मोदी
विकास और प्रियंका ....
सर्वमंगला
मिश्रा-
स्नेहा
9717827056
आज
विकास कहते ही दिमाग में अचानक
लोगों की जुबान पर गुजरात माडल
अनजाने में ही निकल पड़ता है।
2014 के
चुनाव का नतीजा चाहे जो हो,
पर
यह चुनाव लोगों को सालों साल
याद जरुर रहेगा। मोदी अगर
प्रधानमंत्री बन जाते हैं तो
यह कथा स्वर्णिम अक्षरों में
लिखी जायेगी। वहीं कांग्रेस
जिसने पिछले 10
सालों
से निरंकुश शासन किया है और
अब विकास न होने की दुहाई दे
रहा है। राहुल गांधी चुनावी
भाषणों के दौरान एक दिन मध्यप्रदेश
के एक स्थान से सभा को संबोधित
कर रहे थे और कहते कहते कह गये।
एक आंकड़े के साथ कि मध्यप्रदेश
से इतने सालों में इतनी महिलायें
गायब हुई और उसका पोस्टर दिल्ली
में दिखाई देता है। राहुल
गांधी कोसने का प्रयास भाजपा
को कर रहे थे पर कहीं न कहीं
कुल्हाड़ी उन्होने अपने पैर
पर ही दे मारी। जब दिल्ली में
पोस्टर लगे दिखे तो क्या महिलाओं
के विकास के शुभचिंतक कांग्रेस
की सरकार ने राज्य सरकार से
सुध लेने का प्रयास किया ??
चलिए
छोड़िये मध्यप्रदेश का मामला
या किसी अन्य राज्य का। दिल्ली
की महिलायें खुद को कितना
सुरक्षित महसूस करती हैं....ये
आप कहीं भी खड़े होकर किसी भी
राह चलती महिला,
लड़की
से पूछ लें...जवाब
अपने आप मिल जायेगा। राहुल
का भाषण लिखने वालों को जरा
सोचकर लिखना चाहिए कि उनका
शहजादा क्या पढने वाला है।
खैर शहजादा तो शहजादा है पर
भावी राजा के भाषण लिखने वाले
भी कभी कभी न जाने क्या क्या
लिख जाते हैं। इतिहास,
भूगोल
सब खिचड़ी की तरह मिक्स हो
जाता है।
एक
वक्त था जब सीताराम केसरी
कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष
हुआ करते थे। ठीक सोनिया के
पहले उनका नाम अंकित हो चुका
है लिस्ट में। तब जनता यही
मांग करती थी और रोज चिल्लाती
थी- सोनिया
लाओ कांग्रेस बचाओ – यह नारा
था। यह नारा राजीव गांधी की
मौत के बाद से ही आधी अधूरी
आवाज में पनपने लगा पर,
सोनिया
गांधी ने राजनीति में न आने
की जैसे कसम खायी थी या सही
वक्त के इंतजार में थीं। पर
नरसिम्हा राव जी के बाद से
नारा बुलंदी छूने लगा और नारे
की गूंज राजनीति के आसमान को
चीरने लगी। तब केसरी जी को जिस
तरह हटाया गया था वो राजनीति
में रुचि रखने वालों को बखूबी
याद होगा। 1997
के
बाद वक्त आया 2004
जब
सोनिया के नेतृत्व में कांग्रेस
पार्टी ने केंद्र में अपनी
खोयी सत्ता पायी। उन दिनों
कांग्रेस पार्टी की लहर कुछ
हद तक ऐसी ही थी। इतनी पुरानी
पार्टी ऊपर से उस घराने की कई
पीढियां सत्ता का भोग कर चुकने
की आदि और जिनका नाम देशभक्ति
की फहरिस्त में आजादी के बाद
देश को विकास की सीढ़यां चढाने
का श्रेय जिन्हें देश की जनता
दे चुकी थी,
उसी
घराने की बहू,
दो
बच्चों की मां और देवरानी
जिसके ऊपर देश की डूबती नैया
पार लगाने का पूर्णरुप से
दारोमदार की आशाये टिकीं थीं
उस महिला ने एक पल में बिदा
होती बेटी की तरह खुद को शासन
और उसकी बागडोर पकड़ने से
इंकार कर दिया। जनता सन्न हो
गयी जैसे विलन के आने से सुखद
संगीत बंद हो जाता है और सन्नाटा
पसर जाता है। पर यह सन 2014
है
जहां सारी असलियत एक एक अध्याय
की तरह खुलकर सामने आ रही है।
जहां मनमोहन जी मात्र कठपुतली
थे। पर्दे के पीछे से पूरे
शासन की बागडोर सोनिया जी के
हाथों ही थी। ट्रेनर भी थे
मनमोहन जी राहुल गांधी के लिए।
वरना राहुल को इतना सीखने को
न मिल पाता। पर क्या सीखा ???
