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Sunday 28 December 2014

                                                   नारी


सर्वमंगला मिश्रा- स्नेहा
9717827056

चिंतन-मनन के उपरांत उस पर क्रियान्वयन का होना अति आवश्यक होता है। प्राचीनकाल से लेकर अब तक हम न जाने कितने मुद्दों पर चर्चा करते चले आ रहे हैं। पर चर्चा सिर्फ चर्चित होती है। उस पर गतिशील तरीके से समाज कदम से कदम मिलाकर चल नहीं पा रहा। अर्थात् कहीं न कहीं वैचारिक मतभेद एवं अपरिपक्वता व्याप्त है। विश्व आज एक –एक करके सभी दहलीजें पार कर रहा है। हर ऊंची दीवाल को फांदने की कूबत रखने वाला इंसान आज इंसान से ही नफरत करता है। फिल्मी अदाकारा माधुरी दीक्षित से लेकर कई सरकारों ने महिलाओं के लिए असीम योगदान देने का बीड़ा उठाया। जिससे भ्रूण हत्या कम हो। लिंग परीक्षण को भी सरकार ने वैध करार दिया। उसके बावजूद आज भी शहरों में और गांवों में कन्यायें गर्भ में ही दम तोड़ देती हैं।

महिलायें जो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ती चली आ रहीं हां चाहे वो रानी लक्ष्मीबाई, मातंगिनी हाजरा या इंदिरा नूई हों। समाज दुर्बर्लों का नहीं होता। जिसने अपनी लड़ाई लड़ी देश, समाज उसका हुआ। देश के सर्वोच्च पद पर इंदिरा गांधी ने इतिहास रच डाला। मायावती दलित समाज का गौरव और तीन बार मुख्यमंत्री बनना सचमुच एक सम्मान की बात है। जे. जयललिता अदाकारा से पुष्ट और कठोर राजनीति के लिए जानी जाती हैं। ममता बनर्जी जो जमीन से उठी बंगाल की बेटी ने देश के गरीबों के हित को समझने वाली पार्टी के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद की और बताया कि बंगाल की असल हितैषी वो खुद हैं। सुषमा स्वराज, अल्प काल के लिए ही सही दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी। सोनिया गांधी के विरुद्ध उन्हें दक्षिण भारत से उतारा गया। आज विदेश मंत्री के पद पर मोदी जी के शासन में आसीन हैं। उमा भारती, स्मृति इरानी, मेनका गांधी तमाम ऐसे नामों की फहरिस्त है जिन्होंने अपनी लड़ाई खुद लड़ी और विजयी भी रहीं। एक स्वंय सेवी संस्था ने महिला सशक्तिकरण के कार्यक्रम में सुषमा स्वराज और मिनाक्षी लेखी जैसी हस्तियों को आमंत्रित किया था। मिनाक्षी लेखी जो बीजेपी की प्रवक्ता हैं। उन्हें यह बताने में तनिक भी संकोच नहीं हुआ कि जब उनके घर में कोई मेहमान आता है तो उनके दोनों बेटे मेहमाननवाजी करते हैं। सुषमा जी ने अपने रिसर्च के बारे में बताया कि जब मुझे पता चला कि महिला कमजोर होती है तो यह पाया कि शेर जंगल का राजा होता है पर शिकार शेरनी करती है। उसी प्रकार झुंड में चलने वाले हाथियों का मार्गदर्शन बूढ़ी हथिनी करती है। जो सूंड उठाकर खतरे को भांप लेती है। तो ऐसे में महिला कमजोर कैसे हो सकती हैं। उसे शक्ति की आवश्यकता ही क्यों है ?  जब वह स्वयं शक्तिस्वरुपा है। बात चल रही थी कि महिलाओं को क्या वास्तविक रुप से शक्ति की आवश्यकता है या जगरुक होने की अपने हक के प्रति।

