अन्ना हजारे पालिटिकल गुरु हैं अरविंद केजरीवाल
के
-Sarvamangala Mishra
9717827056
साधारण व्यक्तित्व वाले अन्ना हजारे जिनका जन्म
15 जून 1937 को किसान परिवार में हुआ था....परिवार पर कष्टों का
बोझ देखकर वे दादर स्टेशन के बाहर एक फूल बेचनेवाले की दुकान में 40 रुपये के वेतन पर काम करने
लगे। इसके बाद उन्होंने फूलों की अपनी दुकान खोल ली और अपने दो भाइयों को भी
रालेगन से बुला लिया। वर्ष १९६२ में भारत-चीन युद्ध के बाद सरकार की युवाओं से
सेना में शामिल होने की अपील पर अन्ना १९६३ में सेना की मराठा रेजीमेंट में
ड्राइवर के रूप में भर्ती हो गए। अन्ना की पहली नियुक्ति पंजाब में हुई....१९६५
में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अन्ना हज़ारे खेमकरण सीमा पर नियुक्त थे... १२
नवंबर १९६५ को चौकी पर पाकिस्तानी हवाई बमबारी में वहां तैनात सारे सैनिक मारे गए.....इस
घटना ने अन्ना के जीवन को सदा के लिए बदल दिया। इसके बाद उन्होंने सेना में १३ और
वर्षों तक काम किया। उनकी तैनाती मुंबई और कश्मीर में भी हुई। १९७५ में जम्मू में
तैनाती के दौरान सेना में सेवा के १५ वर्ष पूरे होने पर उन्होंने स्वैच्छिक सेवा
निवृत्ति ले ली। वे पास के गाँव रालेगन सिद्धि में रहने लगे और इसी गाँव को
उन्होने अपनी सामाजिक कर्मस्थली बनाकर समाज सेवा में जुट गए ।
सीधी छवि वाले इस व्यक्ति ने रालेगन सिद्धि में
लोगों को शराब से मुक्त करने का बीड़ा उठाकर एक परिवर्तन की लहर जो दौड़ाई....वो
लहर रामलीला मैदान में 5 अप्रैल 2011 में पूरे देश ने देखा....उनका जूनून, उनका
देश प्रेम, जहां किरण बेदी, प्रशांत भूषण और केजरीवाल की धूम रही...छवि निखरी
केजरीवाल की....केन्द्र की सरकार ने जब आनाकानी की तब यूपीए की सरकार ने जैसे तैसे
एक समिति बनाकर
संभावित खतरे को टाला और १६ अगस्त तक संसद में
लोकपाल विधेयक पास कराने की बात स्वीकार कर ली
संसद द्वारा अन्ना की तीन शर्तों पर सहमती का प्रस्ताव पास करने के बाद २८
अगस्त को अन्ना ने अपना अनशन स्थगित करने की घोषणा की।
पर 16 अगस्त 2012 को अन्ना की गिरफ्तारी से पूरे देश में कोलाहल
मच गया...जेल भरो आन्दोलन...से देश की सत्ता हिलने सी लगी.....3 दिन बाद रिहा हुए
अन्ना पर आन्दोलन देशव्यापी चलता रहा.... पटना में गाँधी मैदान के पास कारगिल चौक
से लेकर डाकबंगला चौराहा और बेली रोड तक अलग-अलग जत्थों में लोग सड़कों पर निकले।
जिनमें रोष था किंतु वे हिंसा या तोड़फोड़ जैसी कार्रवाई नहीं कर रहे थे।
उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में उच्च न्यायालय के अधिवक्ताओं ने हड़ताल कर दिया।
जयपुर में अन्ना के समर्थन में उद्योग मैदान में तीन दिनों का क्रमिक अनशन करने का
निर्णय लिया। चंडीगढ़, कोलकाता, बिहार, पंजाब और हरियाणा में
विभिन्न हिस्सों उनकी लड़ाई
जारी रहेगी। असली अनशन पूरी लड़ाई जीतने के बाद टूटेगा। लड़ाई पूरी होने तक पूरे
देश में घूमूंगा। उन्हें विश्वास था कि उनके माध्यम से सामने लाए गए जनता के
मुद्दों से संसद इंकार नहीं करेगी। अन्ना ने कहा - कि बाबा साहेब अम्बेडकर के बनाए
संविधान के तहत इस देश में परिवर्तन लाना है। हम भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण
कर सकते हैं। लम्बी लड़ाई आगे है। किसानों का सवाल है, मजदूरों का सवाल है.... पर्यावरण, पानी, तेल जैसे तमाम मुद्दे हैं। गरीब
बच्चों की शिक्षा का सवाल है। हमें चुनाव सुधार भी करने हैं। पूरी व्यवस्था बदलनी
है। हमारा असली अनशन इस पूरे बदलाव के बाद ही टूटेगा.... आज देश में इतना बड़ा
आंदोलन हुआ, लेकिन पूरी तरह अहिंसक...दुनिया के सामने अन्ना ने एक मिसाल रखी
...कि आंदोलन कैसे करना चाहिए...लोगों को गांधी की याद पल पल आती रही....और अन्ना
का पथ उनके साफ कुर्ते की तरह चमकता और प्रशस्त होता गया....
