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Sunday 22 July 2018


बुराड़ी रहस्य

सर्वमंगला मिश्रा
विश्व आधुनिकता जगत की सीढियां चढ़ रहा है जबकि सच यह है कि आधुनिकता के साथ अंधविश्वास आज तक जिंदा है। बुराड़ी हत्याकांड इसका ज्वलंत उदाहरण है। एक साथ एक ही परिवार के 11 लोगों की मौत किसी दर्दनाक कहानी की ओर इशारा करता है। आसपास और जाननेवालों के अनुसार परिवार में सबकुछ सामान्य था। पुलिस को भी किसी बाहरी व्यक्ति के घर में जबरन प्रवेश के कोई निशान या सुराग नहीं मिले हैं। ऊपर से सबकुछ ठीक था पर घर के भीतर का माहौल किसी को कभी समझ ही नहीं आया। किसी को भी उनके घर के भीतर चल रहे अंधविश्वास की भनक तक नहीं लगी। सवाल उठता है राजस्थान के मूल निवासी, इस परिवार के सिर पर क्या सचमुच मोक्ष प्राप्ति के अंधविश्वास का ऐसा भूत सवार था कि जिंदगी समाप्त करते समय एक पल की भी तकलीफ नहीं हुई ? या हुई तो बहुत पर बताने वाला अब कोई नहीं बचा। क्योंकि परिवार के बीच पला एक बेजुबान को घर की छत पर बांध दिया गया था। इस परिवार में बूढ़े, जवान और बच्चे सभी थे। तीन पी​ढ़ी के इस परिवार की एक साथ सबने अपनी जीवन को समाप्त कर डाला। इसी परिवार की एक लड़की की अगले महीने शादी भी होने वाली थी। पुलिस की प्राथमिक जांच कहती है कि इस भयानक घटना में बाहर के किसी व्यक्ति का हाथ नहीं है। 'मोक्ष' पाने की एक भ्रामक चाह ने उन सभी को इतना बड़ा कदम उठाने और कथित तौर पर एक साथ अपनी जान लेने के लिए मजबूर कर दिया। परिवार के सदस्य ललित की आध्यात्म में ख़ास रुचि उसके पिता की मृत्यु के बाद से और खासकर उसकी आवाज वापस आने के बाद से बढ़ गयी थी। उनकी डायरी में मोक्ष, मृत्यु के बाद का जीवन और उसे पाने के लिए किसी भी हद तक जाने की तैयारी, ये सभी बातें लिखी थीं।
शेयर्ड साइकोसिस – क्या होता है-
बुराड़ी में रहने वाले भाटिया परिवार में हुई इस घटना के पीछे भी यही मुख्य कारण नज़र आता है। जांच में सामने आया है कि साल 2008 में ललित के​ पिता की मृत्यु के बाद अंधविश्वास और उससे जुड़ी विधियों की तरफ उनका झुकाव बढ़ गया था। उन्हें महसूस होता था कि ध्यान लगाने पर उनके पिता उनसे बात करते हैं और उन्हें निर्देश देते हैं। मृत लोगों के साथ बात करना अपने आप में एक मानसिक बीमारी है। यह भ्रम की आप मरे हुए व्यक्ति की आवाज़ सुनते हैं या आपको उसके ज़िंदा होने का आभास होता है, तो ये एक तरह की मनोविकृति है। ऐसे मामलों में कोई शख्स अपने आपको हक़ीक़त से बहुत दूर कर लेता है और काल्पनिक दुनिया में रहने लगता है। ललित का व्यवहार भी कुछ इसी तरह का था। अंधविश्वास के कारण दूसरों का भी भरोसा होता है इसलिए वो बीमारी की तह तक नहीं पहुंच पाते। उस व्यक्ति में ख़ास शक्तियां हैं-ऐसा लोग मानने लगते हैं। ऐसे लोग परिवार के दूसरे सदस्यों पर भी प्रभाव डालते हैं। फिर वो भी कुछ ऐसा ही अनुभव करने लगते हैं और ख़ुद अंधविश्वास की चपेट में आ जाते हैं। वहीं इसी बीच पुलिस के हाथ ललित की भांजी प्रियंका की एक नीजि डायरी लगी है जिससे 11 मोतौं की गुत्थी और उलझ गई है । इस डायरी में अंधविश्वास या तंत्र-मंत्र नहीं बल्कि प्रेम प्रसंग का जिक्र है जिसने इस केस को नये मोड़ ​पर ला खड़ा कर दिया है। प्रियंका की डायरी के कवर पेज पर सुंदर लड़की लिखा है और यह पेज दिल के आकार में कटा है। अंदर के पन्नों में प्रियंका ने मॉडल टाउन में रहने वाले एक युवक का जिक्र किया है। डायरी की शुरूआत में लिखा कि मैं जो बात आपको बताने जा रही हूं, उससे मैं आपकी नजरों से गिर सकती हूं। उसने एक लड़के का नाम बताते हुए लिखा कि अब वह घर खाली करके जा चुका है। इसके लिए उसने अपने मामा ललित से माफी भी मांगी। उसने यह भी भरोसा दिलाने की कोशिश की है कि वह शादी के बाद अपने ससुराल में ठीक से रहेगी। वहां सबको खुश रखेगी और किसी को शिकायत का मौका नहीं देगी। अब उस लड़के की तलाश जारी है जिसका जिक्र इस डायरी में किया गया है। पुलिस उस लड़के से पूछताछ कर यह भी जानकारी जुटाने की कोशिश करेगी कि क्या प्रियंका ने कभी मोक्ष प्राप्ति के इस विधि के बारे में चर्चा की थी। वहीं जांच से जुड़े पुलिस अधिकारियों का कहना है कि डायरी में कही गई बातें कब