बंगाल में किसकी चित किसकी पट
सर्वमंगला मिश्रा
आजकल बंगाल की
स्थिति कभी धूप तो कभी छांव की तरह नजर आ रही है। भाजपा अपने अश्वमेध यज्ञ को
पूर्ण करना चाहती है तो ममता दीदी हर हाल में भाजपा को रोकना चाहती हैं। हाल ही
में हुए पंचायत चुनाव में भाजपा और तृणमूल पार्टी की जद्दोजहद जगजाहिर हो गयी है।
पंचायत चुनाव और विधानसभा चुनाव के दौरान यूं तो भाजपा का प्रदर्शन कुछ उत्साह जनक
नहीं कहा जा सकता। लेकिन, उप चुनावों के दौरान भाजपा का प्रदर्शन सराहनीय रहा।
भाजपा ने बंगाल में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा दी। अब अमित शाह की रणनीति, जिसने
भाजपा का अमूमन पूरे भारत में, एक नया वर्चस्व कायम करवा दिया है। उसी रणनीति की
असल परख बंगाल में देखने को पूरा भारत उत्सुक है। अमित शाह ने अब तक कुल 18 बार
बंगाल का दौरा किया है। अमित शाह को पूर्ण विश्वास है कि भाजपा 2019 के चुनाव में
बंगाल फतह कर लेगी लेकिन, दीदी का अपना बनाया और बिछाया हुआ चक्रव्यूह है जो कब और
कैसे तोड़ना है यह वही निश्चय करती है।
2016 में हुए
विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा 11 प्रतिशत पर सिमट सी गयी थी। वहीं हाल ही में हुए
पंचायत चुनाव में भाजपा ने ग्रामीण इलाकों में अपनी पहुंच बढ़ायी है। लोगों में
जोश पनपा पर हिंसा के आगे शायद कहीं न कहीं दम तोड़ दिया। जोश और उत्साह को
पुनर्जीवित करने मिदनापुर में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहुंचे और लोगों
से अपने हौसले को बुलंद करने को कहा। मोदी जी देश के उस हिस्से को मजबूत करना चाहते
हैं जहां आदिवासियों का इलाका है जिसे बंगाल में जंगलमहल का इलाका कहा जाता है। यही
वह इलाका है जिसने भाजपा को वोट करने का साहस किया और भाजपा ने इतनी मशक्कत के बाद
वोट प्रतिशत में एक तरह की छलांग सी मार ली और वोट प्रतिशत 24 तक पहुंच गया। भाजपा
की असल मायने में यही जीत है। बंगाल में जीत की पहल का पहला पायदान भाजपा चढ़ चुकी
है। जहां विधानसभा चुनावों में शहरों और जिलों के पढ़े लिखे लोग भाजपा को बंगाल
में लाने से हिचकिचा रहे थे वहीं आदिवासी तबका बंगाल में परिवर्तन लाने को उत्सुक
नजर आ रहा है। दिल्ली से चली आवाज नगर के लोगों को शायद अब तक नहीं जगा पायी है। लेकिन,
वहीं दूरस्थ इलाकों में बसने वाले अनपढ़ लोगों ने परिवर्तन की आवाज़ को पहचाना है।
आगामी चुनाव का रुख़ जबरदस्त होगा जब आदिवासियों के कानों तक पहुंची आवाज शहर में
रहने वाले लोगों के कानों को भी छू जाय।
आदिनाथ, टैक्सी
ड्राइवर, छपरा के निवासी हैं। पिछले 22 सालों से टैक्सी चलाते हैं। टैक्सी चलाते
मोदी के गुणगान करते नहीं थकते। उन्हें पूरा यकीन है कि बंगाल में भी मोदी का जादू
चलेगा और तभी बंगाल के लोग भी बाकी राज्यों की तरह उन्नति के पथ पर आगे चलेगें।
मोदी को वह एक दूरदर्शी और सही निर्णायक मानते हैं। “मोदीजी सही टाइम पे सही काम करेगा “ आदिनाथ की तरह ही तारकेश्वर और अनीस अंसारी भी
यही मानते हैं कि मोदी यानी भाजपा के आने से ही बंगाल की स्थिति में सुधर होगा।
वरना बंगाल में मनमानी चाहे सिंडीकेट की हो या किसी माफिया की या दादागिरी चलती ही
रहेगी।
पंचायत चुनावों में हुई
हिंसा के मद्देनजर भाजपा पुरुलिया में अपनी स्थिति मजबूत करने में लगी हुई है।
