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Sunday 23 August 2020

 

मिस्टिरियस मुम्बई में-

 सुशांत का अशांत रहस्य

सर्वमंगला मिश्रा

मुम्बई महानगरी मायानगरी, जहां चीजें हवा की परत की तरह बदलती हैं। सुशांत का जीवन भी रिया के कदम रखते ही बदलने लगा इतना बदल गया कि सुशांत का परिवार अकेला रह गया और सुशांत अकेले ही एक नए सफर पर निकल गया। गुस्ताख़ी या जलन, प्रतिशोध या फितरत, क्या छुपा है रेत की गहराइयों में सुशांत का अशांत रहस्य।

हर शहर की अपनी एक गरिमा होती है, अपना एक व्यक्तित्व होता है, अपना एक ढ़ंग होता है। लोगों को अपनाना और उनसे मुख मोड़ लेना भी फितरत में आता है। कहते हैं हर शहर हर इंसान की परीक्षा लेता है अपने ढ़ंग से और जो उसमें खरा उतरता है शहर उसका हो जाता है। 6 महीने या साल भर हर शक्स की परीक्षा होती है कोई पास तो कोई फेल होता है। सुशांत सिंह राजपूत पास हो गए थे। शहर ने उन्हें अपना भी लिया था पर कुटिल षणयंत्रों से अंजान सुशांत अपने जीवन में आता ट्विस्ट समझ नहीं पाए और जब तक समझ आया तो बहुत देर हो चुकी थी।

कहानी में ट्विस्ट आता है पर सुशांत मर्डर केस में न जाने कितने ट्विस्ट एंड टर्नस अभी और आने बाकी हैँ। मीडिया के शोर मचाने से केस तो सीबीआई के हाथों पहुंच गया है। पर सवाल उठता है कि हजारों लोग अपने किस्मत की आजमाइश करने आते हैं कोई सफल तो कोई वापस अपना रास्ता नापता चला जाता है। तमाम गवाहों की मानेतो रिया की हूकूमत चलती थी सुशांत पर। इन बातों को कहने वाले उनके द्वारा रखे गए स्टाफ ही कह रहे हैं। खेल पैसों का, धोखे का, ईर्ष्या का या प्रतिशोध का। रिया पैसों के लिए सुशांत के साथ प्यार का खेल खेली या धोखा से शहद षणयंत्र रचकर उन्हें मौत के घाट ही उतारने आई थीं। मकसद पूरा करने का जरिया थीं रिया। इसका पता सीबीआई लगाएगी, जिसके लिए हम सबको प्रतीक्षा करना होगा।

नेपोटिज्म से लेकर करियर को ढलान पर दिखाने से लेकर हजार साजिशें रची गईं ऐसा साबित करने के लिए कि सुशांत की मानसिक हालत खराब थी, वो अवसाद से गुजर रहे थे। खैर, इन बातों को अब शायद कोई औचित्य नहीं है। हजारों सबूत और गवाह यही बताते हैं कि सुशांत एक जिंदादिल, जीवन को जीने वाले इंसान था। डायरियों में भविष्य की योजनाएं थीं। पर वो अपनों में बेगाना कौन था ?जिसे सुशांत कांटे की तरह चुभ रहा था। जिसे उसकी उन्नति सहन नहीं हो रही थी। जिसे सुशांत फूटी आंख नहीं भा रहे थे। क्या बेगानों ने अपना बन के लूटा या अपनों ने बेगाना बनकर। सवाल जलेबी की तरह टेढ़ा है पर जलेबी भी किसी सिरे से शुरु होती है और कहीं उसका सिरा खत्म होता है।

