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Monday, 24 September 2018


भारत पर्यटन की दृष्टि से

सर्वमंगला मिश्रा
भारत वर्षों से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता आया है। राम, कृष्ण, आदिगुरु शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस, गौतम बुद्ध, विवेकानन्द, गुरुनानक की इस धरती पर हर शक्स जीवन में एकदफा तो कदम रखना ही चाहता है। यह वही भारत है जहां से आध्यात्म का बीज हर मानव के अंदर पनपता है। चाहे फाह्यान हो या वास्कोडिगामा सभी ने भारत भूमि की प्रशंसा ही की है। इतिहास गवाह है कि-भारत भूमि संस्कृति एवं सम्पदा दोनों से सदैव लदी हुई रही है तभी, महमूद गजनवी, जिसने 17 बार सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया था। भारत की धरती पर जिसने भी आजतक कदम रखा, इतिहास गवाह है वह निहाल होकर ही गया।
भारत का पर्यटन और स्वास्थ्यप्रद पर्यटन मुहैया कराने की दृष्टि से विश्व में पाँचवा स्थान है। पर्यटन गरीबी दूर करने, रोजगार सृजन और सामाजिक सद्भाव बढ़ाने का सशक्त साधन है। भारत जैसे विरासत के धनी राष्ट्र के लिए पुरातात्विक विरासत केवल दार्शनिक स्थल भर नहीं होती वरन् इसके साथ ही वह राजस्व प्राप्ति का स्रोत और अनेक लोगों को रोजगार देने का माध्यम बना है| पर्यटकों के लिए कैम्पिंग स्थलों के संचालन करने से भी स्थानीय युवकों को रोजगार मिलता है। इसके लिए उन्हें प्रशिक्षित जनशक्ति की जरूरत पड़ेगी। कुछ स्थानीय युवकों को गाइड के रूप में काम करने के अवसर मिलता है। नवयुवक आने वाले पर्यटकों को आस पास की पहाडि़यों और जंगलों की सैर कराकर उन्हें अपने इलाके से परिचित कराते हैं। जिससे देश के स्वाभिमान में वृद्धि होती है। अपने इलाके की वनस्पतियों और जीव-जन्तुओं तथा ऐतिहासिक और पौराणिक स्थलों की तरह अपने समुदाय और लोक जीवन का परिचय देते हैं।  स्थानीय पर्यटन स्थलों को रोचक ढंग से प्रस्तुत करके रोजगार को बढ़ावा देते हैं। स्थानीय बुनकर और कारीगर अपने उत्पाद प्रदर्शित करके पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। जिससे ज्यादा पर्यटक आकर्षित होते हैं। कारीगर हस्तशिल्प और बनाए गए परिधानों को पर्यटकों के सामने प्रस्तुत करते हैं। जिससे कला का प्रदर्शन तो होता ही है साथ ही व्यापार में भी वृद्धि होती है। पर्यटन से स्थानीय युवकों को रोजगार के अवसर मिलते हैं। पर्यटन से सांस्कृतिक गतिविधियों में तेजी आती है और पर्यटकों तथा उनके मेजबानों के बीच बेहतर और समझदारी पूर्ण सम्बन्ध विकसित होते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर इससे विदेशी मुद्रा की मोटी कमाई होती है। जो किसी भी देश के लिए महत्वपूर्ण है। सच्चाई यह है कि दुनिया के 83 प्रतिशत विकासशील देशों में पर्यटन विदेशी मुद्रा अर्जित करने का प्रमुख साधन है। मोदी सरकार ने अपने तीन साल के कार्यकाल में पर्यटन क्षेत्र का कायाकल्प कर दिया है। पर्यटन के क्षेत्र में देश ने जिस गति से तरक्की हुई है उससे लगता है कि, भविष्य में दुनिया के पर्यटन मानचित्र पर भी भारत अव्वल देशों में शामिल हो जाएगा। मात्र तीन वर्षों में देसी मानदंडों पर ही नहीं विदेशी मानदंडों पर भी पर्यटन के क्षेत्र में भारत की रैंकिंग काफी सुदृढ़ हुई है। विदेशी सैलानियों ने भारत को काफी अधिक महत्व देना शुरू कर दिया है। यही वजह है कि देश में विदेशी सैलानियों के साथ ही विदेशी मुद्रा का भंडार भी भरने लगा है। मोदी सरकार ने देश की कमान संभालते ही जिन चीजों पर सबसे अधिक जोर देना शुरू किया था उनमें से पर्यटन भी एक है। इसके लिए प्रधानमंत्री ने खुद अपने स्तर पर पहल शुरू की थी। पीएम मोदी ने दुनियाभर में जाकर भारत के पर्यटन क्षेत्र को जीवंत बनाने की कोशिश की है। उनके उन्हीं प्रयासों और प्राथमिकताओं का असर अब दिखाई देने लगा है।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 मार्च को अपने मन की बात में कहा था - ये बात सही है कि टूरिज्म सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला क्षेत्र है। गरीब से गरीब व्यक्ति कमाता है और जब टूरिस्ट, टूरिस्ट डेस्टिनेशन पर जाता है। टूरिस्ट जाएगा तो कुछ न कुछ तो लेगा। अमीर होगा तो ज्यादा खर्चा करेगा और टूरिज्म के द्वारा बहुत रोजगार की संभावना है। विश्व की तुलना में भारत टूरिज्म में अभी बहुत पीछे है। लेकिन हम सवा सौ करोड़ देशवासी तय करें कि हमें अपने टूरिज्म को बल देना है तो हम दुनिया को आकर्षित कर सकते हैं। विश्व के टूरिज्म के एक बहुत बड़े हिस्से को हमारी ओर आकर्षित कर सकते हैं और हमारे देश के करोड़ों-करोड़ों नौजवानों को रोजगार के अवसर उपलब्ध करा सकते हैं। सरकार हो, संस्थाएं हों, समाज हो, नागरिक हों, हम सब को मिल करके ये काम करना है
भारत प्रतिवर्ष विश्व पर्यटन दिवस मनाता है। प्रकृति की गोद में जो परम आनंद मिलता है, ज़ो सुकून मिलता है, शांति का आभास होता है वो और कहीं नहीं मिल सकता। भारत के पास नैसर्गिक संसाधन बेशूमार है। कुदरत का करिश्मा विश्व के हर कोने में हैं। प्रकृति का आलोकिक रूप देखकर आनंदित होता है। रमणीक स्थलों में कुदरत का नज़ारा मन को अद्भुत शांति प्रदान करता है। प्राकृतिक खजाना चहुंओर फैला पड़ा है। उँचे पहाड़, कल-कल करते झरने, मधुरतान अलापते रंग बिरंगे पंछी, महकते फूल, चारों ओर जैसे प्रकृति अपने आप सज धज हमे पुकार रही हो। भारत का आध्यात्म विश्व को आमंत्रित करता है। भारत अपनी सभ्यता, संस्कृति और परंपरा को परिलिक्षित करता है और विश्व का हर पर्यटक आने को विवश हो जाता है। यह स्वाभाविक है कि भारत पर्यटन के क्षेत्र में देश जैसे-जैसे विकास करेगा, रोजगार के मौके भी बढ़ते जाएंगे और विदेशी मुद्रा भंडार में भी बढ़ोत्तरी होती जाएगी।
मार्च 2006 में अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश जब भारत आये, तब भारत और अमेरिका के बीच परमाणु करार होना था और वह हुआ भी लेकिन इस गंभीर मुद्दे के बीच उनका एक बयान भी छाया रहा कि अमेरिका भारतीय आम खाना चाहता है। इसके उपरांत अमेरिका ने भारतीय कृषि उत्पादों के आयात पर भी एक समझौता किया। उसके अगले साल से ही 17 वर्षों के उपरांत ही सही अमेरिकावासी भारतीय आम का स्वाद चखने लगे। इससे जाहिर होता है कि भारत की मिट्टी पर चाहे कोई आया हो या मिट्टी की खुशबू उस तक पहुंची हो वो शक्स भारत का दीवाना हो जाता है।
वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम के अनुसार मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद भारत में पर्यटन के क्षेत्र में काफी सुधार हुआ है। डब्लूईएफ की ट्रैवल एंड टूरिज्म की काम्पिटीटिव रिपोर्ट 2017 (WEF की Travel & Tourism, Competitiveness Report 2017) की हालिया रैंकिंग में भारत ने 12 अंकों की ऊंची छलांग लगाई है। भारतीय टूरिज्म की रैंकिंग 52वें पायदान से ऊपर चढ़कर 40वें पायदान पर पहुंच गई है। जहां साल 2013 में भारत 65वें नंबर पर था, वहीं 2015 में 52वें नंबर पर आ गया और महज डेढ़ साल के भीतर 12 अंकों की छलांग लगाते हुए 40वें पायदान पर जा पहुंचा है। पर्यटकों के आगमन के मामले में जापान के पांच और चीन के दो अंक के मुकाबले भारत को 12 अंकों का फायदा हुआ है। जबकि अमेरिका शून्य से दो अंक नीचे और स्विट्जरलैंड शून्य से चार अंक नीचे रहा है। सबसे बड़ी बात ये है कि पर्यटकों की सुरक्षा के मामले में भी भारत 15वें स्थान पर आ गया है। यही नहीं पर्यटन से राजस्व में भी भारी बढ़ोत्तरी हुई है। यह 2015 में 1.35 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2016 में 1,55,650 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। इस तरह से विदेशी मुद्रा की कमाई में 15.1 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई। पर्यटन मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2017 में देश में 1.01 करोड़ पर्यटक आए जबकि 2016 में यह आंकड़ा 88.04 लाख था। इस तरह 2017 में भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्या में 15.06 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। खास बात यह है कि भारत आने वाले सबसे ज्यादा विदेशी पर्यटक बांग्लादेशी हैं। कुछ समय पहले तक भारत में सर्वाधिक विदेशी पर्यटक अमेरिका जैसे विकसित देशों से आते थे लेकिन बीते दो साल में बांग्लादेश ने इस मामले में विकसित देशों को पीछे छोड़ दिया है
वैसे 2016-17 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 2015 में 80.3 लाख पर्यटक भारत घूमने आए थे, तो 2016 में उससे 10.7 प्रतिशत अधिक यानि 88.9 लाख विदेशी पर्यटक भारत की यात्रा पर पहुंचे थे। बड़ी बात ये है कि ई-वीजा की सुविधा मिलने के बाद से भारत के प्रति विदेशी सैलानियों की रूचि और बढ़ी है और वो बड़ी संख्या में भारत का रुख कर रहे हैं। जैसे इस साल जनवरी से मार्च के बीच 4.67 लाख विदेशी सैलानी ई-वीजा पर भारत आए जो कि पिछले साल इसी अवधि के 3.21 लाख पर्यटकों की तुलना में 45.6 प्रतिशत अधिक है। भारत आने वाले पर्यटकों को किसी तरह की असुविधा न हो इसे देखते हुए अभी 161 देशों के नागरिकों को ये सुविधा दी जा रही है। भारत ने अपने पर्यटकों को वेलकम कार्ड देना भी शुरू किया है, जिनसे सैलानियों को सभी महत्वपूर्ण जानकारियों मिल जाएं और उन्हें किसी तरह की दिक्कतों का सामना न करना पड़े। केंद्र सरकार स्वदेश दर्शन के तर्ज पर टूरिस्ट सर्किट का विकास कर रही है। इस योजना के तहत 13 सर्किट को चुना गया है। पूर्वोत्तर भारत, हिमालयन, बौद्ध, तटीय, मरुस्थल, जन जातीय, कृष्णा, इको, ग्रामीण, आध्यात्मिक, रामायण और विरासत सर्किट योजना के तहत आते हैं। इस योजना के तहत 2601.76 करोड़ रुपये की लागत वाली सभी 31 परियोजनां पर कार्य पूर्ण करने की योजना है।
पर्यटन, सेवा क्षेत्र का एक ऐसा उभरता हुआ उद्योग है जिसमें अपार संभावनाएं निहित हैं। भारत अतुलनीय प्राकृतिक स्थलों के साथ ही वैश्विक स्तर पर एक बड़े जैविक आयामों के क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। पर्यटकों के लिए भारतीय बाजार विविधताओं भरा स्थान है। इन विविधताओं के आर्थिक पहलुओं को देखते हुए शिल्प आदि क्षेत्रों के संवर्धन हेतु ठोस सरकारी प्रयासों का परिणाम एक नई आर्थिक संभावना के रूप में देखा जा सकता है तथा नए चिन्हित पर्यटन स्थलों पर ढांचागत सुविधाओं का विकास कर न केवल शहरी बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी रोजगार के अवसरों की उपलब्धता बढ़ाई जा सकती है। सुरक्षा के साथ विदेशियों को भी भारत के गांवों की सैर करायी जा सकती है। जिससे पर्यटन को बहुत बढ़ावा मिल सकता है और वहां के लोगों को रोजगार।



