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Monday 9 April 2018


लिंगायत से किसको फायदा?

सर्वमंगला मिश्रा

कर्नाटक राज्य में कांग्रेस ने भाजपा के विरुद्ध तब अपने फन फैलाकर फुफकारना शुरु कर दिया था जब सिद्दारमैया ने अपने राज्य के लिए एक अलग झंडे की मांग कर डाली। भारत देश का तिरंगा उन्हें न जाने क्यूं अप्रिय सा लगने लगा। देश में सुलगता यह बवाल कर्नाटक के चुनावी रणनीति का एक अहम हिस्सा था। जनता को इस बात का एहसास कराना था कि कांग्रेस ने कर्नाटक की जनता के हक के लिए केंद्र से ऊंची आवाज करने में भी नहीं हिचकिचाती है। 
22 राज्यों में अपना केशरिया परचम लहरा चुकी केंद्र सरकार कर्नाटक की जीत के लिए उद्दत है। जाहिर सी बात है पूरब से लेकर पश्चिम, उतर से लेकर दक्षिण तक केशरिया रंग में देश रंगा हुआ सा नजर आता है। कर्नाटक में भाजपा की जीत दक्षिण में फिर से एक नया अध्याय शुरु करेगी। जिससे भाजपा के विश्व विजय मिशन को यानी अश्वमेध यज्ञ को पूरा करने में एक सीढ़ी और चढ़ जायेगी। यूं तो कांग्रेस और भाजपा की नकेल कस टक्कर सदैव से चली आ रही है। वैसे हाल ही में हुए कुछ चुनाव और उप-चुनाव से राहुल गांधी भी उत्साहित नजर आ रहे हैं परन्तु अमित शाह को अपनी रणनीति पर पूरा भरोसा है। भरोसा है-लिंगायत वर्ग से मिलने वाली सत्ता के समर्थन का। हाल ही में हिन्दू धर्म से अलग हटकर अपनी अलग पहचान बनाने वाला लिंगायत धर्म को विश्व के समक्ष एक पहचान सी मिल गयी है। पर, राजनीति के विचारक इसे वोट बैंक के तौर पर आंकते हैं।
लिंगायत का भविष्य
कुछ लोगों को मानना है कि वीरशैव और लिंगायत एक ही आस्था के प्रतीक होते हैं। परन्तु, दक्षिण भारतीय खुद को वीरशैव से बिल्कुल अलग मानते हैं। वीरशैव शिव के उपासक होते हैं तो लिंगायत शिव की पूजा अर्चना नहीं करते बल्कि अपने शरीर पर ईष्टलिंग धारण करते हैं। इसकी आकृति गेंदनुमा होती है। इसे लिंगायत धर्म को मानने वाले समुदाय आतंरिक चेतना के रुप में देखते हैं। राजनीति की रेत वाली जमीन पर राहुल गांधी के अंदर गुजरात चुनावों के दौरान जो धार्मिक चेतना जगी उसकी चर्चा पूरी राजनीति के गलियारों से निकलकर आम जनता तक पहुंच गयी। जनेउधारी राहुल शिव भक्ति में अब सराबोर हो चुके हैं। वहीं वर्षों से तपोबल और शिव भक्त भारत के प्रधानमंत्री की आस्था किसी से छुपी भी नहीं है। शिव में आस्था के बल पर कांग्रेस शतरंज की बिसात बिछाना चाहती है तो भाजपा के बड़े नेता इस खेल में जनता की नजर में कहीं आगे चल रहे हैं। अमित शाह ने जहां लिंगायत प्रमुख शिवकुमार स्वामीजी से आशीर्वाद ले चुके हैं। वहीं राहुल गांधी भी पीछे नहीं रहना चाहते हैं और शिवकुमार स्वामीजी से आशीर्वाद लेकर कांग्रेस की दशा और दिशा बदलना चाहते हैं। स्वामी जी तो दोनों ही पार्टी के अध्यक्षों को हाथ उठाकर आशीर्वाद दे देंगें। पर, मन से किसको दिया ये तो परिणाम आने पर ही निर्णय किया जा सकेगा। लिंगायत समुदाय हमेशा से बड़ा वोट बैंक रहा है। जाहिर सी बात है वोट बैंक बड़ा है तो प्रयास और उसके अधिकार भी बड़े होने चाहिए। जो अब लिंगायत समुदाय को कहीं न कहीं मिलने की आस है। भविष्य में नौकरियां आरक्षित हो जायेंगी, स्कूल-कालेजों में कम नम्बर लाने के बावजूद आरक्षण के तहत दाखिला मिल जायेगा। रेल के सफर से लेकर संसद तक का सफर आसान हो जायेगा।
धर्म का कार्ड
कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के सबसे बड़े नेता के रुप में यदुरप्पा उभरे परन्तु जिस तरह दलितों के नाम पर देश को कहीं जोड़ने तो कहीं तोड़ने का काम किया वर्षों पहले किया गया था। उसी तरह कांग्रेस ने फिर एक बार अपनी पुरानी चाल नये अंदाज में खेली है। लिंगायत समुदाय को ओबीसी समुदाय के तहत ही आंका जाता है।
2019 -सेमीफाइनल मैच
कर्नाटक का चुनाव 2019 का सेमी फाइनल मैच के समान है। यहां चार में से एक नेता लिंगायत समुदाय से जुड़ा हुआ है। राहुल गांधी यदि 2019 का सपना देख रहे हैं तो यह करो या मरो की स्थिति है। वहीं भाजपा के लिए 23वां राज्य झोली में आयेगा। साथ ही 2019 के पहले, दक्षिण भारत की जनता का विश्वास उनके उन्नत कार्यशैली पर मुहर लगाने का काम करेगी।
राहुल गांधी ने कर्नाटक के तकरीबन 70 प्रतिशत जिलों का दौरा कर लिया है। परन्तु जनता पर इस दौरे का क्या असर पड़ेगा..ये तो जनता ही बता सकेगी। समाज को बांटकर होने वाली राजनीति अभी और न जाने कितने धर्मों के टुकड़े करेगी। भारत की अनेकता में एकता की मजबूती को तोड़ने के मनसूबे न जाने कितनी बार कामयाब होंगें और देशवासी कामयाब होते हुए देखते रहेंगे।
मोदीजी का शासनकाल, जहां हिन्दुत्व का जीर्णोद्धार हो रहा है। वहीं मोदी सरकार दूसरे धर्मों से कुरीतियों को निकालने में भी सक्षम हो रही है। जैसे तीन तलाक और हलाला जैसी कुरीतियों से मुस्लिम महिलाओं को निज़ाद दिलाना। लेकिन राजनैतिक हितों के मद्देनजर हिन्दु धर्म के न जाने कितने टुकड़े होंगे और क्या असर होगा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
धर्म और आस्था राजनीति की बड़ी ढ़ाल रहा है। पर देश में किसी भी एक समाज को वोट बैंक के तौर पर देखना और उसे भरपूर तवज्जो देना भविष्य के लिए खतरनाक साबित होता है। राजनीति के दलदल ने धर्म और इंसान में कितना फर्क ला दिया है।





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