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Wednesday 27 July 2016

महिलाओं में कुपोषण क्यों...?




 सर्वमंगला मिश्रा

कहा जाता है- स्वस्थ शरीर में स्वस्थ दिमाग का वास होता है। स्वस्थ शरीर के लिए आवश्यक होता है पोषक आहार- यानी सम्पूर्ण विटामिन युक्त भोजन । भोजन हम सभी करते हैं। भोजन के अभाव में इंसान को कई बीमारियां घेर लेती हैं। रोगों का जमावड़ा शरीर में हो जाता है पर असर तन, मन और धन सबपर पड़ता है। यूं तो जीवन को भोजन के बिना संभव नहीं पर, इसका ज्यादातर शिकार बच्चे और महिलाएं होते हैं। बच्चों की देखभाल तो उनके मां बाप फिर भी कर लेते हैं। लेकिन, उन महिलाओं की यह बीमारी दूर नहीं हो पाती  जिनके ऊपर पूरे घर को संभालने का भार उन पर होता है। इसी कारण महिलायें सबकी पसंद नापसंद का ख्याल रखते रखते अपने स्वास्थ्य पर ध्यान ही नहीं दे पातीं या खुद को इग्नोर करना उनकी आदत और मजबूरी बन जाती है। ऐसे में कुपोषण महिलाओं में बढ़ता जाता है। जिससे उनका स्वास्थ्य खराब होने लगता है और वक्त से पहले झुर्रियां, बुढ़ापा , मानसिक कमजोरी, थकान  जैसी बीमारियां आम होने लगती हैं।
आज भले ही महिलाओं की जीवन शैली पुरुषों से थोड़ी मिलती जुलती हो गयी है । पर एकसमय था जब महिलाओं का जीवन 75- से 80 प्रतिशत रसोईघर में ही व्यतीत होता था। पहले महिलाएं आज की तरह घर के बाहर काम करने नहीं जाती थीं। आज घर के बाहर उनका भी उतना समय ही व्यतीत होता है जितना पुरुषों का। कई कामकाजी महिलाएं आज भी दोनों दायित्व निभाने में अपनी मार्डन जीवन शैली का परिचय देने में समझदारी मानती हैं। साथ ही आजकल जीरो फिगर से लेकर फिट दिखने की प्रक्रिया में महिलाएं खाने में इतनी कमी कर देती हैं कि आर्थिक रुप से मजबूत होने के बावजूद वो कुपोषण का शिकार हो जाती हैं। वहीं आर्थिक तंगी से जूझने के कारण भी अधिकतर महिलाएं इसका शिकार हो जाती हैं। ऐसा भी देखा जाता है कि जब परिवार किसी वजह से आर्थिक तंगी या किसी मानसिक उलझन से गुजरता है तो ऐसे वक्त में महिलाएं भोजन का ही सर्वप्रथम त्याग कर देती हैं। ताकि बुरा वक्त बीत जाय। साथ ही घर के बाकी लोगों को भूखा न रहना पड़े। पर भूखे पेट रहने से स्नायु तंत्र प्रभावित होता है । दिमाग के साथ साथ शरीर की अन्य ग्रंथियों पर भी इसका असर पड़ता है। जब यही प्रक्रिया जीवन में लगातार चलने लगती है तो, उसका असर व्यापक होने लगता है। मानसिक उलझन बढने लगती है। याददास्त पर असर पड़ने लगता है। शरीर में थकान,कमजोरी जैसी चीजें असर करने लगती हैं। हड्डियां कमजोर होने लगती हैं। ग्लैंड्स कमजोर होने लगते हैं। जिसके फलस्वरुप तरह तरह की बीमारियां वक्त से पहले घर कर लेती हैं। महिलाए जाने अंजाने में घुटनों का दर्द, नर्वस सिस्टम में वीकनेस जैसी तमाम बीमारियों को आमंत्रित कर लेती हैं ।

लाइफस्टाइल महिलाओं की अजब गजब होती है और कुछ ऐसा बना भी लेती हैं। आज लोगों को होटल, रेस्टोरांट्स में खाने का इतना शौक बढ़ गया है कि घर का पोषणयुक्त भोजन रास ही नहीं आता। होटल, रेस्टोरांट्स, ढाबा या सड़क पर खड़े खोमचे वाले कितना पोषित आहार आपको परोसेंगें। इसका अंदाजा हम सब आसानी से लगा सकते हैं। क्योंकि यह सभी व्यवसाय करने उतरे हैं। हमारे स्वास्थ्य का ध्यान तो स्वयं को ही रखना होगा। एडवरटिजमेंट भले आये कि इस दुकान में फ्रेश फूड ही मिलता है पर असलियत बहुत बार आंखें खोलकर मिचने जैसी स्थिति हो जाती है। फुटपाथ पर खड़े होकर शान से गोलगप्पे खाना जहां उसके पीछे मक्खियों का अंबार और कचरा पीछे जमा रहता है क्या उसका असर हमारे स्वास्थ्य पर नहीं पड़ता ?  प्रधानमंत्री मोदी ने स्वच्छता अभियान तो पूरे देश में चलाया है पर अभी भी देश मानसिक रुप से इन चीजों को ग्रहण नहीं कर पाया है। फलस्वरुप लोग आज भी खुले में जहां तहां शौच करते हैं और वहीं एक टिक्की वाला, लिट्टी वाला, पास में दुकान लगाये आपकी भूख को आमंत्रित करता है।

