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Wednesday, 18 June 2014

पुलिस प्रशासन कितना सच्चा

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हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। एक पहलू जो आपको किसी का आदर्श बना दे और दूसरा पहलू जो किसी के मन को घृणा से भर दे। किसी बच्चे से अगर सवाल किया जाय कि वह क्या बनना चाहता है तो अधिकतर जवाब मिलता है आई ए एस आफिसर या आई पी एस। पर क्या वो सच्चाई से भरा सपना जिसमें गरीबों की मदद, कानून व्यवस्था को बदलने का मिज़ाज होता है पद तक पहुंचते – पहुंचते खोखला हो जाता है। पुलिस प्रशासन का गठन समाज में कानून व्यवस्था को दुरुस्त रखने और सामाजिक सामंजस्यता बरकरार रखने के मकसद से किया गया था। एक समय था जब देश में राजाओं का चलन हुआ करता था। उस समय के कायदे –कानून काफी सख्त होते थे। आज जिस तरह महिलाओं के उपर अत्याचार का बोलबाला बढ़ रहा है उस समय के नियमों के अनुसार दोषी व्यक्ति के हाथ काट दिये जाते थे, आंखें निकाल ली जाती थीं। इन नियमों के द्वारा यह संदेश दिया जाता था कि अपराध करने वालों का अंजाम कैसा होता है। जिससे भविष्य में कोई ऐसा अपराध ना करे। लोग सबक के तौर पर याद रखते थे। समय परिवर्तनशील है और एक ऐसा समय आया जब हमारा प्यारा भारत देश छोटे –छोटे राज्यों में विभक्त था।जहां हर देश का राजा अपनी सत्ता बचाने और झूठी शान के पशोपेश में रहता था। फलस्वरुप छोटे छोटे देशों के राजा आपस में लड़ने लगे। आंतरिक कलह से सुशासन की मजबूत स्थितियां जड़ से उखड़ने लगीं। जिससे बाहरी देशों के राजा परिस्थतियों को भांपते हुए अनेकों बार इस देश पर आक्रमण किये। सत्ता की जड़, जो पत्तों के झड़ने से शुरु हुई थी वो उसकी पहुंच पेड़ की जड़ों तक दीमक की भांति पहुंचकर खोखला करती चली गयी। जिससे देश पर बाहरी शक्तियों का प्रभुत्व जमने लगा और देश एक दिन अंग्रेजों के हाथ चला गया। वो अंग्रेज, जो व्यापार करने आये थे पर 300 वर्षों तक राज़ कर गये। अंग्रेज चले गये पर हूकूमत ए दासतां छोड़ गये। जिसतरह अंग्रेज भारतीयों को बिना किसी जुर्म के यातनाएं देते थे, और बेचारा बिना जुर्म का कैदी कराहता मर जाता था। जिस तरह पानी पर कंकड़- पत्थर मारकर व्यक्ति अपनी दुर्भावना का प्रदर्शन करता है। चोट तो जल को भी लगती है पर वह कहता नहीं, उसी तरह अंग्रेजों के कब्जे में भारतीय भी जुर्म सहता था। आजादी की उसी लड़ाई में खूनी कहनियां सामने आयीं तो कितनी गुमनामी के अंधेरे में दब गयीं। सावरकर, भगत सिंह, खुदीराम और चन्द्रशेखर आजाद जैसे अनगिनत नामो ने जिंदगी का अंत कर देश और देशवासियों को सिर उठाकर जीने का हक दिलवाया।
आज पुलिस तंत्र के कामकाज के रवैये पर सवाल उठना बहुत लाजमी हो गया है। जिस तरह फर्जी एन्काउंटर के नाम पर मासूमों की जान के दुश्मन बन जाते हैं और अपनी अंह की झूठी शान को दर्शाने के लिए कई बार नकली एंनकाउंटर कर डालते हैं। 2009 में जुलाई के महीने में एम बी ए छात्र, गाजियाबाद निवासी जिसकी देहरादून में हल्की कहासुनी के कारण जान से हाथ गवाना पड़ा। दया नायक, प्रदीप शर्मा जैसे नाम किसी से छुपे नहीं है। हालांकि सबूत के तौर पर कुछ न मिलने से अब कोई चार्ज भी नहीं रहा पर, सवाल यहीं उठता है कि क्या समाज के लिए बनायी गयी व्यवस्था के मालिकान और उन पर अमल करने वाले पदासीन अफसर ही गैरजिम्मेदाराना हरकत और विरोधी रवैया अपनायेंगे तो जनता किसके कंधे पर सिर रखकर चैन की सांस ले पायेगी। फर्जी एन्काउटर के एक नहीं अनगिनत फाइलें दबी पड़ी हैं। जिन्हें कुरेदने की ताकत शायद किसीमें नहीं। बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में न जाने कितनी ऐसी घटनायें होती हैं जहां पुलिस पूछताछ के नाम पर व्यक्ति को लेकर जाती है और दूसरे या तीसरे या अगली सुबह ही उसकी लाश जेल के अंदर पायी जाती है। यूं तो दयानायक जी सरकारी अफसर हैं पर मामलों का खुलासा होने से सच्चाई कुछ और ही कह रही थी। सवाल उठे कि क्या सरकारी आड़ में कहीं अफसर किसी और की नौकरी तो नहीं कर रहा ?? सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 555 मामले जुलाई 2013 तक दर्ज हुए। जिसमें सबसे कम संख्या मध्य प्रदेश और सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में दर्ज किये गये। जिसमें मात्र 144 मामलों का समाधान हुआ। वहीं असम,बंगाल, झारखण्ड और जम्मू –कश्मीर में भी फेक एन्काउटर हुए। सामान्यतया राज्य सरकारें ऐसे मामलों को दबाने का भरसक प्रयास करती हैं, और केन्द्र इस पर सुध नहीं लेता। एक केस की बात नहीं कि तो लेख शायद अधूरा लगे पाठकों को। इशरत जहां फेक एन्काउटर केस –जिसने पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया। जसमें एक 19 साल की लड़की की हत्या हो गयी। क्यूं और कैसे समय के पन्नों में राज की तरह ही है। सच्चाई शायद ही खुले कभी। बाटला हाउस एन्काउंटर केस जो दिल्ली में हुए सीरीयल बम बलास्ट के बाद अंजाम दिया गया था। फहरिस्त लम्बी है पर ऐसा करना किस हद तक लाज़मी है, ये सरकार और राज्य सरकारों के लिए चिंतन का विषय है। क्योंकि समाज और देश हित में किये जाने वाली इस प्रक्रिया का दुरुपयोग हो रहा है। कस्टडी में मौत और फर्जी एन्काउंटर में मौत- मसला वहीं अटकता है कि मौत देने वाला वही सरकारी अफसर ही है जो कभी अपने पद की धौंस में तो कभी आलाधिकारियों के दबाव में उस बेबस को मौत की नींद सुला देता है। पर, भारतीय कानून कहीं न कहीं इस बात की चेतावनी जरुर देता है कि ट्रिगर पसंद करने वाले भी अपनी मनमानी हरकतों के लिए पूरी तरह जिम्मेवार हैं और जवाबदार हैं। यूं आसानी से कानून उन्हें वर्दी में लिपटा रहने से बक्क्षेगा नहीं। यह बात अलग है कि कानून के हाथ लम्बे होने के बावजूद बेहस और लाचार जरुर रहते हैं।

आज इशरत का परिवार, रणवीर का परिवार किस बात की सज़ा भुगत रहा है। सुप्रीम कोर्ट भी मानता है कि यह मात्र नृशंस हत्या ही नहीं बल्कि एक क्रूर अपराध भी है क्योंकि पुलिस अधिकारी की ड्यूटी होती है लोगों की रक्षा करना ना कि अपने उत्तरदायित्तव के विरुद्ध कार्य करना। ट्रिगर दबाने के शौकीन पुलिसवाले क्या आज अपने कर्तव्य से इतने विमुख हो चुके हैं कि कर्तव्यपरायणता शेष मात्र रह गयी है। शपथ कागजी और बेबसी में पढ़ा जानेवाला ढोंग है   
 

