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Saturday 28 June 2014

दहशत का कब्रगाह




उत्तर प्रदेश उत्तम प्रदेश की संज्ञा से नवाजा जाता रहा है। पर पिछले कई हफ्तों से इस दी हुई संज्ञा पर विचार करना अनिवार्य सा हो गया है। महिलाओं को जहां पूजने की बात, लक्ष्मी का वास माना जाता है वहीं आजकल महिलाओं पर हो रहे अति निन्दनीय अत्याचारों का घड़ा एक पर एक करके फूटता ही चला जा रहा है। यूं तो दिल्ली 2012 में शर्मसार हो चुकी थी लेकिन बदायूं मामले ने ऐसी अवांछनीय घटना को न जाने कैसे अपराधी वर्ग को इतना जागरुक कर दिया है कि समझ नहीं आता क्या कहा जाय। अंधेर नगरी चौपट राजा, या जैसा राजा वैसी प्रजा। वैसे तो पूरे देश में महिलाओं पर हो रहे अत्याचार का कोई तोड़ नहीं। एक से बढकर एक घटनायें समय समय पर सामने आती हैं। पर आज फिर उत्तर प3देश के कानपुर में अतिक्रमण का विरोध कर रही कुछ महिलाओं पर ऐसा कहर पुलिस ने बरपाया कि दिमाग को झकझोर कर रख दिया। ऐसी बर्बरता, ऐसी घृणित अवस्था महिलाओं की समाज में ?? जिन्हें उनके केश पकड़- पकड़ कर घसीटा गया । मानो उन्होंने कैसा दण्डनीय अपराध कर डाला हो। समाज में वो लोग शान से घूम रहे हैं जिन्होंने अति घृणित कार्य भी किया है और उन्मुक्त रुप से खुले आसमान के नीचे घूम रहे हैं और अत्याचार के कुकर्मों को अजाम दिये चले जा रहे हैं लेकिन उनके साथ ऐसा कोई व्यवहार नहीं। आखिर क्यों ??  उत्तर प्रदेश का पड़ोसी राज्य बिहार जहां महिलाओं के उत्पीड़न की दांसता बयां से परे, शब्दों से परे है। जहां महिलाओं को पुलिस दौड़ा -दौड़ा कर मारती है। तो कभी बच्चियों को मौत के घाट उतारकर पेड़ से लटका दिया जाता है। तो एक नया ट्रेंड सा जाने निकल आता है और हर मौत का अंजाम पेड़ से लटकाने के उपरांत ही जैसे नदी गंगा से मिलती है उसी तरह मौत का मुहाना पेड़ बन गया। प्रशासन की चुप्पी न जाने इन मसलों पर कब तक बरकरार रहेगा।
महिलाओं पर प्रारम्भ से आज तक चाहे-अनचाहे न जाने क्यों और कैसे । क्या बर्बरता की दासतां महिलाओं पर यूंही चलती रहेगी। रिजर्वेशन से लेकर जीवन पर्यन्त हक की लड़ाई लड़ते ही रहना होगा। कहने के लिए पुरुष समाज यूं तो देवी शब्द का प्रयोग करता है पर क्या उस बिन बोली मूरत पर अनगिनत प्रहार नहीं करता जा रहा है । जब तक कि वह मूरत टूट के बिखर ना जाय। सवाल यहां यह उठता है यह मासूम बच्चे बच्चियां जिनके हंसने खेलने, दुनिया को समझने -देखने का वक्त है उनके साथ ऐसा बर्ताव क्यों समाज के कुछ अवाछनीय लोग उनसे उनका हक छीन रहे है??  जिन्दगी खिली नहीं कि आपने उसे मर्झाने भी नहीं मौत के घाट उतार दिया?? मर्यादा में रहने वाली को हर बार उस रावण का दंश क्यों झेलना पड़ता है। हर बार उसकी कोख अपने ही चचरे भाई कंस के कारण क्यों उजड़ जाती है। हाल ही में एक नाबालिक बच्ची जिसे उसके रिश्ते में लगने वाले मामा ने कलंकित किया तो उसकी अपनी मां और बुआ और उस मामा ने मिलकर उसे नहर में ढकेल दिया। पर, बेचारी बच्ची अमूमन 55 किमी तैरती हुई एक किनारे पहुंची । जहां उसे बचा लिया गया। पर रिश्ते आज अपनी मर्यादा खोते चले जा रहे हैं। न जाने हम कैसा समाज बना रहे हैं जहां हम खुद ही चैन की सांस नहीं ले पा रहे। दम घुटता है ऐसे समाज में जहां दिल यही हुक के साथ कह उछता है- कि ना आना इस देश मेरी लाड़ो.....क्योंकि हैवानियत को भी शर्मसार करने वाले कारनामे यहां अंजाम दिये जाते हैं। पं. बंगाल में एक अति निन्दनीय घटना कुछ महीनों पहले आयी थी जहां रिश्ते में लगने वाले चाचा, ताऊ, भाइयों ने मिलकर उसे पंचायत के कहने पर शर्मसार कर डाला। उसका जुर्म मात्र इतना था कि वह विजातीय व्यक्ति से प्यार और शादी करना चाहती थी। हालांकि पंचायत ने उसपर 25 हजार का जुर्माना लगाया जब उसने अपनी विवशता जाहिर की उस मूल्य को चुकाने में तो उस पंचायत ने ऐसा दण्ड निकाला कि दण्ड भी सोचा होगा कि मैं तो ऐसा नहीं था। मेरा रुप इतना कैसे परिवर्तित हो गया।

