अर्ध सेंचुरी अधूरी रह गयी
9717827056
हर क्रिकेटर का यह
सपना होता है कि मैदान पर हॉफ सेंचुरी तो जड़ ही दे....पर ये मैदान लोकल
था....जहां की एक तरफी जीत हासिल होने के बाद इस क्रिकेटर की नजर इंटरनैश्नल मैच
पर टिक गयी...जिसके कारण इस क्रिकेटर ने लोकल मैच को तरज़ीह देनी बंद कर दी....और
रुख कर लिया बिना हाफ सेंचुरी पूरे किये, बिना हाथ ऊपर कर सरेंडर किये... मैदान से
रन आउट हो लिये....जी हां जिस दिन से दिल्ली विधानसभा का सत्र प्रारम्भ हुआ उसी
दिन से कयास लगने शुरु हो गये थे कि केजरीवाल जी का यह पहला और आखिरी सत्र
होगा....फिर, अचानक मौसम ने भी करवट ली और कोहरे के साथ ठंड की वापसी और साथ में
बारिश फ्री में आ गयी और मौसम को बर्फ की गोलाबारी में तब्दील कर दिया...इधर,
केजरीवाल जी ने दिल्ली के मुख्मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया....अब जमकर शरु हो
चुकी है राजनीतिक गोलाबारी....कभी शब्दों की तो कभी वायदों की...हांलाकि इस बार
एलेक्शन कमीशन ने खुली चेतावनी दे डाली है कि पार्टियां ऐसे वायदे जनता से ना करें
जिन्हें वो पूरा न कर सके....पर चुनावी रण में कौन किसकी कितनी सुनेगा यह चुनाव के
दौरान और उसके बाद समीक्षा करना उचित होगा....
दिल्ली के अब पूर्व
सी एम केजरीवाल जी, जिन्होंने 49 दिन सरकार में रहने का अपना एक रिकार्ड बनाया
है....साथ ही कई और रिकार्डस भी बनाये हैं...जैसे सड़क पर आन्दोलनकर्ताओं के साथ
रात बीताना, मुट्ठी में कर लेने वालों के खिलाफ खड़े होकर अपनी मुट्ठी का अंदाजा
करवाने वाले केजरीवाल जी कहीं न कहीं थोड़े से चूक गये....चूक गये परिस्थितियों से
लड़ने में, चूक गये प्लानिंग करने में, चूक हो गयी अपने ही पार्टी के नेताओं को
समझने में...वरना बिन्नी जी सामने न आ पाते...चूक हो गयी धीरज बनाये रखने में.....और
चूक हो गयी हड़बड़ाहट में...प्लानिंग सही होती तो 14 फरवरी की जगह 15 फरवरी को
इस्तीफा सौंपते और 49 की जगह 50 दिन की सरकार कहलाती....थोड़ा धीरज रख सोमनाथ
भारती से गुफ्तगु कर लिये होते या आशुतोष जी तो भी रेलवे भवन के सामने बैठकर महिला
संस्थानों का विरोध न झेलना पड़ता....दिल्ली निवासियों को बेवजह परेशानी का सामना
न करना पड़ता....
कहा भी जाता है-
धीरज, धर्म, मित्र
अरु नारी,
आपत काल परखिअहिं
चारी।
परिस्थितियां अब कुछ
बदल सी रही हैं....समीकरण शायद पूरी तरह तो नहीं पर कुछ हद तक पूर्ववत हो सकता है....आप
पार्टी के रण में उतरने के पहले मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच था....तभी
धमाकेदार एंट्री हुई केजरीवाल जी की....जिनके आने के बाद पूरा समीकरण ही पलट सा
गया था....मुकाबला त्रिकोणीय बन चुका था....पर उम्मीद कहीं न कहीं जनता की टूटी
है... जनता ने केजरीवाल के कंधों पर जो दारोमदार दिया था, भारत के उज्जवल भविष्य
का,भ्रष्टाचार मुक्त दिल्ली का-- वह कहीं न कहीं कमजोर पड़ गया है या हल्की दरार
सी आ गयी है....य यूं कहा जाय कि सुनहरे सपनों की दुनिया से जनता की नींद खुल गयी
है....नींद खुलने के बाद परिस्थितियां सोने के पूर्ववत जैसी होती हैं वैसी ही रहती
हैं....बदलाव कुछ क्षणों का मानव मस्तिष्क में होता है...एक हल्की चेतना मात्र जग
जाती है....मानस पटल पर एक परिवर्तन की छवि सी बन जाती है...कि काश ऐसा हो जाता।
कोई घूस न मांगता, कोई हमारे एफ आई आर दर्ज करने के लिए किसी का मुंह न देखना
पड़ता, किसी घायल का पहले इलाज होता बाद में कोई नाम पता या पुलिस को सूचित
करता....काश...काश पर...यह काश काश ही रह गया....वही सपने दिखाने का काम केजरीवाल
जी कर गये दिल्ली की जनता के साथ और कहीं न कहीं देश की जनता के साथ भी....
