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Thursday 21 July 2016

सल्तनत -ए -कश्मीर



सर्वमंगला मिश्रा

भारत कश्मीर का प्रमुख अंग है। जिसे सर का ताज –सरताज भी कहा जाता है। ताज पहनना और उसे संभाल
कर रखना एक राजा के लिए चुनौती के साथ साथ सम्मान, अपमान और मर्यादा की शाख में सेंध न लगने देने का एक उत्तरदायित्तव होता है। भारत के सिर पर भी कश्मीर का ताज है। जिसे आज तक भारत ने पूरे उत्तरदायित्तव के साथ संभाल कर रखा हुआ है। कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी हार न मानकर मुकुट पर आंच नहीं आने दी। इसके एवज़ में लाखों सैनिकों और जवानों की आहूति चढ़ चुकी है। देश के सम्मान से बड़ा कुछ नहीं होता यह भारतवासियों और उनके सपूतों ने सिद्ध कर दिया है।

कश्मीर के मुद्दे को लेकर भारत –पाक की अब तक न जाने कितनी अनगिनत वार्ताएं हो चुकी हैं। दोनों देश चाहे
जहां मिलें वहीं यह मुद्दा ज्वलंत बन जाता है। पूरे विश्व की निगाहें दोनों देशों पर इसी विषय को लेकर टिकी
रहती है। सार्क सम्मेलन से लेकर अमेरिका में संबोधन तक, यह मुद्दा कभी विश्व ने न अपनी और न हमारी आंखों से ओझल होने दिया। संभव भी नहीं है, क्योंकि जिस विषय को लेकर पूरा देश जलता रहता है, कितनी कोख सूनी हो जाती हैं, कितने परिवार अपाहिज़ हो जाते हैं, कितने घर बेकारी की रफ्तार पकड़ लेते हैं, कितने मृत शरीर चिता की अग्नि तक भी नहीं पहुंच पाते, ऐसे मुद्दे से आंखें फेर लेना उस देश की जनता और माटी से
अघोषित नाइंसाफी है, अपराध है।

गांधी जी, जिन्ना और जवाहर लाल नेहरु के इस विवादित फैसले ने न भारत को चैन की सांस लेने दी और न ही
पाकिस्तान को शांति से बैठने दिया। दोनों देश विश्व के समक्ष न जाने कब तक सौरभ कालिया से लेकर न जाने कितने  शहीद अपनी शहादत देगें और बुरहान कश्मीर की वादियों में सनसनी सुलगाते रहेंगे। कश्मीर पाक के लिए मक्का मदीना से भी बढ़कर बड़ी दरगाह बन चुका है। जिसके लिए न जाने कितने आतंकी गिरोह बन चुके हैं और सक्रिय हैं। कितने मासूम बच्चे उनकी गिरफ्त में फंस गये या फंसा लिये गये और कुछ जेहाद के नाम पर मर मिटे । कलम -कागज की जगह बन्दूक, हथगोले जो किसी को भी दहला दें, उनसे दहशत के आकाओं ने इन मासूमों को बेखौफ होकर खेलना सीखा दिया। इनमें से कईयों को दहशत के कलयुगी द्रोणाचार्यों ने कई ओजस्वी और धराशायी कर देने वाले नवचेतना युक्त क्रांतिकारी बुरहान जैसे नवयुवकों को आतंक का अर्जुन बना दिया । आज ऐसे ही कुछ दहशत के खौफनाक बुरहान जैसे सेनानायकों को पाकिस्तान खोकर शोक का आलम फैला रहा है। आतंकी आकाओं को शायद इस बात का इल्म ही नहीं कि जो अनगिनत लाशें बिछाकर एक बार खुद मिट्टी पर गिर पड़ते हैं तो उनका शोक रहे हो पर, जिन्हें न जन्नत चाहिए न किसीकी जान, वो शहीद हो रहे हैं सिर्फ देश की शान की खातिर, भारतमाता की आन की खातिर, उनकी लाशें बिछाकर कौन सी जन्नत नसीब होगी। क्या कभी यह ख्याल दिमाग में आया कि जिस धरती पर हम सांस ले रहे हैं उस धरती को नर्क बना रखा है जेहाद के नाम पर । जब हिस्सेदारी दे दी गयी है तो अवैध कब्जा के नाम पर इंसानियत के ऊपर क्यों बुलडोजर चला रहे हैं। ह्यूमन बम, फिदाइन दस्ते तैयार कर अपने गैरइरादतन मंसूबों पर पहल कर शिखर हासिल नहीं होना है। लेकिन जिस जेहादी जंग में इंसानियत को ढकेलकर सूकून का एहसास जेहादी टोला करता है वो शर्मसार कर देने वाला कबूलनामा है।


पाक -भारत के बार्डर पर क्षण क्षण अशांति पनपती रहती है। हर बार विश्व मंच पर चेतावनी के तौर पर विदेश मंत्रालय के हुक्मरान और प्रवक्ता कहते आ रहे हैं कि आतंकवाद और शांति वार्ता एक साथ नहीं चल सकती। समय चाहे अटल बिहारी का रहा हो या अब मोदी का। जसवंत सिंह हो या सुषमा स्वराज, चेतावनी से लेकर शांति वार्ता आमंत्रण,शांतिदूत भारत ने हर लहजे से समझाया, पर पाकिस्तान अपनी जेहादी जिन्दादिली के आगे सोचने में असमर्थ लगता है।