समय परिवर्तनशील है। अगर कोई खुद में सुधर लाना चाहता है तो उपाय कई हैं प्लास्टिक सर्जरी, होमियोपैथी, आयुर्वेदा पर किस पर क्या सूट करता है उसका डाक्टरी परामर्श ही उसे सुधर सकता है।
बात प्रदेश की है तो शासनतंत्र और शासनकर्ता ही नब्ज टटोल कर उपचार बता सकते हैं। मुश्तैद शासन प्रक्रिया ही राज्य को सुधारने का काम कर सकती है। जिससे राज्य आज और कल फलीभूत होता रहे।

Wednesday 18 June 2014

पुलिस प्रशासन कितना सच्चा

9717827056

हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। एक पहलू जो आपको किसी का आदर्श बना दे और दूसरा पहलू जो किसी के मन को घृणा से भर दे। किसी बच्चे से अगर सवाल किया जाय कि वह क्या बनना चाहता है तो अधिकतर जवाब मिलता है आई ए एस आफिसर या आई पी एस। पर क्या वो सच्चाई से भरा सपना जिसमें गरीबों की मदद, कानून व्यवस्था को बदलने का मिज़ाज होता है पद तक पहुंचते – पहुंचते खोखला हो जाता है। पुलिस प्रशासन का गठन समाज में कानून व्यवस्था को दुरुस्त रखने और सामाजिक सामंजस्यता बरकरार रखने के मकसद से किया गया था। एक समय था जब देश में राजाओं का चलन हुआ करता था। उस समय के कायदे –कानून काफी सख्त होते थे। आज जिस तरह महिलाओं के उपर अत्याचार का बोलबाला बढ़ रहा है उस समय के नियमों के अनुसार दोषी व्यक्ति के हाथ काट दिये जाते थे, आंखें निकाल ली जाती थीं। इन नियमों के द्वारा यह संदेश दिया जाता था कि अपराध करने वालों का अंजाम कैसा होता है। जिससे भविष्य में कोई ऐसा अपराध ना करे। लोग सबक के तौर पर याद रखते थे। समय परिवर्तनशील है और एक ऐसा समय आया जब हमारा प्यारा भारत देश छोटे –छोटे राज्यों में विभक्त था।जहां हर देश का राजा अपनी सत्ता बचाने और झूठी शान के पशोपेश में रहता था। फलस्वरुप छोटे छोटे देशों के राजा आपस में लड़ने लगे। आंतरिक कलह से सुशासन की मजबूत स्थितियां जड़ से उखड़ने लगीं। जिससे बाहरी देशों के राजा परिस्थतियों को भांपते हुए अनेकों बार इस देश पर आक्रमण किये। सत्ता की जड़, जो पत्तों के झड़ने से शुरु हुई थी वो उसकी पहुंच पेड़ की जड़ों तक दीमक की भांति पहुंचकर खोखला करती चली गयी। जिससे देश पर बाहरी शक्तियों का प्रभुत्व जमने लगा और देश एक दिन अंग्रेजों के हाथ चला गया। वो अंग्रेज, जो व्यापार करने आये थे पर 300 वर्षों तक राज़ कर गये। अंग्रेज चले गये पर हूकूमत ए दासतां छोड़ गये। जिसतरह अंग्रेज भारतीयों को बिना किसी जुर्म के यातनाएं देते थे, और बेचारा बिना जुर्म का कैदी कराहता मर जाता था। जिस तरह पानी पर कंकड़- पत्थर मारकर व्यक्ति अपनी दुर्भावना का प्रदर्शन करता है। चोट तो जल को भी लगती है पर वह कहता नहीं, उसी तरह अंग्रेजों के कब्जे में भारतीय भी जुर्म सहता था। आजादी की उसी लड़ाई में खूनी कहनियां सामने आयीं तो कितनी गुमनामी के अंधेरे में दब गयीं। सावरकर, भगत सिंह, खुदीराम और चन्द्रशेखर आजाद जैसे अनगिनत नामो ने जिंदगी का अंत कर देश और देशवासियों को सिर उठाकर जीने का हक दिलवाया।
