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Sunday 22 July 2018


बुराड़ी रहस्य

सर्वमंगला मिश्रा
विश्व आधुनिकता जगत की सीढियां चढ़ रहा है जबकि सच यह है कि आधुनिकता के साथ अंधविश्वास आज तक जिंदा है। बुराड़ी हत्याकांड इसका ज्वलंत उदाहरण है। एक साथ एक ही परिवार के 11 लोगों की मौत किसी दर्दनाक कहानी की ओर इशारा करता है। आसपास और जाननेवालों के अनुसार परिवार में सबकुछ सामान्य था। पुलिस को भी किसी बाहरी व्यक्ति के घर में जबरन प्रवेश के कोई निशान या सुराग नहीं मिले हैं। ऊपर से सबकुछ ठीक था पर घर के भीतर का माहौल किसी को कभी समझ ही नहीं आया। किसी को भी उनके घर के भीतर चल रहे अंधविश्वास की भनक तक नहीं लगी। सवाल उठता है राजस्थान के मूल निवासी, इस परिवार के सिर पर क्या सचमुच मोक्ष प्राप्ति के अंधविश्वास का ऐसा भूत सवार था कि जिंदगी समाप्त करते समय एक पल की भी तकलीफ नहीं हुई ? या हुई तो बहुत पर बताने वाला अब कोई नहीं बचा। क्योंकि परिवार के बीच पला एक बेजुबान को घर की छत पर बांध दिया गया था। इस परिवार में बूढ़े, जवान और बच्चे सभी थे। तीन पी​ढ़ी के इस परिवार की एक साथ सबने अपनी जीवन को समाप्त कर डाला। इसी परिवार की एक लड़की की अगले महीने शादी भी होने वाली थी। पुलिस की प्राथमिक जांच कहती है कि इस भयानक घटना में बाहर के किसी व्यक्ति का हाथ नहीं है। 'मोक्ष' पाने की एक भ्रामक चाह ने उन सभी को इतना बड़ा कदम उठाने और कथित तौर पर एक साथ अपनी जान लेने के लिए मजबूर कर दिया। परिवार के सदस्य ललित की आध्यात्म में ख़ास रुचि उसके पिता की मृत्यु के बाद से और खासकर उसकी आवाज वापस आने के बाद से बढ़ गयी थी। उनकी डायरी में मोक्ष, मृत्यु के बाद का जीवन और उसे पाने के लिए किसी भी हद तक जाने की तैयारी, ये सभी बातें लिखी थीं।
शेयर्ड साइकोसिस – क्या होता है-
बुराड़ी में रहने वाले भाटिया परिवार में हुई इस घटना के पीछे भी यही मुख्य कारण नज़र आता है। जांच में सामने आया है कि साल 2008 में ललित के​ पिता की मृत्यु के बाद अंधविश्वास और उससे जुड़ी विधियों की तरफ उनका झुकाव बढ़ गया था। उन्हें महसूस होता था कि ध्यान लगाने पर उनके पिता उनसे बात करते हैं और उन्हें निर्देश देते हैं। मृत लोगों के साथ बात करना अपने आप में एक मानसिक बीमारी है। यह भ्रम की आप मरे हुए व्यक्ति की आवाज़ सुनते हैं या आपको उसके ज़िंदा होने का आभास होता है, तो ये एक तरह की मनोविकृति है। ऐसे मामलों में कोई शख्स अपने आपको हक़ीक़त से बहुत दूर कर लेता है और काल्पनिक दुनिया में रहने लगता है। ललित का व्यवहार भी कुछ इसी तरह का था। अंधविश्वास के कारण दूसरों का भी भरोसा होता है इसलिए वो बीमारी की तह तक नहीं पहुंच पाते। उस व्यक्ति में ख़ास शक्तियां हैं-ऐसा लोग मानने लगते हैं। ऐसे लोग परिवार के दूसरे सदस्यों पर भी प्रभाव डालते हैं। फिर वो भी कुछ ऐसा ही अनुभव करने लगते हैं और ख़ुद अंधविश्वास की चपेट में आ जाते हैं। वहीं इसी बीच पुलिस के हाथ ललित की भांजी प्रियंका की एक नीजि डायरी लगी है जिससे 11 मोतौं की गुत्थी और उलझ गई है । इस डायरी में अंधविश्वास या तंत्र-मंत्र नहीं बल्कि प्रेम प्रसंग