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Wednesday 25 March 2020


लाँकडाउन का पहला दिन

सर्वमंगला मिश्रा



25 मार्च की शाम, मैं छत पर गई  मेरे पिताजी द्वारा लगाए पेड़ पौधों को सींचित करने हेतु क्योंकि, लाकडाउन में पेड़ पौधों का तो कोई दोष नहीं। उन्हें जीवित रखेंगें तो ही हम जीवित रह पाएंगें। मेरे पिताजी को बागवानी को बहुत शौक है। उन्होंने छत पर काफी हरियाली बना रखी है। वो कहीं भी जाने का प्लान करते हैं तो उसके पहले उन्हें उन पेड़ पौधों की चिंता सताने लगती है। कई रकम के फूल जो सुंदरता के साथ साथ औषधीय तौर पर भी उपयोग में लाए जाते हैं। मुझे सबके नाम नहीं पता इसलिए सबके विषय में बता पाना मेरे लिए मुश्किल है। फिर भी जैसे ऐलोविरा, जूही, मंदार, तुलसी तो कई प्रकार की है- श्यामा और भी बहुत सारी। खैर मैं उपर पानी डालने गई तो आज का दृश्य बड़ा मनमोहक लग रहा था। मेरा घर मेन रोड़ पर होने के कारण हमेशा गाड़ियों का शोरगुल सुनाई देता रहता है। आज अद्भुत शांति थी। कोई चहल पहल नहीं, चारों ओर सन्नाटा केवल सन्नाटा। पेड़ पौधे भी आज जैसे प्रदूषण मुक्त सांस ले रहे थे।  आज किसी को कहीं जाने की कोई जल्दी या हड़बड़ाहट नहीं थी। ना इंसान की आवाज ना ही गाड़ियों के हार्न आवाज- सब बंद। केवल सूर्य भगवान अपनी रौशनी से चारों ओर वातावरण को प्रफुल्लित कर रहे थे। केवल चिड़ियों का चहचहाना आज सुनाई दे रहा था। हर छत सुनसान विरान थी, सड़क पर भूले कोई दिख रहा था। निश्चित तौर पर लोग घरों में बैठकर भी आफिस का काम कर रहे थे। क्योंकि आज से पहले बहुत हद तक वर्क फ्राँम होम को निठल्ला ही समझा जाता था। पर डिजिटल वर्ल्ड आज सबकुछ बदल दे रहा है। आईटी क्षेत्र में काम करने वाले कई मित्र हैं मेरे जिनकी वजह से मुझे पता है कि उन्हें वैसे भी सप्ताह में एक या दो दिन वर्क फ्राँम होम की सुविधा कंपनी देती है। पर अब चार्टेड अकाउंटेट से लेकर वकील, जज भी वर्क फ्राँम होम कर रहे हैं।

इस आपातकालीन परिस्थिति में भी डाक्टर, नर्स, पुलिस, मीडिया और आवश्यक सामग्री वितरण करने वाले लोग जैसे दूध, अखबार सफाई कर्मचारी ये सभी लोग जान हथेली पर लेकर घूम रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में जो लाकडाउन का पालन कर रहे हैं वो सुरक्षित हो गए पर हमारी आपकी सहायता में तत्पर लोगों का क्या ? हम सुरक्षित हो गए देश से कोरोना निकल गया और जब हम बेफिक्र होकर बाहर निकलेंगें और इनमें से कोई संक्रमित व्यक्ति रह गया उसे पता भी नहीं चला और संक्रमण फिर फैलने लगा तो क्या होगा? मानती हूं आवश्यक वस्तुओं के बिना जीवन चलना मुश्किल है पर सैनेटाइजर के अलावा ऐसी कोई दवा या एंटीबायटिक जिसका सेवन हर कोई करे जिससे इससे पूर्णतया देश मुक्त हो। मास्क लोग देखादेखी पहन तो रहे हैं। पर ऐतियात क्या बरतना है शायद इससे वो पूर्णतया अनभिज्ञ हैं।

देश की वित्तिय हालत देखी जाय तो अनुमानत: प्रत्येक सेक्टर को हानि पहुंचने वाली है। होटल, टूरिज्म, एवीएशन, इवेंट मैनेजमेंट। इसके विपरीत अस्पताल, फार्मा, लैबोर्टरीज़, मीडिया इन सेक्टर्स को फायदा पहुंचने की उम्मीद है। पर, उस तबके का क्या -जो लोग कहीं भी कर्मचारी नहीं है जैसे तैसे अपना गुजारा करते हैं। रिक्शाचालक, डेलीबेसिस पर काम करने वाले मजदूर, जिनकी आमदनी इतनी नहीं होती कि घर बैठकर वो 21 दिनों तक दो वक्त की रोटी खा सकें। ऐसे लोगों के बारे में भी सरकार को ध्यान देना चाहिए। देश का हर नागरिक की भूख यदि सुरक्षित हो जाए तो साल में दो बार लाँकडाउन का स्वागत शायद हर नागरिक कर लेगा।


