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Saturday 19 July 2014

         
                          आस्था और अनुकरण

सर्वमंगला मिश्रा
9717827056

आस्था से श्रद्धा और श्रद्धा से विश्वास कायम होता है। जीवन अति सरल पर कठिन पाठ पढ़ाता है। धर्म में आस्था रखना और अंधानुकरण करना दो अलग बातें हैं। धर्म में आस्था रखना -इंसान के अंदर विश्वास, प्रेम और पथ प्रदर्शक बनने का गुण पनपाती है। तो अंधानुकरण करने वाले लोग बिना विचारे ढाक के तीन पात ही चल पाते हैं। उनमें मात्र कट्टरता की भावना रहती है। इंसानियत की मर्यादा समाप्त हो जाती है। धर्म मर्यादा पालन सीखाता है ना कि आपस में फूट डालता है।धर्म की मानसिकता एकता को मजबूती प्रदान करती है। द्वारका-शारदा पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानन्द जी महाराज ने साईं पूजा को हिन्दू धर्म के विरुद्ध बताया। हर बड़े चैनल पर उनका इंटरव्यू भी चला। साईं भक्तों ने आग बबूला होकर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानन्द जी महाराज का पूतला भी फूंक डाला। पर, ध्यान देने योग्य बात यह रही कि हिन्दू धर्म के समर्थकों ने साईं का पुतला न फूंका और ना ही अनैतिक कदम उठाये। मसला यह है कि सामाजिक कुरीतियों से बचाना समाज के लोगों को यह धर्म गुरु का काम होता है। हम सभी लोग अपने बचपन में अपने बड़े –बजुर्गों से यही सुनते आये हैं कि अच्छे लोगों की संगत करो। इससे आपमें अच्छे गुण पनपते हैं। यह जीवन है जहां इंसान को कदम कदम पर भिन्न- भिन्न गुरुओं की आवश्यकता पड़ती है और एक ही गुरु से जीवन चल तो सकता है पर आज जिंदगी की लाइफस्टाइल चेंज़ हो जाने से जीवन के पहलू को देखने और सोचने का नजरिया भी बदल सा गया है। इसलिए जैसे हर विषय के लिए बच्चा अलग अलग टीचरों से ट्यूशन लेता है उसी तरह जीवन को भी अलग अलग डाक्टर से कंस्ल्ट करना पड़ता है। हालांकि पहले गुरुकुल में एक ही गुरु अपने सभी शिष्यों को उनके समर्थता के आधार पर विकसित करते थे और जीवन के मार्ग पर चलने में कठिनाइयों का सामना कम करना पड़ता था। उसी तरह 33 करोड़ देवा देवता हिन्दू धर्म में बताये जाते हैं। पर क्या उन 33 करोड़ देवी –देवताओं के नाम भी हम जानते हैं ?? जाहिर सी बात है उत्तर ना ही निकलेगा। उसी तरह साईं बाबा, गुरुनानक जी, मुहम्मद पैगम्बर और जिसस क्राइस्ट ये सभी आज परमपूज्य और साधना के प्रेरणास्त्रोत हैं। वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह...आमीन....ओ जिसस- मे गोड बेल्स यू माई चाइल्ड जैसे कई आस्थावान शब्द  और वाक्य है जो आपके मन के अंदर एक अद्भुत ऊर्जा का संचार करते हैं। उस अविश्वसनीय, परम शक्तिमान और जगत संचालक को किसी ने नहीं देखा। वो सुप्रीम लार्ड है, भगवान है, जगत विधाता, शिव, ब्रह्मा या विष्णु रुपेण है..या अल्लाह, गुरुनानक साहेब या जिसस है । हममें से किसी को नहीं पता। पर एक परम शक्ति है कहीं न कहीं जो इस जगत का संचालन करती है। हमें नदी की धारा के सामान गोमुख से निकालकर महासमुद्र में विलीन कर देती है। यही सत्य है।

जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानन्द जी महाराज के साईं पूजा का विरोध मात्र विरोध नहीं था। एक पहल एक आगाह था जो हिन्दू अपने धर्म से भटक रहे हैं उनके लिए। उनका कहना यही रहा कि साईं को आप मानो मुझे कोई आपत्ति नहीं पर हिन्दू शास्त्रों में वर्णित देवी देवताओं का स्थान उनसे निम्न मत करो। साईं –राम , साईं कृष्ण, साईं-श्याम मत कहो। यदि आप को भजना है तो साईं का नाम सांई की तरह लो। उसमें राम-कृष्ण मत जोड़ो। पर बेबाक मीडिया थोड़ा मुखर हो गया। इसे चढ़ावा और साईं से शंकराचार्य का टकराव घोषित कर दिया। संत होना अलग बात है पर परमात्मा बनना अलग बात है। सनातन धर्म में वैसे ही इतने शास्त्र, पुराण और वेद होने के कारण वैचारिक मतभेद आपस में संकीर्णता को जन्म दे चुके हैं। ऐसे में स्वामी नारायण की पूजा, शिरणी के साईं की पूजा अपने आप में आने वाली पीढियों को भ्रमित करने वाली है। मेरे पिताजी आज से अमूमन 42 अथवा 45 वर्ष पूर्व देवरहवा बाबा से मिल चुके हैं। अद्भूत, चमत्कारी, मचान पर रहना, खड़ाऊं पहनना, स्पृश्यता एकदम वर्जित, हर आधे घंटे में स्नान करना, इच्छा मन में की और उत्तर तुरंत पा जाना। पर आज उनका कोई मंदिर या धाम नहीं है। बहुत लोग शायद उनके विषय में सुने भी नहीं होंगे। इसी तरह फहरिस्त काफी लम्बी है। गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी इन्हें हम संत और धर्म प्रदर्शक के रुप में जानते और मानते हैं। साईं बाबा जिनके पूरे विश्व में करोड़ों अनुयायी हैं कुछ काल पूर्व ही उनका शरीर पंच तत्व में विलीन हुआ। उनका कोई मंदिर नहीं। पर आज उनके अनुयायी ट्रस्ट का पैसा लगाकर मंदिर खोलें और उन्हें भगवान के रुप में स्थापित कर दें तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। पर क्या जानने वाले ज्ञानी क्या इस अनछुए पहलू से अनभिज्ञ हैं  ??  निर्मला देवी जिन्होंने खुद को ईश्वर स्वरुपा बताया और लोगों के घरों से देवी देवताओं की मूर्तियां तक हटवा दी, और स्वघोषित ईश्वर के रुप में आज भी कई घरों और मस्तिष्क में विद्दमान हैं। एक और स्वघोषित ईश्वर की बात न की जाय तो बात अधूरी रह जायेगी। वो हैं आशाराम बापू- जो आजकल किस कारण जेल में हैं इस बारे में बात करना समय की नष्टता होगी। ओशो- जिसकी बातें और नाम आध्यात्म जगत में पूजा है। करोड़ों भक्त उनकी आस्था के सागर में गोते लगाते हैं। उनकी पुस्तकें पढ लेने मात्र से- जीवन का सार और स्वर्ग की अनुभूति उनके लिखित विचारों से झलकती है। पर क्या वो ईश्वर थे??  आजकल एक नाम जिसकी कश्ती डूबी पर लक्ष्मी मैया ने फिर उन्हें सहारा दे दिया है। निर्मल बाबा जो व्यापार में फेल हो गये थे पर आज दूसरों पर ईश्वरीय कृपा कैसे होगी सरल भाव में बताते हैं। उनके अनुयायी जिनकी आस्था कहीं न कहीं प्रबल है या जिंदगी को राह देने वाली मशीन पर एक भरोसा उमड़ा हुआ है। कहा नहीं जा सकता। तो क्या ये ईश्वर हैं??