देश मंगल ग्रह तक पहुंच चुका है। पर, महिलाओं के मंगल की बात कम लोग ही अन्तर्रात्मा से स्वीकार कर पाते हैं। एक समय था जब एक ब्याही गयी कन्या का उसके माता- पिता से सदा सर्वदा के लिए रिश्ता समाप्त सा हो जाता था क्योंकि उस वक्त जागरुकता मिट्टी में दबी हुई थी। आज जागरुकता की इमारत खड़ी होने के बावजूद भी उसका पता कम लोगों को ही पता है। आज जीवंत उदाहरण है कि तीन ब्याही गयी लड़कियां शादी के तुरंत बाद ही वापस अपने मायके आ गयीं क्योंकि उनके यहां शौचालय का प्रतिबंध नहीं था। ये जागरुकता है जो देश में संचालित हो रही योजनाओं पर अब गांवों तक की भी नजर है। महिलाओं की संख्या में बढ़ोत्तरी हो इसके लिए मध्य प्रदेश सरकार की लाडली योजना और तमाम ऐसी योजनायें शामिल हैं।पर सवाल उठता है कि क्या इस प्रयास के बावजूद समाज और परिवार महिलाओं का सम्मान करना सीख पाया है ? जवाब में असंतोष अवश्य छिपा है। आज देश में महिलाओं का सम्मान वास्तविक तौर पर होता तो 16 दिसम्बर और हाल ही में दिल्ली में एक और हादसे ने जहां विदेशी कंपनियों द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं पर भी सवाल खड़ा कर दिया है। बड़े- बड़े विज्ञापन, सुरक्षा के वायदे ऐसी घटनाओं के बाद सत्यता की परख हो जाती है कि अपना व्यापार उज्जवल दिशा में बढ़े इसके लिए खोखले वायदों के सब्ज बाग दिखा जिये जाते हैं जिसतरह नगर निकाय चुनाव से लेकर लोकसभा चुनावों में नेतागण खोखले वायदे करने से नहीं चूकते। पर पांच साल बाद जब वही नेता अपने इलाके में आता है तो झूठ की नयी परत और मुखौटे के साथ आता है। साल आते हैं मुखौटा बदलता चला जाता है। दूसरा सवाल यह उठता है कि क्या हर गुनाह की भरपायी मुआवज़ा होता है? सरकार हो या कंपनियां मुआवज़ा देकर मामला रफा दफ़ा करने में यकीन रखती हैं। दिल्ली हादसों का शहर बन गया है। सिर्फ दिल्ली क्यों उत्तर प्रदेश हो या बिहार, बंगाल या दक्षिणी प्रांत। समस्या एक है कि लोगों की मानसिकता उनका नज़रिया कैसे बदला जाय? क्योंकि जबतक इंसान की सोच शुद्ध नहीं होगी तब तक मानसिकता समृद्ध नहीं होगी। स्वस्थ मस्तिष्क ही समाज को स्वच्छता से रख सकता है। संकीर्णता कुरुपता को जन्म देती है। जिससे स्वस्थता बीमारी की ओर अग्रसर हो जाती है। फलस्वरुप प्रवृत्ति कोमा और आसीयू में चली जाती है। जहां स्वस्थता डाक्टरों के हाथ की कठपुतली बन जाती है और स्वस्थता के पुजारी सिर्फ प्रार्थना करते रह जाते हैं। देश और समाज की ऐसी दुर्बल स्थिति ना हो इससे पहले पहल करना अनिवार्य हो गया है। जिसकी शुरुआत घर के अंदर से होनी आवश्यक है। माताओं और घर के बड़े बजुर्गों को पहल करनी होगी। सीखाना होगा सम्मान दोगे तभी सम्मान पा सकोगे।

