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Tuesday 16 September 2014


मकान नम्बर डी 5, सेक्टर 31 





सर्वमंगला मिश्रा


सांसे टूटती रहीं, लोग बिलखते रहे, हम हंसते रहे, लोग मरते रहे।
वक्त पल्टा-एहसास बदला-
आज मेरी सांसे टूटती हैं हर पल,
लोग हंसते हैं, हम तिल तिल मरते हैं।
एहसास का आलम अब मुझमे समाया है,
जश्न ए मौत का एहसास अब समझ आया है।

पूरा शरीर जल चुका है मोदी के हाथ तो सिर्फ बचा हुआ अधजला पैर हाथ लगा है। पर न्याय की आस अभी बाकी है तो मैक्स के पिता निश्चिंत दिखे कि फांसी आज नहीं तो कल होनी ही है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने सजा सुना दी है। राष्ट्रपति ने दया याचिका खारिज़ कर दी है तो कितने दिन न्याय टलेगा ?? इसलिए हमें न्याय की उम्मीद अभी भी है।


11 साल, साढ़े 5 साल, 3 साल और न जाने कितनी गिनतियां गिनूं सारी गिनतियां परिजनों के मात्र मस्तिष्क में याद की तरह पल रही है। इनमें से  ज्योति की तस्वीर अंदर रखी थी किसी बैग के अंदर तो मैक्स की तस्वीर दीवार पर टंगी मिली। पर हर्ष जो मात्र 3 साल का था परिवार जनों को सदा के लिए शोक में डूबो कर न जाने कहां चला गया।
इस देश में बलात्कार और मासूमों के अपहरण करने वालों के लिए तालिबानी फरमान होना चाहिए। शिवपाल यादव मिलने आये थे उन दिनों। हमें सरकार ने मुआवजा भी दिया। सरकारी नौकरी देने की बात भी कही थी पर आज तक तो मिली नहीं, अशोक ने बताया। तो अपना सबकुछ दांव पर लगा चुके झब्बूलाल जी आखिरी दम तक लड़ने को कटिबद्ध दिखे। सरकारी मुआवजे से अपनी रोजी रोटी की छांव तो बचा ली और जो बाकी पैसे थे उसे केस लड़ने में लगा दिया। दो प्लाट बिक चुके हैं तो बचे हुए प्लाट भी लगाने से पीछे न हटने की कसम खाये ज्योति के पिता अपने धीरज और मां के धैर्य का बांध आज भी मजबूती से खड़ा है। हर तूफान से भिड़ने के लिए।
“धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी
आपत काल परखियहिं चारी “ यह पंक्तियां यूं तो रामचरितमानस की हैं पर जिस सिलसिले में आज यहां जिक्र करने जा रही हूं वह आप सबके जह़न में कहीं न कहीं आपके मानसिक संतुलन को एक सेंकेन्ड के लिए या एक पल के लिए ही सही विचलित जरुर कर देगी। साल 2014 में हम सांस ले रहे हैं। उन रास्तों और गलियों में आज भी ज़िंदगी पल रही है। बच्चे पल-बढ रहे हैं। लोग काम कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। पर दिसम्बर 2006 का वो साल जिसने दिल्ली से सटे नोएडा के डी -5 सेक्टर 31 का वो घर जहां आज ना कोई पुलिस पहरा है ना कोई आतंक का साया। पर आज भी वहां के दहशत के दिन याद करते वो मां बाप जिनके कलेजे के टुकड़े को छीनकर मोनिन्दर सिंह और सुरेन्द्र कोहली ने सदा के लिए बेचैन कर दिया है। इस घर से जब कंकालों, लाशों के साथ आंखें, हाथ और पैर जब नाले और उस घर के अंदर बने कुंए से निकले थे तो ऐसा भी कुछ दुनिया में होता है यह सोचने को हर आंख मजबूर हो गयी थी। पायल, जिसकी गुमशुदगी और मौत से इस रुह कंपाने वाले सच का खुलासा हुआ था। जिससे दिल्ली, नोएडा नहीं बल्कि पूरा देश थर्रा गया था। जिसने 3 साल के बच्चे से लेकर 50-55 तक की महिलाओं को भी नहीं बख्शा। बच्चों  और महिलाओं के कपड़े