 
सरकार की सौगात

सर्वमंगला मिश्रा
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हर नयी चीज मार्केट में एक नया उत्साह भर देती है।मार्केट में जब नया ब्रैंड लांच होता है तो उस सेक्टर के आलोचक, उसके ब्रैंड के फालोअर्स सभी टकटकी लगाये रहते हैं। सेक्टर चाहे कोई भी हो न्यू लांच करने वालों से लेकर जब तक प्रोडक्ट लांच नहीं जाता तब तक उसके प्रति जिज्ञासा और उत्कंठा बनी रहती है। फैन फालोअर्स और एक्सपेरिमेंटल वर्ग उसके हर गतिविधी से परिचित होना चाहता है। जैसे उसके फंग्शन्स, फीचर्स या बात करें फैशन वल्ड की या नयू एल्बम या फिल्म जब रिलीज़ होने वाली होती है तो उसके लांचिंग के अनुसार लोग अपना शिड्यूल प्लान करते हैं। किसी पुस्तक के मार्केट में आते ही पुस्तक प्रेमी या उस लेखक की शैली को पसंद करने वाला व्यक्ति पहले से बुकिंग कर रखता है उसके पहली कापी की। घर में जब नया नवजात आता है तो उससे सबको नयी खुशी मिलती है। क्योंकि परिवार को एक उर्जा की प्राप्ति होती है और भविष्य उन्नति की ओर अग्रसर होता दिखता है।नयी बहू,नये डिजाइन्स, नया व्यक्ति आफिस में यह सारी बातें यही संदेश देती है कि हर नये सिक्का पहले अपनी चमक से सबको प्रभावित करता है। बाद में उसकी चमक कितनी देर तक नयी रहती है यह उसके गुणों पर निर्भर करती है। ठीक कुछ इसी तरह मोदी सरकार के आने से लेकर अब तक एक नयी उर्जा शक्ति का संचार जन मानस में हुआ है। पर, यहां मोदी सरकार की विरदावली पढना मेरा मकसद नहीं। मन में विचार उठ रहा है कि क्या सरकार सही दिशा में चल रही है। जितने वायदे किये हैं देशवासियों से उन्हें निभाने में सक्षम है यह सरकार ??
केंद्र में भाजपा की सरकार के बनते ही उत्तर प्रदेश में जंगल राज या बर्बरता इतनी चरम पर कैसे पहुंच गयी। जबकि सरकार को जुम्मा – जुम्मा चार दिन ही बीते है। अभी एक माह भी पूरे नहीं किये हैं इस सरकार ने। बिजली आपूर्ति की समस्या इतनी चरम पर आ गयी। अखिलेश सरकार ने बीते एक माह में तकरीबन 66 आई ए एस और आई पी एस के तबादले कर डाले। 15 जून को फादर्स डे उपलक्ष्य में तो नहीं पर सपा प्रमुख ने बैठक बुलायी और 17 जून की रात होने से अमूमन कुछ घंटे पहले मंत्रियों के विभागों में फेर बदल कर डाले। इन सब बातों का तात्पर्य क्या निकाला जाय- कि सरकार के इस फेर बदल के भंवर में जनता को उलझाना या विधानसभा के चुनावों में अपनी ताकत को दर्शाने की रणनीति की नियत से काम कर रही है अखिलेश सरकार।इस बार लोस की हार के बाद अपनी शाख को बचाने में जुटी सपा सरकार सारे हथकण्डे अभी से अपनाने शुरु कर दी है।क्योंकि कमल का निशान खतरे के निशान से पूरे देश में उपर दिख रहा है। साथ ही बाकी पार्टियां खतरे के निशान के आस-पास भी दिखायी नहीं दे रहा। यूं तो सपा सरकार को अपना बचाव दो तरफ से करना है। पहला बचाव मोदी के आतंक से। तो दूसरा बहन मायावती की खार से। इस बार उनका खाता तक न खुलने से उनके अंदर की बेचैनी कभी भी राजनीति के घड़े में उबाल ला सकती है।वैसे भी बुआ और मुलायम के तानों के बाण अभी शरीर में ताजे घाव की तरह हरे हैं। तो बहन मायावती का हाथी यूं तो अधमरा है पर जीवनी शक्ति देने में जुटी बसपा सुप्रीमो अगर किसी तरह कामयाब हो जाती हैं तो साइकिल के टुकड़े होते देर नहीं लगेगी।
बदायूं मामले के उपरांत पेड़ से मानो लाशों को लटकाने का ट्रेंड सा निकल पड़ा है। सीतापुर में पति –पत्नी की लाश ..सरकार की कानून व्यवस्था मानो किसी सन्दूक में बंद कर पानी में पेंक दी गयी हो और हर कोई बेबस, लाचार खड़ा है। उधर भाजपा के नेता निशाने पर आ गये हैं या लाये गये हैं। कहा नहीं जा सकता। क्या ऐसा प्रतीत नहीं होता कि कहीं न कहीं इस राजनैतिक पार्टियों के आंतरिक कलह, द्वेष और अहं की लड़ाई में जनता पीसी चली जा रही है। इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता कि बीजेपी अपना कमल को या कहीं अमित शाह को यू पी के उस कुर्सी से नवाज़ने का ध्येय तो नहीं साध लिया है।अगर ऐसा है तो इन आने वाले 2-3 सालों में बहुत कुछ देखना अभी बाकी होगा। तब राजनीति के इस खेल का यह प्रथम चरण है पर बाकी 3 चरण विधानसभा चुनाव तक पूरे हो जायेंगें। यह तो हुई बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश की बात। कारवां तो अभी शुरु हुआ है। दहशत के दौर ने अभी जन्म ही तो लिया है। आशंकायें फलीभूत हो रही हैं। बी एल जोशी का इस्तीफा संकेत है क्योंकि फहरिस्त लम्बी होने वाली है। शीला दीक्षित का इंकार इकरार में कैसे बदलेगा। यह मोदी सरकार ने मास्टर प्लान तैयार कर लिया होगा। ऐसा करना अनिवार्य भी है । भाजपा में वरिष्ठों की संख्या जितनी है उतने तो शायद राज्य भी नहीं हैं। सबको यथोचित स्थान से नवाजने के लिए कठोर कदम तो उठाना आंतरिक रुप से प्रतिबद्धता है मोदी सरकार की।


Blackmailing- NO MORE


सर्वमंगला मिश्रा
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भारत की सरकार जब भी अपने दम पर खड़ी ना होकर दूसरों के सहारे खड़ी हुई तो असहाय की स्थिति में ही रही।चाहे वो वी पी सिंह की सरकार रही हो, या चन्द्रशेखर की, यूपीए 1 रही हो, या यूपीए 2, अटल बिहारी की सरकार 1996 में 13 सहयोगियों वाली या 1999 की सरकार। हर बार सरकार को अपने फैसलों में सहयोगी पार्टियों की हामी भरवानी जरुरी होती है और जब सहयोगी इंकार करते हैं तो ब्लैकमेलिंग की शिकार सरकार बनती है। खामियाज़ा जनता भुगतती है। पर इस बार भाजपा पार्टी ने इस कश्मकश से मुक्ति पा ली है और इसे पाने में इस बार जनता ने अहम भूमिका निभाई है। गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने 272 प्लस के मिशन को नया इंजन लगाया और चुनाव के मध्य से ही 300 कमल मांगने लगे थे। कहते हैं कि ईश्वर जब देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है। वही हुआ 336 कमल पूरे देश की जनता ने मिलकर मोदी की झोली में भर दिया। जिससे मोदी फूले न समाये। संसद में अपने कदम अंगद की तरह रखने के लिए 272 का जादुयी आंकड़ा मिलना अनिवार्य होता है। जादूगर मोदी ने अपना कमाल पूरे देश में तो दिखाया ही साथ ही विश्वस्तरीय ख्याति पाने में भी मोदी का जवाब नहीं। मोदी ने गुजरात विधानसभा को धन्यवाद कर अपनी मां का आशीर्वाद लिया और गुजरात को अलविदा कहकर दिल्ली में लम्बी पारी खेलने के ध्येय से नमन किया। श्रद्धा से सिर सेंट्रल हाल में झुक गया, आंखों में नमी आ गयी क्योंकि उस दिन सपना पूरा होने की एक और सफल सीढी मोदी ने चढी थी। पर 26 मई 2014 इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया जब कांग्रेस से अलावा किसी दूसरी पार्टी ने अपने दम खम पर पार्टी का नया ढांचा गढ दिया। दिन भर के व्यस्त कार्यकाल के बाद जैसे ही घड़ी में शाम 5 बजा राष्ट्रपति भवन का प्रांगण वरिष्ठ एवं आमंत्रित सदस्यों का अंबार लगने लगा। अमूमन गोधूलि बेला में मोदी ने कहा- “मैं नरेंद्र दामोदर दास मोदी” सूर्य जब घर की ओर रवाना हो रहा था तो देश को एक नया सूरज मिला नरेंद्र भाई के तौर पर। जिसने भारत को भा--त बनाने का सपना दिखाया है। देश जिसे सिर्फ और सिर्फ नरेंद्र मोदी पर विश्वास है। जिसे मंत्रीमंडल के सदस्यों से ज्यादा मोदी पर भरोसा है। क्योंकि इसी नरेंद्र मोदी ने अंधेरे की गर्त में जा चुके गुजरात को गु--रा-त बनाया। देश के समक्ष गुजराती माडल पेश कर डाला। जो कहीं खड़ा न था राजनीति के धरातल पर। उस गुजरात को शीर्षस्थ आसन पर पदासीन करा डाला। उसी नज़र की तर्ज पर अब देशवासियों को भरोसा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि भारत अब एकबार फिर सोने की चिड़िया कहलाएगा और हर घर में दीप जलेगा। बेरोजगार अब विदेश की ओर नहीं झांकेंगा। कोई किसान अब कर्ज से दबकर आत्महत्या नहीं करेगा। फिर कभी निर्भया कांड न होगा। क्योंकि देश का नारा था “अबकी बार मोदी सरकार”, तो मोदी का नारा था-“सौगंध मुझे इस धरती की, ये देश नहीं मिटने दूंगा”।
मोदी एक ऐसा नाम है जो जाना जाता है अपने तरीके से चलने के लिए। जो किसी के पदचिन्हों पर कदम नहीं रखता। सबसे छोटा मंत्रीमंडल बनाकर अपने मंत्रियों को ताकीद दी है कि काम ही है जो उन्हें मोदी के आतंक से बचा सकता है। मोदी ने किसी के बूते सरकार नहीं बनायी। यही वो वजह है कि बिना डरे शेर की तरह मोदी अपने काम में लग गये हैं। साज सज्जा से दूर रहने का आदेश भी दे डाला है अपने मंत्रियों को। जिससे देश के कंधों पर मंत्रियों के ऐशो आराम का बोझ न पड़े और देश उन्नति कर सके। कांग्रेस के पक्षधर भी अब मुंह खोलकर मोदी की सरे आम प्रशंसा के पुल बांधने में लग गये हैं। पी एम साहब के सारे प्लान जनता या नेता किसी को सही से पता नहीं, तरकश में तीर कितने और कौन से मोदी जी गुजरात से लेकर आये हैं ये सिर्फ मोदी जी या उनके परम और घनिष्ठ अमित शाहजी ही जानते हैं। कब कौन सा तीर मोदी जी कहां से चलाकर किसपर निशान साधेंगें ये मोदी का तीर भी नहीं जानता। कुछ पक्ष डरे सहमे भी हैं, क्योंकि जब सत्ता परिवर्तन होता है तो अपना पराया और पराया अपना हो जाता है। आज जिस सोनिया गांधी और राहुल को कांग्रेस पार्टी का खेवनहार और एकमात्र चिराग माना जाता था उसी कांग्रेस पार्टी के भंवरलाल जो राजस्थान से अपनी आवाज तेज की तो इनाम भी तुरंत मिल गया। ऐसी आवाजें अभी उठनी बाकी हैं जो परिवारवाद के चंगुल से कांग्रेस को निकालना चाहेंगी। जिसतरह पार्टी में वरिष्ठों को दरकिनार कर राहुल बाबा अपने आफिस से पूरा देश चलाने का सपना देख रहे थे वो तो धवस्त हो चुका है। आज राहुल गांधी के अंदर से अगर कोई आवाज़ आ रही होगी तो वो यही होगी-
जीवन का संघर्ष होता नहीं आसां इतना,
गरीब की रोटी को दिल से सराहा नहीं जितना,
आसमां को मंजिल बनायी थी,
पर हकीकत से रुबरु होने की कहानी अभी बाकी थी।
सपा के मुखिया मुलायम सिंह जी वैसे तो उनका भाषण समझ से परे होता है। पर, इस चुनाव में इतना बोले कि न समझने वाला भी समझ गया कि मुलायम जी बोलते तो हैं भले हुंकार की जगह सिर्फ “हुं “ भर रह गया हो। उधर सुपुत्र जी और मुख्यमंत्री ने भी अपने काम करने के अंदाज़ में परिवर्तन कर मोदी के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने की शंखध्वनि कर दी है। गंगा सफाई में कागजी योगदान भी दिखाये। पर 60 साल में लिखी गयी किताब पर नया कभर नहीं चढेगा बल्कि नयी किताब भारत देश के नाम लिखी जायेगी ऐसा देश का नागरिक चाहता है। मुलायम जी बांप चुके हैं कि उनके बाहरी या भीतरी सपोर्ट की आवश्यकता इस सरकार को नहीं है। अर्थात् ब्लैकमेलिंग अब नो मोर....

