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Wednesday 18 June 2014

सरकार की सौगात

सर्वमंगला मिश्रा
9717827056

हर नयी चीज मार्केट में एक नया उत्साह भर देती है।मार्केट में जब नया ब्रैंड लांच होता है तो उस सेक्टर के आलोचक, उसके ब्रैंड के फालोअर्स सभी टकटकी लगाये रहते हैं। सेक्टर चाहे कोई भी हो न्यू लांच करने वालों से लेकर जब तक प्रोडक्ट लांच नहीं जाता तब तक उसके प्रति जिज्ञासा और उत्कंठा बनी रहती है। फैन फालोअर्स और एक्सपेरिमेंटल वर्ग उसके हर गतिविधी से परिचित होना चाहता है। जैसे उसके फंग्शन्स, फीचर्स या बात करें फैशन वल्ड की या नयू एल्बम या फिल्म जब रिलीज़ होने वाली होती है तो उसके लांचिंग के अनुसार लोग अपना शिड्यूल प्लान करते हैं। किसी पुस्तक के मार्केट में आते ही पुस्तक प्रेमी या उस लेखक की शैली को पसंद करने वाला व्यक्ति पहले से बुकिंग कर रखता है उसके पहली कापी की। घर में जब नया नवजात आता है तो उससे सबको नयी खुशी मिलती है। क्योंकि परिवार को एक उर्जा की प्राप्ति होती है और भविष्य उन्नति की ओर अग्रसर होता दिखता है।नयी बहू,नये डिजाइन्स, नया व्यक्ति आफिस में यह सारी बातें यही संदेश देती है कि हर नये सिक्का पहले अपनी चमक से सबको प्रभावित करता है। बाद में उसकी चमक कितनी देर तक नयी रहती है यह उसके गुणों पर निर्भर करती है। ठीक कुछ इसी तरह मोदी सरकार के आने से लेकर अब तक एक नयी उर्जा शक्ति का संचार जन मानस में हुआ है। पर, यहां मोदी सरकार की विरदावली पढना मेरा मकसद नहीं। मन में विचार उठ रहा है कि क्या सरकार सही दिशा में चल रही है। जितने वायदे किये हैं देशवासियों से उन्हें निभाने में सक्षम है यह सरकार ??
केंद्र में भाजपा की सरकार के बनते ही उत्तर प्रदेश में जंगल राज या बर्बरता इतनी चरम पर कैसे पहुंच गयी। जबकि सरकार को जुम्मा – जुम्मा चार दिन ही बीते है। अभी एक माह भी पूरे नहीं किये हैं इस सरकार ने। बिजली आपूर्ति की समस्या इतनी चरम पर आ गयी। अखिलेश सरकार ने बीते एक माह में तकरीबन 66 आई ए एस और आई पी एस के तबादले कर डाले। 15 जून को फादर्स डे उपलक्ष्य में तो नहीं पर सपा प्रमुख ने बैठक बुलायी और 17 जून की रात होने से अमूमन कुछ घंटे पहले मंत्रियों के विभागों में फेर बदल कर डाले। इन सब बातों का तात्पर्य क्या निकाला जाय- कि सरकार के इस फेर बदल के भंवर में जनता को उलझाना या विधानसभा के चुनावों में अपनी ताकत को दर्शाने की रणनीति की नियत से काम कर रही है अखिलेश सरकार।इस बार लोस की हार के बाद अपनी शाख को बचाने में जुटी सपा सरकार सारे हथकण्डे अभी से अपनाने शुरु कर दी है।क्योंकि कमल का निशान खतरे के निशान से पूरे देश में उपर दिख रहा है। साथ ही बाकी पार्टियां खतरे के निशान के आस-पास भी दिखायी नहीं दे रहा। यूं तो सपा सरकार को अपना बचाव दो तरफ से करना है। पहला बचाव मोदी के आतंक से। तो दूसरा बहन मायावती की खार से। इस बार उनका खाता तक न खुलने से उनके अंदर की बेचैनी कभी भी राजनीति के घड़े में उबाल ला सकती है।वैसे भी बुआ और मुलायम के तानों के बाण अभी शरीर में ताजे घाव की तरह हरे हैं। तो बहन मायावती का हाथी यूं तो अधमरा है पर जीवनी शक्ति देने में जुटी बसपा सुप्रीमो अगर किसी तरह कामयाब हो जाती हैं तो साइकिल के टुकड़े होते देर नहीं लगेगी।
बदायूं मामले के उपरांत पेड़ से मानो लाशों को लटकाने का ट्रेंड सा निकल पड़ा है। सीतापुर में पति –पत्नी की लाश ..सरकार की कानून व्यवस्था मानो किसी सन्दूक में बंद कर पानी में पेंक दी गयी हो और हर कोई बेबस, लाचार खड़ा है। उधर भाजपा के नेता निशाने पर आ गये हैं या लाये गये हैं। कहा नहीं जा सकता। क्या ऐसा प्रतीत नहीं होता कि कहीं न कहीं इस राजनैतिक पार्टियों के आंतरिक कलह, द्वेष और अहं की लड़ाई में जनता पीसी चली जा रही है। इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता कि बीजेपी अपना कमल को या कहीं अमित शाह को यू पी के उस कुर्सी से नवाज़ने का ध्येय तो नहीं साध लिया है।अगर ऐसा है तो इन आने वाले 2-3 सालों में बहुत कुछ देखना अभी बाकी होगा। तब राजनीति के इस खेल का यह प्रथम चरण है पर बाकी 3 चरण विधानसभा चुनाव तक पूरे हो जायेंगें। यह तो हुई बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश की बात। कारवां तो अभी शुरु हुआ है। दहशत के दौर ने अभी जन्म ही तो लिया है। आशंकायें फलीभूत हो रही हैं। बी एल जोशी का इस्तीफा संकेत है क्योंकि फहरिस्त लम्बी होने वाली है। शीला दीक्षित का इंकार इकरार में कैसे बदलेगा। यह मोदी सरकार ने मास्टर प्लान तैयार कर लिया होगा। ऐसा करना अनिवार्य भी है । भाजपा में वरिष्ठों की संख्या जितनी है उतने तो शायद राज्य भी नहीं हैं। सबको यथोचित स्थान से नवाजने के लिए कठोर कदम तो उठाना आंतरिक रुप से प्रतिबद्धता है मोदी सरकार की।


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