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Monday 24 September 2018


काल के कपाल पर लिखता हूं मिटाता हूं..गीत नया गाता हूं-अटल बिहारी वाजपयी

सर्वमंगला मिश्रा
जनता के बीच माइक के सामने हवा के सागर में सफेद कुर्ते में लहराता हाथ जब उठता था, आंखें पलक झपकाती थीं और पूरे जनता समुद्र में सन्नाटा पसर जाता था अटल जी के अगले शब्द को सुनने के लिए। ऐसा ओजस्वी भाषणकर्ता जिसकी चुप्पी में शब्दों की गहराई थी और भावनाओं का आह्वाहन होता था। लोग एक बार नहीं बार बार उनको सुनना पसंद करते थे। उनके अंधभक्तों की फहरिस्त भी उनके कार्यकाल की तरह लम्बी थी। भले ही राजनीति में पदार्पण के उपरांत अपने निजी फायदे के लिए अलगाव दिखाई दिया हो पर उन सभी नेताओं की अंतरात्मा जानती थी कि उन सभी के गुरु अटल बिहारी जी ही रहे हैं। रामविलास पासवान जी ने अपने एक इंटरव्यू के दौरान बहुत बेबाकी से कहा- कि हमलोग स्कूल से बस्ता लेकर भाग –भाग कर अटल जी का भाषण सुनने जाते थे

जो कल थे,
वे आज नहीं हैं।
जो आज हैं,
वे कल नहीं होंगे।
होने, न होने का क्रम,
इसी तरह चलता रहेगा,
हम हैं, हम रहेंगे,
यह भ्रम भी सदा पलता रहेगा।
सत्य क्या है?
अटल बिहारी वाजपेयी जी की यह कविता जीवन के अकाट्य सत्य को दर्शाती है। उनकी सोच उनके जीवन शैली को भी दर्शाती है। हिन्दू हृदय सम्राट, कुशल राजनितिज्ञ, अद्भुत वक्ता, संजीदा कवि, शत्रु दल में भी जय जयकार करवाने में सक्षम अटल बिहारी वाजपेयी जी धरती पर रहने वाले एक सूरज थे।
वाजपेयी का जन्म 25 दिसम्बर 1924 को ग्वालियर में हुआ। उनके पिता का नाम कृष्णा बिहारी वाजपेयी और माता का नाम कृष्णा देवी था। उनके पिता कृष्णा बिहारी वाजपेयी अपने गाव के महान कवि और एक अध्यापक थे।
अटल बिहारी वाजपेयी जी ने ग्वालियर के बारा गोरखी के गोरखी ग्राम की गवर्नमेंट हायरसेकण्ड्री स्कूल से शिक्षा ग्रहण की थी। बाद में वे शिक्षा प्राप्त करने ग्वालियर विक्टोरिया कॉलेज (अब लक्ष्मीबाई कॉलेज) गये और हिंदी, इंग्लिश और संस्कृत में डिस्टिंक्शन से पास हुए। उन्होंने कानपुर के दयानंद एंग्लो-वैदिक कॉलेज से पोलिटिकल साइंस में अपना पोस्ट ग्रेजुएशन एम.ए में पूरा किया। इसके लिये उन्हें फर्स्ट क्लास डिग्री से भी सम्मानित किया गया था।
ग्वालियर के आर्य कुमार सभा से उन्होंने राजनैतिक काम करना शुरू किये, वे उस समय आर्य समाज की युवा शक्ति माने जाते थे और 1944 में वे उसके जनरल सेक्रेटरी भी बने।
1939 में एक स्वयंसेवक की तरह वे राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में शामिल हो गये। और वहा बाबासाहेब आप्टे से प्रभावित होकर, उन्होंने 1940-44 के दर्मियान आरएसएस प्रशिक्षण कैंप में प्रशिक्षण लिया और 1947 में आरएसएस के फुल टाइम वर्कर बन गये। विभाजन के बीज फैलने की वजह से उन्होंने लॉ की पढाई बीच में ही छोड़ दी। और प्रचारक के रूप में अटल जी को उत्तर प्रदेश भेजा गया और जल्द ही दीनदयाल उपाध्याय के साथ राष्ट्रधर्म (हिंदी मासिक ), पंचजन्य (हिंदी साप्ताहिक) और दैनिक स्वदेश और वीर अर्जुन जैसे अखबारों के लिये काम करने लगे।
अटल एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने अपने और गैरों दोनों को दिल खोलकर गले लगाया और जरुरत पड़ने पर अपने नाम की तरह अटल हिमालय बनकर देश के गौरव के लिए खड़े हो गये। पाकिस्तान के नवाज़ शरीफ से दोस्ती की बस रही हो या कारगिल युद्ध..दोनों में ही अटल जी ने अपनी कटिबद्धता दिखाई। वीर, निडर अटल जी ने देश को सदैव सर्वोपरि रखा। एक बार संसद में अपने पहले 13 दिन के कार्यकाल के दौरान भाषण में कहा- पार्टियां आयेंगी-जायेंगी, बनेंगी –टूटेंगी पर, देश हमेशा रहना चाहिए। तभी तो देश की सुरक्षा में बुलंद हौसले के साथ अडिग कदम उठाने से नहीं हिचके और पोखरण में परमाणु परीक्षण डंके की चोट पर करवा कर यह ऐलान भी कर दिया कि- भारत पहले बिना वजह इसका प्रयोग नहीं करेगा। अटल जी की जीवनी में यदि एक शक्स का उल्लेख ना हो यह तो संभव ही नहीं। उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले उनके परम स्नेही मित्र लालकृष्ण आडवाणी उनके हमराज और परम सहयोगी जीवनपर्यन्त रहे। उनकी कविताओं में इंसानियत का पुट स्पष्ट रुप से झलकता है-
पेड़ के ऊपर चढ़ा आदमी
ऊंचा दिखाई देता है।
जड़ में खड़ा आदमी
नीचा दिखाई देता है।
आदमी न ऊंचा होता है, न नीचा होता है,
न बड़ा होता है, न छोटा होता है।
आदमी सिर्फ आदमी होता है।