का जिक्र है जिसने इस केस को नये मोड़ ​पर ला खड़ा कर दिया है। प्रियंका की डायरी के कवर पेज पर सुंदर लड़की लिखा है और यह पेज दिल के आकार में कटा है। अंदर के पन्नों में प्रियंका ने मॉडल टाउन में रहने वाले एक युवक का जिक्र किया है। डायरी की शुरूआत में लिखा कि मैं जो बात आपको बताने जा रही हूं, उससे मैं आपकी नजरों से गिर सकती हूं। उसने एक लड़के का नाम बताते हुए लिखा कि अब वह घर खाली करके जा चुका है। इसके लिए उसने अपने मामा ललित से माफी भी मांगी। उसने यह भी भरोसा दिलाने की कोशिश की है कि वह शादी के बाद अपने ससुराल में ठीक से रहेगी। वहां सबको खुश रखेगी और किसी को शिकायत का मौका नहीं देगी। अब उस लड़के की तलाश जारी है जिसका जिक्र इस डायरी में किया गया है। पुलिस उस लड़के से पूछताछ कर यह भी जानकारी जुटाने की कोशिश करेगी कि क्या प्रियंका ने कभी मोक्ष प्राप्ति के इस विधि के बारे में चर्चा की थी। वहीं जांच से जुड़े पुलिस अधिकारियों का कहना है कि डायरी में कही गई बातें कब लिखी गई हैं इसका पता लगाया जा रहा है। हो सकता है कि यह डायरी पुरानी हो। लिखावट प्रियंका की हैंडराइटिंग से मिलती है। जांच में पता चला कि ललित जब परिजनों से कहता था कि उसके अंदर पिता की आत्मा प्रवेश कर गई है तो उसकी आवाज और शरीर कांपने लगते थे। इस हालात में प्रियंका ही रजिस्टर में वो सबकुछ लिखती जो ललिल बोलता था। ललित अपने पिता की आवाज में पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठान, परिवार के लोगों की दिनचर्या और सजा संबंधी निर्देश देता था। अगर किसी कारणवश प्रियंका घर में मौजूद नहीं होती थी तो ललित की पत्नी टीना रजिस्टर लिखने का काम करती थी। सीसीटीवी फुटेज में भुवनेश की पत्नी सविता व उनकी बड़ी बेटी नीतू को दो स्टूल लेकर घर के अंदर जाते हुए देखा गया। जांच के क्रम में पता चला कि अलग अलग फर्नीचर दुकानों से स्टूल खरीदे गए थे। शायद एक दुकान से इसलिए स्टूल नहीं खरीदे गए जिससे दुकानदार शक न कर बैठे या फिर कोई सवाल न पूछ बैठे। पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज की तस्दीक के लिए दोनों फर्नीचर दुकानदारों से पूछताछ की। दुकानदारों ने पुष्टि भी कर दी है। घटना से छह सात दिन पूर्व ही मार्केट से दस चुन्नियां खरीदी गई थीं। पुलिस ने मौका-- वारदात से टेलीफोन के तार, टेप के बंडल, कई रूमाल, प्लास्टिक की रस्सियां भी बरामद की थीं। इन सभी सामानों का इस्तेमाल फंदा लगाने से लेकर मुंह, हाथ आदि बांधने के लिए किया गया था।
मृतकों में सात महिलाएं व चार पुरुष थे, जिनमें दो नाबालिग थे। एक महिला का शव रोशनदान से तो नौ लोगों के शव छत से लगी लोहे की ग्रिल से चुन्नी व साड़ियों से लटके मिले। एक बुजुर्ग महिला का शव जमीन पर पड़ा मिला था। नौ लोगों के हाथ-पैर व मुंह बंधे हुए थे और आंखों पर रुई रखकर पट्टी बांधी गई थी। एक ही बेड़शीट की चादर के कई टुकड़े करके भी लोगों के चेहरों को ढका गया था। क्या यह किसी हड़बड़ाहट का नतीजा था। जब सबकुछ तय तरीके से हो रहा था तो मुंह को ढ़ाकने के लिए जरुरत की चीज भी मार्केट से लायी जा सकती थी।