आज पुलिस तंत्र के कामकाज के रवैये पर सवाल उठना बहुत लाजमी हो गया है। जिस तरह फर्जी एन्काउंटर के नाम पर मासूमों की जान के दुश्मन बन जाते हैं और अपनी अंह की झूठी शान को दर्शाने के लिए कई बार नकली एंनकाउंटर कर डालते हैं। 2009 में जुलाई के महीने में एम बी ए छात्र, गाजियाबाद निवासी जिसकी देहरादून में हल्की कहासुनी के कारण जान से हाथ गवाना पड़ा। दया नायक, प्रदीप शर्मा जैसे नाम किसी से छुपे नहीं है। हालांकि सबूत के तौर पर कुछ न मिलने से अब कोई चार्ज भी नहीं रहा पर, सवाल यहीं उठता है कि क्या समाज के लिए बनायी गयी व्यवस्था के मालिकान और उन पर अमल करने वाले पदासीन अफसर ही गैरजिम्मेदाराना हरकत और विरोधी रवैया अपनायेंगे तो जनता किसके कंधे पर सिर रखकर चैन की सांस ले पायेगी। फर्जी एन्काउटर के एक नहीं अनगिनत फाइलें दबी पड़ी हैं। जिन्हें कुरेदने की ताकत शायद किसीमें नहीं। बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में न जाने कितनी ऐसी घटनायें होती हैं जहां पुलिस पूछताछ के नाम पर व्यक्ति को लेकर जाती है और दूसरे या तीसरे या अगली सुबह ही उसकी लाश जेल के अंदर पायी जाती है। यूं तो दयानायक जी सरकारी अफसर हैं पर मामलों का खुलासा होने से सच्चाई कुछ और ही कह रही थी। सवाल उठे कि क्या सरकारी आड़ में कहीं अफसर किसी और की नौकरी तो नहीं कर रहा ?? सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 555 मामले जुलाई 2013 तक दर्ज हुए। जिसमें सबसे कम संख्या मध्य प्रदेश और सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में दर्ज किये गये। जिसमें मात्र 144 मामलों का समाधान हुआ। वहीं असम,बंगाल, झारखण्ड और जम्मू –कश्मीर में भी फेक एन्काउटर हुए। सामान्यतया राज्य सरकारें ऐसे मामलों को दबाने का भरसक प्रयास करती हैं, और केन्द्र इस पर सुध नहीं लेता। एक केस की बात नहीं कि तो लेख शायद अधूरा लगे पाठकों को। इशरत जहां फेक एन्काउटर केस –जिसने पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया। जसमें एक 19 साल की लड़की की हत्या हो गयी। क्यूं और कैसे समय के पन्नों में राज की तरह ही है। सच्चाई शायद ही खुले कभी। बाटला हाउस एन्काउंटर केस जो दिल्ली में हुए सीरीयल बम बलास्ट के बाद अंजाम दिया गया था। फहरिस्त लम्बी है पर ऐसा करना किस हद तक लाज़मी है, ये सरकार और राज्य सरकारों के लिए चिंतन का विषय है। क्योंकि समाज और देश हित में किये जाने वाली इस प्रक्रिया का दुरुपयोग हो रहा है। कस्टडी में मौत और फर्जी एन्काउंटर में मौत- मसला वहीं अटकता है कि मौत देने वाला वही सरकारी अफसर ही है जो कभी अपने पद की धौंस में तो कभी आलाधिकारियों के दबाव में उस बेबस को मौत की नींद सुला देता है। पर, भारतीय कानून कहीं न कहीं इस बात की चेतावनी जरुर देता है कि ट्रिगर पसंद करने वाले भी अपनी मनमानी हरकतों के लिए पूरी तरह जिम्मेवार हैं और जवाबदार हैं। यूं आसानी से कानून उन्हें वर्दी में लिपटा रहने से बक्क्षेगा नहीं। यह बात अलग है कि कानून के हाथ लम्बे होने के बावजूद बेहस और लाचार जरुर रहते हैं।

