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Monday 24 September 2018


सेबी ने डेब्ट म्यूचल फंड्स को किया और बेहतर


सर्वमंगला मिश्रा
सेबी ने भारतीय निवेशकों के हित की सोचते हुए म्यूचल फंड्स की स्कीम में सुधार की प्रक्रिया लागू कर दी है। बाजार में पुराने नए निवेशकों के साथ-साथ डेब्ट म्चुअल फंड्स की योजनाएं भी काफी उलझी हुई सी प्रतीत होती थीं जिससे निवेशक भ्रामक स्थिति में रहता था और निवेश करने से हिचकिचाहट का अनुभव करता था अथवा उसे रिस्क फैक्टर का ज्ञान सही मायनों में नहीं हो पाता था। ऐसी ही उलझनों से निवेशकों को स्पष्टता प्रदान करने की दिशा में सेबी ने डेब्ट म्यूचुअल फंड्स की योजनाओं को 16 भागों में बांट दिया है। जिससे यह तय करना आसान हो जायेगा कि निवेशक कहां निवेश करे और कितनी अवधि के लिए। पहले एक ही योजना के तहत दो अथवा उससे ज्यादा योजनाएं सामान्य अंतर से लागू रहती थीं पर अब एक योजना के तहत एक ही योजना को प्रतिपादित किया गया है। कंपनियां सेबी के आदेश के उपरांत योजनाओं की जांच करके उनमें सुधार की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी है। सेबी के इस आदेश से बाजार में एक नया स्तर बनेगा और बाजार एक नये रुप में दिखेगा। इससे निवेशक अपने आप आकर्षित होंगे और डेब्ट म्यूचुअल फंड्स के तहत पूंजी निवेश करने वालों की संख्या में अनुमानत:  भारी वृद्धि होगी। जिससे आने वाले समय में डेब्ट म्यूचुअल फंड्स का मार्केट एक नये आसमान को छू सकेगा।
ओवरनाइट फंड- सबसे कम अवधि के लिए या एक दिन से लेकर एक सप्ताह जैसी अवधि तक के लिए भी निवेशक निवेश कर सकता है। जिसमें अमूमन कोई रिस्क नहीं रहेगा।
लिक्विड फंड- छोटे निवेशक जिनके निवेश की अवधि 3 महीने तक या उसके आस पास की होती है इसमें निवेश कर सकते हैं। इस योजना के तहत निवेशक की पूंजी काल मनी, ट्रेजरी बिल अथवा सरकारी प्रतिभूतियों के तहत निवेश होता है। जहां से निवेशक आसानी से अपने पैसे निकाल सकता है।
अल्ट्रा शार्ट ड्यूरेशन फंड- इस योजना के तहत निवेशक 3 से 6 महीने तक के लिए निवेश कर सकता है।
लो ड्यूरेशन फंड- इस योजना के तहत निवेशक अपनी सुविधा से 6 महीने से लेकर 12 महीने तक के लिए अपनी पूंजी का निवेश कर सकता है।
मनी मार्केट फंड- यह योजना निवेशकों को एक वर्ष की अविधि तक के लिए निवेश करने की होगी जिसमें मैच्योरिटी की अवधि भी शामिल होगी।
शार्ट ड्यूरेशन फंड- इस योजना के अंतर्गत ऐसे निवेशक आयेंगे जो अपनी पूंजी को कुछ वर्षों के लिए निवेश करना चाहते हैं।इसमें एक वर्ष से लेकर 3 वर्ष की अवधि तक के लिए निवेश किया जा सकेगा। जिसमें सामान्य रिस्क रहता है।
मीडियम ड्यूरेशन फंड- इस योजना के तहत निवेशक 3 से 4 वर्ष की अवधि तक के लिए निवेश कर सकेगें।
मीडियम टू लांग ड्यूरेशन फंड- इस योजना के तहत इच्छुक निवेशक जो लंबी पारी खेलना चाहते हैं वो इस योजना में निवेश कर सकते हैं। इसकी अवधि 4 वर्ष से 7 वर्ष तक की सीमा तय की गयी है।
लांग ड्यूरेशन फंड- इस योजना के अंतर्गत सामान्य से मध्यम बड़े निवेशक प्रवेश कर सकेंगे। इस योजना के तहत 7 वर्ष से अधिक तक की योजनाओं में निवेश किया जा सकेगा।
डायनामिक बांड- निवेशको स्वेच्छा से अपने निवेश की अवधि निर्धारित कर सकता है। निवेशक को ध्यान रखना होगा कि रिस्क की सीमा भी वह स्वयं निर्धारित करे।
कारपोरेट बांड फंड- कारपोरेट बांड फंड कम रिस्क फैक्टर के साथ अच्छा रिटर्न भी देते हैं। बड़ी एवं नामी कंपनियों की निवेश योजनाओं में निवेश करना निवेशक के लिए लाभप्रद होता है। कंपनियां अपने ब्रांड की शाख को ध्यान में रखते हुए काम करती है।पहले कारपोरेट बांड फंड और क्रेडिट अपरच्यूनिटी फंड में साधारण निवेशक भ्रमित हो जाता था और कई बार निवेशक की पैसा कार्पोरेट बांड फंड की जगह क्रेडिट अपरच्यूनिटी फंड में इस्तेमाल होता था।
क्रेडिट रिस्क फंड- इस योजना में 65 फीसदी निवेशक की पूंजी उच्चतम कार्पोरेट बांड से निचले स्तरों में की जाती है।
बैंकिंग एंड पीएसयू फंड- इस योजना के तहत मुख्यत: 80 प्रतिशत बैंकिंग, वित्तीय संस्थाएं एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में धन का निवेश किया जाता है।
गिल्ट फंड- इस योजना के तहत धन का निवेश प्रधानरुप से सरकारी प्रतिभूतियों में निवेशकों का धन निवेश होता है। कुल राशि का कम से कम 80 प्रतिशत धन इन योजनाओ में निवेश होना चाहिए।सरकारी संस्थाओं में निवेश करना सुरक्षा की गारंटी माना जाता है।
गिल्ट फंड विथ 10 ईयर कांस्टेंट ड्यूरेशन- सरकारी सुरक्षा योजनाओं में निवेशकों का धन निवेश होता है। इसके परिपक्वता की अवधि 10 वर्ष तक की एक समान रहती है। जिससे परिपक्वता के उपरांत निवेशक को अच्छा मुनाफा होता है साथ ही रिस्क भी बहुत कम होता है।
फ्लोटर फंड- इस योजना के तहत निवेशक का धन ऐसी जगह लगाया जाता है जहां दर अस्थायी रहता है। इसमें रिस्क अधिक रहता है। यदि बाजार मुनाफा की ओर चढ़ता है तो परिपक्वता के समय लाभ में रहता है। इसके दूसरी ओर बाजार यदि गिरावट में होता है तो निवेशक को नुकसान भी उठाना पड़ जाता है।





राफेल एक घोटाला या डील?


