मन की बात
सर्वमंगला मिश्रा
9717827056
मन – वो घोड़ा है जो किसी भी इंसान तो क्या देवता के वश में भी नहीं रह पाता। मन की छलांग हर सीमा से परे होती है। मन अद्वितीय सिंहासन का मालिक होता है। जो स्वंय अपना राजा और स्वयं की प्रजा होता है। मन अकस्मात जन्म लेता है और अचानक अदृश्य हो जाता है। हर संघर्ष से परे, हर बंधन से मुक्त, उन्मुक्त आकाश और सागर के समान अनगिनत लहरों वाला होता है मन। मन को समझना यानी अज्ञात किरणों को पढना। मन की तमाम गतिविधियों पर नजर रखने वालों ने यहां तक कह दिया कि जिसने अपने मन पर कंट्रोल कर लिया दुनिया उसके कदमों में।
आजकल हर किसी की जुबान पर मन की बात सुनायी देती है। यूं तो मन की बात हर किसी से नहीं की जाती। पर, मन की बात अगर कोई सुनने वाला हो तो, दिल हल्का जरुर हो जाता है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी विगत कई महीनों से मन की बात रेडियो के जरिये करते हैं। आकाशवाणी के जरिये प्रधानमंत्री जी अपने मन की बात कभी स्कूल के बच्चों से, कभी किसानों से, कभी युवाओं से तो कभी लोगों की राय भी जानना चाहते हैं। हाल ही में देश के कई हिस्सों में हमारे देश के अन्नदाताओं ने सूखा पड़ने और फसल नष्ट होने के कारण कर्ज के दबाव में आत्महत्या का रास्ता अपनाया। तब प्रधानमंत्री ने किसान बिरादरी से अपील की कि वो ऐसे कदम ना उठायें। जिससे कहीं न कहीं एक ढांढस सा जरुर बढ़ा, एक राहत, एक आस जरुर बनी कि देश का संचालक आपके साथ कहीं न कहीं खड़ा है। आत्महत्याओं का सिलसिला भले न थमा हो पर विचार जरुर पनपा कि किसानों की समस्या उन तक सीमित नहीं है बल्कि पूरा देश जान रहा है और देश को चलाने वाले की नजर भी उन समस्याओं पर है। विदर्भ के कई इलाकों से लेकर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के कई जिलों में किसानों की स्थिति आज भी दयनीय है। प्रधानमंत्री ने शिक्षक दिवस जैसे महत्वपूर्ण दिन को बच्चों से बात कर अपने जीवन के महान शिक्षकों के योगदान को याद किया। देश के प्रति समर्पित लोगों की कहानियां बच्चों के साथ शेयर की ताकि बच्चे उन महान विभूतियों को भूलें नहीं बल्कि याद रखें और उनके दिखाये ये मार्ग को अपने जीवन में उतारें। यही नहीं मार्च- अप्रैल में हुई बोर्ड परीक्षाओं के मद्देनजर बच्चों के सामने अपनी बात रखी। उनका हौसला बढ़ाया। इसके अलावा स्वच्छता अभियान को लेकर भी नरेंद्र मोदी ने देश की जनता के सामने अपने मन की बात की। लोगों से सफाई से रहने और सफाई करने की गुजारिश की। जिसका नतीजा हाल ही में मुम्बई के एक स्टेशन को साफ करने के लिए कालेज के बच्चों ने एकजुट होकर पूरे मटुंगा स्टेशन को चकाचक बना डाला।
रेडियो एक अचूक माध्यम है अपनी बात दूसरों तक पहुंचाने का। इसमें दिल की बात जुबान से निकलकर दिमाग में तुरंत घर कर जाती है। समाचार पत्रों के बाद रेडियो ही संपर्क साधन बना। उसके बाद टी वी का जन्म हुआ। पहले विविध भारती के प्रोग्राम लोग रेडियो पर सुनते थे। मनोरंजन का एक मात्र साधन यही था। ज्ञानवर्धक प्रोग्राम से लेकर संगीत अथवा हास्य सभी को जनता तक पहुंचाने का रेडियो ही माध्यम हुआ करता था। अमीन सायानी जैसे