आज इशरत का परिवार, रणवीर का परिवार किस बात की सज़ा भुगत रहा है। सुप्रीम कोर्ट भी मानता है कि यह मात्र नृशंस हत्या ही नहीं बल्कि एक क्रूर अपराध भी है क्योंकि पुलिस अधिकारी की ड्यूटी होती है लोगों की रक्षा करना ना कि अपने उत्तरदायित्तव के विरुद्ध कार्य करना। ट्रिगर दबाने के शौकीन पुलिसवाले क्या आज अपने कर्तव्य से इतने विमुख हो चुके हैं कि कर्तव्यपरायणता शेष मात्र रह गयी है। शपथ कागजी और बेबसी में पढ़ा जानेवाला ढोंग है   
 

 
सरकार की सौगात

सर्वमंगला मिश्रा
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हर नयी चीज मार्केट में एक नया उत्साह भर देती है।मार्केट में जब नया ब्रैंड लांच होता है तो उस सेक्टर के आलोचक, उसके ब्रैंड के फालोअर्स सभी टकटकी लगाये रहते हैं। सेक्टर चाहे कोई भी हो न्यू लांच करने वालों से लेकर जब तक प्रोडक्ट लांच नहीं जाता तब तक उसके प्रति जिज्ञासा और उत्कंठा बनी रहती है। फैन फालोअर्स और एक्सपेरिमेंटल वर्ग उसके हर गतिविधी से परिचित होना चाहता है। जैसे उसके फंग्शन्स, फीचर्स या बात करें फैशन वल्ड की या नयू एल्बम या फिल्म जब रिलीज़ होने वाली होती है तो उसके लांचिंग के अनुसार लोग अपना शिड्यूल प्लान करते हैं। किसी पुस्तक के मार्केट में आते ही पुस्तक प्रेमी या उस लेखक की शैली को पसंद करने वाला व्यक्ति पहले से बुकिंग कर रखता है उसके पहली कापी की। घर में जब नया नवजात आता है तो उससे सबको नयी खुशी मिलती है। क्योंकि परिवार को एक उर्जा की प्राप्ति होती है और भविष्य उन्नति की ओर अग्रसर होता दिखता है।नयी बहू,नये डिजाइन्स, नया व्यक्ति आफिस में यह सारी बातें यही संदेश देती है कि हर नये सिक्का पहले अपनी चमक से सबको प्रभावित करता है। बाद में उसकी चमक कितनी देर तक नयी रहती है यह उसके गुणों पर निर्भर करती है। ठीक कुछ इसी तरह मोदी सरकार के आने से लेकर अब तक एक नयी उर्जा शक्ति का संचार जन मानस में हुआ है। पर, यहां मोदी सरकार की विरदावली पढना मेरा मकसद नहीं। मन में विचार उठ रहा है कि क्या सरकार सही दिशा में चल रही है। जितने वायदे किये हैं देशवासियों से उन्हें निभाने में सक्षम है यह सरकार ??
केंद्र में भाजपा की सरकार के बनते ही उत्तर प्रदेश में जंगल राज या बर्बरता इतनी चरम पर कैसे पहुंच गयी। जबकि सरकार को जुम्मा – जुम्मा चार दिन ही बीते है। अभी एक माह भी पूरे नहीं किये हैं इस सरकार ने। बिजली आपूर्ति की समस्या इतनी चरम पर आ गयी। अखिलेश सरकार ने बीते एक माह में तकरीबन 66 आई ए एस और आई पी एस के तबादले कर डाले। 15 जून को फादर्स डे उपलक्ष्य में तो नहीं पर सपा प्रमुख ने बैठक बुलायी और 17 जून की रात होने से अमूमन कुछ घंटे पहले मंत्रियों के विभागों में फेर बदल कर डाले। इन सब बातों का तात्पर्य क्या निकाला जाय- कि सरकार के इस फेर बदल के भंवर में जनता को उलझाना या विधानसभा के चुनावों में अपनी ताकत को दर्शाने की रणनीति की नियत से काम कर रही है अखिलेश सरकार।इस बार लोस की हार के बाद अपनी शाख को बचाने में जुटी सपा सरकार सारे हथकण्डे अभी से अपनाने शुरु कर दी है।क्योंकि कमल का निशान खतरे के निशान से पूरे देश में उपर दिख रहा है। साथ ही बाकी पार्टियां खतरे के निशान के आस-पास भी दिखायी नहीं दे रहा। यूं तो सपा सरकार को अपना बचाव दो तरफ से करना है। पहला बचाव मोदी के आतंक से। तो दूसरा बहन मायावती की खार से। इस बार उनका खाता तक न खुलने से उनके अंदर की बेचैनी कभी भी राजनीति के घड़े में उबाल ला सकती है।वैसे भी बुआ और मुलायम के तानों के बाण अभी शरीर में ताजे घाव की तरह हरे हैं। तो बहन मायावती का हाथी यूं तो अधमरा है पर जीवनी शक्ति देने में जुटी बसपा सुप्रीमो अगर किसी तरह कामयाब हो जाती हैं तो साइकिल के टुकड़े होते देर नहीं लगेगी।
बदायूं मामले के उपरांत पेड़ से मानो लाशों को लटकाने का ट्रेंड सा निकल पड़ा है। सीतापुर में पति –पत्नी की लाश ..सरकार की कानून व्यवस्था मानो किसी सन्दूक में बंद कर पानी में पेंक दी गयी हो और हर कोई बेबस, लाचार खड़ा है। उधर भाजपा के नेता निशाने पर आ गये हैं या लाये गये हैं। कहा नहीं जा सकता। क्या ऐसा प्रतीत नहीं होता कि कहीं न कहीं इस राजनैतिक पार्टियों के आंतरिक कलह, द्वेष और अहं की लड़ाई में जनता पीसी चली जा रही है। इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता कि बीजेपी अपना कमल को या कहीं अमित शाह को यू पी के उस कुर्सी से नवाज़ने का ध्येय तो नहीं साध लिया है।अगर ऐसा है तो इन आने वाले 2-3 सालों में बहुत कुछ देखना अभी बाकी होगा। तब राजनीति के इस खेल का यह प्रथम चरण है पर बाकी 3 चरण विधानसभा चुनाव तक पूरे हो जायेंगें। यह तो हुई बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश की बात। कारवां तो अभी शुरु हुआ है। दहशत के दौर ने अभी जन्म ही तो लिया है। आशंकायें फलीभूत हो रही हैं। बी एल जोशी का इस्तीफा संकेत है क्योंकि फहरिस्त लम्बी होने वाली है। शीला दीक्षित का इंकार इकरार में कैसे बदलेगा। यह मोदी सरकार ने मास्टर प्लान तैयार कर लिया होगा। ऐसा करना अनिवार्य भी है । भाजपा में वरिष्ठों की संख्या जितनी है उतने तो शायद राज्य भी नहीं हैं। सबको यथोचित स्थान से नवाजने के लिए कठोर कदम तो उठाना आंतरिक रुप से प्रतिबद्धता है मोदी सरकार की।