अटल बिहारी मात्र कवि और कुशल राजनेता ही नहीं थे बल्कि वो एक दूरदर्शी और विचारक भी थे। 1980 में भाजपा की स्थापना का श्रेय भी अटल जी को ही जाता है। दो सांसदों वाली पार्टी से लेकर आज एकछत्र शासन करने वाली पार्टी भाजपा ही है। तभी तो उन्होंने महिलाओं को राजनीति में और समाज में काम करने का भरपूर मौका दिया। सुषमा स्वराज, उमा भारती, वसुंधरा राजे सिधिंया और जैसी एक लम्बी फहरिस्त है। शिवराज सिंह चौहान, अरुण जेटली, रविशंकर प्रसाद और नरेंद्र मोदी सरीकों को बनाने वाले अटल जी ही रहे। यही कारण रहा कि प्रधानमंत्री मोदी उनके शव के साथ अंतिम संस्कार स्थली तक पैदल चले और साथ ही पूरा कैबिनेट और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी चलकर उन्हें सच्ची श्रद्धांजली दी। व्यथित मन से अटल जी के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ब्लाग में लिखा- अटल जी अब नहीं रहे.. मन नहीं मानता.. अटल जी, मेरी आंखों के सामने हैं, स्थिर हैं। जो हाथ मेरी पीठ पर धौल जमाते थे, जो स्नेह से, मुस्कराते हुए मुझे अंकवार में भर लेते थे, वे स्थिर हैं। अटल जी की ये स्थिरता मुझे झकझोर रही है, अस्थिर कर रही है। एक जलन सी है आंखों में, कुछ कहना है, बहुत कुछ कहना है लेकिन कह नहीं पा रहा। मैं खुद को बार-बार यकीन दिला रहा हूं कि अटल जी अब नहीं हैं, लेकिन ये विचार आते ही खुद को इस विचार से दूर कर रहा हूं। क्या अटल जी वाकई नहीं हैं? नहीं. मैं उनकी आवाज अपने भीतर गूंजते हुए महसूस कर रहा हूं, कैसे कह दूं, कैसे मान लूं, वे अब नहीं हैं।
प्रधानमंत्री ने आगे लिखा- वे पंचतत्व हैं. वे आकाश, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, सबमें व्याप्त हैं, वे अटल हैं, वे अब भी हैं. जब उनसे पहली बार मिला था, उसकी स्मृति ऐसी है जैसे कल की ही बात हो. इतने बड़े नेता, इतने बड़े विद्वान. लगता था जैसे शीशे के उस पार की दुनिया से निकलकर कोई सामने आ गया है, जिसका इतना नाम सुना था, जिसको इतना पढ़ा था, जिससे बिना मिले, इतना कुछ सीखा था, वो मेरे सामने था. जब पहली बार उनके मुंह से मेरा नाम निकला तो लगा, पाने के लिए बस इतना ही बहुत है. बहुत दिनों तक मेरा नाम लेती हुई उनकी वह आवाज मेरे कानों से टकराती रही. मैं कैसे मान लूं कि वह आवाज अब चली गई है। कभी सोचा नहीं था कि अटल जी के बारे में ऐसा लिखने के लिए कलम उठानी पड़ेगी। देश और दुनिया अटल जी को एक स्टेट्समैन, धारा प्रवाह वक्ता, संवेदनशील कवि, विचारवान लेखक, धारदार पत्रकार और विजनरी जननेता के तौर पर जानती है, लेकिन मेरे लिए उनका स्थान इससे भी ऊपर का था. सिर्फ इसलिए नहीं कि मुझे उनके साथ बरसों तक काम करने का अवसर मिला, बल्कि मेरे जीवन, मेरी सोच, मेरे आदर्शों-मूल्यों पर जो छाप उन्होंने छोड़ी, जो विश्वास उन्होंने मुझ पर किया, उसने मुझे गढ़ा है, हर स्थिति में अटल रहना सिखाया है।