पूर्व में अब भी अपना वर्चस्व बनाये रखने वाली ममता दीदी जिसने मोदी की हवा को बंगाल में घुसने ही नहीं दिया और एकछत्र शासन की हवा बरकरार रखी। पर केन्द्र की सत्ता में घुसपैठ भी मुश्किल लगती है। बात –बात पर दीदी और अम्मा को हर सरकार को मनाना पड़ा और कई बार दुस्साहस का परिणाम भी भुगतना पड़ा। पर अबकी बार मोदी सरकार ने खुले शब्दों में कह दिया है ब्लैकमेलिंग नो मोर। पर मोदी सरकैर ने आह्वाहन भी किया है सबका साथ सबका विकास- पर, इस विकास में पश्चिम बंगाल से सटा बिहार की स्थिति अनमनी होते होते रह गयी। वजह दो साथियों के अहम का मुद्दा। भविष्य इस बात को गवाही के तौर पर इतिहास में यह कहानी भी दर्ज करेगा कि इतने सालों से चल रही मांग तेलंगाना को तो बीजेपी के चुनावी बल से खिसकाने के लिए कांग्रेस पार्टी ने अपनी झोली में डाल लिया था। हांलांकि बाजेपी इसका श्रेय लेने में पीछे नहीं रही। सरकार के गठन के बाद क्या बिहार को मोदी सरकार स्पेशल राज्य का दर्जा आसानी से देगी ?? या कहानी कुछ और लिखी जा चुकी है। अपना दांव खेल चुके नीतीश कुमार मोदी के शतरंजी चाल की राह देख रहे हैं। पूरे देश पर एकछत्र राज्य करने का सपना लिए यह सिकन्दर अपने सहस्त्र हाथ कैसे करता है यह अचम्भे से भरा होगा।       

Saturday, 17 May 2014

                                     मोदी  
-सर्वमंगला मिश्रा



मोदी पिछड़े जाति से आते हैं, इस बात को उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है। खुले मंच से ऐलान कर दिया कि मैं वही हूं जिसे सदियों से लोगों ने दुतकारा है। मैं वही हूं जिसे रिजर्वेशन के तराजू में सबने तौला है। मैं वही हूं जिसे किसी ने नहीं पहचाना। सबके बीच में रहा पर उबाल को ठंड़े पानी के समान शीतल बनाये रखा। मैं वही हूं जिसकी रंगत कोई भांप न सका। मैं वही हूं जिसने अपनी मां की तकलीफ को घुट –घुटकर पीया पर खून के आंसू को बहने न दिया इन आंखों से। मैं वही लाडला हूं जो चीखने में नहीं कर गुजरने में यकीन रखता हूं। मैं वही शहादत हूं जो नींव की ईंट से उठकर कंगूरा बनना पसंद करता हूं। भाईयों और बहनों मैं नरेंद्र मोदी हूं।
जनता ने मोदी के नाम का नारा पिछले एक साल से तेज कर दिया है। जिस तरह होली आने पर चारों तरफ गुलाल और अबीर हर चेहरे, हर घर और हर दिलो दिमाग को रंग देता है उसी तरह चुनाव की इस होली ने हर मजहब और हर राज्य के जिलों और गांवों के हर व्यक्ति को रंग डाला है। पर, जिस तरह कुछ लोग होली से नहीं पर उसके रंगों से खुद को दूर रखते हैं या इस पर्व में अपने आप को उन रंगों से बचाकर रखना चाहते हैं क्योंकि उन्हें कभी न कभी कुछ बुरा अनुभव हुआ था या उस डर से कि कुछ बुरा न हो जाय- एक दूरी बनाकर रखते हैं। ठीक उसी तरह चुनाव के इस महापर्व में दलगत राजनीतिज्ञों ने मोदी से दूर रहने और उन्हें परे रखने की कोशिश तो की लेकिन जब आंधी आती है तो पेड़ के पत्ते. जमीन पर पड़ी धूल, फूल की खुशबू और जहरीली महक सब एक ही उड़न खटोले पर उड़ते हैं। अपना पराया कुछ समझ ही नहीं आता। उसी तरह मोदी के ऊपर पत्थर रखने वाले या धूल की तह जमाने वाले खुद ही उस पहाड़ की चपेट में आते दिख रहे हैं और कुछ की आंखों में वही धूल गिरती नजर आ रही है। दिग्गी राजा प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। मोदी के पीछे जशोदाबेन को लेकर पीछे पड़े थे। फलस्वरुप बहन को गुजारिश करनी पड़ी कि- दादाभाई भाभी की चिता को ठंडा तो होने दिया होता। हैट्रिक मार चुकी बहन जी ने आज रेत से तेल निकालने का प्रयास कर डाला- और जाति पूछ डाली। साथ ही यह संदेश दिया कि मेरे दलित भाई बहनों भूलकर भी किसी के बहकावे में मत आइएगा। बहन मायावती जिन्दा है। वैसे भी सीनियर मोस्ट नेता सतीश चंद्र मिश्र ने कहा है कि-
चढ़ गुंडों की छाती पर, बटन दबाओ हाथी पर.......पर इस बयान में गुंडा कौन-??? सपा या भाजपा??? या सभी राजनैतिक पार्टियां।
बात यह भी विचारणीय है कि इतने दिन तक मोदी ने इस राज का खुलासा क्यों नहीं किया। अटल बिहारी जी की पूरी भाजपा टीम इस ध्वज की छांव में सदैव मार्च करती आयी है- एक बात के पीछे पड़ जाने के। फिर अगर बहन मायावती इस बात को उठा रही हैं तो क्या गलत है??? जनता यह जानना चाहती है कि आखिर ऐसी क्या मनोदशा मोदी की हो गयी कि चुनाव का सूर्य जब अपनी मध्यान अवस्था छोड़कर घर जा रहा है तब महाभारत के कृष्ण की तरह युद्धभूमि में मात्र अपने इशारे से सूर्य को उदय होने का संकेत देकर कहते हैं कि – हे पार्थ देखो कहां सूर्यास्त हुआ है। अभी तो संध्या हुई नहीं उठाओ अपना धनुष और अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो...। उसी तरह क्या मोदी के मन में पिछड़ों के प्रति ही सम्मान है बाकि जो अन्य वर्ग के लोग हैं उनके प्रति उनका कोई सरोकार या प्रेम नहीं। इसका तात्पर्य क्या हुआ कि जो सात चरण के मतदान में जिन लोगों ने मोदी को अपना समझा और प्रत्यासी को न देखकर मोदी को जिताने के लिए अपना मत डाला, उन सबके साथ क्या धोखा हुआ??? मोदी ने भावनात्मक खेल खेला है?? तो क्या जनता सचमुच माफ करेगी?? अगर मात्र यह कुर्सी की दावेदारी जताने का रंगमंच के कलाकार का सर्वोत्तम नाटक है तो जनता ताली जरुर बजा देगी पर दुबारा आपका मंचन देखने कभी न पहुंचेगी। जनता के दिल के कोने में जो किले का निर्माण हुआ है वह दीमक लगकर सदा सर्वदा के लिए ढह जायेगा। यह हुआ एक पक्ष दूसरा पक्ष यह भी कहा जा सकता है कि मोदी बनारस से चुनाव लड़ रहे हैं जहां कई दशकों से प्राय: सपा और बसपा का गढ़ रहा है। उस किले को ध्वस्त करने की नीति मोदी ने सोची या अमित शाह का गुरुवचन हो। यह तीर जो कमान में काफी सालों से तीरों के बीच छुपा हुआ था मोदी ने वक्त की नजाकत को देखते हुए छोड़ा है। यह तीर कितना असरदार होगा यह 16 मई को पता चल जायेगा। सब के डर में कितनी सच्चाई है इसकी पोल 16 मई को गोल हो जायेगी।
आजकल मोदी ने जिन द्वारा दी गयी अंगूठी पहन ली है जिसे पहनते ही वो अपने मनचाहे रुप में आ जाते हैं और सबको डराते रहते हैं। पर, जुनून, हौसला और अनुभव तीनों का समिश्रण दिख रहा है मोदी में। जुनून है कि पी एम बनना है। हौसला है कि हर ऊंची होती आवाज को दबाना है पर कैसे दबाना है यह उन्हें उनका अनुभव बता रहा है। मोदी 60 सावन से भी अधिक देख चुके हैं। जिसमें हर परिस्थिति से गुजरने के बाद हर कदम कैसे उठाना है यह उनका सफेद पका बाल और दाढ़ी उन्हें बखूबी बता रहे हैं।    
क्या मोदी ने इसलिए इतने दिन छुपाये रखा कि वह पिछड़ी जाति के हैं कि भाजपा उन्हें शुरुआती दौर में ही दरकिनार कर देती। इन्हें इतने मौके न देती। साथ ही मोदी –मोदी के नारे यूं ना लगते???? पर बाबा भीमराव अम्बेडकर जी को भला कोई कैसे भूल सकता है। क्या उनकी इज्जत कभी कम हुई थी या हो रही है। या कहीं अजीत जोगी की तरह ताश का फेंका हुआ तुरुप का पत्ता मात्र है। आजतक जोगी के पिछड़े होने पर शक है लोगों को। क्या जनता में एक भ्रमित करने वाला एक और जादूगर आ गया है।
जनता आदिकाल से ही भ्रमित हो जाती है। जैसे अपने हीरो को देखकर उसके सारे गुण अवगुण छोड़कर उसके उस मासूम भंवरजाल में आपका दिल फंस जाता है। दिल तितली की तरह एक अंजान वचन के संसार में फंस जाता है और जब सपना टूटता है तो दिल आपका आपके पास होता है क्योंकि सपना टूट चुका होता है। आप जिन्दगी की हकीकतों से रुबरु होने के लिए फिर से खुद को तैयार करने लगते हैं। पर फिर शाम होती है और एक नया जादूगर आता है और मनोरंजन कर आपका मस्तिष्क अपनी ओर खींचने में सफल हो जाता है। जिन्दगी की सुबह –शाम यूंही चलती रहती है।पर, विकास भी तो होना चाहिए क्या जातिगत विकास या धर्मगत विकास किसी देश को उन्नति के उस शिखर पर पहुंचाता है जहां से धरती गोल नजर आती है।