इस केस में रिया के रखे गए स्टाफ में सिद्धार्थ पिठानी एक अहम कड़ी के तौर पर देखा जा रहा है क्योंकि यही वो दो आंखें हैं जिसने सुशांत को 14 जून की सुबह पंखे से लटका देखा। पीछे नीरज और दीपेश सावंत भी थे। पर क्या सिद्धार्थ की इतनी हिम्मत थी कि वो सबकुछ अकेले कर सकता था। सब एकसाथ थे सिवाय सुशांत के। खिचड़ी पकी, पर किसके कहने पर। इस बात पर गौर करना होगा। पड़ोसी महिला ने 22 अगस्त को अपनी चुप्पी तोड़ी और खुलकर सामने आई मीडिया से कहा कि 13 जून की रात ग्यारह बजे के आसपास सारी लाइटें बंद हो गई थी सिवाय रसोई घर के। जबकि नीरज सुशांत का रसोइया कहता है कि 14 जून की सुबह उसने सुशांत को जूस दिया और नारियल पानी भी। उसके बाद उन्होंने अपने कमरे का दरवाजा लाक कर लिया और फिर पूरी कहानी गढ़ी रची गई सुना दी गई। लोगों ने यकीन भी कर लिया लेकिन परिवार ने नहीं किया। कहां गया जूस का ग्लास, वो आधा खाली था या पूरा। शरीर की जांच में रिपोर्ट में कुछ निकला क्यों नहीं। एक एक्टर के वास्तविक जीवन का स्क्रीप्ट राइटर कौन है। पूरा देश जानना चाहता है कि रोप ट्रिप के दौरान ऐसा क्या हुआ। क्या साज़िश वहीं रचि गईं या कड़ियां और जुड़ीं। अगर रिया सुशांत को किनारे लगाने के लिए ही आईं थी तो इस आपरेशन को पूरा होने में जिस सीढ़ी पर चढ़ना या उतरना पड़ा रिया ने किया क्योंकि उन्हें अपने मकसद में खरा जो उतरना था। 2019 से रिया का लिव इन में रहने आईं तबसे सबकुछ हथिया लिया क्या बैंक अकाउंट, कार्ड, नौकरों पर हूकूमत, फैसलों की आजादी सब छीन लिया सुशांत से। डिप्रशन में नहीं थे सुशांत उन्हें डिप्रेशन में लाने की कवायत चल रही थी इसलिए जबरन शायद दवाईयां खिलाई जाती थीँ। उन्हें मानसिक तौर पर पागल करार देने के लिए। इससे रिया को क्या फायदा था। किस कारण रिया महेश भट्ट को इतने प्यारे मैसेज लिख रही थीं। उन्होंनें उनके लिए क्या कर दिया जिससे वो हमेशा स्पेशल ऐंजल बोलीं।

  

                                                               साजिश की महक नहीं साजिश की दीवारें नजर आ रही हैं आर पार। संदीप सिंह एक ऐसा शक्स जो बेहद अपना सा दिखा उस दिन जिस दिन सब बेगाने हो गए जिस दिन रिया ने मारच्यूरी में सुशांत को अलविदा कहा- सारी बाबू कहकर। क्या रिया किसी के दबाव में आकर सुशांत के साथ गलत कर दीं या उनका मकसद ही था सुशांत के जीवन में आकर तबाही मचाना। जहन में सवाल ही सवाल हैं जवाब किसी के पास नहीं। संदीप सिंह का प्रोफाइल खंगालना अभी सीबीआई को बाकी है। रिया का सबसे अहम करीबी स्टाफ जो मौत के बाद सिचूएशन संभालने आया था। जिसने असली खेल खेला यह संदीप सिंह उसके कहने पर सारे काम कर रहा था घर से लेकर अंतिम संस्कार तक। महेश भट्ट को क्या परेशानी थी सुशांत से। कहीं महेश भट्ट किसी और के कहने पर सुशांत का काम तमाम करने की साजिश तो नहीं रचने लग गए थे। कौन है वो शक्स जो सुशांत को उपर उठते देख नहीं पा रहा था। सुशांत की मौत के बाद कुछ लोग सोच समझकर बोले –दिखावे के लिए अपनेपन का एहसास कराया पर कौन किसका कितना अपना होता है इस मायानगरी मुम्बई में। पोस्टमार्टम करने वाले सारे डाक्टर महाराष्ट्र के ही हैं। उनमें से एक ने शायद सीबीआई के सामने कबूल किया किया कि महाराष्ट्र पोलिस का दबाव अधिक था जिससे पोस्टमार्टम रात में ही करना पड़ा या सिर्फ औपचारिकता के लिए रिपोर्ट लिख दी गई।

