dynamicviews

Tuesday 11 June 2013


आडवाणी प्रमोटेड हो गये.....???




आडवाणी –जो अडिग न रह सका अपनी वाणी पर वो हैं आडवाणी.....कहते हैं जब अखाड़े का जमा खिलाड़ी खुद को हारते हुए देखता है तो बौखलाहट में पुराने शेर की तरह अपनी हर ताकत झोंक देता है....जीत पाने के लिए.....भई नाटक हो तो ऐसा हो......ऐसा ही कल दोपहर 1बजकर 40 मिनट पर जब खबर आयी कि आडवाणी जी ने सभी पदों से इस्तीफा दे दिया...न्यूज रुम में जैसे भूचाल सा आ गया....हर किसी को विश्वास सा नहीं हो पा रहा था....पर जिन हाथों ने नींव से लेकर कंगूरा बनाने और बनने के लिए मेहनत की हो तो उसे उस इमारत की हर वायर का पता होता है...कि कौन सी लाइन किस घर से होकर गुजरी है....और किस दीवार को तोड़ने से किस कमरे की लाइट गुल हो सकती है...या यूं कहा जाय कि घर के जवान बच्चे जब बुजुर्गों को तकलीफ की राह पर चलने को मजबूर करते हैं तब- पर अपनी उम्र के मित्र ही बुढापे में सही सलाह भी देते हैं....वैसा ही कुछ भाजपा के वरिष्ठ नेता ने भी किया....घर के बच्चों को सही राह पर लाने के लिए और अपनी बादशाही-हूकूमत में नये रंग भरने की कोशिश कितनी कामयाब रही या बेबुनियाद....
आडवाणी ने अटल जी के साथ मिलकर कमल को अपने बच्चे जैसा सींचा.....जिसको सींचते सींचते माली ने एक खूबसूरत कल्पना कर डाली.....जी हां खूबसूरत कल्पना....सपने को पाने के लिए हर कीमत चुकायी...पर सपना अपना नहीं होता....ऐसा कहते हैं....पर सपना को सच होते देखना एक बहुत ही सुखद अकाल्पनिक, अद्भुत अनुभूति का एहसास दिलाता है.....1980 में जब भाजपा का गठन हुआ तब कांग्रेस का ही आदिकाल से प्रभुत्व बना हुआ था....इंदिरा गांधी जिसने एमरजेंसी लगाकर सन् 1975 में अपनी तानाशाही का परिचय और अपनी शक्ति का प्रदर्शन खुले आम किया था....उस समय आडवाणी जी भी जेल गये थे....कुछ साल पहले एक टेलिविजन चैनल ने उन यादों को आडवाणी जी के साथ ताजा किया था.....उन यादों को यादकर आडवाणी जी भी अपनी भावनाओं पर संयम बरतते हुए- अपने उन दिनों के बारे में बताये......खैर, मंच पर मीडिया के समक्ष खुले शब्दों में या डिप्लोमैटिक भाषा में पार्टी का मेक अप आडवाणी जी ने बखूबी किया....उस पर कोई आंच न आये इसलिए खुद धूप में खड़े रहकर भी उसे छांव दी....क्योंकि यही कमल जो सूर्य की रौशनी में खिल जाता है....उसी रौशनी का इंतजार आजतक आडवाणी जी भी करते रहे....पर कभी बदली तो कभी बेमौसम बरसात ने उन्हें हर बार निराश कर दिया.....
सालों बाद जब 1996 में अटल जी की 13 टांगों वाली सरकार बनी थी जो फेविकोल के मजबूत जोड़ न लगने से टूट गयी......उस समय संसद में वरिष्ठ नेत्री और अल्प काल के लिए दिल्ली की सी एम रह चुकी सुषमा स्वराज ने कहा था- आज पक्ष बिखरा है और विपक्ष एक जुट है.....इस पर सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो गये....पर, समय एक जैसा नहीं रहता....आज उसी बीजेपी में इतने कांच के शीशे लग गये हैं कि सभी दुर्योधन की तरह सामने पानी को देख नहीं पा रहे हैं...जिससे टकराव की स्थिति पनपती जा रही है....सेंट गोबेन के कांच ऐसे लगे हैं कि सभी कन्फ्यूजड हैं अपने आप से टकरा रहे हैं.....इसके बाद 1998 में पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा आयी तब अटल जी को पद समर्पित करना पड़ा था.....क्योंकि उनसे बेहतर और सुलझा इंसान खोज पाना जनता के लिए कठिन था.....उस समय याद होगा आडवाणी जी और अटल जी में कुछ आंतरिक तनाव और कलह का वातावरण
तैयार हो गया था....जैसे बंगाल के ज्योति बाबू और बुद्धदेव भट्टाचार्या के बीच हुआ था......तब अटल जी ने आडवाणी जी को उप प्रधानमंत्री का पद देकर शांत किया था......पर वो कहानी वहीं खत्म हो गयी...क्योंकि आडवाणी जी को उम्मीद थी कि बीजेपी दोबारा अपना परचम लहरायेगी...पर ऐसा हो न सका....क्योंकि 2004 23 अप्रैल को सोनिया ने पद छोड़कर जो गौरव हासिल किया वो सबके वश की बात नहीं थी......उसी नक्शे कदम पर आडवाणी जी ने किसी और के कहने पर ये नाटक रचा.....जिसमें मैं समझती हूं रंग विहीन कलाकारी रह गयी है....क्योंकि बैल्क न व्हाइट में चित्रकार की असल पहचान होती है......तो इस वरिष्ठ कलाकार को आप कितने नम्बर देना चाहेंगे......





Sarvamangala Mishra
9717827056







  मिस्टिरियस मुम्बई  में-  सुशांत का अशांत रहस्य सर्वमंगला मिश्रा मुम्बई महानगरी मायानगरी, जहां चीजें हवा की परत की तरह बदलती हैं। सुशां...