Monday, 12 May 2014

                         मोदी कैसे पिछड़ गये

-सर्वमंगला मिश्रा
मोदी पिछड़े जाति से आते हैं, इस बात को उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है। खुले मंच से ऐलान कर दिया कि मैं वही हूं जिसे सदियों से लोगों ने दुतकारा है। मैं वही हूं जिसे रिजर्वेशन के तराजू में सबने तौला है। मैं वही हूं जिसे किसी ने नहीं पहचाना। सबके बीच में रहा पर उबाल को ठंड़े पानी के समान शीतल बनाये रखा। मैं वही हूं जिसकी रंगत कोई भांप न सका। मैं वही हूं जिसने अपनी मां की तकलीफ को घुट –घुटकर पीया पर खून के आंसू को बहने न दिया इन आंखों से। मैं वही लाडला हूं जो चीखने में नहीं कर गुजरने में यकीन रखता हूं। मैं वही शहादत हूं जो नींव की ईंट से उठकर कंगूरा बनना पसंद करता हूं। भाईयों और बहनों मैं नरेंद्र मोदी हूं।
जनता ने मोदी के नाम का नारा पिछले एक साल से तेज कर दिया है। जिस तरह होली आने पर चारों तरफ गुलाल और अबीर हर चेहरे, हर घर और हर दिलो दिमाग को रंग देता है उसी तरह चुनाव की इस होली ने हर मजहब और हर राज्य के जिलों और गांवों के हर व्यक्ति को रंग डाला है। पर, जिस तरह कुछ लोग होली से नहीं पर उसके रंगों से खुद को दूर रखते हैं या इस पर्व में अपने आप को उन रंगों से बचाकर रखना चाहते हैं क्योंकि उन्हें कभी न कभी कुछ बुरा अनुभव हुआ था या उस डर से कि कुछ बुरा न हो जाय- एक दूरी बनाकर रखते हैं। ठीक उसी तरह चुनाव के इस महापर्व में दलगत राजनीतिज्ञों ने मोदी से दूर रहने और उन्हें परे रखने की कोशिश तो की लेकिन जब आंधी आती है तो पेड़ के पत्ते. जमीन पर पड़ी धूल, फूल की खुशबू और जहरीली zवाले खुद ही उस पहाड़ की चपेट में आते दिख रहे हैं और कुछ की आंखों में वही धूल गिरती नजर आ रही है। दिग्गी राजा प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। मोदी के पीछे जशोदाबेन को लेकर पीछे पड़े थे। फलस्वरुप बहन को गुजारिश करनी पड़ी कि- दादाभाई भाभी की चिता को ठंडा तो होने दिया होता। हैट्रिक मार चुकी बहन जी ने आज रेत से तेल निकालने का प्रयास कर डाला- और जाति पूछ डाली। साथ ही यह संदेश दिया कि मेरे दलित भाई बहनों भूलकर भी किसी के बहकावे में मत आइएगा। बहन मायावती जिन्दा है। वैसे भी सीनियर मोस्ट नेता सतीश चंद्र मिश्र ने कहा है कि-
चढ़ गुंडों की छाती पर, बटन दबाओ हाथी पर.......पर इस बयान में गुंडा कौन-??? सपा या भाजपा??? या सभी राजनैतिक पार्टियां।
बात यह भी विचारणीय है कि इतने दिन तक मोदी ने इस राज का खुलासा क्यों नहीं किया। अटल बिहारी जी की पूरी भाजपा टीम इस ध्वज की छांव में सदैव मार्च करती आयी है- एक बात के पीछे पड़ जाने के। फिर अगर बहन मायावती इस बात को उठा रही हैं तो क्या गलत है??? जनता यह जानना चाहती है कि आखिर ऐसी क्या मनोदशा मोदी की हो गयी कि चुनाव का सूर्य जब अपनी मध्यान अवस्था छोड़कर घर जा रहा है तब महाभारत के कृष्ण की तरह युद्धभूमि में मात्र अपने इशारे से सूर्य को उदय होने का संकेत देकर कहते हैं कि – हे पार्थ देखो कहां सूर्यास्त हुआ है। अभी तो संध्या हुई नहीं उठाओ अपना धनुष और अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो...। उसी तरह क्या मोदी के मन में पिछड़ों के प्रति ही सम्मान है बाकि जो अन्य वर्ग के लोग हैं उनके प्रति उनका कोई सरोकार या प्रेम नहीं। इसका तात्पर्य क्या हुआ कि जो सात चरण के मतदान में जिन लोगों ने मोदी को अपना समझा और प्रत्यासी को न देखकर मोदी को जिताने के लिए अपना मत डाला, उन सबके साथ क्या धोखा हुआ??? मोदी ने भावनात्मक खेल खेला है?? तो क्या जनता सचमुच माफ करेगी?? अगर मात्र यह कुर्सी की दावेदारी जताने का रंगमंच के कलाकार का सर्वोत्तम नाटक है तो जनता ताली जरुर बजा देगी पर दुबारा आपका मंचन देखने कभी न पहुंचेगी। जनता के दिल के कोने में जो किले का निर्माण हुआ है वह दीमक लगकर सदा सर्वदा के लिए ढह जायेगा। यह हुआ एक पक्ष दूसरा पक्ष यह भी कहा जा सकता है कि मोदी बनारस से चुनाव लड़ रहे हैं जहां कई दशकों से प्राय: सपा और बसपा का गढ़ रहा है। उस किले को ध्वस्त करने की नीति मोदी ने सोची या अमित शाह का गुरुवचन हो। यह तीर जो कमान में काफी सालों से तीरों के बीच छुपा हुआ था मोदी ने वक्त की नजाकत को देखते हुए छोड़ा है। यह तीर कितना असरदार होगा यह 16 मई को पता चल जायेगा। सब के डर में कितनी सच्चाई है इसकी पोल 16 मई को गोल हो जायेगी।
आजकल मोदी ने जिन द्वारा दी गयी अंगूठी पहन ली है जिसे पहनते ही वो अपने मनचाहे रुप में आ जाते हैं और सबको डराते रहते हैं। पर, जुनून, हौसला और अनुभव तीनों का समिश्रण दिख रहा है मोदी में। जुनून है कि पी एम बनना है। हौसला है कि हर ऊंची होती आवाज को दबाना है पर कैसे दबाना है यह उन्हें उनका अनुभव बता रहा है। मोदी 60 सावन से भी अधिक देख चुके हैं। जिसमें हर परिस्थिति से गुजरने के बाद हर कदम कैसे उठाना है यह उनका सफेद पका बाल और दाढ़ी उन्हें बखूबी बता रहे हैं।    
क्या मोदी ने इसलिए इतने दिन छुपाये रखा कि वह पिछड़ी जाति के हैं कि भाजपा उन्हें शुरुआती दौर में ही दरकिनार कर देती। इन्हें इतने मौके न देती। साथ ही मोदी –मोदी के नारे यूं ना लगते???? पर बाबा भीमराव अम्बेडकर जी को भला कोई कैसे भूल सकता है। क्या उनकी इज्जत कभी कम हुई थी या हो रही है। या कहीं अजीत जोगी की तरह ताश का फेंका हुआ तुरुप का पत्ता मात्र है। आजतक जोगी के पिछड़े होने पर शक है लोगों को। क्या जनता में एक भ्रमित करने वाला एक और जादूगर आ गया है।
जनता आदिकाल से ही भ्रमित हो जाती है। जैसे अपने हीरो को देखकर उसके सारे गुण अवगुण छोड़कर उसके उस मासूम भंवरजाल में आपका दिल फंस जाता है। दिल तितली की तरह एक अंजान वचन के संसार में फंस जाता है और जब सपना टूटता है तो दिल आपका आपके पास होता है क्योंकि सपना टूट चुका होता है। आप जिन्दगी की हकीकतों से रुबरु होने के लिए फिर से खुद को तैयार करने लगते हैं। पर फिर शाम होती है और एक नया जादूगर आता है और मनोरंजन कर आपका मस्तिष्क अपनी ओर खींचने में सफल हो जाता है। जिन्दगी की सुबह –शाम यूंही चलती रहती है।पर, विकास भी तो होना चाहिए क्या जातिगत विकास या धर्मगत विकास किसी देश को उन्नति के उस शिखर पर पहुंचाता है जहां से धरती गोल नजर आती है।                         मोदी कैसे पिछड़ गये