लाँकडाउन में 2020 भारत

सर्वमंगला मिश्रा

देश में कुछ परिस्थतियां जब भयावह रुप ले लेती हैं तो सरकार लाकडाउन जैसे कदम उठाती है। कोरोना का आतंक वैश्विक रुप से समूचे जनमानस पटल पर काले अंधेरे बादल की तरह छा गया है। देश को जैसे ग्रहण ही लग गया हो। इससे एक बात स्पष्ट हो जाती है कि ग्रहण कभी भी सदा सर्वदा के लिए नहीं लगता। एक निश्चित समय सीमा के उपरांत उसका अंत होता ही है अर्थात् कोरोना के कहर का भी अंत निश्चित है।आज हिन्दू नववर्ष का आगमन हुआ है। इसे व्यथा कहें या आनंद पता नहीं क्योंकि कोरोना के कारण लोग अपने दोस्तों, रिश्तेदारों से भी दूरी बनाने में परहेज नहीं कर रहे। विडियो काल और वाट्सअप पर बधाई संदेश देकर ही काम चला रहे हैं। रास्ते पर यदि आप भूले भटके निकल भी जाएं तो लगेगा कि किस अंजान रास्ते, सड़क, गली या शहर में आप पहुंच गए हैं। 24 मार्च की रात 12 बजे से लाकडाउन पूर्णतया लागू हुआ पर मैं अपने परिवार के सदस्यों के साथ जब मार्केट जाने के लिए बाहर निकली तो हमारे बिल्डिंग का दरवाजा बंद था थोड़ा अजीब लगा फिर जब मैं बाहर निकली तो सड़क सुनसान, हर घर बंद, एक दुकान तक खुली नहीं थी। फल और फूल की दुकान कुछ दूरी पर था। हम पैदल चलने को मजबूर थे क्योंकि कोई रिक्शा वाला भी नहीं था। हम आगे बढ़े तो सड़क पर एक दो लोग बैठे दिखे और कोलकाता पुलिस की वैन गुजरी, उसके पीछे एम्बूलेंस की गाड़ी और फिर सन्नाटा। सड़क पर पोस्ट लैम्प दुधिया रौशनी से भरे अकेले सड़क को निहार रहे थे। तभी एक गली से एक लड़की चलते हुए आई बिना मास्क के, बिना अपना मुंह ढके, मैं कुछ सोचती उसके पहले वो रास्ता क्रास करके आगे बढ़ गई। हम भी चुप ही थे नजारा देख रहे थे। वैसे भी मास्क पहनने के बाद कम बोलने की इच्छा होती है। तभी एक और एम्बूलेंस की गाड़ी पास की। दो पुलिस वाले घूमते भी नजर आए। सोचा कहीं मार्केट तक जाने के लिए भी मना न कर दें। खैर, ऐसा कुछ नहीं हुआ। एक टैक्सी खड़ी थी ड्राइवर नदारद पास खड़े एक आदमी से इशारे में पूछा कि क्या ये उसकी टैक्सी है...उसने तुरंत सिर हिलाया और घूम गया। हम पैदल चल ही रहे थे कि मार्केट का गेट आ गया था। वहीं एक एम्बूलेंस खड़ी थी। मार्केट के अंदर हम दाखिल हुए तो आसपास का नजारा ऐसा लगा जैसे सालों से ये बस्ती उजड़ी हुई है। दो कुत्ते दौड़ते हुए सड़क की ओर भागे पर बिना शोर। तभी सफेद ड्रेस वाले पुलिस डंडा लिए घूमते नजर आए। फलवाले की दुकान अकेली थी जो ग्राहकों का अभिनंदन कर रही थी। पर ग्राहक के नाम पर उस वक्त हमें मिलाकर दो लोग थे। जहां इस समय उसे सांस लेने की फुरसत नहीं होती थी आज वक्त कट नहीं रहा था। वो अपने मोबाइल पर गाने सुन रहा था। उसने हमें बताया कि आसपास की दुकानों को कैसे पुलिस ने जबरन बंद करवाया। मिठाई की दुकानें तो 3-4 दिन से बंद पड़ी है। दीदी आप और ले लो क्योंकि आपलोग तो 9 दिन तक उपवास में रहते हैं क्या पता फिर ये भी ना मिले। पुलिस हमें भी दुकान बंद करने को कह दे। तब हमने उसे समझाने का प्रयास किया कि फल, सब्जी और मेडिकल की दुकान हर हालत में खुली रहती है। तो फलवाला बोला- दीदी माल नहीं आएगा तो हम दुकान कैसे खोलेगा।
मोदी सरकार ने उचित व्यवस्था करने के बाद लाकडाउन लगाया है ऐसा माना जा रहा है। पर जनता तो असमंजस में ही सांस लेती है। पूर्ण भरोसा तो ऐसी आपातकाल की स्थिति गुजर जाने के बाद ही आती है। कुछ बाइक और कार सवार लोग फर्राटे से गाड़ी भगा रहे थे। इस डर से कि कहीं पुलिस पकड़ कर पूछताछ ना करे। फल तो ले लिया पर फूल की दुकान बंद थी। एक आमपत्ता, तुलसीपत्र, श्रृंगारफूल भी नहीं मिल पाया। फलवाले अपने दो लोगों को दो तरफ रिक्शा ढूंढने के लिए भेंजा पर कुछ नहीं था। अंत में फलवाले ने खुद हमारा बैग हमारे घर पहुंचाया। चलते चलते हमने कुछ लोगों को कहते सुना- ऐ रोम कोलकातार दृश्यो कोनोदिन देकी नी तो- मतलब कि कोलकाता शहर का ऐसा दृश्य तो कभी आजतक देखा नहीं। सौरभ गांगुली बीसीसीआई अध्यक्ष ने भी ट्वीटर पर कुछ तस्वीरें पोस्ट कर कुछ ऐसा ही लिखा।



  मिस्टिरियस मुम्बई  में-  सुशांत का अशांत रहस्य सर्वमंगला मिश्रा मुम्बई महानगरी मायानगरी, जहां चीजें हवा की परत की तरह बदलती हैं। सुशां...