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Monday 24 February 2014

            अर्ध सेंचुरी अधूरी रह गयी



-सर्वमंगला स्नेहा
  9717827056





हर क्रिकेटर का यह सपना होता है कि मैदान पर हॉफ सेंचुरी तो जड़ ही दे....पर ये मैदान लोकल था....जहां की एक तरफी जीत हासिल होने के बाद इस क्रिकेटर की नजर इंटरनैश्नल मैच पर टिक गयी...जिसके कारण इस क्रिकेटर ने लोकल मैच को तरज़ीह देनी बंद कर दी....और रुख कर लिया बिना हाफ सेंचुरी पूरे किये, बिना हाथ ऊपर कर सरेंडर किये... मैदान से रन आउट हो लिये....जी हां जिस दिन से दिल्ली विधानसभा का सत्र प्रारम्भ हुआ उसी दिन से कयास लगने शुरु हो गये थे कि केजरीवाल जी का यह पहला और आखिरी सत्र होगा....फिर, अचानक मौसम ने भी करवट ली और कोहरे के साथ ठंड की वापसी और साथ में बारिश फ्री में आ गयी और मौसम को बर्फ की गोलाबारी में तब्दील कर दिया...इधर, केजरीवाल जी ने दिल्ली के मुख्मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया....अब जमकर शरु हो चुकी है राजनीतिक गोलाबारी....कभी शब्दों की तो कभी वायदों की...हांलाकि इस बार एलेक्शन कमीशन ने खुली चेतावनी दे डाली है कि पार्टियां ऐसे वायदे जनता से ना करें जिन्हें वो पूरा न कर सके....पर चुनावी रण में कौन किसकी कितनी सुनेगा यह चुनाव के दौरान और उसके बाद समीक्षा करना उचित होगा....
दिल्ली के अब पूर्व सी एम केजरीवाल जी, जिन्होंने 49 दिन सरकार में रहने का अपना एक रिकार्ड बनाया है....साथ ही कई और रिकार्डस भी बनाये हैं...जैसे सड़क पर आन्दोलनकर्ताओं के साथ रात बीताना, मुट्ठी में कर लेने वालों के खिलाफ खड़े होकर अपनी मुट्ठी का अंदाजा करवाने वाले केजरीवाल जी कहीं न कहीं थोड़े से चूक गये....चूक गये परिस्थितियों से लड़ने में, चूक गये प्लानिंग करने में, चूक हो गयी अपने ही पार्टी के नेताओं को समझने में...वरना बिन्नी जी सामने न आ पाते...चूक हो गयी धीरज बनाये रखने में.....और चूक हो गयी हड़बड़ाहट में...प्लानिंग सही होती तो 14 फरवरी की जगह 15 फरवरी को इस्तीफा सौंपते और 49 की जगह 50 दिन की सरकार कहलाती....थोड़ा धीरज रख सोमनाथ भारती से गुफ्तगु कर लिये होते या आशुतोष जी तो भी रेलवे भवन के सामने बैठकर महिला संस्थानों का विरोध न झेलना पड़ता....दिल्ली निवासियों को बेवजह परेशानी का सामना न करना पड़ता....
कहा भी जाता है-
धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी,
आपत काल परखिअहिं चारी।
परिस्थितियां अब कुछ बदल सी रही हैं....समीकरण शायद पूरी तरह तो नहीं पर कुछ हद तक पूर्ववत हो सकता है....आप पार्टी के रण में उतरने के पहले मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच था....तभी धमाकेदार एंट्री हुई केजरीवाल जी की....जिनके आने के बाद पूरा समीकरण ही पलट सा गया था....मुकाबला त्रिकोणीय बन चुका था....पर उम्मीद कहीं न कहीं जनता की टूटी है... जनता ने केजरीवाल के कंधों पर जो दारोमदार दिया था, भारत के उज्जवल भविष्य का,भ्रष्टाचार मुक्त दिल्ली का-- वह कहीं न कहीं कमजोर पड़ गया है या हल्की दरार सी आ गयी है....य यूं कहा जाय कि सुनहरे सपनों की दुनिया से जनता की नींद खुल गयी है....नींद खुलने के बाद परिस्थितियां सोने के पूर्ववत जैसी होती हैं वैसी ही रहती हैं....बदलाव कुछ क्षणों का मानव मस्तिष्क में होता है...एक हल्की चेतना मात्र जग जाती है....मानस पटल पर एक परिवर्तन की छवि सी बन जाती है...कि काश ऐसा हो जाता। कोई घूस न मांगता, कोई हमारे एफ आई आर दर्ज करने के लिए किसी का मुंह न देखना पड़ता, किसी घायल का पहले इलाज होता बाद में कोई नाम पता या पुलिस को सूचित करता....काश...काश पर...यह काश काश ही रह गया....वही सपने दिखाने का काम केजरीवाल जी कर गये दिल्ली की जनता के साथ और कहीं न कहीं देश की जनता के साथ भी....
अब चुनावी गलियारे में हलचल कुछ स्पष्ट तो कुछ धुंधली सी दिख रही है....किसी के मन में आस तो कहीं कुछ हद तक निराशा सी पनपने लगी है...पर यह जंग ए मैदान है....यहां भावना प्रधान नहीं होती यहां कला प्रधान होती है...जिसके पास जितनी कलायें हैं वो उतना पारंगत माना जाता है...ध्यान रहे यहां हम फिल्मी कलाकार की बात नहीं कर रहे हैं....यहां भावना को भुनाने वाले और खुद में विश्वास पैदा कराने वाले को राजनीतिज्ञ कहते हैं...यह क्षेत्र राजनीति का है....
केजरीवाल के जाने से कांग्रेस के राहुल गांधी का डर जस का तस बना हुआ है....क्योंकि अगर आप के कुमार विश्वास बाजी मार लेते हैं उनके पुश्तैनीय अमेठी से तो रही सही इज्जत भी चली जायेगी....पर, सबसे बड़ा हिमालय पहाड़ जस का तस राहुल के सामने खड़ा है....मोदी नाम का पहाड़...पहले भी और अब भी इसी से खतरा बना हुआ है....मोदी और राहुल का कोई जोड़- तोड़ है ही नहीं....एक युवा राजनीतिज्ञ बच्चा तो दूसरा रण विजय और तीसरा रण छोड़....इस त्रिकोणीय मुकाबले से एक पिक्चर के प्रति जनता अपनी जिम्मेदारी के कारण कहीं न कहीं गहरी सोच में पड़ गयी है या कुछ ने अपना मन बना लिया है....तो कुछ दुविधा में हैं...
अब जो दिल्लीवासियों का हश्र होने वाला है उस बददुआ से केजरीवाल जी खुद को कैसे बचायेंगें...??अप्रैल से बिजली पर सब्सिडी खत्म हो जायेगी...और सबकुछ यथावत हो जायेगा...मतलब अब आप रात की नींद से जाग चुके हैं...सुबह उठकर फिर जीवन की कश्मकश से जूझना है....केजरीवाल जी इसे भी जनता के बीच भुनाने की कोशिश करेंगें...पर जनता ने क्या आखों पर पट्टी बांध रखी है....या इस पालिटिकल कृष्ण के पीछे दुनिया हुई मीरा जैसी दीवानी...यह दिलचस्प होगा देखना...










