दहशत का कब्रगाह
उत्तर प्रदेश उत्तम प्रदेश की संज्ञा से नवाजा जाता रहा है। पर पिछले कई हफ्तों से इस दी हुई संज्ञा पर विचार करना अनिवार्य सा हो गया है। महिलाओं को जहां पूजने की बात, लक्ष्मी का वास माना जाता है वहीं आजकल महिलाओं पर हो रहे अति निन्दनीय अत्याचारों का घड़ा एक पर एक करके फूटता ही चला जा रहा है। यूं तो दिल्ली 2012 में शर्मसार हो चुकी थी लेकिन बदायूं मामले ने ऐसी अवांछनीय घटना को न जाने कैसे अपराधी वर्ग को इतना जागरुक कर दिया है कि समझ नहीं आता क्या कहा जाय। अंधेर नगरी चौपट राजा, या जैसा राजा वैसी प्रजा। वैसे तो पूरे देश में महिलाओं पर हो रहे अत्याचार का कोई तोड़ नहीं। एक से बढकर एक घटनायें समय समय पर सामने आती हैं। पर आज फिर उत्तर प3देश के कानपुर में अतिक्रमण का विरोध कर रही कुछ महिलाओं पर ऐसा कहर पुलिस ने बरपाया कि दिमाग को झकझोर कर रख दिया। ऐसी बर्बरता, ऐसी घृणित अवस्था महिलाओं की समाज में ?? जिन्हें उनके केश पकड़- पकड़ कर घसीटा गया । मानो उन्होंने कैसा दण्डनीय अपराध कर डाला हो। समाज में वो लोग शान से घूम रहे हैं जिन्होंने अति घृणित कार्य भी किया है और उन्मुक्त रुप से खुले आसमान के नीचे घूम रहे हैं और अत्याचार के कुकर्मों को अजाम दिये चले जा रहे हैं लेकिन उनके साथ ऐसा कोई व्यवहार नहीं। आखिर क्यों ?? उत्तर प्रदेश का पड़ोसी राज्य बिहार जहां महिलाओं के उत्पीड़न की दांसता बयां से परे, शब्दों से परे है। जहां महिलाओं को पुलिस दौड़ा -दौड़ा कर मारती है। तो कभी बच्चियों को मौत के घाट उतारकर पेड़ से लटका दिया जाता है। तो एक नया ट्रेंड सा जाने निकल आता है और हर मौत का अंजाम पेड़ से लटकाने के उपरांत ही जैसे नदी गंगा से मिलती है उसी तरह मौत का मुहाना पेड़ बन गया। प्रशासन की चुप्पी न जाने इन मसलों पर कब तक बरकरार रहेगा।
महिलाओं पर प्रारम्भ से आज तक चाहे-अनचाहे न जाने क्यों और कैसे । क्या बर्बरता की दासतां महिलाओं पर यूंही चलती रहेगी। रिजर्वेशन से लेकर जीवन पर्यन्त हक की लड़ाई लड़ते ही रहना होगा। कहने के लिए पुरुष समाज यूं तो देवी शब्द का प्रयोग करता है पर क्या उस बिन बोली मूरत पर अनगिनत प्रहार नहीं करता जा रहा है । जब तक कि वह मूरत टूट के बिखर ना जाय। सवाल यहां यह उठता है यह मासूम बच्चे बच्चियां जिनके हंसने खेलने, दुनिया को समझने -देखने का वक्त है उनके साथ ऐसा बर्ताव क्यों समाज के कुछ अवाछनीय लोग उनसे उनका हक छीन रहे है?? जिन्दगी खिली नहीं कि आपने उसे मर्झाने भी नहीं मौत के घाट उतार दिया?? मर्यादा में रहने वाली को हर बार उस रावण का दंश क्यों झेलना पड़ता है। हर बार उसकी कोख अपने ही चचरे भाई कंस के कारण क्यों उजड़ जाती है। हाल ही में एक नाबालिक बच्ची जिसे उसके रिश्ते में लगने वाले मामा ने कलंकित किया तो उसकी अपनी मां और बुआ और उस मामा ने मिलकर उसे नहर में ढकेल दिया। पर, बेचारी बच्ची अमूमन 55 किमी तैरती हुई एक किनारे पहुंची । जहां उसे बचा लिया गया। पर रिश्ते आज अपनी मर्यादा खोते चले जा रहे हैं। न जाने हम कैसा समाज बना रहे हैं जहां हम खुद ही चैन की सांस नहीं ले पा रहे। दम घुटता है ऐसे समाज में जहां दिल यही हुक के साथ कह उछता है- कि ना आना इस देश मेरी लाड़ो.....