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Saturday 17 May 2014

                                     मोदी  
-सर्वमंगला मिश्रा



मोदी पिछड़े जाति से आते हैं, इस बात को उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है। खुले मंच से ऐलान कर दिया कि मैं वही हूं जिसे सदियों से लोगों ने दुतकारा है। मैं वही हूं जिसे रिजर्वेशन के तराजू में सबने तौला है। मैं वही हूं जिसे किसी ने नहीं पहचाना। सबके बीच में रहा पर उबाल को ठंड़े पानी के समान शीतल बनाये रखा। मैं वही हूं जिसकी रंगत कोई भांप न सका। मैं वही हूं जिसने अपनी मां की तकलीफ को घुट –घुटकर पीया पर खून के आंसू को बहने न दिया इन आंखों से। मैं वही लाडला हूं जो चीखने में नहीं कर गुजरने में यकीन रखता हूं। मैं वही शहादत हूं जो नींव की ईंट से उठकर कंगूरा बनना पसंद करता हूं। भाईयों और बहनों मैं नरेंद्र मोदी हूं।
जनता ने मोदी के नाम का नारा पिछले एक साल से तेज कर दिया है। जिस तरह होली आने पर चारों तरफ गुलाल और अबीर हर चेहरे, हर घर और हर दिलो दिमाग को रंग देता है उसी तरह चुनाव की इस होली ने हर मजहब और हर राज्य के जिलों और गांवों के हर व्यक्ति को रंग डाला है। पर, जिस तरह कुछ लोग होली से नहीं पर उसके रंगों से खुद को दूर रखते हैं या इस पर्व में अपने आप को उन रंगों से बचाकर रखना चाहते हैं क्योंकि उन्हें कभी न कभी कुछ बुरा अनुभव हुआ था या उस डर से कि कुछ बुरा न हो जाय- एक दूरी बनाकर रखते हैं। ठीक उसी तरह चुनाव के इस महापर्व में दलगत राजनीतिज्ञों ने मोदी से दूर रहने और उन्हें परे रखने की कोशिश तो की लेकिन जब आंधी आती है तो पेड़ के पत्ते. जमीन पर पड़ी धूल, फूल की खुशबू और जहरीली महक सब एक ही उड़न खटोले पर उड़ते हैं। अपना पराया कुछ समझ ही नहीं आता। उसी तरह मोदी के ऊपर पत्थर रखने वाले या धूल की तह जमाने वाले खुद ही उस पहाड़ की चपेट में आते दिख रहे हैं और कुछ की आंखों में वही धूल गिरती नजर आ रही है। दिग्गी राजा प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। मोदी के पीछे जशोदाबेन को लेकर पीछे पड़े थे। फलस्वरुप बहन को गुजारिश करनी पड़ी कि- दादाभाई भाभी की चिता को ठंडा तो होने दिया होता। हैट्रिक मार चुकी बहन जी ने आज रेत से तेल निकालने का प्रयास कर डाला- और जाति पूछ डाली। साथ ही यह संदेश दिया कि मेरे दलित भाई बहनों भूलकर भी किसी के बहकावे में मत आइएगा। बहन मायावती जिन्दा है। वैसे भी सीनियर मोस्ट नेता सतीश चंद्र मिश्र ने कहा है कि-
चढ़ गुंडों की छाती पर, बटन दबाओ हाथी पर.......पर इस बयान में गुंडा कौन-??? सपा या भाजपा??? या सभी राजनैतिक पार्टियां।
बात यह भी विचारणीय है कि इतने दिन तक मोदी ने इस राज का खुलासा क्यों नहीं किया। अटल बिहारी जी की पूरी भाजपा टीम इस ध्वज की छांव में सदैव मार्च करती आयी है- एक बात के पीछे पड़ जाने के। फिर अगर बहन मायावती इस बात को उठा रही हैं तो क्या गलत है??? जनता यह जानना चाहती है कि आखिर ऐसी क्या मनोदशा मोदी की हो गयी कि चुनाव का सूर्य जब अपनी मध्यान अवस्था छोड़कर घर जा रहा है तब महाभारत के कृष्ण की तरह युद्धभूमि में मात्र अपने इशारे से सूर्य को उदय होने का संकेत देकर कहते हैं कि – हे पार्थ देखो कहां सूर्यास्त