 अर्ध सेंचुरी अधूरी रह गयी


-    सर्वमंगला स्नेहा
हर क्रिकेटर का यह सपना होता है कि मैदान पर हॉफ सेंचुरी तो जड़ ही दे....पर ये मैदान लोकल था....जहां की एक तरफी जीत हासिल होने के बाद इस क्रिकेटर की नजर इंटरनैश्नल मैच पर टिक गयी...जिसके कारण इस क्रिकेटर ने लोकल मैच को तरज़ीह देनी बंद कर दी....और रुख कर लिया बिना हाफ सेंचुरी पूरे किये, बिना हाथ ऊपर कर सरेंडर किये... मैदान से रन आउट हो लिये....जी हां जिस दिन से दिल्ली विधानसभा का सत्र प्रारम्भ हुआ उसी दिन से कयास लगने शुरु हो गये थे कि केजरीवाल जी का यह पहला और आखिरी सत्र होगा....फिर, अचानक मौसम ने भी करवट ली और कोहरे के साथ ठंड की वापसी और साथ में बारिश फ्री में आ गयी और मौसम को बर्फ की गोलाबारी में तब्दील कर दिया...इधर, केजरीवाल जी ने दिल्ली के मुख्मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया....अब जमकर शरु हो चुकी है राजनीतिक गोलाबारी....कभी शब्दों की तो कभी वायदों की...हांलाकि इस बार एलेक्शन कमीशन ने खुली चेतावनी दे डाली है कि पार्टियां ऐसे वायदे जनता से ना करें जिन्हें वो पूरा न कर सके....पर चुनावी रण में कौन किसकी कितनी सुनेगा यह चुनाव के दौरान और उसके बाद समीक्षा करना उचित होगा....
दिल्ली के अब पूर्व सी एम केजरीवाल जी, जिन्होंने 49 दिन सरकार में रहने का अपना एक रिकार्ड बनाया है....साथ ही कई और रिकार्डस भी बनाये हैं...जैसे सड़क पर आन्दोलनकर्ताओं के साथ रात बीताना, मुट्ठी में कर लेने वालों के खिलाफ खड़े होकर अपनी मुट्ठी का अंदाजा करवाने वाले केजरीवाल जी कहीं न कहीं थोड़े से चूक गये....चूक गये परिस्थितियों से लड़ने में, चूक गये प्लानिंग करने में, चूक हो गयी अपने ही पार्टी के नेताओं को समझने में...वरना बिन्नी जी सामने न आ पाते...चूक हो गयी धीरज बनाये रखने में.....और चूक हो गयी हड़बड़ाहट में...प्लानिंग सही होती तो 14 फरवरी की जगह 15 फरवरी को इस्तीफा सौंपते और 49 की जगह 50 दिन की सरकार कहलाती....थोड़ा धीरज रख सोमनाथ भारती से गुफ्तगु कर लिये होते या आशुतोष जी तो भी रेलवे भवन के सामने बैठकर महिला संस्थानों का विरोध न झेलना पड़ता....दिल्ली निवासियों को बेवजह परेशानी का सामना न करना पड़ता....
कहा भी जाता है-
धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी,
आपत काल परखिअहिं चारी।
परिस्थितियां अब कुछ बदल सी रही हैं....समीकरण शायद पूरी तरह तो नहीं पर कुछ हद तक पूर्ववत हो सकता है....आप पार्टी के रण में उतरने के पहले मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच था....तभी धमाकेदार एंट्री हुई केजरीवाल जी की....जिनके आने के बाद पूरा समीकरण ही पलट सा गया था....मुकाबला त्रिकोणीय बन चुका था....पर उम्मीद कहीं न कहीं जनता की टूटी है... जनता ने केजरीवाल के कंधों पर जो दारोमदार दिया था, भारत के उज्जवल भविष्य का,भ्रष्टाचार मुक्त दिल्ली का-- वह कहीं न कहीं कमजोर पड़ गया है या हल्की दरार सी आ गयी है....य यूं कहा जाय कि सुनहरे सपनों की दुनिया से जनता की नींद खुल गयी है....नींद खुलने के बाद परिस्थितियां सोने के पूर्ववत जैसी होती हैं वैसी ही रहती हैं....बदलाव कुछ क्षणों का मानव मस्तिष्क में होता है...एक हल्की चेतना मात्र जग जाती है....मानस पटल पर एक परिवर्तन की छवि सी बन जाती है...कि काश ऐसा हो जाता। कोई घूस न मांगता, कोई हमारे एफ आई आर दर्ज करने के लिए किसी का मुंह न देखना पड़ता, किसी घायल का पहले इलाज होता बाद में कोई नाम पता या पुलिस को सूचित करता....काश...काश पर...यह काश काश ही रह गया....वही सपने दिखाने का काम केजरीवाल जी कर गये दिल्ली की जनता के साथ और कहीं न कहीं देश की जनता के साथ भी....
अब चुनावी गलियारे में हलचल कुछ स्पष्ट तो कुछ धुंधली सी दिख रही है....किसी के मन में आस तो कहीं कुछ हद तक निराशा सी पनपने लगी है...पर यह जंग ए मैदान है....यहां भावना प्रधान नहीं होती यहां कला प्रधान होती है...जिसके पास जितनी कलायें हैं वो उतना पारंगत माना जाता है...ध्यान रहे यहां हम फिल्मी कलाकार की बात नहीं कर रहे हैं....यहां भावना को भुनाने वाले और खुद में विश्वास पैदा कराने वाले को राजनीतिज्ञ कहते हैं...यह क्षेत्र राजनीति का है....
केजरीवाल के जाने से कांग्रेस के राहुल गांधी का डर जस का तस बना हुआ है....क्योंकि अगर आप के कुमार विश्वास बाजी मार लेते हैं उनके पुश्तैनीय अमेठी से तो रही सही इज्जत भी चली जायेगी....पर, सबसे बड़ा हिमालय पहाड़ जस का तस राहुल के सामने खड़ा है....मोदी नाम का पहाड़...पहले भी और अब भी इसी से खतरा बना हुआ है....मोदी और राहुल का कोई जोड़- तोड़ है ही नहीं....एक युवा राजनीतिज्ञ बच्चा तो दूसरा रण विजय और तीसरा रण छोड़....इस त्रिकोणीय मुकाबले से एक पिक्चर के प्रति जनता अपनी जिम्मेदारी के कारण कहीं न कहीं गहरी सोच में पड़ गयी है या कुछ ने अपना मन बना लिया है....तो कुछ दुविधा में हैं...
अब जो दिल्लीवासियों का हश्र होने वाला है उस बददुआ से केजरीवाल जी खुद को कैसे बचायेंगें...??अप्रैल से बिजली पर सब्सिडी खत्म हो जायेगी...और सबकुछ यथावत हो जायेगा...मतलब अब आप रात की नींद से जाग चुके हैं...सुबह उठकर फिर जीवन की कश्मकश से जूझना है....केजरीवाल जी इसे भी जनता के बीच भुनाने की कोशिश करेंगें...पर जनता ने क्या आखों पर पट्टी बांध रखी है....या इस पालिटिकल कृष्ण के पीछे दुनिया हुई मीरा जैसी दीवानी...यह दिलचस्प होगा देखना...




















