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Saturday 8 August 2020

 

उलझी डोर और कितनी उलझेगी

कहते हैं एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है। सुशांत की जिंदगी में भी कुछ ऐसा ही नजर आ रहा है। रिया चक्रवर्ती भी सुशांत के जीवन में उसी मछली की तरह नजर आ रही हैं। जिसने सुशांत के जीवन को तबाह कर दिया। मीडिया रिपोर्टर्स देखकर ऐसा एहसास नहीं होता कि सुशांत से रिया को सचमुच प्यार था। अंकिता लोखंड़े तक उनका जीवन सही सलामत था। जैसे ही रिया उनके जीवन में आईं एक तूफान का आलम लेकर आईं।

सभी चश्मदीद जिसमें नीरज और पिठानी बता रहे हैं कि उन्होंने ही सुशांत को पंखे से लटका देखा। जाहिर सी बात है अगर एक हादसा था तो सबकी हवाईंयां उड़ जानी लाज़मी थीं। लेकिन अगर ये षडयंत्र  रचा हुआ था तो होश उड़ने की बात नहीं हो सकती। केवल अगले चरण को कैसे ठीक से पूरा करना था ऐसी सोच रही होगी। जिसमें दीपेश गुमशुदा है आजतक। रिया भी पटना पुलिस के आने के बाद गुमशुदा हो गईं थी पर प्रवर्तन निदेशालय के बुलाने पर पहुंच गईं। 9 घंटे की लम्बी पूछताछ में कुछ खास तो अभी तक बाहर नहीं निकला। कुछ सवाल हैं मेरे मन भी जो अहम हो सकते हैं-

1.       सुशांत अनार का रस और नारिल पानी के साथ केला लेकर अंदर गए और दरवाजा लाँक हो गया या कर दिया गया कहा नहीं जा सकता अबतक।

2.       जूस का ग्लास क्या सुशांत ने पूरा खत्म किया था अथवा ग्लास में पेय पदार्थ बचा हुआ था। ग्लास या कप पर उंगलियों के निशान किसके थे।

3.       नीरज और पिठानी इस बात का खुलासा क्यों नहीं कर रहे कि जब उन्होंने कमरे का लाक तोड़ा तो किस हालत में सुशांत को देखा। आंखें बाहर थी या नहीं।

4.       किसी ने ऐसा क्यों नहीं सोचा कि अस्पताल ले जाया जाय शायद वो बच जाएं। प्राथमिक उपचार अथवा सांस चल रही थी या नहीं किसी ने चेक किया कि नहीं

5.       सबसे महत्वपूर्ण बात की रिया के द्वारा रखा गया स्टाफ उसे ऐसे मौके पर फोन करके क्यों नहीं बुलाया।

6.       पोस्टमार्टम रिपोर्ट में आत्महत्या बताया गया और किसी प्रकार के जहर की पुष्टि भी नहीं की गई।

7.       सुशांत के पिता को ऐसा 25 फरवरी को क्यों लगा कि उनके बेटे की जान को खतरा है। लिखित क्यों नहीं दिए।

8.       मीतू, सुशांत की बहन क्या दिशा के बारे में जानती थी। वो सचमुच उनकी मैनेजर थी अथवा नहीं।

9.       महेश भट्ट और डाक्टर जो सुशांत का इलाज कर रहे थे दोनों से कड़ी पूछताछ हो। कारण कि उन्होंने किस कारण उस डाक्टर को रेफर किया।

10.    महेश भट्ट के दिमागी हालत की जांच भी होनी चाहिए।

11.    मीतू बताएं कि सुशांत ने 15 जून के बारे में उनसे कुछ कहा था अथा नहीं।

अब तो मुंबई पुलिस स्वयं कटघरे में खड़ी हो गई है। जांच प्रकिया पूर्णतया शक के घेरे में आ चुकी है। गुप्तेशवर पांडे, बिहार डीजीपी तो एक तरह से मुंबई पुलिस के रवैये से जैसे रो ही दिए। पर उनकी मेहनत ने दुनिया के सामने मुंबई पुलिस का सच सबके सामने ला दिया और सीबीआई के पास केस पहुंच गया। सीबीआई, एक ऐसी महान संस्था जिसके कंधों पर हजारों केस हैं। हर किसी को इस संस्था पर विश्वास है, आशा है, अपेक्षा है। हर प्रकार के हाई प्रोफाइल मामले सीबीआई के पास ही जाते हैं। एक साधारण नागरिक होने के नाते मेरा भी उतना ही विश्वास है जितना भारत के हर नागरिक का होता है। पर जिस मुंबई पुलिस के बल पर रिया सीबीआई की जां

च की मांग हाथ जोड़कर अमित शाह से कर रही थीं। क्या उनमें से किसी की पहुंच वहां तक नहीं होगी। संदेहास्पद लगता है।



