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Sunday 15 April 2018


  कैंडल मार्च की लौ कितनी बुलंद ?
सर्वमंगला मिश्रा
युवा हर देश के भविष्य का प्रतिनिधित्व करता है। युवा सुरक्षित है तो देश सुरक्षित है। युवा वर्ग की अपनी पहचान हर युग में, हर समाज में परिलक्षित होती आई है। नव युवक यदि संतुलित, समझदार और निर्णय लेने की क्षमता रखता है तो देश का भविष्य और आज के युग की बनाई गयी धरोहर भी सुरक्षित रहेगी। परन्तु देश का युवा वर्ग जब संयम नियम से विपरीत दिशाहीन हो जाता है तब देश का भविष्य खतरे में नजर आने लगता है।
आज का युवा सोशल मीडिया से ओतप्रोत रहता है। उसकी दुनिया इंटरनेट से शुरु होती है और वहीं लगभग समाप्त भी होती है। जीवन में दिखावापना और हठधर्मीता दिन पर दिन बढ़ती ही चली जा रही है। व्यक्तित्व में गंभीरता का अभाव सा रहने लगा है। हर शक्स अजीब सी उधेड़ बुन में उलझा रहता है। नौकरी ढूंढनी है –इंटरनेट पर, दोस्तों से बात करनी है वाट्सअप या फेसबुक पर, देखकर बात करनी है वीडियो कालिंग। विडियो कालिंग भी कई किस्म की है- वाट्सअप पर, फेसबुक पर, ज़ीमेल पर, आईएमओ पर..इसके अलावा भी हजार संसाधन उपलब्ध हैं।
देश या विदेश में कोई भी घटना घटती है तब युवा वर्ग प्रो- एक्टिभ हो जाता है। सारे वाट्सअप ग्रूप में सारी खबरें फार्वर्ड करेगा। उत्तेजित होगा फेसबुक पर एसी कमरों में बैठकर देश के लिए चिंता करेगा। कालेज में बहस होगी। आफिस में चाय पर चर्चा होगी। विरोध प्रदर्शन में हक ती लड़ाई लड़ने के लिए बैनर पोस्टर बनवाएगा और दोस्त एक दूसरे की अच्छे पोज़ में फोटो खींचकर तुरंत फेसबुक पर अपलोड कर देंगें। अथवा मकड़ी के जाल जैसी उलझी और दुनिया को एक मंच पर ला देने वाली सुविधा इंटरनेट पर लाइभ अपने मोबाइल से हो जायेगा। ऐसे कामों में तो न्यूज चैनलों को भी मात देने का दम भरता है आज का युवा। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी गर्व से हाथ उठाकर कहते हैं कि आज का युवा माउस पर उंगली घुमाता है और एक क्लिक से पूरी दुनिया घूम लेता है। बिल्कुल सही बात है इसमें कोई दो राय नहीं परन्तु, मंगल पांडे, सुभाषचंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह इनके जैसी ऊर्जा आज के युवा वर्ग के मानस पटल से नदारद है। इन सभी क्रांतिकारियों के समय सोशल मीडिया नदारद था। उसके बावजूद भी अंग्रजों के विरुद्ध कितनी तगड़ी सोशल नेटवर्किंग थी।  न्यूजपेपर छापकर सारे क्रांतिकारियों तक गपचुप तरीके से, जानपर खेलकर पहुंचाना उनके अंदर की ज्वाला और देशप्रेम की भावना को उजागर करता है।