बुराड़ी-संत नगर मेन रोड से सटे संत नगर की गली नंबर दो में बुजुर्ग महिला नारायण का मकान है। इसमें वह दो बेटों भुवनेश व ललित, उनकी पत्नियों, पोते-पोतियों व विधवा बेटी संग रहती थीं। ये लोग मूलरूप से राजस्थान के निवासी थे और 22 साल पहले यहां आकर बसे थे। बुजुर्ग महिला के तीसरे बेटे दिनेश सिविल कांटेक्टर हैं और राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में रहते हैं। बुजुर्ग महिला के दोनों बेटों की भूतल पर एक परचून व दूसरी प्लाईवुड की दुकान है। साथ ही पहली व दूसरी मंजिल पर परिवार रहता था। रोज सुबह ललित घर के सामने रहने वाले दिल्ली पुलिस से सेवानिवृत्त तारा प्रसाद शर्मा के साथ मार्निंग वॉक पर जाते थे। उससे पहले शर्मा ललित की दुकान से दूध लेते थे। रविवार सुबह दुकान नहीं खुली तो शर्मा दरवाजा खटखटाने गए, पर दरवाजा खुला था तो वह ऊपर चले गए। ऊपर का दरवाजा भी खुला था। आगे जाने पर उनकी रूह कांप सी गई। बरामदे वाले हिस्से में दस लोगों के शव लटके थे, जबकि एक महिला का शव कमरे में पड़ा था। यहां एक बात समझ नहीं आती कि जब सारी क्रिया घर के अंदर गुप्त तरीके से चल रही थी तो दरवाजा कैसे खुला रह गया या जिसने घटना को अंजाम दिया वो फरार हुआ और घर का दरवाजा खुला रह गया हो। हालांकि पोस्ट मार्टम की रिपोर्ट में क्लोरोफार्म जैसी वस्तु का किसी भी मृत व्यक्ति के शरीर से मिलने की बात नहीं कही गयी है अथवा शरीर से किसी जहरीले वस्तु की भी पुष्टि नहीं हुई है।
इन बातों से जहन में कहीं न कहीं एक बात तो जरुर कौंधती है कि जब कोई देनदारी नहीं थी, कोई विवाद नहीं था, कोई शत्रु भी खुले तौर पर नहीं पकड़ में आया जिसपर आशंका व्यक्त की जाय। क्या ऐसा संभव है कि कोई ऐसा शक्स हो जिसने बहुत ही चतुराई के साथ किसी पुरानी शत्रुता के खेल को अंजाम दिया हो। पर यदि यह अंधविश्वास का खुला चिट्ठा है तो ऐसे अंधविश्वास को इंसानियत की जड़ से उखाड़ फेंकना होगा अन्यथा ऐसी कितनी मासूम जिंदगियां मोक्ष पाने के नाम पर खूबसूरत जिंदगी से हाथ धो बैठेंगी।







बंगाल में किसकी चित किसकी पट

सर्वमंगला मिश्रा

आजकल बंगाल की स्थिति कभी धूप तो कभी छांव की तरह नजर आ रही है। भाजपा अपने अश्वमेध यज्ञ को पूर्ण करना चाहती है तो ममता दीदी हर हाल में भाजपा को रोकना चाहती हैं। हाल ही में हुए पंचायत चुनाव में भाजपा और तृणमूल पार्टी की जद्दोजहद जगजाहिर हो गयी है। पंचायत चुनाव और विधानसभा चुनाव के दौरान यूं तो भाजपा का प्रदर्शन कुछ उत्साह जनक नहीं कहा जा सकता। लेकिन, उप चुनावों के दौरान भाजपा का प्रदर्शन सराहनीय रहा। भाजपा ने बंगाल में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा दी। अब अमित शाह की रणनीति, जिसने भाजपा का अमूमन पूरे भारत में, एक नया वर्चस्व कायम करवा दिया है। उसी रणनीति की असल परख बंगाल में देखने को पूरा भारत उत्सुक है। अमित शाह ने अब तक कुल 18 बार बंगाल का दौरा किया है। अमित शाह को पूर्ण विश्वास है कि भाजपा 2019 के चुनाव में बंगाल फतह कर लेगी लेकिन, दीदी का अपना बनाया और बिछाया हुआ चक्रव्यूह है जो कब और कैसे तोड़ना है यह वही निश्चय करती है।