इतना
भाषण देने के बावजूद राहुल
का जलवा फ्लाप ही साबित हुआ
और आखिरकार,
क्लाइमेक्स
और चार्मिंग पर्सनालिटी
प्रियंका को हर बार की तरह
चुनाव प्रचार की कमान सोनिया
जी को थमानी ही पड़ी। क्योंकि
चमत्कार पसंद फैमिली गुल्ली
डंडा खेलते खेलते शतरंज की
बाजी में मात खा गयी है। अब
प्रियंका जो पार्टी के लिए
किसी चमत्कार से कम नहीं हैं।
पार्टी नारे लगायी पर दब गयी
आवाज़। आवाज थी प्रियंका को
बुलाने की पार्टी में। प्रियंका
लाओ कांग्रेस बचाओ। पर,
बेटी
आ गयी तो बेटे की राजनीति की
भूरभूरी मिट्टी की जमीन खिसक
जायेगी। इसलिए बेटे के भविष्य
के लिए बेटी के भविष्य की बलि
देती दिख रही हैं सोनिया गांधी।
एक बार फिर एक महिला,
एक
बेटी को शहादत के लिए शायद
कहीं न कहीं मजबूर किया गया
होगा। अब प्रियंका गांधी मोदी
पर वार करके कांग्रेस के पहलू
को मजबूत बनाने में जुट गयीं
हैं। वक्त अब रहा नहीं कि
बिल्डिंग को ढाह कर फिर से
बनाया जाय पर मरम्मत का काम
जारी है। दीपावली आने में बस
अब कुछ हफ्तों की ही देर है।
देखेंगें कि इस दीपावली में
मां लक्ष्मी किस पर प्रसन्न
होकर उसके घर में वास करतीं
हैं।
बात
हमने शुरु की थी विकास की।
मोदी जी ने एक दशक गुजरात को
समर्पित कर दिया। विकास की
एक ऐसी रणनीति तैयार की जिसमें
राज ठाकरे भी गुजरात के मोह
में फंस गये या मोदी के यह तो
बाद में पता चलेगा। मोदी अमूमन
एक दिन में पांच बड़ी रैलियां
अलग अलग शहरों में तो करते ही
हैं साथ ही अधिकारियों से
मिटींग,
नेताओं
से, पार्टी
वरिष्ठ गणों से,
पार्टी
की आम सभायें,
और
न जाने कितनी अनगिनत मिटिंग
करते हैं मोदी। पर,
मोदी
के दुख का सागर कम नहीं हुआ है
वो मिलने आये कई बार,
मुलाकातें
हुईं,
बातें
हुई पर इजहार की आस अमेरिका
से अभी भी बाकी है। मोदी हैं
कि बिना गुजरात के बात ना शुरु
होती है और ना खत्म। पर प्रियंका
विकास के मुद्दे पर लड़ाई
लड़ना चाहती है। मोदी पूरे
देश को गुजरात के रंग में रंग
देना चाहते हैं तो पस्त और
लहू- लुहान
कांग्रेस संजीवनी बूटी चाहती
है। हर शहर,
हर
राज्य का नाता गुजरात के धागों
से मोदी ने एकजुटता का प्रदर्शन
करने की कोशिश की है। सचमुच
कितने कामयाब हुए ये तो चुनाव
के बाद पता चलेगा। प्रियंका
अमूमन अपने भाषणों में कहती
फिरती हैं कि आप उसी को वोट
कीजिये जो आपका भला कर सके।अपने
दिमाग से सोचिये। किसी के दबाव
में मत आइये। अपना नेता खुद
चुनिये जो आपको विकास की राह
पर ले जाय। तो प्रियंका जी आप
ही सोचिये कांग्रेस के अनन्य
भक्तों के अलावा क्या देश की
55 प्रतिशत
जनता आपकी माताजी और भाई की
पार्टी या आपके पुस्तैनीय
पार्टी को वोट करना चाहेगी???
मोदी
के पास तो गुजरात माडल है पर
कांग्रेस के पास क्या दिल्ली
माडल चुनावी मार्केट में बेचने
के लायक है???
देश
के वीर सपूतों का सिर सरहद से
ले गये। परिवार सुबुकता रह
गया। देश खून के आंसू रो दिया।
पर सरकार के कानों पर जूं तक
नहीं रेंगीं। अपने गाड़ी की
एसी में सफर खुशनुमा एहसास
का एहसास करते समय बीता दिया
गया। अब गल्तियों का एहसास
हुआ है तो चिड़िया खेत चुग गयी
है। अब अगली फसल के लिए इंतजार
करना होगा।
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