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Saturday 19 December 2015

अखिलेश की सरकार


सर्वमंगला मिश्रा


सत्ता विरासत में मिल तो सकती है पर, बुद्धिजीविता नहीं। सपा प्रमुख मुखिया मुलायम सिंह यादव ने विरासत के तौर पर जब अखिलेश को सत्ता देनी चाही तो गाड़ी से अनमने रुप में उतर कर ठीक से वोट न मांग पाने वाले अखिलेश हार गये थे। वहीं दूसरी बार अखिलेश का टोन मीडिया और मतदाताओं के प्रति बदल चुका था। अब अखिलेश यादव पांच साल अपनी सरकार के पूरे करने वाले हैं। साथ ही विधानसभा चुनाव आ रहे हैं। जिसकी तैयारी में अखिलेश यादव की पूरी टीम जुट चुकी है। अब उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा हायर की गयी कंपनियां रेडियो, टी वी, सोशल साइट्स के जरिये अखिलेश सरकार के कामों का विवरण दे रही हैं। रेडियो पर सरकार के बनने वाले प्रोजेक्ट्स से लेकर आधुनिक तंत्रों से लैस पुलिस अब सफल रुप से उत्तर प्रदेश की जनता की रक्षा करने में समर्थ है। ऐसा जनता जनार्दन को बताया जा रहा है। सत्ता का सुख और लत दोनों की आदत जिसे एक बार लग जाय तो मोहभंग होना दुश्वार है।
अखिलेश युवा वर्ग के राजनेता है। उनके सोचने और काम करने का ढंग आज की युवा पीढ़ी की तरह है। पर, सच्चाई कितनी है। अखिलेश ने सरकार चलायी या उनके पिताजी मुलायम सिंह यादव ने या आज़म खान ने। सुव्यवस्थित और सुनियोजित ढ़ंग से काम करने के लिए सलाहकारों का होना अनिवार्य है। पर अखिलेश सरकार पर पूर्ण नियंत्रण तो सपा सुप्रीमो का ही रहा। अखिलेश मात्र मुखौटा समान, परिवर्तन का नाम है। बदांयू मामले से लेकर शायद ही कोई जिला बचा हो जहां क्राइम की वारदात न हुई हो। सवाल यह नहीं है कि सरकार के रहते क्यों हो रहा है। बल्कि सवाल यह है कि कोई ठोस कदम सरकार की ओर से क्यों नहीं उठाया गया। कड़े नियमों का प्रावधान क्यों नहीं लाया गया। जिससे राज्य में रह रहे लोग अखिलेश की सरकार के तहत स्वयं को सुरक्षित महसूस करें।

आजकल रेड़ियो पर नीलेस मिश्रा अपनी छोटी छोटी कहानियों के जरिये सरकार के काम और उस स्थान की प्रसिद्धि के कारण को दिखाते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को प्रमोट कर रहे हैं। उसका टाइटल ही है यूपी की कहानियां। इसी तरह हर रेडियो स्टेशन पर अलग अलग तरह के विज्ञापन आजकल सुने जा सकते हैं। तात्पर्य यह है कहने का कि काम करके नहीं विज्ञापन के जरिये दिखाया जा रहा है जनता को। जिससे जनता आपके रिपोर्ट कार्ड का आंकलन करने में समर्थ हो पायेगी। अखिलेश युवा नेता हैं तो क्या जनता इतनी बूढ़ी है कि उसे अपने काम दिखाने के लिए करोड़ो रुपये सरकार विज्ञापन पर फूंक रही है। यह बात अलग है कि एक इंडस्ट्री को लाभ पहुंचता है। देश उन्नति करता है। पर नजरिया और नियत में बदलाव आवश्यक है। इसी बजट का आधा हिस्सा प्रजेक्ट्स को सही रुप से प्रोजेक्ट करने में अखिलेश सरकार विचार करती तो उत्तर प्रदेश का चेहरा ही बदल जाता। यूपी, महाराष्ट्र, बिहार, गुजरात या राजस्थान, नेतागण मात्र विवादित बयान देकर ही स्वयं को प्रमोट करने के उद्देश्य से मीडिया पर अपनी छवि बनाने में लगे रहते हैं। जिससे देश और गणमान्य नागरिकों से लेकर जन साधारण तक का दिमाग व्यर्थ की उलझनों में उलझ कर रह जाये। सर्व साधारण से जुड़े अहम मसलों पर कितनी सरकारें ध्यान केंद्रित कर पाती हैं। मात्र सपा सुप्रीमो मलायम सिंह यादव के स्टेज पर यूपी के सीएम और अपने पुत्र से यह पूछना कि बताओ सरकार ने अब तक यह काम क्यों नहीं किया और दूसरे काम को करने के लिए सरकार क्या कर रही है। जनता को क्या ज्ञात नहीं कि लोग नेहरु परिवार पर जो तंच कस रहे हैं पर वहीं मुलायम का परिवार उत्तर प्रदेश में तो बिहार में लालू का परिवार अपनी जड़ों को राजनीति की जमीन पर मजबूत कर रहा है। इलेक्शन के समय प्रमोशन करके अपनी सरकार को बेहतर बनाना पर कार्यशैली वही परंपरागत रखना कितना न्यायोचित है। एक ओर कांग्रेस को ढाल बनाकर देश में डंका पीटना कि यह परिवार सालों से राज कर रहा है देश पर। वहीं दूसरे परिवारों को शह देना कितना तर्कसंगत है। जनता का पैसा एक ही परिवार में भिन्न भिन्न तरीकों से शाही कोष के स्थान पर अपने घर की तिजोरी भरे। इससे बड़ा लोकतंत्र का उपहास और क्या हो सकता है।
मसला यह भी है कि सरकार हार गयी तो क्या करेगी। जाहिर सी बात है विपक्ष में बैठेगी। पर, काम चल निकला है तो चलते रहना चाहिए। हर व्यापार का उसूल होता है। अखिलेश-डिम्पल, डिम्पल की देवरानी और मुलायम के एक और बेटे हैं जिनके लिए सपा सुप्रीमो ने सीट छोड़ दी। इसके अलावा कुछ और लोगों को यथोचित स्थान पर सेट करना होगा। तो दम खम लगाकर जीतना है। यह अखिलेश सरकार का खुद से वादा है।

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