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Thursday 21 September 2017

बंगाल की शेरनी और गुजरात के शाह
किसमें कितना है दम ?
*सर्वमंगला मिश्रा


ब्रिटिश शासनकाल के दौरान भारत की राजधानी रह चुका बंगाल आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। आज अस्तित्व के जंग की वजह है भाजपा का द्रुत गति से देश में बढ़ना। भाजपा जैसे-जैसे अपने विजय रथ को आगे बढ़ा रही है वैसे वैसे बंगाल का अस्तित्व और अपनी कुर्सी पर बंगाल की मुख्यमंत्री को खतरा मंडराता नजर आ रहा है। केसरिया रंग का झंडा कहीं बंगाल पर अपना परचम न लहरा ले, इस बात से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नींद हराम सी हो गयी है। 

भारत के मानचित्र पर नजर डालते ही आंखों में आजकल केसरिया रंग चढ़ जाता है। प्रधानमंत्री और भाजपा को जहां इससे बुलंदी को छुने का साहस बढ़ाता है वहीं यह रंग बंगाल को डराता है। अमित शाह की पैनी नजर बहुत दिनों से इस राज्य पर टिकी हुई है। उन्हें, जितना आसान लगा था बंगाल को जीतना, यह लड़ाई दिन पर दिन अपने परवान चढ़ती चली जा रही है। पिछले साल हुए बंगाल विधानसभा चुनाव के समय से अमित शाह अपनी गर्जना करते चले आ रहे हैं। पर, बंगाल की शेरनी, जिसने 34 वर्षों के शासनकाल को हिला कर रख दिया था और सत्ता परिवर्तन कर डाला था और अब  भाजपा और अमित शाह की दहाड़ को खुली चुनौती दे डाली है। ममता की चुनौती- सत्ता को बनाये रखने की, अमित शाह की चुनौती सत्ता पा लेने की, दोनों की चुनौती अपनी रणनीति में परिवर्तन करने की। शह और मात के इस खेल में भाजपा ने अपने सारे हथियार को तराश कर तरकश में रखती चली जा रही है। वहीं ममता दीदी अपने मां- माटी –मानुष की ढाल के बल पर अपनी शाख बचायी हुई हैं। लेकिनमां- माटी –मानुष के इस राजमहल में सेंध कहां और कैसे लगानी है गुजरात के शाह इसी रणनीति पर अमूमन रोज माथापच्ची करते हैं।

ममता बार-बार कह रही हैं कि उनका राज्य पूर्णतया सुरक्षित है और यहां किसी की दाल गलने वाली नहीं है। कहने का तात्पर्य है कि केसरिया झंडा ममता बनर्जी बंगाल में किसी को लहराने नहीं देंगी। वहीं अमित शाह ने अपनी पलटन को साम दाम दंड भेद की रणनीति अपनाने का निर्देश पर्दे के पीछे से सम्भवत: दे डाला है। जिसका नतीजा पूरे देश ने देखा- गोरखालैंड की मांग का ज्वलंत रुप से उठना और पूरे पहाड़ को अस्त व्यस्त कर देना। क्या समझा जाय कि आक्रामक ममता के तेवर के पीछे कहीं डर घर तो नहीं कर गया है ? डर अगर घर कर भी गया है तो बंगाल की शेरनी उसे अपने माथे पर शिकन के रुप में उभरने नहीं देती है। सीपीएम को धूल चटा देने वाली ममता बंगाल की बाजीगर बनी हुई है।

बंगाल की सांसद रुपा गांगुली के जरिये भाजपा महिला बनाम महिला युद्ध खेलना चाहती है। रुपा गांगुली ने कुछ महिनों पहले ही महिला सुरक्षा पर विवादित बयान दे डाला था जिसपर ममता के दलगत नेताओं ने पलटवार कर मामले को नेस्तोनाबूत कर डाला। पूरे देश की परिस्थिति को नजर में रखते हुए इस बात को कहा जा सकता है कि ग्रामीण इलाकों में घटी कुछ घटनाओं को छोड़कर बंगाल आज भी महिलाओं के लिए सुरक्षित ही माना जाता है। वहीं सम्पूर्ण भारत में महिला अपराध का प्रतिशत बंगाल की तुलना में कहीं अधिक है। वहीं ममता के पास रुपा गांगुली को करारा जवाब देने के लिए कई घातक हथियार उनके तरकश में हैं। यहां भाजपा को एकलव्य ढूंढना होगा जो अर्जुन को मात दे सके। वहीं कांग्रेस के द्रोणाचार्य मानस भूंईया ने कुछ समय पहले ही दीदी का हाथ थामा है। जिससे तृणमूल स्वयं को और अधिक परिपक्व समझने लगी है। बंगाल की दीदी भले ही अपने अति शीघ्र निर्णयों के लिए जानी जाती हैं- चाहे अटल बिहारी की सरकार में रेलवे मंत्रालय से इस्तीफा हो या नैनो प्लांट को उखाड़ फेंकने की बात हो। बंगाल की मुख्यमंत्री ने एक उद्देश्य की राजनीति की है और वह है बंगाल की जनता का सुख- दुख। इसी बात का उदाहरण है-टाटा-सिंगूर प्लांट। इसी सिंगूर की जनता के लिए ममता एक महीने से भी ज्यादा दिनों तक अनशन पर बैठी रही और टाटा को मजबूर कर डाला अपने प्लांट को हटाने के लिए। इससे बंगाल की जनता को सचमुच नुकसान हुआ या फायदा इसकी आलोचना लोगों ने अपने अपने तरीके से कई बार की है और आज भी यह विषय लोगों को कहीं न कहीं झकझोरता है।