तो मिले थे कुछ खून से लथपथ तो कुछ ऐसे ही पर गुर्दे, कीडनी का ये सेलर मोनिन्दर सिंह पंढेर को आज तक सजा नहीं मिली है। जिससे ज्योति के पिता और झब्बुलाल जी यह कहते नहीं थकते कि वही असली गुनाहगार है। सी बी आई पर भी उन्हें भरोसा नहीं रहा पर हां वो कहते हैं उन्हें मोदी सरकार से जरुर आशा है कि उन्हें और उनके जैसे बाकी माता पिता को न्याय जरुर मिलेगा। ज्योति कक्षा 5 की मेधावी छात्रा थी। अपने भाई बहनों में 5 वें नम्बर की थी। उसके पिता की आंखें भर आयीं ये कहते कि ज्योति अपने बड़े भाई अर्जुन को बताती थी कि कैसे पढाई करनी है। ज्योति की मां सुनीता देवी कहती हैं कि उनकी बेटी डाक्टर बनना चाहती थी। उन्नाव के गंजमुरादाबाद का रहने वाला यह परिवार 20 साल से यहीं अपना गुजर बसर कर रहा है। उन्होंने बताया कि उनके पास दो तीन महीने में पठानी पायजामा कुर्ता और शर्ट्स धोने और आयरन करने के लिए आती थीं। पर उन्हें यह पता नहीं था कि वो कपड़े किस दुराचारी के हैं। महिलायें जब गुम होती थीं तब लोग यह सोचकर बैठ जाते थे कि किसी के साथ अफैयर चल रहा होगा जिसके फलस्वरुप लड़की भाग गयी होगी। पर जब खुद पर विपदा आयी तब समझ आया कि असली दर्द क्या होता है। आज झब्बुलाल के तीनों बेटे काम कर रहे हैं एक बेटी ब्यूटी पार्लर में काम भी कर रही है। पर आह हर उस शक्स के अंदर जैसे पल-पल पल रही है। सालों बीत गये तकरीबन आठ साल पर हरियाणा की जन्मी करनाल में पली- बढ़ी -पीला दुपट्टा सिर पर ओढे उस बूढी महिला जो आज भी उस इलाके में सफाई का काम करती हैं। कहती है बेटी मेरा नाम जानकर क्या करोगी, मेरी फोटो खींचकर क्या करोगी हम तो बस यहां काम करते हैं। इतना लिखना कि उस मोनिन्दर को फांसी मिलनी ही चाहिए। हम सब यही चाहते हैं। सुरेंद्र को मिली तो क्या मिली जड़ को खत्म करो पेड़ के तनों को काटने से क्या होगा। उस रोड को क्रास करके जैसे ही मैं अन्दर पहुंची। बारिष के मौसम के कारण थोड़ा कीचड़ और पानी का बिखराव अधिक था पर जब मैं मैक्स के घर पहुंची तो उसके माता पिता बाहर ही मिल गये। उनका भरा पूरा परिवार भी मिला। बस एक की कमी ने उस मां को जरुर रुला दिया। जब उपर के घर के एक कमरे में मैक्स की तस्वीर मुझे दिखा रही थीं तब बताते बताते आंसू झलके तो रुके नहीं। मैक्स की मां कहती हैं कि उसका सारा सामान मैंनें बंद करके रख दिया है। खोलने की हिम्मत नहीं होती क्योंकि ये तस्वीर ही सुबह शाम इतना रुला देती है। मैक्स के पिता अशोक कहते हैं कि वो तो जूस पीने गया था शाम  को, पर लौटा नहीं।
सुनहले बाल, लम्बी स्कर्ट और छोटा टाप पहने पंढ़ेर की पत्नी कुछ दिन ही दिखी फिर कभी नहीं। सुबह शाम एक छोर से अपने घर के पास तक रोज अपने डागी को घुमाता भी था। उसे देखने वाले तो रोज या कभी कार देखते थे पर यह एहसास क्या आभास भी नहीं हुआ कि इस इंसान के अंदर एक दैत्य छुपा हुआ है।
मैक्स के पिता अशोक समझाते हुए कहते हैं कि मानलिजिए मैंने अपनी दुकान में एक आदमी रखा उसने 1000 रुपये का सामान बेचा दिनभर में। जब हिसाब में 500 रुपये अगर गायब होते हैं तो क्या मैं नहीं पूछूंगा कि हिसाब में गड़बड़ी क्यों है कहां गये पैसे। वैसे ही मोनिन्दर को कैसे पता नहीं था कि उसके घर में क्या हो रहा है। ऐसे लोगों को चौराहे पर खड़ा कर फांसी देनी चाहिए। तभी उत्तर प्रदेश में जुर्म रुक सकेगा वरना मुश्किल है।
