगे।
मोदीजी का शासनकाल, जहां हिन्दुत्व का जीर्णोद्धार हो रहा है। वहीं मोदी सरकार दूसरे धर्मों से कुरीतियों को निकालने में भी सक्षम हो रही है। जैसे तीन तलाक और हलाला जैसी कुरीतियों से मुस्लिम महिलाओं को निज़ाद दिलाना। लेकिन राजनैतिक हितों के मद्देनजर हिन्दु धर्म के न जाने कितने टुकड़े होंगे और क्या असर होगा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
धर्म और आस्था राजनीति की बड़ी ढ़ाल रहा है। पर देश में किसी भी एक समाज को वोट बैंक के तौर पर देखना और उसे भरपूर तवज्जो देना भविष्य के लिए खतरनाक साबित होता है। राजनीति के दलदल ने धर्म और इंसान में कितना फर्क ला दिया है।





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