भाजपा के तीन कार्यकर्ताओं की मृत्यु से भाजपा जहां सतर्क हो गयी है वहीं अपनी
दावेदारी मजबूत करने के साथ वहां की परिस्थितियों से लड़ने के लिए अखाड़े में उतर चुकी
है। अमित शाह का दौरा यकीनन स्थानीय निवासियों में उत्साह भर देता है। जिससे वो
ऊर्जावान होकर भाजपा को बंगाल में लाने के लिए हर संभव प्रयास में जुट जाते हैं
जिससे हिंसा का सामना आने वाले समय में उनकी आने वाली पीढ़ी को न करना पड़े।
भाजपा के लिए यह समय
बंगाल में प्रवेश करने का बेहतरीन समय है। जहां कांग्रेस पार्टी अपना वर्चस्व खोती
जा रही है और सीपीएम अपनी दावेदारी। एकमात्र तृणमूल से सामना 2019 में भाजपा का ही
होना है। एक तबका जहां मोदी को बंगाल में देखना चाहता है तो दूसरी ओर कट्टरपंथी
तबका परिवर्तन से दूर भागता नजर आता हैं। उन्हें बाहरी शासन पसंद नहीं। बंगाल की
परिस्थिति भाजपा के लिए करो या मरो के समान है। एक तरफ जहां पूरे भारत को भगवा रंग
से रंग देने वाले मोदी और शाह बंगाल की ओर नजरें जमाये हुए हैं। वहीं बंगाल की
सल्तनत को दीदी खोना नहीं चाहती हैं इसीलिए, मोदी विरुद्ध एकजुट महागठबंधन गुट में
चन्द्रबाबू नायडु, मायावती, अखिलेश, तेजस्वी यादव और सोनिया के साथ ममता दीदी ने
भी सहयोग करने का हाथ बढ़ाया है और मोदी को बंगाल से दूर रखने का बीड़ा भी।
बंगाल में 70
प्रतिशत बूथ समितियां स्थापित की गयीं हैं जिससे 2019 के चुनाव में कठिनाइयों का
सामना नहीं करना पड़े। इससे आने वाले चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत भी बढ़ेगा।
भाजपा बंगलादेश से पलायन कर आये लोगों के लिए भी सहयोग का हाथ बढ़ा रही है। बंगाल
में जितना पिछड़ा समाज अथवा वर्ग है, जिसपर तृणमूल सरकार की कृपादृष्टि आजतक नहीं
हुई, भाजपा उन सभी को अपने साथ कर लेना चाहती है। जिससे चुनाव का रुख 2019 में परिवर्तित
हो सके। उधर जंगलमहल के स्थानीय लोगों ने अपना मन खुलकर भाजपा के प्रति बना लिया
है जिसका कारण स्पष्ट है कि तृणमूल सरकार उनकी आशाओं पर खरी नहीं उतरी। आज भी वो
संसाधन विहीन हैं। जीवन की सामान्य सुख सुविधा भी जीवनयापन के लिए उन तक नहीं
पहुंच पायी है। इसलिए पूरे भारत में जो हो चुका है बंगाल के ग्रामीण इलाकों के लोग
अब वही परिवर्तन बंगाल में भी देखना चाहते हैं। हर चुनाव में होने वाली हिंसा और
उससे जूझता उनका परिवार त्रस्त हो चुका है। चुनावी हिंसा उनके जीवन को झकझोर कर रख
देती है।
बंगाल में आज
बेरोजगार युवाओं की संख्या दिन प्रति दिन बढ़ती चली जा रही है। रोजगार के नाम पर
तृणमूल सरकार भले ही कागजी आंकड़े घोषित कर विपक्ष को करारा जवाब देने में समर्थ हो
परन्तु हकीकत इससे बिल्कुल विपरीत है। शहर को सुंदर बनाने का बीड़ा तृणमूल सरकार ने
अवश्य उठाया है लेकिन, शहर सुंदर बनाने से आम जिंदगी सुंदर हो जायेगी इसकी तो कोई
गारंटी नहीं होती।
भाजपा की लहर और
जनता का विश्वास अब बंगाल की रगों में भी कहीं न कहीं धीरे धीरे प्रवेश कर चुका
है। जिसका खुला प्रमाण उप चुनावों में स्थानीय पार्टियों को भाजपा ने दिया और अब
आने वाले लोकसभा चुनाव में फतह की तैयारी में जुटे और आश्वस्त अमित शाह दूसरे
राज्यों की भांति बंगाल को भी भगवा रंग की चादर ओढ़ा देना चाहते हैं।
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