अमित शाह का लगातार बंगाल दौरा इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि इतनी चिंता तो उन्हें कर्नाटक और दूसरे राज्यों की भी नहीं है जितनी बंगाल की है। वहीं ममता अपनी सत्ता और अपने अधिकार का प्रयोग करना बखूबी जानती हैं। कभी आर एस एस प्रमुख मोहन भागवत जी को तो कभी भाजपा को रैली करने की अनुमति न दिलवाकर उनकी यात्रा विफल करवा देती हैं। वहीं दूसरी तरफ, बंगाल की तरह दूसरे किसी राज्य में अमित शाह जैसे दिग्गज को ना मुंह तोड़ जवाब देने की हिम्मत है और ना ही खुली चुनौती देने का साहस। दूसरे राज्य शीत युद्ध कर रहे हैं। पर, बंगाल की धरती खुदीराम बोस से लेकर नेताजी तक की रही है जो किसी के आगे झुकती नहीं है। केवल ललकारती है और सिर्फ ललकारती है। अदम्य साहस से भरपूर बंगाल की मुख्यमंत्री ने भी मानो हार नहीं मानने की ठान ली है और रार करने की ठान ली है। अब इसमें चाहेशारदा सामने आये या नारदा, ममता के कदम पीछे हटने वालों में से नहीं लगते हैं।

अमित शाह जिसने पूरे भारत में अपने दिमाग का लोहा मनवा लिया है, भला बंगाल से मात कैसे खा सकते हैं। ममता का सामना कैसे और कितनी देर तक कर पायेंगें और यहां की जनता का दिल कैसे जीत पायेंगें यह देखना बहुत दिलचस्प होगा। शतरंज का दिमागी खेल काम आएगा या अमित शाह को कमर कसकर  बंगाल की युद्ध भूमि में उतरना होगा। जिसतरह पर्दे के पीछे से भाजपा चाल चल रही है उससे ममता मजबूर होंगी या शाह जी को मजबूर कर देंगी। चेक मेट”  कौन किसको करेगा यह तो दोनों पक्षों की रणनीति ही तय कर सकती है। वैसे तो 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले अपने दौरे के दौरान मोदी जी ने गुजरात और बंगाल का कनेक्शन भी जोड़ा था पर अब वो धागा कहीं कमजोर पड़ता दिख रहा है।

बंगाल के पड़ोसी जो कल तक साथ देने के लिए खड़े थे उनमें से कुछ साथ छोड़ चुके हैं और संभवत: कुछ भविष्य में छोड़ देंगें। बिहार जहां नीतीश की सरकार ने पैंतरा बदल लिया है वहीं ओड़िसा के बीजू जनता दल कभी भी उखड़ सकती है और भाजपा अपनी गद्दी हासिल कर लेगी। असम में कांग्रेस को इतने सालों बाद उखाड़ फेंकने में फतह हासिल कर चुकी भाजपा के हौसलें बुलंद हैं। बुलंद इसलिए भी हैं क्योंकि सबसे बड़े राज्य यानी उत्तर प्रदेश पर भी अब भाजपा का केसरिया रंग लहरा चुका है। अब बचा है तो केवल बंगाल -किला फतह करने के लिए। हाल ही में अमित शाह ने वाम से रामतक का नया नारा गुंजायमान कर बंगाल के हिन्दुओं पर भक्ति भावना के बहाने राम कार्ड खेलने की जुगत लगायी है। क्योंकि 1992 का वह साल जब बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना घटित हुई थी तब बंगाल के कई नवयुवक शहीद हुए थे। वे गुमनाम रह गये थे पर अयोध्या की भूमि पर आज भी उनका रक्त शहादत की कहानी कहता है।

कहते हैं बंगाल जो आज सोचता है पूरा भारत कल सोचता है। तो क्या शाह के सोचने के पहले ही ममता ने बंगाल की रणनीति तैयार कर ली थी? और शाह ने जिस खेल को आसान समझा था उसके लिए अब रणनीति तैयार कर रहे हैं ? सांठगांठ के माहिर खिलाड़ी अमित शाह जी बंगाल में अपनी तिकड़ी कैसे बैठाएंगें और 34 वर्षों की सत्ता पलटने वाली तृणमूल सरकार को क्या बंगाल में दरकिनार कर पायेंगें। यह मंजर किसी आकाशीय वर्षा से कम नहीं होगा। वैसे वाम दलों ने भाजपा से अब तक कथित तौर पर हाथ तो नहीं मिलाया है पर, नौबत आयी तो ममता नीतीश से किसी मामले में कम नहीं है।

                                      


                                             






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