-सर्वमंगला मिश्रा
मोदी पिछड़े जाति से आते हैं, इस बात को उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है। खुले मंच से ऐलान कर दिया कि मैं वही हूं जिसे सदियों से लोगों ने दुतकारा है। मैं वही हूं जिसे रिजर्वेशन के तराजू में सबने तौला है। मैं वही हूं जिसे किसी ने नहीं पहचाना। सबके बीच में रहा पर उबाल को ठंड़े पानी के समान शीतल बनाये रखा। मैं वही हूं जिसकी रंगत कोई भांप न सका। मैं वही हूं जिसने अपनी मां की तकलीफ को घुट –घुटकर पीया पर खून के आंसू को बहने न दिया इन आंखों से। मैं वही लाडला हूं जो चीखने में नहीं कर गुजरने में यकीन रखता हूं। मैं वही शहादत हूं जो नींव की ईंट से उठकर कंगूरा बनना पसंद करता हूं। भाईयों और बहनों मैं नरेंद्र मोदी हूं।
जनता ने मोदी के नाम का नारा पिछले एक साल से तेज कर दिया है। जिस तरह होली आने पर चारों तरफ गुलाल और अबीर हर चेहरे, हर घर और हर दिलो दिमाग को रंग देता है उसी तरह चुनाव की इस होली ने हर मजहब और हर राज्य के जिलों और गांवों के हर व्यक्ति को रंग डाला है। पर, जिस तरह कुछ लोग होली से नहीं पर उसके रंगों से खुद को दूर रखते हैं या इस पर्व में अपने आप को उन रंगों से बचाकर रखना चाहते हैं क्योंकि उन्हें कभी न कभी कुछ बुरा अनुभव हुआ था या उस डर से कि कुछ बुरा न हो जाय- एक दूरी बनाकर रखते हैं। ठीक उसी तरह चुनाव के इस महापर्व में दलगत राजनीतिज्ञों ने मोदी से दूर रहने और उन्हें परे रखने की कोशिश तो की लेकिन जब आंधी आती है तो पेड़ के पत्ते. जमीन पर पड़ी धूल, फूल की खुशबू और जहरीली zवाले खुद ही उस पहाड़ की चपेट में आते दिख रहे हैं और कुछ की आंखों में वही धूल गिरती नजर आ रही है। दिग्गी राजा प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। मोदी के पीछे जशोदाबेन को लेकर पीछे पड़े थे। फलस्वरुप बहन को गुजारिश करनी पड़ी कि- दादाभाई भाभी की चिता को ठंडा तो होने दिया होता। हैट्रिक मार चुकी बहन जी ने आज रेत से तेल निकालने का प्रयास कर डाला- और जाति पूछ डाली। साथ ही यह संदेश दिया कि मेरे दलित भाई बहनों भूलकर भी किसी के बहकावे में मत आइएगा। बहन मायावती जिन्दा है। वैसे भी सीनियर मोस्ट नेता सतीश चंद्र मिश्र ने कहा है कि-
चढ़ गुंडों की छाती पर, बटन दबाओ हाथी पर.......पर इस बयान में गुंडा कौन-??? सपा या भाजपा??? या सभी राजनैतिक पार्टियां।
बात यह भी विचारणीय है कि इतने दिन तक मोदी ने इस राज का खुलासा क्यों नहीं किया। अटल बिहारी जी की पूरी भाजपा टीम इस ध्वज की छांव में सदैव मार्च करती आयी है- एक बात के पीछे पड़ जाने के। फिर अगर बहन मायावती इस बात को उठा रही हैं तो क्या गलत है??? जनता यह जानना चाहती है कि आखिर ऐसी क्या मनोदशा मोदी की हो गयी कि चुनाव का सूर्य जब अपनी मध्यान अवस्था छोड़कर घर जा रहा है तब महाभारत के कृष्ण की तरह युद्धभूमि में मात्र अपने इशारे से सूर्य को उदय होने का संकेत देकर कहते हैं कि – हे पार्थ देखो कहां सूर्यास्त हुआ है। अभी तो संध्या हुई नहीं उठाओ अपना धनुष और अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो...। उसी तरह क्या मोदी के मन में पिछड़ों के प्रति ही सम्मान है बाकि जो अन्य वर्ग के लोग हैं उनके प्रति उनका कोई सरोकार या प्रेम नहीं। इसका तात्पर्य क्या हुआ कि जो सात चरण के मतदान में जिन लोगों ने मोदी को अपना समझा और प्रत्यासी को न देखकर मोदी को जिताने के लिए अपना मत डाला, उन सबके साथ क्या धोखा हुआ??? मोदी ने भावनात्मक खेल खेला है?? तो क्या जनता सचमुच माफ करेगी?? अगर मात्र यह कुर्सी की दावेदारी जताने का रंगमंच के कलाकार का सर्वोत्तम नाटक है तो जनता ताली जरुर बजा देगी पर दुबारा आपका मंचन देखने कभी न पहुंचेगी। जनता के दिल के कोने में जो किले का निर्माण हुआ है वह दीमक लगकर सदा सर्वदा के लिए ढह जायेगा। यह हुआ एक पक्ष दूसरा पक्ष यह भी कहा जा सकता है कि मोदी बनारस से चुनाव लड़ रहे हैं जहां कई दशकों से प्राय: सपा और बसपा का गढ़ रहा है। उस किले को ध्वस्त करने की नीति मोदी ने सोची या अमित शाह का गुरुवचन हो। यह तीर जो कमान में काफी सालों से तीरों के बीच छुपा हुआ था मोदी ने वक्त की नजाकत को देखते हुए छोड़ा है। यह तीर कितना असरदार होगा यह 16 मई को पता चल जायेगा। सब के डर में कितनी सच्चाई है इसकी पोल 16 मई को गोल हो जायेगी।
आजकल मोदी ने जिन द्वारा दी गयी अंगूठी पहन ली है जिसे पहनते ही वो अपने मनचाहे रुप में आ जाते हैं और सबको डराते रहते हैं। पर, जुनून, हौसला और अनुभव तीनों का समिश्रण दिख रहा है मोदी में। जुनून है कि पी एम बनना है। हौसला है कि हर ऊंची होती आवाज को दबाना है पर कैसे दबाना है यह उन्हें उनका अनुभव बता रहा है। मोदी 60 सावन से भी अधिक देख चुके हैं। जिसमें हर परिस्थिति से गुजरने के बाद हर कदम कैसे उठाना है यह उनका सफेद पका बाल और दाढ़ी उन्हें बखूबी बता रहे हैं।    
क्या मोदी ने इसलिए इतने दिन छुपाये रखा कि वह पिछड़ी जाति के हैं कि भाजपा उन्हें शुरुआती दौर में ही दरकिनार कर देती। इन्हें इतने मौके न देती। साथ ही मोदी –मोदी के नारे यूं ना लगते???? पर बाबा भीमराव अम्बेडकर जी को भला कोई कैसे भूल सकता है। क्या उनकी इज्जत कभी कम हुई थी या हो रही है। या कहीं अजीत जोगी की तरह ताश का फेंका हुआ तुरुप का पत्ता मात्र है। आजतक जोगी के पिछड़े होने पर शक है लोगों को। क्या जनता में एक भ्रमित करने वाला एक और जादूगर आ गया है।
जनता आदिकाल से ही भ्रमित हो जाती है। जैसे अपने हीरो को देखकर उसके सारे गुण अवगुण छोड़कर उसके उस मासूम भंवरजाल में आपका दिल फंस जाता है। दिल तितली की तरह एक अंजान वचन के संसार में फंस जाता है और जब सपना टूटता है तो दिल आपका आपके पास होता है क्योंकि सपना टूट चुका होता है। आप जिन्दगी की हकीकतों से रुबरु होने के लिए फिर से खुद को तैयार करने लगते हैं। पर फिर शाम होती है और एक नया जादूगर आता है और मनोरंजन कर आपका मस्तिष्क अपनी ओर खींचने में सफल हो जाता है। जिन्दगी की सुबह –शाम यूंही चलती रहती है।पर, विकास भी तो होना चाहिए क्या जातिगत विकास या धर्मगत विकास किसी देश को उन्नति के उस शिखर पर पहुंचाता है जहां से धरती गोल नजर आती है।                         मोदी कैसे पिछड़ गये