संचालक श्रोताओं का मन मोह लेते थे और आवाज का जादू आज तक बरकारार है। उस समय भी गांव- गांव में रेडियो पर समाचार सुनकर लोग खबरों से अवगत हुआ करते थे। धीरे धीरे चलन बदला और कान की जगह आंख ने ले ली। लोगों को सुनने की जगह जब चीजें आंखों के सामने आ गयीं। फेसबुक कमाल है पर वाट्सअप ज्यादा करीबी बन चुका है। इसी तरह रेडियो की जगह टीवी ने ले ली। पर सुधारकों और व्यापारियों ने रेडियो में फिर जान फूंकने की जुगत लगायी और 21वीं सदी में कई शहरों में ताबड़तोड़ लोकल और नैश्नल लेवल पर रेडियो को नये फार्मेट में पेश किया जाने लगा। रेडियो मिर्ची, 92.7, 93.5 104.8 आदि आज की तारीख में बेतहाशा बिजनस कर रहे हैं। अब यह भी एक सेक्टर बन गया है। खबरों के अलावा या कोई महत्तवपूर्ण सूचना छोड़ यह इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि देश का प्रधानमंत्री रेडियो का उपयोग जनता से जुड़ने के लिए कर रहा है। इससे सौहार्द्र का सूर्य निकलेगा या नहीं, यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा। उम्मीद की किरण, चाय की चुस्की और रेडियो पर दिमाग की निगाह ने टकटकी लगानी शुरु तो कर दी है। पर यह कहना अभी मुश्किल है कि मोदी जी की बात तबाही से बर्बाद किसानों के दिलों में कितनी घर कर पायी। देश की दशा और दिशा कितनी सुदृढ़ हो रही है यह मन की बात में पूर्णतया स्पष्ट तो नहीं हो पा रहा है। पर, केंद्र के कार्यकलापों की जानकारी स्वंय प्रधानमंत्री देने के लिए सामने जरुर खड़े होने का दम दिखा रहे हैं।
मन की बात करना जरुरी है। इससे शासक की महत्तवाकांक्षा, देश के प्रति उसकी भावना प्रतिबिंबित होती है। आज गरीब की थाली से दाल गायब हो गयी है। प्याज के पकौड़े तो दूर, सूखी रोटी के साथ प्याज भी गरीब के नसीब से कोसों दूर हो चुका है। क्योंकि प्याज और दाल अब अमीरों की थाली में ही दिखता है। गरीब को नीतियां समझ नहीं आती। जब उसका बच्चा भूख से तड़पता है तो उसे रोटी समझ आती है। मन की बात का असर हवा हो जाता है। वहीं मध्यम वर्ग देश के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहता है। कुछ दिन सब्र कर लेता है, क्योंकि उसकी रोजी रोटी चलती रहती है। उसके घर में भूख का अकाल नहीं पड़ता। आज राजनीति इस कदर राजनीतिज्ञों पर हावी हो चुकी है कि हकीकत और जमीनी हकीकत में एक खाई खिंच गयी है। आज विरोधी दल हो या शासक पक्ष सभी एक होड़ में व्यस्त हैं। जनता से शासक है पर शासक इस हकीकत से छुपने की लाजवाब चेष्टा करता है।
आज, मोदी सरकार को एक साल से ज्यादा समय बीत चुका है। जनता की अपेक्षा बहुत है इस सरकार से। 24 कैरेट का सोना यह सरकार है या नहीं, यह बात मोदी जी पर ही पूर्णतया निर्भर है। रेडियो पर इतनी अपील और विज्ञापन संदेशों के बावजूद आज भी देश की जनता का बड़ा हिस्सा अपने रोजमर्रा के जीवन में सफाई के तौर तरीके सही मायने में नहीं अपना पाया है। बुद्धिजीवी वर्ग इस अभियान को एक नयी शुरुआत के तौर पर देख रहा है। उनका मानना है कि लोगों में ऐसी चेतना को जागृत करना भी एक अनूठी पहल है। देश के शासक जहां बड़ी –बड़ी नीतियों और सुधारों की बात करते नहीं थकते थे वहीं मोदी ने छोटी –छोटी बातों पर पहल कर पूरे देश की जनता का ध्यान आकृष्ट किया है। जिससे युवा पीढ़ी इन बातों को तवज्जो देगी और अपने जीवन में ढालने का विचार अवश्य पनपेगा। जिससे आने वाले समय में एक नयी विचारधारा का विकास बड़े पैमाने पर होगा।
