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Saturday 29 July 2017

चीन की मंशा

सर्वमंगला मिश्रा     



भारत आज नाजुक परिस्थितियों से गुजर रहा है। एक तरफ जहां आंतरिक द्वंद चल रहा है वहीं सीमा सुरक्षा भी एक गहन मुद्दा बना हुआ है। कश्मीर से लेकर अरुणांचल तक की सीमा खतरे में हैं। एक तरफ जहां पाकिस्तान अपनी आतंकी गतिविधियों से देश को कमजोर बनाने में लगा है तो वहीं चीन, तिब्बत से लेकर भूटान के जरिये सिक्किम तक पहुंची विवादित जमीन पर सड़क बनाना चाहता है। भूटान जहां इसका कड़ा विरोध कर रहा है वहीं भारत भी इस विकट परिस्थिति से बचने का उपाय ढूंढ रहा है। देश की सीमा की रक्षा में जहां जवान हर रोज शहीद हो रहे हैं वहीं कुछ आतंकी गतिविधियों के चलने से देश में आराजकता का माहौल है।

चीन और भारत के मध्य व्यापारिक समझौते हैं। जिससे चीन को भारी मुनाफा होता है। चीन को इस बात का एहसास तो होगा कि यदि वह भारत के साथ युद्ध के अलावा और कोई विकल्प नहीं छोड़ता है तो भारत अब 1962 से बहुत आगे बढ़ चुका है। आज भारत सशक्त है। उसके पास भी परमाणु हथियार हैं। 1998 में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने पोखरन में परमाणु परीक्षण करके विश्व को एवं खासकर अपने करीबी प्रतिद्न्दी पाकिस्तान को यह संदेश दिया था कि भारत अब और भी ज्यादा ताकतवर हो चुका है। जहां चीन और पाकिस्तान हमेशा भारत पर घात लगाये रहते हैं वहीं भारत स्वयं को विश्व के सामने अपनी प्रबल दावेदारी पेश करता रहा है। उस समय विश्व में हड़कम्प मच गया कि भारत ने यह क्या कर दिया..क्यों किया ?? क्योंकि चीन, नार्थ कोरिया, अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन के पास परमाणु हथियारों का जख़ीरा है। 1974 में इंदिरा गांधी के बाद 1998 में अटल बिहारी ने यह ताकत दिखाने का फैसला लिया था। जिसने विश्व स्तर पर भारत की स्थिति और दमदार बना दी थी।

वर्तमान परिस्थिति ज्यादा नाजुक लग रही है। हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका दौरे पर गये थे जहां अमेरिका ने सैय्यद सलाउद्दीन को विश्व स्तर पर आतंकी घोषित कर दिया जिससे पाकिस्तान को खलबली मच गयी और उसके बाद भारत में एक एक करके आतंकी आकाओं पर शिकंजा जब कसा जाने लगा है तो पाक की बौखलाहट जाय़ज है। इसलिए दुश्मन का दुश्मन दोस्त बन जाता है और यही पाकिस्तान और चीन ने भारत के साथ गद्दारी का बेड़ा उठा लिया है। तो चीन क्या एक तीर से दो शिकार करना चाहता है? एक तरफ भारत से रार करके अरुणांचल, सिक्किम जैसे इलाकों को हथियाने की साजिश तो साथ ही पाक पर हूकूमत के शाही सपने देख रहा है चीन ? चीन यह भी जानता है कि तिब्बत से तीन नदियां निकलती हैं जो भारत में समाहित होती हैं । ब्रह्मपुत्र, सतलुज और सिंधु । ब्रह्मपुत्र जो तिब्बत से निकलती है और बंगाल की खाड़ी में गिरती है। तो सतलुज गंगा के साथ मिल जाती है वहीं सिंधु अरब सागर की खाड़ी में समाहित हो जाती है। चीन के पास और भी भारत को तहस नहस करने के हथकंडे हैं। चीन अगर चाहे तो ब्रह्मपुत्र पर बनी अपनी सबसे बड़ी पन बिजली परियोजना को हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकता है। यदि चीन ने डोकलाम के बहाने जंग छेड़ने का मन बना ही लिया है तो जाहिर है वह इस कारगर हथियार का इस्तेमाल करने से भी नहीं चूकेगा। यदि चीन पानी छोड़ता है तो नेपाल, भूटान के कुछ इलाके, बिहार, उत्तरी उत्तरप्रदेशके रास्ते बाढ़ का दृश्य तबाही में कब परिवर्तित हो जायेगा इसको कोई बयां नहीं कर पायेगा।