अन्ना
ने शेयर किया मंच-
अन्ना
अपने अनशन के द्वारा देश की भावना को निचोड़ लिये और भावनात्मक रुप से अफने
करोड़ों शिष्य बना लिये...वहीं आमिर खान, जनरल वी.के सिंह जैसी हस्तियों का साथ
पाकर अन्ना की गरिमा में चार चांद इमानदारी के लगते गये....किरण बेदी ने अपना
रास्ता तलाशा और हारकर अन्ना को छोड़ गयीं....पर, किरण बेदी का रुख पार्टी बनाने
के बाद धीरे –धीरे साफ हो रहा था...कि वो अरविंद के इस फैसले से कहीं न कहीं आहत
हैं....
केजरीवाल
ने बनायी पार्टी-
2012,
26 नवम्बर को अन्ना के बिना समर्थन के केजरीवाल ने एक पार्टी का गठन किया पर, गुरुजी ने खुद को बिल्कुल दूर
रखा...कहा किसी भी पॉलिटिकल पार्टी से कोई मतलब नहीं....
गुरु
–शिष्य में अनबन-
क्या
गुरु और शिष्य में अनबन हो गयी....कई बार ऐसी खबरें आयी पार्टी गठन पर, फन्ड को
लेकर, फन्ड के दुरुपयोग को लेकर....दरार बड़ी नजर आयी....कभी न भर पाने वाली....
पर,
शिष्य कौन और गुरु कौन....बड़ा सवाल देश की जनता के मन में कौतुहल पैदा करता
है....अन्ना ने कभी भी स्पष्ट तौर पर केजरीवाल का विरोध न कर ढंके –तुपे शब्दों
में किया ...जनता इस व्यवहार से कहीं न कहीं कन्फ्यूज रही कि आखिरकार माजरा क्या
है....????
10 दिसम्बर
2013 अन्ना हजारे ने एक बार फिर अनशन प्रारम्भ किया...तो गोपाल राय को उनके गुस्से
का सामना करना पड़ा....जिसके लिए अगले ही दिन केजरीवाल रालेगण सिद्धी रवाना हो गये
अन्ना को मनाने.....क्या मनाना एक बहाना था...या आगे की रणनीति को पाक-साफ बनाना
था.....
राहुल से बढ़ी घनिष्ठता-
राहुल
गांधी ने अन्ना को अपना बनाने की कोशिश की तो अन्ना ने तिलक लगाकर उनका स्वागत
किया....और अपने शिष्य केजरीवाल को दरकिनार कर दिया....और देश के सामने एक नयी
स्थिति खड़ी कर दी....बिना जनलोकपाल को पढ़े ही अन्ना राहुल की बात मानकर अनशन
तोड़ दिये और केजरीवाल ने कहा- अन्ना को भुलवा दिया गया....उन्हें पता ही नहीं कि
कांग्रेस उनके साथ धोखा कर रही है.....
"We are committed to provide a strong Lokpal system to
the country," Rahul Gandhi
"I welcome your commitment. I request you to include the
recommendation of the select committee in the bill and include any other points
to make the Lokpal bill strong," -Anna Hazare
28 दिसम्बर
2013 को केजरीवाल ने दिल्ली के सीएम के रुप में रामलीला मैदान में शपथ ली....अन्ना
उपस्थित नहीं हुए...बीमारी का बहाना बनाकर.....पर बधाई देकर अपनी गरिमा पर आंच
नहीं आने दी.....
क्या अन्ना
और केजरीवाल सचमुच एक दूसरे के पूरक हैं या छुपी हुई राजनीति कर रहे हैं और देश की
आंखों में धूल झोंक रहे हैं.....आखिर अन्ना हैं किसके फेवर में....??? केजरीवाल, राहुल गांधी, किरण बेदी या
सिर्फ जनलोकपाल बिल....???? समय –समय पर अपनी रणनीति बदलने वाले
अन्ना क्या कहीं भटक गये हैं...और राजनीति का रंग उन पर चढ़ गया है.....मीडिया का
चस्का लग गया है...????? देश को भ्रष्टाचार से मुक्त कराने का बीड़ा शायद अन्ना हजारे जी
कहीं न कहीं दिमाग के सब –कांश्शस मांइड में चला गया है....अन्ना छुपे छुपाये तौर
पर केजरीवाल को छोड़कर किसी को भी अपने साथ जोड़े रखने में सक्षम साबित नहीं
हुए....किरण बेदी ने भी भाजपा का रुख कर लिया....
अन्ना ने
ममता के साथ-
अपने शिष्य
को भूलकर अब प्रचारक बन गये हैं...अन्ना...उन्होनें ममता दीदी के कैंम्पेन के लिए
तैयार हो गये...पर एक शर्त भी रखी है- 17 बिन्दुओं के ऐजेन्डे पर सहमति दोनों तरफ
से बनती है तो “आप” के लिए किनारा कसते अन्ना अब “टीएमसी” के लिए प्रचार करेंगे....इसका क्या
मतलब है भाई...एक कहावत आपने भी सुनी होगी- गुड़ खाये गुलगुला से परहेज.....
आखिरकार,
केजरीवाल के इस्तीफे के बाद अन्ना ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया.....यही अन्ना
केजरीवाल के खिलाफ भी बोलते हैं और बेटे की तरह पक्ष भी लेते हैं.....और खुलकर
स्वीकार भी नहीं करते कि केजरीवाल उनके पक्के शिष्य हैं......अन्ना कहीं केजरीवाल
के लिए लोकसभा चुनाव की पृष्ठभूमि में जाने या अनजाने कहीं गढ्ढा तो नहीं खोद
दिये...या नया मैदान रंगने की कोशिश कर रहे हैं...जहां चित भी मेरी और पट भी ....
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