सर्वमंगला मिश्रा
किसी भी शासनकाल में देशहित से उपर कोई सरकार या नीति नहीं हो सकती है। देश की सुरक्षा सर्वोपरि होती है। यह आम बात है कि जब भी किसी देश में रक्षा मसौदों पर कोई डील होती है सरकार और विपक्ष में ठन जाती है अथवा मुद्दे को जानबूझकर तूल दे दिया जाता है। भारत में विशेषरुप से देखा गया है कि आजतक जितने भी रक्षा संबंधी समझौते हुए हैं विवादों के घेरे में रहे हैं और घोटाले के रुप में सामने आये हैं।
2019 का साल चुनावी साल है। जिसकी तैयारी प्रत्येक पार्टी करना प्रारंभ कर चुकी है। कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी इस मौके को पूरे तरीके से भुना लेना चाहते हैं। कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों के शीर्ष नेता राफेल के रण में अपने अपने तीर कमान लेकर उतर चुके हैं। राहुल गांधी जहां संसद से लेकर सड़क तक इस मामले को पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं वहीं भाजपा के वरिष्ठ प्रवक्ता संबित पात्रा कांग्रेस पार्टी का कच्चा चिट्ठा खोलने में कोई कसर नहीं रख रहें हैं। अरण जेटली समेत कई नेता युद्ध करने को मुस्तैद दिख रहे हैं तो कांग्रेस भी इस मुद्दे पर अड़ी खड़ी है।
भारत जहां चीन और पाकिस्तान से भौगोलिक रुप से घिरा है वहीं इन दोनों देशों से युद्ध की परिस्थितियां बीच- बीच में उभरती रहती हैं। इतिहास गवाह है कि भारत पाक और भारत चीन के साथ लड़ाइयां हो चुकी हैं। कौन भूल सकता है 1962, 1971 और 1999 का साल। आतकाल परिस्थितियों से जूझने के लिए और देश को आंतरिक रुप से सुदृढ़ करने के लिए वायु सेना को अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए कम से कम 42 लडा़कू स्क्वाड्रंस की जरूरत थी, लेकिन उसकी वास्तविक क्षमता घटकर महज 34 स्क्वाड्रंस रह गई। इसलिए वायुसेना की मांग आने के बाद 126 लड़ाकू विमान खरीदने का सबसे पहले प्रस्ताव अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार ने रखा था। लेकिन इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाया कांग्रेस सरकार ने। रक्षा खरीद परिषद, जिसके मुखिया तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटोनी थे, ने 126 एयरक्राफ्ट की खरीद को अगस्‍त 2007 में मंजूरी दी थी। यहां से ही बोली लगने की प्रक्रिया शुरू हुई। इसके बाद आखिरकार 126 विमानों की खरीद का आरएफपी जारी किया गया। राफेल की सबसे बड़ी खासियत ये है कि ये 3 हजार 800 किलोमीटर तक उड़ान भर सकता है।

यह समझौता उस मीडियम मल्‍टी-रोल कॉम्‍बेट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) कार्यक्रम का हिस्सा है, जिसे रक्षा मंत्रालय की ओर से इंडियन एयरफोर्स लाइट कॉम्‍बेट एयरक्राफ्ट और सुखोई के बीच मौजूद अंतर को खत्‍म करने के मकसद से शुरू किया था। एमएमआरसीए के कॉम्पिटीशन में अमेरिका के बोइंग एफ/ए-18ई/एफ सुपर हॉरनेट, फ्रांस का डसॉल्‍ट राफेल, ब्रिटेन का यूरोफाइटर, अमेरिका का लॉकहीड मार्टिन एफ-16 फाल्‍कन, रूस का मिखोयान मिग-35 और स्वीडन के साब जैस 39 ग्रिपेन जैसे एयरक्राफ्ट शामिल थे। छह फाइटर जेट्स के बीच राफेल को इसलिए चुना गया क्योंकि राफेल की कीमत बाकी जेट्स की तुलना में काफी कम थी। इसके अलावा इसका रख-रखाव भी काफी सस्‍ता था।
भारतीय वायुसेना ने कई विमानों के तकनीकी परीक्षण और मूल्यांकन किए और 2011 में यह घोषणा की कि राफेल और यूरोफाइटर टाइफून उसके मानदंड पर खरे उतरे हैं। 2012 में राफेल को एल-1 बिडर घोषित किया गया और इसकी निर्माता कंपनी दसाल्ट ए‍विएशन के साथ कॉन्ट्रैक्ट पर बातचीत शुरू हुई लेकिन आरएफपी अनुपालन और लागत संबंधी कई मसलों की वजह से साल 2014 तक यह बातचीत अधूरी ही रह गयी। यूपीए सरकार के दौरान इस पर समझौता नहीं हो पाया था क्योंकि खासकर टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के मामले में दोनों पक्षों में गतिरोध उत्पन्न हो गया था। दसाल्ट एविएशन भारत में बनने वाले 108 विमानों की गुणवत्ता की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं थी। दसाल्ट का कहना था कि भारत में विमानों के उत्पादन के लिए 3 करोड़ मानव घंटों की जरूरत होगी, लेकिन एचएएल ने इसके तीन गुना ज्यादा मानव घंटों की जरूरत बताई, जिसके कारण लागत कई गुना बढ़ने की संभावना जतायी गयी थी।
वर्ष 2014 में जब नरेंद्र मोदी सरकार बनी तो उसने इस दिशा में फिर से प्रयास शुरू किया। पीएम की फ्रांस यात्रा के दौरान साल 2015 में भारत और फ्रांस के बीच इस विमान की खरीद को लेकर समझौता किया। इस समझौते में भारत ने जल्द से जल्द 36 राफेल विमान फ्लाइ-अवे यानी उड़ान के लिए तैयार विमान हासिल करने की बात कही। समझौते के अनुसार दोनों देश विमानों की आपूर्ति की शर्तों के लिए एक अंतर-सरकारी समझौता करने को सहमत हुए। समझौते के अनुसार विमानों की आपूर्ति भारतीय वायु सेना की जरूरतों के मुताबिक उसके द्वारा तय समय सीमा के भीतर होनी थी और विमान के साथ जुड़े तमाम सिस्टम और हथियारों की आपूर्ति भी वायुसेना द्वारा तय मानकों के अनुरूप होनी है। इसमें बताया गया कि लंबे समय तक विमानों के रखरखाव की जिम्मेदारी फ्रांस की होगी। सुरक्षा मामलों की कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद दोनों देशों के बीच 2016 में आईजीए हुआ। समझौते पर दस्तखत होने के करीब 18 महीने के भीतर विमानों की आपूर्ति शुरू करने की बात कही गयी है यानी 18 महीने के बाद फ्रांस की ओर से पहला राफेल लड़ाकू विमान भारत के सुपुर्द किया जाएगा।
एनडीए सरकार ने दावा किया कि यह सौदा उसने यूपीए से ज्यादा बेहतर कीमत में किया है और करीब 12,600 करोड़ रुपये बचाए हैं। लेकिन 36 विमानों के लिए हुए सौदे की लागत का पूरा विवरण सार्वजनिक नहीं किया गया। सरकार का दावा है कि पहले भी टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की कोई बात नहीं थी, सिर्फ मैन्युफैक्चरिंग टेक्नोलॉजी की लाइसेंस देने की बात थी। परन्तु मौजूदा समझौते में 'मेक इन इंडिया' पहल किया गया है। फ्रांसीसी कंपनी भारत में मेक इन इंडिया को बढ़ावा देगी। यह मिसाइल 100 किमी दूर स्थित दुश्मन के विमान को भी मार गिरा सकती है। अभी चीन या पाकिस्तान किसी के पास भी इतना उन्नत विमान सिस्टम नहीं है।  
विपक्ष सवाल उठा रहा है कि अगर सरकार ने हजारों करोड़ रुपए बचा लिए हैं तो उसे आंकड़े सार्वजनिक करने में क्या दिक्कत है। कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि यूपीए 126 विमानों के लिए 54,000 करोड़ रुपये दे रही थी, जबकि मोदी सरकार सिर्फ 36 विमानों के लिए 58000 करोड़ दे रही है। कांग्रेस का आरोप है कि एक प्लेन की कीमत 1555 करोड़ रुपये हैं, जबकि कांग्रेस 428 करोड़ में रुपये में खरीद रही थी और इस सौदे में 'मेक इन इंडिया' का कोई प्रावधान नहीं है।

यूपीए के सौदे में विमानों के भारत में एसेंबलिंग में हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट लिमिटेड को शामिल करने की बात थी। भारत में यही एक इकलौती ऐसी कंपनी है जो सैन्य विमान बनाती है। लेकिन एनडीए के सौदे में एचएएल को बाहर कर इस काम को एक निजी कंपनी को सौंपने की बात कही गई है। किसी भरोसेमंद सरकारी कंपनी की जगह अनाड़ी नई निजी कंपनी को शामिल करना कैसे उचित हो सकता है। यानी विरोधि‍यों के मुताबिक एनडीए सरकार एक निजी कंपनी को फायदा पहुंचा रही है। कांग्रेस का आरोप है कि सौदे से एचएएल को 25000 करोड़ रुपये का घाटा होगा।

