तेरा
हीरो किधर है......
सर्वमंगला
मिश्रा
9717827056
आजकल
एक गाना बड़े जोर शोर से हर
तरफ बजता है और बहुत ही चर्चा
का विषय भी..गाना
है तेरा धियान किधर है कि तेरा
हीरो इधर है.....आजकल
हर राजनेता इसी बात को जताने
में लगा हुआ है। चाहे वो भाजपा
के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार
नरेंद्र मोदी हो,
राहुल
गांधी हों,
मुलायम,
अखिलेश.
मायावती,
उमा
या प्रियंका हों। खैर चुनाव
के सात चरण बीत चुके हैं। अमूमन
हर स्थान पर रिकार्ड तोड़
वोटिंग हुई है। पूर्वी भारत
ने पहले चरण के मतदान में 70
प्रतिशत
के आस-पास
वोटिंग कर देश की जनता में
उत्साह भर दिया। हर नेता ने
यही दुहाई दी अपने कार्यकर्ताओं
को कि जब पूर्वी भारत में इतनी
वोटिंग हो सकती है तो तो हमारे
यहां क्यों नहीं। भाजपा के
नोएडा प्रत्याशी डा.
महेश
शर्मा को चुनाव प्रचार के
आखिरीदिन वार रुम में अपने
कार्यकर्ताओं को ऐसा भाषण
देते सुना गया। जिसका नतीजा
यह हुआ कि उत्साह की आंधी मोदी
जी पर ऐसी छायी कि वड़ोदरा में
वोटिंग करने के बाद कमल के साथ
अपनी फोटो उतारने से मोदी नहीं
चुके और एक जनसभा भी कर डाली।
जिसके कारण उनपर आचार संहिता
के उल्लंघन का मामला भी दर्ज
हो गया। हर नेता अपनी टी आर पी
रेटिंग बढाने के लिए कुछ भी
कहे चला जा रहा है। खामियाजा
भी भुगत रहा है पर जबान पर लगाम
बेलगाम हो चुकी है। सपा प्रमुख
जो 70 के
दशक के हीरो तो नहीं पर 70
सावन
जरुर पार कर चुके हैं। लेकिन
अफसोस किया जाय या भद्दी राजनीति
के तहत वो बयान पर बयान दिये
चले जा रहे हैं। कभी महिलाओं
पर टिप्पणी कर देते हैं तो कभी
अपनी प्रमुख विपक्षी पार्टी
के सुप्रीमो पर। मुलायम सिंह
यादव पहचान के मोहताज नहीं,
पर
ये कैसा वोट पाने का नजरिया
है या राजनीतिक मर्यादा का
कोई दायरा ही नहीं रहा। चूहा
बिल्ली से लेकर संजीदे मुद्दों
पर बड़े बड़े नेता अपना आपा
खोए चले जा रहे हैं। कहीं चाची
और बेटी नसीहत एक दूसरे को दे
रही हैं तो कहीं शहजादे को।
अपने गिरे बान में झांकने की
फुरसत किसी के पास नहीं या कहा
जाय कि कीचड़ उछालने की राजनीति
ज्यादा चल पड़ी है।
अटल
बिहारी झूठ बोलते हैं – यह बात
सोनिया जी ने तब कही थी जब 1996
का
चुनाव चल रहा था। जिसपर काफी
विवाद हुआ था। पर आजकल हर कोई
विवादों में है। जो विवादों
में नहीं वो बड़ा नेता नहीं।
मुलायम ने जिसके चरित्र पर
सवालिया निशान लगाये तो सुपुत्र
ने मरहम लगाये बुआ कहकर। वैसे
तो मुलायम सिंह जी यू पी के
सीएम को सीख दे नहीं पाते पर
परवश पिता जनता को खूब सीख
देते हैं। मुद्दे अब छींटाकशी
के दलदल में धंसते चले जा रहे
हैं। जिस तरह दस साल के प्रश्न
पत्र को देखकर यह अंदाजा लगा
लिया जाता है कि इस साल का
प्रश्न पत्र कैसा होगा,
शायद
राजनीति में बिना खपे राजनेताओं
की पीढियां गरीबी,
शिक्षा,
विकास,
रोजगार
और उन्नति करने के वायदों को
रटकर हर चुनाव की परीक्षा पास
कर जाना चाहते हैं। इक्जामिनर
क्या हर बार बेवकूफ बन जाता
है। हर जीत को एक मिशन के तौर
पर लेना पड़ता है,
चाहे
वह मिशन 272
हो,
आपरेशन
ब्लू स्टार हो,
करो
या मरो,
नाउ
आर नेभर,
अबकी
बारी अटल बिहारी,
सोनिया
लाओ कांग्रेस बचाओ,
अंग्रेजों
वापस जाओ,
अबकी
बार मोदी सरकार,
प्रियंका
लाओ देश बचाओ-
ये
सभी नारे बस मिशन हिट होने तक
काम करते हैं। तो क्या जो देश
की जनता में जो लहर है और मोदी
जी की प्यास भी बढ़ गयी है –
ये दिल मांगे मोर ...मतलब
300 कमल
चाहिए। 272
से
300 राउंड
फिगर की चाह पाने की उम्मीद
जनता से बढ़ गयी है। कोई खुद
चौकी दार बनना चाहता है तो कोई
देश के हर नागरिक को चौकीदार
बनाने पर तुला है,
तो
कोई सिपाही बनाकर चला गया।
तो
जनता का ध्यान आखिर इस बार
किसकी तरफ है.....????