सचिन तेंदुलकर-क्रिकेट के भगवान, रफी साहब, लता मंगेशंकर इन्हें आज के युग का सर्वश्रष्ठ माना जाता है। देश नहीं विदेशों में भी पूजे जाते हैं। अपने कर्म के लिए। पर अपवाद यहां भी है- एक बार पढा था ,जब माधुरी दीक्षित का बहुत बोलबाला था, तो एक पान वाला दुकान खोलने के साथ सबसे पहले उनकी तस्वीर को धूप –बत्ती दिखाता और उसके बाद अपनी दुकान शुरु करता। इसी तरह विद्दा भारती, अमिताभ बच्चन-जैसे चर्चित अभनेता व अभिनेत्रियों को सत्कार और प्रेम मिलता रहा तो क्या ये ईश्वर हैं?? हर क्षेत्र में एक इतिहास रचयिता आता है। उस इतिहास रचने वाले को आम लोगों के जीवन में विशेष स्थान मिलता है। लोग उसे अनुकरण करते हैं, पूजते हैं अपना दिन उसके दर्शन से सुखद होता मानते हैं। वकालत में इतिहास रचयिता और उपलब्धि हासिल करने वाले को वकालत पढ़ने वैले बच्चे पूजेंगें। टीचर्स डे के दिन हम शिक्षकों को पूजते हैं। परीक्षा में जाने के पहले उनका आईशीर्वाद लेते हैं। बहुत से श्रवण कुमार कहीं न कहीं तो धरती पर होंगे जो माता पिता को पूजते होंगे। पर क्या दुनिया उस व्यक्ति के माता पिता को पूजती है??  जानती भी नहीं है। ठीक उसी तरह जिसतरह टेनिस खिलाड़ी शारापोवा का मैच देखने गये क्रिकेट के भगवान सचिन को शारापोवा नहीं जानती थीं। यहां मेरा मकसद किसी विवाद को जन्म देना नहीं बल्कि मात्र एक संयोग पेश करना था। मैं खुद भी सचिन तेंदुलकर की बड़ी या छोटी नहीं कहूंगी पर जबरदस्त फैन अवश्य हूं। सभी की तरह मेरी आंखों में भी आंसू थे जिस दिन उन्होंने क्रिकेट से संयास लिया था। कहने का तात्पर्य यह है कि हम सबमें वो परम आत्मा कहीं न कहीं विद्दमान है। जो हम सबको सांस लेने से लेकर जीना सीखाता है और सांस रुकते ही परम धाम या पंच तत्व या मिट्टी में मिल जाने का संकेत देता है। क्योंकि इस शरीर को बर्दाश्त करना लोगों के लिए असहनीय बन जाता है। वहीं मोरारी बापू, किरीट भाई जी ईश्वर के अस्तितव का बखान करते हैं पर स्वंय को कभी भी ईश्वर बताने का भ्रम नहीं पाला। संत ईश्वर और मानव के बीच मात्र माध्यम है एक ब्रिज मात्र है। ईश्वर नहीं। उन्हें आभास है कि इस नश्वर शरीर में उस परम शक्ति का कण मात्र सही पर है पर कण कण से बना वो परम जिसकी कल्पना अकल्पनीय. या बियांड एक्सपेक्टेशन है। हम मानव वो हो नही सकते। अब सवाल एक और भी उठता है-राम और कृष्ण भी तो मानव रुप में धरती पर अवतरित हुए। उन्हें ईश्वर के रुप में क्यूं पूजा जाय ?? शास्त्रों में वर्णित है कि आदिगुरु शंकराचार्य स्वयं शंकर भगवान के अवतार थे। जिन्होंने मात्र धर्म की स्थापना व्यापक रुप में करने के लिए ही इस धरती पर उस काल में पदार्पण किया था। आज लोग शंकराचार्य को साईं के तर्ज पर तो ईश्वर नहीं मानते।   
कहने का पर्याय यह है कि धर्म की नीतियां जीवन में समभाव, चरित्र की उत्तमता की ओर मानव जीवन को प्रेरित करती हैं। धर्म अवहेलना नहीं संतुलन सीखाता है। संतुलन ही यह बताता है कि समभाव रखते हुए बगुला और हंस में अंतर कैसे किया जाना चाहिए।
 






 

1 comment:

ASIT NATH TIWARI said...
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