यूं तो बिहार के बक्सर में मौत की रस्सी बनायी जाती है फिर फांसी का फंदा तैयार होता है। पर अब शायद किस्मत कुछ दिनों के लिए और मेहरबान हो गयी है। इंसान ही इंसान का दोस्त है तो इंसान ही इंसान का परम शत्रु भी। जिस इंसान ने इतने मासूमों, बच्चों और महिलाओं को न जाने कैसे मौत के घाट उतार डाला उसे अब पवन जल्लाद मेरठ की जेल में फांसी पर 12 सितम्बर को लटकाने वाले थे। 9 सालों से किसी को फांसी नहीं दी गयी थी। जिससे वहां 72 किलो के पुतले को फांसी पर लटकाने का कृत्य किया गया। फोन पर पवन ने हमें बचाया कि जिसने इतने लोगों को मारा उसे मारने में उन्हें कोई तकलीफ नहीं। पर सुरेंद्र कोहली अभी कुछ दिन और सांस लेगा इस धरती पर न जाने क्यों?
बच्चों पर हर पल नजर रखनी पड़ती है। अब स्कूल छोड़ने से लेकर लाने तक किसी पर भी भरोसा नहीं होता। निठारी हत्याकांड खुलासे ने हमें झकझोर कर रख दिया था। हमने घर पर स्ट्रीक्ट रुल्स बना दिये थे। किसी को भी कहीं अकेले आने जाने की आज तक कोई छूट हमने नहीं दी है- प्लाईवुड के विक्रेता अभिषेक गुप्ता कहते हैं। इस नोएडा निवासी ने बड़ी कश्मकश के साथ इस बात का जिक्र का किया कि 2006 का साल और आज सितम्बर 2014 है हमने एक भी नया कस्टमर नहीं बनाया। निठारी के नाम से ही लोग यहां नहीं आना चाहते हैं। सालों से बसे अब और कहीं नये सिरे से काम करने की ताकत नहीं रही जिससे मजबूरी में यहीं से रोजी रोटी चलानी है। उन दिनों हमारा व्यापार बहुत प्रभावित हुआ था। लोग यहीं रोज धरना दिया करते थे। मीडिया का हूजूम लगा हुआ था। हमने भी आवाज उठायी पर फिर व्यापारियों ने मिलकर अपनी अपनी दुकान खोलने का फैसला किया। जीवन भी तो चलाना था ना।

मीडिया की अहमियता निठारी निवासी आज भी मानते हैं। मीडिया ने हमारी बहुत मदद की। पर पुलिस विभाग से आज भी नाराजगी है। पहले रिपोर्ट दर्ज नहीं हुआ करती थी। मकान अब सीज़ है बगल का मकान डी 4. सेक्टर 31 में वकील साहब रहते हैं पर उस समय भी उन्हें यही कहते सुना गया था कि उन्हें कुछ नहीं पता। पर पूरी दुनिया को उसके काले कारनामों का आर्गन स्मगलिंग और ना जाने क्या- क्या होता था उस घर में। 
जब कोई आपको छोड़ कर चला जाता है या परिस्थिति वश दूर हो जाता है तो मिलने की आस बची रहती है । इंसान स्वयं को सांत्वना देकर जी लेता है। पर, अगर कोई कभी वापस न आने वाला हो, आपको हमेशा के लिए छोड़कर चला गया हो तो जीना दुश्वार हो जाता है। पर जीता हुआ दूर रहता है तो पल पल इंसान रिस रिस कर मरता है और जो नहीं रहा उसकी याद तड़पा तड़पा कर जीवन भर रुलाती है। अब वो बच्चे लौटकर वापस नहीं आने वाले। पायल के पिता या परिवार के विषय में स्थानीय लोगों को कोई सूचना भी नहीं कि उसका परिवार कहां है और क्या कर रहा है। पर आज यह सभी माता पिता अपने लिए नहीं समाज के लिए लड़ रहे हैं। ताकि दूसरा कोई मोनिन्दर पैदा न हो। इन सभी परिवारों ने ने अब तक धीरज, धर्म के साथ कौरवों के खिलाफ लड़ाई छेड़ी है। धर्म की लड़ाई में देर जरुर होती है पर आखिरकार जीत सच्चाई की ही होती है।

Sunday 14 September 2014

क्या होगा बंगाल का??