प्रियंका
गांधी जो कांग्रेस की स्टार
प्रचारक हैं। जिनके आने मात्र
से समीकरण में उलट फेर होना
तय हो जाता है। जिन्होंने
स्वयं जनता के लिए क्या किया
यह शायद समझना या जानना मुश्किल
है। जनता के लिए भी और उनके
लिए भी। राजनीति में वो आना
नहीं चाहतीं तो क्या शिकश्त
दिलाने की चाभी कुंजी हैं
महाभारत में शिखंडी की तरह।
जिसने तलवार भी नहीं उठाया
और भीष्म पितामह को अपने धनुष
का समर्पण भी करना पड़ा। जिसे
पूरे युद्ध के दौरान नहीं देखा
गया मात्र भीष्म का सरेंडर
करवाने की चाभी थे शिखंडी।
केजरीवाल
जिसने नायक फिल्म को हकीकत
में बदलने का अपना दम खम दिखाया
पर ट्रेलर का प्रमोशन ही जोरदार
और मनोरंजक था। फिल्म तो आधी
से भी कम जनता ने देखकर अंदाजा
लगा लिया कि फिल्म बहुत बोरिंग
है और, हाल
से उठकर निकल आये। एक तरह से
उनकी चुनौती हास्यास्पद मात्र
रह गयी है।
राहुल
गांधी जिसने राजीव गांधी के
पुत्र होने की दुहाई दी। मां
सोनिया के आंसुओं की दुहाई
दी, गरीबों
के घर रात बितायी एहसास करने
की कोशिश की कैसा होता है गरीब
का जीवन। जिसने मजदूरों के
साथ माटी ढोयी। पर राजनीतिक
करियर में उछाल की जगह ग्राफ
गिरता ही चला गया। उसी को
संभालने के लिए बहन प्रियंका
जिसे शायद मंच पर खड़े होना,
भाषण
देना पसंद नहीं,
पर
राखी का फर्ज वो ही अदा कर रही
हैं और भाई के लिए प्रचार कर
रही हैं।
तीसरे
मोर्चे में बड़ा कन्फ्यूजन
है। सभी भारी हैं तो पिरामिड
में कौन नीचे और कौन ऊपर होगा
और कौन किसका भार सहन कर पायेगा।
यह चिंता का विषय है।सभी ऊपर
चढ़कर बम्पर हंडी फोड़ना चाहते
हैं।
इस
बार न चाहते हुए भी नारा दिमाग
के कोने में कुछ यूं फिट हो
गया है ये देश नहीं झुकने
देंगें...ये
देश नहीं मिटने देगें...हमारा
नेता कैसा हो अटल बिहारी जैसा
हो नहीं इस बार बच्चा बच्चा
कह रहा है मोदी जी आने वाले
हैं, हम
मोदी जी को लाने वाले हैं।
मतलब दो साल से जिस मिशन पर यह
व्यक्ति काम कर रहा है,
जिसने
अपना जीवन संघ और पार्टी दोनों
को दिया,
जिसने
गुजरात को गुजरात माडल के रुप
में पेश कर गुजरात को गु-ज-रा-त
बना दिया। गुजरात का एक शहर
सूरत जो कपड़े के व्यापारियों
के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा
है। पर,
हमेशा
कोलकाता,
दिल्ली,
मुम्बई
, चेन्नई
और बैंगलूरु जैसे शहर चर्चा
का विषय रहते थे युवाओं के
विचारों में पर अचानक घड़ी
की सुई घूम गयी हो और घंटा बज
गया हो कि अब 12
बज
चुके हैं नया दिन शुरु होने
का संकेत मिल जाता है। ठीक उसी
तरह कांग्रेस की नतियों से
बौखलायी जनता और केजरीवाल के
झूठे वायदों से उखड़ी जनता
एक नया विकल्प ढूंढ़ रही है।
विकल्प सही है या गलत यह तो
वक्त ही तय करेगा। दिमाग तो
हर समस्या का एक समाधान एक
विकल्प सोचना,
खोजना
और पाना चाहता है। तो हमारा
ध्यान किधर है कि अपना हीरो
किधर है.....
No comments:
Post a Comment