       आम का सीजन कितना लम्बा...???

-सर्वमंगला मिश्राpassport pic.jpg
9717827056


साल 2014 बहुत मायनों में महत्तवपूर्ण है...लोकसभा चुनाव, जिसका असर अगले साल होने वाले कई राज्यों के विधानसभा चुनावों पर पड़ेगा...इसलिए पश्चिम बंगाल और बिहार जैसे राज्य अपना दमखम लगायेंगें...ताकि राज्यों में उनकी धाक बनी रहे....ध्यान देने वाली बात है कि ममता दीदी ने प. बंगाल में अभी अपनी पहली पारी पूरी नहीं की है....इसलिए वर्चस्व की लड़ाई उनके लिए खासी मायने रखती है....34 वर्षों के उपरांत हाथ आयी सत्ता को यूं ममता दीदी नहीं गवां सकेंगी....जिसके लिए उन्होनें बंगाल की आबो हवा बदल दी उस हवा के रुख का रिमोट दीदी अब अपने हाथ में रखना चाहती हैं....उधर दोहरा शतक लगाकर हेट्रिक की तैयारी में जुटे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पटखनी देने की तैयारी में जुटे लालू प्रसाद यादव कांग्रेस से जोड़- तोड़ कर चुके हैं....तो नीतीश कुमार तिमुहाने पर खड़े नजर आ रहे हैं....साल की अमूमन सबसे बड़ी राजनैतिक लड़ाई जो आप ने छेड़ी है...उससे चुनावी मशाल अब धधकने लगी है....आलिशान जनसभायें और उनमें टिकट लेकर एंट्री करते लोगों की कहानियों ने भले बीजेपी के घोषित प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी को लोकप्रियता की मार्केटिंग स्टंट स्ट्रैटेजी के जरिये कुछ सीढियां ही चढाई थीं, मोदी लोकप्रियता की चादर अभी ठीक से ओढ़ ही रहे थे कि दिल्ली की सत्ता में आकर केजरीवाल ने नये युग का आगाज सा कर दिया....जहां नेता, मंत्री की नहीं जनता की सरकार है ....यह कहकर मरी हुई आशा में जैसे किसी ने पेट्रोल डालकर माचिस की तीली फेंक दी हो...जिससे नया पैंतरा नाकारा सा साबित होता दिखने लगा... क्योंकि अरविंद केजरीवाल ने शंखनाद कर युद्ध का समय सुनिश्चित वक्त से पहले ही घोषत कर दिया....दिल्ली की जनता का दिल जीतकर केन्द्र की राजधानी की गद्दी पर-“ साडडा हक इत्थे रख”- कहकर ही नहीं करके भी दिखा दिया है....पर, सवाल उठता है कि क्या यही साड्डा हक दिलाने में पूरे देश की जनता उनकी उतनी ही मदद करेगी जितनी दिल्लीवासियों ने की....???
उधर कई राज्यों में धुआंधार औंधे मुंह गिरने के बाद कांग्रेस और सोनिया के इकलौते वारिस राहुल गांधी जिनकी पार्टी के भीतर और बाहर कभी खुशी कभी गम का शो जनता के सामने आता जाता रहता है....कभी लोग राहुल की भावनात्मक स्पीच सुनकर तारीफ के पुल बांध देते हैं तो कभी आर्डिनेंस फाड़कर फेंकने को बचकना और बेवकूफी भरा कदम बताकर उन्हें हाशिये पर लाकर खड़ा कर देते हैं...कांग्रेस की नीतियों से त्रस्त आम जनता 360 डिग्री घुमकर हर पार्टी थियेटर में अलग- अलग ड्रामा देखती है....जमाना काफी अडवांस हो गया है तो नुक्कड़ नाटक और घूम –घूमकर अपनी कला का मंचन करने वाले नेता भी नजर आ जाते हैं....जनता समझदार है तो कहीं न कहीं भ्रमजाल में भी फंसी नजर आती है...क्या करे कहां जाये जनता....??नये बर्तनों की चमक आपस में टकराने से एक स्पर्धा तय हो जाती है...जिससे आपसी फूट कहीं न कहीं जन्म ले चुकी होती है....ऐसे में पार्टी पर विश्वसनीयता का सवाल मुंह बाये खड़ा हो गया है....कांग्रेस, बीजेपी जैसी पार्टियां तो चिंतन शिविर लगाती हैं पर केजरीवाल के पास अब उसका समय भी नहीं है....क्योंकि बच्चा जब छोटी उम्र में काफी लम्बा हो जाये तो दिखता तो  लम्बा है पर उसकी समझ और पकड़ आम बच्चों की तरह ही होती है...जिससे कुछ लोगों को धोखा हो जाता है....उसके बड़प्पन का....फिर ये तो इतने बड़े देश का सवाल है....साथ ही अराजकता, भुखमरी, मंहगाई और अनियमितताओं से थकी जिन्दगी का काफिला किसके कंधों पर सिर रखकर रोये....ऐसे कठिन समय में एक चमत्कारी विकल्प के तौर पर उभरी आम आदमी पार्टी कितनी मजबूती से अपने कदम कितने देर तक टिका पायेगी....इसका फैसला जनता उनकी नीतियों और कार्यशैली को देखते हुए ही कर पायेगी....सर्वे, एक्जिट पोल चाहे जो भी दिखायें पर जनता के मानसिक आंकड़े और यथार्थ में जमीन आसमान का फर्क दिख जाता है....
एक और अबूझ पहेली है आप के लिए –यूपी...दिल्ली से सटे नोएडा में जहां आप की चमत्कारी जीत की विरदावली पढी जा रही है वहीं दूसरे शहरों में अलग अलग पार्टियों की गूंज है...जहां बीएसपी और सपा दहाड़ कर अपने एकाधिकार की लड़ाई में केजरीवाल को तुच्छ प्राणी समझकर दौड़ से अलग करने को बेताब हैं ..शतरंज की ये बिसात यूपी में अगर सीधी पड़ी तो ये पासा बीजेपी और कांग्रेस के लिए वरदान साबित हो सकता है....क्योंकि क्षेत्रीय पार्टियों को झाड़ू की आवाज कहीं न कहीं विचलित जरुर कर रही है....बीजेपी इसबार कांग्रेस को सत्ता से दूर रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है....हर पार्टी अपनी शाख हिलते हुए खौफ से परे सिमटने का प्रयास तो कर रही है... लेकिन आंख बंद कर लेने से दिन में रात नहीं हो जाती...