एक नेता का बयान आया था कुछ दिन पहले की हर महिला के पीछे हम पुलिस नहीं लगा सकते। बंगाल के नेता ने कहा- जब तक संसार है- दुष्कर्म की घटनायें घटती रहेंगी। हम कठोर प्रावधानों की मांग न करके उन लोगों को ऐसे बयानों से बल मिलता है। हर बार घटी घटनाओं को लेकर पूरा देश स्तब्ध रह जाता है। पर परिणाम शून्याकार ही रहता है। इन घटनाओं पर फिल्म इंडस्ट्री को पहल करनी चाहिए। देश और युवा उसके प्रशसंक और पद चिन्हों पर चलने में गर्व की अनुभूति करते हैं। उनके पास निर्णय करने की क्षमता नहीं होती। इसलिए हर बच्चे को तहज़ीब देनी होगी। तभी युवा होने पर उसके रक्त में वह अनुभूतियां विद्दमान रहेंगी। जिससे शिष्टाचार उसे गलत पथ पर जाने से रोकेगा। समाज ऐसे पथ पर चल चुका है जहां वयोवृद्ध महिलायें भी असुरक्षित एवं असहाय हैं। कभी किसी बलवान ने बदले की भावना से किया तो कभी कुदृष्टि के चलते। पर बदला लेने का यह कौन सा तरीका है जहां मानवता खुद शर्मसार हो जाये। आप अपने घर में अपने ही बड़े –बूढों और परिवार जन से नज़रें मिलाने के काबिल न रहो। द्रौपदी से लेकर आज दिल्ली तक महिला अपमान के बोझ तले दबती और सहमती चली जा रही है। जिनके सपोर्ट मेंपुरुष हैं वो महिलायें तो ज्ञानार्जन से लेकर अपने हक की लड़ाई लड़ लेती हैं पर जिन्हें ऐसा सौभाग्य नहीं मिला तो उन्हें बलहीन दुनिया घोषित करेगी ? मलाला –एक छोटी सी बच्ची जिसने विश्व में बच्चों के लिए मुहिम छेड़ी तो नोबल पीस प्राइज़ की हकदार भी। आज उसके पीछे तमाम बन्दूकें तनीं सी हैं पर उसके पिता उसके असल सहायक एवं मार्गदर्शक हैं। वहीं दूसरी लड़कियां जिनके परिवार में कोई मर्द नहीं हैं वो घर के बाहर पैर तक नहीं रख सकीं पढ़ना तो दूर है। गांव से लेकर शहर तक अब यह कदम हर लड़की और महिला को उठाना होगा अपने बेटों को शिक्षित करना होगा। शिष्टाचार की पढ़ाई का स्कूल खोलन होगा।  
इतिहास में सीता, कुन्ती और जीजा बाई  ऐसी उदाहरण हैं जिन्होंने अपने बेटों को ऐसी शिक्षा एवं संस्कार दिये जिससे संसार में आज भी लव -कुश का  नाम सम्मान से लिया जाता है। यह सीता माता की शिक्षा का ही परिणाम था कि अपने दोनों बेटों को पथ भ्रष्ट होने से बचाया  अनैतिकता से कोसों दूर रखा। वहीं कुन्ती ने भी अपने पांच पुत्रों को शिक्षा और संस्कार देकर मिसाल कायम की। शिवाजी की माता के संस्कार जगत विख्यात हैं।  वहीं गांधारी ने अपने पुत्रों दुर्योधन और दुशशासन जो सदा अपने मामा शकुनी के साथ समय व्यतीत करते थे। एक उनकी शिक्षा और एक माता कुन्ती की। दोनों उदाहरण हमारे सामने हैं।  इसी तरह आज हर नारी को सिर्फ माता नहीं वरन सीता के समान सोच, कुन्ती समान पालन और जीजा बाई जैसी शिक्षा प्रदान करने का संकल्प लेना होगा। तभी देश उन्नत हो सकेगा। वरना लड़के लड़के हैं यह सोच उन्हें सही मार्ग से भटका देगी। माता एवं पिता दोनों का कर्तव्य होता है कि लड़कों को भी लड़कियों जैसा उचित संस्कार एवं शिक्षा से अवगत करायें। 