राजनैतिक लोग राजनीति करते आये हैं और करते रहेंगें। एक सोच युवा वर्ग की होनी चाहिए कि वह कैसे देश या समाज में जीवन जीना चाहता है। उसके भविष्य का सपना कैसा है। क्या बापू जैसा सपना है या जे पी जैसा या उसकी कोई नयी विचारधारा। आज वही सोच न जाने किन सपनों में खोई हुई है। सिर्फ अपना काम बना लेना ही मात्र उद्देश्य रह गया है। हम किसी से कम नहीं- बस इसी जद्दोजहद में जीना शान सा बन गया है। अच्छी व्यवसायिक पढ़ाई कर लेना और जुगाड़ लगाकर मोटी तनख्वाह वाली नौकरी पा लेना एकमात्र लक्ष्य रह गया है। कंपनी से देश का नुकसान हो रहा हो तो भी युवा वर्ग को फर्क नहीं पड़ता। उसकी ख्वाहिशें किसी भी कीमत पर पूरी होनी चाहिए। देश से उसे क्या ? उसका जीवन खुशियों से भरा होना चाहिए। जहां वो और उसका परिवार खुशी के मायने महसूस कर सकें।
आज का युवा सोशल मीडिया क्रांतिकारी बन चुका है। जोश तो है पर होश कहीं खो गया है। विरोध प्रदर्शन सिर्फ टायर जलाने, पुतला फूंकने, रोड जाम करने, पत्थरबाजी या स्टेटस अपडेट करने से धरातल की दुनिया में हलचल तो संभव है पर परिवर्तन असंभव। आज का युवा क्रांति तो लाना चाहता है। रातोंरात विश्व परिवर्तन कर देना चाहता है। पर अदृश्य बंधनों ने मानो उसको विवश कर रखा हो।
आज से तकरीबन 40 वर्ष पूर्व से पाश्चात्य सभ्यता ने अपने पैर भारत में पसारने शुरु किये तो किसीने यह अनुमान भी नहीं लगाया होगा मशाल जलाकर अपना विरोध प्रदर्शन करने वाला यह भारत देश सभ्यता के नये पैमाने रचेगा और मोमबत्ती की तरह कुछ समय तक आवाज उठाएगा और फिर सब समाप्त।
देश को बदलना है तो आचरण मजबूत करना होगा। आचरण मजबूत रहेगा तो डगमगाने का खतरा भी कम रहेगा। सोशल मीडिया का उपयोग यदि युवा सही ढंग से करे तो इससे बेहतर कोई साधन नहीं। ग्रूप तो बनते हैं पर पार्टी करने के लिए और हंसी चुटकुल्ले या वायरल मेसेज पढ़ने पढ़ाने के लिए। आज जेसिका, निर्भया या कठुआ कांड सबके लिए कैंडल मार्च, मुंह पर काली पट्टी बांधकर मौन प्रदर्शन करने की जरुरत क्यों पड़ती है। क्योंकि आज के युवा को देश के भविष्य से कोई सरोकार नहीं है। भविष्य से सरोकार हो भी तो उसे अपने भौतिक सुखों की इतनी चाह होती है कि उसके आगे देश असुरक्षित हो तो हो। उसे फर्क तो पड़ता है। पर उसका एहसास बाहोश हो गया है। आजाद पंक्षी बनकर उड़ना चाहता है मस्त गगन में। स्वछंदता होनी चाहिए पर देश को सिर्फ राजनैतिक वर्ग ही क्यों चलाये। सारी जिम्मेदारी राजनेताओं की ही क्यों हो। आज देश में ऐसी कुछ संस्थाएं हैं और लोग भी जो सोशल मीडिया का उपयोग देश को बचाने या सहयोग करने में उत्तम भूमिका निभा रहे हैं। सिर्फ कुछ लोगों से देश एकजुट नहीं हो सकता है। स्वछंदता, एकजुटता और एकनिष्ठता का समागम स्वयं में करना होगा। तभी देश में ऐसे विभत्स कृत्य पर लगाम लग सकेगी।
इंसाफ कैंडल मार्च करने से नहीं मिलता। इंसाफ के लिए कानून व्यवस्था को मजबूत करना होता है। ऐसी सभ्यता का उदय करना होता है जहां सुशासन परिलक्षित हो एवं उसमें पारदर्शिता हो। जब तक किसी देश का न्याय विधान कठोर नहीं होगा तब तक देश समाज के लोग मशाल जलायेंगें या कैंडल मार्च करते रहेंगे।
  

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