रविवार, सुबह ठीक 11 बजे हर गांव, हर मुहल्ला, हर गली, अमूमन हर घर और शहरों में मोदी को चाहने वाला वर्ग और विपक्षी वर्ग रेडियो ट्यून कर बैठ जाते हैं। मोदी जी अपने मन की बात तो कह देते हैं। सरकार की गंभीरता, सतर्कता और भविष्य में होनेवाली गतिविधियों से भी अवगत कराने की कोशिश करते हैं। पर, सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री और विभिन्न विभाग कितने सतर्क हैं या योजनाएं कितनी पुख्ता हैं ऐसी गंभीर परिस्थितियों से निबटने के लिए। हर साल बाढ़ या सूखा किसी न किसी राज्य में बांहें पसारे खड़ा हो जाता है। राज्य सरकार विवश, लाचार पंगु की तरह खड़ी हो जाती है और केंद्र सरकार से राहत राशि मांगने लगती है। मन की बात करना अच्छी पहल है। पर बातों से नेतागण कबतक जनता को उलझा सकेंगे। रणनीति राजनीति से कब अलग होगी जिससे किसान अपने उपजाये दाने से अपने परिवार के पेट की आग बुझाने में कामयाब हो पायेगा। मन की बात केवल चाय पर चर्चा बनकर ना रह जाय। इसके लिए केंद्र सरकार को अपनी नीतियों के द्वारा कथनी और करनी में समानता लानी होगी। जब बदहाल वर्ग मजबूत होगा। महिलाओं को नाम का सशक्तिकरण नहीं बल्कि, उचित सम्मान और न्याय मिलना शुरु होगा। तभी रेडियो पर मन की बात का असली असर होगा।
सर्वमंगला मिश्रा
9717827056
मन – वो घोड़ा है जो किसी भी इंसान तो क्या देवता के वश में भी नहीं रह पाता। मन की छलांग हर सीमा से परे होती है। मन अद्वितीय सिंहासन का मालिक होता है। जो स्वंय अपना राजा और स्वयं की प्रजा होता है। मन अकस्मात जन्म लेता है और अचानक अदृश्य हो जाता है। हर संघर्ष से परे, हर बंधन से मुक्त, उन्मुक्त आकाश और सागर के समान अनगिनत लहरों वाला होता है मन। मन को समझना यानी अज्ञात किरणों को पढना। मन की तमाम गतिविधियों पर नजर रखने वालों ने यहां तक कह दिया कि जिसने अपने मन पर कंट्रोल कर लिया दुनिया उसके कदमों में।
आजकल हर किसी की जुबान पर मन की बात सुनायी देती है। यूं तो मन की बात हर किसी से नहीं की जाती। पर, मन की बात अगर कोई सुनने वाला हो तो, दिल हल्का जरुर हो जाता है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी विगत कई महीनों से मन की बात रेडियो के जरिये करते हैं। आकाशवाणी के जरिये प्रधानमंत्री जी अपने मन की बात कभी स्कूल के बच्चों से, कभी किसानों से, कभी युवाओं से तो कभी लोगों की राय भी जानना चाहते हैं। हाल ही में देश के कई हिस्सों में हमारे देश के अन्नदाताओं ने सूखा पड़ने और फसल नष्ट होने के कारण कर्ज के दबाव में आत्महत्या का रास्ता अपनाया। तब प्रधानमंत्री ने किसान बिरादरी से अपील की कि वो ऐसे कदम ना उठायें। जिससे कहीं न कहीं एक ढांढस सा जरुर बढ़ा, एक राहत, एक आस जरुर बनी कि देश का संचालक आपके साथ कहीं न कहीं खड़ा है। आत्महत्याओं का सिलसिला भले न थमा हो पर विचार जरुर पनपा कि किसानों की समस्या उन तक