पाकिस्तान का नया हुक्मरान- इमरान खान

सर्वमंगला मिश्रा
पाकिस्तान का नया हुक्मरान- इमरान खान, का नाम पाकिस्तान के इतिहास में दर्ज हो चुका है। इमरान खान किसी पहचान के मोहताज़ नहीं है। विश्व में उनकी अपनी एक पहचान है उनके कदरदान भी हैं। क्रिकेटर से राजनीतिज्ञ बने इमरान खान ऐसे समय में अपने देश की बागडोर संभालने के लिए तैयार हैं जब विश्व में पाकिस्तान की स्थिति बेहद चिंतनीय है। विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश अमेरिका पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित कर चुका है। यूनाइटेड नेशन में पाकिस्तान का नाम आते ही आतंकवाद का चेहरा सभी देशों के सामने घूमकर मानो परेशान कर देने वाला होता है। आतंकवाद, जिससे समूचा विश्व परेशान है और इससे कहीं न कहीं जूझ रहा है।

मैं बचपन से ही भारत से नफरत करता था क्योंकि मैं लाहौर में बड़ा हुआ हूं और वहां 1947 में नरसंहार हुआ था, जिसके चलते खून बहा और नफरत फैली। लेकिन जब मेरा भारत आना जाना हुआ, मुझे वहां प्यार मिला, मेरे दोस्त बने। इससे वो नफरत खत्म हो गई- इमरान खान