2016 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा 11 प्रतिशत पर सिमट सी गयी थी। वहीं हाल ही में हुए पंचायत चुनाव में भाजपा ने ग्रामीण इलाकों में अपनी पहुंच बढ़ायी है। लोगों में जोश पनपा पर हिंसा के आगे शायद कहीं न कहीं दम तोड़ दिया। जोश और उत्साह को पुनर्जीवित करने मिदनापुर में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहुंचे और लोगों से अपने हौसले को बुलंद करने को कहा। मोदी जी देश के उस हिस्से को मजबूत करना चाहते हैं जहां आदिवासियों का इलाका है जिसे बंगाल में जंगलमहल का इलाका कहा जाता है। यही वह इलाका है जिसने भाजपा को वोट करने का साहस किया और भाजपा ने इतनी मशक्कत के बाद वोट प्रतिशत में एक तरह की छलांग सी मार ली और वोट प्रतिशत 24 तक पहुंच गया। भाजपा की असल मायने में यही जीत है। बंगाल में जीत की पहल का पहला पायदान भाजपा चढ़ चुकी है। जहां विधानसभा चुनावों में शहरों और जिलों के पढ़े लिखे लोग भाजपा को बंगाल में लाने से हिचकिचा रहे थे वहीं आदिवासी तबका बंगाल में परिवर्तन लाने को उत्सुक नजर आ रहा है। दिल्ली से चली आवाज नगर के लोगों को शायद अब तक नहीं जगा पायी है। लेकिन, वहीं दूरस्थ इलाकों में बसने वाले अनपढ़ लोगों ने परिवर्तन की आवाज़ को पहचाना है। आगामी चुनाव का रुख़ जबरदस्त होगा जब आदिवासियों के कानों तक पहुंची आवाज शहर में रहने वाले लोगों के कानों को भी छू जाय।
आदिनाथ, टैक्सी ड्राइवर, छपरा के निवासी हैं। पिछले 22 सालों से टैक्सी चलाते हैं। टैक्सी चलाते मोदी के गुणगान करते नहीं थकते। उन्हें पूरा यकीन है कि बंगाल में भी मोदी का जादू चलेगा और तभी बंगाल के लोग भी बाकी राज्यों की तरह उन्नति के पथ पर आगे चलेगें। मोदी को वह एक दूरदर्शी और सही निर्णायक मानते हैं। मोदीजी सही टाइम पे सही काम करेगा आदिनाथ की तरह ही तारकेश्वर और अनीस अंसारी भी यही मानते हैं कि मोदी यानी भाजपा के आने से ही बंगाल की स्थिति में सुधर होगा। वरना बंगाल में मनमानी चाहे सिंडीकेट की हो या किसी माफिया की या दादागिरी चलती ही रहेगी।
पंचायत चुनावों में हुई हिंसा के मद्देनजर भाजपा पुरुलिया में अपनी स्थिति मजबूत करने में लगी हुई है। भाजपा के तीन कार्यकर्ताओं की मृत्यु से भाजपा जहां सतर्क हो गयी है वहीं अपनी दावेदारी मजबूत करने के साथ वहां की परिस्थितियों से लड़ने के लिए अखाड़े में उतर चुकी है। अमित शाह का दौरा यकीनन स्थानीय निवासियों में उत्साह भर देता है। जिससे वो ऊर्जावान होकर भाजपा को बंगाल में लाने के लिए हर संभव प्रयास में जुट जाते हैं जिससे हिंसा का सामना आने वाले समय में उनकी आने वाली पीढ़ी को न करना पड़े।
भाजपा के लिए यह समय बंगाल में प्रवेश करने का बेहतरीन समय है। जहां कांग्रेस पार्टी अपना वर्चस्व खोती जा रही है और सीपीएम अपनी दावेदारी। एकमात्र तृणमूल से सामना 2019 में भाजपा का ही होना है। एक तबका जहां मोदी को बंगाल में देखना चाहता है तो दूसरी ओर कट्टरपंथी तबका परिवर्तन से दूर भागता नजर आता हैं। उन्हें बाहरी शासन पसंद नहीं। बंगाल की परिस्थिति भाजपा के लिए करो या मरो के समान है। एक तरफ जहां पूरे भारत को भगवा रंग से रंग देने वाले मोदी और शाह बंगाल की ओर नजरें जमाये हुए हैं। वहीं बंगाल की सल्तनत को दीदी खोना नहीं चाहती हैं इसीलिए, मोदी विरुद्ध एकजुट महागठबंधन गुट में चन्द्रबाबू नायडु, मायावती, अखिलेश, तेजस्वी यादव और सोनिया के साथ ममता दीदी ने भी सहयोग करने का हाथ बढ़ाया है और मोदी को बंगाल से दूर रखने का बीड़ा भी।