महिलाएं बाहर खाने में शान महसूस करती हैं। जिसके दो कारण हैं। पहला उन्हें खाना बनाने के झंझट से मुक्ति मिलती है और दूसरा नये नये क्यूजिन ट्राई करने को मिलता है। लोग अब चाउमीन, मैगी के साथ जीवन जीने के आदि से हो गये हैं। मैक डी हो या के एफ सी, फेवरेट हो गया है। आजकल पार्ट्री और ट्रीट के चक्कर में भी ज्यादातर रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ भी घर के बाहर ही खाना होता है। लव अफेयर के चक्कर में भी महिलाएं जब अपसेट होती हैं तो खाना पीना ही छोड़ देती हैं जिससे चिड़चिड़ापन बढने लगता है। आमतौर पर आज महिलायें फैशन और ट्रेंड में आगे होने के लिए अल्कोहल और सिगरेट जैसी वस्तुओं का सेवन भी उनकी अंतडियों को डैमेज कर देता है। आफिस की झुंझलाहट और वर्क लोड भी वजह होती है जो समय पर खाना पीना नहीं हो पाता। कुछ का वर्किंग आर्स यू.एस शिफ्ट के अनुसार चलता है। जिसका तात्पर्य जब हमारे यहां रात होती है तो विदेश में सुबह होती है। सूर्यास्त के बाद भोजन करने से पाचन तंत्र उतने सही से काम नहीं करता जितना सूर्योदय होने के बाद काम करता है। डाइजेशन कमजोर होने लगता है जो लोग देर रात में भोजन करने के आदि होते हैं या रोजमर्रा में उनकी आदत हो जाती है।

गांव में रहने वाली महिलाओं की जीवन शैली शहरों से हटकर होती है। परंपरागत और पुरानी शैली के अनुसार आज भी बहुत से घरों में बड़े बजुर्गों, बच्चों और घर के बाकी सदस्यों को खिलाने के बाद ही महिलाएं स्वयं खाने बैठती हैं। खाना है तो ठीक वरना जो बचा हुआ खाना खाकर ही आत्मसंतुष्टि का बोध करना चाहती हैं। आज भी बड़ों के सामने घूंघट में रहने वाली महिलाएं बहुत हद तक पोषित खाने के विषय से अनभज्ञ हैं। वो नहीं जानती कि नाश्ते में क्या भोजन लेने से उन्हें ऊर्जा की प्रप्ति होगी। आमतौर पर किसानों का परिवार ग्रामीण इलाकों में रहते हैं। जहां अनाज की पैदावार की फसल के ऊपर ही परिवार निर्भर रहते हैं। धान की पैदावार होती है तो चावल और गेंहूं की समय रोटी, फल और सब्जियां भी मानसून पर निर्भर करता है। फसल अच्छी हुई तो किसान परिवार का पेट भर पाता है। वरना गरीबी और भूखमरी की चपेट में महिलाओं का जीवन शेष हो जाता है। चूंकि महिलाएं उतनी बलिष्ठ नहीं होती। उन्हें एनीमिया की बीमारी जल्दी हो जाती है। जिसके लिए उन्हें अनार, फल दूध जैसी चीजें ज्यादा खाना चाहिए होती हैं। पर आर्थिक तंगी के कारण महिलाएं फिर संकुचित हो जाती है और जैसे तैसे जीवन यापन करना उनकी मजबूरी हो जाती है।

एक पहलू और ध्यान देने योग्य है। आसा नहीं है कि दुबले पतले लोग ही कुपोषण का शिकार होते हैं। मोटे मोटे लोग भी इसकी चपेट में आ जाते हैं। कई लोग सिर्फ अपनी पसंद की चीजें ही खाते हैं जिनमें अंकुरित चने, मूंग, सीजनल फल, दूध  जैसी चीजों का अभाव रहता है। पेट तो भर लेते हैं। शाही भोजन भी कर लेते हैं पर सुपाच्य और विटामिन युक्त भोजन से कोषों दूर रह जाते हैं। कई बार प्रेग्नेंसी के बाद भी महिलाएं में यह बीमारी पायी जाती है। इसलिए उनके स्वास्थ्य का भरपूर ख्याल रखा जाता है। अमूमन 56 प्रतिशत महिलाएं कुपोषण का शिकार होती हैं जिनमें से अधिकतर विवाहित होती हैं।

महिलाओं को अधिक मात्रा में आयरन, प्रोटीन, विटामिन ए, सी, फैट आदि की मात्रा अधिक होने चाहिए। फाइबर युक्त भोजन अवश्य करना चाहिए। ग्रामीण इलाकों के लोग चोकर जैसी चीजों से प्राप्त कर लेते हैं। शहरी लोग फल, अनाज, ड्राई फूट्स के जरिये इनर्जी प्राप्त करते हैं। खाने में कैल्शियम की मात्रा अधिक होनी चाहिए। क्योंकि डाक्टर यह बताते हैं कि कैल्शियम शरीर में स्टोर नहीं रहता। जिसकी आवश्यकता हर इंसान को रोजमर्रा के तौर पर जरुरत होती है। इन सब के अलावा शुगर, कार्बोहाइड्रेट की कमी भी पूरी करते रहना चाहिए। आसानी से दो तीन चीजों का ध्यान रखकर शरीर को चुस्त रखा जा सकता है। 1. चना -अंकुरित हो या भूना हुआ-  जो आपको आंतरिक ऊर्जा प्रदान करता है। इसके अलावा मौसमी फलों का सेवन और आयरन के लिए अनार और रोज के खाने में चावल और हरी सब्जियों के द्वारा कुछ हद तक इस बीमारी को दूर किया जा सकता है। आजकल जिस तरह तरबूज, आम, अंगूर, खीरा, जामुन आदि फल पर कांसंट्रेट कर स्वास्थ्य को हम महिलाएं सुखद बना सकता हैं।


























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