                                भाजपा का कमल




सर्वमंगला मिश्रा- स्नेहा
9717827056


देश में आज एक ही लहर चहुं ओर है। यह लहर समय की है या व्यक्ति विशेष की। जीत कहीं भी मिल रही है तो उसका एक मात्र श्रेय जा रहा है प्रधानमंत्री को। जिसने लोगों पर न जाने कैसा मोहिनी जादू कर दिया है या मार्केटिंग का असर। समझना थोड़ा जन सामान्य के लिए मुश्किल हो रहा है। डीजल -पेट्रोल के दाम भी कम होते नजर आ रहे हैं। क्या यह अजूबा मात्र सभी चुनावों को जीतने का मात्र सहारा है अथवा सचमुच यह अजूबा कायम रहेगा। जिस गुजराती माडल को लेकर दुनिया भर में चर्चा का विषय रहे मोदी ने अपने आप को स्थापित कर लिया है। अंगद के पैर की तरह राजनीति की धरती पर कड़े विरोधियों के सामने जमा चुके हैं। आज जम्मू कश्मीर का विधानसभा चुनाव हो या मध्यप्रदेश का नगर निकाय हर तरफ भाजपा का कमल ही खिल रहा है। मध्य प्रदेश के सी एम शिवराज सिंह चौहान ने तो मध्य प्रदेश को गुजराती माडल जैसा बनाने के लिए एक पी आर ऐजेंसी भी हायर करने का फैसला ले लिया है। अब उम्मीद यही की जा सकती है कि आने वाले समय में सभी बीजेपी शसित राज्य अपने अपने राज्यों को गुजराती माडल बनाने की होड़ में शामिल हो जायेंगें।
राज्यों ने हर चुनाव जीत लिया है। कुछ चुनाव और कुछ दूसरे राज्यों में विधानसभा चुनाव भी अगले साल होने वाले हैं। उसके लिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने पश्चिम से परचम लहराते हुए अब पूरब का रुख कर लिया है। बंगाल में अस्तित्वहीन भाजपा को अस्तित्व में लाने की कवायत शुरु हो चुकी है। बंगाल की शेरनी के सामने भी क्या कोई दहाड़ सकता है ? तो मोदी सरकार की रीढ़ की हड्ड़ी अमित शाह जो साधरणतया कम बोलते दिखते हैं बंगाल में अपनी गर्जना के साथ भाजपा के मजबूत कदम की थर्राहट तो नहीं पर आसार के कयास जरुर लगाये जायेंगें। बंगाल में  गरीबों की हमदर्द पार्टी सी पी आई एम के अलावा एक लम्बे अरसे के बाद दीदी को अपनाया क्योंकि वो 34 साल से प्रयासरत थीं कि वो बंगाल और बंगाल वासियों की हमदर्द हैं। पर वहां की जनता इतनी आसानी से किसी को अपना नहीं मानती है। कड़ी अग्नी-परीक्षा के बाद ही उसे अपनाती है। जब बंगाल की बेटी और बाघिनी को यह समझाने में 34 साल लग गये कि वो उनकी हैं और बंगाल उनका है। तो बंगाल के लोगों का पूर्ण विश्वास मत हासिल करने में तो अमित शाह को अभी कितना दहाड़ना पड़ेगा। कितनी परीक्षायें देनी होंगी । क्या अमित शाह के अन्दर इतना दम है कि बंगाल की मानसिकता और विश्वास की भावना को सहेजकर ममता दीदी को बंगाल में चुनौती दें और 2015 में  होने वाले विधानसभा चुनावों में परिणाम आशा के विपरीत और भाजपा के इतिहासी किताब में एक ऐसा अध्याय जोड़ दे जो किसी ने अब तक सोचा न हो यानी - पूर्ण बहुमत भाजपा को । इस साल हुए लोकसभा चुनावों में भी भाजपा की स्थिति सबके सामने ही रही।
माहौल, शब्द की बात करना चाहूंगी। एक अविश्वसनीय पक्षपात चाहे अनचाहे हर कोई न जाने क्यों मोदी की ओर आकर्षित है। एक ऐसा हूजूम जिसमें हर कोई आसमान की तरफ टकटकी लगाये एक ही अक्स, एक ही नाम देखना और सुनना चाहता हो। पर एक शक्स ऐसा है जो मोदी से शिकायत करना चाहता है। पर उसकी शिकायत कहीं अनसुनी न कर दी जाय। जशोदा बेन - मोदी जी की पत्नी । जिसे अभी भी मोदी जी ने सही स्थान नहीं दिया है। वह आर टी आई के तहत अपने प्रश्नों का उत्तर से ज्यादा अपने हक की लड़ाई लड़ने को मजबूर है। जिसे दुनिया ने सालों बाद सुना कि मोदी की पत्नी भी हैं क्योंकि लोकसभा का फार्म भरने के क्रम में खुलासा हुआ। उसी तरह सालों से चला आ रहा बंगाल और भाजपा का खेल। जो पूरे देश में, केन्द्र में राज कर चुकी पर बंगाल में अबी तक अस्तित्वहीन है और लड़ाई लड़ने को मजबूर भी। हालांकि बंगाल ने भी अपना मुख यानी ब्रांड अम्बेसडर शाहरुख खान को बनाकर तेज -रफ्तार पकड़ने को दर्शाता है। पर भाजपा सिंकदर की तरह विश्व विजय पर निकली है। जिसले पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण विजय रथ पर सवार होकर इतिहास रचना है। जो हर नामुमकिन को मुमकिन बनाने पर तुली है। जिसे दिल्ली में भी मील का पत्थर साबित होना है। देश के हर राज्य में बस कमल का निशान देखने का सपना लेकर चलने वाली भाजपा क्या गुल खिलायेगी यह तो भविष्य ही बताएगा कि भाजपा का यह वक्त उगता सूरज आसमान में चढेगा या मध्य तक आते- आते भाजपा के सूर्य को ग्रहण लग जायेगा और ग्रहण लगा सूर्य यूंही सदा के लिए अस्त हो जायेगा। 