वहीं चीन की धमकियां कम नहीं हो रही हैं। रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता कर्नल वू  किंया ने धमकी भरे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कहा कि चीन की दृढ़ता, देश की रक्षा और उसकी संप्रभुता पर आंच नहीं आने देगें। वू ने डोकलाम से भारतीय सैनिकों को हटाने का भी निर्देश दे डाला और यदि भारत ऐसा नहीं करता है तो चीन पीछे भी नहीं हटेगा इसके संकेत भी प्रबल हैं।
चीन के पास जहां 1962 की विरासत यादगार के तौर पर है वहीं चीन आज स्वयं को अमेरिका से खुद को ऊंचा उठाना चाहता है। वहीं अमेरिका ने एक बार आतंकवाद के मुद्दे पर भारत का साथ दिया है तो पाकिस्तान को यह बात चुभने लगी है। जिसके कारण चीन के साथ आंखों ही आंखों में दीदार का इज़हार कर लिया है। चीन का बार बार भारत की सीमा में प्रवेश करना इस बात की गवाही देता है कि चीन की मंशा में कालापन है। जिसे भारत ने देख लिया है। दरअसल चीन डोकलाम के बहाने उत्तरी भारत के जरिये प्रवेश कर दिल्ली तक पहुंचना चाहता है।
जब हु्वेनसांग भारत में आया था तब उसने चीन वापस जाकर भारत की महिमा का गुणगान किया था। पर यह 21वीं सदी है तब के चीन भारत और अब के चीन भारत में जमीन आसमान का अंतर है। आज चीन का अधिकतर आयात का सामान समुद्र के रास्ते होकर गुजरता है भारत अगर चाहे तो उस आवागमन पर रोक लगा सकता है। जिससे चीन की आर्थिक व्यवस्था पर असर पड़ सकता है।

क्या शक्तियां हैं चीन के पास-
चीन ने हाल ही में ध्वनि से भी पांच गुना तेज चलने वाले हथियारों का परीक्षण इस साल जनवरी में किया था। जिस का नाम है डब्लू यू 14..
रेड एरो 73, 8, 9 और रेड ऐरो जी टी 6
चीन के पास बैलिस्टिक मिसाइल डी एफ 21 भी मौजूद है।
चीन के पास ध्वनि से भी तेज चलने वाले हथियार हैं जिन्हें यदि चीन छोड़े तो बंगलूरु तक 20 मिनट के अंदर पहुंच कर सबकुछ नेस्तो नाबूत कर सकता है और देश की राजधानी दिल्ली तक दस मिनट के अंदर पहुंचने की क्षमता रखता है।

भारत की शक्तियां
भारत के पास आई एन एस विक्रमादित्य, आई एन एस विक्रांत हैं जिनसे चीन आंतकित हो सकता है क्योंकि आई एन एस विक्रमादित्य समुद्री आवागमन में बड़ा बाधक साबित हो सकता है।
इसके अलावा अग्नि 1-6,
आकाश( जमीन से हवा तक मार करने वाला)
हेलीना(एंटी टैंक मिसाइल)
पृथ्वी, धनुष( एक पानी की जहाज है जो जमीन से जमीन पर वार करता है)
ब्राह्मोज (विश्व का सबसे तेज सुपरसोनिक मिसाइल), निर्भय, प्रहार, प्रगति,बराक,
त्रिशूल और नाग का अभी हाल ही में सफल परीक्षण किया गया है।

क्या है पाक के पास 
बाबर, गौरी, शाहीन, गजनवी और अब्दाली जैसी मिसाइलें पाक के पास भी उपलब्ध हैं जो चीन को सहायता के तौर पर काम आ सकता है।
हकीकत से दुनिया रुबरु हो चुकी है। अजीत डोभाल की ब्रिक्स मिटींग भी शांति का एहसास नहीं करा पा रही है भारतवासियों को। पाकिस्तान की सत्ता भी परिवर्तित हो चली है। पनामा मामले में नवाज की कुर्सी पर उनके भाई शाहबाज़ आ चुके हैं। ऐसे में पाक का सहयोग चीन को कितना मुअस्सर हो पायेगा यह देखने वाली बात होगी।

आज भारत सशक्त है तो चीन अपनी बनायी वादियों में ताल ठोंकने को उतावला नजर आ रहा है। तभी तो इस शह मात के खेल में चीन आगे बढ़ जाना चाहता है। ये हौसला अफजाही पाक की है या चीन के सपने अमेरिका से आगे जाने की हड़बड़ाहट के हैं। सिकंदर ने दुनिया जीती पर समय के आगे उसे भी घुटने टेकने पड़े थे। 

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