बहुत बार ऐसा देखा गया है कि हम बाहर वालों को निशाने पर लेते हैं पर निशान घर में छुपा होता है बहरुपिया बनकर। बाघ की खाल ओढ़े कौन है वो गीदड़ जिसने ऐसा घिनौना खेल रचा। महाराष्ट्र सरकार आज बेबस हाथ बांधे धूप में खड़ी है जहां ना तो ठंड़ी छांव है और ना ही आसार। केंद्र के निशाने पर लाल निशान में जल रही महाराष्ट्र की उद्धव सरकार बीच मझधार में बिना पतवार गोते लगा रही है जहां मांझी खुद पानी में अपनी पतवार फेंक चुका है। अब नाव पार कैसे जाएगी ये कौन बताएगा। सुशांत को इंसाफ दिलाने में मीडिया की भूमिका सक्रिय है। इसमें चाणक्य की कूटनीति भी नजर आती है। यही मौका है जब सरकार की खामियां दिखाकर उसे सिंहासन से उतारने का मौका भी केंद्र को मिल गया है। शिवसेना भी इतनी डरी है कि कहीं आदित्य ठाकरे के कारण सालों की मेहनत मिट्टी में ना मिल जाए।  

सुशांत यदि परिवार के साथ होता तो शायद ऐसी घटना नहीं घटती। पर महा पुलिस शक के घेरे में ही नहीं संदेह के दलदल में धंस गई है। शुक्र है सीबीआई की टीम को महा पुलिस ने क्वारंटाइन नहीं करवाया बिहार पुलिस की तरह। सुशांत के पिता के वाट्सअप पर शिकायत करने के बावजूद महा पुलिस खामोशी के आगोश में सो रही थी। जैसे मानसरोवर का शांत जल बड़ा सुंदर लगता है पर जब कोई कंकड़ फेंके तो आवाज आती है शांति भंग हो जाती है। ऐसा ही सुशांत का परिवार भी है। न्याय की आस सीबीआई से है पूरे देश को। आशा है कि इस बार सीबीआई खरी उतरेगी।                                                                         

 

Saturday 8 August 2020

 

उलझी डोर और कितनी उलझेगी

कहते हैं एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है। सुशांत की जिंदगी में भी कुछ ऐसा ही नजर आ रहा है। रिया चक्रवर्ती भी सुशांत के जीवन में उसी मछली की तरह नजर आ रही हैं। जिसने सुशांत के जीवन को तबाह कर दिया। मीडिया रिपोर्टर्स देखकर ऐसा एहसास नहीं होता कि सुशांत से रिया को सचमुच प्यार था। अंकिता लोखंड़े तक उनका जीवन सही सलामत था। जैसे ही रिया उनके जीवन में आईं एक तूफान का आलम लेकर आईं।

सभी चश्मदीद जिसमें नीरज और पिठानी बता रहे हैं कि उन्होंने ही सुशांत को पंखे से लटका देखा। जाहिर सी बात है अगर एक हादसा था तो सबकी हवाईंयां उड़ जानी लाज़मी थीं। लेकिन अगर ये षडयंत्र  रचा हुआ था तो होश उड़ने की बात नहीं हो सकती। केवल अगले चरण को कैसे ठीक से पूरा करना था ऐसी सोच रही होगी। जिसमें दीपेश गुमशुदा है आजतक। रिया भी पटना पुलिस के आने के बाद गुमशुदा हो गईं थी पर प्रवर्तन निदेशालय के बुलाने पर पहुंच गईं। 9 घंटे की लम्बी पूछताछ में कुछ खास तो अभी तक बाहर नहीं निकला। कुछ सवाल हैं मेरे मन भी जो अहम हो सकते हैं-

1.       सुशांत अनार का रस और नारिल पानी के साथ केला लेकर अंदर गए और दरवाजा लाँक हो गया या कर दिया गया कहा नहीं जा सकता अबतक।

2.       जूस का ग्लास क्या सुशांत ने पूरा खत्म किया था अथवा ग्लास में पेय पदार्थ बचा हुआ था। ग्लास या कप पर उंगलियों के निशान किसके थे।

3.       नीरज और पिठानी इस बात का खुलासा क्यों नहीं कर रहे कि जब उन्होंने कमरे का लाक तोड़ा तो किस हालत में सुशांत को देखा। आंखें बाहर थी या नहीं।

4.       किसी ने ऐसा क्यों नहीं सोचा कि अस्पताल ले जाया जाय शायद वो बच जाएं। प्राथमिक उपचार अथवा सांस चल रही थी या नहीं किसी ने चेक किया कि नहीं