लिखी गई हैं इसका पता लगाया जा रहा है। हो सकता है कि यह डायरी पुरानी हो। लिखावट प्रियंका की हैंडराइटिंग से मिलती है। जांच में पता चला कि ललित जब परिजनों से कहता था कि उसके अंदर पिता की आत्मा प्रवेश कर गई है तो उसकी आवाज और शरीर कांपने लगते थे। इस हालात में प्रियंका ही रजिस्टर में वो सबकुछ लिखती जो ललिल बोलता था। ललित अपने पिता की आवाज में पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठान, परिवार के लोगों की दिनचर्या और सजा संबंधी निर्देश देता था। अगर किसी कारणवश प्रियंका घर में मौजूद नहीं होती थी तो ललित की पत्नी टीना रजिस्टर लिखने का काम करती थी। सीसीटीवी फुटेज में भुवनेश की पत्नी सविता व उनकी बड़ी बेटी नीतू को दो स्टूल लेकर घर के अंदर जाते हुए देखा गया। जांच के क्रम में पता चला कि अलग अलग फर्नीचर दुकानों से स्टूल खरीदे गए थे। शायद एक दुकान से इसलिए स्टूल नहीं खरीदे गए जिससे दुकानदार शक न कर बैठे या फिर कोई सवाल न पूछ बैठे। पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज की तस्दीक के लिए दोनों फर्नीचर दुकानदारों से पूछताछ की। दुकानदारों ने पुष्टि भी कर दी है। घटना से छह सात दिन पूर्व ही मार्केट से दस चुन्नियां खरीदी गई थीं। पुलिस ने मौका-- वारदात से टेलीफोन के तार, टेप के बंडल, कई रूमाल, प्लास्टिक की रस्सियां भी बरामद की थीं। इन सभी सामानों का इस्तेमाल फंदा लगाने से लेकर मुंह, हाथ आदि बांधने के लिए किया गया था।
मृतकों में सात महिलाएं व चार पुरुष थे, जिनमें दो नाबालिग थे। एक महिला का शव रोशनदान से तो नौ लोगों के शव छत से लगी लोहे की ग्रिल से चुन्नी व साड़ियों से लटके मिले। एक बुजुर्ग महिला का शव जमीन पर पड़ा मिला था। नौ लोगों के हाथ-पैर व मुंह बंधे हुए थे और आंखों पर रुई रखकर पट्टी बांधी गई थी। एक ही बेड़शीट की चादर के कई टुकड़े करके भी लोगों के चेहरों को ढका गया था। क्या यह किसी हड़बड़ाहट का नतीजा था। जब सबकुछ तय तरीके से हो रहा था तो मुंह को ढ़ाकने के लिए जरुरत की चीज भी मार्केट से लायी जा सकती थी।
बुराड़ी-संत नगर मेन रोड से सटे संत नगर की गली नंबर दो में बुजुर्ग महिला नारायण का मकान है। इसमें वह दो बेटों भुवनेश व ललित, उनकी पत्नियों, पोते-पोतियों व विधवा बेटी संग रहती थीं। ये लोग मूलरूप से राजस्थान के निवासी थे और 22 साल पहले यहां आकर बसे थे। बुजुर्ग महिला के तीसरे बेटे दिनेश सिविल कांटेक्टर हैं और राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में रहते हैं। बुजुर्ग महिला के दोनों बेटों की भूतल पर एक परचून व दूसरी प्लाईवुड की दुकान है। साथ ही पहली व दूसरी मंजिल पर परिवार रहता था। रोज सुबह ललित घर के सामने रहने वाले दिल्ली पुलिस से सेवानिवृत्त तारा प्रसाद शर्मा के साथ मार्निंग वॉक पर जाते थे। उससे पहले शर्मा ललित की दुकान से दूध लेते थे। रविवार सुबह दुकान नहीं खुली तो शर्मा दरवाजा खटखटाने गए, पर दरवाजा खुला था तो वह ऊपर चले गए। ऊपर का दरवाजा भी खुला था। आगे जाने पर उनकी रूह कांप सी गई। बरामदे वाले हिस्से में दस लोगों के शव लटके थे, जबकि एक महिला का शव कमरे में पड़ा था। यहां एक बात समझ नहीं आती कि जब सारी क्रिया घर के अंदर गुप्त तरीके से चल रही थी तो दरवाजा कैसे खुला रह गया या जिसने घटना को अंजाम दिया वो फरार हुआ और घर का दरवाजा खुला रह गया हो। हालांकि पोस्ट मार्टम की रिपोर्ट में क्लोरोफार्म जैसी वस्तु का किसी भी मृत व्यक्ति के शरीर से मिलने की बात नहीं कही गयी है अथवा शरीर से किसी जहरीले वस्तु की भी पुष्टि नहीं हुई है।
इन बातों से जहन में कहीं न कहीं एक बात तो जरुर कौंधती है कि जब कोई देनदारी नहीं थी, कोई विवाद नहीं था, कोई शत्रु भी खुले तौर पर नहीं पकड़ में आया जिसपर आशंका व्यक्त की जाय। क्या ऐसा संभव है कि कोई ऐसा शक्स हो जिसने बहुत ही चतुराई के साथ किसी पुरानी शत्रुता के खेल को अंजाम दिया हो। पर यदि यह अंधविश्वास का खुला चिट्ठा है तो ऐसे अंधविश्वास को इंसानियत की जड़ से उखाड़ फेंकना होगा अन्यथा ऐसी कितनी मासूम जिंदगियां मोक्ष पाने के नाम पर खूबसूरत जिंदगी से हाथ धो बैठेंगी।






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