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Tuesday 19 August 2014

पाकिस्तान
योर टाइम इज अप !!



-सर्वमंगला मिश्रा-स्नेहा

पाक यानी “पवित्र “  पर यथार्थ की व्यथा विपरीत है। भारत का ही हिस्सा आजादी के बाद अपनी स्वायत्ता चाहने वाला पाकिस्तान आज विश्व के समक्ष भारत का सबसे बड़ा दुश्मन बन चुका है। हिस्सेदारी की साझेदारी से आजतक नाखुश पाकिस्तान अपनी दावेदारी समय समय पर मुद्दे के तौर पर हथियार बंद तरीके से पेश करता चला आ रहा है। यह बात अलग है कि भारत साम दाम दंड भेद की परिभाषा जानता है। जिससे कहीं न कहीं पाकिस्तान के अंदर इस बात का भय सताता जरुर है। जिससे उसे कदम फूंक-फूंक कर रखना पड़ता है। पर, मकसद और मानसिकता में परिवर्तन का नामो निशान तक नहीं है। पाकिस्तान अधिकाधिक की चाह आज भी रखता है। जिससे वह कश्मीर के आधे हिस्से को पाकर संतुष्ट नहीं है। उसके अंदर आतंरिक कलह आज भी जिंदा है बांग्लादेश को खोने का। जो कभी ईस्ट पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था। भौगोलिक दशा और परिस्थितयां परिवर्तित हुईं और 1971 का युद्ध के बाद एक नये देश का जन्म हुआ जिसे बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है। जहां अमूमन 98 प्रतिशत बंगाली भाषा और संस्कृति को मानने वाले लोग रहते हैं औऱ 2 प्रतिशत में अन्य जातियां। इसी तरह की परिस्थतियां फिर पनप रहीं हैं कश्मीर को लेकर। हालांकि 1999 का कारगिल युद्ध को एक दशक जरुर बीत चुका है। पर, मस्तिष्क में अभी जख्म हरे ही हैं। मकसद यह नहीं कि पाकिस्तान आज भी भारत की ओर ललचायी निगाहों से देख रहा है। सवाल यह है कि वह अपने ही घर में आज भी असुरक्षित है। पाकिस्तान का इतिहास भारत से पुराना नहीं है। 1958 से आज तक फौज की हूकूमत समय समय पर तानाशाहों के पर कतरती आयी हैं। वहां की फौजी ताकत जग जाहिर है। जो रातोंरात शासक बन जाती है। उसी फौज का हिस्सा कभी परवेज मुशर्रफ भी थे जिन्होंने नवाज शरीफ को पलक झपकते दरकिनार कर दिया था और स्वयं राष्ट्रपति बन बैठे थे। लेकिन पाकिस्तान का मौसम ए हाल बदस्तूर परिवर्तनशील था है और शायद रहेगा भी। पाकिस्तान का रंगमंच प्रारंभ से निराला रहा है। राजनैतिक गतिविधियां जिस रुप में घटित होती हैं उससे विश्व के समक्ष क्या संदेश जाता है यह तो विश्व पटल पर एक एक करके पाकिस्तान की दासतां अंकित होती चली जा रही है। बेनज़ीर भुट्टो को पदच्यूत किया नवाज़ शरीफ ने, नवाज को पदच्यूत किया परवेज मुशर्रफ ने। लंदन में कारावास बीताने वाली बेनज़ीर भुट्टो ने उस समय आने का निर्णय किया जब नवाज शरीफ की गद्दी उनके हाथों से छीन गयी थी और परवेज मुशर्रफ उसके पाक की गद्दी पर अपने हक ए दासतां की कहानी रच चुके थे। ऐसे में नवाज़ और बेनजीर एक ही नाव पर सवार, एक ही विरासत के दो हक़दार होने के कारण एक दूसरे के दुश्मन ही रहे। दुश्मन-दुश्मन =दोस्त का फार्मूला फेल हो गया। वहीं सत्ता की लोलुपता से मुशर्रफ मुंह कैसे मोड़ लेते। फलस्वरुप 2007 में शरीफ को पाक की धरती पर कदम तक न रखने देने वाले मुशर्रफ आज शरीफ की तानाशाही के शिकार हैं। उन्हें तो कालेपानी की सज़ा सी मिल गयी है जहां वह बेनज़ीर और शरीफ की तरह देश से बाहर कदम ही नहीं रह सकते। उन्हें लंदन का वनवास भी नसीब नहीं होने दिया शरीफ़ ने। यह शरीफ की शरीफाई है। जो भारत के साथ भी पूरी शिद्दत से निभाये चले जा रहे हैं। कश्मीर का सपना उस ड्रीम गर्ल को पाने के सपने जैसा हो गया है। जिसे ड्रीम गर्ल तवज्जो ही नहीं देती। कश्मीर वो प्रेमिका बन गया है जिसकी चाहत में पाक हर हद से गुजरने की हुंकार भरता है। वहीं भारत अपनी बेटी को बचाने का हर संभव प्रयास और मुस्तैदी में कोई कसर नहीं छोड़ता क्योंकि अब यह आन बान और शान का मसला है। सुशासन की आवाज उठाने वाला कोई नहीं है पाकिस्तान में। तभी बेनजीर भुट्टो के नाम और राजनैतिक करियर को चमकता देख षणयंत्र ऐसा रचा गया कि चुनाव से पहले ही बेनजीर भुट्टो की सदा सर्वदा के लिए विदाई हो गयी। संघर्ष त्रिकोणीय से नेक टू नेक का संघर्ष बन गया।
