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Tuesday 4 February 2014



               केजरीवाल और अरविंद केजरीवाल

 


केजरीवाल दिल्ली के सी एम हैं..उन्हें अपने पद और गरिमा का ध्यान रखना चाहिए.....जी, ये बयान है शिंदे साहब का....जिन्होंने केजरीवाल को एक अनौपचारिक हिदायद दी और साथ ही अपने बुजुर्गियत का परिचय भी करवाया है....ऐसा शायद पहली बार हुआ है कि एक मुख्यमंत्री सड़क पर उतरकर जनता के साथ आन्दोलन किया..... आन्दोलन करना बुरी बात नहीं और इससे जनता का समर्थन और विश्वास अपने लीडर के प्रति बढ़ जाता है...कि उसका नेतृत्वकर्ता आज भी उसी तर्ज पर काम कर रहा है और उनसे भावनात्मक तौर पर जुड़ा हुआ है....एक नेता के तौर पर ये संतोषजनक बात होती है.....सवाल अब ये उठता है कि केजरीवाल का सड़क पर उतरना कितना जायज था....इसके दो पहलू दिखते हैं...पहला- दिल्ली पुलिस सरकार के अधीन क्यों नहीं है....दूसरा और बहुत अहम प्रश्न कि क्या मंत्री की बात पुलिस को बिना किसी सवाल के आदेश का पालन करना चाहिए....
पुलिस स्वछन्द रहे या सरकार के अधीन.....अगर दिल्ली पुलिस सरकार के अधीन नहीं है तो किसके अधीन है...
सेंट्रल....तो वर्दियों पर डी की जगह सी लिखना चाहिए....वैसे आज तक मंत्रियों और नेताओं के घुसपैठ के कारण ही पुलिस तंत्र की दशा इतनी बिगड़ी हुई है....हां याद आया जनरल डायर- जलियांनवाला बाग, जिसमें एक आदेश फायर पर न जाने कितनी मौतें हुई थीं.....जनरल डायर तलब हुए थे अंग्रेजी हूकूमत के सामने कि ऐसा उन्होनें किसके आदेश पर किया.....पुलिस तंत्र उस जमाने में कितना कठोर और शासनप्रिय होने के बावजूद जलियावाला बाग हत्याकाण्ड इतिहास के पन्नों में लाल स्याही से लिखा गया....16 दिसम्बर 2012 के शर्मनाक व घृणित हादसे के बाद दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का बयान था दिल्ली पुलिस हमारी सरकार के अधीन नहीं है....इसका क्या मतलब निकाला जाय कि राज्य की सुरक्षा की जम्मेवारी किसके कंधों पर है....फिर होम मिनिस्ट्री में हो क्या रहा है....क्या विभागों का वर्गीकरण और नामकरण मात्र दिखावा है झांसा है... इन विभागों का गठन सिर्फ जनता को धोखा देने के लिए  किया जाता है ....जनता के पैसों का जनता के नाम पर दुरुपयोग...तो नेतृत्व की कमान जनता के हाथों में होनी चाहिए ना कि लीडरों के हाथ.....सभी लीडर्स की कार्यक्षमता और सोच समान नहीं होती...सोमनाथ को एक बार तलब कर मामला समझने की जरुरत नहीं समझी केजरीवाल जी ने.....धरने के बाद पुलिस वालों को छानबीन होने तक छुट्टी पर भेंज दिया गया...क्या इसे जमीन से जुड़े और जनता की आवाज बनने वाले केजरीवाल जी का अहंकार समझा जाय....जिसके लिए उन्होंने दिल्ली की जनता को बेवजह परेशानी का सामना करवाया.....आम से खास बन चुके केजरीवाल जी क्या जनता और उसकी जरुरतों से ऊपर उठ चुके हैं और अब उन्हें फिक्र है तो सिर्फ अपने और अपने मंत्रीमंडल की...जिसके मान में हुई चूक का बदला रेलवे भवन के सामने दिया गया धरना था...पर, जनता के शब्दों का सम्मान करने वाले केजरीवाल जी ने इस बार इस धरने को प्रारम्भ या अंत करने की अनुमति ली??????? केजरीवाल ने कमिश्नर को अपने मुख्यमंत्री होने का एहसास दिलाने की भी कोशिश की और कहा –कमिश्नर को मैं देख लूंगा....इसपर बुजुर्ग और अनुभवी कांग्रेसी नेता और गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने केजरीवाल को उनके पद और गरिमा की याद दिलायी...क्योंकि आनंदोलनकर्ता से मुख्यमंत्री रातोंरात बन जाने से हड़बड़ाहट में शायद केजरीवाल जी भूल गये हों कि वे अब दिल्ली जैसे राज्य के मुख्यमंत्री पद को शोभायमान कर रहे हैं.....जिसतरह अटलबिहारी जी संसद में बोलते- बोलते भूल गये संसद में और बोल गये प्रधानमंत्री जी...जबकि वो उस वक्त स्वयं प्रधानमंत्री थे.....अनुभवी राजनीति के विशारद इसे बचपना या ओछापना कहने से नहीं हिचकिचा रहे....ऐसे में केजरीवाल जी को एक एक कदम फूंक-फूंक कर रखना होगा....लम्बी राजनीति के लिए हड़बड़ाहट नहीं शांतचित्तता और संतुलित मानसिकता गंभीर व दूरगामी राजनीति में सहायक होती है.....
सवाल जस का तस खड़ा है पुलिस तंत्र को क्या स्वछंद कर कार्य करना चाहिए....या किसी बंधन में नौकरशाहों की जी हजूरी करनी चाहिए.....अगर दिल्ली राज्य की पुलिस दिल्ली सरकार के अधीन नहीं है तो भारत के हर राज्य की यही गरिमा होनी चाहिए....फिर पुलिस तंत्र की जिम्मेवारी किसके सिर......कौन लेगा हर राज्य में होने वाले कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी और जवाबदेही.....जिसतरह केजरीवाल के सी एम बनने के बाद भी जेड सिक्यूरिटी की सुरक्षा लेने से इंकार करते रहने के बावजूद पुलिस मुहकमा अपनी जिम्मेदारी समझते हुए उन्हें सुरक्षा प्रदान करता आया है क्या इसी तर्ज पर बाकी फैसले लेने में पुलिस मुहकमा सक्षम है तो इससे बेहतर बात और क्या हो सकती है....जिसके फलस्वरुप एक नये भारत का गठन देखा जा सकता है....लोकतंत्र को नयी मजबूती और मनमाने नेताओं के लिए चुनौती के तौर पर देखा जा सकता है....जिससे सभी अपने अपने जिम्मेदारियों के प्रति जनता के सामने जवाबदेह होंगे....पर राज्य या देश इस तरह सबके मनमाने रवैये से नहीं एकजुटता, सहमति और निष्पक्ष होकर निर्णय लेने की क्षमता ही व्यक्ति को खास बनाती है और समाज के विकास में उन्नति के नये मार्ग प्रशस्त करती है.....

सर्वमंगला मिश्रा
9717827056

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