सीमित नहीं है बल्कि पूरा देश जान रहा है और देश को चलाने वाले की नजर भी उन समस्याओं पर है। विदर्भ के कई इलाकों से लेकर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के कई जिलों में किसानों की स्थिति आज भी दयनीय है। प्रधानमंत्री ने शिक्षक दिवस जैसे महत्वपूर्ण दिन को बच्चों से बात कर अपने जीवन के महान शिक्षकों के योगदान को याद किया। देश के प्रति समर्पित लोगों की कहानियां बच्चों के साथ शेयर की ताकि बच्चे उन महान विभूतियों को भूलें नहीं बल्कि याद रखें और उनके दिखाये ये मार्ग को अपने जीवन में उतारें। यही नहीं मार्च- अप्रैल में हुई बोर्ड परीक्षाओं के मद्देनजर बच्चों के सामने अपनी बात रखी। उनका हौसला बढ़ाया। इसके अलावा स्वच्छता अभियान को लेकर भी नरेंद्र मोदी ने देश की जनता के सामने अपने मन की बात की। लोगों से सफाई से रहने और सफाई करने की गुजारिश की। जिसका नतीजा हाल ही में मुम्बई के एक स्टेशन को साफ करने के लिए कालेज के बच्चों ने एकजुट होकर पूरे मटुंगा स्टेशन को चकाचक बना डाला।
रेडियो एक अचूक माध्यम है अपनी बात दूसरों तक पहुंचाने का। इसमें दिल की बात जुबान से निकलकर दिमाग में तुरंत घर कर जाती है। समाचार पत्रों के बाद रेडियो ही संपर्क साधन बना। उसके बाद टी वी का जन्म हुआ। पहले विविध भारती के प्रोग्राम लोग रेडियो पर सुनते थे। मनोरंजन का एक मात्र साधन यही था। ज्ञानवर्धक प्रोग्राम से लेकर संगीत अथवा हास्य सभी को जनता तक पहुंचाने का रेडियो ही माध्यम हुआ करता था। अमीन सायानी जैसे संचालक श्रोताओं का मन मोह लेते थे और आवाज का जादू आज तक बरकारार है। उस समय भी गांव- गांव में रेडियो पर समाचार सुनकर लोग खबरों से अवगत हुआ करते थे। धीरे धीरे चलन बदला और कान की जगह आंख ने ले ली। लोगों को सुनने की जगह जब चीजें आंखों के सामने आ गयीं। फेसबुक कमाल है पर वाट्सअप ज्यादा करीबी बन चुका है। इसी तरह रेडियो की जगह टीवी ने ले ली। पर सुधारकों और व्यापारियों ने रेडियो में फिर जान फूंकने की जुगत लगायी और 21वीं सदी में कई शहरों में ताबड़तोड़ लोकल और नैश्नल लेवल पर रेडियो को नये फार्मेट में पेश किया जाने लगा। रेडियो मिर्ची, 92.7, 93.5 104.8 आदि आज की तारीख में बेतहाशा बिजनस कर रहे हैं। अब यह भी एक सेक्टर बन गया है। खबरों के अलावा या कोई महत्तवपूर्ण सूचना छोड़ यह इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि देश का प्रधानमंत्री रेडियो का उपयोग जनता से जुड़ने के लिए कर रहा है। इससे सौहार्द्र का सूर्य निकलेगा या नहीं, यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा। उम्मीद की किरण, चाय की चुस्की और रेडियो पर दिमाग की निगाह ने टकटकी लगानी शुरु तो कर दी है। पर यह कहना अभी मुश्किल है कि मोदी जी की बात तबाही से बर्बाद किसानों के दिलों में कितनी घर कर पायी। देश की दशा और दिशा कितनी सुदृढ़ हो रही है यह मन की बात में पूर्णतया स्पष्ट तो नहीं हो पा रहा है। पर, केंद्र के कार्यकलापों की जानकारी स्वंय प्रधानमंत्री देने के लिए सामने जरुर खड़े होने का दम दिखा रहे हैं।
