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Sunday 3 March 2013

-बीजेपी मे कितने शातिर

कहा जाता है कि शब्दों का सही प्रयोग सटीक प्रयोग हो तो जो काम तलवार नहीं कर पाती वो कलम और जीभ की ताकत कर देती है..शब्दों का प्रयोग और लच्छेदार भाषा का प्रयोग अगर कोई पार्टी करती है तो वो है आजकल सेंटर आफ फोकस बनी बीजेपी पार्टी.....जिसमें राजनाथ जी के अध्यक्ष बनते ही जैसे जोश का बिगुल बज गया हो.....जैसे नजरें किसी ऐसे की तलाश में खुली थीं.............अटलबिहारी जी जिनकी तारीफ उनके विरोधी भी करते हैं....सुषमा स्वराज जी के विषय में कुछ कहने का मतलब है जैसे लम्बी लकीर के सामने छोटी लकीर खींचना......मोदी जी गुजरात में जीत के जश्न का डंका पूरे देश क्या पूरी दुनिया में बजाने में लगे हैं........जिन्होंने एक नई परिभाषा दी कि ग्लास आधा खाली नहीं हवा से भरा है.........पूरा युवा वर्ग आज मोदी की छांव में चलना और पलना चाहता है......सभी मंत्रमुग्ध है उनके ओजस्वी भाषण, स्वतंत्र कार्यशैली अद्भूत विचारधारा......


आज जो मैं आपसे कहना चाहती हूं वो ये कि अडवाणी जी की वाकपटुता के आगे आज के नेता उनकी पार्टी के नतमस्तक रहते हैं......कारण उनकी बजुर्गीयत और वरिष्ठ नेता की छवि.....सपने की कोई उम्र नहीं होती .....कभी भी पल सकता है.... ना वो बूढा होता है ना मरता है......हां....सुषमा को अटल जी से कम्पेयर करके जो तिगड़ी चाल चली है अडवाणी जी ने अपना अंतिम बाजी खेल रहे हैं......एक तरफ जहां राजनाथ जी ने मोदी को एक ऐसा ऊंचा मंच दिया था आज आडवामी जी ने एक तरीके से ध्वस्त कर दिया......मोदी और सुषमा पास बैठकर भी अपरिचित और प्रतिद्वन्दी की तरह लग रहे थे.......एक समय था जब दिग्गी के कहने पर पलटवार सुषमा ने किया था और मोदी को पी एम पद का दमदार दावेदार कहा था....पर वक्त कैसे पलटता है...आज दिख गया........एक दूसरे की तारीफ करने वाले मोदी और सुषमा स्वराज आज प्रतिद्वन्दी बन गये हैं......पर क्या सचमुच ऐसा करके आडवाणी जी अपने उस सपने को साकार करने में सफल हो सकेंगें.......लगता नहीं है.......ये उम्र है पथ प्रदर्शन करने की ना कि लड़ने की.......


ये राजनीती है सब बदल कर रख देती है.......खून खून को नहीं पहचानता ....सब बैरी केवल कुर्सी का रिश्ता जिन्दा रह जाता है .....पर जब कुर्सी चली जाती है तो सारे नींद टूट जाती है.......आडवाणी जी ने गहरी चाल चली है आपस में फूट डलवाकर......वैसे ही पार्टी कितनी मुश्किलों से गुजरी है......अब वरिष्ठ नेता गण ऐसा करेंगें तो देश और पार्टी का भविष्य सोचा जा सकता है........राजनाथ सिंह जहां पार्टी को एक नया आयाम और दिशा देने में जुटे हैं वहीं दूसरे लोग सहयोग की जगह लगता है आपसी मतभेद में कहीं फिर से पार्टी उसी मोड़ पर ना पहुंच जाये जहां पार्टी मुश्किल से निकली है.........मैं ये नहीं कह रही कि सुषमा जी को पी एम पद का दावेदार नहीं होना चाहिए.....उनकी अपनी एक गरिमा है.......महिलाओं का सम्मान है वो.....पर पार्टी गलत तरीके से प्रमोट कर रही है चीजों को......2014 में पार्टी को सुद्दढ दिशा निर्देश की आवश्यकता है जो बीजेपी के अध्यक्ष राजनाथ जी देने में सक्षम हैं...पर सबका सहयोग आवश्यक है......

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