-सर्वमंगला मिश्रा
मोदी पिछड़े जाति से आते हैं, इस बात को उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है। खुले मंच से ऐलान कर दिया कि मैं वही हूं जिसे सदियों से लोगों ने दुतकारा है। मैं वही हूं जिसे रिजर्वेशन के तराजू में सबने तौला है। मैं वही हूं जिसे किसी ने नहीं पहचाना। सबके बीच में रहा पर उबाल को ठंड़े पानी के समान शीतल बनाये रखा। मैं वही हूं जिसकी रंगत कोई भांप न सका। मैं वही हूं जिसने अपनी मां की तकलीफ को घुट –घुटकर पीया पर खून के आंसू को बहने न दिया इन आंखों से। मैं वही लाडला हूं जो चीखने में नहीं कर गुजरने में यकीन रखता हूं। मैं वही शहादत हूं जो नींव की ईंट से उठकर कंगूरा बनना पसंद करता हूं। भाईयों और बहनों मैं नरेंद्र मोदी हूं।
जनता ने मोदी के नाम का नारा पिछले एक साल से तेज कर दिया है। जिस तरह होली आने पर चारों तरफ गुलाल और अबीर हर चेहरे, हर घर और हर दिलो दिमाग को रंग देता है उसी तरह चुनाव की इस होली ने हर मजहब और हर राज्य के जिलों और गांवों के हर व्यक्ति को रंग डाला है। पर, जिस तरह कुछ लोग होली से नहीं पर उसके रंगों से खुद को दूर रखते हैं या इस पर्व में अपने आप को उन रंगों से बचाकर रखना चाहते हैं क्योंकि उन्हें कभी न कभी कुछ बुरा अनुभव हुआ था या उस डर से कि कुछ बुरा न हो जाय- एक दूरी बनाकर रखते हैं। ठीक उसी तरह चुनाव के इस महापर्व में दलगत राजनीतिज्ञों ने मोदी से दूर रहने और उन्हें परे रखने की कोशिश तो की लेकिन जब आंधी आती है तो पेड़ के पत्ते. जमीन पर पड़ी धूल, फूल की खुशबू और जहरीली zवाले खुद ही उस पहाड़ की चपेट में आते दिख रहे हैं और कुछ की आंखों में वही धूल गिरती नजर आ रही है। दिग्गी राजा प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। मोदी के पीछे जशोदाबेन को लेकर पीछे पड़े थे। फलस्वरुप बहन को गुजारिश करनी पड़ी कि- दादाभाई भाभी की चिता को ठंडा तो होने दिया होता। हैट्रिक मार चुकी बहन जी ने आज रेत से तेल निकालने का प्रयास कर डाला- और जाति पूछ डाली। साथ ही यह संदेश दिया कि मेरे दलित भाई बहनों भूलकर भी किसी के बहकावे में मत आइएगा। बहन मायावती जिन्दा है। वैसे भी सीनियर मोस्ट नेता सतीश चंद्र मिश्र ने कहा है कि-
चढ़ गुंडों की छाती पर, बटन दबाओ हाथी पर.......पर इस बयान में गुंडा कौन-??? सपा या भाजपा??? या सभी राजनैतिक पार्टियां।
बात यह भी विचारणीय है कि इतने दिन तक मोदी ने इस राज का खुलासा क्यों नहीं किया। अटल बिहारी जी की पूरी भाजपा टीम इस ध्वज की छांव में सदैव मार्च करती आयी है- एक बात के पीछे पड़ जाने के। फिर अगर बहन मायावती इस बात को उठा रही हैं तो क्या गलत है??? जनता यह जानना चाहती है कि आखिर ऐसी क्या मनोदशा मोदी की हो गयी कि चुनाव का सूर्य जब अपनी मध्यान अवस्था छोड़कर घर जा रहा है तब महाभारत के कृष्ण की तरह युद्धभूमि में मात्र अपने इशारे से सूर्य को उदय होने का संकेत देकर कहते हैं कि – हे पार्थ देखो कहां सूर्यास्त हुआ है। अभी तो संध्या हुई नहीं उठाओ अपना धनुष और अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो...। उसी तरह क्या मोदी के मन में पिछड़ों के प्रति ही सम्मान है बाकि जो अन्य वर्ग के लोग हैं उनके प्रति उनका कोई सरोकार या प्रेम नहीं। इसका तात्पर्य क्या हुआ कि जो सात चरण के मतदान में जिन लोगों ने मोदी को अपना समझा और प्रत्यासी को न देखकर मोदी को जिताने के लिए अपना मत डाला, उन सबके साथ क्या धोखा हुआ??? मोदी ने भावनात्मक खेल खेला है?? तो क्या जनता सचमुच माफ करेगी?? अगर मात्र यह कुर्सी की दावेदारी जताने का रंगमंच के कलाकार का सर्वोत्तम नाटक है तो जनता ताली जरुर बजा देगी पर दुबारा आपका मंचन देखने कभी न पहुंचेगी। जनता के दिल के कोने में जो किले का निर्माण हुआ है वह दीमक लगकर सदा सर्वदा के लिए ढह जायेगा। यह हुआ एक पक्ष दूसरा पक्ष यह भी कहा जा सकता है कि मोदी बनारस से चुनाव लड़ रहे हैं जहां कई दशकों से प्राय: सपा और बसपा का गढ़ रहा है। उस किले को ध्वस्त करने की नीति मोदी ने सोची या अमित शाह का गुरुवचन हो। यह तीर जो कमान में काफी सालों से तीरों के बीच छुपा हुआ था मोदी ने वक्त की नजाकत को देखते हुए छोड़ा है। यह तीर कितना असरदार होगा यह 16 मई को पता चल जायेगा। सब के डर में कितनी सच्चाई है इसकी पोल 16 मई को गोल हो जायेगी।
आजकल मोदी ने जिन द्वारा दी गयी अंगूठी पहन ली है जिसे पहनते ही वो अपने मनचाहे रुप में आ जाते हैं और सबको डराते रहते हैं। पर, जुनून, हौसला और अनुभव तीनों का समिश्रण दिख रहा है मोदी में। जुनून है कि पी एम बनना है। हौसला है कि हर ऊंची होती आवाज को दबाना है पर कैसे दबाना है यह उन्हें उनका अनुभव बता रहा है। मोदी 60 सावन से भी अधिक देख चुके हैं। जिसमें हर परिस्थिति से गुजरने के बाद हर कदम कैसे उठाना है यह उनका सफेद पका बाल और दाढ़ी उन्हें बखूबी बता रहे हैं।    
क्या मोदी ने इसलिए इतने दिन छुपाये रखा कि वह पिछड़ी जाति के हैं कि भाजपा उन्हें शुरुआती दौर में ही दरकिनार कर देती। इन्हें इतने मौके न देती। साथ ही मोदी –मोदी के नारे यूं ना लगते???? पर बाबा भीमराव अम्बेडकर जी को भला कोई कैसे भूल सकता है। क्या उनकी इज्जत कभी कम हुई थी या हो रही है। या कहीं अजीत जोगी की तरह ताश का फेंका हुआ तुरुप का पत्ता मात्र है। आजतक जोगी के पिछड़े होने पर शक है लोगों को। क्या जनता में एक भ्रमित करने वाला एक और जादूगर आ गया है।
जनता आदिकाल से ही भ्रमित हो जाती है। जैसे अपने हीरो को देखकर उसके सारे गुण अवगुण छोड़कर उसके उस मासूम भंवरजाल में आपका दिल फंस जाता है। दिल तितली की तरह एक अंजान वचन के संसार में फंस जाता है और जब सपना टूटता है तो दिल आपका आपके पास होता है क्योंकि सपना टूट चुका होता है। आप जिन्दगी की हकीकतों से रुबरु होने के लिए फिर से खुद को तैयार करने लगते हैं। पर फिर शाम होती है और एक नया जादूगर आता है और मनोरंजन कर आपका मस्तिष्क अपनी ओर खींचने में सफल हो जाता है। जिन्दगी की सुबह –शाम यूंही चलती रहती है।पर, विकास भी तो होना चाहिए क्या जातिगत विकास या धर्मगत विकास किसी देश को उन्नति के उस शिखर पर पहुंचाता है जहां से धरती गोल नजर आती है।                         मोदी कैसे पिछड़ गये

-सर्वमंगला मिश्रा
मोदी पिछड़े जाति से आते हैं, इस बात को उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है। खुले मंच से ऐलान कर दिया कि मैं वही हूं जिसे सदियों से लोगों ने दुतकारा है। मैं वही हूं जिसे रिजर्वेशन के तराजू में सबने तौला है। मैं वही हूं जिसे किसी ने नहीं पहचाना। सबके बीच में रहा पर उबाल को ठंड़े पानी के समान शीतल बनाये रखा। मैं वही हूं जिसकी रंगत कोई भांप न सका। मैं वही हूं जिसने अपनी मां की तकलीफ को घुट –घुटकर पीया पर खून के आंसू को बहने न दिया इन आंखों से। मैं वही लाडला हूं जो चीखने में नहीं कर गुजरने में यकीन रखता हूं। मैं वही शहादत हूं जो नींव की ईंट से उठकर कंगूरा बनना पसंद करता हूं। भाईयों और बहनों मैं नरेंद्र मोदी हूं।
जनता ने मोदी के नाम का नारा पिछले एक साल से तेज कर दिया है। जिस तरह होली आने पर चारों तरफ गुलाल और अबीर हर चेहरे, हर घर और हर दिलो दिमाग को रंग देता है उसी तरह चुनाव की इस होली ने हर मजहब और हर राज्य के जिलों और गांवों के हर व्यक्ति को रंग डाला है। पर, जिस तरह कुछ लोग होली से नहीं पर उसके रंगों से खुद को दूर रखते हैं या इस पर्व में अपने आप को उन रंगों से बचाकर रखना चाहते हैं क्योंकि उन्हें कभी न कभी कुछ बुरा अनुभव हुआ था या उस डर से कि कुछ बुरा न हो जाय- एक दूरी बनाकर रखते हैं। ठीक उसी तरह चुनाव के इस महापर्व में दलगत राजनीतिज्ञों ने मोदी से दूर रहने और उन्हें परे रखने की कोशिश तो की लेकिन जब आंधी आती है तो पेड़ के पत्ते. जमीन पर पड़ी धूल, फूल की खुशबू और जहरीली zवाले खुद ही उस पहाड़ की चपेट में आते दिख रहे हैं और कुछ की आंखों में वही धूल गिरती नजर आ रही है। दिग्गी राजा प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। मोदी के पीछे जशोदाबेन को लेकर पीछे पड़े थे। फलस्वरुप बहन को गुजारिश करनी पड़ी कि- दादाभाई भाभी की चिता को ठंडा तो होने दिया होता। हैट्रिक मार चुकी बहन जी ने आज रेत से तेल निकालने का प्रयास कर डाला- और जाति पूछ डाली। साथ ही यह संदेश दिया कि मेरे दलित भाई बहनों भूलकर भी किसी के बहकावे में मत आइएगा। बहन मायावती जिन्दा है। वैसे भी सीनियर मोस्ट नेता सतीश चंद्र मिश्र ने कहा है कि-
चढ़ गुंडों की छाती पर, बटन दबाओ हाथी पर.......पर इस बयान में गुंडा कौन-??? सपा या भाजपा??? या सभी राजनैतिक पार्टियां।
बात यह भी विचारणीय है कि इतने दिन तक मोदी ने इस राज का खुलासा क्यों नहीं किया। अटल बिहारी जी की पूरी भाजपा टीम इस ध्वज की छांव में सदैव मार्च करती आयी है- एक बात के पीछे पड़ जाने के। फिर अगर बहन मायावती इस बात को उठा रही हैं तो क्या गलत है??? जनता यह जानना चाहती है कि आखिर ऐसी क्या मनोदशा मोदी की हो गयी कि चुनाव का सूर्य जब अपनी मध्यान अवस्था छोड़कर घर जा रहा है तब महाभारत के कृष्ण की तरह युद्धभूमि में मात्र अपने इशारे से सूर्य को उदय होने का संकेत देकर कहते हैं कि – हे पार्थ देखो कहां सूर्यास्त हुआ है। अभी तो संध्या हुई नहीं उठाओ अपना धनुष और अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो...। उसी तरह क्या मोदी के मन में पिछड़ों के प्रति ही सम्मान है बाकि जो अन्य वर्ग के लोग हैं उनके प्रति उनका कोई सरोकार या प्रेम नहीं। इसका तात्पर्य क्या हुआ कि जो सात चरण के मतदान में जिन लोगों ने मोदी को अपना समझा और प्रत्यासी को न देखकर मोदी को जिताने के लिए अपना मत डाला, उन सबके साथ क्या धोखा हुआ??? मोदी ने भावनात्मक खेल खेला है?? तो क्या जनता सचमुच माफ करेगी?? अगर मात्र यह कुर्सी की दावेदारी जताने का रंगमंच के कलाकार का सर्वोत्तम नाटक है तो जनता ताली जरुर बजा देगी पर दुबारा आपका मंचन देखने कभी न पहुंचेगी। जनता के दिल के कोने में जो किले का निर्माण हुआ है वह दीमक लगकर सदा सर्वदा के लिए ढह जायेगा। यह हुआ एक पक्ष दूसरा पक्ष यह भी कहा जा सकता है कि मोदी बनारस से चुनाव लड़ रहे हैं जहां कई दशकों से प्राय: सपा और बसपा का गढ़ रहा है। उस किले को ध्वस्त करने की नीति मोदी ने सोची या अमित शाह का गुरुवचन हो। यह तीर जो कमान में काफी सालों से तीरों के बीच छुपा हुआ था मोदी ने वक्त की नजाकत को देखते हुए छोड़ा है। यह तीर कितना असरदार होगा यह 16 मई को पता चल जायेगा। सब के डर में कितनी सच्चाई है इसकी पोल 16 मई को गोल हो जायेगी।
आजकल मोदी ने जिन द्वारा दी गयी अंगूठी पहन ली है जिसे पहनते ही वो अपने मनचाहे रुप में आ जाते हैं और सबको डराते रहते हैं। पर, जुनून, हौसला और अनुभव तीनों का समिश्रण दिख रहा है मोदी में। जुनून है कि पी एम बनना है। हौसला है कि हर ऊंची होती आवाज को दबाना है पर कैसे दबाना है यह उन्हें उनका अनुभव बता रहा है। मोदी 60 सावन से भी अधिक देख चुके हैं। जिसमें हर परिस्थिति से गुजरने के बाद हर कदम कैसे उठाना है यह उनका सफेद पका बाल और दाढ़ी उन्हें बखूबी बता रहे हैं।    
क्या मोदी ने इसलिए इतने दिन छुपाये रखा कि वह पिछड़ी जाति के हैं कि भाजपा उन्हें शुरुआती दौर में ही दरकिनार कर देती। इन्हें इतने मौके न देती। साथ ही मोदी –मोदी के नारे यूं ना लगते???? पर बाबा भीमराव अम्बेडकर जी को भला कोई कैसे भूल सकता है। क्या उनकी इज्जत कभी कम हुई थी या हो रही है। या कहीं अजीत जोगी की तरह ताश का फेंका हुआ तुरुप का पत्ता मात्र है। आजतक जोगी के पिछड़े होने पर शक है लोगों को। क्या जनता में एक भ्रमित करने वाला एक और जादूगर आ गया है।
जनता आदिकाल से ही भ्रमित हो जाती है। जैसे अपने हीरो को देखकर उसके सारे गुण अवगुण छोड़कर उसके उस मासूम भंवरजाल में आपका दिल फंस जाता है। दिल तितली की तरह एक अंजान वचन के संसार में फंस जाता है और जब सपना टूटता है तो दिल आपका आपके पास होता है क्योंकि सपना टूट चुका होता है। आप जिन्दगी की हकीकतों से रुबरु होने के लिए फिर से खुद को तैयार करने लगते हैं। पर फिर शाम होती है और एक नया जादूगर आता है और मनोरंजन कर आपका मस्तिष्क अपनी ओर खींचने में सफल हो जाता है। जिन्दगी की सुबह –शाम यूंही चलती रहती है।पर, विकास भी तो होना चाहिए क्या जातिगत विकास या धर्मगत विकास किसी देश को उन्नति के उस शिखर पर पहुंचाता है जहां से धरती गोल नजर आती है।v

