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Monday 9 April 2018


डिजिटल चुनावी प्रक्रिया ?




-सर्वमंगला मिश्रा-
राजनीतिक हलचल राजनीति की सौगात होती है। हलचल कभी परिणामस्वरुप सामने आता है तो कभी विद्रोह के रुप में। आजकल बंगाल में पंचायत चुनाव को लेकर संग्राम छिड़ा हुआ है। 22 राज्यों में अपना परचम लहरा चुकी केंद्र सरकार बंगाल में जीत का परचम लहराने को बेताब है। वहीं बंगाल की शेरनी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पुरु की तरह सिकंदर यानी भाजपा को बंगाल में न घुसने देने के लिए अपनी सेना के साथ बंगाल की हर सीमा पर चौकस है। पर, सिंकदर को रोक पाना क्या इतना भी सहज है?
बंगाल में विधानसभा चुनाव से लेकर पंचायत चुनाव तक भाजपा हर मोड़ पर अपने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर रही है। जिससे भाजपा को बंगाल में विजय हासिल हो सके। परन्तु, ममता दीदी किसी भी कीमत पर अपना सिंहासन खोने को तैयार नहीं है। तृणमूल पार्टी के कार्यकर्ता इतने चौकस हैं कि भाजपा सदस्य अपना नामांकन तक भरने के लिए कड़ी मशकक्त कर रहे हैं। चुनाव के लिए नामांकन कर पाना भाजपा प्रत्याशियों के लिए अपने आप में एक बड़ी जीत है। पूर्व मेदिनीपुर जहां तृणमूल का गढ़ माना जाता है, वहां भाजपा के प्रत्याशियों ने अपने नामांकन दाखिल कर जीत का सेहरा पहनने की तैयारी तो मानो कर ही ली है। पंचायत चुनाव में विद्रोह का आलम ऐसा है कि महिला प्रत्याशी पुलिस प्रशासन द्वारा पटक पटक कर पीटी जा रही हैं। ऐसे में क्या चुनावी प्रक्रिया बदलने की आवश्यकता नहीं है। जिससे नामांकन भरना सरल हो सके। डिजिटल इंडिया जहां ईवीएम मशीनों का इस्तेमाल वोट डालने के लिए किया जाता है। वहीं नामांकन भरने का तौर तरीका इतना पुराना होने से ही बंगाल में विद्रोह पनपा। यदि आधुनिककरण अब भी नहीं लाया गया तो अन्य राज्यों में जहां आने वाले समय में चुनाव होंगे, ऐसे दृश्य परिलक्षित होते रहेंगे।  
भारत डिजिटल मोड में परिवर्तित हो रहा है। भारत अब डिजिटल इंडिया बन रहा है। ऐसे में चुनाव के नामांकन भी आनलाइन ही होने चाहिए। जिससे महिला प्रत्याशियों को पुलिस के हाथों अपमानित न होना पड़े। देश का संविधान इस बात को स्पष्ट करता है कि हर भारतीय नागरिक को चुनावी प्रक्रिया में शामिल होने का पूर्णरुप से अधिकार है। पर बंगाल की दशा इससे बिल्कुल विपरीत नजर आती है। भारत के संविधान का, बाबा साहेब अंबेडकर का खुले रुप से उल्लंघन हो रहा है। क्या ऐसे भारत का सपना बापू ने देखा था या अंबेडकर जी ने। चुनावी संग्राम में हार जीत अलग मुद्दा होता है। परन्तु व्यक्ति के अधिकारों का हनन, यह भारत के संविधान का अपमान है।
तीन चरण में होने वाला बंगाल पंचायत चुनाव, जिसमें 48751 ग्राम पंचायत सीटें, 9240 पंचायत समिति और 825 जिला परिषद की सीटें हैं। बंगाल का इतिहास इस बात का गवाह है कि अपने समय में सीपीएम हो या तृणमूल निर्विरोध कई सीटों पर बिना लड़े कब्जा किया है। सन् 2003 में 6800 सीटों पर निर्विरोध सीपीएम पार्टी ने कब्जा किया तो 2013 में 6274 सीटों पर तृणमूल ने। क्या पंचायत चुनावों में ऐसी हरकतों को तवज्जों देना चाहिए। ऐसी स्थिति में चुनाव करवाने का क्या फायदा। क्या फायदा इतने पोलिंग बूथ बनवाने, पुलिस प्रशासन बल और तमाम खर्च करने का क्या फायदा। अगर चुनावी प्रक्रिया में स्वाभाविक स्वतंत्रता का अभाव रहता है।
अधिकारों के हनन को लेकर पार्टीयां चैतन्य तो रहती हैं परन्तु, वर्चस्व की लड़ाई में विद्रोह के शामियाने में कब, कहां और कैसी आग भड़क जाती है कि खबर ही नहीं होती। क्या मालदा, क्या वीरभूम पूरा बंगाल जैसे पंचायत चुनाव के पहले ही जल रहा है तो चुनाव के वो तीन दिन जो आने वाले हैं क्या होगा...इसका अंदाजा बहुत आसानी से लगाया जा सकता है। बंगाल की सीमा इतनी चौकस है कि केंद्र से पुलिस बल यदि आ भी जाती है तो बंगाल के अंदर कितनी देर शांति का माहौल बना रह पायेगा। इसकी कोई गारंटी नहीं है। भाजपा और तृणमूल की आमने सामने की यह लड़ाई आर या पार की बन चुकी है।
भारत विश्व का दूसरा बड़ा लोकतांत्रिक देश है। लेकिन, अधिकारों की स्वतंत्रता का हनन देखकर ऐसा कहने पर मन व्यथित हो उठता है। जिले के गांवों में रहने वाले वो निरीह लोग हर बार चुनावी संग्राम के शिकार हो जाते हैं। जिनका चुनाव से कोई सरोकार नहीं होता। रिज़वानुर रहमान भी एक ऐसा ही शक्स था। ऐसे में चुनावी प्रक्रिया को नया रुप देने की आवश्यकता है। जहां भारत का आम नागरिक चाहे चुनाव लड़ने की बात हो या मतदान करने की, अपने हक का उपयोग कर सके। तभी तो लोकतंत्र की जीत सही मायने में संभव हो पायेगी।
राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार आम नागरिक को उनके हक से उन्हें वंचित रखना एक तरह का अपराध है। राजनैतिक भाषा में जनता पर अंकुश लगाने के समान है जो धीरे धीरे निरंकुशता की ओर अग्रसर होती है।
यह पंचायत चुनाव भाजपा का लिटमस परिक्षण है। 2019 अब सिर पर है। बंगाल लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए कितनी अहम भूमिका निभाएगा इसकी झलक पंचायत चुनाव के परिणाम से ही मिल जायेगी। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह या बंगाल की दीदी किसकी रणनीति कितनी दमदार है यह परिक्षण की घड़ी है। भाजपा बंगाल में सेंध लगाना चाहती है तो दीदी केंद्र सरकार में। महागठबंधन में गठबंधन भी कितना शानदार होगा यह कहना बहुत मुश्किल है। कठिन परिस्थिति में तिकड़ी काम आएगी या नहीं परन्तु संविधान का सच आज कितना धरातल पर उतरा है यह पूरा देश देख रहा है।

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