-सर्वमंगला मिश्रा-स्नेहा


पं. बंगाल अपने गौरवपूर्ण इतिहास के लिए प्रसिद्ध है। बंगाल देशभक्ति, कला –संस्कृति और साहित्य के लिए जाना जाता है। बंगाल अंग्रेजों के शासनकाल में देश की राजधानी थी। बंगाल जिसने ज्योति बसु के नेतृत्व में खुद को सुरक्षित महसूस किया और अब 34 वर्षों के शासनकाल की नींव को झकझोर देने वाली ममता दीदी के राज में बंगाल कहीं क्या दिशाहीन हो गया है ??
जबसे केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी का आगमन हुआ है क्षेत्रीय पार्टियों की बौखलाहट अब चिंतन में नहीं एक्शन में परिवर्तित हो रही है। जीता जागता उदाहरण बिहार है। जहां राजद और जेडीयू ने दस में से छह सीटें जीतकर अन्य पार्टियों को भी ऐसा करने की प्रेरणा दे डाली है। पासवान के सुपुत्र चिराग पासवान ने जहां लोकसभा चुनावों के पहले समझदारी दिखायी वहीं इन दो बुजुर्गों ने उप-चुनाव से पहले पहल कर डाली। अब आक्सीजन तो हर पार्टी को चाहिए जीने के लिए। सुगबुगाहट तो सपा और बसपा के गठबंधन की भी है। सवाल सत्ता का जो है। बंगाल की सत्ता जिसके लिए अपने कालेज की युवा नेत्री ने ज्योति बसु की गाड़ी पर भीड़ को चीरते हुए झंडा गाड़ने का दम दिखाया था। तब से लेकर 2011 जब वो सत्ता पर आसीन हुई तब तक।पर सवाल उठता है कि बंगाल में आज कौन रहता है ? बंगाल में आज बड़ाबाजार, अलीपुर, गोड़िया जैसे इलाकों को छोड़ दिया जाय तो नये कोलकाता यानी राजारहाट,साल्ट लेक जैसे इलाकों में कौन रहता है? रिटायर्ज आफिसर्स, बूढे बुजुर्ग दम्पत्ति, जो आराम से बुढ़ापा काटना चाहते हैं। कहां हैं नवयुवक जो बंगाल को उन्नति के पथ पर लेकर अग्रसर होंगे। कहां है जगदीश चन्द्र बोस, कहां है सुभास चन्द्र बोस?? आज बंगाल देश के किस पायदान पर खड़ा है। इसका आंकलन शायद आपको चौंका दे। आज युवा वर्ग शिक्षा और रोजगार की तलाश में दिल्ली, बैंगलोर और मुम्बई जैसे इलाकों में अपना भविष्य तलाशते हैं। राज्य के युवा बेहतर शिक्षा संस्थानों के अभाव में दिल्ली,बैंगलोर, चेन्नई के चक्कर काटते हैं तो भविष्य बंगाल में अंधकारमय नजर आता है इसलिए बेहतर जीवन शैली और रोजगार के बेहतर,सुलभ साधन ढूंढते युवा अपना घर छोड़कर बाहर निकलते चले जा रहे हैं। इन्हीं बातों के मद्देनजर तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्या ने एक बार लोगों को आश्वश्त किया था कि ऐसे शिक्षण संस्थानों को बढ़ावा दिया जायेगा जिससे नवयुवकों को राज्य छोड़कर बाहर न जाना पड़े। पर ऐसा कुछ हुआ नहीं। इंजीनियर्स बैंगलोर और चेन्नई का रुख कर लेते हैं तो दूसरे क्षेत्रों वाले दिल्ली और मुम्बई जैसे शहरों में बसने लगे हैं। ऐसे में बंगाल का कर्णधार कौन होगा? पिछले कुछ सालों में केपजेमिनाई, विप्रो, टेक महिन्द्रा जैसी कंपनियों ने अपनी