Blackmailing- NO MORE


सर्वमंगला मिश्रा
9717827056
भारत की सरकार जब भी अपने दम पर खड़ी ना होकर दूसरों के सहारे खड़ी हुई तो असहाय की स्थिति में ही रही।चाहे वो वी पी सिंह की सरकार रही हो, या चन्द्रशेखर की, यूपीए 1 रही हो, या यूपीए 2, अटल बिहारी की सरकार 1996 में 13 सहयोगियों वाली या 1999 की सरकार। हर बार सरकार को अपने फैसलों में सहयोगी पार्टियों की हामी भरवानी जरुरी होती है और जब सहयोगी इंकार करते हैं तो ब्लैकमेलिंग की शिकार सरकार बनती है। खामियाज़ा जनता भुगतती है। पर इस बार भाजपा पार्टी ने इस कश्मकश से मुक्ति पा ली है और इसे पाने में इस बार जनता ने अहम भूमिका निभाई है। गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने 272 प्लस के मिशन को नया इंजन लगाया और चुनाव के मध्य से ही 300 कमल मांगने लगे थे। कहते हैं कि ईश्वर जब देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है। वही हुआ 336 कमल पूरे देश की जनता ने मिलकर मोदी की झोली में भर दिया। जिससे मोदी फूले न समाये। संसद में अपने कदम अंगद की तरह रखने के लिए 272 का जादुयी आंकड़ा मिलना अनिवार्य होता है। जादूगर मोदी ने अपना कमाल पूरे देश में तो दिखाया ही साथ ही विश्वस्तरीय ख्याति पाने में भी मोदी का जवाब नहीं। मोदी ने गुजरात विधानसभा को धन्यवाद कर अपनी मां का आशीर्वाद लिया और गुजरात को अलविदा कहकर दिल्ली में लम्बी पारी खेलने के ध्येय से नमन किया। श्रद्धा से सिर सेंट्रल हाल में झुक गया, आंखों में नमी आ गयी क्योंकि उस दिन सपना पूरा होने की एक और सफल सीढी मोदी ने चढी थी। पर 26 मई 2014 इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया जब कांग्रेस से अलावा किसी दूसरी पार्टी ने अपने दम खम पर पार्टी का नया ढांचा गढ दिया। दिन भर के व्यस्त कार्यकाल के बाद जैसे ही घड़ी में शाम 5 बजा राष्ट्रपति भवन का प्रांगण वरिष्ठ एवं आमंत्रित सदस्यों का अंबार लगने लगा। अमूमन गोधूलि बेला में मोदी ने कहा- “मैं नरेंद्र दामोदर दास मोदी” सूर्य जब घर की ओर रवाना हो रहा था तो देश को एक नया सूरज मिला नरेंद्र भाई के तौर पर। जिसने भारत को भा--त बनाने का सपना दिखाया है। देश जिसे सिर्फ और सिर्फ नरेंद्र मोदी पर विश्वास है। जिसे मंत्रीमंडल के सदस्यों से ज्यादा मोदी पर भरोसा है। क्योंकि इसी नरेंद्र मोदी ने अंधेरे की गर्त में जा चुके गुजरात को गु--रा-त बनाया। देश के समक्ष गुजराती माडल पेश कर डाला। जो कहीं खड़ा न था राजनीति के धरातल पर। उस गुजरात को शीर्षस्थ आसन पर पदासीन करा डाला। उसी नज़र की तर्ज पर अब देशवासियों को भरोसा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि भारत अब एकबार फिर सोने की चिड़िया कहलाएगा और हर घर में दीप जलेगा। बेरोजगार अब विदेश की ओर नहीं झांकेंगा। कोई किसान अब कर्ज से दबकर आत्महत्या नहीं करेगा। फिर कभी निर्भया कांड न होगा। क्योंकि देश का नारा था “अबकी बार मोदी सरकार”, तो मोदी का नारा था-“सौगंध मुझे इस धरती की, ये देश नहीं मिटने दूंगा”।
