लिंगायत से किसको
फायदा
सर्वमंगला मिश्रा
22 राज्यों में
गेरुआ परचम लहरा चुकी केंद्र सरकार कर्नाटक की जीत के लिए उद्दत है। जाहिर सी बात
है पूरब से लेकर पश्चिम, उतर से लेकर दक्षिण तक केशरिया रंग में देश रंगा हुआ सा
नजर आता है। कर्नाटक में भाजपा की जीत दक्षिण में फिर से एक नया अध्याय शुरु
करेगी। जिससे भाजपा के विश्व विजय मिशन को यानी अश्वमेध यज्ञ को पूरा करने में एक
सीढ़ी और चढ जायेगी। राहुल गांधी भी हाल ही में हुए कुछ चुनाव और उप-चुनाव से उत्साहित
नजर आ रहे हैं परन्तु अमित शाह को अपनी रणनीति पर पूरा भरोसा है। भरोसा है लिंगायत
वर्ग से मिलने वाली सत्ता के समर्थन का। हाल ही में हिन्दू धर्म से अलग हटकर अपनी
अलग पहचान बनाने वाला लिंगायत धर्म को विश्व के समक्ष एक पहचान सी मिल गयी है। पर,
राजनिति के विचारक इसे वोट बैंक के तौर पर आंकते हैं।
कुछ लोगों को मानना
है कि वीरशैव और लिंगायत एक ही आस्था के प्रतीक होते हैं। परन्तु, दक्षिण भारतीय
खुद को वीरशैव से बिल्कुल अलग मानते हैं। वीरशैव शिव के उपासक होते हैं तो लिंगायत
शिव की पूजा अर्चना नहीं करते बल्कि अपने शरीर पर ईष्टलिंग धारण करते हैं। इसकी
आकृति गेंदनुमा होती है। इसे लिंगायत धर्म को मानने वाले समुदाय आतंरिक चेतना के
रुप में देखते हैं। राजनीति की रेत वाली जमीन पर राहुल गांधी के अंदर गुजरात
चुनावों के दौरान जो धार्मिक चेतना जगी उसकी चर्चा पूरी राजनीति के गलियारों से
निकलकर आम जनता तक पहुंच गयी। जनेउधारी राहुल शिव भक्ति में अब सराबोर हो चुके
हैं। जहां शिव की आस्था के बल पर कांग्रेस शतरंज की बिसात बिछाना चाहती है तो
भाजपा के बड़े नेता इस खेल में जनता की नजर में कहीं आगे चल रहे हैं। अमित शाह ने
जहां लिंगायत प्रमुख शिवकुमार स्वामीजी से आशीर्वाद ले चुके हैं। वहीं राहुल गांधी
भी पीछे नहीं रहना चाहते हैं और आशीर्वाद लेकर कांग्रेस के पक्ष में कुछ सीटें
बटोर लेने का प्रयास करना चाहते हैं। लिंगायत समुदाय हमेशा से बड़ा वोट बैंक रहा
है। जाहिर सी बात है वोट बैंक बड़ा है तो प्रयास और उसके अधिकार भी बड़े होने
चाहिए। जो अब लिंगायत समुदाय को कहीं न कहीं मिलने की आस है।
राहुल गांधी ने
कर्नाटक के तकरीबन 70 प्रतिशत जिलों का दौरा कर लिया है। परन्तु जनता पर इस दौरे
का किया असर पड़ेगा..ये तो जनता ही बता सकेगी। समाज को बांटकर होने वाली राजनीति अभी
और न जाने कितने धर्मों के टुकड़े करेगी। भारत की अनेकता में एकता की मजबूती को
तोड़ने के मनसूबे न जाने कितनी बार कामयाब होंगें और देशवासी कामयाब होते हुए
देखते रहेंगे।
मोदीजी का शासनकाल,
जहां हिन्दुत्व का जीर्णोद्धार हो रहा है। वहीं मोदी सरकार दूसरे धर्मों से
कुरीतियों को निकालने में भी सक्षम हो रही है। जैसे तीन तलाक और हलाला जैसी
कुरीतियों से मुस्लिम महिलाओं को निज़ाद दिलाना। लेकिन हिन्दु धर्म के टुकड़े न
जाने कितने होंगे। इससे समाज पर क्या असर होगा। यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
धर्म और आस्था
राजनीति की बड़ी ढ़ाल रहा है। पर देश में किसी भी एक समाज को वोट बैंक के तौर पर
देखना और उसे भरपूर तवज्जो देना भविष्य के लिए खतरनाक साबित होता है। राजनीति की दरिया ने धर्म और इंसान में कितना
फर्क ला दिया है।
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