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Saturday 19 July 2014

                   
                         गंगा




सर्वमंगला मिश्रा-
9717827056
देवलोक में विचरण करने वाली, ऋषियों के कमंडल में रहने वाली गंगा, अपनी एक बूंद के छिड़काव मात्र से स्थान, मन को पवित्र करने वाली गंगा, पवित्रता का सूचक गंगा आज खुद पवित्र होने की आकांक्षा लिए उस वीर सिद्ध पुत्र का शायद इंतजार कर रही थी। मोक्षदायिनी गंगा को अब शायद मोक्ष मिल जायेगा। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का यह संकल्प पूरे देश में एक जूनून का रुप ले रहा है। गंगा एक अति पवित्र और स्वर्ग से उतरी जल धारा है। जिसे कई वर्षो की तपस्या के उपरांत धरती पर लाने वाले भगीरथ जी का नाम आज भी आध्यात्म के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से अंकित है। धरती पर आने के बाद गंगा की दशा धीरे धीरे परिवर्तित होती चली गयी और आज यह दशा हो चुकी है कि गंगा की मलीनता कहीं न कहीं चरम पर मानी जा रही है। गंगा की अविरल धारा में नदी नाले सभी सिमट से गये हैं। भगवान शिव की जटा से निकली गंगा का रुप इतना कलुषित हो गया है। जिसे फेशियल की जरुरत नहीं पूल बाडी मसाज और प्रापर ट्रीटमेंट की आवश्यकता आन पड़ी है। मां गंगा को शायद भागीरथ के आमंत्रण का एहसास नहीं था कि धरती पर इतने कलुषित और पापी प्राणियों का वास है जिनके पाप धोते धोते उन्हें उबारते –उबारते खुद उन्हें स्वंयं को उबारने की आवश्यकता आन पड़ेगी। अन्यथा स्वर्ग लोक से दिव्य वस्त्र धारण कर आती सीता जी और भीष्म पीताम्मह की तरह..जो कभी कलुषित न होते। गंगा गोमुख से निकलकर पहाड़ पठार फिर नदी नाले पार करती बंगाल की खाड़ी में सम्मिलित हो जाती है। जहां महत्ता को चार चांद लग जाते हैं और प्रति वर्ष गंगासागर का मेला लगता है। जिसमें देश ही नहीं विदेशों से पर्यटक, देशी साधु संत अपनी जटा जुट लपेटे, नागा साधु भी पहुंचकर गंगा की महत्ता और पवित्रता का साक्ष्य बनते हैं। क्योंकि माता कभी कुमाता नहीं होती पुत्र भले कुपुत्र हो जाये- उसका आंचल बच्चों के लिए कभी मैला या छोटा नहीं पड़ता। उसका आंचल आसमान की तरह विकसित है उसके करुणामयी दिल की तरह। बच्चों के कष्ट को न देख पाने वाली मां गंगा अपनी अविरल धारा से सतत पापों की बेड़ी में जकड़े धरती के लोगों को मुक्ति देने में जुटी है।
श्री राम शर्मा द्वारा लिखित एक कहानी स्मृति में उन्होंने लिखा था कि- दृढ़ संकल्प से दुविधा की बेड़ियां कट जाती हैं। आज वही याद आ गया और सच भी लग रहा है। कई बार कई विदेशी रिपोर्टों में यह उल्लेख किया गया कि गंगा का जल अति प्रदूषित और संक्रामक हो चुका है। गंगा पर चिंता और चिंतन करना भारतीयों के लिए अति स्वाभाविक है पर, विदेशी संस्थाओं की चिंता और चेतावनी सदा सर्वदा अनसुनी कर दी गयी। केंद्र सरकारों ने कभी इसकी व्यापक तौर पर सुध नहीं ली।  ऐसा नहीं है कि केंद्र सरकारें मौन मूक बधिर बनी रहीं। गंगा एक्शन प्लान बना। राजीव गांधी ने गंगा के लिए सोचा प्लान बनाया पर धरातल पर सक्सेसपूल नहीं हो सका। जिम्मेदारी का एहसास हुआ पर दृढ़ संकल्प की कमी रह गयी। सरकारें हमेशा बेरोजगारी, भुखमरी और आतंकवाद के मसलों पर उलझी रही और देश को भी उलझाती रही। आतंकवाद पर बैठकों पर बैठकें हुईं, विकास के मुद्दे पर चर्चा और आलोचना हुई, बेरोजगारी के मुद्दे पर चिंता ज़ाहिर हुई भूखमरी से मरने वाले मासूम बच्चे, महिलायें और किसानों के आंकड़े कुछ बताये गये तो कुछ छुपाये गये। पर अंतोगत्वा, देश में अराजकता की धूल भरी आंधी तूफान और फिर चक्रवात में परिवर्तित हो गयी। जनता की आंखों में धूल की किरकिरी ऐसी घुसी की सरकार पर निगाहें रख पाना मुश्किल हो गया। जिससे गंगा की धारा अन्य नदियों की भांति दिन पर दिन अपना अस्तित्व खोती चली गयी और जनता अपने दुर्दशा के बांध को ठेलती ढकेलती रही ताकि जीवन की आवश्यकताओं की कमी से निज़ाद पा ले पर ऐसा हो न सका। जीवन में बेरोजगारी, भुखमरी और सरकारी तरकशों से बच न सकी। पर हर समस्या का हल होता जरुर है। उस शोधकर्ता की आंखें बस होनी चाहिए। व्यापक अंदाज़, बहुआयामी सोच और सरस भाव होने चाहिए।
आज गंगा को बचाने की मुहिम पूरे देश में एक एकता के रुप में उजागर हो रही है। गंगा कितनी लम्बी या चौड़ी है इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल है। देवलोक से आयी इस देवी का मान आकाश में  चमकने वाले  सूर्य और चन्द्रमा से भी अति वन्दनीय है। गंगा में लगता है जितनी बूंदे हैं उतनी जनता अब जागरुक होकर खड़ी हो जायेगी और अति संवेदनाहीन पक्ष को एक संगठित और मर्यादित औऱ सराहनीय विश्वस्तरीय ख्याति का पुनार्जन होगा। इस परिपेक्ष्य में एक सवाल कहीं न कहीं जन्म अवश्य लेता है।मोदी जी ने एक महीने 12 दिन के अंदर कई ऐसे फैसले और घोषणायें कर दी है जो सपनों में विचरण करने से कम नहीं। गंगा सफाई अभियान, बनारस में अमूल की फैक्ट्री से हजारों की संख्या में रोजगार देकर बेरोजगारी की समस्या को कम करने की अद्भूत योजना और रेल बजट में दिया गया और टेस्टीफाइड हाई स्पीड ट्रेन की मनभावन योजना। जिसतरह मोदी जी चुनावों के दौरान रैलियों में बोले उससे यही लगता था अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज के बाद अब एक अच्छा वक्ता भाजपा ने पेश किया है। पर एक कहावत है कि जो बरसते हैं वो गरजते नहीं और जो गरजते हैं वो बरसते नहीं। इसी तरज पर मोदी जी ने हाल ही में हुए सूरजकुंड मेले में जो कैम्प लगाया और अपने सांसदों को मूलमंत्र दिया कि बेवजह विवाद से बचें, समाज के हित में कार्य करें, किसी से डरे नहीं, निष्पक्ष और निडर होकर फैसले लें। स्वयं के ऊपर अति साजो सज्जा से दूर रहने की सलाह दी। तो इस सलाह को सलाह के तौर पर नहीं बल्कि आदेश के तौर पर देखा जाना चाहिए, क्योंकि मोदी का दूसरा नाम हिटलर और डान माना जा रहा है।हर विभाग के फैसले में उनकी हामी निर्विवाद रुप से आवश्यक मानी जा रही है। क्योंकि मोदी जी कोई रिस्क नहीं लेना चाहते। पांच वर्ष का कार्यकाल पूर्ण करने में कोई त्रुटि या बाधा नहीं आने देना चाहते हैं। वैसे भी मुझे मां गंगा ने बुलाया है- यह वाक्य कि मोदी मां गंगा के सुपुत्र हैं तो मां को बेटा तकलीफ में कैसे देख सकता है। इसके अलावा वाराणसी मोदी के लिए वो यादगार पावन धरती है जिसने उन्हें प्रधानमंत्री के पद पर उच्चासीन कर दिया। तो मां गंगा का कर्ज जिसकी सौगात प्रधानमंत्री होने के पूर्व ही उन्होंने अपने इस संकल्प को जगजाहिर कर दिया था। मां का हृदय तो यंही कोमल होता है। बेटे ने कहा मां गदगद हो गयी अब वक्त है प्रधानमंत्री मोदी जी अपनी बात पर खरे उतर जायें। निर्विवाद रुप से अगर मोदी जी अपने कम बोलकर ज्यादा काम को तवज्जो दे रहे हैं तो निश्चित तौर पर गुजराती माडल स्वर्णिम अक्षरों में विश्व के मानस पटल पर अंकित हो जायेगा और युगों युगों तक याद रखा जायेगा।