चुनावी माहौल में जनता के सामने सरकार की पारदर्शिता ही उसे यक्ष के प्रश्नों से बचा सकती है।



भारत पर्यटन की दृष्टि से

सर्वमंगला मिश्रा
भारत वर्षों से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता आया है। राम, कृष्ण, आदिगुरु शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस, गौतम बुद्ध, विवेकानन्द, गुरुनानक की इस धरती पर हर शक्स जीवन में एकदफा तो कदम रखना ही चाहता है। यह वही भारत है जहां से आध्यात्म का बीज हर मानव के अंदर पनपता है। चाहे फाह्यान हो या वास्कोडिगामा सभी ने भारत भूमि की प्रशंसा ही की है। इतिहास गवाह है कि-भारत भूमि संस्कृति एवं सम्पदा दोनों से सदैव लदी हुई रही है तभी, महमूद गजनवी, जिसने 17 बार सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया था। भारत की धरती पर जिसने भी आजतक कदम रखा, इतिहास गवाह है वह निहाल होकर ही गया।
भारत का पर्यटन और स्वास्थ्यप्रद पर्यटन मुहैया कराने की दृष्टि से विश्व में पाँचवा स्थान है। पर्यटन गरीबी दूर करने, रोजगार सृजन और सामाजिक सद्भाव बढ़ाने का सशक्त साधन है। भारत जैसे विरासत के धनी राष्ट्र के लिए पुरातात्विक विरासत केवल दार्शनिक स्थल भर नहीं होती वरन् इसके साथ ही वह राजस्व प्राप्ति का स्रोत और अनेक लोगों को रोजगार देने का माध्यम बना है| पर्यटकों के लिए कैम्पिंग स्थलों के संचालन करने से भी स्थानीय युवकों को रोजगार मिलता है। इसके लिए उन्हें प्रशिक्षित जनशक्ति की जरूरत पड़ेगी। कुछ स्थानीय युवकों को गाइड के रूप में काम करने के अवसर मिलता है। नवयुवक आने वाले पर्यटकों को आस पास की पहाडि़यों और जंगलों की सैर कराकर उन्हें अपने इलाके से परिचित कराते हैं। जिससे देश के स्वाभिमान में वृद्धि होती है। अपने इलाके की वनस्पतियों और जीव-जन्तुओं तथा ऐतिहासिक और पौराणिक स्थलों की तरह अपने समुदाय और लोक जीवन का परिचय देते हैं।  स्थानीय पर्यटन स्थलों को रोचक ढंग से प्रस्तुत करके रोजगार को बढ़ावा देते हैं। स्थानीय बुनकर और कारीगर अपने उत्पाद प्रदर्शित करके पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। जिससे ज्यादा पर्यटक आकर्षित होते हैं। कारीगर हस्तशिल्प और बनाए गए परिधानों को पर्यटकों के सामने प्रस्तुत करते हैं। जिससे कला का प्रदर्शन तो होता ही है साथ ही व्यापार में भी वृद्धि होती है। पर्यटन से स्थानीय युवकों को रोजगार के अवसर मिलते हैं। पर्यटन से सांस्कृतिक गतिविधियों में तेजी आती है और पर्यटकों तथा उनके मेजबानों के बीच बेहतर और समझदारी पूर्ण सम्बन्ध विकसित होते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर इससे विदेशी मुद्रा की मोटी कमाई होती है। जो किसी भी देश के लिए महत्वपूर्ण है। सच्चाई यह है कि दुनिया के 83 प्रतिशत विकासशील देशों में पर्यटन विदेशी मुद्रा अर्जित करने का प्रमुख साधन है। मोदी सरकार ने अपने तीन साल के कार्यकाल में पर्यटन क्षेत्र का कायाकल्प कर दिया है। पर्यटन के क्षेत्र में देश ने जिस गति से तरक्की हुई है उससे लगता है कि, भविष्य में दुनिया के पर्यटन मानचित्र पर भी भारत अव्वल देशों में शामिल हो जाएगा। मात्र तीन वर्षों में देसी मानदंडों पर ही नहीं विदेशी मानदंडों पर भी पर्यटन के क्षेत्र में भारत की रैंकिंग काफी सुदृढ़ हुई है। विदेशी सैलानियों ने भारत को काफी अधिक महत्व देना शुरू कर दिया है। यही वजह है कि देश में विदेशी सैलानियों के साथ ही विदेशी मुद्रा का भंडार भी भरने लगा है। मोदी सरकार ने देश की कमान संभालते ही जिन चीजों पर सबसे अधिक जोर देना शुरू किया था उनमें से पर्यटन भी एक है। इसके लिए प्रधानमंत्री ने खुद अपने स्तर पर पहल शुरू की थी। पीएम मोदी ने दुनियाभर में जाकर भारत के पर्यटन क्षेत्र को जीवंत बनाने की कोशिश की है। उनके उन्हीं प्रयासों और प्राथमिकताओं का असर अब दिखाई देने लगा है।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 मार्च को अपने मन की बात में कहा था - ये बात सही है कि टूरिज्म सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला क्षेत्र है। गरीब से गरीब व्यक्ति कमाता है और जब टूरिस्ट, टूरिस्ट डेस्टिनेशन पर जाता है। टूरिस्ट जाएगा तो कुछ न कुछ तो लेगा। अमीर होगा तो ज्यादा खर्चा करेगा और टूरिज्म के द्वारा बहुत रोजगार की संभावना है। विश्व की तुलना में भारत टूरिज्म में अभी बहुत पीछे है। लेकिन हम सवा सौ करोड़ देशवासी तय करें कि हमें अपने टूरिज्म को बल देना है तो हम दुनिया को आकर्षित कर सकते हैं। विश्व के टूरिज्म के एक बहुत बड़े हिस्से को हमारी ओर आकर्षित कर सकते हैं और हमारे देश के करोड़ों-करोड़ों नौजवानों को रोजगार के अवसर उपलब्ध करा सकते हैं। सरकार हो, संस्थाएं हों, समाज हो, नागरिक हों, हम सब को मिल करके ये काम करना है
भारत प्रतिवर्ष विश्व पर्यटन दिवस मनाता है। प्रकृति की गोद में जो परम आनंद मिलता है, ज़ो सुकून मिलता है, शांति का आभास होता है वो और कहीं नहीं मिल सकता। भारत के पास नैसर्गिक संसाधन बेशूमार है। कुदरत का करिश्मा विश्व के हर कोने में हैं। प्रकृति का आलोकिक रूप देखकर आनंदित होता है। रमणीक स्थलों में कुदरत का नज़ारा मन को अद्भुत शांति प्रदान करता है। प्राकृतिक खजाना चहुंओर फैला पड़ा है। उँचे पहाड़, कल-कल करते झरने, मधुरतान अलापते रंग बिरंगे पंछी, महकते फूल, चारों ओर जैसे प्रकृति अपने आप सज धज हमे पुकार रही हो। भारत का आध्यात्म विश्व को आमंत्रित करता है। भारत अपनी सभ्यता, संस्कृति और परंपरा को परिलिक्षित करता है और विश्व का हर पर्यटक आने को विवश हो जाता है। यह स्वाभाविक है कि भारत पर्यटन के क्षेत्र में देश जैसे-जैसे विकास करेगा, रोजगार के मौके भी बढ़ते जाएंगे और विदेशी मुद्रा भंडार में भी बढ़ोत्तरी होती जाएगी।
मार्च 2006 में अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश जब भारत आये, तब भारत और अमेरिका के बीच परमाणु करार होना था और वह हुआ भी लेकिन इस गंभीर मुद्दे के बीच उनका एक बयान भी छाया रहा कि अमेरिका भारतीय आम खाना चाहता है। इसके उपरांत अमेरिका ने भारतीय कृषि उत्पादों के आयात पर भी एक समझौता किया। उसके अगले साल से ही 17 वर्षों के उपरांत ही सही अमेरिकावासी भारतीय आम का स्वाद चखने लगे। इससे जाहिर होता है कि भारत की मिट्टी पर चाहे कोई आया हो या मिट्टी की खुशबू उस तक पहुंची हो वो शक्स भारत का दीवाना हो जाता है।
वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम के अनुसार मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद भारत में पर्यटन के क्षेत्र में काफी सुधार हुआ है। डब्लूईएफ की ट्रैवल एंड टूरिज्म की काम्पिटीटिव रिपोर्ट 2017 (WEF की Travel & Tourism, Competitiveness Report 2017) की हालिया रैंकिंग में भारत ने 12 अंकों की ऊंची छलांग लगाई है। भारतीय टूरिज्म की रैंकिंग 52वें पायदान से ऊपर चढ़कर 40वें पायदान पर पहुंच गई है। जहां साल 2013 में भारत 65वें नंबर पर था, वहीं 2015 में 52वें नंबर पर आ गया और महज डेढ़ साल के भीतर 12 अंकों की छलांग लगाते हुए 40वें पायदान पर जा पहुंचा है। पर्यटकों के आगमन के मामले में जापान के पांच और चीन के दो अंक के मुकाबले भारत को 12 अंकों का फायदा हुआ है। जबकि अमेरिका शून्य से दो अंक नीचे और स्विट्जरलैंड शून्य से चार अंक नीचे रहा है। सबसे बड़ी बात ये है कि पर्यटकों की सुरक्षा के मामले में भी भारत 15वें स्थान पर आ गया है। यही नहीं पर्यटन से राजस्व में भी भारी बढ़ोत्तरी हुई है। यह 2015 में 1.35 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2016 में 1,55,650 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। इस तरह से विदेशी मुद्रा की कमाई में 15.1 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई। पर्यटन मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2017 में देश में 1.01 करोड़ पर्यटक आए जबकि 2016 में यह आंकड़ा 88.04 लाख था। इस तरह 2017 में भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्या में 15.06 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। खास बात यह है कि भारत आने वाले सबसे ज्यादा विदेशी पर्यटक बांग्लादेशी हैं। कुछ समय पहले तक भारत में सर्वाधिक विदेशी पर्यटक अमेरिका जैसे विकसित देशों से आते थे लेकिन बीते दो साल में बांग्लादेश ने इस मामले में विकसित देशों को पीछे छोड़ दिया है
वैसे 2016-17 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 2015 में 80.3 लाख पर्यटक भारत घूमने आए थे, तो 2016 में उससे 10.7 प्रतिशत अधिक यानि 88.9 लाख विदेशी पर्यटक भारत की यात्रा पर पहुंचे थे। बड़ी बात ये है कि ई-वीजा की सुविधा मिलने के बाद से भारत के प्रति विदेशी सैलानियों की रूचि और बढ़ी है और वो बड़ी संख्या में भारत का रुख कर रहे हैं। जैसे इस साल जनवरी से मार्च के बीच 4.67 लाख विदेशी सैलानी ई-वीजा पर भारत आए जो कि पिछले साल इसी अवधि के 3.21 लाख पर्यटकों की तुलना में 45.6 प्रतिशत अधिक है। भारत आने वाले पर्यटकों को किसी तरह की असुविधा न हो इसे देखते हुए अभी 161 देशों के नागरिकों को ये सुविधा दी जा रही है। भारत ने अपने पर्यटकों को वेलकम कार्ड देना भी शुरू किया है, जिनसे सैलानियों को सभी महत्वपूर्ण जानकारियों मिल जाएं और उन्हें किसी तरह की दिक्कतों का सामना न करना पड़े। केंद्र सरकार स्वदेश दर्शन के तर्ज पर टूरिस्ट सर्किट का विकास कर रही है। इस योजना के तहत 13 सर्किट को चुना गया है। पूर्वोत्तर भारत, हिमालयन, बौद्ध, तटीय, मरुस्थल, जन जातीय, कृष्णा, इको, ग्रामीण, आध्यात्मिक, रामायण और विरासत सर्किट योजना के तहत आते हैं। इस योजना के तहत 2601.76 करोड़ रुपये की लागत वाली सभी 31 परियोजनां पर कार्य पूर्ण करने की योजना है।
पर्यटन, सेवा क्षेत्र का एक ऐसा उभरता हुआ उद्योग है जिसमें अपार संभावनाएं निहित हैं। भारत अतुलनीय प्राकृतिक स्थलों के साथ ही वैश्विक स्तर पर एक बड़े जैविक आयामों के क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। पर्यटकों के लिए भारतीय बाजार विविधताओं भरा स्थान है। इन विविधताओं के आर्थिक पहलुओं को देखते हुए शिल्प आदि क्षेत्रों के संवर्धन हेतु ठोस सरकारी प्रयासों का परिणाम एक नई आर्थिक संभावना के रूप में देखा जा सकता है तथा नए चिन्हित पर्यटन स्थलों पर ढांचागत सुविधाओं का विकास कर न केवल शहरी बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी रोजगार के अवसरों की उपलब्धता बढ़ाई जा सकती है। सुरक्षा के साथ विदेशियों को भी भारत के गांवों की सैर करायी जा सकती है। जिससे पर्यटन को बहुत बढ़ावा मिल सकता है और वहां के लोगों को रोजगार।



