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Monday 24 February 2014

       आम का सीजन कितना लम्बा...???

-सर्वमंगला मिश्राpassport pic.jpg
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साल 2014 बहुत मायनों में महत्तवपूर्ण है...लोकसभा चुनाव, जिसका असर अगले साल होने वाले कई राज्यों के विधानसभा चुनावों पर पड़ेगा...इसलिए पश्चिम बंगाल और बिहार जैसे राज्य अपना दमखम लगायेंगें...ताकि राज्यों में उनकी धाक बनी रहे....ध्यान देने वाली बात है कि ममता दीदी ने प. बंगाल में अभी अपनी पहली पारी पूरी नहीं की है....इसलिए वर्चस्व की लड़ाई उनके लिए खासी मायने रखती है....34 वर्षों के उपरांत हाथ आयी सत्ता को यूं ममता दीदी नहीं गवां सकेंगी....जिसके लिए उन्होनें बंगाल की आबो हवा बदल दी उस हवा के रुख का रिमोट दीदी अब अपने हाथ में रखना चाहती हैं....उधर दोहरा शतक लगाकर हेट्रिक की तैयारी में जुटे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पटखनी देने की तैयारी में जुटे लालू प्रसाद यादव कांग्रेस से जोड़- तोड़ कर चुके हैं....तो नीतीश कुमार तिमुहाने पर खड़े नजर आ रहे हैं....साल की अमूमन सबसे बड़ी राजनैतिक लड़ाई जो आप ने छेड़ी है...उससे चुनावी मशाल अब धधकने लगी है....आलिशान जनसभायें और उनमें टिकट लेकर एंट्री करते लोगों की कहानियों ने भले बीजेपी के घोषित प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी को लोकप्रियता की मार्केटिंग स्टंट स्ट्रैटेजी के जरिये कुछ सीढियां ही चढाई थीं, मोदी लोकप्रियता की चादर अभी ठीक से ओढ़ ही रहे थे कि दिल्ली की सत्ता में आकर केजरीवाल ने नये युग का आगाज सा कर दिया....जहां नेता, मंत्री की नहीं जनता की सरकार है ....यह कहकर मरी हुई आशा में जैसे किसी ने पेट्रोल डालकर माचिस की तीली फेंक दी हो...जिससे नया पैंतरा नाकारा सा साबित होता दिखने लगा... क्योंकि अरविंद केजरीवाल ने शंखनाद कर युद्ध का समय सुनिश्चित वक्त से पहले ही घोषत कर दिया....दिल्ली की जनता का दिल जीतकर केन्द्र की राजधानी की गद्दी पर-“ साडडा हक इत्थे रख”- कहकर ही नहीं करके भी दिखा दिया है....पर, सवाल उठता है कि क्या यही साड्डा हक दिलाने में पूरे देश की जनता उनकी उतनी ही मदद करेगी जितनी दिल्लीवासियों ने की....???
उधर कई राज्यों में धुआंधार औंधे मुंह गिरने के बाद कांग्रेस और सोनिया के इकलौते वारिस राहुल गांधी जिनकी पार्टी के भीतर और बाहर कभी खुशी कभी गम का शो जनता के सामने आता जाता रहता है....कभी लोग राहुल की भावनात्मक स्पीच सुनकर तारीफ के पुल बांध देते हैं तो कभी आर्डिनेंस फाड़कर फेंकने को बचकना और बेवकूफी भरा कदम बताकर उन्हें हाशिये पर लाकर खड़ा कर देते हैं...कांग्रेस की नीतियों से त्रस्त आम जनता 360 डिग्री घुमकर हर पार्टी थियेटर में अलग- अलग ड्रामा देखती है....जमाना काफी अडवांस हो गया है तो नुक्कड़ नाटक और घूम –घूमकर अपनी कला का मंचन करने वाले नेता भी नजर आ जाते हैं....जनता समझदार है तो कहीं न कहीं भ्रमजाल में भी फंसी नजर आती है...क्या करे कहां जाये जनता....??नये बर्तनों की चमक आपस में टकराने से एक स्पर्धा तय हो जाती है...जिससे आपसी फूट कहीं न कहीं जन्म ले चुकी होती है....ऐसे में पार्टी पर विश्वसनीयता का सवाल मुंह बाये खड़ा हो गया है....कांग्रेस, बीजेपी जैसी पार्टियां तो चिंतन शिविर लगाती हैं पर केजरीवाल के पास अब उसका समय भी नहीं है....क्योंकि बच्चा जब छोटी उम्र में काफी लम्बा हो जाये तो दिखता तो  लम्बा है पर उसकी समझ और पकड़ आम बच्चों की तरह ही होती है...जिससे कुछ लोगों को धोखा हो जाता है....उसके बड़प्पन का....फिर ये तो इतने बड़े देश का सवाल है....साथ ही अराजकता, भुखमरी, मंहगाई और अनियमितताओं से थकी जिन्दगी का काफिला किसके कंधों पर सिर रखकर रोये....ऐसे कठिन समय में एक चमत्कारी विकल्प के तौर पर उभरी आम आदमी पार्टी कितनी मजबूती से अपने कदम कितने देर तक टिका पायेगी....इसका फैसला जनता उनकी नीतियों और कार्यशैली को देखते हुए ही कर पायेगी....सर्वे, एक्जिट पोल चाहे जो भी दिखायें पर जनता के मानसिक आंकड़े और यथार्थ में जमीन आसमान का फर्क दिख जाता है....
एक और अबूझ पहेली है आप के लिए –यूपी...दिल्ली से सटे नोएडा में जहां आप की चमत्कारी जीत की विरदावली पढी जा रही है वहीं दूसरे शहरों में अलग अलग पार्टियों की गूंज है...जहां बीएसपी और सपा दहाड़ कर अपने एकाधिकार की लड़ाई में केजरीवाल को तुच्छ प्राणी समझकर दौड़ से अलग करने को बेताब हैं ..शतरंज की ये बिसात यूपी में अगर सीधी पड़ी तो ये पासा बीजेपी और कांग्रेस के लिए वरदान साबित हो सकता है....क्योंकि क्षेत्रीय पार्टियों को झाड़ू की आवाज कहीं न कहीं विचलित जरुर कर रही है....बीजेपी इसबार कांग्रेस को सत्ता से दूर रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है....हर पार्टी अपनी शाख हिलते हुए खौफ से परे सिमटने का प्रयास तो कर रही है... लेकिन आंख बंद कर लेने से दिन में रात नहीं हो जाती...

बेबाक, बेखौफ केजरीवाल खट्टे मीठे आम हैं, तो उनकी सेना कच्चे पक्के बीज हैं....पर अब परिस्थतियों से जुझने वाले केजरीवाल को आत्ममंथन की आवश्यकता आन पड़ी है...पर, आत्मचिंतन का वक्त अब रहा नहीं...करो या मरो की परिस्थिति सामने है....अब तो टी वी चैनलों पर सर्वे भी अलग बयान कर रहे हैं....कमल के खिलने का सीज़न आ गया है तो हाथ अब हाथ को मलने का और झाड़ू की जगह वैक्यूम क्लिनर ने ले ली है...सर्वे जो चैनलों पर आ रहे हैं उससे कुछ राहत की सांस सभी पार्टियां ले पा रही हैं...क्योंकि आप की सरकार ने दिल्ली में खुद को साबित न कर पाने की चूक जरुर हो गयी है चाहे अनचाहे में....      


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