इस केस के और भी कई पहलू हैं जैसे महाराष्ट्र में उद्धव सरकार को गिराना जो सोनिया गांधी यानी कांग्रेस के प्लेन में बैठी है। प्लेन लैंड करता है तो सरकार भी लैंड कर लेगी। कहीं इसमें सरकारें अपना आपसी मतभेद तो नहीं निकाल रहीं हैं। जब महाराष्ट्र में चुनाव हुए और उसके पहले से अमित शाह ने देवेंद्र फड़नवीस को ही मुख्यमंत्री के तौर पर घोषित किया था। लेकिन उद्धव के संजय राउत का अड़ियल रवैया सबने देखा और अंत में तमाम म्यूजिकल चेयर के खेल के उपरांत उद्धव ठाकरे ने सी एम की कुर्सी संभाली और भावी मुख्यमंत्री को राजनीति का पाठ पढ़ाने लगे। जिस आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने का सपना देखने वाले उद्धव ठाकरे मजबूर होकर मुख्यमंत्री बने। जाहिर सी बात है आदित्य ठाकरे के पास ना तो बालासाहेब का अनुभव था ना ही उतनी बुद्धिमता अर्थात् राजनीति में पूर्णत: नील बटे सन्नाटा। लेकिन दिशा सालियान की मौत पर कोई भी शिवसेना का सामने आकर अथवा समाना में ही क्यों नहीं कहती कि शिवसेना का कोई मंत्री शामिल नहीं है। बल्कि सामना में सुशांत की मौत को आत्महत्या घोषित कर देती है। ऐसा न्याय। क्या ऐसा न्याय करते थे बालासाहेब ठाकरे। ऐसी रणनीति है शिवसेना की। शिवसेना सिर्फ 14 फरवरी को लोगों को पकड़ कर मारना जानती है, माइकल जैकसन का विरोध करना जानती है अथवा कुछ उसूल भी हैं।

भाई भतीजावाद से शुरु हुई इस नृशंष हत्या की कहानी में बहुत सी बातें आई पर उलझकर रह गईं। जैसे शेखर कपूर, एकता कपूर, संजय लीला भंसाली करण जौहर जैसे लोगों ने अपनी फिल्मों से उसे निकाल दिया। ऐसा किसने और किसके कहने पर किया। आज इंडिया टी वी ने बताया कि एक्सेल इंटरटेनमेंट जैसा बड़ा बैनर उन्हें 15 जून को एक फिल्म के लिए साइन करने वाला था। आश्चर्य, महाआश्चर्य। इतने दिनों तक जब नेपोटिज्म की बात चली तो इस हाउस ने कोई खुलासा क्यों नहीं किया था। इतने दिनों बाद क्यों किया। खैर, जो भी हो, इसका खुलासा भी होगा। मात्र एक सनसनी पैदा करना था इस खबर के जरिए अथवा फरहान अख्तर अपनी इमेज़ बिल्डिंग के लिए ऐसी खबर फैलाई। इसके बावजूद भी सुशांत आसमान की ओर चढ़ता हुआ सितारा था। अगर इस बैनर के साथ साइन की बात गलत भी निकलती है तो भी उसे काम आज नहीं तो कल मिल ही जाता। अंकिता लोखंड़े उनकी पूर्व गर्लफ्रेंड इस बात से इत्तेफाक ही नहीं रखती कि सुशांत डिप्रेस था। अंकिता तकरीबन 2016 के बाद उनसे नहीं मिली थीं। इसलिए ऐसा नहीं कहा जा सकता कि उसके बाद उनकी जिंदगी में कौन से ऐसे मोड़ आए जहां वो खड़े हुए अथवा टूटे। किसने सहारा दिया अथवा खुद खड़े हुए। इंसान को एक पल बदल देता है तो चार साल एक लंबा अंतराल होता है।



सुशांत डिप्रेशन में था। हो सकता है नहीं भी हो सकता है। आजकल की लाइफस्टाइल ऐसी हो गई है कि कोई भी डिप्रेशन का शिकार हो सकता है। हमें भूलना नहीं चाहिए दीपिका पादूकोन की कहानी। उन्होंने खुद चीख चीख कर कहा कि कैसे वो डिप्रेशन का शिकार हो गई थीं। इस बारे में सुशांत की बहन को पता कैसे नहीं चला। दिसम्बर से दवाईयों का सिलसिला शुरु होता है यूरोप टूर से वापस आने के बाद। इस बीच उनकी बहन कभी नहीं मिलीं उनसे। कोई दवाई का जिक्र ही नहीं हुआ। उन्हें अपने भाई के बर्ताव पर संदेह नहीं हुआ। अगर उन्हें पता था तो उन्होंने अपने परिवार से इस बात का जिक्र कैसे नहीं करना उचित समझा।


जिस डाक्टर की देखरेख में इलाज चल रहा था उसके और कौन कौन से क्लाइंट हैं उनकी पहले की रिपोर्ट और सुधार अथवा वर्तमान की रिपोर्ट भी देखनी चाहिए। कहीं उसका ऐसा पेशा तो नहीं लोगों को गलत दवाईयां देकर उन्हें पागल करार कर देना, मतिभ्रम की स्थिति पैदा कर देना। जो भी सच हो मिस चक्रवर्ती फंस तो गईं हैं। सीबीआई और ईडी मकड़े के जाले हैं। अगर जांच निष्पक्ष हुई तो दूध का दूध और पानी का पानी निश्चित होगा।

इस केस में भी मीडिया की भूमिका अहम है। जेसिकालाल, दामिनी जो भी हो जनता तक पहुंचाकर न्याय के दरवाजे खटखटाती नहीं बल्कि तोड़कर अंदर घुस कर न्याय देने पर मजबूर कर देती है। निष्पक्षता हर क्षेत्र में हो तो इस चौथे स्तम्भ का कोई तोड़ नहीं। पूरे देश की निगाह इस केस पर टिकी है। न्याय में देरी मंजूर तो नहीं पर निष्पक्षता सत्यमेव जयते जरुर चाहती है।

 

 

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