पाकिस्तान का नया हुक्मरान- इमरान खान

सर्वमंगला मिश्रा
पाकिस्तान का नया हुक्मरान- इमरान खान, का नाम पाकिस्तान के इतिहास में दर्ज हो चुका है। इमरान खान किसी पहचान के मोहताज़ नहीं है। विश्व में उनकी अपनी एक पहचान है उनके कदरदान भी हैं। क्रिकेटर से राजनीतिज्ञ बने इमरान खान ऐसे समय में अपने देश की बागडोर संभालने के लिए तैयार हैं जब विश्व में पाकिस्तान की स्थिति बेहद चिंतनीय है। विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश अमेरिका पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित कर चुका है। यूनाइटेड नेशन में पाकिस्तान का नाम आते ही आतंकवाद का चेहरा सभी देशों के सामने घूमकर मानो परेशान कर देने वाला होता है। आतंकवाद, जिससे समूचा विश्व परेशान है और इससे कहीं न कहीं जूझ रहा है।

मैं बचपन से ही भारत से नफरत करता था क्योंकि मैं लाहौर में बड़ा हुआ हूं और वहां 1947 में नरसंहार हुआ था, जिसके चलते खून बहा और नफरत फैली। लेकिन जब मेरा भारत आना जाना हुआ, मुझे वहां प्यार मिला, मेरे दोस्त बने। इससे वो नफरत खत्म हो गई- इमरान खान