बेबाक, बेखौफ केजरीवाल खट्टे मीठे आम हैं, तो उनकी सेना कच्चे पक्के बीज हैं....पर अब परिस्थतियों से जुझने वाले केजरीवाल को आत्ममंथन की आवश्यकता आन पड़ी है...पर, आत्मचिंतन का वक्त अब रहा नहीं...करो या मरो की परिस्थिति सामने है....अब तो टी वी चैनलों पर सर्वे भी अलग बयान कर रहे हैं....कमल के खिलने का सीज़न आ गया है तो हाथ अब हाथ को मलने का और झाड़ू की जगह वैक्यूम क्लिनर ने ले ली है...सर्वे जो चैनलों पर आ रहे हैं उससे कुछ राहत की सांस सभी पार्टियां ले पा रही हैं...क्योंकि आप की सरकार ने दिल्ली में खुद को साबित न कर पाने की चूक जरुर हो गयी है चाहे अनचाहे में....      


     अन्ना हजारे पालिटिकल गुरु हैं अरविंद केजरीवाल के

-Sarvamangala Mishra
9717827056




साधारण व्यक्तित्व वाले अन्ना हजारे जिनका जन्म 15 जून 1937 को किसान परिवार में हुआ था....परिवार पर कष्टों का बोझ देखकर वे दादर स्टेशन के बाहर एक फूल बेचनेवाले की दुकान में 40 रुपये के वेतन पर काम करने लगे। इसके बाद उन्होंने फूलों की अपनी दुकान खोल ली और अपने दो भाइयों को भी रालेगन से बुला लिया। वर्ष १९६२ में भारत-चीन युद्ध के बाद सरकार की युवाओं से सेना में शामिल होने की अपील पर अन्ना १९६३ में सेना की मराठा रेजीमेंट में ड्राइवर के रूप में भर्ती हो गए। अन्ना की पहली नियुक्ति पंजाब में हुई....१९६५ में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अन्ना हज़ारे खेमकरण सीमा पर नियुक्त थे... १२ नवंबर १९६५ को चौकी पर पाकिस्तानी हवाई बमबारी में वहां तैनात सारे सैनिक मारे गए.....इस घटना ने अन्ना के जीवन को सदा के लिए बदल दिया। इसके बाद उन्होंने सेना में १३ और वर्षों तक काम किया। उनकी तैनाती मुंबई और कश्मीर में भी हुई। १९७५ में जम्मू में तैनाती के दौरान सेना में सेवा के १५ वर्ष पूरे होने पर उन्होंने स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति ले ली। वे पास के गाँव रालेगन सिद्धि में रहने लगे और इसी गाँव को उन्होने अपनी सामाजिक कर्मस्थली बनाकर समाज सेवा में जुट गए ।
सीधी छवि वाले इस व्यक्ति ने रालेगन सिद्धि में लोगों को शराब से मुक्त करने का बीड़ा उठाकर एक परिवर्तन की लहर जो दौड़ाई....वो लहर रामलीला मैदान में 5 अप्रैल 2011 में पूरे देश ने देखा....उनका जूनून, उनका देश प्रेम, जहां किरण बेदी, प्रशांत भूषण और केजरीवाल की धूम रही...छवि निखरी केजरीवाल की....केन्द्र की सरकार ने जब आनाकानी की तब यूपीए की सरकार ने जैसे तैसे एक समिति बनाकर संभावित खतरे को टाला और १६ अगस्त तक  संसद में लोकपाल विधेयक पास कराने की बात स्वीकार कर ली
संसद द्वारा अन्ना की तीन शर्तों पर सहमती का प्रस्ताव पास करने के बाद २८ अगस्त को अन्ना ने अपना अनशन स्थगित करने की घोषणा की।
पर 16 अगस्त 2012 को अन्ना की गिरफ्तारी से पूरे देश में कोलाहल मच गया...जेल भरो आन्दोलन...से देश की सत्ता हिलने सी लगी.....3 दिन बाद रिहा हुए अन्ना पर आन्दोलन देशव्यापी चलता रहा.... पटना में गाँधी मैदान के पास कारगिल चौक से लेकर डाकबंगला चौराहा और बेली रोड तक अलग-अलग जत्थों में लोग सड़कों पर निकले। जिनमें रोष था किंतु वे हिंसा या तोड़फोड़ जैसी कार्रवाई नहीं कर रहे थे। उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में उच्च न्यायालय के अधिवक्ताओं ने हड़ताल कर दिया। जयपुर में अन्ना के समर्थन में उद्योग मैदान में तीन दिनों का क्रमिक अनशन करने का निर्णय लिया। चंडीगढ़, कोलकाता, बिहार, पंजाब और हरियाणा में विभिन्न हिस्सों उनकी लड़ाई जारी रहेगी। असली अनशन पूरी लड़ाई जीतने के बाद टूटेगा। लड़ाई पूरी होने तक पूरे देश में घूमूंगा। उन्हें विश्वास था कि उनके माध्यम से सामने लाए गए जनता के मुद्दों से संसद इंकार नहीं करेगी। अन्ना ने कहा - कि बाबा साहेब अम्बेडकर के बनाए संविधान के तहत इस देश में परिवर्तन लाना है। हम भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण कर सकते हैं। लम्बी लड़ाई आगे है। किसानों का सवाल है, मजदूरों का सवाल है.... पर्यावरण, पानी, तेल जैसे तमाम मुद्दे हैं। गरीब बच्चों की शिक्षा का सवाल है। हमें चुनाव सुधार भी करने हैं। पूरी व्यवस्था बदलनी है। हमारा असली अनशन इस पूरे बदलाव के बाद ही टूटेगा.... आज देश में इतना बड़ा आंदोलन हुआ, लेकिन पूरी तरह अहिंसक...दुनिया के सामने अन्ना ने एक मिसाल रखी ...कि आंदोलन कैसे करना चाहिए...लोगों को गांधी की याद पल पल आती रही....और अन्ना का पथ उनके साफ कुर्ते की तरह चमकता और प्रशस्त होता गया....
अन्ना ने शेयर किया मंच-
अन्ना अपने अनशन के द्वारा देश की भावना को निचोड़ लिये और भावनात्मक रुप से अफने करोड़ों शिष्य बना लिये...वहीं आमिर खान, जनरल वी.के सिंह जैसी हस्तियों का साथ पाकर अन्ना की गरिमा में चार चांद इमानदारी के लगते गये....किरण बेदी ने अपना रास्ता तलाशा और हारकर अन्ना को छोड़ गयीं....पर, किरण बेदी का रुख पार्टी बनाने के बाद धीरे –धीरे साफ हो रहा था...कि वो अरविंद के इस फैसले से कहीं न कहीं आहत हैं....