अब चुनावी गलियारे
में हलचल कुछ स्पष्ट तो कुछ धुंधली सी दिख रही है....किसी के मन में आस तो कहीं
कुछ हद तक निराशा सी पनपने लगी है...पर यह जंग ए मैदान है....यहां भावना प्रधान
नहीं होती यहां कला प्रधान होती है...जिसके पास जितनी कलायें हैं वो उतना पारंगत
माना जाता है...ध्यान रहे यहां हम फिल्मी कलाकार की बात नहीं कर रहे हैं....यहां
भावना को भुनाने वाले और खुद में विश्वास पैदा कराने वाले को राजनीतिज्ञ कहते
हैं...यह क्षेत्र राजनीति का है....
केजरीवाल के जाने से
कांग्रेस के राहुल गांधी का डर जस का तस बना हुआ है....क्योंकि अगर आप के कुमार
विश्वास बाजी मार लेते हैं उनके पुश्तैनीय अमेठी से तो रही सही इज्जत भी चली
जायेगी....पर, सबसे बड़ा हिमालय पहाड़ जस का तस राहुल के सामने खड़ा है....मोदी
नाम का पहाड़...पहले भी और अब भी इसी से खतरा बना हुआ है....मोदी और राहुल का कोई
जोड़- तोड़ है ही नहीं....एक युवा राजनीतिज्ञ बच्चा तो दूसरा रण विजय और तीसरा रण
छोड़....इस त्रिकोणीय मुकाबले से एक पिक्चर के प्रति जनता अपनी जिम्मेदारी के कारण
कहीं न कहीं गहरी सोच में पड़ गयी है या कुछ ने अपना मन बना लिया है....तो कुछ
दुविधा में हैं...
अब जो दिल्लीवासियों
का हश्र होने वाला है उस बददुआ से केजरीवाल जी खुद को कैसे बचायेंगें...??अप्रैल से बिजली पर सब्सिडी खत्म हो जायेगी...और सबकुछ यथावत हो
जायेगा...मतलब अब आप रात की नींद से जाग चुके हैं...सुबह उठकर फिर जीवन की कश्मकश
से जूझना है....केजरीवाल जी इसे भी जनता के बीच भुनाने की कोशिश करेंगें...पर जनता
ने क्या आखों पर पट्टी बांध रखी है....या इस पालिटिकल कृष्ण के पीछे दुनिया हुई
मीरा जैसी दीवानी...यह दिलचस्प होगा देखना...
अर्ध सेंचुरी अधूरी रह गयी
- सर्वमंगला स्नेहा
हर क्रिकेटर का यह
सपना होता है कि मैदान पर हॉफ सेंचुरी तो जड़ ही दे....पर ये मैदान लोकल
था....जहां की एक तरफी जीत हासिल होने के बाद इस क्रिकेटर की नजर इंटरनैश्नल मैच
पर टिक गयी...जिसके कारण इस क्रिकेटर ने लोकल मैच को तरज़ीह देनी बंद कर दी....और
रुख कर लिया बिना हाफ सेंचुरी पूरे किये, बिना हाथ ऊपर कर सरेंडर किये... मैदान से
रन आउट हो लिये....जी हां जिस दिन से दिल्ली विधानसभा का सत्र प्रारम्भ हुआ उसी
दिन से कयास लगने शुरु हो गये थे कि केजरीवाल जी का यह पहला और आखिरी सत्र
होगा....फिर, अचानक मौसम ने भी करवट ली और कोहरे के साथ ठंड की वापसी और साथ में
बारिश फ्री में आ गयी और मौसम को बर्फ की गोलाबारी में तब्दील कर दिया...इधर,
केजरीवाल जी ने दिल्ली के मुख्मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया....अब जमकर शरु हो
चुकी है राजनीतिक गोलाबारी....कभी शब्दों की तो कभी वायदों की...हांलाकि इस बार
एलेक्शन कमीशन ने खुली चेतावनी दे डाली है कि पार्टियां ऐसे वायदे जनता से ना करें
जिन्हें वो पूरा न कर सके....पर चुनावी रण में कौन किसकी कितनी सुनेगा यह चुनाव के
दौरान और उसके बाद समीक्षा करना उचित होगा....
दिल्ली के अब पूर्व
सी एम केजरीवाल जी, जिन्होंने 49 दिन सरकार में रहने का अपना एक रिकार्ड बनाया
है....साथ ही कई और रिकार्डस भी बनाये हैं...जैसे सड़क पर आन्दोलनकर्ताओं के साथ
रात बीताना, मुट्ठी में कर लेने वालों के खिलाफ खड़े होकर अपनी मुट्ठी का अंदाजा
करवाने वाले केजरीवाल जी कहीं न कहीं थोड़े से चूक गये....चूक गये परिस्थितियों से
लड़ने में, चूक गये प्लानिंग करने में, चूक हो गयी अपने ही पार्टी के नेताओं को
समझने में...वरना बिन्नी जी सामने न आ पाते...चूक हो गयी धीरज बनाये रखने में.....और
चूक हो गयी हड़बड़ाहट में...प्लानिंग सही होती तो 14 फरवरी की जगह 15 फरवरी को
इस्तीफा सौंपते और 49 की जगह 50 दिन की सरकार कहलाती....थोड़ा धीरज रख सोमनाथ
भारती से गुफ्तगु कर लिये होते या आशुतोष जी तो भी रेलवे भवन के सामने बैठकर महिला
संस्थानों का विरोध न झेलना पड़ता....दिल्ली निवासियों को बेवजह परेशानी का सामना
न करना पड़ता....