5.       सबसे महत्वपूर्ण बात की रिया के द्वारा रखा गया स्टाफ उसे ऐसे मौके पर फोन करके क्यों नहीं बुलाया।

6.       पोस्टमार्टम रिपोर्ट में आत्महत्या बताया गया और किसी प्रकार के जहर की पुष्टि भी नहीं की गई।

7.       सुशांत के पिता को ऐसा 25 फरवरी को क्यों लगा कि उनके बेटे की जान को खतरा है। लिखित क्यों नहीं दिए।

8.       मीतू, सुशांत की बहन क्या दिशा के बारे में जानती थी। वो सचमुच उनकी मैनेजर थी अथवा नहीं।

9.       महेश भट्ट और डाक्टर जो सुशांत का इलाज कर रहे थे दोनों से कड़ी पूछताछ हो। कारण कि उन्होंने किस कारण उस डाक्टर को रेफर किया।

10.    महेश भट्ट के दिमागी हालत की जांच भी होनी चाहिए।

11.    मीतू बताएं कि सुशांत ने 15 जून के बारे में उनसे कुछ कहा था अथा नहीं।

अब तो मुंबई पुलिस स्वयं कटघरे में खड़ी हो गई है। जांच प्रकिया पूर्णतया शक के घेरे में आ चुकी है। गुप्तेशवर पांडे, बिहार डीजीपी तो एक तरह से मुंबई पुलिस के रवैये से जैसे रो ही दिए। पर उनकी मेहनत ने दुनिया के सामने मुंबई पुलिस का सच सबके सामने ला दिया और सीबीआई के पास केस पहुंच गया। सीबीआई, एक ऐसी महान संस्था जिसके कंधों पर हजारों केस हैं। हर किसी को इस संस्था पर विश्वास है, आशा है, अपेक्षा है। हर प्रकार के हाई प्रोफाइल मामले सीबीआई के पास ही जाते हैं। एक साधारण नागरिक होने के नाते मेरा भी उतना ही विश्वास है जितना भारत के हर नागरिक का होता है। पर जिस मुंबई पुलिस के बल पर रिया सीबीआई की जां

च की मांग हाथ जोड़कर अमित शाह से कर रही थीं। क्या उनमें से किसी की पहुंच वहां तक नहीं होगी। संदेहास्पद लगता है।



इस केस के और भी कई पहलू हैं जैसे महाराष्ट्र में उद्धव सरकार को गिराना जो सोनिया गांधी यानी कांग्रेस के प्लेन में बैठी है। प्लेन लैंड करता है तो सरकार भी लैंड कर लेगी। कहीं इसमें सरकारें अपना आपसी मतभेद तो नहीं निकाल रहीं हैं। जब महाराष्ट्र में चुनाव हुए और उसके पहले से अमित शाह ने देवेंद्र फड़नवीस को ही मुख्यमंत्री के तौर पर घोषित किया था। लेकिन उद्धव के संजय राउत का अड़ियल रवैया सबने देखा और अंत में तमाम म्यूजिकल चेयर के खेल के उपरांत उद्धव ठाकरे ने सी एम की कुर्सी संभाली और भावी मुख्यमंत्री को राजनीति का पाठ पढ़ाने लगे। जिस आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने का सपना देखने वाले उद्धव ठाकरे मजबूर होकर मुख्यमंत्री बने। जाहिर सी बात है आदित्य ठाकरे के पास ना तो बालासाहेब का अनुभव था ना ही उतनी बुद्धिमता अर्थात् राजनीति में पूर्णत: नील बटे सन्नाटा। लेकिन दिशा सालियान की मौत पर कोई भी शिवसेना का सामने आकर अथवा समाना में ही क्यों नहीं कहती कि शिवसेना का कोई मंत्री शामिल नहीं है। बल्कि सामना में सुशांत की मौत को आत्महत्या घोषित कर देती है। ऐसा न्याय। क्या ऐसा न्याय करते थे बालासाहेब ठाकरे। ऐसी रणनीति है शिवसेना की। शिवसेना सिर्फ 14 फरवरी को लोगों को पकड़ कर मारना जानती है, माइकल जैकसन का विरोध करना जानती है अथवा कुछ उसूल भी हैं।

