सेबी ने डेब्ट म्यूचल फंड्स को किया और बेहतर
सर्वमंगला मिश्रा
सेबी ने भारतीय
निवेशकों के हित की सोचते हुए म्यूचल फंड्स की स्कीम में सुधार की प्रक्रिया लागू
कर दी है। बाजार में पुराने नए निवेशकों के साथ-साथ डेब्ट म्चुअल फंड्स की योजनाएं
भी काफी उलझी हुई सी प्रतीत होती थीं जिससे निवेशक भ्रामक स्थिति में रहता था और
निवेश करने से हिचकिचाहट का अनुभव करता था अथवा उसे रिस्क फैक्टर का ज्ञान सही
मायनों में नहीं हो पाता था। ऐसी ही उलझनों से निवेशकों को स्पष्टता प्रदान करने
की दिशा में सेबी ने डेब्ट म्यूचुअल फंड्स की योजनाओं को 16 भागों में बांट दिया
है। जिससे यह तय करना आसान हो जायेगा कि निवेशक कहां निवेश करे और कितनी अवधि के
लिए। पहले एक ही योजना के तहत दो अथवा उससे ज्यादा योजनाएं सामान्य अंतर से लागू
रहती थीं पर अब एक योजना के तहत एक ही योजना को प्रतिपादित किया गया है। कंपनियां
सेबी के आदेश के उपरांत योजनाओं की जांच करके उनमें सुधार की प्रक्रिया प्रारंभ कर
दी है। सेबी के इस आदेश से बाजार में एक नया स्तर बनेगा और बाजार एक नये रुप में
दिखेगा। इससे निवेशक अपने आप आकर्षित होंगे और डेब्ट म्यूचुअल फंड्स के तहत पूंजी
निवेश करने वालों की संख्या में अनुमानत: भारी वृद्धि होगी। जिससे आने वाले समय में डेब्ट
म्यूचुअल फंड्स का मार्केट एक नये आसमान को छू सकेगा।
ओवरनाइट फंड- सबसे
कम अवधि के लिए या एक दिन से लेकर एक सप्ताह जैसी अवधि तक के लिए भी निवेशक निवेश
कर सकता है। जिसमें अमूमन कोई रिस्क नहीं रहेगा।
लिक्विड फंड- छोटे
निवेशक जिनके निवेश की अवधि 3 महीने तक या उसके आस पास की होती है इसमें निवेश कर
सकते हैं। इस योजना के तहत निवेशक की पूंजी काल मनी, ट्रेजरी बिल अथवा सरकारी
प्रतिभूतियों के तहत निवेश होता है। जहां से निवेशक आसानी से अपने पैसे निकाल सकता
है।
अल्ट्रा शार्ट
ड्यूरेशन फंड- इस योजना के तहत निवेशक 3 से 6 महीने तक के लिए निवेश कर सकता है।
लो ड्यूरेशन फंड- इस
योजना के तहत निवेशक अपनी सुविधा से 6 महीने से लेकर 12 महीने तक के लिए अपनी
पूंजी का निवेश कर सकता है।
मनी मार्केट फंड- यह
योजना निवेशकों को एक वर्ष की अविधि तक के लिए निवेश करने की होगी जिसमें
मैच्योरिटी की अवधि भी शामिल होगी।
शार्ट ड्यूरेशन फंड-
इस योजना के अंतर्गत ऐसे निवेशक आयेंगे जो अपनी पूंजी को कुछ वर्षों के लिए निवेश
करना चाहते हैं।इसमें एक वर्ष से लेकर 3 वर्ष की अवधि तक के लिए निवेश किया जा
सकेगा। जिसमें सामान्य रिस्क रहता है।
मीडियम ड्यूरेशन
फंड- इस योजना के तहत निवेशक 3 से 4 वर्ष की अवधि तक के लिए निवेश कर सकेगें।
मीडियम टू लांग
ड्यूरेशन फंड- इस योजना के तहत इच्छुक निवेशक जो लंबी पारी खेलना चाहते हैं वो इस
योजना में निवेश कर सकते हैं। इसकी अवधि 4 वर्ष से 7 वर्ष तक की सीमा तय की गयी
है।
लांग ड्यूरेशन फंड-
इस योजना के अंतर्गत सामान्य से मध्यम बड़े निवेशक प्रवेश कर सकेंगे। इस योजना के
तहत 7 वर्ष से अधिक तक की योजनाओं में निवेश किया जा सकेगा।
डायनामिक बांड- निवेशको
स्वेच्छा से अपने निवेश की अवधि निर्धारित कर सकता है। निवेशक को ध्यान रखना होगा
कि रिस्क की सीमा भी वह स्वयं निर्धारित करे।
कारपोरेट बांड फंड- कारपोरेट
बांड फंड कम रिस्क फैक्टर के साथ अच्छा रिटर्न भी देते हैं। बड़ी एवं नामी
कंपनियों की निवेश योजनाओं में निवेश करना निवेशक के लिए लाभप्रद होता है। कंपनियां
अपने ब्रांड की शाख को ध्यान में रखते हुए काम करती है।पहले कारपोरेट बांड फंड और क्रेडिट
अपरच्यूनिटी फंड में साधारण निवेशक भ्रमित हो जाता था और कई बार निवेशक की पैसा
कार्पोरेट बांड फंड की जगह क्रेडिट अपरच्यूनिटी फंड में इस्तेमाल होता था।
क्रेडिट रिस्क फंड-
इस योजना में 65 फीसदी निवेशक की पूंजी उच्चतम कार्पोरेट बांड से निचले स्तरों में
की जाती है।
बैंकिंग एंड पीएसयू
फंड- इस योजना के तहत मुख्यत: 80 प्रतिशत
बैंकिंग, वित्तीय संस्थाएं एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में धन का निवेश
किया जाता है।
गिल्ट फंड- इस योजना
के तहत धन का निवेश प्रधानरुप से सरकारी प्रतिभूतियों में निवेशकों का धन निवेश
होता है। कुल राशि का कम से कम 80 प्रतिशत धन इन योजनाओ में निवेश होना चाहिए।सरकारी
संस्थाओं में निवेश करना सुरक्षा की गारंटी माना जाता है।
गिल्ट फंड विथ 10
ईयर कांस्टेंट ड्यूरेशन- सरकारी सुरक्षा योजनाओं में निवेशकों का धन निवेश होता
है। इसके परिपक्वता की अवधि 10 वर्ष तक की एक समान रहती है। जिससे परिपक्वता के
उपरांत निवेशक को अच्छा मुनाफा होता है साथ ही रिस्क भी बहुत कम होता है।
फ्लोटर फंड- इस
योजना के तहत निवेशक का धन ऐसी जगह लगाया जाता है जहां दर अस्थायी रहता है। इसमें
रिस्क अधिक रहता है। यदि बाजार मुनाफा की ओर चढ़ता है तो परिपक्वता के समय लाभ में
रहता है। इसके दूसरी ओर बाजार यदि गिरावट में होता है तो निवेशक को नुकसान भी
उठाना पड़ जाता है।