उनके लिए राष्ट्र सर्वोपरि था-बाकी सब का कोई महत्त्व नहीं. इंडिया फर्स्ट-भारत प्रथम, ये मंत्र वाक्य उनका जीवन ध्येय था. पोखरण देश के लिए जरूरी था तो चिंता नहीं की प्रतिबंधों और आलोचनाओं की, क्योंकि देश प्रथम था. सुपर कंप्यूटर नहीं मिले, क्रायोजेनिक इंजन नहीं मिले तो परवाह नहीं, हम खुद बनाएंगे, हम खुद अपने दम पर अपनी प्रतिभा और वैज्ञानिक कुशलता के बल पर असंभव दिखने वाले कार्य संभव कर दिखाएंगे. और ऐसा किया भी। दुनिया को चकित किया। सिर्फ एक ताकत उनके भीतर काम करती थी- देश प्रथम की जिद।   
काल के कपाल पर लिखने और मिटाने की ताकत, हिम्मत और चुनौतियों के बादलों में विजय का सूरज उगाने का चमत्कार उनके सीने में था तो इसलिए क्योंकि वह सीना देश प्रथम के लिए धड़कता था। इसलिए हार और जीत उनके मन पर असर नहीं करती थी। सरकार बनी तो भी, सरकार एक वोट से गिरा दी गई तो भी, उनके स्वरों में पराजय को भी विजय के ऐसे गगन भेदी विश्वास में बदलने की ताकत थी कि जीतने वाला ही हार मान जाय।
अटल जी कभी लीक पर नहीं चले. उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में नए रास्ते बनाए और तय किए। 'आंधियों में भी दीये जलाने' की क्षमता उनमें थी। पूरी बेबाकी से जो कुछ भी बोलते थे, सीधा जनमानस के हृदय में उतर जाता था। अपनी बात को कैसे रखना है, कितना कहना है और कितना अनकहा छोड़ देना है, इसमें उन्हें महारत हासिल था।
बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
हास्य-रूदन में, तूफानों में,