कहते हैं ना कि जब मूल समस्या की जड़ तक यदि आप पहुंच जाएये तो छोटी –छोटी समस्यायें पलक झपकाते हवा में कर्पूर की तरह उड़ जाती हैं। ठीक उसी तरह गंगा सफाई अभियान ने दूसरी मैली नदियों जैसे यमुना नदी पर भी लोगों का ध्यान केंद्रित हो रहा है। इसी तरह स्वच्छ जल स्त्रोत का अभाव झेल रहा भारत देश स्वच्छता की पटरी को चाक चौबंद करने में जुट गया है। पर, इसके साथ ही कई गांव, शहर और राज्य आज भी ऐसे हैं जहां पानी की किल्लत से आम जनजीवन अमर्यादित है। इस सफाई अभियान के साथ या उपरांत यदि उन सूदूर ग्रामीण इलाकों में पानी का स्त्रोत पहुंच जाय तो महिलाओं के जीवन को सम्मान व परिवारों को परेशानी से जूझना नहीं पड़ेगा। ध्यान देने योग्य बात यह है कि सरदार पटेल का विश्व का सबसे ऊंचा स्टैच्यू बन जायेगा, हाई सपीड ट्रेनें चलेंगी और गंगा की अविरल धारा सिर्फ सूरज की रौशनी में नहीं बल्कि गंगा आरती के वक्त भी चाहे वह हरिद्वार का तट हो या बनारस के घाट एक परिदृश्य दिखेगा –चमचमाती, उजली मां गंगा जिसे देखने विश्व का सबसे बड़ा समूह एवं पर्यटक जत्था आयेगा तो विदेशी मुद्रा का आगमन अधिकाधिक मात्रा में होगा जिससे चमकती जल की बूंदों के रख रखाव पर कोई कष्ट नहीं मंडरायेगा।

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