बंगाल में 70 प्रतिशत बूथ समितियां स्थापित की गयीं हैं जिससे 2019 के चुनाव में कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़े। इससे आने वाले चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत भी बढ़ेगा। भाजपा बंगलादेश से पलायन कर आये लोगों के लिए भी सहयोग का हाथ बढ़ा रही है। बंगाल में जितना पिछड़ा समाज अथवा वर्ग है, जिसपर तृणमूल सरकार की कृपादृष्टि आजतक नहीं हुई, भाजपा उन सभी को अपने साथ कर लेना चाहती है। जिससे चुनाव का रुख 2019 में परिवर्तित हो सके। उधर जंगलमहल के स्थानीय लोगों ने अपना मन खुलकर भाजपा के प्रति बना लिया है जिसका कारण स्पष्ट है कि तृणमूल सरकार उनकी आशाओं पर खरी नहीं उतरी। आज भी वो संसाधन विहीन हैं। जीवन की सामान्य सुख सुविधा भी जीवनयापन के लिए उन तक नहीं पहुंच पायी है। इसलिए पूरे भारत में जो हो चुका है बंगाल के ग्रामीण इलाकों के लोग अब वही परिवर्तन बंगाल में भी देखना चाहते हैं। हर चुनाव में होने वाली हिंसा और उससे जूझता उनका परिवार त्रस्त हो चुका है। चुनावी हिंसा उनके जीवन को झकझोर कर रख देती है।
बंगाल में आज बेरोजगार युवाओं की संख्या दिन प्रति दिन बढ़ती चली जा रही है। रोजगार के नाम पर तृणमूल सरकार भले ही कागजी आंकड़े घोषित कर विपक्ष को करारा जवाब देने में समर्थ हो परन्तु हकीकत इससे बिल्कुल विपरीत है। शहर को सुंदर बनाने का बीड़ा तृणमूल सरकार ने अवश्य उठाया है लेकिन, शहर सुंदर बनाने से आम जिंदगी सुंदर हो जायेगी इसकी तो कोई गारंटी नहीं होती।
भाजपा की लहर और जनता का विश्वास अब बंगाल की रगों में भी कहीं न कहीं धीरे धीरे प्रवेश कर चुका है। जिसका खुला प्रमाण उप चुनावों में स्थानीय पार्टियों को भाजपा ने दिया और अब आने वाले लोकसभा चुनाव में फतह की तैयारी में जुटे और आश्वस्त अमित शाह दूसरे राज्यों की भांति बंगाल को भी भगवा रंग की चादर ओढ़ा देना चाहते हैं।






भारत पर्यटन की दृष्टि से

सर्वमंगला मिश्रा
भारत वर्षों से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता आया है। चाहे फाह्यान हो या महमूद गजनवी, जिसने 17 बार सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया था। भारत की धरती पर जिसने भी आजतक कदम रखा, इतिहास गवाह है वह निहाल होकर ही गया। राम, कृष्ण, आदिगुरु शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस, गौतम बुद्ध, विवेकानन्द, गुरुनानक की इस धरती पर हर शक्स जीवन में एकदफा तो कदम रखना ही चाहता है। यह वही भारत है जहां से आध्यात्म का बीज हर मानव के अंदर पनपता है।  