2018 का साल इमरान खान के जीवन में अपने मकसद में कामयाबी का जश्न मनाने वाला तो हो गया। तहरीक ए इंसाफ ने 115 सीटों पर विजय हासिल की तो नवाज़ शरीफ पीएमएल-एन 64 सीटें, पाकिस्तान पीपल्स पार्टी पार्लियामेंटेरियन्स -43, एमक्यूएम –पी- 6, बलोचिस्तान नैश्नल पार्टी- 3, एमएमए-पी-5, अवामी नैश्नल पार्टी-1 साथ ही स्वतंत्र -13 और अन्य 20 विजयी रहे। विश्व में पाकिस्तान की छवि कैसे और कबतक सुधरेगी इसकी गारंटी तो शायद इमरान खान भी नहीं ले सकेंगे। इतिहास गवाह है कि 2014 में किस तरह इमरान खान ने पाकिस्तान की हूकूमत को चैलेंज किया था और अपने लाखों समर्थकों के साथ घेराबंदी की थी। एकबार तो लगा था कि अब इमरान खान पाकिस्तान का तख्ता पलटकर रख ही देंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इमरान खान ही वो शक्स थे जिनके कारण चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग को अपना पाकिस्तान दौरा रद्द करना पड़ा था। जबसे क्रिकेट खिलाड़ी इमरान खान राजनीति में कदम रखे तबसे पग-पग पर विरोधी पार्टियों के आक्रमक तेवर झेलने को मजबूर होते रहे। इमरान खान द्वारा बनवाया गया अस्पताल तक विरोधियों ने नेस्तो नाबूत कर दिया था। पर इमरान खान मजबूती के साथ डटे रहे और जिसका अंजाम यह हुआ कि पाक की जनता ने सबसे बड़ी पार्टी बनाकर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज़ कर दिया है। यह वही इमरान खान है जिसने 1992 में इंगलैंड के खिलाफ मैच खेलकर पाकिस्तान का नाम विश्व विजेता के तौर पर दर्ज करवाकर, अपने देश का नाम फक़्र से विश्व में ऊंचा करवाया था। पर राजनीति में कदम रखते ही सबने इस खिलाड़ी को कोई तवज्जो नहीं दी थी।
पाकिस्तान की यह बात अब जगजाहिर हो चुकी है कि पाकिस्तान आर्मी ही सर्वेसर्वा है। जिसको जब चाहे सिंहासन पर काबिज़ कर दे और जब चाहे उसे पदच्यूत कर दे। ऐसे में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री द्वारा लिए जाने वाले फैसले का, पाकिस्तान की जनता और विश्व के नुमाइंदों पर क्या असर होगा यह सोच से थोड़ा परे है। पाकिस्तान के नये हुक्मरान पाकिस्तान के लिए फैसले लेने में कितने स्वतंत्र रह पायेंगें यह देखने का विषय होगा। नवाज शरीफ के कार्यकाल के दौरान किस तरह मुशर्रफ साहब प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज़ हुए थे यह शायद ही कोई भूल सकेगा। जिसके बाद नवाज शरीफ को लंदन में जीवन बीताना पड़ा और जब 2007 में वापस आने का प्रयास किया तो किस तरह चंद मिनटों में बैरन रवाना भी होना पड़ गया। वैसे पाक का इतिहास भी उसी की तरह बेमिसाल है।
2011 में एक अंग्रेजी न्यूज चैनल को अपने दिये गये इंटरव्यू में कहा था कि वह भारत से नफरत के साथ बड़े हुए हैं। लेकिन वह गुजरते वक्त के साथ भारत के साथ "अच्छे संबंध" चाहते हैं, ताकि दोनों देशों को फायदा हो- इमरान खान
प्रधानमंत्री का ओहदा संभालने के पहले ही इमरान खान ने भारत को अपना संदेश सुना दिया- जिसमें कश्मीर का मुद्दा अहम बताया गया और बातचीत करने का आमंत्रण भी दिया गया। ऐसे में भारत, पाक से रिश्ता कितना सुधार पायेगा या यूं कहा जाय कि इमरान खान पाक आर्मी की बोली ही बोलते रहेंगे क्योंकि आर्मी की सरपरस्ती में ही उन्हें पाक का हुक्मरान बनने का सुनहरा मौका हासिल हुआ है। तो जाहिर सी बात है इमरान खान भी वही करेंगे जिसमें आर्मी की मंजूरी होगी और पाक आर्मी को कश्मीर चाहिए। इस मुद्दे को पाक अपनी अंतिम सांस तक नहीं छोड़ सकता। यह मुद्दा ही पाक की जनता के बीच बने रहने का एकमात्र जरिया है अन्यथा राजनीति की दीवार धराशायी हो जायेगी और विश्व के समक्ष पाक औंधें मुंह नजर आयेगा।
इससे बड़ा झूठ कुछ और नहीं हो सकता कि जम्मू-कश्मीर में अशांति के लिए पाकिस्तान उकसाता है. कश्मीर में भारतीय सेना को 26 साल हो चुके हैं, वहां के लोग परेशान हैं. मानव अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है, लोगों को कुर्बानियां देनी पड़ रहीं हैं”- इमरान खान-(2016 में रायविंड में दिए गया भाषण)

'पहले मैंने नवाज शरीफ को एक संदेश भेजा था, लेकिन कल मैं मोदी को भी एक संदेश भेजूंगा। मैं नवाज शरीफ को बताऊंगा कि नरेंद्र मोदी को कैसे जवाब दिया जाए?' - इमरान खान की यह टिप्पणी पाकिस्तान के आम चुनावों में काफी चर्चा में रही। जिसका पाक के कट्टरपंथियों पर शायद बहुत गहरा असर हुआ।  
बतौर क्रिकेटर इमरान खान ने भारत के बहुत दौरे किये हैं। भारतीय मीडिया के प्रिय भी रहे हैं। भारतीय टेलीविजन पर चैट शो में शिरकत करने वाले सबदिल अज़ीज क्रिकेटर और नेता रहे हैं। लेकिन अब भारत की जनता यह देखने को बड़ी बेताब है कि भारतीय खिलाड़ियों के साथ खेलने वाले क्रिकेटर का दिल पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने के बाद कितना और कैसा परिवर्तित हुआ है। क्या सुनील गावस्कर के साथ बिताये हुए लम्हें भारत के प्रति नरम रुख अपनाने को बेताब करेंगे या राजनीति ही हावि रहेगी। उधर चीन द्वारा बनायी जा रही सड़क पर इमरान खान का रवैया क्या होगा इससे चीन भी चिंता में डूबा हुआ दिखता है। यदि इस निर्माणाधीन सड़क का निर्माण कार्य सम्पन्न करने की अनुमति इमरान खान देते हैं तो भारत के लिए उनकी ओर से पहला विष का प्याला होगा। इसके विपरीत यदि निर्माण कार्य रुकता है तो चीन से आने वाला धन भी रुक जायेगा। जिससे पाक को भारी नुकसान होगा। ऐसा नुकसान पाकिस्तान शायद ही सहने के लिए तैयार हो क्योंकि अमेरिका ने पहले ही चेतावनी दे दी है जिससे पाक की नींद हराम है। ऐसी परिस्थिति में पाकिस्तान चीन का साथ छोड़ने की भूल शायद ही करे।
आज पाकिस्तान का तख्तोताज कांटों से भरा हुआ है। विश्व के सामने पाकिस्तान की छवि सुधारने के लिए इमरान खान कौन से कदम उठायेंगे यह तो पूरा विश्व ही देखेगा। आतंकवाद की पनाहगार बना हुआ पाकिस्तान दहशतगर्दी की पनाह में ही जीवन का खैरमकदम करेगा या आने वाले समय में इमरान खान की नुमांइदगी में उन्नति के चौक्के छक्के लगाएगा। अपनी पहचान से देश का चेहरा बदलने और परिस्थितियों से जूझकर पाकिस्तान को उबारने का सुनहरा मौका मिला है। अब इसे खान साहब बतौर प्रधानमंत्री किसतरह निखारेंगे यह तो भविष्य ही बताएगा।






सवर्णों का रोष और मोदी का होश –कौन चमकेगा 2019 में ?

 
सर्वमंगला मिश्रा
2019 के पहले सालों से सोई हुई सवर्ण जाति की लगता है नींद खुल गयी है। जो पहले नहीं हुआ वो अब हो रहा है। आरक्षण की आग 1989 में वी पी सिंह के कार्यकाल में लगी थी जिससे न जाने कितने युवक युवतियां बेवजह गहरी नींद में सो गये थे। अब 2018 जब सवर्ण सड़क पर उतर कर विरोध दर्शा रहे हैं।देश उन्नति कर रहा है। पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान बनाया गया जिससे दबे कुचले लोगों के अधिकारों का हनन न हो, उन्हें बराबरी का दर्जा मिल सके। परन्तु अति हो गयी। सवाल उठता है कि सवर्णों को देश के संविधान ने क्या दिया। उच्च वर्ग के नाम पर हर अधिकार से वंचित ही रखा गया। सवर्णों को भी खुद पर कहीं न कहीं बहुत गुमान था बड़ा बनकर रहने का जिससे उन्हें कभी विरोध करने की जरुरत महसूस ही नहीं हुई। फलस्वरुप सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने जब उनकी नींद तोड़ी तो अब एहसास की परत खुलनी शुरु हुई है।सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मोदी सरकार द्वारा एससी एसटी एक्ट में संशोधन कर उसे मूल स्वरूप में बहाल करने के विरोध में सवर्ण समुदाय के लोगों ने 6 सितंबर को भारत बंद का आह्वान किया। देश के कई इलाकों में बंद को सफल कराने के लिए प्रदर्शनकारी सड़क पर उतरे। मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि राज्यों में भारत बंद कराने के लिए सवर्ण समुदाय के लोग सड़क पर उतरे। पिछली बार भारत बंद एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में दलित संगठनों ने 2 अप्रैल को बुलाया था।एसएसी-एसटी एक्ट के विरुद्ध में सवर्णों के भारत बंद को लेकर मध्य प्रदेश के करीब 35 जिलों को अलर्ट पर रखा गया था। मध्य प्रदेश में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर पूरे इंतजाम किये गये। साथ ही भारत बंद को देखते हुए मध्य प्रदेश के करीब 10 जिलों में एहतियात के तौर पर धारा 144 लगा दी गई थी।क्या है एससी एसटी एक्ट?
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचार और उनके साथ होनेवाले भेदभाव को रोकने के मकसद से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 बनाया गया था। जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में इस एक्ट को लागू किया गया। इसके तहत इन लोगों को समाज में एक समान दर्जा दिलाने के लिए कई प्रावधान किए गए और इनकी हरसंभव मदद के लिए जरूरी उपाय किए गए। इन पर होनेवाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था की गई ताकि ये अपनी बात खुलकर रख सके। हाल ही में एससी-एसटी एक्ट को लेकर आक्रोश उस वक्त सामने आया है, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के प्रावधान में बदलाव कर इसमें कथित तौर पर थोड़ा कमजोर बनाना चाहा।