मोदी एक ऐसा नाम है जो जाना जाता है अपने तरीके से चलने के लिए। जो किसी के पदचिन्हों पर कदम नहीं रखता। सबसे छोटा मंत्रीमंडल बनाकर अपने मंत्रियों को ताकीद दी है कि काम ही है जो उन्हें मोदी के आतंक से बचा सकता है। मोदी ने किसी के बूते सरकार नहीं बनायी। यही वो वजह है कि बिना डरे शेर की तरह मोदी अपने काम में लग गये हैं। साज सज्जा से दूर रहने का आदेश भी दे डाला है अपने मंत्रियों को। जिससे देश के कंधों पर मंत्रियों के ऐशो आराम का बोझ न पड़े और देश उन्नति कर सके। कांग्रेस के पक्षधर भी अब मुंह खोलकर मोदी की सरे आम प्रशंसा के पुल बांधने में लग गये हैं। पी एम साहब के सारे प्लान जनता या नेता किसी को सही से पता नहीं, तरकश में तीर कितने और कौन से मोदी जी गुजरात से लेकर आये हैं ये सिर्फ मोदी जी या उनके परम और घनिष्ठ अमित शाहजी ही जानते हैं। कब कौन सा तीर मोदी जी कहां से चलाकर किसपर निशान साधेंगें ये मोदी का तीर भी नहीं जानता। कुछ पक्ष डरे सहमे भी हैं, क्योंकि जब सत्ता परिवर्तन होता है तो अपना पराया और पराया अपना हो जाता है। आज जिस सोनिया गांधी और राहुल को कांग्रेस पार्टी का खेवनहार और एकमात्र चिराग माना जाता था उसी कांग्रेस पार्टी के भंवरलाल जो राजस्थान से अपनी आवाज तेज की तो इनाम भी तुरंत मिल गया। ऐसी आवाजें अभी उठनी बाकी हैं जो परिवारवाद के चंगुल से कांग्रेस को निकालना चाहेंगी। जिसतरह पार्टी में वरिष्ठों को दरकिनार कर राहुल बाबा अपने आफिस से पूरा देश चलाने का सपना देख रहे थे वो तो धवस्त हो चुका है। आज राहुल गांधी के अंदर से अगर कोई आवाज़ आ रही होगी तो वो यही होगी-
जीवन का संघर्ष होता नहीं आसां इतना,
गरीब की रोटी को दिल से सराहा नहीं जितना,
आसमां को मंजिल बनायी थी,
पर हकीकत से रुबरु होने की कहानी अभी बाकी थी।
सपा के मुखिया मुलायम सिंह जी वैसे तो उनका भाषण समझ से परे होता है। पर, इस चुनाव में इतना बोले कि न समझने वाला भी समझ गया कि मुलायम जी बोलते तो हैं भले हुंकार की जगह सिर्फ “हुं “ भर रह गया हो। उधर सुपुत्र जी और मुख्यमंत्री ने भी अपने काम करने के अंदाज़ में परिवर्तन कर मोदी के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने की शंखध्वनि कर दी है। गंगा सफाई में कागजी योगदान भी दिखाये। पर 60 साल में लिखी गयी किताब पर नया कभर नहीं चढेगा बल्कि नयी किताब भारत देश के नाम लिखी जायेगी ऐसा देश का नागरिक चाहता है। मुलायम जी बांप चुके हैं कि उनके बाहरी या भीतरी सपोर्ट की आवश्यकता इस सरकार को नहीं है। अर्थात् ब्लैकमेलिंग अब नो मोर....