केजरीवाल ने बनायी पार्टी-
2012, 26 नवम्बर को अन्ना के बिना समर्थन के केजरीवाल ने एक पार्टी  का गठन किया पर, गुरुजी ने खुद को बिल्कुल दूर रखा...कहा किसी भी पॉलिटिकल पार्टी से कोई मतलब नहीं....

गुरु –शिष्य में अनबन-
क्या गुरु और शिष्य में अनबन हो गयी....कई बार ऐसी खबरें आयी पार्टी गठन पर, फन्ड को लेकर, फन्ड के दुरुपयोग को लेकर....दरार बड़ी नजर आयी....कभी न भर पाने वाली....
पर, शिष्य कौन और गुरु कौन....बड़ा सवाल देश की जनता के मन में कौतुहल पैदा करता है....अन्ना ने कभी भी स्पष्ट तौर पर केजरीवाल का विरोध न कर ढंके –तुपे शब्दों में किया ...जनता इस व्यवहार से कहीं न कहीं कन्फ्यूज रही कि आखिरकार माजरा क्या है....????


10 दिसम्बर 2013 अन्ना हजारे ने एक बार फिर अनशन प्रारम्भ किया...तो गोपाल राय को उनके गुस्से का सामना करना पड़ा....जिसके लिए अगले ही दिन केजरीवाल रालेगण सिद्धी रवाना हो गये अन्ना को मनाने.....क्या मनाना एक बहाना था...या आगे की रणनीति को पाक-साफ बनाना था.....

राहुल से बढ़ी घनिष्ठता-
राहुल गांधी ने अन्ना को अपना बनाने की कोशिश की तो अन्ना ने तिलक लगाकर उनका स्वागत किया....और अपने शिष्य केजरीवाल को दरकिनार कर दिया....और देश के सामने एक नयी स्थिति खड़ी कर दी....बिना जनलोकपाल को पढ़े ही अन्ना राहुल की बात मानकर अनशन तोड़ दिये और केजरीवाल ने कहा- अन्ना को भुलवा दिया गया....उन्हें पता ही नहीं कि कांग्रेस उनके साथ धोखा कर रही है.....
"We are committed to provide a strong Lokpal system to the country," Rahul Gandhi
"I welcome your commitment. I request you to include the recommendation of the select committee in the bill and include any other points to make the Lokpal bill strong," -Anna Hazare 

28 दिसम्बर 2013 को केजरीवाल ने दिल्ली के सीएम के रुप में रामलीला मैदान में शपथ ली....अन्ना उपस्थित नहीं हुए...बीमारी का बहाना बनाकर.....पर बधाई देकर अपनी गरिमा पर आंच नहीं आने दी.....

क्या अन्ना और केजरीवाल सचमुच एक दूसरे के पूरक हैं या छुपी हुई राजनीति कर रहे हैं और देश की आंखों में धूल झोंक रहे हैं.....आखिर अन्ना हैं किसके फेवर में....??? केजरीवाल, राहुल गांधी, किरण बेदी या सिर्फ जनलोकपाल बिल....???? समय –समय पर अपनी रणनीति बदलने वाले अन्ना क्या कहीं भटक गये हैं...और राजनीति का रंग उन पर चढ़ गया है.....मीडिया का चस्का लग गया है...????? देश को भ्रष्टाचार से मुक्त कराने का बीड़ा शायद अन्ना हजारे जी कहीं न कहीं दिमाग के सब –कांश्शस मांइड में चला गया है....अन्ना छुपे छुपाये तौर पर केजरीवाल को छोड़कर किसी को भी अपने साथ जोड़े रखने में सक्षम साबित नहीं हुए....किरण बेदी ने भी भाजपा का रुख कर लिया....

अन्ना ने ममता के साथ-

अपने शिष्य को भूलकर अब प्रचारक बन गये हैं...अन्ना...उन्होनें ममता दीदी के कैंम्पेन के लिए तैयार हो गये...पर एक शर्त भी रखी है- 17 बिन्दुओं के ऐजेन्डे पर सहमति दोनों तरफ से बनती है तो आप के लिए किनारा कसते अन्ना अब टीएमसी के लिए प्रचार करेंगे....इसका क्या मतलब है भाई...एक कहावत आपने भी सुनी होगी- गुड़ खाये गुलगुला से परहेज.....

आखिरकार, केजरीवाल के इस्तीफे के बाद अन्ना ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया.....यही अन्ना केजरीवाल के खिलाफ भी बोलते हैं और बेटे की तरह पक्ष भी लेते हैं.....और खुलकर स्वीकार भी नहीं करते कि केजरीवाल उनके पक्के शिष्य हैं......अन्ना कहीं केजरीवाल के लिए लोकसभा चुनाव की पृष्ठभूमि में जाने या अनजाने कहीं गढ्ढा तो नहीं खोद दिये...या नया मैदान रंगने की कोशिश कर रहे हैं...जहां चित भी मेरी और पट भी ....



              बंटवारा कितना फायदेमंद....??