सुप्रीम कोर्ट ने
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचार और उनके साथ होनेवाले भेदभाव को रोकने के मकसद से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 बनाया गया था। जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में इस एक्ट को लागू किया गया। इसके तहत इन लोगों को समाज में एक समान दर्जा दिलाने के लिए कई प्रावधान किए गए और इनकी हरसंभव मदद के लिए जरूरी उपाय किए गए। इन पर होनेवाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था की गई ताकि ये अपनी बात खुलकर रख सके। हाल ही में एससी-एसटी एक्ट को लेकर आक्रोश उस वक्त सामने आया है, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के प्रावधान में बदलाव कर इसमें कथित तौर पर थोड़ा कमजोर बनाना चाहा।
सुप्रीम कोर्ट नेअनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचार और उनके साथ होनेवाले भेदभाव को रोकने के मकसद से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 बनाया गया था। जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में इस एक्ट को लागू किया गया। इसके तहत इन लोगों को समाज में एक समान दर्जा दिलाने के लिए कई प्रावधान किए गए और इनकी हरसंभव मदद के लिए जरूरी उपाय किए गए। इन पर होनेवाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था की गई ताकि ये अपनी बात खुलकर रख सके। हाल ही में एससी-एसटी एक्ट को लेकर आक्रोश उस वक्त सामने आया है, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के प्रावधान में बदलाव कर इसमें कथित तौर पर थोड़ा कमजोर बनाना चाहा।सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी एक्ट में यह बदलाव किया था । सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के बदलाव करते हुए कहा था कि -1) मामलों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी।
2) शिकायत मिलने पर तुरंत मुकदमा भी दर्ज नहीं किया जाएगा।
3) शिकायत मिलने के बाद डीएसपी स्तर के पुलिस अफसर द्वारा शुरुआती जांच की जाएगी और जांच किसी भी सूरत में 7 दिन से ज्यादा समय तक नहीं होगी।
4) डीएसपी शुरुआती जांच कर नतीजा निकालेंगे कि शिकायत के मुताबिक क्या कोई मामला बनता है या फिर किसी तरीके से झूठे आरोप लगाकर फंसाया जा रहा है?
5) सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के बड़े पैमाने पर गलत इस्तेमाल की बात को मानते हुए कहा था कि इस मामले में सरकारी कर्मचारी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं.संशोधन के बाद अब ऐसा होगा एससी- एसटी एक्टएससी\एसटी संशोधन विधेयक 2018 के जरिए मूल कानून में धारा 18A जोड़ी जाएगी। इसके जरिए पुराने कानून को बहाल कर दिया जाएगा। इस तरीके से सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए प्रावधान रद्द हो जाएंगे। मामले में केस दर्ज होते ही गिरफ्तारी का प्रावधान है। इसके अलावा आरोपी को अग्रिम जमानत भी नहीं मिल सकेगी। आरोपी को हाईकोर्ट से ही नियमित जमानत मिल सकेगी। मामले में जांच इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अफसर करेंगे। जातिसूचक शब्दों के इस्तेमाल संबंधी शिकायत पर तुरंत मामला दर्ज होगा। एससी/एसटी मामलों की सुनवाई सिर्फ स्पेशल कोर्ट में होगी। सरकारी कर्मचारी के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दायर करने से पहले जांच एजेंसी को अथॉरिटी से इजाजत नहीं लेनी होगी।क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला?सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए एससी/एसटी एक्ट में तत्काल गिरफ्तारी न किए जाने का आदेश दिया था। इसके अलावा एससी/एसटी एक्ट के तहत दर्ज होने वाले केसों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दी थी।शीर्ष अदालत ने कहा था कि इस कानून के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी की बजाय पुलिस को 7 दिन के भीतर जांच करनी चाहिए और फिर आगे ऐक्शन लेना चाहिए।संसद में एससी एसटी एक्ट में संशोधन पारित कियाकेंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटते हुए एससी/एसटी एक्ट को वापस मूल स्वरूप में बहाल कर दिया।हाल ही में ये संशोधित एससी/एसटी (एट्रोसिटी एक्ट) फिर से लागू किया है। अब फिर से इस एक्ट के तहत बिना जांच गिरफ्तारी संभव हो गई।पहले भी होता था ऐसा ही एक्ट- 1955 के प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स एक्ट के बावजूद सालों तक न तो छुआछूत का स्तर देश में कम हुआ था और न ही दलितों पर अत्याचार और उनसे भेदभाव रुका था। जबकि भारतीय संविधान नागरिकों को समानता का मौलिक अधिकार देता है। यह भेदभाव इसका उल्लंघन करता है। अनुमानत: यह समुदाय देश में कुल आबादी का चौथाई है। आजादी के तीन दशक बाद भी उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति तमाम मानकों पर बेहद खराब थी।इस एक्ट में SC/ ST समुदायों को मिली थी कई तरह की सुविधाएंएससी एसटी एक्ट, 1989 में यह प्रावधान थे - 1. जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करने पर तुरंत मामला दर्ज होता था। 2. इनके खिलाफ मामलों की जांच का अधिकार इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अधिकारी के पास भी था। 3. केस दर्ज होने के बाद तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान था। 4. ऐसे मामलों की सुनवाई केवल स्पेशल कोर्ट में ही होती थी। साथ ही अग्रिम जमानत भी नहीं मिलती थी।5. सिर्फ हाईकोर्ट से ही जमानत मिल सकती थी।एससी-एसटी एक्ट 1989 में पीड़ित दलितों के लिए आर्थिक मदद और सामाजिक पुनर्वास की व्यवस्था भी की गई थी। इसमें यह भी प्रावधान था कि मामले की जांच और सुनवाई के दौरान पीड़ितों और गवाहों की यात्रा और जरूरतों का खर्च सरकार की तरफ से उठाया जाये प्रोसिक्यूशन की प्रक्रिया शुरू करने और उसकी निगरानी करने के लिए अधिकारी नियुक्त किया जाये।सुप्रीम कोर्ट ने कर दिए थे कई बदलावसुप्रीम कोर्ट ने 21 मार्च, 2018 में दिए अपने फैसले में कहा था कि सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी सिर्फ सक्षम अथॉरिटी की इजाजत के बाद ही हो सकती है।इसके अलावा जो लोग सरकारी कर्मचारी नहीं हैं, उनकी गिरफ्तारी जांच के बाद SSP की इजाजत से हो सकेगी।बेगुनाह लोगों को बचाने के लिए कोई भी शिकायत मिलने पर तुरंत मुकदमा दर्ज नहीं किया जायेगा। कोर्ट के इस आदेश और नई गाइडलाइंस के बाद से इस समुदाय के लोगों का कहना है कि ऐसा होने के बाद उन पर अत्याचार बढ़ जायेगा. कुछ लोगों ने इसे संसदीय कार्यों में कोर्ट का हस्तक्षेप भी बताया था।सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन भी दायर किया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में आगे की सुनवाई से पहले कोई भी स्टे देने से मना कर दिया था। जिसके बाद सरकार ने इस मामले में एससी एसटी एक्ट पर संशोधन विधेयक लाने का फैसला किया था।दलित भारत में कुल जनसंख्या के एक-चौथाई के करीब हैं। इसलिए कांग्रेस समेत ज्यादातर विपक्षी दल इसके सपोर्ट में थे. इसके बाद से फिर एससी एसटी एक्ट 1989 वाली स्थिति कायम हो गई है। जिसमें - 1. एफआईआऱ से पहले नहीं होगी जांचसुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एससी एसटी एक्ट, 1989 के अंतर्गत आने वाले मामलों में पहले डीएसपी स्तर का अधिकारी जांच करे फिर मामले की एफ आई आर दर्ज हो लेकिन इसके बाद इसे हटा दिया गया और पहले की स्थिति ही कायम कर दी गई है। जिसमें तुरंत एफ आई आर दर्ज करने का प्रावधान है. अब इस मामले की जांच इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अधिकारी करेंगे। 2. बिना इजाजत किया जा सकेगा गिरफ्तार
पहले जिसके खिलाफ इस एक्ट के तहत शिकायत की गई है उसे तुरंत गिरफ्तार किया जा सकता था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से यह स्थिति बदल गई थी और जांच के बाद गिरफ्तारी होनी थी। बल्कि अगर जिसके खिलाफ शिकायत की गई है वह सरकारी कर्मचारी है तो उसके ऊपर के अधिकारी की अनुमति के बाद ही गिरफ्तारी हो सकती थी। इसको भी नए संशोधन बिल से बदलकर यथास्थिति में पहुंचा दिया गया है। 3. अग्रिम जमानत पर फिर लग गई रोकसुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी एक्ट के तहत आने वाले फर्जी मामलों का जिक्र करते हुए, इस एक्ट के तहत आने वाले मामलों में सुनवाई के आधार पर अग्रिम जमानत की व्यवस्था भी की थी। जिसे अब खत्म कर दिया गया है। लेकिन नियमित जमानत मिल सकेगी।अब क्या समझा जाय देश में सदा की तरह एक वर्ग का अधिकार हनन होता रहेगा और दूसरा वर्ग उसकी भरपाई करता रहेगा। देश में समान अधिकार सभी वर्गों के लिए क्यों नहीं है। अगर एक देश एक चुनाव हो सकता है तो एक देश एक समान अधिकार क्यों नहीं?
(लेखिका मानवाधिकारों की जानकारी है)