2018 का साल इमरान खान के जीवन में अपने मकसद में कामयाबी का जश्न मनाने वाला तो हो गया। तहरीक ए इंसाफ ने 115 सीटों पर विजय हासिल की तो नवाज़ शरीफ पीएमएल-एन 64 सीटें, पाकिस्तान पीपल्स पार्टी पार्लियामेंटेरियन्स -43, एमक्यूएम –पी- 6, बलोचिस्तान नैश्नल पार्टी- 3, एमएमए-पी-5, अवामी नैश्नल पार्टी-1 साथ ही स्वतंत्र -13 और अन्य 20 विजयी रहे। विश्व में पाकिस्तान की छवि कैसे और कबतक सुधरेगी इसकी गारंटी तो शायद इमरान खान भी नहीं ले सकेंगे। इतिहास गवाह है कि 2014 में किस तरह इमरान खान ने पाकिस्तान की हूकूमत को चैलेंज किया था और अपने लाखों समर्थकों के साथ घेराबंदी की थी। एकबार तो लगा था कि अब इमरान खान पाकिस्तान का तख्ता पलटकर रख ही देंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इमरान खान ही वो शक्स थे जिनके कारण चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग को अपना पाकिस्तान दौरा रद्द करना पड़ा था। जबसे क्रिकेट खिलाड़ी इमरान खान राजनीति में कदम रखे तबसे पग-पग पर विरोधी पार्टियों के आक्रमक तेवर झेलने को मजबूर होते रहे। इमरान खान द्वारा बनवाया गया अस्पताल तक विरोधियों ने नेस्तो नाबूत कर दिया था। पर इमरान खान मजबूती के साथ डटे रहे और जिसका अंजाम यह हुआ कि पाक की जनता ने सबसे बड़ी पार्टी बनाकर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज़ कर दिया है। यह वही इमरान खान है जिसने 1992 में इंगलैंड के खिलाफ मैच खेलकर पाकिस्तान का नाम विश्व विजेता के तौर पर दर्ज करवाकर, अपने देश का नाम फक़्र से विश्व में ऊंचा करवाया था। पर राजनीति में कदम रखते ही सबने इस खिलाड़ी को कोई तवज्जो नहीं दी थी।
पाकिस्तान की यह बात अब जगजाहिर हो चुकी है कि पाकिस्तान आर्मी ही सर्वेसर्वा है। जिसको जब चाहे सिंहासन पर काबिज़ कर दे और जब चाहे उसे पदच्यूत कर दे। ऐसे में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री द्वारा लिए जाने वाले फैसले का, पाकिस्तान की जनता और विश्व के नुमाइंदों पर क्या असर होगा यह सोच से थोड़ा परे है। पाकिस्तान के नये हुक्मरान पाकिस्तान के लिए फैसले लेने में कितने स्वतंत्र रह पायेंगें यह देखने का विषय होगा। नवाज शरीफ के कार्यकाल के दौरान किस तरह मुशर्रफ साहब प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज़ हुए थे यह शायद ही कोई भूल सकेगा। जिसके बाद नवाज शरीफ को लंदन में जीवन बीताना पड़ा और जब 2007 में वापस आने का प्रयास किया तो किस तरह चंद मिनटों में बैरन रवाना भी होना पड़ गया। वैसे पाक का इतिहास भी उसी की तरह बेमिसाल है।
2011 में एक अंग्रेजी न्यूज चैनल को अपने दिये गये इंटरव्यू में कहा था कि वह भारत से नफरत के साथ बड़े हुए हैं। लेकिन वह गुजरते वक्त के साथ भारत के साथ "अच्छे संबंध" चाहते हैं, ताकि दोनों देशों को फायदा हो- इमरान खान
प्रधानमंत्री का ओहदा संभालने के पहले ही इमरान खान ने भारत को अपना संदेश सुना दिया- जिसमें कश्मीर का मुद्दा अहम बताया गया और बातचीत करने का आमंत्रण भी दिया गया। ऐसे में भारत, पाक से रिश्ता कितना सुधार पायेगा या यूं कहा जाय कि इमरान खान पाक आर्मी की बोली ही बोलते रहेंगे क्योंकि आर्मी की सरपरस्ती में ही उन्हें पाक का हुक्मरान बनने का सुनहरा मौका हासिल हुआ है। तो जाहिर सी बात है इमरान खान भी वही करेंगे जिसमें आर्मी की मंजूरी होगी और पाक आर्मी को कश्मीर चाहिए। इस मुद्दे को पाक अपनी अंतिम सांस तक नहीं छोड़ सकता। यह मुद्दा ही पाक की जनता के बीच बने रहने का एकमात्र जरिया है अन्यथा राजनीति की दीवार धराशायी हो जायेगी और विश्व के समक्ष पाक औंधें मुंह नजर आयेगा।
इससे बड़ा झूठ कुछ और नहीं हो सकता कि जम्मू-कश्मीर में अशांति के लिए पाकिस्तान उकसाता है. कश्मीर में भारतीय सेना को 26 साल हो चुके हैं, वहां के लोग परेशान हैं. मानव अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है, लोगों को कुर्बानियां देनी पड़ रहीं हैं”- इमरान खान-(2016 में रायविंड में दिए गया भाषण)

'पहले मैंने नवाज शरीफ को एक संदेश भेजा था, लेकिन कल मैं मोदी को भी एक संदेश भेजूंगा। मैं नवाज शरीफ को बताऊंगा कि नरेंद्र मोदी को कैसे जवाब दिया जाए?' - इमरान खान की यह टिप्पणी पाकिस्तान के आम चुनावों में काफी चर्चा में रही। जिसका पाक के कट्टरपंथियों पर शायद बहुत गहरा असर हुआ।  
बतौर क्रिकेटर इमरान खान ने भारत के बहुत दौरे किये हैं। भारतीय मीडिया के प्रिय भी रहे हैं। भारतीय टेलीविजन पर चैट शो में शिरकत करने वाले सबदिल अज़ीज क्रिकेटर और नेता रहे हैं। लेकिन अब भारत की जनता यह देखने को बड़ी बेताब है कि भारतीय खिलाड़ियों के साथ खेलने वाले क्रिकेटर का दिल पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने के बाद कितना और कैसा परिवर्तित हुआ है। क्या सुनील गावस्कर के साथ बिताये हुए लम्हें भारत के प्रति नरम रुख अपनाने को बेताब करेंगे या राजनीति ही हावि रहेगी। उधर चीन द्वारा बनायी जा रही सड़क पर इमरान खान का रवैया क्या होगा इससे चीन भी चिंता में डूबा हुआ दिखता है। यदि इस निर्माणाधीन सड़क का निर्माण कार्य सम्पन्न करने की अनुमति इमरान खान देते हैं तो भारत के लिए उनकी ओर से पहला विष का प्याला होगा। इसके विपरीत यदि निर्माण कार्य रुकता है तो चीन से आने वाला धन भी रुक जायेगा। जिससे पाक को भारी नुकसान होगा। ऐसा नुकसान पाकिस्तान शायद ही सहने के लिए तैयार हो क्योंकि अमेरिका ने पहले ही चेतावनी दे दी है जिससे पाक की नींद हराम है। ऐसी परिस्थिति में पाकिस्तान चीन का साथ छोड़ने की भूल शायद ही करे।
आज पाकिस्तान का तख्तोताज कांटों से भरा हुआ है। विश्व के सामने पाकिस्तान की छवि सुधारने के लिए इमरान खान कौन से कदम उठायेंगे यह तो पूरा विश्व ही देखेगा। आतंकवाद की पनाहगार बना हुआ पाकिस्तान दहशतगर्दी की पनाह में ही जीवन का खैरमकदम करेगा या आने वाले समय में इमरान खान की नुमांइदगी में उन्नति के चौक्के छक्के लगाएगा। अपनी पहचान से देश का चेहरा बदलने और परिस्थितियों से जूझकर पाकिस्तान को उबारने का सुनहरा मौका मिला है। अब इसे खान साहब बतौर प्रधानमंत्री किसतरह निखारेंगे यह तो भविष्य ही बताएगा।






सवर्णों का रोष और मोदी का होश –कौन चमकेगा 2019 में ?

 
सर्वमंगला मिश्रा
2019 के पहले सालों से सोई हुई सवर्ण जाति की लगता है नींद खुल गयी है। जो पहले नहीं हुआ वो अब हो रहा है। आरक्षण की आग 1989 में वी पी सिंह के कार्यकाल में लगी थी जिससे न जाने कितने युवक युवतियां बेवजह गहरी नींद में सो गये थे। अब 2018 जब सवर्ण सड़क पर उतर कर विरोध दर्शा रहे हैं।देश उन्नति कर रहा है। पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान बनाया गया जिससे दबे कुचले लोगों के अधिकारों का हनन न हो, उन्हें बराबरी का दर्जा मिल सके। परन्तु अति हो गयी। सवाल उठता है कि सवर्णों को देश के संविधान ने क्या दिया। उच्च वर्ग के नाम पर हर अधिकार से वंचित ही रखा गया। सवर्णों को भी खुद पर कहीं न कहीं बहुत गुमान था बड़ा बनकर रहने का जिससे उन्हें कभी विरोध करने की जरुरत महसूस ही नहीं हुई। फलस्वरुप सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने जब उनकी नींद तोड़ी तो अब एहसास की परत खुलनी शुरु हुई है।सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मोदी सरकार द्वारा एससी एसटी एक्ट में संशोधन कर उसे मूल स्वरूप में बहाल करने के विरोध में सवर्ण समुदाय के लोगों ने 6 सितंबर को भारत बंद का आह्वान किया। देश के कई इलाकों में बंद को सफल कराने के लिए प्रदर्शनकारी सड़क पर उतरे। मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि राज्यों में भारत बंद कराने के लिए सवर्ण समुदाय के लोग सड़क पर उतरे। पिछली बार भारत बंद एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में दलित संगठनों ने 2 अप्रैल को बुलाया था।एसएसी-एसटी एक्ट के विरुद्ध में सवर्णों के भारत बंद को लेकर मध्य प्रदेश के करीब 35 जिलों को अलर्ट पर रखा गया था। मध्य प्रदेश में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर पूरे इंतजाम किये गये। साथ ही भारत बंद को देखते हुए मध्य प्रदेश के करीब 10 जिलों में एहतियात के तौर पर धारा 144 लगा दी गई थी।क्या है एससी एसटी एक्ट?
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचार और उनके साथ होनेवाले भेदभाव को रोकने के मकसद से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 बनाया गया था। जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में इस एक्ट को लागू किया गया। इसके तहत इन लोगों को समाज में एक समान दर्जा दिलाने के लिए कई प्रावधान किए गए और इनकी हरसंभव मदद के लिए जरूरी उपाय किए गए। इन पर होनेवाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था की गई ताकि ये अपनी बात खुलकर रख सके। हाल ही में एससी-एसटी एक्ट को लेकर आक्रोश उस वक्त सामने आया है, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के प्रावधान में बदलाव कर इसमें कथित तौर पर थोड़ा कमजोर बनाना चाहा।