उपस्थति दर्ज जरुर करायी है जिससे साल्टलेक स्थित सेक्टर 5 के इलाकों में दूसरे शहरों से और राज्यों से आये लोग नौकरी कर रहे हैं जिससे मकान मालिकों को किरायेदार मिल गये हैं नोएडा , दिल्ली और मुम्बई की तरह। पर, जिसतरह टाटा के पांव उखाड़े गये उस तर्ज पर क्या बंगाल का औद्दोगिक विकास हुआ है? हाल ही में ममता बनर्जी सिंगापुर की यात्रा करके आयीं हैं। पांच सालों में सी एम साहिबा ने कितने उद्दोगों को सही तरीके से आमंत्रित किया। कितनी फैक्ट्रीज़ लगने वाली हैं जिससे बंगाल के लोगों को रोजगार की प्राप्ति हो सकेगी। गांवों में रहने वाले लोगों के पास आज कितनी नौकरियां हैं जिससे वो अपना और अपने परिवार का भरण पोषण ठीक से कर पाने में समर्थ हैं। ग्रामीण इलाकों में आज भी खेती ही एकमात्र सहारा है या छोटे मोटे रोजगार। पर वह पर्याप्त नहीं है जीवन यापन की दृष्टि से। मंहगाई जिस आसमान को दिन पर दिन छूती चली जा रही है और गैजेट्स का शौक परवान चढ़ता चला जा रहा है। ऐसी परिस्थति में विदेशी आतंकी मौके का फायदा उठाकर भोले भाले मासूम गांववालों का प्रयोग करते हैं। जिससे अज्ञानतावश, लालचवश या मजबूरी से विवश होकर उनके गुलाम बन जाते हैं। इसी तरह देश में स्लीपर सेल्स का नेटवर्क तगड़ा होता जाता है और हम जिस डाल पर बैठे हैं उसी डाल को काटते चले जा रहे हैं।
बंगाल जहां महिलाओं के सम्मान के लिए भी जाना जाता था। अब दशा विपरीत नजर आ रही है। दिल्ली, मुम्बई की हवा लग गयी है बंगाल को। पंचायतों के अजब- गज़ब फरमान। हाल ही में जलपाईगुड़ी की एक घटना सामने आयी जिसमें एक पिता अपने रेंट पर लिए गये ट्रैक्टर का कर्ज न चुका पाने के कारण गांव में सभा बैठी थी। जहां किसान अपना कर्ज चुकाने की मोहल्लत मांग रहे थे। जिसमें टी एम सी के वार्ड नम्बर 9 के की काउसिलर और उनके पति भी मौजूद थे। पर बात बढ़ी और पिट रहे पिता के लिए बेटी घर से निकलकर बाहर आयी और आग्रह किया कि- मत मारो मेरे पिता को। तभी उसके कुछ जानने वाले उसे वहां से हटाकर दूर ले गये। जिसके बाद उसकी नंगी लाश धूपगुड़ी के रेलवे ट्रैक पर पायी गयी। इससे भी घिनौना चेहरा बंगाल का कुछ महीनों पहले आया जहां गैर जाति के युवक से प्रेम और विवाह करने की सज़ा मस्तिष्क को झकझोर और रुह को कंपा देने वाली थी। पंचायत ने उसे गैर जाति में विवाह करने पर दंड के तौर पर आर्थिक दंड देने को कहा। जब उसने कहा कि उसके पास इतने रुपये नहीं है तो दिल दहलाने वाली सज़ा फरमान के तौर पर उस पंचायत ने सुनायी। रिश्ते में लगने वाले चाचा और भाईयों ने उसके साथ कुकर्म किया। यही था उस पंचायत का फरमान। क्या अब महिलायें बंगाल में सुरक्षित रह गयी हैं ? एक प्रमुख टेलीविजन चैनल ने रियेलिटि चेक बंगाल के सेक्टर 5 में किया। जहां जानी मानी विदेशी कंपनियां