 


विश्वविजेता फ्रांस 2018



सर्वमंगला मिश्रा

फीफा वर्ल्ड कप- जिसके लिए हर फुटबाल का दीवाना बेसब्री से चार साल का इंतजार करता है। 2018 में वह पल लुज्निकी स्टेडियम में वह अद्भुत रोमांच के साथ एक बार फिर जीवंत हो गया। फुटबाल के इस महाकुंभ मुकाबले मेंफीफा के इतिहास में फ्रांस ने दूसरी बार विश्व विजेता बनकर इतिहास रच डाला। दो बार की विश्वविजेता फ्रांस की टीम तीन बार विश्व कप के फाइनल में जगह बनाने में सफल रह चुकी है। टीम ने 1998 में अपनी ही मेजबानी में हुए विश्व कप फाइनल में ब्राजील को हराकर खिताब जीता था लेकिन 2006 के फाइनल में इटली से हार गई थी। फाइनल मुकाबला रूस की राजधानी मॉस्को के लुज्निकी स्टेडियम में फ्रांस और क्रोएशिया के बीच खेला गया। डिफेंडर सैमुअल उमटिटी के गोल की बदौलत फ्रांस ने रोमांचक सेमीफाइनल में बेल्जियम को 1-0 से हराकर तीसरी बार फीफा वर्ल्ड कप फाइनल में जगह बनायी। मैच का एकमात्र गोल उमटिटी ने 51वें मिनट में हैडर के जरिए किया।1998 में हुए विश्वकप फाइनल में ब्राजील को हराकर विश्वविजेता का खिताब जीता था। लेकिन 2006 के फाइनल में इटली से हार गया था। पुनएक बार फ्रांस ने 20 साल पहले के रोमांचक दृश्य को पुनर्जीवित कर दिया और एक नया गौरवशाली इतिहास रचकर अपने देश को गौरवान्वित कराया।फीफा वर्ल्ड कप के फाइनल मुकाबले में फ्रांस ने क्रोएशिया के सपने को चकनाचूर करते हुए 4-2 से विश्व कप 2018 का खिताब अपने नाम कर लिया। विश्व कप खिताब जीतने पर जहां फ्रांस को 38 मिलियन डॉलर (करीब 260 करोड़)तो क्रोएशिया को 28 मिलियन डॉलर (लगभग 191 करोड़ रुपये) प्राइज मनी के तौर पर मिले। फ्रांस की टीम से एंटोनी ग्रीजमैन को मैन ऑफ द मैच चुना गया। इससे पहले फ्रांस ने 1998 में दिदिएर डेसचेम्प्स की कप्तानी में ब्राजील को हराकर पहली बार वर्ल्ड कप जीता था। उरुग्वे के बाद क्रोएशिया ऐसा छोटा देश है जो कि वर्ल्ड कप के फाइनल में पहुंचा। फ्रांस और क्रोएशिया अब तक एक दूसरे से पांच बार भिड़ चुके हैं। इनमें से 3 बार फ्रांस को जीत मिली है और 2 बार मैच ड्रॉ रहा है।
यूगोस्लाविया से 1991 में आजाद हुआ क्रोएशिया फीफा वर्ल्ड कप 2018 में कई बड़ें देशों पर ग्राउंड में भारी पड़ गया। क्रोएशिया की आबादी करीब 40 लाख है। इससे पहले यूरोपीय देश जर्मनी ने 2014 में विश्व कप जीता था। अब तक 20 वर्ल्ड कप हुए खेले जा चुके हैं। जिनमें से 11 वर्ल्ड कप यूरोपीय टीमों ने जीते हैं। इंग्लैंड को 2-1 से हराकर क्रोएशिया पहली बार फीफा विश्व कप फाइनल में पहुंचा है। मैच में सबकी नजरें क्रोएशिया की राष्ट्रपति कोलिंडा ग्रेबर कित्रोविक पर टिकी रहीं। कोलिंडा ने अपने देश का नाम फाइनल में सुनते ही जमकर खुशियां मनायी। उन्होंने खिलाड़ियों के साथ ड्रेसिंग रूम में जश्न मनाया। उन्होंने प्लेन की इकॉनोमी क्लास  में सफर किया। वो चार्टर प्लेन से भी आ सकती थीं। लेकिन उन्होंने इकॉनोमी टिकट लिया और आम लोगों के बीच सफर तय किया। कोलिंडा क्रोएशिया की पहली महिला राष्ट्रपति हैं।वीवीआईपी होने के वाबजूद भी वो साधारण जिंदगी जीती हैं। उनका एक विडियो बहुत वायरल हुआ था। जिसमें कोलिंडा खिलाड़ियों के साथ जमकर डांस किया। क्वार्टर फाइनल में क्रोएशिया का रुस से मुकाबला हुआ था। उन्होनें टीम की जर्सी पहनकर बाक्स की जगह आम दर्शकों में बैठकर मैच देखा और आम समर्थकों के साथ खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाती नजर आयीं थीं।
 क्रोएशिया, मध्य और दक्षिण पूर्व यूरोप के बीचोंबीच और एड्रियाटिक सागर के करीब बसा है। क्रोएशिया वर्ल्ड कप फाइनल खेलने वाला सबसे युवा देश बन चुका है। 1991 में यूगोस्लाविया से आजाद हुए क्रोएशिया को फुटबॉल वर्ल्ड कप में अपना पहला मैच खेलने के लिए 1998 तक का इंतजार करना पड़ा था। इस देश की कमाई का बड़ा हिस्सा पर्यटन भी है। दुनिया के टॉप 20 खूबसूरत पर्यटन स्थलों में इसकी गिनती होती है। इसकी अर्थव्यवस्था उद्दोग और खेती पर आधारित है। यह देश दुनिया के उन देशों में शामिल है। यहां धुम्रपान करना प्रतिबंधित है। फ्रांस और क्रोएशिया अब तक एक दूसरे से कुल 6 बार भिड़ चुके हैं। जिसमें से 4 बार फ्रांस को जीत मिली तो 2 बार मैच बराबरी पर रहा।
 फीफा के अध्यक्ष जियानी इनफैनटिनो ने थाईलैंड में गुफा में फंसे बच्चों की फुटबाल टीम को रूस में विश्व कप का फाइनल मैच देखने के लिए आमंत्रित किया था। इनफैनटिनो ने कहा था कि- उन्हें उम्मीद है कि दो सप्ताह पहले बाढ़ की पानी बढ़ने से गुफा में फंसे ‘वाइल्ड बोअर्स’ टीम के खिलाड़ियों को बचा लिया जाएगा और 15 जुलाई को वे मास्को में फाइनल के लिए मौजूद रहेगें। उन्होंने थाईलैंड फुटबाल संघ के प्रमुख को भेजे पत्र में लिखा- ‘‘हमें उम्मीद हैं कि वे जल्द ही अपने परिवार से मिलेंगे और अगर उनका स्वास्थ्य उन्हें यात्रा करने की इजाजत देता है तो मुझे उन्हें 2018 विश्व कप फाइनल में मेहमान के तौर पर आमंत्रित करने में खुशी होगी। ’’उन्होंने कहा था- ‘‘मुझे उम्मीद है कि वे फाइनल मैच में हमारे साथ होंगे जो नि:संदेह ही उत्सव मनाने का एक अद्भुत क्षण होगा।’’थाइलैंड के 11 से 16 साल तक के फुटबाल खिलाड़ी 23 जून से अपने कोच के साथ अंधेरी गुफा में फंस गये थे। लापता होने के 9 दिन बाद गोताखोरों ने उन्हें ढूंढ़ निकाला।
 फ्रांस ने जब सेंट पीटर्सबर्ग स्टेडियम में खेले गए पहले सेमीफाइनल मैच में बेल्जियम को
यूगोस्लाविया से 1991 में आजाद हुआ क्रोएशिया फीफा वर्ल्ड कप 2018 में कई बड़ें देशों पर ग्राउंड में भारी पड़ गया। क्रोएशिया की आबादी करीब 40 लाख है। इससे पहले यूरोपीय देश जर्मनी ने 2014 में विश्व कप जीता था। अब तक 20 वर्ल्ड कप हुए खेले जा चुके हैं। जिनमें से 11 वर्ल्ड कप यूरोपीय टीमों ने जीते हैं। इंग्लैंड को 2-1 से हराकर क्रोएशिया पहली बार फीफा विश्व कप फाइनल में पहुंचा है। मैच में सबकी नजरें क्रोएशिया की राष्ट्रपति कोलिंडा ग्रेबर कित्रोविक पर टिकी रहीं। कोलिंडा ने अपने देश का नाम फाइनल में सुनते ही जमकर खुशियां मनायी। उन्होंने खिलाड़ियों के साथ ड्रेसिंग रूम में जश्न मनाया। उन्होंने प्लेन की इकॉनोमी क्लास  में सफर किया। वो चार्टर प्लेन से भी आ सकती थीं। लेकिन उन्होंने इकॉनोमी टिकट लिया और आम लोगों के बीच सफर तय किया। कोलिंडा क्रोएशिया की पहली महिला राष्ट्रपति हैं।वीवीआईपी होने के वाबजूद भी वो साधारण जिंदगी जीती हैं। उनका एक विडियो बहुत वायरल हुआ था। जिसमें कोलिंडा खिलाड़ियों के साथ जमकर डांस किया। क्वार्टर फाइनल में क्रोएशिया का रुस से मुकाबला हुआ था। उन्होनें टीम की जर्सी पहनकर बाक्स की जगह आम दर्शकों में बैठकर मैच देखा और आम समर्थकों के साथ खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाती नजर आयीं थीं।
 क्रोएशिया, मध्य और दक्षिण पूर्व यूरोप के बीचोंबीच और एड्रियाटिक सागर के करीब बसा है। क्रोएशिया वर्ल्ड कप फाइनल खेलने वाला सबसे युवा देश बन चुका है। 1991 में यूगोस्लाविया से आजाद हुए क्रोएशिया को फुटबॉल वर्ल्ड कप में अपना पहला मैच खेलने के लिए 1998 तक का इंतजार करना पड़ा था। इस देश की कमाई का बड़ा हिस्सा पर्यटन भी है। दुनिया के टॉप 20 खूबसूरत पर्यटन स्थलों में इसकी गिनती होती है। इसकी अर्थव्यवस्था उद्दोग और खेती पर आधारित है। यह देश दुनिया के उन देशों में शामिल है। यहां धुम्रपान करना प्रतिबंधित है। फ्रांस और क्रोएशिया अब तक एक दूसरे से कुल 6 बार भिड़ चुके हैं। जिसमें से 4 बार फ्रांस को जीत मिली तो 2 बार मैच बराबरी पर रहा।
 फीफा के अध्यक्ष जियानी इनफैनटिनो ने थाईलैंड में गुफा में फंसे बच्चों की फुटबाल टीम को रूस में विश्व कप का फाइनल मैच देखने के लिए आमंत्रित किया था। इनफैनटिनो ने कहा था कि- उन्हें उम्मीद है कि दो सप्ताह पहले बाढ़ की पानी बढ़ने से गुफा में फंसे ‘वाइल्ड बोअर्स’ टीम के खिलाड़ियों को बचा लिया जाएगा और 15 जुलाई को वे मास्को में फाइनल के लिए मौजूद रहेगें। उन्होंने थाईलैंड फुटबाल संघ के प्रमुख को भेजे पत्र में लिखा- ‘‘हमें उम्मीद हैं कि वे जल्द ही अपने परिवार से मिलेंगे और अगर उनका स्वास्थ्य उन्हें यात्रा करने की इजाजत देता है तो मुझे उन्हें 2018 विश्व कप फाइनल में मेहमान के तौर पर आमंत्रित करने में खुशी होगी। ’’उन्होंने कहा था- ‘‘मुझे उम्मीद है कि वे फाइनल मैच में हमारे साथ होंगे जो नि:संदेह ही उत्सव मनाने का एक अद्भुत क्षण होगा।’’थाइलैंड के 11 से 16 साल तक के फुटबाल खिलाड़ी 23 जून से अपने कोच के साथ अंधेरी गुफा में फंस गये थे। लापता होने के 9 दिन बाद गोताखोरों ने उन्हें ढूंढ़ निकाला।
 फ्रांस ने जब सेंट पीटर्सबर्ग स्टेडियम में खेले गए पहले सेमीफाइनल मैच में बेल्जियम को 1-0 से मात देकर फीफा विश्व कप के 21वें संस्करण के फाइनल में जब जगह बनायी थी तब फ्रांस के हर फुटबाल प्रेमी में खुशी और जोश की लहर दौड़ पड़ी थी। वहीं क्रोएशिया के सपने फ्रांस से ज्यादा जोश में थे। फ्रांस जीत का प्रबल दावेदार था तो क्रोएशिया ने फाइनल में पहुंचकर फुटबाल प्रेमियों की धड़कनें बढ़ा दी थी। यदि यह मैच क्रोएशिया जीत जाता तो फुटबाल जगत में उसका नाम सुनहरे अक्षरों से अंकित हो जाता। पर फ्रांस ने अपनी पकड़ और दमदार दावेदारी प्रस्तुत की और विश्व को बता दिया कि 20 साल पहले की क्षमता अब भी बरकरार है और फ्रांस ही असल विश्वविजेता है। 
  