पूर्व में अब भी अपना वर्चस्व बनाये रखने वाली ममता दीदी जिसने मोदी की हवा को बंगाल में घुसने ही नहीं दिया और एकछत्र शासन की हवा बरकरार रखी। पर केन्द्र की सत्ता में घुसपैठ भी मुश्किल लगती है। बात –बात पर दीदी और अम्मा को हर सरकार को मनाना पड़ा और कई बार दुस्साहस का परिणाम भी भुगतना पड़ा। पर अबकी बार मोदी सरकार ने खुले शब्दों में कह दिया है ब्लैकमेलिंग नो मोर। पर मोदी सरकैर ने आह्वाहन भी किया है सबका साथ सबका विकास- पर, इस विकास में पश्चिम बंगाल से सटा बिहार की स्थिति अनमनी होते होते रह गयी। वजह दो साथियों के अहम का मुद्दा। भविष्य इस बात को गवाही के तौर पर इतिहास में यह कहानी भी दर्ज करेगा कि इतने सालों से चल रही मांग तेलंगाना को तो बीजेपी के चुनावी बल से खिसकाने के लिए कांग्रेस पार्टी ने अपनी झोली में डाल लिया था। हांलांकि बाजेपी इसका श्रेय लेने में पीछे नहीं रही। सरकार के गठन के बाद क्या बिहार को मोदी सरकार स्पेशल राज्य का दर्जा आसानी से देगी ?? या कहानी कुछ और लिखी जा चुकी है। अपना दांव खेल चुके नीतीश कुमार मोदी के शतरंजी चाल की राह देख रहे हैं। पूरे देश पर एकछत्र राज्य करने का सपना लिए यह सिकन्दर अपने सहस्त्र हाथ कैसे करता है यह अचम्भे से भरा होगा।       

  मिस्टिरियस मुम्बई  में-  सुशांत का अशांत रहस्य सर्वमंगला मिश्रा मुम्बई महानगरी मायानगरी, जहां चीजें हवा की परत की तरह बदलती हैं। सुशां...