भारत का पर्यटन और स्वास्थ्यप्रद पर्यटन मुहैया कराने की दृष्टि से विश्व में पाँचवा स्थान है। पर्यटन गरीबी दूर करने, रोजगार सृजन और सामाजिक सद्भाव बढ़ाने का सशक्त साधन है। भारत जैसे विरासत के धनी राष्ट्र के लिए पुरातात्विक विरासत केवल दार्शनिक स्थल भर नहीं होती वरन् इसके साथ ही वह राजस्व प्राप्ति का स्रोत और अनेक लोगों को रोजगार देने का माध्यम भी होती है| पर्यटकों के लिए कैम्पिंग स्थलों के संचालन करने से भी स्थानीय युवकों को रोजगार मिल सकता है। इसके लिए उन्हें प्रशिक्षित जनशक्ति की जरूरत पड़ेगी। कुछ स्थानीय युवकों को गाइड के रूप में काम करने के अवसर मिल सकता है। ये आने वाले पर्यटकों को आस पास की पहाडि़यों और जंगलों की सैर कराकर उन्हें अपने इलाके से परिचित करा सकते हैं। जिससे देश के स्वाभिमान में वृद्धि होगी। अपने इलाके की वनस्पतियों और जीव-जन्तुओं तथा ऐतिहासिक और पौराणिक स्थलों की तरह अपने समुदाय और लोक जीवन का परिचय दे सकते हैं।  स्थानीय पर्यटन स्थलों को रोचक ढंग से प्रस्तुत करके ये नाम कमा सकते हैं। स्थानीय बुनकर और कारीगर अपने उत्पाद प्रदर्शित करके पर्यटकों को आकर्षित कर सकते हैं। जिससे ज्यादा पर्यटक आकर्षित होंगे। कारीगरों को अपने हस्तशिल्प और बनाए गए परिधानों को पर्यटकों के सामने प्रस्तुत करने के अवसर दिए जा सकते हैं। पर्यटन से स्थानीय युवकों को नए-नए क्षेत्रों में रोजगार के अवसर मिलते हैं। पर्यटन से सांस्कृतिक गतिविधियों में तेजी आती है और पर्यटकों तथा उनके मेजबानों के बीच बेहतर और समझदारी पूर्ण सम्बन्ध विकसित होते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर इससे विदेशी मुद्रा की मोटी कमाई होती है जो किसी भी देश के लिए महत्वपूर्ण है। सच्चाई यह है कि दुनिया के 83 प्रतिशत विकासशील देशों में पर्यटन विदेशी मुद्रा अर्जित करने का प्रमुख साधन है। मोदी सरकार ने अपने तीन साल के कार्यकाल में पर्यटन क्षेत्र का कायाकल्प कर दिया है। पर्यटन के क्षेत्र में देश ने जिस गति से तरक्की हुई है उससे लगता है कि, भविष्य में दुनिया के पर्यटन मानचित्र पर भी भारत अव्वल देशों में शामिल हो जाएगा। मात्र तीन वर्षों में देसी मानदंडों पर ही नहीं विदेशी मानदंडों पर भी पर्यटन के क्षेत्र में भारत की रैंकिंग काफी सुदृढ़ हुई है। विदेशी सैलानियों ने भारत को काफी अधिक महत्व देना शुरू कर दिया है। यही वजह है कि देश में विदेशी सैलानियों के साथ ही विदेशी मुद्रा का भंडार भी भरने लगा है। मोदी सरकार ने देश की कमान संभालते ही जिन चीजों पर सबसे अधिक जोर देना शुरू किया था उनमें से पर्यटन भी एक है। इसके लिए प्रधानमंत्री ने खुद अपने स्तर पर पहल शुरू की थी। पीएम मोदी ने दुनियाभर में जाकर भारत के पर्यटन क्षेत्र को जीवंत बनाने की कोशिश की है। उनके उन्हीं प्रयासों और प्राथमिकताओं का असर अब दिखाई देने लगा है।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 मार्च को अपने मन की बात में कहा था - ये बात सही है कि टूरिज्म सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला क्षेत्र है। गरीब से गरीब व्यक्ति कमाता है और जब टूरिस्ट, टूरिस्ट डेस्टिनेशन पर जाता है। टूरिस्ट जाएगा तो कुछ न कुछ तो लेगा। अमीर होगा तो ज्यादा खर्चा करेगा और टूरिज्म के द्वारा बहुत रोजगार की संभावना है। विश्व की तुलना में भारत टूरिज्म में अभी बहुत पीछे है। लेकिन हम सवा सौ करोड़ देशवासी तय करें कि हमें अपने टूरिज्म को बल देना है तो हम दुनिया को आकर्षित कर सकते हैं। विश्व के टूरिज्म के एक बहुत बड़े हिस्से को हमारी ओर आकर्षित कर सकते हैं और हमारे देश के करोड़ों-करोड़ों नौजवानों को रोजगार के अवसर उपलब्ध करा सकते हैं। सरकार हो, संस्थाएं हों, समाज हो, नागरिक हों, हम सब को मिल करके ये काम करना है