बुरहान, जिसकी मौत का शोक पूरा पाकिस्तान मना रहा है। जिसने न जाने कितने अनगिनत मासूमों को अपने आकाओं के कहने पर गुमराह किया, कितनों का जीवन बर्बाद किया, जिसने न जाने कितने घरों के चिराग छीन लिये, उस बुरहान की मौत के जनाजे के साथ ऐसी भीड़ उमड़ी जो अकल्पनीय थी। यह वही था जिसने अपनी सेल्फी सोशल मीडिया में सबसे पहले डाली थी । सोशल मीडिया पर छाया यह क्रूर आतंकी, अपनी मासूम शक्ल और हैंडसम पर्सनालिटी के कारण,चर्चा का विषय रहा। उसके लिए शहादत का ऐसा शोक ? जो सैनिकों की शहादत पर सवालिया निशान सा लगा देता है। उन शहीदों की अंतिम विदायी में मात्र उनके परिजन और एक सेना की टुकड़ी जो सलामी देती है और कुछ गणमान्य नेतागण मौजूद रहते हैं और वह सैनिक पंचतत्व में विलीन या सुपुर्द ए खाक हो जाता है। क्या भारतवासियों को शर्मिंदगी महसूस नहीं होती। क्या देश के नेताओं को यह बात सोचने पर मजबूर नहीं करती कि किस देश की गरिमा और शान की बात करते हैं। बड़ी बड़ी बातें लोकतंत्र के तमाम मंच पर आतंकवाद के खिलाफ बयान देते हैं। ऐसे में यह समझना और सोचना आज लाजमी हो गया है कि कश्मीर में चल रही सरकार और उसकी आतंरिक मंशा क्या है।

कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती हों या ओमर अब्दुल्ला कश्मीर की घाटी के नियम वही हैं, जो चले आ रहे हैं। जबतक उनमें कोई परिवर्तन नहीं होगा देशवासियों को इस सोच से निज़ाद नहीं मिल पा रहा कि देश में ही कश्मीर है जिसके लिए आज तक अनगिनत शहादतें हो चुकी हैं। देश के नौजवान हजारों हजार किलोमीटर दूर देश की सरहद बचाने चले जाते हैं। अगर यूंही शहादतें सरकारों को दिलवानी है तो मांये अपने बच्चों को कदापि नहीं भेजेंगी शरहद की शान बचाने । हर बार एल ओ सी का उल्लंघन हर बार फायरिंग, हर बार वार्ता विफल, हर बार बाहरी देशों का हस्तक्षेप। फलस्वरुप, आगरा हो या ताशकंद भारत की शांति में ग्रहण बनता है पाकिस्तान । दोनों देश के राजनेताओं की मजबूरी है कश्मीर को मुद्दा बनाये रखना या पाकिस्तान की मंशा। कश्मीर के हुक्मरान क्या इस आतंकी जेहाद से अपने निवासियों को महफूस करने की कोई पहल की या योजना बनायी है। जिसपर राज्य और केंद्र संयुक्त रुप से एकजुट होकर क्रियान्वयन करें । कश्मीर से जेहादी क्रांति दिल्ली के जेएनयू तक पहुंच चुकी है। जेहादी नेटवर्क हर रुप में देश के हर कोने में जह़र की तरह धीरे धीरे फैलता जा रहा है। कश्मीर में रहने वाले कुछ समुदाय बेखौफ होकर पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाते हैं । इस पर न तो वहां की राज्य सरकार और न ही केंद्र सरकार कोई एक्शन लेती है । जबकि पाकिस्तान में एयरपोर्ट पर ही उस व्यक्ति को टार्गेट कर लिया जाता है जो भारत की तारीफ कर दे। क्या यही वजह है कि अदनान सामी जैसे गायक पाकिस्तान वापस नहीं जाना चाहते। दूसरे पाकिस्तानी सितारे भी भारतीय मुल्क की नागरिकता हासिल करने के इच्छुक हैं।


अब समय आ चुका है कि भारतवाासी कश्मीर में रह रहे नागरिकों से यह सवाल पूछ लें कि उनका मुल्क कौन सा है ?जहां उन्हें हिफाजत दी जा रही है या जहां उनके अपने भी महफूज नहीं। तालीबानी सरजमीं हिंदोस्तान को बनाने का इरादा या तो दरकिनार कर सही राह चुन लें अथवा पाक जिसे वो अपना मुल्क, अपनी जमीन, अपना वतन समझते हैं, रुख कर लें। यूं थाली में छेद कितने दिन? जख्म पर जख्म कितने दिन ? वार पर वार कितने दिन ?

ऐसे माहौल में 1990 में कश्मीर में रह रहे पंडितों की वापसी किस तरह संभव हो सकेगी। जिनकी वापसी की
सरकार कोशिश कर रही थी। जिनके लिए अलग एक क्षेत्र बनाया जा रहा था। किस कांफिडेंस से सरकार आमंत्रण दे रही हैउन पीड़ितों को। ताकि जो जिंदगी उनकी जैसे तैसे चल रही है फिर से उनके पट्टी चढ़े इरादों को तोड़ दिया जाय। जीवन जीने की हसरत ही खत्म हो जाय। कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती जी और प्रधानमंत्री मोदी जी दोनों को कदम मिलकर उठाने का वक्त आ चुका है। केंद्र पल्ला नहीं झाड़ सकता कि उसके हाथ बंधे हैं या सरकार उसकी नहीं। पाकिस्तान के अंदर से इंसानियत साफ हो चुकी है। तभी तो बच्चों को मारकर भी जश्न मनाता है। कोई कैसे भूल सकता है उस मंजर को जब एकसाथ 142 बच्चों को गोलियों से भून दिया गया था। उस दिन मात्र एक बच्चा दाउद बचा था..क्योंकि वो उस दिन स्कूल ही नहीं गया था । पाकिस्तान को उस वक्त शोक करने की नहीं सूझी थी। पर बुरहान जो कत्ले आम मचाये, जो शाति को भंग कर दे, ऐसे मानवता के दुश्मन के लिए शोक ?

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