Thursday, 8 May 2014

               तेरा हीरो किधर है......





सर्वमंगला मिश्रा
9717827056

आजकल एक गाना बड़े जोर शोर से हर तरफ बजता है और बहुत ही चर्चा का विषय भी..गाना है तेरा धियान किधर है कि तेरा हीरो इधर है.....आजकल हर राजनेता इसी बात को जताने में लगा हुआ है। चाहे वो भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी हो, राहुल गांधी हों, मुलायम, अखिलेश. मायावती, उमा या प्रियंका हों। खैर चुनाव के सात चरण बीत चुके हैं। अमूमन हर स्थान पर रिकार्ड तोड़ वोटिंग हुई है। पूर्वी भारत ने पहले चरण के मतदान में 70 प्रतिशत के आस-पास वोटिंग कर देश की जनता में उत्साह भर दिया। हर नेता ने यही दुहाई दी अपने कार्यकर्ताओं को कि जब पूर्वी भारत में इतनी वोटिंग हो सकती है तो तो हमारे यहां क्यों नहीं। भाजपा के नोएडा प्रत्याशी डा. महेश शर्मा को चुनाव प्रचार के आखिरीदिन वार रुम में अपने कार्यकर्ताओं को ऐसा भाषण देते सुना गया। जिसका नतीजा यह हुआ कि उत्साह की आंधी मोदी जी पर ऐसी छायी कि वड़ोदरा में वोटिंग करने के बाद कमल के साथ अपनी फोटो उतारने से मोदी नहीं चुके और एक जनसभा भी कर डाली। जिसके कारण उनपर आचार संहिता के उल्लंघन का मामला भी दर्ज हो गया। हर नेता अपनी टी आर पी रेटिंग बढाने के लिए कुछ भी कहे चला जा रहा है। खामियाजा भी भुगत रहा है पर जबान पर लगाम बेलगाम हो चुकी है। सपा प्रमुख जो 70 के दशक के हीरो तो नहीं पर 70 सावन जरुर पार कर चुके हैं। लेकिन अफसोस किया जाय या भद्दी राजनीति के तहत वो बयान पर बयान दिये चले जा रहे हैं। कभी महिलाओं पर टिप्पणी कर देते हैं तो कभी अपनी प्रमुख विपक्षी पार्टी के सुप्रीमो पर। मुलायम सिंह यादव पहचान के मोहताज नहीं, पर ये कैसा वोट पाने का नजरिया है या राजनीतिक मर्यादा का कोई दायरा ही नहीं रहा। चूहा बिल्ली से लेकर संजीदे मुद्दों पर बड़े बड़े नेता अपना आपा खोए चले जा रहे हैं। कहीं चाची और बेटी नसीहत एक दूसरे को दे रही हैं तो कहीं शहजादे को। अपने गिरे बान में झांकने की फुरसत किसी के पास नहीं या कहा जाय कि कीचड़ उछालने की राजनीति ज्यादा चल पड़ी है।
अटल बिहारी झूठ बोलते हैं – यह बात सोनिया जी ने तब कही थी जब 1996 का चुनाव चल रहा था। जिसपर काफी विवाद हुआ था। पर आजकल हर कोई विवादों में है। जो विवादों में नहीं वो बड़ा नेता नहीं। मुलायम ने जिसके चरित्र पर सवालिया निशान लगाये तो सुपुत्र ने मरहम लगाये बुआ कहकर। वैसे तो मुलायम सिंह जी यू पी के सीएम को सीख दे नहीं पाते पर परवश पिता जनता को खूब सीख देते हैं। मुद्दे अब छींटाकशी के दलदल में धंसते चले जा रहे हैं। जिस तरह दस साल के प्रश्न पत्र को देखकर यह अंदाजा लगा लिया जाता है कि इस साल का प्रश्न पत्र कैसा होगा, शायद राजनीति में बिना खपे राजनेताओं की पीढियां गरीबी, शिक्षा, विकास, रोजगार और उन्नति करने के वायदों को रटकर हर चुनाव की परीक्षा पास कर जाना चाहते हैं। इक्जामिनर क्या हर बार बेवकूफ बन जाता है। हर जीत को एक मिशन के तौर पर लेना पड़ता है, चाहे वह मिशन 272 हो, आपरेशन ब्लू स्टार हो, करो या मरो, नाउ आर नेभर, अबकी बारी अटल बिहारी, सोनिया लाओ कांग्रेस बचाओ, अंग्रेजों वापस जाओ, अबकी बार मोदी सरकार, प्रियंका लाओ देश बचाओ- ये सभी नारे बस मिशन हिट होने तक काम करते हैं। तो क्या जो देश की जनता में जो लहर है और मोदी जी की प्यास भी बढ़ गयी है – ये दिल मांगे मोर ...मतलब 300 कमल चाहिए। 272 से 300 राउंड फिगर की चाह पाने की उम्मीद जनता से बढ़ गयी है। कोई खुद चौकी दार बनना चाहता है तो कोई देश के हर नागरिक को चौकीदार बनाने पर तुला है, तो कोई सिपाही बनाकर चला गया।
तो जनता का ध्यान आखिर इस बार किसकी तरफ है.....???? प्रियंका गांधी जो कांग्रेस की स्टार प्रचारक हैं। जिनके आने मात्र से समीकरण में उलट फेर होना तय हो जाता है। जिन्होंने स्वयं जनता के लिए क्या किया यह शायद समझना या जानना मुश्किल है। जनता के लिए भी और उनके लिए भी। राजनीति में वो आना नहीं चाहतीं तो क्या शिकश्त दिलाने की चाभी कुंजी हैं महाभारत में शिखंडी की तरह। जिसने तलवार भी नहीं उठाया और भीष्म पितामह को अपने धनुष का समर्पण भी करना पड़ा। जिसे पूरे युद्ध के दौरान नहीं देखा गया मात्र भीष्म का सरेंडर करवाने की चाभी थे शिखंडी।
केजरीवाल जिसने नायक फिल्म को हकीकत में बदलने का अपना दम खम दिखाया पर ट्रेलर का प्रमोशन ही जोरदार और मनोरंजक था। फिल्म तो आधी से भी कम जनता ने देखकर अंदाजा लगा लिया कि फिल्म बहुत बोरिंग है और, हाल से उठकर निकल आये। एक तरह से उनकी चुनौती हास्यास्पद मात्र रह गयी है।
राहुल गांधी जिसने राजीव गांधी के पुत्र होने की दुहाई दी। मां सोनिया के आंसुओं की दुहाई दी, गरीबों के घर रात बितायी एहसास करने की कोशिश की कैसा होता है गरीब का जीवन। जिसने मजदूरों के साथ माटी ढोयी। पर राजनीतिक करियर में उछाल की जगह ग्राफ गिरता ही चला गया। उसी को संभालने के लिए बहन प्रियंका जिसे शायद मंच पर खड़े होना, भाषण देना पसंद नहीं, पर राखी का फर्ज वो ही अदा कर रही हैं और भाई के लिए प्रचार कर रही हैं।
तीसरे मोर्चे में बड़ा कन्फ्यूजन है। सभी भारी हैं तो पिरामिड में कौन नीचे और कौन ऊपर होगा और कौन किसका भार सहन कर पायेगा। यह चिंता का विषय है।सभी ऊपर चढ़कर बम्पर हंडी फोड़ना चाहते हैं।

इस बार न चाहते हुए भी नारा दिमाग के कोने में कुछ यूं फिट हो गया है ये देश नहीं झुकने देंगें...ये देश नहीं मिटने देगें...हमारा नेता कैसा हो अटल बिहारी जैसा हो नहीं इस बार बच्चा बच्चा कह रहा है मोदी जी आने वाले हैं, हम मोदी जी को लाने वाले हैं। मतलब दो साल से जिस मिशन पर यह व्यक्ति काम कर रहा है, जिसने अपना जीवन संघ और पार्टी दोनों को दिया, जिसने गुजरात को गुजरात माडल के रुप में पेश कर गुजरात को गु--रा-त बना दिया। गुजरात का एक शहर सूरत जो कपड़े के व्यापारियों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है। पर, हमेशा कोलकाता, दिल्ली, मुम्बई , चेन्नई और बैंगलूरु जैसे शहर चर्चा का विषय रहते थे युवाओं के विचारों में पर अचानक घड़ी की सुई घूम गयी हो और घंटा बज गया हो कि अब 12 बज चुके हैं नया दिन शुरु होने का संकेत मिल जाता है। ठीक उसी तरह कांग्रेस की नतियों से बौखलायी जनता और केजरीवाल के झूठे वायदों से उखड़ी जनता एक नया विकल्प ढूंढ़ रही है। विकल्प सही है या गलत यह तो वक्त ही तय करेगा। दिमाग तो हर समस्या का एक समाधान एक विकल्प सोचना, खोजना और पाना चाहता है। तो हमारा ध्यान किधर है कि अपना हीरो किधर है.....
मोदी विकास और प्रियंका ....