                                                         नारी 

सर्वमंगला मिश्रा- स्नेहा9717827056




चिंतन-मनन के उपरांत उस पर क्रियान्वयन का होना अति आवश्यक होता है। प्राचीनकाल से लेकर अब तक हम न जाने कितने मुद्दों पर चर्चा करते चले आ रहे हैं। पर चर्चा सिर्फ चर्चित होती है। उस पर गतिशील तरीके से समाज कदम से कदम मिलाकर चल नहीं पा रहा। अर्थात् कहीं न कहीं वैचारिक मतभेद एवं अपरिपक्वता व्याप्त है। विश्व आज एक –एक करके सभी दहलीजें पार कर रहा है। हर ऊंची दीवाल को फांदने की कूबत रखने वाला इंसान आज इंसान से ही नफरत करता है। फिल्मी अदाकारा माधुरी दीक्षित से लेकर कई सरकारों ने महिलाओं के लिए असीम योगदान देने का बीड़ा उठाया। जिससे भ्रूण हत्या कम हो। लिंग परीक्षण को भी सरकार ने वैध करार दिया। उसके बावजूद आज भी शहरों में और गांवों में कन्यायें गर्भ में ही दम तोड़ देती हैं। 
महिलायें जो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ती चली आ रहीं हां चाहे वो रानी लक्ष्मीबाई, मातंगिनी हाजरा या इंदिरा नूई हों। समाज दुर्बर्लों का नहीं होता। जिसने अपनी लड़ाई लड़ी देश, समाज उसका हुआ। देश के सर्वोच्च पद पर इंदिरा गांधी ने इतिहास रच डाला। मायावती दलित समाज का गौरव और तीन बार मुख्यमंत्री बनना सचमुच एक सम्मान की बात है। जे. जयललिता अदाकारा से पुष्ट और कठोर राजनीति के लिए जानी जाती हैं। ममता बनर्जी जो जमीन से उठी बंगाल की बेटी ने देश के गरीबों के हित को समझने वाली पार्टी के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद की और बताया कि बंगाल की असल हितैषी वो खुद हैं। सुषमा स्वराज, अल्प काल के लिए ही सही दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी। सोनिया गांधी के विरुद्ध उन्हें दक्षिण भारत से उतारा गया। आज विदेश मंत्री के पद पर मोदी जी के शासन में आसीन हैं। उमा भारती, स्मृति इरानी, मेनका गांधी तमाम ऐसे नामों की फहरिस्त है जिन्होंने अपनी लड़ाई खुद लड़ी और विजयी भी रहीं। एक स्वंय सेवी संस्था ने महिला सशक्तिकरण के कार्यक्रम में सुषमा स्वराज और मिनाक्षी लेखी जैसी हस्तियों को आमंत्रित किया था। मिनाक्षी लेखी जो बीजेपी की प्रवक्ता हैं। उन्हें यह बताने में तनिक भी संकोच नहीं हुआ कि जब उनके घर में कोई मेहमान आता है तो उनके दोनों बेटे मेहमाननवाजी करते हैं। सुषमा जी ने अपने रिसर्च के बारे में बताया कि जब मुझे पता चला कि महिला कमजोर होती है तो यह पाया कि शेर जंगल का राजा होता है पर शिकार शेरनी करती है। उसी प्रकार झुंड में चलने वाले हाथियों का मार्गदर्शन बूढ़ी हथिनी करती है। जो सूंड उठाकर खतरे को भांप लेती है। तो ऐसे में महिला कमजोर कैसे हो सकती हैं। उसे शक्ति की आवश्यकता ही क्यों है ?  जब वह स्वयं शक्तिस्वरुपा है। बात चल रही थी कि महिलाओं को क्या वास्तविक रुप से शक्ति की आवश्यकता है या जगरुक होने की अपने हक के प्रति। 
देश मंगल ग्रह तक पहुंच चुका है। पर, महिलाओं के मंगल की बात कम लोग ही अन्तर्रात्मा से स्वीकार कर पाते हैं। एक समय था जब एक ब्याही गयी कन्या का उसके माता- पिता से सदा सर्वदा के लिए रिश्ता समाप्त सा हो जाता था क्योंकि उस वक्त जागरुकता मिट्टी में दबी हुई थी। आज जागरुकता की इमारत खड़ी होने के बावजूद भी उसका पता कम लोगों को ही पता है। आज जीवंत उदाहरण है कि तीन ब्याही गयी लड़कियां शादी के तुरंत बाद ही वापस अपने मायके आ गयीं क्योंकि उनके यहां शौचालय का प्रतिबंध नहीं था। ये जागरुकता है जो देश में संचालित हो रही योजनाओं पर अब गांवों तक की भी नजर है। महिलाओं की संख्या में बढ़ोत्तरी हो इसके लिए मध्य प्रदेश सरकार की लाडली योजना और तमाम ऐसी योजनायें शामिल हैं।