राहुल की राह किस
डगर
राहुल गांधी एक ऐसा नाम जिसे पहचान की कोई जरुरत नहीं....पर आज के दौर
में जनता का विश्वास कहीं खिसक सा गया है....हाल ही में प्रधानमंत्री पद के
दावेदार नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पद के अघोषित दावेदार
राहुल गांधी और उनकी माताजी सोनिया गांधी पर चुटकी ले डाली कि अपने बेटे की बलि
जानबूझकर कोई मां नहीं चढायेगी....राहुल गांधी की स्थिति एक तरफ कुंआ तो दूसरी तरफ
खाई नजर आती है....जिस परिवार से राहुल आते हैं उस परिवार का राजनैतिक इतिहास रहा
है....हर परिवार की इच्छा होती है कि उसका चिराग उसके वंश को आगे बढाये...पर राहुल
के हालात असमंजस भरे हैं....पार्टी में आज जो भी फैसले उनके लिए लिये जाते हैं वो
सब दबाव और बेबसी की हालत में लिए जाते हैं....राहुल जब राजनीति में प्रवेश किये
तो जनसमुदाय और युवावर्ग में एक उत्साह और प्रेरणा का संचार हुआ था..एक नयी उम्मीद
की किरण दिखायी थी यह कहकर कि राजनीति करने के लिए कुर्ता पायजामा पहनना जरुरी
नहीं जींस पहनकर भी राजनीति की जा सकती है....लोग प्रियंका गांधी वाड्रा और राहुल
को कहीं न कहीं समान मानने लगे थे....पर, राहुल के शुभचिंतकों की राय उनके लिए शुभ
नहीं रही....सूर्योदय तो हुआ पर जब सूर्य को आसमान में सिर के ऊपर अपनी प्रबल
शक्ति से चमकना चाहिए था उस वक्त आसमान में सूर्यग्रहण लग गया जिसके कारण सूर्यास्त
का वक्त हो चला और सूर्य अपनी चमक बिना दिखाये अस्ताचल हो रहा है.....रात भले ही
लम्बी हो पर सवेरा जरुर होता है....
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हर पराजय के बाद कांग्रेस पार्टी आत्ममंथन करती है पर मंथन से आज तक
क्या निकला....कभी राहुल गांधी को बड़ी चुनौती के लिए तैयार घोषित किया जाता है तो
कभी प्रवक्ता और युवा नेताओं की नये कार्यभार के साथ सूची जारी कर दी जाती
है.....क्या इसे आत्ममंथन या चिंतन कहा जाता है.....अगर ऐसा है तो पानी से घी कभी
नहीं निकल सकता.....चाहे जितना सतत प्रयास कर लिया जाय.....कांग्रेस पार्टी अपनी
नीतियों के प्रति सजग व जागरुक नहीं है जिसका खामियाजा देश की जनता और पार्टी के
राजकुमार भुगत रहे हैं..... कई महान विद्वान कह गये हैं कि चुनौतियां ही नये मार्ग
प्रशस्त करती है....और सोने की परख इसी समय होती है.....दशा और दिशा पहले व्यक्ति
को खुद के लिए निर्धारण करना आवश्यक होता है....उसके बाद निर्देशन में महारथ हासिल
करने की संभावनायें बढ़ जाती है.....जिसका रोड मैप ही तैयार नहीं हो जिस योद्धा के
सेनापति और महामंत्री खुद तैयार हों बिना निर्देश के पर, नये खून में जोश ही न हो
अपनी सेना में उत्साह का संचार करने के लिए....विजयश्री कैसे उसके पास चलकर क्या
पहुंचने पर भी मुंहमोड़ लेती है......पार्टी को जीत चाहिए तो राजकुमार को गद्दीमोह
भंग करना पड़ेगा....खुद आत्ममंथन करें... अगर सचमुच उन्हें पार्टी और देश की चिंता
हो तो..... ना कि किसी की लिखी स्पीच प्रेस के सामने आकर पढ़ा करें....
सर्वमंगला मिश्रा
9717827056
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