सुप्रीम कोर्ट ने
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचार और उनके साथ होनेवाले भेदभाव को रोकने के मकसद से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 बनाया गया था। जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में इस एक्ट को लागू किया गया। इसके तहत इन लोगों को समाज में एक समान दर्जा दिलाने के लिए कई प्रावधान किए गए और इनकी हरसंभव मदद के लिए जरूरी उपाय किए गए। इन पर होनेवाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था की गई ताकि ये अपनी बात खुलकर रख सके। हाल ही में एससी-एसटी एक्ट को लेकर आक्रोश उस वक्त सामने आया है, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के प्रावधान में बदलाव कर इसमें कथित तौर पर थोड़ा कमजोर बनाना चाहा।
सुप्रीम कोर्ट नेअनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचार और उनके साथ होनेवाले भेदभाव को रोकने के मकसद से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 बनाया गया था। जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में इस एक्ट को लागू किया गया। इसके तहत इन लोगों को समाज में एक समान दर्जा दिलाने के लिए कई प्रावधान किए गए और इनकी हरसंभव मदद के लिए जरूरी उपाय किए गए। इन पर होनेवाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था की गई ताकि ये अपनी बात खुलकर रख सके। हाल ही में एससी-एसटी एक्ट को लेकर आक्रोश उस वक्त सामने आया है, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के प्रावधान में बदलाव कर इसमें कथित तौर पर थोड़ा कमजोर बनाना चाहा।सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी एक्ट में यह बदलाव किया था । सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के बदलाव करते हुए कहा था कि -1) मामलों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी।
2) शिकायत मिलने पर तुरंत मुकदमा भी दर्ज नहीं किया जाएगा।
3) शिकायत मिलने के बाद डीएसपी स्तर के पुलिस अफसर द्वारा शुरुआती जांच की जाएगी और जांच किसी भी सूरत में 7 दिन से ज्यादा समय तक नहीं होगी।
4) डीएसपी शुरुआती जांच कर नतीजा निकालेंगे कि शिकायत के मुताबिक क्या कोई मामला बनता है या फिर किसी तरीके से झूठे आरोप लगाकर फंसाया जा रहा है?
5) सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के बड़े पैमाने पर गलत इस्तेमाल की बात को मानते हुए कहा था कि इस मामले में सरकारी कर्मचारी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं.संशोधन के बाद अब ऐसा होगा एससी- एसटी एक्टएससी\एसटी संशोधन विधेयक 2018 के जरिए मूल कानून में धारा 18A जोड़ी जाएगी। इसके जरिए पुराने कानून को बहाल कर दिया जाएगा। इस तरीके से सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए प्रावधान रद्द हो जाएंगे। मामले में केस दर्ज होते ही गिरफ्तारी का प्रावधान है। इसके अलावा आरोपी को अग्रिम जमानत भी नहीं मिल सकेगी। आरोपी को हाईकोर्ट से ही नियमित जमानत मिल सकेगी। मामले में जांच इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अफसर करेंगे। जातिसूचक शब्दों के इस्तेमाल संबंधी शिकायत पर तुरंत मामला दर्ज होगा। एससी/एसटी मामलों की सुनवाई सिर्फ स्पेशल कोर्ट में होगी। सरकारी कर्मचारी के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दायर करने से पहले जांच एजेंसी को अथॉरिटी से इजाजत नहीं लेनी होगी।क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला?सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए एससी/एसटी एक्ट में तत्काल गिरफ्तारी न किए जाने का आदेश दिया था। इसके अलावा एससी/एसटी एक्ट के तहत दर्ज होने वाले केसों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दी थी।शीर्ष अदालत ने कहा था कि इस कानून के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी की बजाय पुलिस को 7 दिन के भीतर जांच करनी चाहिए और फिर आगे ऐक्शन लेना चाहिए।संसद में एससी एसटी एक्ट में संशोधन पारित कियाकेंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटते हुए एससी/एसटी एक्ट को वापस मूल स्वरूप में बहाल कर दिया।हाल ही में ये संशोधित एससी/एसटी (एट्रोसिटी एक्ट) फिर से लागू किया है। अब फिर से इस एक्ट के तहत बिना जांच गिरफ्तारी संभव हो गई।पहले भी होता था ऐसा ही एक्ट- 1955 के प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स एक्ट के बावजूद सालों तक न तो छुआछूत का स्तर देश में कम हुआ था और न ही दलितों पर अत्याचार और उनसे भेदभाव रुका था। जबकि भारतीय संविधान नागरिकों को समानता का मौलिक अधिकार देता है। यह भेदभाव इसका उल्लंघन करता है। अनुमानत: यह समुदाय देश में कुल आबादी का चौथाई है। आजादी के तीन दशक बाद भी उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति तमाम मानकों पर बेहद खराब थी।इस एक्ट में SC/ ST समुदायों को मिली थी कई तरह की सुविधाएंएससी एसटी एक्ट, 1989 में यह प्रावधान थे - 1. जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करने पर तुरंत मामला दर्ज होता था। 2. इनके खिलाफ मामलों की जांच का अधिकार इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अधिकारी के पास भी था। 3. केस दर्ज होने के बाद तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान था। 4. ऐसे मामलों की सुनवाई केवल स्पेशल कोर्ट में ही होती थी। साथ ही अग्रिम जमानत भी नहीं मिलती थी।5. सिर्फ हाईकोर्ट से ही जमानत मिल सकती थी।एससी-एसटी एक्ट 1989 में पीड़ित दलितों के लिए आर्थिक मदद और सामाजिक पुनर्वास की व्यवस्था भी की गई थी। इसमें यह भी प्रावधान था कि मामले की जांच और सुनवाई के दौरान पीड़ितों और गवाहों की यात्रा और जरूरतों का खर्च सरकार की तरफ से उठाया जाये प्रोसिक्यूशन की प्रक्रिया शुरू करने और उसकी निगरानी करने के लिए अधिकारी नियुक्त किया जाये।सुप्रीम कोर्ट ने कर दिए थे कई बदलावसुप्रीम कोर्ट ने 21 मार्च, 2018 में दिए अपने फैसले में कहा था कि सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी सिर्फ सक्षम अथॉरिटी की इजाजत के बाद ही हो सकती है।इसके अलावा जो लोग सरकारी कर्मचारी नहीं हैं, उनकी गिरफ्तारी जांच के बाद SSP की इजाजत से हो सकेगी।बेगुनाह लोगों को बचाने के लिए कोई भी शिकायत मिलने पर तुरंत मुकदमा दर्ज नहीं किया जायेगा। कोर्ट के इस आदेश और नई गाइडलाइंस के बाद से इस समुदाय के लोगों का कहना है कि ऐसा होने के बाद उन पर अत्याचार बढ़ जायेगा. कुछ लोगों ने इसे संसदीय कार्यों में कोर्ट का हस्तक्षेप भी बताया था।सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन भी दायर किया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में आगे की सुनवाई से पहले कोई भी स्टे देने से मना कर दिया था। जिसके बाद सरकार ने इस मामले में एससी एसटी एक्ट पर संशोधन विधेयक लाने का फैसला किया था।दलित भारत में कुल जनसंख्या के एक-चौथाई के करीब हैं। इसलिए कांग्रेस समेत ज्यादातर विपक्षी दल इसके सपोर्ट में थे. इसके बाद से फिर एससी एसटी एक्ट 1989 वाली स्थिति कायम हो गई है। जिसमें - 1. एफआईआऱ से पहले नहीं होगी जांचसुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एससी एसटी एक्ट, 1989 के अंतर्गत आने वाले मामलों में पहले डीएसपी स्तर का अधिकारी जांच करे फिर मामले की एफ आई आर दर्ज हो लेकिन इसके बाद इसे हटा दिया गया और पहले की स्थिति ही कायम कर दी गई है। जिसमें तुरंत एफ आई आर दर्ज करने का प्रावधान है. अब इस मामले की जांच इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अधिकारी करेंगे। 2. बिना इजाजत किया जा सकेगा गिरफ्तार
पहले जिसके खिलाफ इस एक्ट के तहत शिकायत की गई है उसे तुरंत गिरफ्तार किया जा सकता था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से यह स्थिति बदल गई थी और जांच के बाद गिरफ्तारी होनी थी। बल्कि अगर जिसके खिलाफ शिकायत की गई है वह सरकारी कर्मचारी है तो उसके ऊपर के अधिकारी की अनुमति के बाद ही गिरफ्तारी हो सकती थी। इसको भी नए संशोधन बिल से बदलकर यथास्थिति में पहुंचा दिया गया है। 3. अग्रिम जमानत पर फिर लग गई रोकसुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी एक्ट के तहत आने वाले फर्जी मामलों का जिक्र करते हुए, इस एक्ट के तहत आने वाले मामलों में सुनवाई के आधार पर अग्रिम जमानत की व्यवस्था भी की थी। जिसे अब खत्म कर दिया गया है। लेकिन नियमित जमानत मिल सकेगी।अब क्या समझा जाय देश में सदा की तरह एक वर्ग का अधिकार हनन होता रहेगा और दूसरा वर्ग उसकी भरपाई करता रहेगा। देश में समान अधिकार सभी वर्गों के लिए क्यों नहीं है। अगर एक देश एक चुनाव हो सकता है तो एक देश एक समान अधिकार क्यों नहीं?
(लेखिका मानवाधिकारों की जानकारी है)