पर सवाल उठता है कि क्या इस प्रयास के बावजूद समाज और परिवार महिलाओं का सम्मान करना सीख पाया है ? जवाब में असंतोष अवश्य छिपा है। आज देश में महिलाओं का सम्मान वास्तविक तौर पर होता तो 16 दिसम्बर और हाल ही में दिल्ली में एक और हादसे ने जहां विदेशी कंपनियों द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं पर भी सवाल खड़ा कर दिया है। बड़े- बड़े विज्ञापन, सुरक्षा के वायदे ऐसी घटनाओं के बाद सत्यता की परख हो जाती है कि अपना व्यापार उज्जवल दिशा में बढ़े इसके लिए खोखले वायदों के सब्ज बाग दिखा जिये जाते हैं जिसतरह नगर निकाय चुनाव से लेकर लोकसभा चुनावों में नेतागण खोखले वायदे करने से नहीं चूकते। पर पांच साल बाद जब वही नेता अपने इलाके में आता है तो झूठ की नयी परत और मुखौटे के साथ आता है। साल आते हैं मुखौटा बदलता चला जाता है। दूसरा सवाल यह उठता है कि क्या हर गुनाह की भत्ररपायी मुआवज़ा होता है? सरकार हो या कंपनियां मुआवज़ा देकर मामला रफा दफ़ा करने में यकीन रखती हैं। दिल्ली हादसों का शहर बन गया है। सिर्फ दिल्ली क्यों उत्तर प्रदेश हो या बिहार, बंगाल या दक्षिणी प्रांत। समस्या एक है कि लोगों की मानसिकता उनका नज़रिया कैसे बदला जाय? क्योंकि जबतक इंसान की सोच शुद्ध नहीं होगी तब तक मानसिकता समृद्ध नहीं होगी। स्वस्थ मस्तिष्क ही समाज को स्वच्छता से रख सकता है। संकीर्णता कुरुपता को जन्म देती है। जिससे स्वस्थता बीमारी की ओर अग्रसर हो जाती है। फलस्वरुप प्रवृत्ति कोमा और आसीयू में चली जाती है। जहां स्वस्थता डाक्टरों के हाथ की कठपुतली बन जाती है और स्वस्थता के पुजारी सिर्फ प्रार्थना करते रह जाते हैं। देश और समाज की ऐसी दुर्बल स्थिति ना हो इससे पहले पहल करना अनिवार्य हो गया है। जिसकी शुरुआत घर के अंदर से होनी आवश्यक है। माताओं और घर के बड़े बजुर्गों को पहल करनी होगी। सीखाना होगा सम्मान दोगे तभी सम्मान पा सकोगे।
एक नेता का बयान आया था कुछ दिन पहले की हर महिला के पीछे हम पुलिस नहीं लगा सकते। बंगाल के नेता ने कहा- जब तक संसार है- दुष्कर्म की घटनायें घटती रहेंगी। हम कठोर प्रावधानों की मांग न करके उन लोगों को ऐसे बयानों से बल मिलता है। हर बार घटी घटनाओं को लेकर पूरा देश स्तब्ध रह जाता है। पर परिणाम शून्याकार ही रहता है। इन घटनाओं पर फिल्म इंडस्ट्री को पहल करनी चाहिए। देश और युवा उसके प्रशसंक और पद चिन्हों पर चलने में गर्व की अनुभूति करते हैं। उनके पास निर्णय करने की क्षमता नहीं होती। इसलिए हर बच्चे को तहज़ीब देनी होगी। तभी युवा होने पर उसके रक्त में वह अनुभूतियां विद्दमान रहेंगी। जिससे शिष्टाचार उसे गलत पथ पर जाने से रोकेगा। समाज ऐसे पथ पर चल चुका है जहां वयोवृद्ध महिलायें भी असुरक्षित एवं असहाय हैं। कभी किसी बलवान ने बदले की भावना से किया तो कभी कुदृष्टि के चलते। पर बदला लेने का यह कौन सा तरीका है जहां मानवता खुद शर्मसार हो जाये। आप अपने घर में अपने ही बड़े –बूढों और परिवार जन से नज़रें मिलाने के काबिल न रहो। द्रौपदी से लेकर आज दिल्ली तक महिला अपमान के बोझ तले दबती और सहमती चली जा रही है। जिनके सपोर्ट मेंपुरुष हैं वो महिलायें तो ज्ञानार्जन से लेकर अपने हक की लड़ाई लड़ लेती हैं पर जिन्हें ऐसा सौभाग्य नहीं मिला तो उन्हें बलहीन दुनिया घोषित करेगी ? मलाला –एक छोटी सी बच्ची जिसने विश्व में बच्चों के लिए मुहिम छेड़ी तो नोबल पीस प्राइज़ की हकदार भी। आज उसके पीछे तमाम बन्दूकें तनीं सी हैं पर उसके पिता उसके असल सहायक एवं मार्गदर्शक हैं। वहीं दूसरी लड़कियां जिनके परिवार में कोई मर्द नहीं हैं वो घर के बाहर पैर तक नहीं रख सकीं पढ़ना तो दूर है। गांव से लेकर शहर तक अब यह कदम हर लड़की और महिला को उठाना होगा अपने बेटों को शिक्षित करना होगा। शिष्टाचार की पढ़ाई का स्कूल खोलन होगा।    
    