भारत प्रतिवर्ष विश्व पर्यटन दिवस मनाता है। प्रकृति की गोद में जो परम आनंद मिलता है, ज़ो सुकून मिलता है, शांति का आभास होता है वो और कहीं नहीं मिल सकता। भारत के पास नैसर्गिक संसाधन बेशूमार है। कुदरत का करिश्मा विश्व के हर कोने में हैं। प्रकृति का आलोकिक रूप देखकर आनंदित होता है। रमणीक स्थलों में कुदरत का नज़ारा मन को अद्भुत शांति प्रदान करता है। प्राकृतिक खजाना चहुंओर फैला पड़ा है। उँचे पहाड़, कल-कल करते झरने, मधुरतान अलापते रंग बिरंगे पंछी, महकते फूल, चारों ओर जैसे प्रकृति अपने आप सज धज हमे पुकार रही हो। भारत का आध्यत्म विश्व को आमंत्रित करता है। भारत अपनी सभ्यता, संस्कृति और परंपरा को परिलिक्षित करता है और विश्व का हर पर्यटक आने को विवश हो जाता है। यह स्वाभाविक है कि भारत पर्यटन के क्षेत्र में देश जैसे-जैसे विकास करेगा, रोजगार के मौके भी बढ़ते जाएंगे और विदेशी मुद्रा भंडार में भी बढ़ोत्तरी होती जाएगी।
मार्च 2006 में अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश जब भारत आये, तब भारत और अमेरिका के बीच परमाणु करार होना था और वह हुआ भी लेकिन इस गंभीर मुद्दे के बीच उनका एक बयान भी छाया रहा कि अमेरिका भारतीय आम खाना चाहता है। इसके उपरांत अमेरिका ने भारतीय कृषि उत्पादों के आयात पर भी एक समझौता किया। उसके अगले साल से ही 17 वर्षों के उपरांत ही सही अमेरिकावासी भारतीय आम का स्वाद चखने लगे। इससे जाहिर होता है कि भारत की मिट्टी पर चाहे कोई आया हो या मिट्टी की खुशबू उस तक पहुंची हो वो शक्स भारत का दीवाना हो जाता है।
वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम के अनुसार मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद भारत में पर्यटन के क्षेत्र में काफी सुधार हुआ है। डब्लूईएफ की ट्रैवल एंड टूरिज्म की काम्पिटीटिव रिपोर्ट 2017 (WEF की Travel & Tourism, Competitiveness Report 2017) की हालिया रैंकिंग में भारत ने 12 अंकों की ऊंची छलांग लगाई है। भारतीय टूरिज्म की रैंकिंग 52वें पायदान से ऊपर चढ़कर 40वें पायदान पर पहुंच गई है। जहां साल 2013 में भारत 65वें नंबर पर था, वहीं 2015 में 52वें नंबर पर आ गया और महज डेढ़ साल के भीतर 12 अंकों की छलांग लगाते हुए 40वें पायदान पर जा पहुंचा है। पर्यटकों के आगमन के मामले में जापान के पांच और चीन के दो अंक के मुकाबले भारत को 12 अंकों का फायदा हुआ है। जबकि अमेरिका शून्य से दो अंक नीचे और स्विट्जरलैंड शून्य से चार अंक नीचे रहा है। सबसे बड़ी बात ये है कि पर्यटकों की सुरक्षा के मामले में भी भारत 15वें स्थान पर आ गया है। यही नहीं पर्यटन से राजस्व में भी भारी बढ़ोत्तरी हुई है। यह 2015 में 1.35 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2016 में 1,55,650 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। इस