कौन भूल सकता है। 13 दिनों की सरकार को बचाने की नाकाम कोशिशों के बाबजूद भी वाजपेयीजी का अचूक, गगनभेदी भाषण। वहीं संसद की दीवारों मे अटल की यादें आज भी ताजा हैं। अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के सिर्फ एक नेता ही नहीं हैं वे भारतीय लोकतंत्र के सिर्फ एक प्रधानमंत्री भी नहीं है अटल भारतीय शासन की सिर्फ शख्सियत नहीं है बल्कि वो भारत के अनमोल रत्न हैं जिन्होनें राजनीति के इतिहास में एक अमिट कहानी लिखी है ..वाजपेयी  एक विरासत हैं.. एक ऐसी विरासत जिनके इर्द -गिर्द भारतीय राजनीति का पूरा सिलसिला चलता है। 13 दिन के बाद 13 महीने की सरकार और अंततोगत्वा पूरे 5 साल की सरकार चलाने का श्रेय और अंनंत पार्टियों को साथ लेकर चलने के बावजूद जे जयललिता और ममता बनर्जी की बनरघुड़कियों से हरबार जूझते रहे। 3 बार प्रधानमंत्री बनने का मौका जवाहरलाल नेहरु के बाद अटल जी को ही यह सौभाग्य प्राप्त हुआ।
काल के कपाल पर लिखता हूं मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं....मैं गीत नया गाता हूं....
सत्य ही है अटल जी ने सदा नवगीत का ही सृजन किया। उनका राजनैतिक पदार्पण 1957 से शुरु हुआ।  जब उन्होनें पहली बार भारतीय संसद में दस्तक दी थी। जब आजाद हिन्दुतान के दूसरे आमचुनाव हुए। अटलजी भारतीय जनसंघ के टिकट से तीन जगह से खड़े हुए थे। मथुरा में जमानत जब्त हो गई। लखनऊ से भी वे हार गए लेकिन बलराम पुर में उन्हें जनता ने अपना सांसद चुना। और यही उनके अगले 5 दशकों के संसदीय करियर की शुरुआत थी। अटल बिहारी वाजपेयी अब तक नौ बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं।
1962 से 1967 और 1986 में अटलजी राज्यसभा के सदस्य भी रहे। 1980 में भाजपा के संस्थापक सदस्य रहे।
1968 से 1973 तक वो भारतीय जन संघ के अध्यक्ष रहे। मोरारजी देसाई के कैबिनेट में वे एक्सटर्नल अफेयर मंत्री भी रहे।
विपक्षी पार्टियों के अपने दूसरे साथियों की तरह उन्हें भी आपातकाल के दौरान जेल भेजा गया। 1977 में जनता पार्टी सरकार में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया।
इस दौरान संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में अटलजी ने हिंदी में भाषण दिया और वह इसे अपने जीवन का अब तक का सबसे बेहतरीन पल मानते थे। यह गौरवशाली पल सम्पूर्ण भारत के लिए आकाशगंगा के समान था। भारत के इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में यह पल लिखा जा चुका है।
1980 से 1986 तक वो बीजेपी के अध्यक्ष रहे और इस दौरान वह बीजेपी संसदीय दल के नेता भी रहे। अटल बिहारी वाजपेयी अब तक नौ बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं।
ख़ासतौर से 1984 में जब वो ग्वालियर में कांग्रेस के माधवराव सिंधिया से उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। 1962 से 1967 और 1986 में वो राज्यसभा के सदस्य भी रहे। 1996 में देश में परिवर्तन की बयार चली और बीजेपी को सबसे ज्यादा सीटें मिलीं और अटल जी ने पहली बार इस देश के प्रधानमंत्री पद को सुशोभित किया। कहते हैं जवाहरलाल नेहरु भी अटल जी का भाषण मंत्रमुग्ध होकर सुनते थे। उनके उन्मुक्त स्वभाव के कारण ही उन्हें 1994 में बेस्ट संसद व्यक्ति का पुरस्कार भी मिला।
हालाकि उनकी यह सरकार महज 13 दिन ही चली। लेकिन 1998 के आमचुनावों में फिर वाजपेयी जी ने  सहयोगी पार्टियों के साथ  लोकसभा में अपने गठबंधन का बहुमत सिद्ध किया और इस तरह एक बार फिर प्रधानमंत्री बने।
अटलजी के  इस कार्यकाल में भारत  परमाणुशक्ति-संपन्न राष्ट्र बना। इन्होने पाकिस्तान के साथ कश्मीर विवाद सुलझाने, आपसी व्यापार एवं भाईचारा बढ़ाने को लेकर कई प्रयास किये। लेकिन 13 महीने के कार्यकाल के बाद इनकी सरकार राजनीतिक षडयंत्र के चलते महज एक वोट से अल्पमत में आ गयी।जिसके बाद अटल बिहारी जी ने राष्ट्रपति को त्याग पत्र दे दिया और अपने भाषण में कहा कि-
जिस सरकार को बचाने के लिए असंवैधानिक कदम उठाने पड़ें उसे वो चिमटे से छूना पसंद नहीं करेंगे। उनकी भावना देशभक्ति से ओतप्रोत थी।
पंद्रह अगस्त का दिन कहता -
आज़ादी अभी अधूरी है।
सपने सच होने बाकी है,
रावी की शपथ न पूरी है।।
इसके बाद 1999 के आमचुनाव से पहले बतौर कार्यवाहक प्रधानमंत्री ने कारगिल में पाकिस्तान को उसके नापाक कारगुजारियों का करारा जवाब दिया और भारत कारगिल युद्ध में विजयी हुआ। कालांतर में आमचुनाव हुए और जनता के समर्थन से अटलजी ने सरकार बनाई। प्रधानमंत्री के रूप में इन्होने अपनी क्षमता का बड़ा ही समर्थ परिचय दिया।
ऊँचे पहाड़ पर,
पेड़ नहीं लगते,
पौधे नहीं उगते,
न घास ही जमती है।
जमती है सिर्फ बर्फ,
जो, कफ़न की तरह सफ़ेद और,
मौत की तरह ठंडी होती है।