सर्वमंगला मिश्रा- स्नेहा
9717827056


आज विकास कहते ही दिमाग में अचानक लोगों की जुबान पर गुजरात माडल अनजाने में ही निकल पड़ता है। 2014 के चुनाव का नतीजा चाहे जो हो, पर यह चुनाव लोगों को सालों साल याद जरुर रहेगा। मोदी अगर प्रधानमंत्री बन जाते हैं तो यह कथा स्वर्णिम अक्षरों में लिखी जायेगी। वहीं कांग्रेस जिसने पिछले 10 सालों से निरंकुश शासन किया है और अब विकास न होने की दुहाई दे रहा है। राहुल गांधी चुनावी भाषणों के दौरान एक दिन मध्यप्रदेश के एक स्थान से सभा को संबोधित कर रहे थे और कहते कहते कह गये। एक आंकड़े के साथ कि मध्यप्रदेश से इतने सालों में इतनी महिलायें गायब हुई और उसका पोस्टर दिल्ली में दिखाई देता है। राहुल गांधी कोसने का प्रयास भाजपा को कर रहे थे पर कहीं न कहीं कुल्हाड़ी उन्होने अपने पैर पर ही दे मारी। जब दिल्ली में पोस्टर लगे दिखे तो क्या महिलाओं के विकास के शुभचिंतक कांग्रेस की सरकार ने राज्य सरकार से सुध लेने का प्रयास किया ?? चलिए छोड़िये मध्यप्रदेश का मामला या किसी अन्य राज्य का। दिल्ली की महिलायें खुद को कितना सुरक्षित महसूस करती हैं....ये आप कहीं भी खड़े होकर किसी भी राह चलती महिला, लड़की से पूछ लें...जवाब अपने आप मिल जायेगा। राहुल का भाषण लिखने वालों को जरा सोचकर लिखना चाहिए कि उनका शहजादा क्या पढने वाला है। खैर शहजादा तो शहजादा है पर भावी राजा के भाषण लिखने वाले भी कभी कभी न जाने क्या क्या लिख जाते हैं। इतिहास, भूगोल सब खिचड़ी की तरह मिक्स हो जाता है।
एक वक्त था जब सीताराम केसरी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष हुआ करते थे। ठीक सोनिया के पहले उनका नाम अंकित हो चुका है लिस्ट में। तब जनता यही मांग करती थी और रोज चिल्लाती थी- सोनिया लाओ कांग्रेस बचाओ – यह नारा था। यह नारा राजीव गांधी की मौत के बाद से ही आधी अधूरी आवाज में पनपने लगा पर, सोनिया गांधी ने राजनीति में न आने की जैसे कसम खायी थी या सही वक्त के इंतजार में थीं। पर नरसिम्हा राव जी के बाद से नारा बुलंदी छूने लगा और नारे की गूंज राजनीति के आसमान को चीरने लगी। तब केसरी जी को जिस तरह हटाया गया था वो राजनीति में रुचि रखने वालों को बखूबी याद होगा। 1997 के बाद वक्त आया 2004 जब सोनिया के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने केंद्र में अपनी खोयी सत्ता पायी। उन दिनों कांग्रेस पार्टी की लहर कुछ हद तक ऐसी ही थी। इतनी पुरानी पार्टी ऊपर से उस घराने की कई पीढियां सत्ता का भोग कर चुकने की आदि और जिनका नाम देशभक्ति की फहरिस्त में आजादी के बाद देश को विकास की सीढ़यां चढाने का श्रेय जिन्हें देश की जनता दे चुकी थी, उसी घराने की बहू, दो बच्चों की मां और देवरानी जिसके ऊपर देश की डूबती नैया पार लगाने का पूर्णरुप से दारोमदार की आशाये टिकीं थीं उस महिला ने एक पल में बिदा होती बेटी की तरह खुद को शासन और उसकी बागडोर पकड़ने से इंकार कर दिया। जनता सन्न हो गयी जैसे विलन के आने से सुखद संगीत बंद हो जाता है और सन्नाटा पसर जाता है। पर यह सन 2014 है जहां सारी असलियत एक एक अध्याय की तरह खुलकर सामने आ रही है। जहां मनमोहन जी मात्र कठपुतली थे। पर्दे के पीछे से पूरे शासन की बागडोर सोनिया जी के हाथों ही थी। ट्रेनर भी थे मनमोहन जी राहुल गांधी के लिए। वरना राहुल को इतना सीखने को न मिल पाता। पर क्या सीखा ??? इतना भाषण देने के बावजूद राहुल का जलवा फ्लाप ही साबित हुआ और आखिरकार, क्लाइमेक्स और चार्मिंग पर्सनालिटी प्रियंका को हर बार की तरह चुनाव प्रचार की कमान सोनिया जी को थमानी ही पड़ी। क्योंकि चमत्कार पसंद फैमिली गुल्ली डंडा खेलते खेलते शतरंज की बाजी में मात खा गयी है। अब प्रियंका जो पार्टी के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं हैं। पार्टी नारे लगायी पर दब गयी आवाज़। आवाज थी प्रियंका को बुलाने की पार्टी में। प्रियंका लाओ कांग्रेस बचाओ। पर, बेटी आ गयी तो बेटे की राजनीति की भूरभूरी मिट्टी की जमीन खिसक जायेगी। इसलिए बेटे के भविष्य के लिए बेटी के भविष्य की बलि देती दिख रही हैं सोनिया गांधी। एक बार फिर एक महिला, एक बेटी को शहादत के लिए शायद कहीं न कहीं मजबूर किया गया होगा। अब प्रियंका गांधी मोदी पर वार करके कांग्रेस के पहलू को मजबूत बनाने में जुट गयीं हैं। वक्त अब रहा नहीं कि बिल्डिंग को ढाह कर फिर से बनाया जाय पर मरम्मत का काम जारी है। दीपावली आने में बस अब कुछ हफ्तों की ही देर है। देखेंगें कि इस दीपावली में मां लक्ष्मी किस पर प्रसन्न होकर उसके घर में वास करतीं हैं।
बात हमने शुरु की थी विकास की। मोदी जी ने एक दशक गुजरात को समर्पित कर दिया। विकास की एक ऐसी रणनीति तैयार की जिसमें राज ठाकरे भी गुजरात के मोह में फंस गये या मोदी के यह तो बाद में पता चलेगा। मोदी अमूमन एक दिन में पांच बड़ी रैलियां अलग अलग शहरों में तो करते ही हैं साथ ही अधिकारियों से मिटींग, नेताओं से, पार्टी वरिष्ठ गणों से, पार्टी की आम सभायें, और न जाने कितनी अनगिनत मिटिंग करते हैं मोदी। पर, मोदी के दुख का सागर कम नहीं हुआ है वो मिलने आये कई बार, मुलाकातें हुईं, बातें हुई पर इजहार की आस अमेरिका से अभी भी बाकी है। मोदी हैं कि बिना गुजरात के बात ना शुरु होती है और ना खत्म। पर प्रियंका विकास के मुद्दे पर लड़ाई लड़ना चाहती है। मोदी पूरे देश को गुजरात के रंग में रंग देना चाहते हैं तो पस्त और लहू- लुहान कांग्रेस संजीवनी बूटी चाहती है। हर शहर, हर राज्य का नाता गुजरात के धागों से मोदी ने एकजुटता का प्रदर्शन करने की कोशिश की है। सचमुच कितने कामयाब हुए ये तो चुनाव के बाद पता चलेगा। प्रियंका अमूमन अपने भाषणों में कहती फिरती हैं कि आप उसी को वोट कीजिये जो आपका भला कर सके।अपने दिमाग से सोचिये। किसी के दबाव में मत आइये। अपना नेता खुद चुनिये जो आपको विकास की राह पर ले जाय। तो प्रियंका जी आप ही सोचिये कांग्रेस के अनन्य भक्तों के अलावा क्या देश की 55 प्रतिशत जनता आपकी माताजी और भाई की पार्टी या आपके पुस्तैनीय पार्टी को वोट करना चाहेगी??? मोदी के पास तो गुजरात माडल है पर कांग्रेस के पास क्या दिल्ली माडल चुनावी मार्केट में बेचने के लायक है??? देश के वीर सपूतों का सिर सरहद से ले गये। परिवार सुबुकता रह गया। देश खून के आंसू रो दिया। पर सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगीं। अपने गाड़ी की एसी में सफर खुशनुमा एहसास का एहसास करते समय बीता दिया गया। अब गल्तियों का एहसास हुआ है तो चिड़िया खेत चुग गयी है। अब अगली फसल के लिए इंतजार करना होगा। 

  मिस्टिरियस मुम्बई  में-  सुशांत का अशांत रहस्य सर्वमंगला मिश्रा मुम्बई महानगरी मायानगरी, जहां चीजें हवा की परत की तरह बदलती हैं। सुशां...