क्योंकि हैवानियत को भी शर्मसार करने वाले कारनामे यहां अंजाम दिये जाते हैं। पं. बंगाल में एक अति निन्दनीय घटना कुछ महीनों पहले आयी थी जहां रिश्ते में लगने वाले चाचा, ताऊ, भाइयों ने मिलकर उसे पंचायत के कहने पर शर्मसार कर डाला। उसका जुर्म मात्र इतना था कि वह विजातीय व्यक्ति से प्यार और शादी करना चाहती थी। हालांकि पंचायत ने उसपर 25 हजार का जुर्माना लगाया जब उसने अपनी विवशता जाहिर की उस मूल्य को चुकाने में तो उस पंचायत ने ऐसा दण्ड निकाला कि दण्ड भी सोचा होगा कि मैं तो ऐसा नहीं था। मेरा रुप इतना कैसे परिवर्तित हो गया।
समय परिवर्तनशील है। अगर कोई खुद में सुधर लाना चाहता है तो उपाय कई हैं प्लास्टिक सर्जरी, होमियोपैथी, आयुर्वेदा पर किस पर क्या सूट करता है उसका डाक्टरी परामर्श ही उसे सुधर सकता है।
बात प्रदेश की है तो शासनतंत्र और शासनकर्ता ही नब्ज टटोल कर उपचार बता सकते हैं। मुश्तैद शासन प्रक्रिया ही राज्य को सुधारने का काम कर सकती है। जिससे राज्य आज और कल फलीभूत होता रहे।
उत्तर प्रदेश उत्तम प्रदेश की संज्ञा से नवाजा जाता रहा है। पर पिछले कई हफ्तों से इस दी हुई संज्ञा पर विचार करना अनिवार्य सा हो गया है। महिलाओं को जहां पूजने की बात, लक्ष्मी का वास माना जाता है वहीं आजकल महिलाओं पर हो रहे अति निन्दनीय अत्याचारों का घड़ा एक पर एक करके फूटता ही चला जा रहा है। यूं तो दिल्ली 2012 में शर्मसार हो चुकी थी लेकिन बदायूं मामले ने ऐसी अवांछनीय घटना को न जाने कैसे अपराधी वर्ग को इतना जागरुक कर दिया है कि समझ नहीं आता क्या कहा जाय। अंधेर नगरी चौपट राजा, या जैसा राजा वैसी प्रजा। वैसे तो पूरे देश में महिलाओं पर हो रहे अत्याचार का कोई तोड़ नहीं। एक से बढकर एक घटनायें समय समय पर सामने आती हैं। पर आज फिर उत्तर प3देश के कानपुर में अतिक्रमण का विरोध कर रही कुछ महिलाओं पर ऐसा कहर पुलिस ने बरपाया कि दिमाग को झकझोर कर रख दिया। ऐसी बर्बरता, ऐसी घृणित अवस्था महिलाओं की समाज में ?? जिन्हें उनके केश पकड़- पकड़ कर घसीटा गया । मानो उन्होंने कैसा दण्डनीय अपराध कर डाला हो। समाज में वो लोग शान से घूम रहे हैं जिन्होंने अति घृणित कार्य भी किया है और उन्मुक्त रुप से खुले आसमान के नीचे घूम रहे हैं और अत्याचार के कुकर्मों को अजाम दिये चले जा रहे हैं लेकिन उनके साथ ऐसा कोई व्यवहार नहीं। आखिर क्यों ?? उत्तर प्रदेश का पड़ोसी राज्य बिहार जहां महिलाओं के उत्पीड़न की दांसता बयां से परे, शब्दों से परे है। जहां महिलाओं को पुलिस दौड़ा -दौड़ा कर मारती है। तो कभी बच्चियों को मौत के घाट उतारकर पेड़ से लटका दिया जाता है। तो एक नया ट्रेंड सा जाने निकल आता है और हर मौत का अंजाम पेड़ से लटकाने के उपरांत ही जैसे नदी गंगा से मिलती है उसी तरह मौत का मुहाना पेड़ बन गया। प्रशासन की चुप्पी न जाने इन मसलों पर कब तक बरकरार रहेगा।
