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Friday 8 April 2016

शेरनी या शाह




सर्वमंगला मिश्रा


पं बंगाल का इतिहास अविस्मरणीय रहा है। बंगाल, जो अंग्रेजों के समय देश की राजधानी हुआ करती थी। जहां नवावों की गाथा से लेकर रवीन्द्रनाथ टैगोर की कलाकृतियां आज भी बंगाल अपने में समेटे हुए है। आज भी बंगाल की मिट्टी में नजरुल गीति समायी है तो खुदीराम बोस और नेताजी का नाम लेकर लोगों में जोश और गर्व का एहसास पनपता है। कहा जाता है कि बंगाल जो आज सोचता है पूरा देश कल सोचता है। बंगाल की दहाड़ पूरे देश में गूंजती है। पर, आजकल गुजरात के शेर अमित शाह 34 वर्षों के शासनकाल को उखाड़ फेंकने वाली तृणमूल नेत्री ममता बनर्जी के सामने दहाड़ लगाये चले जा रहे हैं। बंगाल के इतिहास में भाजपा की स्थिति शून्याकार ही रही है। भाजपा जिसने पूरे देश में अपने जीत का डंका बजा लिया है। तो अनछूये बंगाल में अपना परचम लहराना चाहती है। वहीं 34 साल तक राज करने वाली सी पी एम अपनी वापसी को आतुर है।
भाजपा जहां पीडीपी के साथ मिलकर जम्मू- कश्मीर में वहीं हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड में अपनी सरकार चला रही है। बिहार जो कूटनीतिक षणयंत्र के कारण हाथ से फिसल गया। ऐसी गलती भाजपा के तुर्रमखा दोहराना नहीं चाहते। सबसे बड़ा विधानसभा यू पी विधानसभा पर भी इसका असर साफ पड़ने वाला है। जिस तरह बिहार की जनता अपने और पराये में भेद जानती है उसी तरह बंगाल की जनता नये आगन्तुक का स्वागत सत्कार तो कर देगी पर बागडोर सौंपने में हिचकेगी।
16वीं विधानसभा के लिए चल रहा यह चुनावी रण 15वीं विधानसभा की तरह नजर नहीं आ रहा है। जिसतरह 2011 में ममता दीदी का एक मिशन था- सीपीएम हटाओ तृणमूल लाओ। अपनी तृण समान पार्टी को ऐसी बुलंदी पर ले गयीं जहां उनकी पार्टी कंगूरे कलश में जाकर विद्दमान हो गयी। धुंआधार रैलियां, एक दिन में चार-पांच रैलियां। फिर भी ममता दीदी के चेहरे पर न थकान न तनाव दिखता था।दिखता था तो सिर्फ और सिर्फ जोश, उत्साह- कुछ कर गुजरने का बंगाल के माटी के लिए, बंगाल के लोगों के लिए। इस बार टीएमसी को लगता है कि जनता उन्हें फिर चुनेगी। सीपीएम असमंजस में है तो भाजपा केंद्र की चाल चलकर बंगाल में लंकादहन करने की मनसा रख रही है। दीदी को अपने नारा- मां- माटी-मानुष पर भरोसा है। उन्हें लगता है कि बंगाल की बेटी को एक और मौका देगी उनकी मां उन्हें बंगाल के लोगों के लिए कुछ कर जाने को। विरोधी पस्त थे पिछली बार। इस पर मौके की ताक में हैं। क्योंकि अंजान राह पर भी जयकार उद्घोष हो रहा था तो सिर्फ ममता दीदी का। बंगाल की शेरनी सशक्त है इसबार। लेकिन 5 साल बाद जनसंदेश क्या निकला। बंगाल का विकास जस का तस है। लोगों को रोजगार के साधन उपलब्ध करने में आज भी वहां की सरकारें असक्षम सी दिखती हैं। एक बात है जहां बिहार और उत्तर प्रदेश में आये दिन अपहरण होते रहते हैं। बंगाल को आज भी इस दृष्टिकोण से सुरक्षा प्राप्त है। बड़े बड़े सेठ साहूकार वर्षों से कोलकाता के बड़ाबाजार से लेकर अन्य इलाकों में इतमिनान से अपना व्यापार करते हैं।
सवाल उठता है कि भाजपा ने आजतक बंगाल के लिए या बंगालवासियों के लिए क्या किया है। जो जनता उनसे प्रभावित होकर पुराने घटक दलों को छोड़कर अन्य पार्टियों पर फोकस करे।गुंडागर्दी, दादागिरी बंगाल में भी चलती है। दुर्गापूजा के समय मनमाने ढंग से कई जगह वसूली की वारदातें सामने आयीं। पर, आज भी वहां मानव चरित्र जिंदा है। परोपकार, अपनेपन की भावना मरी नहीं है। देश के दूसरे राज्यों की तरह बंगाल का किसान फसल खराब होने से परेशान नहीं है। अच्छी फसल होने के बावजूद कंगाली हालत में जीने को मजबूर है। अर्थात् किसानों की ओर राज्य सरकार ने ठीक से ध्यान केंद्रित नहीं किया। वहीं केंद्र की सरकार ने ऐसे क्या कदम उठाये गरीब किसानों के लिए जिससे उनकी पनपती दुर्दशा का अंत हो। योजनायें लागू करना अलग बात है। पर, उन योजनाओं का फायदा कितने प्रतिशत किसानों को केंद्र सरकार पहुंचाने में सफल हो सकी।
इतिहास गवाह है भाजपा ने आज तक 1 या 2 सीटों से ज्यादा अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करा पायी है। ऐसे में भाजपा के लिए बंगाल गले की हड्डी है। यहां न तो मोदी जी की रैलियों का असर होता है न अमित शाह के जुझारुपने का। देश के प्रधानमंत्री जो विदेश दौरे पर आये दिन रहते हैं। मात्र उन्हें देखने की ललसा से लोग उनकी रैलियों में शामिल होते हैं। उधर अब फारवर्ड ब्लाक का भी असर समाप्त सा हो गया है। बंगाल की लड़ाई में आमने –सामने सीपीएम- सीपीआईएम और तृणमूल कांग्रेस के बीच है। पूरा देश का हाल देखने के बाद बंगाल के लोग रिस्क नहीं लेना चाहते। सवाल बहुत है- क्या ममता दीदी की वापसी गारंटी है। या विकास न होने से झल्लायी जनता पुरानी सरकार को फिर से बहुमत में लाने का गुणा भाग कर रही है।
भाजपा का मजबूत तंत्र बंगाल. बिहार और ओड़िसा में आसानी से अपनी पैठ नहीं बना सकता। स्थानीय चेतना मुक्त है। जिससे बाहरी चेतना को रग रग में पहुंचने के लिए काफी मशक्कत करनी होगी। तब शायद जिस तरह दीदी ने 34 साल बाद लाल रंग को हरे रंग में तब्दील किया उसी तरह तृण को हटाने में शायद अभी भाजपा को न जाने कितने साल लगेगें। देखने में वो एक तृण है पर उसकी जड़े अंदर काफी मजबूत है जहां कमल को अभी अपने बीज सही स्थान पर लगाना है।

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