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Saturday 19 July 2014

              क्या जैसा देश वैसा ही भेष ??

 सर्वमंगला मिश्रा
वो लोग सौभाग्यशाली होते हैं जिन्हें कोई शहर पहली बार में अपना लेता है। उन लोगों को इस वाक्य से ज़रा भी परहेज़ नहीं होगा जिन लोगों ने दूसरे शहर में जाकर अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष किया होगा। कश्मकश से भरी जिन्दगी इतनी आसान नहीं होती। कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें देखते देखते आदत पड़ जाती है और फिर आप कहते हैं हां यार, नाट बैड.....राजनीति भी एक ऐसा मंच है जहां हजारों कलाकार आते और जाते रहते हैं। कुछ दिल में बस जाते हैं, तो कुछ को देखने और सुनने की आदत पड़ जाती है। राजनीति लोगों को हमेशा दोराहे पर खड़ा कर देती है। उन्नति भी कराती है पर अवनति की सीढियां चढ़वाकर। जब आपका चारित्रिक पतन हो जाता है और आप स्वंय के लिए न जाने कितनी भावनाओं की लाशों पर चढकर अपना आशियाना खड़ा करते हैं, तो यही कहा जा सकता है कि जीवन सरल पर कठिन हो गया है।
यह राजनीति ही है जो विदेशी मूल की महिला को बाल काले करने पर मजबूर कर देती है। ममता बनर्जी जिन्होंने 34 साल के मजबूत लाल किले को गिरा डाला, पर अपनी हवाई चप्पल और सादी साड़ी का साथ नहीं। लालू यादव को उनका हेयर स्टाइल नहीं बदलने देती। तो मुलायम को दाढी नहीं बढाने देती। वहीं झारखंडी विश्वविख्यात हीरो महेन्द्र सिंह धोनी जिसका नाम ही काफी है अपनी हेयर स्टाइल बदलने के लिए फेमस है। पहले लम्बे लम्बे बाल तो 2008 में बाल छोटे कर सबको चौंका दिया। फिर वल्ड कप जीतने के बाद मन्नत के कारण सिर मुंडवा लिए.....ऐसा सौभाग्य इन नेताओं का कहां ???? वहीं भारत के पूर्व बहुचर्चित राषट्रपति डा. अब्दुल कलाम आजाद के बालों को लेकर अमूमन हर चैनल ने पब्लिक ओपिनियन ले डाला। अपने बालों के कारण उनकी चर्चा घर घर होती रही। वृंदा करात अपनी बिन्दी छोटी नहीं कर सकती तो शैलजा और प्रिया दत्त लगा नहीं सकती। सुषमा स्वराज सलवार कुर्ता नहीं कभी पहनीं तो उमा भगवा नहीं छोड़ सकतीं। पर, मायावती अपवाद हैं। पहले उनकी पोनी टेल हुआ करती थी जो अब बाय कट में परिवर्तित हो चुकी है और लगता नहीं कि अब वो अपना रुप बदलना चाहेंगी । कारण है कि अब अपनी इतनी मुर्तियां बनवा चुकी हैं कि पब्लिक में भ्रम का संचार हो जायेगा। अम्मा अपने जमाने की हिरोइन थी पर अब जिंन्स नहीं पहन पायेंगी, नेता बनने के बाद उनका लिबास सेट हो चुका है। राजनीति की चहेती हिरोइन प्रियंका वार्ड्रा गांधी अपने इन बालों के साथ इतनी फेमस हो चुकी हैं कि बाल लम्बे करने की इच्छा शायद अब सपने में ही करके संतोष करेंगी। उनकी दादी छोटे और हल्के घुंघराले बालों की मिशाल रह चुकी हैं। प्रियंका को उनकी छवि माना जाता है। राजनीति का साधु वेश वाले बाला साहब ठाकरे जी जिनके परिधान जैसा शायद ही कोई खुद को संजो कर रख सके....एक मिसाल थे। किरण बेदी जिन्हें न जाने कितने उपनाम मिले उनकी पहचान उनकी वर्दी और बाल रहे। पत्रकारिता में बरखा दत्त, प्रणव राय, पुण्य प्रसून वाजपायी, आशुतोष, दीपक चौरसिया भी अपनी वेश भूषा की वर्दियां छोड़ने में अब हिचकिचायेंगें।
पर, राजनीति में क्या वेश-भूषा ही महत्वपूर्ण है ??? क्योंकि पुराने जमाने में रजिया सुल्तान और लक्ष्मीबाई के बाल कैसे हुआ करते थे यह शायद मुझे लिखने की आवश्यकता नहीं है। यह वह समय था जब परंपरा और मान मर्यादाओं का काल था। आज आधुनिक युग में एक ऐसा नेता है हमारे बीच जिसने यह कहा था कि राजनीति करने के लिए कुर्ता पायजामा पहनना आवश्यक नहीं...जिन्स पहनकर भी राजनीति की जा सकती है। मुझे याद है एक बार सोनिया गांधी की रैली थी हम सब वही सुन रहे थे। भाषण खत्म होने के बाद सोनिया जी जब बैठीं तो अचानक हमारे एच ओ डी साहब के मुंह से निकला अरे!  सोनिया तो पूरी भारतीय हो गयी। उन्होंने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि सोनिया गांधी ने आंचल से अपना मुंह पोछा था गर्मी के कारण.....यानी पसीना...। राजनीति हर किसीको आकर्षित करती है पर यहां न जाने कितना पसीना और दम निकल जाता है और निकाल भी लिया जाता है। छुपी राजनीति करने में भी लोग नहीं हिचकते। जैसे वीरप्पन की मुंछे, तो किशन जी का गमछा कभी हटा नहीं। वहीं ओसामा बिन लादेन की दाढी और टोपी....पर ओसामा के बाद में कई रुप फूल्लन देवी की तरह सामने आये।  अपनी छवि बनाने के लिए ही चार्ली चैपलीन की मुंछ की साइज और शेप को बरकरार रखा गया। चार्ली चैपलीन की असल तस्वीरों में शायद ही उन्हें कोई पहचान सके। पी सी सरकार, तो भूटानी राजा अपना पारंपरिक ड्रेस पहनकर ही घूमते हैं, फारमल्स नहीं पहन सकते। आडवाणी जी की मुंछों का साइज कभी नहीं हिलता, और मोदी जी के कुर्ते का हाथ लम्बा नहीं होता.... पर बनारस में नामांकन के दिन मोदी ने फूल स्लीव का कुर्ता डाला था। राज शायद आने वाले दिनों में खुलेगा। अब हर कोई अमोल पालेकर की गोल माल पिक्चर को फालो तो नहीं कर रहा होगा।