    
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काल के कपाल पर लिखता हूं मिटाता हूं..गीत नया गाता हूं-अटल बिहारी वाजपयी

सर्वमंगला मिश्रा
जनता के बीच माइक के सामने हवा के सागर में सफेद कुर्ते में लहराता हाथ जब उठता था, आंखें पलक झपकाती थीं और पूरे जनता समुद्र में सन्नाटा पसर जाता था अटल जी के अगले शब्द को सुनने के लिए। ऐसा ओजस्वी भाषणकर्ता जिसकी चुप्पी में शब्दों की गहराई थी और भावनाओं का आह्वाहन होता था। लोग एक बार नहीं बार बार उनको सुनना पसंद करते थे। उनके अंधभक्तों की फहरिस्त भी उनके कार्यकाल की तरह लम्बी थी। भले ही राजनीति में पदार्पण के उपरांत अपने निजी फायदे के लिए अलगाव दिखाई दिया हो पर उन सभी नेताओं की अंतरात्मा जानती थी कि उन सभी के गुरु अटल बिहारी जी ही रहे हैं। रामविलास पासवान जी ने अपने एक इंटरव्यू के दौरान बहुत बेबाकी से कहा- कि हमलोग स्कूल से बस्ता लेकर भाग –भाग कर अटल जी का भाषण सुनने जाते थे

