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Wednesday 8 April 2020


लाकडाउन- समस्या या समाधान
सर्वमंगला मिश्रा

जिंदगी तनाव भरी है। नींद पूरी नहीं होती। काम का कितना प्रेशर है। बाँस की झकझक से परेशान हो गया है मन। सारा काम मुझे ही करना पड़ता है। फैमिली के लिए टाइम नहीं है। अब इन बातों को कहने के लिए किसी के पास कोई मौका नहीं मिलता या जरुरत ही नहीं रही। लाकडाउन ने सबकी शिकायतें दूर कर दीं है। अब लोग घरों में बंद पड़े हैं। आफिस ना जाने की कुढ़न, काम वाली के ना आने से खुद पर पड़ी घर की सारी जिम्मेदारियां थका रही हैं, रुला रही हैं। घर में बंद रहकर कितना कोई टीवी देखे, कितने गेम्स खेले क्योंकि ना पार्क में जाना है ना पड़ोसी से मिलना है सिर्फ परिवार के साथ रहना है। ऐसे में केशु कुमार की अलग ही व्यथा है। हम रोज कमाकर खाने वाले हैं। घंटा दो घंटा में पूरे दिन की कमाई कैसे हो पाएगी। ऐसे पता नहीं कब तक चलेगा। ऐसा ही हाल रहा है तो गांव जाना पड़ेगा। वहां खेती ही फिर करने को मजबूर होना पड़ेगा। आगे बताते हैं कि उनका भाई फालू मुम्बई में था पर बंदी के कारण परिवार के साथ वापस आ गया है। वो भी फंसते फंसते बचते बचते 17 दिन लग गए वहां से घर आने में। अब वो खेती करने लगा है। खेत भी ज्यादा नहीं है। ऐसे में वो क्या करेगा और हम कहां जायेंगे। हमारा परिवार पहले से ही गांव में है।
जिन्दगी एक झटके में बदल सी गई है- ऐसा कहना है जनरल स्टोर चलाने वाले रामदेव का। कई हफ्तों से दुकान नहीं खोली। कितना माल खराब हो गया। अब पिछले दो दिन से सुबह 8 से 2 बजे तक ही दुकान खोल रहा हूं। लोगों की भीड़ हो जाती है। कोरोना का डर मुझे भी सताता है। ऐसा ही कुछ उमा अग्रवाल जी भी सोचती हैं जो एक गृहिणी है। कोरोना संक्रमण वैश्विक रुप इतना आक्रमक हो जाएगा इसकी आशंका मात्र थी लेकिन, लोग इस तरह घरों में बंद हो जाएगें ये लोगों की कल्पना से भी परे था।
इस जद्दोजहद में कुछ लोग खुश भी हैं। अल्का बोस कहती हैं कि आज वो 15 साल से घर घर में काम करती है लेकिन पहली बार बिना काम किए ही उसे महीने की पगार मिलेगी इस बात को कहते हुए वो थकती नहीं। साथ ही जिसके कारण उसे खुशी नसीब हुई उस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को कोटि कोटि धन्यवाद देती है। उसे नहीं पता कोरोना फैलने का मुख्य कारण। कहां से शुरु हुआ और कैसे फैलता है। बस टीवी देखती है और घर दो घंटे में साबुन से हाथ धोना नहीं भूलती। साथ ही औरों को भी हाथ धोने के लिए सीखाती रहती है। जीवन में पहली बार छुट्टी का आनंद ले रहे बापी दा भी बहुत खुश हैं पर उन्हें देश की भी चिंता है। उन्हें कोरोना के बारे में इतना पता है कि ये एक छुआछुत की बीमारी है जिससे बचने के लिए घर से बाहर नहीं निकलना है। तभी जान बच सकती है। इसलिए अपने आसपास के लोगों को सचेत करते रहते हैं। बापी दा देश के साथ अपने ही मुहल्ले में रह रहे गुन्नू के लिए चिंता भी करते हैं क्योंकि गुन्नू एक सफाई कर्मी है वो रोज कई बिल्डिंगों में सफाई का काम करता है। ऐसे में उसने जैसे तैसे एक सस्ता वाला मास्क तो खरीद लिया पर कोरोना की दहशत उसकी समझ से परे है इसलिए देखा देखी कभी तो वो मास्क पहनकर कूड़ा उठाने जाता है तो कभी ऐसे ही रोज की तरह। ऐसे में बापी दा कई बार उसको समझाने की कोशिश करते हैं। लेकिन गुन्नू कहता है कि काम नहीं करेंगें तो भी हम ऐसे मोड़ पर आ जाएगें जहां से कुछ नजर नहीं आएगा और हम ऐसी जगहों पर रहते हैं जहां रोग आना बहुत साधारण सी बात है। ईलाज हम वैसे भी नहीं करा पाएंगें और ऐसे भी।
खुशी और गम यहीं खत्म नहीं होता।
डाक्टर साहब की पत्नी स्वीटजरलैंड गई थीं बेटे के पास एक महीने बाद वापस आना था पर लाकडाउन ने उनके पैर वहीं बाँध दिये। इंटरनैशनल फ्लाइट्स के बंद होने के पहले एक महेंद्रपताप जी ने अपने बेटे को लंदन से आफातुना में बुलवा लिया पर उनकी सासु मां का निधन होने के कारण उनकी पत्नी कानपुर में ही अटक गईं। ऐसे हजारो किस्से हर घर के पास मिल जाएंगें। लेकिन इस वक्त चीन के बुने जाल से बाहर निकलने का यही एक तरीका है कि आप जहां हैं वहीं रहिए। परेशानी निश्चित है लेकिन सुरक्षा का भार हर नागरिक पर है।
भारत महान था है और रहेगा भी। अमेरिका के राष्ट्रपति श्री ट्रम्प ने भारत के प्रधानमंत्री को महान और उदारक बताया। विश्वगुरु भारत ने कोरोना दर्द निवारक औषधि भी खोज ली जिसे अमेरिका भी लेने के लिए लाइन में लग गया है। श्रीलंका ने भी हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी को धन्यवाद दिया है। लेकिन कुछ लोग जो मरकज़ में शामिल हुए ये वो लोग हैं जो नजर में आ गए पर जो आज भी इस खतरनाक खेल को अंजाम देकर मौत को लोगों के पास लाने और इंसानियत को तबाह करने पर तुले हैं उन्हें क्वारंटाइन की नहीं देश निकाले की जरुरत है। कुछ लोगों को मेरे शब्द अच्छे ना लगें पर इंसानियत का दुश्मन देश का दुश्मन ही होता है। इटली, चीन और यूरोपीय देशों की हालत किसी से छुपी नहीं है दो गज़ जमीन को लोग मोहताज हो चुके हैं। शुक्र है भारत उस पहाड़ी छोर पर नहीं पहुंचा जहां से एक तरफ कुंआ तो दूसरी ओर खाई है।
देश को बचाने का यही तरीका है और खुद को भी कि हम सुरक्षित रहने के लिए एक दूसरे की मदद करें और बेवजह ना घूमें। वैसे देखा जाय तो अपराधों की संख्या लाकडाउन से कम हो गई है।




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