मन की बात करना जरुरी है। इससे शासक की महत्तवाकांक्षा, देश के प्रति उसकी भावना प्रतिबिंबित होती है। आज गरीब की थाली से दाल गायब हो गयी है। प्याज के पकौड़े तो दूर, सूखी रोटी के साथ प्याज भी गरीब के नसीब से कोसों दूर हो चुका है। क्योंकि प्याज और दाल अब अमीरों की थाली में ही दिखता है। गरीब को नीतियां समझ नहीं आती। जब उसका बच्चा भूख से तड़पता है तो उसे रोटी समझ आती है। मन की बात का असर हवा हो जाता है। वहीं मध्यम वर्ग देश के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहता है। कुछ दिन सब्र कर लेता है, क्योंकि उसकी रोजी रोटी चलती रहती है। उसके घर में भूख का अकाल नहीं पड़ता। आज राजनीति इस कदर राजनीतिज्ञों पर हावी हो चुकी है कि हकीकत और जमीनी हकीकत में एक खाई खिंच गयी है। आज विरोधी दल हो या शासक पक्ष सभी एक होड़ में व्यस्त हैं। जनता से शासक है पर शासक इस हकीकत से छुपने की लाजवाब चेष्टा करता है।
आज, मोदी सरकार को एक साल से ज्यादा समय बीत चुका है। जनता की अपेक्षा बहुत है इस सरकार से। 24 कैरेट का सोना यह सरकार है या नहीं, यह बात मोदी जी पर ही पूर्णतया निर्भर है। रेडियो पर इतनी अपील और विज्ञापन संदेशों के बावजूद आज भी देश की जनता का बड़ा हिस्सा अपने रोजमर्रा के जीवन में सफाई के तौर तरीके सही मायने में नहीं अपना पाया है। बुद्धिजीवी वर्ग इस अभियान को एक नयी शुरुआत के तौर पर देख रहा है। उनका मानना है कि लोगों में ऐसी चेतना को जागृत करना भी एक अनूठी पहल है। देश के शासक जहां बड़ी –बड़ी नीतियों और सुधारों की बात करते नहीं थकते थे वहीं मोदी ने छोटी –छोटी बातों पर पहल कर पूरे देश की जनता का ध्यान आकृष्ट किया है। जिससे युवा पीढ़ी इन बातों को तवज्जो देगी और अपने जीवन में ढालने का विचार अवश्य पनपेगा। जिससे आने वाले समय में एक नयी विचारधारा का विकास बड़े पैमाने पर होगा।
रविवार, सुबह ठीक 11 बजे हर गांव, हर मुहल्ला, हर गली, अमूमन हर घर और शहरों में मोदी को चाहने वाला वर्ग और विपक्षी वर्ग रेडियो ट्यून कर बैठ जाते हैं। मोदी जी अपने मन की बात तो कह देते हैं। सरकार की गंभीरता, सतर्कता और भविष्य में होनेवाली गतिविधियों से भी अवगत कराने की कोशिश करते हैं। पर, सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री और विभिन्न विभाग कितने सतर्क हैं या योजनाएं कितनी पुख्ता हैं ऐसी गंभीर परिस्थितियों से निबटने के लिए। हर साल बाढ़ या सूखा किसी न किसी राज्य में बांहें पसारे खड़ा हो जाता है। राज्य सरकार विवश, लाचार पंगु की तरह खड़ी हो जाती है और केंद्र सरकार से राहत राशि मांगने लगती है। मन की बात करना अच्छी पहल है। पर बातों से नेतागण कबतक जनता को उलझा सकेंगे। रणनीति राजनीति से कब अलग होगी जिससे किसान अपने उपजाये दाने से अपने परिवार के पेट की आग बुझाने में कामयाब हो पायेगा। मन की बात केवल चाय पर चर्चा बनकर ना रह जाय। इसके लिए केंद्र सरकार को अपनी नीतियों के द्वारा कथनी और करनी में समानता लानी होगी। जब बदहाल वर्ग मजबूत होगा। महिलाओं को नाम का सशक्तिकरण नहीं बल्कि, उचित सम्मान और न्याय मिलना शुरु होगा। तभी रेडियो पर मन की बात का असली असर होगा।
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