ऐसी ऊँचाई,
जिसका परस
पानी को पत्थर कर दे,
ऐसी ऊँचाई
जिसका दरस हीन भाव भर दे,
अभिनंदन की अधिकारी है,
आरोहियों के लिये आमंत्रण है,
उस पर झंडे गाड़े जा सकते हैं,

पद्म विभूषण अटल जी आजीवन अविवाहित ही रहे। उन्होने कौल परिवार की पुत्रियों को गोद लिया और अंतिम समय में संस्कार भी उनकी दत्तक पुत्री ने ही किया। समाज को जाते जाते भी अटल जी ने एक परिवर्तित पथ पर समाज को चलने का निर्देश दे डाला। उनके जीवन की छवि को कुछ यूं समझा जा सकता है-
शून्य में अकेला खड़ा होना,
पहाड़ की महानता नहीं,
मजबूरी है।
ऊँचाई और गहराई में
आकाश-पाताल की दूरी है।
जो जितना ऊँचा,
उतना एकाकी होता है,
हर भार को स्वयं ढोता है,
चेहरे पर मुस्कानें चिपका,
मन ही मन रोता है।
ज़रूरी यह है कि
ऊँचाई के साथ विस्तार भी हो,


न वसंत हो, न पतझड़,
हो सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,
मात्र अकेलेपन का सन्नाटा।
मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
ग़ैरों को गले न लगा सकूँ,
इतनी रुखाई कभी मत देना।
अटल बिहारी वाजपेयी-
भारतमाता के महान सपूत और विभूति को हमारी ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि..







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