   
                                     अपने धुन में मगन मोदी




सर्वमंगला मिश्रा -स्नेहा

सफलता एक सौगात होती है। जिसकी कुंजी शायद मोदी जी के हाथ लग गयी है। पूरा देश एक तरफ जहां देश की आजादी का पर्व मनाने में ही गर्व की अनुभूति करता रहता है वहीं प्रधानमंत्री बिना रुके बिना थके अविरल गति से एक के बाद एक योजनाओं को लागू करने के साथ साथ सभी प्रोजेक्ट्स को एक एक गुट को सौंपते चले जा रहे हैं। परीक्षा हाल में पेपर लाइन से सबको देकर फिर निश्चित अवधि समाप्त होने पर उत्तर पुस्तिका वापस ले ली जाती है। प्रधानमंत्री की कार्यशैली भी कुछ ऐसा ही आभास करा रही है। नौरत्नों को स्वच्छता अभियान में लगाकर उन्होंने पूरे देश को स्वच्छ बनाने का बीड़ा हर भारतवासी के कंधों पर डाल दिया है। स्वंय सफाई कर यह भी दिखा दिया कि कोई भी काम छोटा नहीं होता और जितने स्टार प्रचारक प्रचार करेंगें युवा वर्ग उनसे प्रभावित होकर उस कार्य का बीड़ा स्वयं उठायेगा।इसी तरह गंगा को निर्मल बनाने की मुहिम पूरे देश ही नहीं विदेशों में भी चर्चा का विषय बन गयी है। देश में भाजपा के छोटे बड़े नेताओं के बीच गंगा बचाओ अभियान में हर नेता ने कसम खायी है गंगा को बचाने की। गो हत्या पर भी सरकार सख्ती बरतने का प्रयास कर रही है। जुर्माना और कारावास की सजा के तौर पर। हाइ स्पीड मेट्रो का ट्रेलर पूरे देश ने देखा। जम्मू से वैष्णो देवी जाने का मार्ग सुलभ हो गया। टीचर्स डे के दिन पूरे देश के बच्चों से वाडियो कान्फ्रेसिंग अपने आपमें एक नया जीवंत प्रयास था जिसे चुपके चुपके ही सही हर आम व खास ने सराहा। तीन शहरों को स्मार्ट सिटी के तौर पर बनाने की परिकल्पना जहां हाई टेक गतिविधियां होंगी। सी सी टी वी के अलावा प्रति पल प्रति क्षण आप पर तकनीकी मशीनें नजर रखेंगी। एक तरह से आप आम से खास बन जायेंगें। वहीं दूसरी तरफ एक पल एकांत को भी तरसेंगें। पर स्मार्ट सिटी बनाने में अमेरिका मदद की मदद मिलेगी। वहीं अपने चुनावी भाषणों में इतिहास का जिक्र करने वाले मोदी इतिहास को पढाने ही नहीं पढने में भी यकीन रखते हैं।तभी तो गांधी जी की तरह स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने की मुहिम भी साथ में छेड़ दी है।खादी पर जोर देने के साथ जीवन शैली को सरल तौर पर जीने के नियम को भी अपने मंत्रीमंडल से लेकर सम्पूर्ण भाजपा को शिविर लगावाकर समझाया। अपने संसदीय क्षेत्र में डेयरी उद्दोग से बेरोजगारी दूर करने का भी प्रोग्राम है।  तो गांधी जी के आदर्शों पर चलने वाले मोदी गांवों को नहीं भूले हैं। हर एक सांसद एक आदर्श ग्राम की योजना पर कार्यरत होगा। जिससे 282 आदर्श गांव कम से कम 5 सालों में तो तैयार हो ही जायेगा। प्रधानमंत्री ने खुद भी अपने संसदीय क्षेत्र से एक गांव को गोद ले लिया है। अब उसे पाल पोषकर बड़ा करेंगें, लायक बनाकर एक उदाहरण खड़ा करेंगें। तभी देश उन्नति के पथ पर अग्रसर होगा।
रिंग में एक मास्टर अपनी छड़ी और आंखों के सहारे यानी बुद्धिमता और कार्यक्षमता के बल पर सभी शेरों का करतब जनता के सामने पेश करता है। जनता की ताली नो डाउट की उस रिंग मास्टर के लिए ही होती है क्योंकि उसके इशारे के बिना करतब का क –शब्द की उम्मीद भी करना बेवकूफी है।अगर खेल दिखाना एक कला है तो खेल को सीमाबद्ध तरीके से सीखाना भी एक सौगात है। प्रधानमंत्री जी भी नेताओं से लेकर सरकारी बाबूओं तक सबको उचित शिक्षा और अनुशासन सीखाने में लगे हैं। अधिकारी वर्ग जहां पहले दोपहर के बाद अपने कार्यालय में प्रवेश करता था वहीं अब परंपरा बदल रही है। बाबूओं के लिए प्रतीक्षारत नहीं होना पड़ता।