महिलाओं पर प्रारम्भ से आज तक चाहे-अनचाहे न जाने क्यों और कैसे । क्या बर्बरता की दासतां महिलाओं पर यूंही चलती रहेगी। रिजर्वेशन से लेकर जीवन पर्यन्त हक की लड़ाई लड़ते ही रहना होगा। कहने के लिए पुरुष समाज यूं तो देवी शब्द का प्रयोग करता है पर क्या उस बिन बोली मूरत पर अनगिनत प्रहार नहीं करता जा रहा है । जब तक कि वह मूरत टूट के बिखर ना जाय। सवाल यहां यह उठता है यह मासूम बच्चे बच्चियां जिनके हंसने खेलने, दुनिया को समझने -देखने का वक्त है उनके साथ ऐसा बर्ताव क्यों समाज के कुछ अवाछनीय लोग उनसे उनका हक छीन रहे है?? जिन्दगी खिली नहीं कि आपने उसे मर्झाने भी नहीं मौत के घाट उतार दिया?? मर्यादा में रहने वाली को हर बार उस रावण का दंश क्यों झेलना पड़ता है। हर बार उसकी कोख अपने ही चचरे भाई कंस के कारण क्यों उजड़ जाती है। हाल ही में एक नाबालिक बच्ची जिसे उसके रिश्ते में लगने वाले मामा ने कलंकित किया तो उसकी अपनी मां और बुआ और उस मामा ने मिलकर उसे नहर में ढकेल दिया। पर, बेचारी बच्ची अमूमन 55 किमी तैरती हुई एक किनारे पहुंची । जहां उसे बचा लिया गया। पर रिश्ते आज अपनी मर्यादा खोते चले जा रहे हैं। न जाने हम कैसा समाज बना रहे हैं जहां हम खुद ही चैन की सांस नहीं ले पा रहे। दम घुटता है ऐसे समाज में जहां दिल यही हुक के साथ कह उछता है- कि ना आना इस देश मेरी लाड़ो.....क्योंकि हैवानियत को भी शर्मसार करने वाले कारनामे यहां अंजाम दिये जाते हैं। पं. बंगाल में एक अति निन्दनीय घटना कुछ महीनों पहले आयी थी जहां रिश्ते में लगने वाले चाचा, ताऊ, भाइयों ने मिलकर उसे पंचायत के कहने पर शर्मसार कर डाला। उसका जुर्म मात्र इतना था कि वह विजातीय व्यक्ति से प्यार और शादी करना चाहती थी। हालांकि पंचायत ने उसपर 25 हजार का जुर्माना लगाया जब उसने अपनी विवशता जाहिर की उस मूल्य को चुकाने में तो उस पंचायत ने ऐसा दण्ड निकाला कि दण्ड भी सोचा होगा कि मैं तो ऐसा नहीं था। मेरा रुप इतना कैसे परिवर्तित हो गया।
समय परिवर्तनशील है। अगर कोई खुद में सुधर लाना चाहता है तो उपाय कई हैं प्लास्टिक सर्जरी, होमियोपैथी, आयुर्वेदा पर किस पर क्या सूट करता है उसका डाक्टरी परामर्श ही उसे सुधर सकता है।
बात प्रदेश की है तो शासनतंत्र और शासनकर्ता ही नब्ज टटोल कर उपचार बता सकते हैं। मुश्तैद शासन प्रक्रिया ही राज्य को सुधारने का काम कर सकती है। जिससे राज्य आज और कल फलीभूत होता रहे।
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