सवर्णों
का रोष और मोदी का होश –कौन चमकेगा 2019 में ?
सर्वमंगला मिश्रा2019 के पहले सालों से सोई हुई सवर्ण जाति की लगता है नींद खुल गयी है। जो पहले नहीं हुआ वो अब हो रहा है। आरक्षण की आग 1989 में वी पी सिंह के कार्यकाल में लगी थी जिससे न जाने कितने युवक युवतियां बेवजह गहरी नींद में सो गये थे। अब 2018 जब सवर्ण सड़क पर उतर कर विरोध दर्शा रहे हैं।देश उन्नति कर रहा है। पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान बनाया गया जिससे दबे कुचले लोगों के अधिकारों का हनन न हो, उन्हें बराबरी का दर्जा मिल सके। परन्तु अति हो गयी। सवाल उठता है कि सवर्णों को देश के संविधान ने क्या दिया। उच्च वर्ग के नाम पर हर अधिकार से वंचित ही रखा गया। सवर्णों को भी खुद पर कहीं न कहीं बहुत गुमान था बड़ा बनकर रहने का जिससे उन्हें कभी विरोध करने की जरुरत महसूस ही नहीं हुई। फलस्वरुप सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने जब उनकी नींद तोड़ी तो अब एहसास की परत खुलनी शुरु हुई है।सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मोदी सरकार द्वारा एससी एसटी एक्ट में संशोधन कर उसे मूल स्वरूप में बहाल करने के विरोध में सवर्ण समुदाय के लोगों ने 6 सितंबर को भारत बंद का आह्वान किया। देश के कई इलाकों में बंद को सफल कराने के लिए प्रदर्शनकारी सड़क पर उतरे। मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि राज्यों में भारत बंद कराने के लिए सवर्ण समुदाय के लोग सड़क पर उतरे। पिछली बार भारत बंद एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में दलित संगठनों ने 2 अप्रैल को बुलाया था।एसएसी-एसटी एक्ट के विरुद्ध में सवर्णों के भारत बंद को लेकर मध्य प्रदेश के करीब 35 जिलों को अलर्ट पर रखा गया था। मध्य प्रदेश में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर पूरे इंतजाम किये गये। साथ ही भारत बंद को देखते हुए मध्य प्रदेश के करीब 10 जिलों में एहतियात के तौर पर धारा 144 लगा दी गई थी।क्या है एससी एसटी एक्ट?
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचार और उनके साथ होनेवाले भेदभाव को रोकने के मकसद से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 बनाया गया था। जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में इस एक्ट को लागू किया गया। इसके तहत इन लोगों को समाज में एक समान दर्जा दिलाने के लिए कई प्रावधान किए गए और इनकी हरसंभव मदद के लिए जरूरी उपाय किए गए। इन पर होनेवाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था की गई ताकि ये अपनी बात खुलकर रख सके। हाल ही में एससी-एसटी एक्ट को लेकर आक्रोश उस वक्त सामने आया है, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के प्रावधान में बदलाव कर इसमें कथित तौर पर थोड़ा कमजोर बनाना चाहा।
सुप्रीम कोर्ट ने
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचार और उनके साथ होनेवाले भेदभाव को रोकने के मकसद से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 बनाया गया था। जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में इस एक्ट को लागू किया गया। इसके तहत इन लोगों को समाज में एक समान दर्जा दिलाने के लिए कई प्रावधान किए गए और इनकी हरसंभव मदद के लिए जरूरी उपाय किए गए। इन पर होनेवाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था की गई ताकि ये अपनी बात खुलकर रख सके। हाल ही में एससी-एसटी एक्ट को लेकर आक्रोश उस वक्त सामने आया है, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के प्रावधान में बदलाव कर इसमें कथित तौर पर थोड़ा कमजोर बनाना चाहा।
सुप्रीम कोर्ट नेअनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचार और उनके साथ होनेवाले भेदभाव को रोकने के मकसद से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 बनाया गया था। जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में इस एक्ट को लागू किया गया। इसके तहत इन लोगों को समाज में एक समान दर्जा दिलाने के लिए कई प्रावधान किए गए और इनकी हरसंभव मदद के लिए जरूरी उपाय किए गए। इन पर होनेवाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था की गई ताकि ये अपनी बात खुलकर रख सके। हाल ही में एससी-एसटी एक्ट को लेकर आक्रोश उस वक्त सामने आया है, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के प्रावधान में बदलाव कर इसमें कथित तौर पर थोड़ा कमजोर बनाना चाहा।सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी एक्ट में यह बदलाव किया था । सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के बदलाव करते हुए कहा था कि -1) मामलों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी।
2) शिकायत मिलने पर तुरंत मुकदमा भी दर्ज नहीं किया जाएगा।
3) शिकायत मिलने के बाद डीएसपी स्तर के पुलिस अफसर द्वारा शुरुआती जांच की जाएगी और जांच किसी भी सूरत में 7 दिन से ज्यादा समय तक नहीं होगी।
4) डीएसपी शुरुआती जांच कर नतीजा निकालेंगे कि शिकायत के मुताबिक क्या कोई मामला बनता है या फिर किसी तरीके से झूठे आरोप लगाकर फंसाया जा रहा है?
5) सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के बड़े पैमाने पर गलत इस्तेमाल की बात को मानते हुए कहा था कि इस मामले में सरकारी कर्मचारी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं.संशोधन के बाद अब ऐसा होगा एससी- एसटी एक्टएससी\एसटी संशोधन विधेयक 2018 के जरिए मूल कानून में धारा 18A जोड़ी जाएगी। इसके जरिए पुराने कानून को बहाल कर दिया जाएगा। इस तरीके से सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए प्रावधान रद्द हो जाएंगे। मामले में केस दर्ज होते ही गिरफ्तारी का प्रावधान है। इसके अलावा आरोपी को अग्रिम जमानत भी नहीं मिल सकेगी। आरोपी को हाईकोर्ट से ही नियमित जमानत मिल सकेगी। मामले में जांच इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अफसर करेंगे। जातिसूचक शब्दों के इस्तेमाल संबंधी शिकायत पर तुरंत मामला दर्ज होगा। एससी/एसटी मामलों की सुनवाई सिर्फ स्पेशल कोर्ट में होगी। सरकारी कर्मचारी के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दायर करने से पहले जांच एजेंसी को अथॉरिटी से इजाजत नहीं लेनी होगी।क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला?सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए एससी/एसटी एक्ट में तत्काल गिरफ्तारी न किए जाने का आदेश दिया था। इसके अलावा एससी/एसटी एक्ट के तहत दर्ज होने वाले केसों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दी थी।शीर्ष अदालत ने कहा था कि इस कानून के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी की बजाय पुलिस को 7 दिन के भीतर जांच करनी चाहिए और फिर आगे ऐक्शन लेना चाहिए।
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