इतिहास के पन्ने पलटे जायें तो हर दशक में एक चेहरा ऐसा उभर कर आता है जो उस दशक का एक मात्र परिवर्तनशील कल्पना से परे होता है। मोदी जी ने पाक के प्रति अपने शपथ समारोह में जिस तरह पाक के नवाज शरीफ को आमंत्रित कर दरियादिली दिखायी तो वक्त की नज़ाकत देखते हुए कड़ा रुख भी अब अपना लिया है प्रधानमंत्री ने।इसका असर क्या होगा यह कहना तो मुश्किल होगा क्योंकि जो दुश्मनी आजादी से चली आ रही हो उसका अर्थ इतनी जल्दी तो नहीं निकल सकता। दोनों ओर काफी समानताऐं और असमानतायें हैं। आजाद हुए जितने साल भारत को हुए पाकिस्तान को भी। बंटवारे के वक्त कुछ हिन्दु भारत से पाक और कुछ मुसलमान पाक से भारत की ओर कूच कर गये थे। हालांकि इसमें काफी असमंजस की स्थितियां भी बाद में पैदा हुई थीं जो अब भी बरकरार हैं। हर बार सीमा उल्लंघन होता है।हर बार दोनों तरफ से न जाने कितनी जानें जा रहीं हैं। पर हल नहीं निकल पा रहा।  शायद इसमें कुछ राजनीतिक चाल है। मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला की सोच किसी भिन्न दिशा में चल रही है।
देश एक अजीब दौर से गुज रहा है। जहां खाप पंचायतें फरमान पर फरमान सुनाये चली जा रही हैं। तो मोदी गांधी की प्रतिज्ञा को पूरा करने में जी जान से जुटे हैं- हर गांव को स्वर्ग बनाना उनकी प्राथमिकता बन गयी है। स्वच्छ भारत, सुंदर भारत। हर युवा को मार्गदर्शन देने की बात से लेकर महिलाओं की सुरक्षा, बेरोजगारी को मिटाने की बात करने वाले प्रधानमंत्री मोदी लोगों को आश्वस्त करते हुए देश के पश्चिमी हिस्से में बसा और व्यापारिक केन्द्र माने जाने वाला चहुमुखी विकास की ओर अग्रसर मुम्बई में जहां आने वाले सप्ताह में गठबंधन में चटख आना किसके लिए हानिकारक और किसके लिए फायदेमंद होगा जल्द ही तस्वीर स्पष्ट हो जायेगी। हर बंधन से स्वयं को मुक्त करते नजर आते मोदी आत्मविश्वास की मजबूत रस्सी से पूरे देश को एक सूत्र में पिरोना चाहते हैं। हिन्दू, मुस्लिम की दृष्टि से इंसान को इंसान की दृष्टि से एक दूसरे को देखने का नजरिया देना चाहते हैं। पर, देश की जनता क्या इतनी परिपक्व है कि देश के प्रधानमंत्री की बात एक बार में समझ आ जाये। समझ आ भी जाये तो राजनीति, कूटनीति सत्ता मोह से उपर सोच नहीं पाती, सोचती भी है तो समझौते के तहत ही गठबंधन बनता है। फिर जहां मामला अटकता है बस 25 साल के रिश्ते भी टूट जाते हैं। आर एस एस और शिवसेना भाजपा की रीढ़ की हड्डी के समान मानी जाती थी। पर, साधो सब दिन होत न एक समाना। मोदी ने ऐलान कर पुरानी पार्टियों को चुनौती दे डाली है तो स्वंय को अग्निपरीक्षा की आग में झोंक डाला है। अब सोना कितना खरा है कसौटी पर घिसने के बाद ही पता चलेगा। चलो चलें मोदी के साथ या हुड्डा जी का काम काम अथवा कांग्रेस को सफल बनायें जैसे विज्ञापन ने 10 साल के राज काज को समझा या मोदी चक्रवात की तरह हर मस्तिष्क में विकास का दूसरा नाम बनकर छाये हैं। 19 अक्टूबर को मराठा और बीजेपी की जंग भी एक किनारा पकड़ लेगी। मोदी एक नये भारत का आविर्भाव करने में लगे हैं। जनता इस खिलाड़ी के परफार्मेंस का आंकलन नहीं करना चाहती। इस खेल का परिणाम जीत चाहती है। यह टेस्ट मैच है जिसमें वन डे मैच के तर्ज पर परिणाम घोषित नहीं हो सकता। टेस्ट मैच की जनता को धीरज रखना पड़ता है। मोदी में साहस है तो धैर्य की परीक्षा देने से पीछे नहीं हटे तो अब लेने में भी पीछे नहीं हटते। तमाम प्रोजेक्ट्स का शिलान्यास करने वाले पी एम मोदी जी आउटलाइन तैयार कर रहे हैं। फिर वक्त आयेगा यह देखने का कि रंग वास्तविकता से परे हैं या सब कल्पना मात्र ही था और अगला चुनाव देश के सामने मुंह बाये खड़ा है। जहां देश की जनता एक बार फिर बोलने को मजबूर हो जायेगी- कि सब राजनीति है। देश का भला करवे वाले जन्म ही नहीं लेते केवल सपनों को लूटने और उसके सौदागर ही पैदा होते हैं। इतिहास भी इंतजार कर रहा है क ऐसी कहानी देश के नाम लिखने को जहां लोग उस पन्ने को बार बार पलट कर पढना चाहें और कहें ऐसा भी हो सकता है। तब मोदी को अपने नाम की चालीसा छपवानी नहीं पड़ेगी अपितु हर कोर्स में धामिक पन्ने की भांति गांधी के बाद याद किया जाने वाला नाम बन जायेगा। 

  मिस्टिरियस मुम्बई  में-  सुशांत का अशांत रहस्य सर्वमंगला मिश्रा मुम्बई महानगरी मायानगरी, जहां चीजें हवा की परत की तरह बदलती हैं। सुशां...