जो कल थे,
वे आज नहीं हैं।
जो आज हैं,
वे कल नहीं होंगे।
होने, न होने का क्रम,
इसी तरह चलता रहेगा,
हम हैं, हम रहेंगे,
यह भ्रम भी सदा पलता रहेगा।
सत्य क्या है?
अटल बिहारी वाजपेयी जी की यह कविता जीवन के अकाट्य सत्य को दर्शाती है। उनकी सोच उनके जीवन शैली को भी दर्शाती है। हिन्दू हृदय सम्राट, कुशल राजनितिज्ञ, अद्भुत वक्ता, संजीदा कवि, शत्रु दल में भी जय जयकार करवाने में सक्षम अटल बिहारी वाजपेयी जी धरती पर रहने वाले एक सूरज थे।
वाजपेयी का जन्म 25 दिसम्बर 1924 को ग्वालियर में हुआ। उनके पिता का नाम कृष्णा बिहारी वाजपेयी और माता का नाम कृष्णा देवी था। उनके पिता कृष्णा बिहारी वाजपेयी अपने गाव के महान कवि और एक अध्यापक थे।
अटल बिहारी वाजपेयी जी ने ग्वालियर के बारा गोरखी के गोरखी ग्राम की गवर्नमेंट हायरसेकण्ड्री स्कूल से शिक्षा ग्रहण की थी। बाद में वे शिक्षा प्राप्त करने ग्वालियर विक्टोरिया कॉलेज (अब लक्ष्मीबाई कॉलेज) गये और हिंदी, इंग्लिश और संस्कृत में डिस्टिंक्शन से पास हुए। उन्होंने कानपुर के दयानंद एंग्लो-वैदिक कॉलेज से पोलिटिकल साइंस में अपना पोस्ट ग्रेजुएशन एम.ए में पूरा किया। इसके लिये उन्हें फर्स्ट क्लास डिग्री से भी सम्मानित किया गया था।
ग्वालियर के आर्य कुमार सभा से उन्होंने राजनैतिक काम करना शुरू किये, वे उस समय आर्य समाज की युवा शक्ति माने जाते थे और 1944 में वे उसके जनरल सेक्रेटरी भी बने।
1939 में एक स्वयंसेवक की तरह वे राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में शामिल हो गये। और वहा बाबासाहेब आप्टे से प्रभावित होकर, उन्होंने 1940-44 के दर्मियान आरएसएस प्रशिक्षण कैंप में प्रशिक्षण लिया और 1947 में आरएसएस के फुल टाइम वर्कर बन गये। विभाजन के बीज फैलने की वजह से उन्होंने लॉ की पढाई बीच में ही छोड़ दी। और प्रचारक के रूप में अटल जी को उत्तर प्रदेश भेजा गया और जल्द ही दीनदयाल उपाध्याय के साथ राष्ट्रधर्म (हिंदी मासिक ), पंचजन्य (हिंदी साप्ताहिक) और दैनिक स्वदेश और वीर अर्जुन जैसे अखबारों के लिये काम करने लगे।
अटल एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने अपने और गैरों दोनों को दिल खोलकर गले लगाया और जरुरत पड़ने पर अपने नाम की तरह अटल हिमालय बनकर देश के गौरव के लिए खड़े हो गये। पाकिस्तान के नवाज़ शरीफ से दोस्ती की बस रही हो या कारगिल युद्ध..दोनों में ही अटल जी ने अपनी कटिबद्धता दिखाई। वीर, निडर अटल जी ने देश को सदैव सर्वोपरि रखा। एक बार संसद में अपने पहले 13 दिन के कार्यकाल के दौरान भाषण में कहा- पार्टियां आयेंगी-जायेंगी, बनेंगी –टूटेंगी पर, देश हमेशा रहना चाहिए। तभी तो देश की सुरक्षा में बुलंद हौसले के साथ अडिग कदम उठाने से नहीं हिचके और पोखरण में परमाणु परीक्षण डंके की चोट पर करवा कर यह ऐलान भी कर दिया कि- भारत पहले बिना वजह इसका प्रयोग नहीं करेगा। अटल जी की जीवनी में यदि एक शक्स का उल्लेख ना हो यह तो संभव ही नहीं। उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले उनके परम स्नेही मित्र लालकृष्ण आडवाणी उनके हमराज और परम सहयोगी जीवनपर्यन्त रहे। उनकी कविताओं में इंसानियत का पुट स्पष्ट रुप से झलकता है-
पेड़ के ऊपर चढ़ा आदमी
ऊंचा दिखाई देता है।
जड़ में खड़ा आदमी
नीचा दिखाई देता है।
आदमी न ऊंचा होता है, न नीचा होता है,
न बड़ा होता है, न छोटा होता है।
आदमी सिर्फ आदमी होता है।

अटल बिहारी मात्र कवि और कुशल राजनेता ही नहीं थे बल्कि वो एक दूरदर्शी और विचारक भी थे। 1980 में भाजपा की स्थापना का श्रेय भी अटल जी को ही जाता है। दो सांसदों वाली पार्टी से लेकर आज एकछत्र शासन करने वाली पार्टी भाजपा ही है। तभी तो उन्होंने महिलाओं को राजनीति में और समाज में काम करने का भरपूर मौका दिया। सुषमा स्वराज, उमा भारती, वसुंधरा राजे सिधिंया और जैसी एक लम्बी फहरिस्त है। शिवराज सिंह चौहान, अरुण जेटली, रविशंकर प्रसाद और नरेंद्र मोदी सरीकों को बनाने वाले अटल जी ही रहे। यही कारण रहा कि प्रधानमंत्री मोदी उनके शव के साथ अंतिम संस्कार स्थली तक पैदल चले और साथ ही पूरा कैबिनेट और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी चलकर उन्हें सच्ची श्रद्धांजली दी। व्यथित मन से अटल जी के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ब्लाग में लिखा- अटल जी अब नहीं रहे.. मन नहीं मानता.. अटल जी, मेरी आंखों के सामने हैं, स्थिर हैं। जो हाथ मेरी पीठ पर धौल जमाते थे, जो स्नेह से, मुस्कराते हुए मुझे अंकवार में भर लेते थे, वे स्थिर हैं। अटल जी की ये स्थिरता मुझे झकझोर रही है, अस्थिर कर रही है। एक जलन सी है आंखों में, कुछ कहना है, बहुत कुछ कहना है लेकिन कह नहीं पा रहा। मैं खुद को बार-बार यकीन दिला रहा हूं कि अटल जी अब नहीं हैं, लेकिन ये विचार आते ही खुद को इस विचार से दूर कर रहा हूं। क्या अटल जी वाकई नहीं हैं? नहीं. मैं उनकी आवाज अपने भीतर गूंजते हुए महसूस कर रहा हूं, कैसे कह दूं, कैसे मान लूं, वे अब नहीं हैं।
प्रधानमंत्री ने आगे लिखा- वे पंचतत्व हैं. वे आकाश, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, सबमें व्याप्त हैं, वे अटल हैं, वे अब भी हैं. जब उनसे पहली बार मिला था, उसकी स्मृति ऐसी है जैसे कल की ही बात हो. इतने बड़े नेता, इतने बड़े विद्वान. लगता था जैसे शीशे के उस पार की दुनिया से निकलकर कोई सामने आ गया है, जिसका इतना नाम सुना था, जिसको इतना पढ़ा था, जिससे बिना मिले, इतना कुछ सीखा था, वो मेरे सामने था. जब पहली बार उनके मुंह से मेरा नाम निकला तो लगा, पाने के लिए बस इतना ही बहुत है. बहुत दिनों तक मेरा नाम लेती हुई उनकी वह आवाज मेरे कानों से टकराती रही. मैं कैसे मान लूं कि वह आवाज अब चली गई है। कभी सोचा नहीं था कि अटल जी के बारे में ऐसा लिखने के लिए कलम उठानी पड़ेगी। देश और दुनिया अटल जी को एक स्टेट्समैन, धारा प्रवाह वक्ता, संवेदनशील कवि, विचारवान लेखक, धारदार पत्रकार और विजनरी जननेता के तौर पर जानती है, लेकिन मेरे लिए उनका स्थान इससे भी ऊपर का था. सिर्फ इसलिए नहीं कि मुझे उनके साथ बरसों तक काम करने का अवसर मिला, बल्कि मेरे जीवन, मेरी सोच, मेरे आदर्शों-मूल्यों पर जो छाप उन्होंने छोड़ी, जो विश्वास उन्होंने मुझ पर किया, उसने मुझे गढ़ा है, हर स्थिति में अटल रहना सिखाया है।

उनके लिए राष्ट्र सर्वोपरि था-बाकी सब का कोई महत्त्व नहीं. इंडिया फर्स्ट-भारत प्रथम, ये मंत्र वाक्य उनका जीवन ध्येय था. पोखरण देश के लिए जरूरी था तो चिंता नहीं की प्रतिबंधों और आलोचनाओं की, क्योंकि देश प्रथम था. सुपर कंप्यूटर नहीं मिले, क्रायोजेनिक इंजन नहीं मिले तो परवाह नहीं, हम खुद बनाएंगे, हम खुद अपने दम पर अपनी प्रतिभा और वैज्ञानिक कुशलता के बल पर असंभव दिखने वाले कार्य संभव कर दिखाएंगे. और ऐसा किया भी। दुनिया को चकित किया। सिर्फ एक ताकत उनके भीतर काम करती थी- देश प्रथम की जिद।   
काल के कपाल पर लिखने और मिटाने की ताकत, हिम्मत और चुनौतियों के बादलों में विजय का सूरज उगाने का चमत्कार उनके सीने में था तो इसलिए क्योंकि वह सीना देश प्रथम के लिए धड़कता था। इसलिए हार और जीत उनके मन पर असर नहीं करती थी। सरकार बनी तो भी, सरकार एक वोट से गिरा दी गई तो भी, उनके स्वरों में पराजय को भी विजय के ऐसे गगन भेदी विश्वास में बदलने की ताकत थी कि जीतने वाला ही हार मान जाय।
अटल जी कभी लीक पर नहीं चले. उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में नए रास्ते बनाए और तय किए। 'आंधियों में भी दीये जलाने' की क्षमता उनमें थी। पूरी बेबाकी से जो कुछ भी बोलते थे, सीधा जनमानस के हृदय में उतर जाता था। अपनी बात को कैसे रखना है, कितना कहना है और कितना अनकहा छोड़ देना है, इसमें उन्हें महारत हासिल था।
बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
हास्य-रूदन में, तूफानों में,