 
-          सर्वमंगला मिश्रा
-          9717827056

हम सब ने स्कूलों में पढा है कि सूर्य आग का एक गोला था...जब ये गोला धीरे धीरे ठंडा हुआ और पृथ्वी का निर्माण हुआ...फिर आहिस्ता आहिस्ता विश्व अनेक देशों में बंट गया ....देश प्रदेशों में और इस तरह न जाने कितने भागों में बंटता चला गया....जाहिर सी बात है... 510,072,000 km² में फैली धरती  को संभल पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है....फलस्वरुप अमेरिका, ब्रिटेन, कोरिया, इटली अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, जापान, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से भी आगे बंट गया....देशों की उन्नति हुई....मंजर ऐसा कि हुआ कि हर देश के विकास की आज अपनी एक कहानी है....आंकड़े ,सर्वे, प्रति वर्ष आंकड़ों के ग्राफ निकलकर आते हैं....खैर, हमारा मुद्दा यह नहीं हैं....कि किस देश ने अब तक कितनी विकास की सिढियां चढ़ी हैं....हमारा मसला है कि भारत में कितने राज्यों का बंटवारा होगा...पहले देश में 25 राज्य थे...फिर सन् 2000 में इज़ाफा हुआ और संख्या 28 की हो गयी...अब इसी तरह छोटे –छोटे राज्यों की मांग दिन पर दिन बढती ही जा रही है...देश व्यापी आन्दोलन, हिंसा, न जाने कितने अनशन करने के बाद 2000 में तीन और राज्यों का जन्म हो गया....बिहार, यूपी और छत्तीसगढ़ विभक्त हो गये....बंटवारा होने के मापदण्ड पहले भाषा, भौगोलिक अवस्था और खान- पान के आधार पर बंटवारा होता था....पर, अब जो राज्य बंट रहे हैं उनका मापदंड थोड़ा बदल सा गया है....बदल गया है नजरिया, मानसिकता...देश में अब अमूमन हर जाति अपने आपको विकास के उस पायदान पर खड़ी करना चाहती है...विकसित होना चाहती है...तेलंगाना में तेलगु के विरोध में तेलगु खड़ी होकर न्याय मांगी...अलगाववाद के लिए विचलित यह खून आज बंटवारे की धारा से देश के इतिहास में एक नया अध्याय लिख चुका है.....अपने मार्ग स्वयं प्रशस्त करना चाहती है....अपने विकास की गौरव गाथा खुद लिखना चाहती है...
19 फरवरी 2014 को देश ने देखा कि सबके टेलीविजन काले हो गये तकरीबन 3 बजे दोपहर से ...संसद की कार्रवायी देश की जनता नहीं देख सकी...बैल्क आउट हो गया या कर दिया गया....इस बहस पर फिलहाल जाना व्यर्थ है...क्योंकि देश में चुनाव का सूरज 90 डिग्री पर चमक रहा है...इसलिए सरगर्मी जोरों पर है...जहां क्या हो रहा है किसी की भी समझ में शायद नहीं आ रहा है....आरोप-प्रत्यारोपों के बीच युद्ध का घमासान प्रारम्भ हो चुका है....जनता के सामने जाना है...तो कुछ तो होना चाहिए बोलने के लिए ना....इसलिए हर पार्टी श्रेय लेने के होड़ में एक दूसरे का साथ देने से नहीं चूक रही....केजरीवाल को दिल्ली में सरकार बनाने के लिए कांग्रेस ने बिना शर्त के समर्थन देने को तैयार हो गयी....बीजेपी ने कांग्रेस के आगे हाथ बढाकर तेलंगाना बिल को पास करवाकर अपने जीत का ढोल पीटने की तैयारी कर ली है....जहां बीजेपी, कांग्रेस के लिए अछूत थी पर, चुनाव के माहौल में सब एक हैं...एकता अखण्डता की नयी कहानी गढ़ी जा रही है.....काश!!! ऐसी भावना निरन्तर हर खून में बहती तो आज इतने भ्रष्टाचार, घोटाले और इतनी गिरी हुई राजनीति की शक्ल देशवासियों को न देखनी पड़ती.....पर, आज देश की राजनीति इतनी पंगु न होती...केजरीवाल जैसे लोगों को शायद जन्म ही नहीं लेना पड़ता....क्योंकि आन्दोलन तभी जन्म लेता है जब मस्तिष्क में खून उबल जाता है...भावना का बी पी हाई हो जाता है....और आस्था का विश्वास टूट जाता है.....

देश ने देखा कि अलग होने के बाद 3 राज्यों ने कितना विकास किया....अपने जन्मभूमि तक को पीछे छोड़ दिया....प्लानिंग कमिशन के मुताबिक कागजों पर विकास के आंकड़े नजर आते हैं....बहुत हद तक विकास हुआ भी है...इससे मुकरना संभव नहीं....पर क्या हिंसात्मक विभाजन एक पैटर्न बन गया है.....??? तेंलंगाना को विभक्त होने के उपरांत कितनी वरीयता मिलेगी....और संघर्ष कड़ा हो गया है....राजधानी हैदराबाद केन्द्र और जद्दोजहद का आकर्षण पूरे देश के लिए बना रहेगा....जिन लोगों ने अपनों के बीच जिल्लत झेली है...उन्हें शांति और शूकून का एहसास हुआ है तो अपनों से बिछड़ने का गम, दहशत और खौफ मन में घर कर चुका है....पर सच्चाई यह है कि तेलंगाना राज्य जन्म ले चुका है....जैसे –तैसे 19 फरवरी को संसद में तेलंगाना के लिए लम्बी लड़ाई लड़ने वाले, जगन रेड्डी, किरन राव रेड्डी की निराशा साफ झलकी और सी एम पद से इस्तीफा भी दे डाला....उधर बिहार के मुख्यमंत्री की नींद फिर खुल गयी है....बिहार को स्पेशल स्टेटस के दर्जे की लड़ाई लड़ रहे नीतीश कुमार जी को चुनाव का अपना अहम मुद्दा भुनाने की याद आ गयी  है....एक लम्बे अरसे से केन्द्र से चल रही लड़ाई में अब तनातनी का माहौल सा हो गया है....अब चुनावी घोड़े चेतक की स्पीड से दौड़ने लगे हैं....तेंलंगाना के बाद बिहार को स्पेशल स्टेटस का दर्जा दिलाना चुनाव की इस घड़ी में आन, बान और शान का मसला बन गया है...इसीसे बिहार के मुख्यमंत्री का सिर गर्व से ऊंचा होगा...और एक अहम उपलब्धि भी...जो लालू यादव के सामने गरजने का जोरदार मौका देगी....इस मौके को चूक जाने का मतलब है कि चुनाव में बिहारवासियों के मुंह पर धोखेबाजी की चपत...फलस्वरुप, कुर्सी की दावेदारी में सेंध लगने की आशंका....जो नीतीश बाबू झेलना नहीं चाहते...16वीं लोकसभा बड़ी असमंजस भरी डगर पर चल निकली है....राह में कांटों से ज्यादा कुंए और खाइयां हैं...उन्हें पार करना इस बार काफी कठिन होगा...इस बार फार्मूला वन रेस के तर्ज पर चुनाव होना था....जिसकी शुरुआत केजरीवाल ने दिल्ली में रामलीला मैदान में शपथ लेकर की तो उसका अंत विधानसभा में कर दिया....पर चुनाव की प्रतियोगिता खत्म नहीं हुई है...पर, पिक्चर अभी बाकी है दोस्त!!!