पर, कुछ अपवाद भी हैं अटल बिहारी वाजपायी, पी वी नरसिम्हा राव, चिदंबरम, समय समय पर अपनी वेश भूषा में भी दिख जाते हैं और अंग्रेजी पहनावे में भी। यह राजनीति ही है जो इंग्लैंड की महारानी ऐलिज़ाबेथ को अपना पहनावा मिडिया और जनता के सामने आने पर अपनी पारंपरिक वेश –भूषा में ही सामने आती हैं। हर समाज की अपनी पहचान, मर्यादा और प्रतिष्ठा बनते बनते बनती है। जिसतरह मंदिर का पुजारी अपने धोती और चादर में रहता है, मौलवी अपनी वेश भूषा में तो पादरी अपनी....पर वेश भूषा से उपर है आंतरिक वेश भूषा को ठीक करना अपनी मानसिकता को हमें ऐसे वस्त्र पहनाने चाहिए जिससे समाज और देश का पहनावे का रंग आसमानी हो जाये। जिससे विश्व में एक संदेश जाये कि मन को सुंदर बनाने के लिए भारत का अनुकरण करना चाहिए जैसा संदेश मदर टेरेसा ने दिया, गौतम बुद्ध और अशोक ने दिया। मजेदार बात अब कहना चाहूंगी कि सम्पूर्ण भारतीयता के समर्थक माने और जाने जानेवाले प्रधानमंत्री जी श्री नरेंद्र मोदी जी विदेश में जाकर हिन्दी ही बोलेंगें तो परिधान भी भारतीय ही होना चाहिए। अब मोदी जी कभी हाफ सिल्व तो कभी फुल बांह के कुर्ते में भी दिख जाते हैं।

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