स्थापित हैं। एक कार को खड़ा कर उसमें से चीखें निकलती हुई महिला की किसी ने मदद नहीं की। हांलाकि वह एक टेस्ट था कि अगर सच में कोई महिला फंस जाये तो क्या बंगाल के लोगों में अब भी इतनी इंसानियत बची है कि आगे आयें और मदद की गुहार सुनें। सेक्टर पांच और उसके आस पास का इलाका काफी सुनसान सा रहता है। कमर्शियल इलाका है। जहां चहल पहल दिन में ही अच्छी खासी रहती है रात में सन्नाटा पसर जाता है। मुझे याद है आज से तकरीबन साढे 3 साल पहले हमारी एक सहयोगी रात को तकरीबन साढ़े आठ बजे निकली घर जाने को। साउथ की तरफ जाने वाले लोग अधिकतर शटल का यूज करते हैं। उपलब्धता की दृष्टि से भी और कम समय में अधिकतम दूरी भी तय हो जाती है। पर वह जिस शटल में बैठी उस गाड़ी के दरवाजे ड्राइवर ने तकनीकी तौर पर बंद कर दिये। जिसके बाद उसने आफिस फोन किया तो धर पकड़ के बाद उसकी निकटस्थ थाने में कंप्लेन दर्ज करायी गयी। पर क्या सभी का भाग्य हरबार साथ देता है। यह हाल है नए बसते हुए कोलकाता शहर का। तो बाकी इलाकों में दहशत क्या अपने पैर नहीं पसारेगी। गांवों का हाल उपर बंया कर ही चुकी हूं।
सूत्रों के हवाले से खबर छन छन कर आ रही है कि अब बंगाल के रिंग में रिंगमास्टर बनने के बाद उन्हें पुराने रिंगमास्टरों से हाथ मिलाकर चलने में परहेज नहीं। इस बात का तात्पर्य क्या है- कि इतने सालों तक सी पी एम के खिलाफ जो लड़ाई जनता के मन मस्तिष्क में उकेरी गयी वो मात्र आपकी कुर्सी की लड़ाई पाने का जरिया था। पार्टी की लड़ाई की तह में स्व आक्रोश छिपा था। हर बार रक्त-रंजित चुनावों के बाद ही बंगाल ने कुर्सी पर किसी को पदासीन किया है। 1997 का वो साल जब ममता के नाम की आंधी पूरे बंगाल में चक्रवात की तरह पनपी थी। पर सत्ताधारी सी पी एम ने ममता दीदी को पटखनी दी थी। हारा हुआ योद्धा और बूढा शेर जब गिरकर उठते हैं तो उसमें एक नयी आक्रामक शक्ति आ जाती है। वही ममता दीदी ने भी किया। धुंआधार ठीक मोदी की तरह अनगिनत जनसभायें उसमें जोरदार भाषण और देशभक्ति भरे गीतों से समापन करती थीं। पर कहां गयी अब वो देशभक्ति। कितने आई ए एस, आई पी एस निकले हैं ? कितने शोधकर्ता, वैज्ञानिक, डाक्टर और आई आई टी प्रोफेशनलस निकले हैं?
आज बंगाल में प्रापर्टी के दाम बढ़ रहे हैं।पर उसका आधार क्या है? वहां शिक्षा सामान्य, बिजनेस, नौकरी सामान्य जो पीढियों से करते और रहते चले आ रहे हैं। दाम कितने दिन बढेगें। सिर्फ दबंगई के बल पर शासन कितने दिन का। नये बसेरे बस तो रहे हैं पर पक्षी उड़ते चले जा रहे हैं। तो नये घरौंदे में रहता है कौन है और कौन रहेगा दीदी- ज़रा सोचिये।

  मिस्टिरियस मुम्बई  में-  सुशांत का अशांत रहस्य सर्वमंगला मिश्रा मुम्बई महानगरी मायानगरी, जहां चीजें हवा की परत की तरह बदलती हैं। सुशां...