Tuesday 4 February 2014



               केजरीवाल और अरविंद केजरीवाल

 


केजरीवाल दिल्ली के सी एम हैं..उन्हें अपने पद और गरिमा का ध्यान रखना चाहिए.....जी, ये बयान है शिंदे साहब का....जिन्होंने केजरीवाल को एक अनौपचारिक हिदायद दी और साथ ही अपने बुजुर्गियत का परिचय भी करवाया है....ऐसा शायद पहली बार हुआ है कि एक मुख्यमंत्री सड़क पर उतरकर जनता के साथ आन्दोलन किया..... आन्दोलन करना बुरी बात नहीं और इससे जनता का समर्थन और विश्वास अपने लीडर के प्रति बढ़ जाता है...कि उसका नेतृत्वकर्ता आज भी उसी तर्ज पर काम कर रहा है और उनसे भावनात्मक तौर पर जुड़ा हुआ है....एक नेता के तौर पर ये संतोषजनक बात होती है.....सवाल अब ये उठता है कि केजरीवाल का सड़क पर उतरना कितना जायज था....इसके दो पहलू दिखते हैं...पहला- दिल्ली पुलिस सरकार के अधीन क्यों नहीं है....दूसरा और बहुत अहम प्रश्न कि क्या मंत्री की बात पुलिस को बिना किसी सवाल के आदेश का पालन करना चाहिए....
पुलिस स्वछन्द रहे या सरकार के अधीन.....अगर दिल्ली पुलिस सरकार के अधीन नहीं है तो किसके अधीन है...
सेंट्रल....तो वर्दियों पर डी की जगह सी लिखना चाहिए....वैसे आज तक मंत्रियों और नेताओं के घुसपैठ के कारण ही पुलिस तंत्र की दशा इतनी बिगड़ी हुई है....हां याद आया जनरल डायर- जलियांनवाला बाग, जिसमें एक आदेश फायर पर न जाने कितनी मौतें हुई थीं.....जनरल डायर तलब हुए थे अंग्रेजी हूकूमत के सामने कि ऐसा उन्होनें किसके आदेश पर किया.....पुलिस तंत्र उस जमाने में कितना कठोर और शासनप्रिय होने के बावजूद जलियावाला बाग हत्याकाण्ड इतिहास के पन्नों में लाल स्याही से लिखा गया....16 दिसम्बर 2012 के शर्मनाक व घृणित हादसे के बाद दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का बयान था दिल्ली पुलिस हमारी सरकार के अधीन नहीं है....इसका क्या मतलब निकाला जाय कि राज्य की सुरक्षा की जम्मेवारी किसके कंधों पर है....फिर होम मिनिस्ट्री में हो क्या रहा है....क्या विभागों का वर्गीकरण और नामकरण मात्र दिखावा है झांसा है... इन विभागों का गठन सिर्फ जनता को धोखा देने के लिए  किया जाता है ....जनता के पैसों का जनता के नाम पर दुरुपयोग...तो नेतृत्व की कमान जनता के हाथों में होनी चाहिए ना कि लीडरों के हाथ.....सभी लीडर्स की कार्यक्षमता और सोच समान नहीं होती...सोमनाथ को एक बार तलब कर मामला समझने की जरुरत नहीं समझी केजरीवाल जी ने.....धरने के बाद पुलिस वालों को छानबीन होने तक छुट्टी पर भेंज दिया गया...क्या इसे जमीन से जुड़े और जनता की आवाज बनने वाले केजरीवाल जी का अहंकार समझा जाय....जिसके लिए उन्होंने दिल्ली की जनता को बेवजह परेशानी का सामना करवाया.....आम से खास बन चुके केजरीवाल जी क्या जनता और उसकी जरुरतों से ऊपर उठ चुके हैं और अब उन्हें फिक्र है तो सिर्फ अपने और अपने मंत्रीमंडल की...जिसके मान में हुई चूक का बदला रेलवे भवन के सामने दिया गया धरना था...पर, जनता के शब्दों का सम्मान करने वाले केजरीवाल जी ने इस बार इस धरने को प्रारम्भ या अंत करने की अनुमति ली??????? केजरीवाल ने कमिश्नर को अपने मुख्यमंत्री होने का एहसास दिलाने की भी कोशिश की और कहा –कमिश्नर को मैं देख लूंगा....इसपर बुजुर्ग और अनुभवी कांग्रेसी नेता और गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने केजरीवाल को उनके पद और गरिमा की याद दिलायी...क्योंकि आनंदोलनकर्ता से मुख्यमंत्री रातोंरात बन जाने से हड़बड़ाहट में शायद केजरीवाल जी भूल गये हों कि वे अब दिल्ली जैसे राज्य के मुख्यमंत्री पद को शोभायमान कर रहे हैं.....जिसतरह अटलबिहारी जी संसद में बोलते- बोलते भूल गये संसद में और बोल गये प्रधानमंत्री जी...जबकि वो उस वक्त स्वयं प्रधानमंत्री थे.....अनुभवी राजनीति के विशारद इसे बचपना या ओछापना कहने से नहीं हिचकिचा रहे....ऐसे में केजरीवाल जी को एक एक कदम फूंक-फूंक कर रखना होगा....लम्बी राजनीति के लिए हड़बड़ाहट नहीं शांतचित्तता और संतुलित मानसिकता गंभीर व दूरगामी राजनीति में सहायक होती है.....
सवाल जस का तस खड़ा है पुलिस तंत्र को क्या स्वछंद कर कार्य करना चाहिए....या किसी बंधन में नौकरशाहों की जी हजूरी करनी चाहिए.....अगर दिल्ली राज्य की पुलिस दिल्ली सरकार के अधीन नहीं है तो भारत के हर राज्य की यही गरिमा होनी चाहिए....फिर पुलिस तंत्र की जिम्मेवारी किसके सिर......कौन लेगा हर राज्य में होने वाले कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी और जवाबदेही.....जिसतरह केजरीवाल के सी एम बनने के बाद भी जेड सिक्यूरिटी की सुरक्षा लेने से इंकार करते रहने के बावजूद पुलिस मुहकमा अपनी जिम्मेदारी समझते हुए उन्हें सुरक्षा प्रदान करता आया है क्या इसी तर्ज पर बाकी फैसले लेने में पुलिस मुहकमा सक्षम है तो इससे बेहतर बात और क्या हो सकती है....जिसके फलस्वरुप एक नये भारत का गठन देखा जा सकता है....लोकतंत्र को नयी मजबूती और मनमाने नेताओं के लिए चुनौती के तौर पर देखा जा सकता है....जिससे सभी अपने अपने जिम्मेदारियों के प्रति जनता के सामने जवाबदेह होंगे....पर राज्य या देश इस तरह सबके मनमाने रवैये से नहीं एकजुटता, सहमति और निष्पक्ष होकर निर्णय लेने की क्षमता ही व्यक्ति को खास बनाती है और समाज के विकास में उन्नति के नये मार्ग प्रशस्त करती है.....