खैर, यह तो इतिहास था भविष्य क्या है पाकिस्तान का?? 2013 में पाक में चुनाव के बाद नवाज शरीफ को खोयी विरासत तो मिल गयी पर, नजरें अभी भी तनीं हैं। इमरान खान जिन्होंने अपनी मां के नाम पर अस्पताल बनवाया, जो देश की कौमी ताकत को लेकर समय समय पर अपनी आवाज़ बुलंद करते रहे हैं और पाक में हो रहे अपराध ए दासतां बयां करते हैं जो आवाम की ताकत को तहेदिल से जमींदोज़ होने से बचाने की कवायत में जुटे हुए हैं। दूसरी तरफ विदेशी मुल्कों में जीवन बिताने के बाद कनाडा से वापस आये पर्यटक भी अपनी दावेदारी ठोंकने में जुट गये हैं। खतरा फिर पनप रहा है। नवाज के सिर पर क्योंकि फौज जिसने अपनी ताकत और हूकूमत की एक अलग कहानी विश्व के इतिहास में रच डाली है। उसे वह विस्तार जरुर देना चाहेगा। उधर इमरान खान की बेतहां इतेंहा का दौर खत्म होने का नाम न लेता देख समर का ऐलान दोनों दलों ने अमूमन कर ही दिया है। ताहिर उल कादरी और इमरान खान क्या एक डगर के दो साथी हैं या पहले की तरह विरोधी जोड़ियां ?? यह तो भविष्य ही खुलासा कर सकेगा। ऐसे में क्या पाक संसद के विरोधी दल के प्रमुख नेता इमरान खान और कादरी ने अल्टीमेटम तो दे दिया है ऐसे में क्या शरीफ फौजी ताकत का सहारा लेकर खान साहब को सिरे सरकाने में कामयाब होंगें या खान, कादरी और शरीफ की टक्कर में एक बार फिर फौजी ताकत को सत्ता हथियाने का मौका मिलेगा ? खुली चुनौती के साथ युद्ध का बिगुल बजाने वाले खान के सब्र का बांध टूट सा गया है। सत्ता पाने की मानसिक बाढ़ ने जुनून का रुप ले लिया है। अब रेड जोन क्रास होगा या सत्ता का समुंदर। क्योंकि योर टाइम इज अप!!  का उद्घोष इमरान खान ने एक रैली में चिल्लाकर अपने समर्थकों को कूच करने का आदेयस देकर शरीफ को आगाह किया कि बहुत हो चुका अब वक्त तुम्हारा खत्म होता है। यह चेतावनी है कि कुर्सी खाली करो कि जनता नहीं दूसरी पार्टी आ गयी है।
सत्ता के चौतरफा खेल में पाक की गद्दी फिर लड़खड़ाने लगी है। अपने ही घर में असुरक्षित रहने वाली सरकार विदेशी ताकतों के बल पर चलने वाली अपने गिरे बान में झांककर क्यों नहीं देखती। जो है उसे संभाल कर रख पाना चुनौती है तो जिसकी आस में सबकुछ दांव पर लगा देते हैं उसकी सुरक्षा कैसे करेंगें ? विदेशी हुक्मरानों की पैनी दृष्टि से ही पाकिस्तान के हौसले पस्त से हो जाते हैं। पाकिस्तान के राजनीति की बुनियाद खोखली और ठूंठ हैं। पाकिस्तान की दशा मोरनी के समान है जिसे अपने पैर निहार लेने चाहिए। पाकिस्तान, जो एक आतंकी गढ़ माना जाता है। जो आतंकवाद का ट्रेनिंग सेंटर है, जहां नेस्तोनाबूत करने की शिक्षा दी जाती है, जहां हिन्दूस्तानी हिन्दू आज भी खौफ के साये में जीते हैं, जहां मजहब की परिभाषा आतंक और जेहाद समझायी जाती है वहां की युवा पीढी किस सोच को लकर पल रही है, उसकी मानसिकता को रौंधा जाता होगा। पाकिस्तान आज अपने ही बिछाये जाल में फंसता चला जा रहा है। जहां विश्व के सबसे बड़े आतंकवादी को पनाह मिली थी जिसे अमेरिका ने अपनी ताकत के बल पर खदेड़ डाला। पर, जिद्दी पाकिस्तान हम नहीं सुधररेंगे की पगडंडी पर चलता है।
“बोया पेड़ बबूल का, आम कहां ते खाय “ पाकिस्तान को सेल्फ एनालिसिस करने की आवश्यकता है। फौज जो किसी भी शासक का हथियार होता है समाज-देश में शांति बरकरार रखने में। वही फौज यहां स्वयं सत्ता भोगी बन जाती है पर्याय यह है कि शांति बरकरार रखने के हथियार से ही शासक वंचित है। सेना अपने अस्तित्व को जिंदा रखने में यहां सफल देखी जा सकती है। पाकिस्तान दोस्ती की झाड़ से झांकता है जहां प्रेम और विश्वास कब्र में दफन हो चुके हैं। पर प्रेम, विश्वास और दोस्ती के पुतले आगेकर पाक धोखे का तोहफा ही पेश करता है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ समारोह में आकर पाक ने अपनी सूझ बूझ का परिचय जरुर दिया। जहां हाथ और हालात सामान्य दिखे पर दिल के जज्बात में दफ़न कहानी तो बाद में निकलकर आयेगी। क्योंकि सीजफायर की घटनायें उसके बाद से बढ़ती ही चली जा रही है। ऐसे में पाक की अवस्था डरने और डराने वाली हो गयी है जहां मात्र डेढ़ साल में ही ओपोजिशन ने चुनावी बिगुल बजा डाला है जिससे एक बार आपसी कलह का शिकार फिर एक बार हर बार की तरह आम इंसान ही चक्रव्यूह के चक्रवात में फंसता है। तो भारत पर अपना दबदबा दिखाने की झूठी शान से भी पाक पीछे नहीं हट पाता।    


   

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