 


विश्वविजेता फ्रांस 2018



सर्वमंगला मिश्रा

फीफा वर्ल्ड कप- जिसके लिए हर फुटबाल का दीवाना बेसब्री से चार साल का इंतजार करता है। 2018 में वह पल लुज्निकी स्टेडियम में वह अद्भुत रोमांच के साथ एक बार फिर जीवंत हो गया। फुटबाल के इस महाकुंभ मुकाबले मेंफीफा के इतिहास में फ्रांस ने दूसरी बार विश्व विजेता बनकर इतिहास रच डाला। दो बार की विश्वविजेता फ्रांस की टीम तीन बार विश्व कप के फाइनल में जगह बनाने में सफल रह चुकी है। टीम ने 1998 में अपनी ही मेजबानी में हुए विश्व कप फाइनल में ब्राजील को हराकर खिताब जीता था लेकिन 2006 के फाइनल में इटली से हार गई थी। फाइनल मुकाबला रूस की राजधानी मॉस्को के लुज्निकी स्टेडियम में फ्रांस और क्रोएशिया के बीच खेला गया। डिफेंडर सैमुअल उमटिटी के गोल की बदौलत फ्रांस ने रोमांचक सेमीफाइनल में बेल्जियम को 1-0 से हराकर तीसरी बार फीफा वर्ल्ड कप फाइनल में जगह बनायी। मैच का एकमात्र गोल उमटिटी ने 51वें मिनट में हैडर के जरिए किया।1998 में हुए विश्वकप फाइनल में ब्राजील को हराकर विश्वविजेता का खिताब जीता था। लेकिन 2006 के फाइनल में इटली से हार गया था। पुनएक बार फ्रांस ने 20 साल पहले के रोमांचक दृश्य को पुनर्जीवित कर दिया और एक नया गौरवशाली इतिहास रचकर अपने देश को गौरवान्वित कराया।फीफा वर्ल्ड कप के फाइनल मुकाबले में फ्रांस ने क्रोएशिया के सपने को चकनाचूर करते हुए 4-2 से विश्व कप 2018 का खिताब अपने नाम कर लिया। विश्व कप खिताब जीतने पर जहां फ्रांस को 38 मिलियन डॉलर (करीब 260 करोड़)तो क्रोएशिया को 28 मिलियन डॉलर (लगभग 191 करोड़ रुपये) प्राइज मनी के तौर पर मिले। फ्रांस की टीम से एंटोनी ग्रीजमैन को मैन ऑफ द मैच चुना गया। इससे पहले फ्रांस ने 1998 में दिदिएर डेसचेम्प्स की कप्तानी में ब्राजील को हराकर पहली बार वर्ल्ड कप जीता था। उरुग्वे के बाद क्रोएशिया ऐसा छोटा देश है जो कि वर्ल्ड कप के फाइनल में पहुंचा। फ्रांस और क्रोएशिया अब तक एक दूसरे से पांच बार भिड़ चुके हैं। इनमें से 3 बार फ्रांस को जीत मिली है और 2 बार मैच ड्रॉ रहा है।
यूगोस्लाविया से 1991 में आजाद हुआ क्रोएशिया फीफा वर्ल्ड कप 2018 में कई बड़ें देशों पर ग्राउंड में भारी पड़ गया। क्रोएशिया की आबादी करीब 40 लाख है। इससे पहले यूरोपीय देश जर्मनी ने 2014 में विश्व कप जीता था। अब तक 20 वर्ल्ड कप हुए खेले जा चुके हैं। जिनमें से 11 वर्ल्ड कप यूरोपीय टीमों ने जीते हैं। इंग्लैंड को 2-1 से हराकर क्रोएशिया पहली बार फीफा विश्व कप फाइनल में पहुंचा है। मैच में सबकी नजरें क्रोएशिया की राष्ट्रपति कोलिंडा ग्रेबर कित्रोविक पर टिकी रहीं। कोलिंडा ने अपने देश का नाम फाइनल में सुनते ही जमकर खुशियां मनायी। उन्होंने खिलाड़ियों के साथ ड्रेसिंग रूम में जश्न मनाया। उन्होंने प्लेन की इकॉनोमी क्लास  में सफर किया। वो चार्टर प्लेन से भी आ सकती थीं। लेकिन उन्होंने इकॉनोमी टिकट लिया और आम लोगों के बीच सफर तय किया। कोलिंडा क्रोएशिया की पहली महिला राष्ट्रपति हैं।वीवीआईपी होने के वाबजूद भी वो साधारण जिंदगी जीती हैं। उनका एक विडियो बहुत वायरल हुआ था। जिसमें कोलिंडा खिलाड़ियों के साथ जमकर डांस किया। क्वार्टर फाइनल में क्रोएशिया का रुस से मुकाबला हुआ था। उन्होनें टीम की जर्सी पहनकर बाक्स की जगह आम दर्शकों में बैठकर मैच देखा और आम समर्थकों के साथ खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाती नजर आयीं थीं।
 क्रोएशिया, मध्य और दक्षिण पूर्व यूरोप के बीचोंबीच और एड्रियाटिक सागर के करीब बसा है। क्रोएशिया वर्ल्ड कप फाइनल खेलने वाला सबसे युवा देश बन चुका है। 1991 में यूगोस्लाविया से आजाद हुए क्रोएशिया को फुटबॉल वर्ल्ड कप में अपना पहला मैच खेलने के लिए 1998 तक का इंतजार करना पड़ा था। इस देश की कमाई का बड़ा हिस्सा पर्यटन भी है। दुनिया के टॉप 20 खूबसूरत पर्यटन स्थलों में इसकी गिनती होती है। इसकी अर्थव्यवस्था उद्दोग और खेती पर आधारित है। यह देश दुनिया के उन देशों में शामिल है। यहां धुम्रपान करना प्रतिबंधित है। फ्रांस और क्रोएशिया अब तक एक दूसरे से कुल 6 बार भिड़ चुके हैं। जिसमें से 4 बार फ्रांस को जीत मिली तो 2 बार मैच बराबरी पर रहा।