तरह से विदेशी मुद्रा की कमाई में 15.1 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई। पर्यटन मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2017 में देश में 1.01 करोड़ पर्यटक आए जबकि 2016 में यह आंकड़ा 88.04 लाख था। इस तरह 2017 में भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्या में 15.06 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। खास बात यह है कि भारत आने वाले सबसे ज्यादा विदेशी पर्यटक बांग्लादेशी हैं। कुछ समय पहले तक भारत में सर्वाधिक विदेशी पर्यटक अमेरिका जैसे विकसित देशों से आते थे लेकिन बीते दो साल में बांग्लादेश ने इस मामले में विकसित देशों को पीछे छोड़ दिया है
वैसे 2016-17 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 2015 में 80.3 लाख पर्यटक भारत घूमने आए थे, तो 2016 में उससे 10.7 प्रतिशत अधिक यानि 88.9 लाख विदेशी पर्यटक भारत की यात्रा पर पहुंचे थे। बड़ी बात ये है कि ई-वीजा की सुविधा मिलने के बाद से भारत के प्रति विदेशी सैलानियों की रूचि और बढ़ी है और वो बड़ी संख्या में भारत का रुख कर रहे हैं। जैसे इस साल जनवरी से मार्च के बीच 4.67 लाख विदेशी सैलानी ई-वीजा पर भारत आए जो कि पिछले साल इसी अवधि के 3.21 लाख पर्यटकों की तुलना में 45.6 प्रतिशत अधिक है। भारत आने वाले पर्यटकों को किसी तरह की असुविधा न हो इसे देखते हुए अभी 161 देशों के नागरिकों को ये सुविधा दी जा रही है। भारत ने अपने पर्यटकों को वेलकम कार्ड देना भी शुरू किया है, जिनसे सैलानियों को सभी महत्वपूर्ण जानकारियों मिल जाएं और उन्हें किसी तरह की दिक्कतों का सामना न करना पड़े। केंद्र सरकार स्वदेश दर्शन के तर्ज पर टूरिस्ट सर्किट का विकास कर रही है। इस योजना के तहत 13 सर्किट को चुना गया है। पूर्वोत्तर भारत, हिमालयन, बौद्ध, तटीय, मरुस्थल, जन जातीय, कृष्णा, इको, ग्रामीण, आध्यात्मिक, रामायण और विरासत सर्किट योजना के तहत आते हैं। इस योजना के तहत 2601.76 करोड़ रुपये की लागत वाली सभी 31 परियोजनां पर कार्य पूर्ण करने की योजना है।
पर्यटन, सेवा क्षेत्र का एक ऐसा उभरता हुआ उद्योग है जिसमें अपार संभावनाएं निहित हैं। भारत अतुलनीय प्राकृतिक स्थलों के साथ ही वैश्विक स्तर पर एक बड़े जैविक आयामों के क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। पर्यटकों के लिए भारतीय बाजार विविधताओं भरा स्थान है। इन विविधताओं के आर्थिक पहलुओं को देखते हुए शिल्प आदि क्षेत्रों के संवर्धन हेतु ठोस सरकारी प्रयासों का परिणाम एक नई आर्थिक संभावना के रूप में देखा जा सकता है तथा नए चिन्हित पर्यटन स्थलों पर ढांचागत सुविधाओं का विकास कर न केवल शहरी बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी रोजगार के अवसरों की उपलब्धता बढ़ाई जा सकती है। सुरक्षा के साथ विदेशियों को भी भारत के गांवों की सैर करायी जा सकती है। जिससे पर्यटन को बहुत बढ़ावा मिल सकता है और वहां के लोगों को रोजगार।


  मिस्टिरियस मुम्बई  में-  सुशांत का अशांत रहस्य सर्वमंगला मिश्रा मुम्बई महानगरी मायानगरी, जहां चीजें हवा की परत की तरह बदलती हैं। सुशां...