हुआ है। अभी तो संध्या हुई नहीं उठाओ अपना धनुष और अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो...। उसी तरह क्या मोदी के मन में पिछड़ों के प्रति ही सम्मान है बाकि जो अन्य वर्ग के लोग हैं उनके प्रति उनका कोई सरोकार या प्रेम नहीं। इसका तात्पर्य क्या हुआ कि जो सात चरण के मतदान में जिन लोगों ने मोदी को अपना समझा और प्रत्यासी को न देखकर मोदी को जिताने के लिए अपना मत डाला, उन सबके साथ क्या धोखा हुआ??? मोदी ने भावनात्मक खेल खेला है?? तो क्या जनता सचमुच माफ करेगी?? अगर मात्र यह कुर्सी की दावेदारी जताने का रंगमंच के कलाकार का सर्वोत्तम नाटक है तो जनता ताली जरुर बजा देगी पर दुबारा आपका मंचन देखने कभी न पहुंचेगी। जनता के दिल के कोने में जो किले का निर्माण हुआ है वह दीमक लगकर सदा सर्वदा के लिए ढह जायेगा। यह हुआ एक पक्ष दूसरा पक्ष यह भी कहा जा सकता है कि मोदी बनारस से चुनाव लड़ रहे हैं जहां कई दशकों से प्राय: सपा और बसपा का गढ़ रहा है। उस किले को ध्वस्त करने की नीति मोदी ने सोची या अमित शाह का गुरुवचन हो। यह तीर जो कमान में काफी सालों से तीरों के बीच छुपा हुआ था मोदी ने वक्त की नजाकत को देखते हुए छोड़ा है। यह तीर कितना असरदार होगा यह 16 मई को पता चल जायेगा। सब के डर में कितनी सच्चाई है इसकी पोल 16 मई को गोल हो जायेगी।
आजकल मोदी ने जिन द्वारा दी गयी अंगूठी पहन ली है जिसे पहनते ही वो अपने मनचाहे रुप में आ जाते हैं और सबको डराते रहते हैं। पर, जुनून, हौसला और अनुभव तीनों का समिश्रण दिख रहा है मोदी में। जुनून है कि पी एम बनना है। हौसला है कि हर ऊंची होती आवाज को दबाना है पर कैसे दबाना है यह उन्हें उनका अनुभव बता रहा है। मोदी 60 सावन से भी अधिक देख चुके हैं। जिसमें हर परिस्थिति से गुजरने के बाद हर कदम कैसे उठाना है यह उनका सफेद पका बाल और दाढ़ी उन्हें बखूबी बता रहे हैं।    
क्या मोदी ने इसलिए इतने दिन छुपाये रखा कि वह पिछड़ी जाति के हैं कि भाजपा उन्हें शुरुआती दौर में ही दरकिनार कर देती। इन्हें इतने मौके न देती। साथ ही मोदी –मोदी के नारे यूं ना लगते???? पर बाबा भीमराव अम्बेडकर जी को भला कोई कैसे भूल सकता है। क्या उनकी इज्जत कभी कम हुई थी या हो रही है। या कहीं अजीत जोगी की तरह ताश का फेंका हुआ तुरुप का पत्ता मात्र है। आजतक जोगी के पिछड़े होने पर शक है लोगों को। क्या जनता में एक भ्रमित करने वाला एक और जादूगर आ गया है।
जनता आदिकाल से ही भ्रमित हो जाती है। जैसे अपने हीरो को देखकर उसके सारे गुण अवगुण छोड़कर उसके उस मासूम भंवरजाल में आपका दिल फंस जाता है। दिल तितली की तरह एक अंजान वचन के संसार में फंस जाता है और जब सपना टूटता है तो दिल आपका आपके पास होता है क्योंकि सपना टूट चुका होता है। आप जिन्दगी की हकीकतों से रुबरु होने के लिए फिर से खुद को तैयार करने लगते हैं। पर फिर शाम होती है और एक नया जादूगर आता है और मनोरंजन कर आपका मस्तिष्क अपनी ओर खींचने में सफल हो जाता है। जिन्दगी की सुबह –शाम यूंही चलती रहती है।पर, विकास भी तो होना चाहिए क्या जातिगत विकास या धर्मगत विकास किसी देश को उन्नति के उस शिखर पर पहुंचाता है जहां से धरती गोल नजर आती है।

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