 फीफा के अध्यक्ष जियानी इनफैनटिनो ने थाईलैंड में गुफा में फंसे बच्चों की फुटबाल टीम को रूस में विश्व कप का फाइनल मैच देखने के लिए आमंत्रित किया था। इनफैनटिनो ने कहा था कि- उन्हें उम्मीद है कि दो सप्ताह पहले बाढ़ की पानी बढ़ने से गुफा में फंसे ‘वाइल्ड बोअर्स’ टीम के खिलाड़ियों को बचा लिया जाएगा और 15 जुलाई को वे मास्को में फाइनल के लिए मौजूद रहेगें। उन्होंने थाईलैंड फुटबाल संघ के प्रमुख को भेजे पत्र में लिखा- ‘‘हमें उम्मीद हैं कि वे जल्द ही अपने परिवार से मिलेंगे और अगर उनका स्वास्थ्य उन्हें यात्रा करने की इजाजत देता है तो मुझे उन्हें 2018 विश्व कप फाइनल में मेहमान के तौर पर आमंत्रित करने में खुशी होगी। ’’उन्होंने कहा था- ‘‘मुझे उम्मीद है कि वे फाइनल मैच में हमारे साथ होंगे जो नि:संदेह ही उत्सव मनाने का एक अद्भुत क्षण होगा।’’थाइलैंड के 11 से 16 साल तक के फुटबाल खिलाड़ी 23 जून से अपने कोच के साथ अंधेरी गुफा में फंस गये थे। लापता होने के 9 दिन बाद गोताखोरों ने उन्हें ढूंढ़ निकाला।
 फ्रांस ने जब सेंट पीटर्सबर्ग स्टेडियम में खेले गए पहले सेमीफाइनल मैच में बेल्जियम को
यूगोस्लाविया से 1991 में आजाद हुआ क्रोएशिया फीफा वर्ल्ड कप 2018 में कई बड़ें देशों पर ग्राउंड में भारी पड़ गया। क्रोएशिया की आबादी करीब 40 लाख है। इससे पहले यूरोपीय देश जर्मनी ने 2014 में विश्व कप जीता था। अब तक 20 वर्ल्ड कप हुए खेले जा चुके हैं। जिनमें से 11 वर्ल्ड कप यूरोपीय टीमों ने जीते हैं। इंग्लैंड को 2-1 से हराकर क्रोएशिया पहली बार फीफा विश्व कप फाइनल में पहुंचा है। मैच में सबकी नजरें क्रोएशिया की राष्ट्रपति कोलिंडा ग्रेबर कित्रोविक पर टिकी रहीं। कोलिंडा ने अपने देश का नाम फाइनल में सुनते ही जमकर खुशियां मनायी। उन्होंने खिलाड़ियों के साथ ड्रेसिंग रूम में जश्न मनाया। उन्होंने प्लेन की इकॉनोमी क्लास  में सफर किया। वो चार्टर प्लेन से भी आ सकती थीं। लेकिन उन्होंने इकॉनोमी टिकट लिया और आम लोगों के बीच सफर तय किया। कोलिंडा क्रोएशिया की पहली महिला राष्ट्रपति हैं।वीवीआईपी होने के वाबजूद भी वो साधारण जिंदगी जीती हैं। उनका एक विडियो बहुत वायरल हुआ था। जिसमें कोलिंडा खिलाड़ियों के साथ जमकर डांस किया। क्वार्टर फाइनल में क्रोएशिया का रुस से मुकाबला हुआ था। उन्होनें टीम की जर्सी पहनकर बाक्स की जगह आम दर्शकों में बैठकर मैच देखा और आम समर्थकों के साथ खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाती नजर आयीं थीं।
 क्रोएशिया, मध्य और दक्षिण पूर्व यूरोप के बीचोंबीच और एड्रियाटिक सागर के करीब बसा है। क्रोएशिया वर्ल्ड कप फाइनल खेलने वाला सबसे युवा देश बन चुका है। 1991 में यूगोस्लाविया से आजाद हुए क्रोएशिया को फुटबॉल वर्ल्ड कप में अपना पहला मैच खेलने के लिए 1998 तक का इंतजार करना पड़ा था। इस देश की कमाई का बड़ा हिस्सा पर्यटन भी है। दुनिया के टॉप 20 खूबसूरत पर्यटन स्थलों में इसकी गिनती होती है। इसकी अर्थव्यवस्था उद्दोग और खेती पर आधारित है। यह देश दुनिया के उन देशों में शामिल है। यहां धुम्रपान करना प्रतिबंधित है। फ्रांस और क्रोएशिया अब तक एक दूसरे से कुल 6 बार भिड़ चुके हैं। जिसमें से 4 बार फ्रांस को जीत मिली तो 2 बार मैच बराबरी पर रहा।
 फीफा के अध्यक्ष जियानी इनफैनटिनो ने थाईलैंड में गुफा में फंसे बच्चों की फुटबाल टीम को रूस में विश्व कप का फाइनल मैच देखने के लिए आमंत्रित किया था। इनफैनटिनो ने कहा था कि- उन्हें उम्मीद है कि दो सप्ताह पहले बाढ़ की पानी बढ़ने से गुफा में फंसे ‘वाइल्ड बोअर्स’ टीम के खिलाड़ियों को बचा लिया जाएगा और 15 जुलाई को वे मास्को में फाइनल के लिए मौजूद रहेगें। उन्होंने थाईलैंड फुटबाल संघ के प्रमुख को भेजे पत्र में लिखा- ‘‘हमें उम्मीद हैं कि वे जल्द ही अपने परिवार से मिलेंगे और अगर उनका स्वास्थ्य उन्हें यात्रा करने की इजाजत देता है तो मुझे उन्हें 2018 विश्व कप फाइनल में मेहमान के तौर पर आमंत्रित करने में खुशी होगी। ’’उन्होंने कहा था- ‘‘मुझे उम्मीद है कि वे फाइनल मैच में हमारे साथ होंगे जो नि:संदेह ही उत्सव मनाने का एक अद्भुत क्षण होगा।’’थाइलैंड के 11 से 16 साल तक के फुटबाल खिलाड़ी 23 जून से अपने कोच के साथ अंधेरी गुफा में फंस गये थे। लापता होने के 9 दिन बाद गोताखोरों ने उन्हें ढूंढ़ निकाला।
 फ्रांस ने जब सेंट पीटर्सबर्ग स्टेडियम में खेले गए पहले सेमीफाइनल मैच में बेल्जियम को 1-0 से मात देकर फीफा विश्व कप के 21वें संस्करण के फाइनल में जब जगह बनायी थी तब फ्रांस के हर फुटबाल प्रेमी में खुशी और जोश की लहर दौड़ पड़ी थी। वहीं क्रोएशिया के सपने फ्रांस से ज्यादा जोश में थे। फ्रांस जीत का प्रबल दावेदार था तो क्रोएशिया ने फाइनल में पहुंचकर फुटबाल प्रेमियों की धड़कनें बढ़ा दी थी। यदि यह मैच क्रोएशिया जीत जाता तो फुटबाल जगत में उसका नाम सुनहरे अक्षरों से अंकित हो जाता। पर फ्रांस ने अपनी पकड़ और दमदार दावेदारी प्रस्तुत की और विश्व को बता दिया कि 20 साल पहले की क्षमता अब भी बरकरार है और फ्रांस ही असल विश्वविजेता है। 
  

    
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