कहा भी जाता है-
धीरज, धर्म, मित्र
अरु नारी,
आपत काल परखिअहिं
चारी।
परिस्थितियां अब कुछ
बदल सी रही हैं....समीकरण शायद पूरी तरह तो नहीं पर कुछ हद तक पूर्ववत हो सकता है....आप
पार्टी के रण में उतरने के पहले मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच था....तभी
धमाकेदार एंट्री हुई केजरीवाल जी की....जिनके आने के बाद पूरा समीकरण ही पलट सा
गया था....मुकाबला त्रिकोणीय बन चुका था....पर उम्मीद कहीं न कहीं जनता की टूटी
है... जनता ने केजरीवाल के कंधों पर जो दारोमदार दिया था, भारत के उज्जवल भविष्य
का,भ्रष्टाचार मुक्त दिल्ली का-- वह कहीं न कहीं कमजोर पड़ गया है या हल्की दरार
सी आ गयी है....य यूं कहा जाय कि सुनहरे सपनों की दुनिया से जनता की नींद खुल गयी
है....नींद खुलने के बाद परिस्थितियां सोने के पूर्ववत जैसी होती हैं वैसी ही रहती
हैं....बदलाव कुछ क्षणों का मानव मस्तिष्क में होता है...एक हल्की चेतना मात्र जग
जाती है....मानस पटल पर एक परिवर्तन की छवि सी बन जाती है...कि काश ऐसा हो जाता।
कोई घूस न मांगता, कोई हमारे एफ आई आर दर्ज करने के लिए किसी का मुंह न देखना
पड़ता, किसी घायल का पहले इलाज होता बाद में कोई नाम पता या पुलिस को सूचित
करता....काश...काश पर...यह काश काश ही रह गया....वही सपने दिखाने का काम केजरीवाल
जी कर गये दिल्ली की जनता के साथ और कहीं न कहीं देश की जनता के साथ भी....
अब चुनावी गलियारे
में हलचल कुछ स्पष्ट तो कुछ धुंधली सी दिख रही है....किसी के मन में आस तो कहीं
कुछ हद तक निराशा सी पनपने लगी है...पर यह जंग ए मैदान है....यहां भावना प्रधान
नहीं होती यहां कला प्रधान होती है...जिसके पास जितनी कलायें हैं वो उतना पारंगत
माना जाता है...ध्यान रहे यहां हम फिल्मी कलाकार की बात नहीं कर रहे हैं....यहां
भावना को भुनाने वाले और खुद में विश्वास पैदा कराने वाले को राजनीतिज्ञ कहते
हैं...यह क्षेत्र राजनीति का है....
केजरीवाल के जाने से
कांग्रेस के राहुल गांधी का डर जस का तस बना हुआ है....क्योंकि अगर आप के कुमार
विश्वास बाजी मार लेते हैं उनके पुश्तैनीय अमेठी से तो रही सही इज्जत भी चली
जायेगी....पर, सबसे बड़ा हिमालय पहाड़ जस का तस राहुल के सामने खड़ा है....मोदी
नाम का पहाड़...पहले भी और अब भी इसी से खतरा बना हुआ है....मोदी और राहुल का कोई
जोड़- तोड़ है ही नहीं....एक युवा राजनीतिज्ञ बच्चा तो दूसरा रण विजय और तीसरा रण
छोड़....इस त्रिकोणीय मुकाबले से एक पिक्चर के प्रति जनता अपनी जिम्मेदारी के कारण
कहीं न कहीं गहरी सोच में पड़ गयी है या कुछ ने अपना मन बना लिया है....तो कुछ
दुविधा में हैं...
अब जो दिल्लीवासियों
का हश्र होने वाला है उस बददुआ से केजरीवाल जी खुद को कैसे बचायेंगें...??अप्रैल से बिजली पर सब्सिडी खत्म हो जायेगी...और सबकुछ यथावत हो
जायेगा...मतलब अब आप रात की नींद से जाग चुके हैं...सुबह उठकर फिर जीवन की कश्मकश
से जूझना है....केजरीवाल जी इसे भी जनता के बीच भुनाने की कोशिश करेंगें...पर जनता
ने क्या आखों पर पट्टी बांध रखी है....या इस पालिटिकल कृष्ण के पीछे दुनिया हुई
मीरा जैसी दीवानी...यह दिलचस्प होगा देखना...