सर्वमंगला मिश्रा
9717827056


                                               राहुल की राह किस डगर




राहुल गांधी एक ऐसा नाम जिसे पहचान की कोई जरुरत नहीं....पर आज के दौर में जनता का विश्वास कहीं खिसक सा गया है....हाल ही में प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पद के अघोषित दावेदार राहुल गांधी और उनकी माताजी सोनिया गांधी पर चुटकी ले डाली कि अपने बेटे की बलि जानबूझकर कोई मां नहीं चढायेगी....राहुल गांधी की स्थिति एक तरफ कुंआ तो दूसरी तरफ खाई नजर आती है....जिस परिवार से राहुल आते हैं उस परिवार का राजनैतिक इतिहास रहा है....हर परिवार की इच्छा होती है कि उसका चिराग उसके वंश को आगे बढाये...पर राहुल के हालात असमंजस भरे हैं....पार्टी में आज जो भी फैसले उनके लिए लिये जाते हैं वो सब दबाव और बेबसी की हालत में लिए जाते हैं....राहुल जब राजनीति में प्रवेश किये तो जनसमुदाय और युवावर्ग में एक उत्साह और प्रेरणा का संचार हुआ था..एक नयी उम्मीद की किरण दिखायी थी यह कहकर कि राजनीति करने के लिए कुर्ता पायजामा पहनना जरुरी नहीं जींस पहनकर भी राजनीति की जा सकती है....लोग प्रियंका गांधी वाड्रा और राहुल को कहीं न कहीं समान मानने लगे थे....पर, राहुल के शुभचिंतकों की राय उनके लिए शुभ नहीं रही....सूर्योदय तो हुआ पर जब सूर्य को आसमान में सिर के ऊपर अपनी प्रबल शक्ति से चमकना चाहिए था उस वक्त आसमान में सूर्यग्रहण लग गया जिसके कारण सूर्यास्त का वक्त हो चला और सूर्य अपनी चमक बिना दिखाये अस्ताचल हो रहा है.....रात भले ही लम्बी हो पर सवेरा जरुर होता है....
आप पार्टी के रण में उतरने से पहले 2014 के लोकसभा चुनाव जो अब सिर पर आ चुके हैं इस लड़ाई को मोदी बनाम राहुल के रुप में देखा जा रहा था...पर जबसे आप के वरिष्ठ नेता कुमार विश्वास ने सीधी लड़ाई का ऐलान कर कहीं न कहीं राहुल गांधी के मनोबल को गिराया है.....पार्टी की हालत करो या मरो की कगार पर आ पहुंची है....कांग्रेस पार्टी के अंदर एक घुटन का माहौल बढ़ता जा रहा है....जैसे खदानों में काम करने वाले कर्मचारी काम भी करते हैं घुटन की उफ भी नहीं निकाल सकते क्योंकि उनका गुजर बसर उसी खदान से चलना है....उन्मुक्त होकर कौन सा पक्षी खुले आकाश में विचरण करना पसंद नहीं करता....??? पर आकाश में उड़ने की क्षमता भी तो होनी चाहिए....वैसे तो आकाश में चील,बाज, और मैना सभी उड़ते हैं....पर कौन सा पक्षी किसका दुश्मन है और कौन किसपर घात लगाये बैठा है यह कहना मुश्किल होता है....देश की जनता, आम नागरिक इस बात को विश्वासघात के बाद शायद गांधी परिवार को एहसास दिलाना चाहती है कि वंशवाद को अब जनता नहीं सहेगी बपौती से परे हटकर जो काम कर दिखायेगा उसीकी गद्दी वरना....इस पर एक लाइन याद आ गयी...छोड़ दो सिंहासन कि अब जनता आती है.....वैसे बी अब वो दिन लद गये कि किसी वंशवाद को जनता प्रश्रय देगी और क्यूं दे अपने भविष्य को अंधकारमय बनाने का सपना आजतक किस बाहुबली या निर्बल ने देखा है....आप पार्टी के नेता और अब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जो जनता की भावना और समस्याओं को अपने कंधे पर लिया है ....आज देश ऐसा ही नेतृत्वकर्ता की तलाश में है.....
हर पराजय के बाद कांग्रेस पार्टी आत्ममंथन करती है पर मंथन से आज तक क्या निकला....कभी राहुल गांधी को बड़ी चुनौती के लिए तैयार घोषित किया जाता है तो कभी प्रवक्ता और युवा नेताओं की नये कार्यभार के साथ सूची जारी कर दी जाती है.....क्या इसे आत्ममंथन या चिंतन कहा जाता है.....अगर ऐसा है तो पानी से घी कभी नहीं निकल सकता.....चाहे जितना सतत प्रयास कर लिया जाय.....कांग्रेस पार्टी अपनी नीतियों के प्रति सजग व जागरुक नहीं है जिसका खामियाजा देश की जनता और पार्टी के राजकुमार भुगत रहे हैं..... कई महान विद्वान कह गये हैं कि चुनौतियां ही नये मार्ग प्रशस्त करती है....और सोने की परख इसी समय होती है.....दशा और दिशा पहले व्यक्ति को खुद के लिए निर्धारण करना आवश्यक होता है....उसके बाद निर्देशन में महारथ हासिल करने की संभावनायें बढ़ जाती है.....जिसका रोड मैप ही तैयार नहीं हो जिस योद्धा के सेनापति और महामंत्री खुद तैयार हों बिना निर्देश के पर, नये खून में जोश ही न हो अपनी सेना में उत्साह का संचार करने के लिए....विजयश्री कैसे उसके पास चलकर क्या पहुंचने पर भी मुंहमोड़ लेती है......पार्टी को जीत चाहिए तो राजकुमार को गद्दीमोह भंग करना पड़ेगा....खुद आत्ममंथन करें... अगर सचमुच उन्हें पार्टी और देश की चिंता हो तो..... ना कि किसी की लिखी स्पीच प्रेस के सामने आकर पढ़ा करें....

सर्वमंगला मिश्रा
9717827056






  मिस्टिरियस मुम्बई  में-  सुशांत का अशांत रहस्य सर्वमंगला मिश्रा मुम्बई महानगरी मायानगरी, जहां चीजें हवा की परत की तरह बदलती हैं। सुशां...