कौन भूल सकता है। 13 दिनों की सरकार को बचाने की नाकाम कोशिशों के बाबजूद भी वाजपेयीजी का अचूक, गगनभेदी भाषण। वहीं संसद की दीवारों मे अटल की यादें आज भी ताजा हैं। अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के सिर्फ एक नेता ही नहीं हैं वे भारतीय लोकतंत्र के सिर्फ एक प्रधानमंत्री भी नहीं है अटल भारतीय शासन की सिर्फ शख्सियत नहीं है बल्कि वो भारत के अनमोल रत्न हैं जिन्होनें राजनीति के इतिहास में एक अमिट कहानी लिखी है ..वाजपेयी  एक विरासत हैं.. एक ऐसी विरासत जिनके इर्द -गिर्द भारतीय राजनीति का पूरा सिलसिला चलता है। 13 दिन के बाद 13 महीने की सरकार और अंततोगत्वा पूरे 5 साल की सरकार चलाने का श्रेय और अंनंत पार्टियों को साथ लेकर चलने के बावजूद जे जयललिता और ममता बनर्जी की बनरघुड़कियों से हरबार जूझते रहे। 3 बार प्रधानमंत्री बनने का मौका जवाहरलाल नेहरु के बाद अटल जी को ही यह सौभाग्य प्राप्त हुआ।
काल के कपाल पर लिखता हूं मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं....मैं गीत नया गाता हूं....
सत्य ही है अटल जी ने सदा नवगीत का ही सृजन किया। उनका राजनैतिक पदार्पण 1957 से शुरु हुआ।  जब उन्होनें पहली बार भारतीय संसद में दस्तक दी थी। जब आजाद हिन्दुतान के दूसरे आमचुनाव हुए। अटलजी भारतीय जनसंघ के टिकट से तीन जगह से खड़े हुए थे। मथुरा में जमानत जब्त हो गई। लखनऊ से भी वे हार गए लेकिन बलराम पुर में उन्हें जनता ने अपना सांसद चुना। और यही उनके अगले 5 दशकों के संसदीय करियर की शुरुआत थी। अटल बिहारी वाजपेयी अब तक नौ बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं।
1962 से 1967 और 1986 में अटलजी राज्यसभा के सदस्य भी रहे। 1980 में भाजपा के संस्थापक सदस्य रहे।
1968 से 1973 तक वो भारतीय जन संघ के अध्यक्ष रहे। मोरारजी देसाई के कैबिनेट में वे एक्सटर्नल अफेयर मंत्री भी रहे।
विपक्षी पार्टियों के अपने दूसरे साथियों की तरह उन्हें भी आपातकाल के दौरान जेल भेजा गया। 1977 में जनता पार्टी सरकार में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया।
इस दौरान संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में अटलजी ने हिंदी में भाषण दिया और वह इसे अपने जीवन का अब तक का सबसे बेहतरीन पल मानते थे। यह गौरवशाली पल सम्पूर्ण भारत के लिए आकाशगंगा के समान था। भारत के इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में यह पल लिखा जा चुका है।
1980 से 1986 तक वो बीजेपी के अध्यक्ष रहे और इस दौरान वह बीजेपी संसदीय दल के नेता भी रहे। अटल बिहारी वाजपेयी अब तक नौ बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं।
ख़ासतौर से 1984 में जब वो ग्वालियर में कांग्रेस के माधवराव सिंधिया से उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। 1962 से 1967 और 1986 में वो राज्यसभा के सदस्य भी रहे। 1996 में देश में परिवर्तन की बयार चली और बीजेपी को सबसे ज्यादा सीटें मिलीं और अटल जी ने पहली बार इस देश के प्रधानमंत्री पद को सुशोभित किया। कहते हैं जवाहरलाल नेहरु भी अटल जी का भाषण मंत्रमुग्ध होकर सुनते थे। उनके उन्मुक्त स्वभाव के कारण ही उन्हें 1994 में बेस्ट संसद व्यक्ति का पुरस्कार भी मिला।
हालाकि उनकी यह सरकार महज 13 दिन ही चली। लेकिन 1998 के आमचुनावों में फिर वाजपेयी जी ने  सहयोगी पार्टियों के साथ  लोकसभा में अपने गठबंधन का बहुमत सिद्ध किया और इस तरह एक बार फिर प्रधानमंत्री बने।
अटलजी के  इस कार्यकाल में भारत  परमाणुशक्ति-संपन्न राष्ट्र बना। इन्होने पाकिस्तान के साथ कश्मीर विवाद सुलझाने, आपसी व्यापार एवं भाईचारा बढ़ाने को लेकर कई प्रयास किये। लेकिन 13 महीने के कार्यकाल के बाद इनकी सरकार राजनीतिक षडयंत्र के चलते महज एक वोट से अल्पमत में आ गयी।जिसके बाद अटल बिहारी जी ने राष्ट्रपति को त्याग पत्र दे दिया और अपने भाषण में कहा कि-
जिस सरकार को बचाने के लिए असंवैधानिक कदम उठाने पड़ें उसे वो चिमटे से छूना पसंद नहीं करेंगे। उनकी भावना देशभक्ति से ओतप्रोत थी।
पंद्रह अगस्त का दिन कहता -
आज़ादी अभी अधूरी है।
सपने सच होने बाकी है,
रावी की शपथ न पूरी है।।
इसके बाद 1999 के आमचुनाव से पहले बतौर कार्यवाहक प्रधानमंत्री ने कारगिल में पाकिस्तान को उसके नापाक कारगुजारियों का करारा जवाब दिया और भारत कारगिल युद्ध में विजयी हुआ। कालांतर में आमचुनाव हुए और जनता के समर्थन से अटलजी ने सरकार बनाई। प्रधानमंत्री के रूप में इन्होने अपनी क्षमता का बड़ा ही समर्थ परिचय दिया।
ऊँचे पहाड़ पर,
पेड़ नहीं लगते,
पौधे नहीं उगते,
न घास ही जमती है।
जमती है सिर्फ बर्फ,
जो, कफ़न की तरह सफ़ेद और,
मौत की तरह ठंडी होती है।

ऐसी ऊँचाई,
जिसका परस
पानी को पत्थर कर दे,
ऐसी ऊँचाई
जिसका दरस हीन भाव भर दे,
अभिनंदन की अधिकारी है,
आरोहियों के लिये आमंत्रण है,
उस पर झंडे गाड़े जा सकते हैं,

पद्म विभूषण अटल जी आजीवन अविवाहित ही रहे। उन्होने कौल परिवार की पुत्रियों को गोद लिया और अंतिम समय में संस्कार भी उनकी दत्तक पुत्री ने ही किया। समाज को जाते जाते भी अटल जी ने एक परिवर्तित पथ पर समाज को चलने का निर्देश दे डाला। उनके जीवन की छवि को कुछ यूं समझा जा सकता है-
शून्य में अकेला खड़ा होना,
पहाड़ की महानता नहीं,
मजबूरी है।
ऊँचाई और गहराई में
आकाश-पाताल की दूरी है।
जो जितना ऊँचा,
उतना एकाकी होता है,
हर भार को स्वयं ढोता है,
चेहरे पर मुस्कानें चिपका,
मन ही मन रोता है।
ज़रूरी यह है कि
ऊँचाई के साथ विस्तार भी हो,


न वसंत हो, न पतझड़,
हो सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,
मात्र अकेलेपन का सन्नाटा।
मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
ग़ैरों को गले न लगा सकूँ,
इतनी रुखाई कभी मत देना।
अटल बिहारी वाजपेयी-
भारतमाता के महान सपूत और विभूति को हमारी ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि..







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