भाई भतीजावाद से शुरु हुई इस नृशंष हत्या की कहानी में बहुत सी बातें आई पर उलझकर रह गईं। जैसे शेखर कपूर, एकता कपूर, संजय लीला भंसाली करण जौहर जैसे लोगों ने अपनी फिल्मों से उसे निकाल दिया। ऐसा किसने और किसके कहने पर किया। आज इंडिया टी वी ने बताया कि एक्सेल इंटरटेनमेंट जैसा बड़ा बैनर उन्हें 15 जून को एक फिल्म के लिए साइन करने वाला था। आश्चर्य, महाआश्चर्य। इतने दिनों तक जब नेपोटिज्म की बात चली तो इस हाउस ने कोई खुलासा क्यों नहीं किया था। इतने दिनों बाद क्यों किया। खैर, जो भी हो, इसका खुलासा भी होगा। मात्र एक सनसनी पैदा करना था इस खबर के जरिए अथवा फरहान अख्तर अपनी इमेज़ बिल्डिंग के लिए ऐसी खबर फैलाई। इसके बावजूद भी सुशांत आसमान की ओर चढ़ता हुआ सितारा था। अगर इस बैनर के साथ साइन की बात गलत भी निकलती है तो भी उसे काम आज नहीं तो कल मिल ही जाता। अंकिता लोखंड़े उनकी पूर्व गर्लफ्रेंड इस बात से इत्तेफाक ही नहीं रखती कि सुशांत डिप्रेस था। अंकिता तकरीबन 2016 के बाद उनसे नहीं मिली थीं। इसलिए ऐसा नहीं कहा जा सकता कि उसके बाद उनकी जिंदगी में कौन से ऐसे मोड़ आए जहां वो खड़े हुए अथवा टूटे। किसने सहारा दिया अथवा खुद खड़े हुए। इंसान को एक पल बदल देता है तो चार साल एक लंबा अंतराल होता है।



सुशांत डिप्रेशन में था। हो सकता है नहीं भी हो सकता है। आजकल की लाइफस्टाइल ऐसी हो गई है कि कोई भी डिप्रेशन का शिकार हो सकता है। हमें भूलना नहीं चाहिए दीपिका पादूकोन की कहानी। उन्होंने खुद चीख चीख कर कहा कि कैसे वो डिप्रेशन का शिकार हो गई थीं। इस बारे में सुशांत की बहन को पता कैसे नहीं चला। दिसम्बर से दवाईयों का सिलसिला शुरु होता है यूरोप टूर से वापस आने के बाद। इस बीच उनकी बहन कभी नहीं मिलीं उनसे। कोई दवाई का जिक्र ही नहीं हुआ। उन्हें अपने भाई के बर्ताव पर संदेह नहीं हुआ। अगर उन्हें पता था तो उन्होंने अपने परिवार से इस बात का जिक्र कैसे नहीं करना उचित समझा।


जिस डाक्टर की देखरेख में इलाज चल रहा था उसके और कौन कौन से क्लाइंट हैं उनकी पहले की रिपोर्ट और सुधार अथवा वर्तमान की रिपोर्ट भी देखनी चाहिए। कहीं उसका ऐसा पेशा तो नहीं लोगों को गलत दवाईयां देकर उन्हें पागल करार कर देना, मतिभ्रम की स्थिति पैदा कर देना। जो भी सच हो मिस चक्रवर्ती फंस तो गईं हैं। सीबीआई और ईडी मकड़े के जाले हैं। अगर जांच निष्पक्ष हुई तो दूध का दूध और पानी का पानी निश्चित होगा।

इस केस में भी मीडिया की भूमिका अहम है। जेसिकालाल, दामिनी जो भी हो जनता तक पहुंचाकर न्याय के दरवाजे खटखटाती नहीं बल्कि तोड़कर अंदर घुस कर न्याय देने पर मजबूर कर देती है। निष्पक्षता हर क्षेत्र में हो तो इस चौथे स्तम्भ का कोई तोड़ नहीं। पूरे देश की निगाह इस केस पर टिकी है। न्याय में देरी मंजूर तो नहीं पर निष्पक्षता सत्यमेव जयते जरुर चाहती है।

 

 

  मिस्टिरियस मुम्बई  में-  सुशांत का अशांत रहस्य सर्वमंगला मिश्रा मुम्बई महानगरी मायानगरी, जहां चीजें हवा की परत की तरह बदलती हैं। सुशां...