टोपी की शान
-सर्वमंगला मिश्रा
9717827056
पगड़ी मतलब इज्जत, आपकी शान, आपकी मर्यादा। एक समय था जब लोग अपने सिर
पर पगड़ी पहनना शान और मर्यादा का प्रतीक मानते थे। राजा महराजा भी मुकुट अथवा
ताज़ पहनते थे। मुकुट के गिरने को अपशकुन की दृष्टि से भी देखा जाता था। अनुभवी
लोग पगड़ी न संभाल पाने वाले को गैरजिम्मेदार, असमर्थ और असचेत मानते थे। जो पगड़ी
नहीं संभाल सकता वो राज्य या देश को क्या संभाल पायेगा??? गांधीजी जब साउथ अफ्रीका के कोर्ट में
केस लड़ने के लिए कोर्ट में पहुंचे तो, वहां के जज ने उनसे उनकी पगड़ी उतारने को
कहा -जो गांधी जी को नागवार गुजरा, और उन्होंने ऐसा करने से स्पष्ट तौर पर मना कर
दिया, कि वो ऐसा नहीं कर सकते। साउथ अफ्रीका में गांधी जी ने 1907- 1914 के बीच पगड़ी
को अपनी पोशाक का एक हिस्सा जरुर बना लिया था। गांधीजी जब भारत पहुंचे तो उन्होंने
अपनी इस परंपरागत वेश भूषा को बरकरार रखा। गांधी टोपी पूरे देश के लोगों में ऊर्जा-संचार
के रुप में फैली। गांधी टोपी एक आदर्श के तौर पर देखी जाती थी। जिसका तात्पर्य था
कि जिसने इस टोपी को पहना वो सभी गांधीजी की विचारधारा से जुड़े हैं और उन्हीं वसूलों
का पालन करते हैं जिनका गांधीजी करते हैं। गांधीजी अहिंसा के पुजारी थे, पर कई बार
उनके पद चिन्हों पर चलने वालों ने सीमा रेखा तोड़कर उन्हें तकलीफ पहुंचायी;
चाहे वो चौरी चौरा कांड हो या आजादी के बाद के
हिंसात्मक दंगे ; जिनसे गांधी जी को बेतहाशा दुख पहुंचा था। वहीं दूसरे लोग भी टोपी
पहनते थे। बालगंगाधर तिलक जिन्होंने महाराष्ट्र में अंग्रेजों की हूकूमत के सामने
भारतीय परंपरा की लाज बचायी और गणपति उत्सव की श्रृंखला शुरु की थी। नेताजी
सुभाषचन्द्र बोस भी पहनते थे पर, विचारों में एकता न होने के कारण वो गरम दल के नेता
के नाम से जाने जाते थे।संविधान की रचना करने वाले बाबा भीमराव अंबेडकर भी टोपी
पहनते थे। इसी तरह नेहरु जी, आजादी के उपरांत पहले प्रधानमंत्री थे, राजेन्द्र
प्रसाद जी,पहले भारत के राष्ट्रपति रहे। टोपी की अपनी शान और पहचान होती थी और आज
21वीं सदी में भी है। इसके मायने भले ही बदल गये हों पर पांरपरिक मांगलिक कार्यों
में लोग पहने हुए आज भी नजर आते हैं। भारत में ही नहीं विदेशों में भी लोग हैट
पहनना पसंद करते हैं। भारत में ही अलग अलग किस्म की टोपियां प्रचलित हैं जैसे
गांधी टोपी, नेहरु टोपी, नेपाली टोपी,भूटानी, हिमाचली टोपी, गुजराती पगड़ी, पंजाबी
पगड़ी आदि। जाति के आधार पर भी देखा जाय तो मुस्लिम समुदाय टोपी पहनकर ही नमाज अदा
करते हैं। सिख पूरे देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में अपनी पगड़ी के लिए प्रख्यात
हैं। ईसाई वर्ग भी टोपी पहनता है। हिन्दु पगड़ी पहनकर शान का अनुभव करते हैं। राजस्थान
और गुजरात के लोग भी पगड़ी बांधते हैं। उधर अरब प्रदेशों में भी पगड़ी का अत्यधिक
प्रचलन है।
इसी परंपरा को भारत की राजनीतिक पार्टियां बखूबी निभा रही हैं। आज हर
पार्टी की अपनी एक अलग टोपी से पहचान बनी हुई है। कांग्रेस पार्टी तो अब टोपी
पहनती नहीं,पर भाजपा में आजकल मोदी के नाम की टोपी जरुर पनपी है। वहीं सपा पहले से
अपनी एक साइकिल वाली टोपी पहनती है और जिस दिन भी भाजपा उत्तर प्रदेश में रैली
करती है तो जवाबी हमला सपा प्रमुख जरुर करने से पीछे नहीं हटते। मोदी अगर गोरखपुर
में बोलते हैं तो मुलायम सिंह यादव आज़मगढ़ से हुंकार भरते हैं। शब्दों के वाण इस
पार से उस पार तक आकाशी सीमा को भेदते हैं। कभी कभी तो टोपी की लड़ाई लगती है मेरठ
में मोदी बोलते हैं तो कुछ गज की दूरी से मुलायम चिंघाड़ते हैं।
तो लखनउ में आये मोदी को भाजपा समर्थक मानो गेरुआ रंग का सागर प्रतीत
होते हैं तो मुलायम मोदी को भीड़ से हटकर विकास की बात करने की सलाह देते हैं। लेकिन
बात अधूरी रह जायेगी अगर एक और टोपी की बात नहीं की गयी तो.....जी हां अन्ना, जो गांधीजी
के जमाने के हैं और उनके पद चिन्हों पर चलने वालों में से एक। 2011 में अन्ना के
अनशनों के दौरान “मैं अन्ना हूं “ की टोपी सम्पूर्ण भारत में बहुत लोकप्रिय हुई। एक
क्रांति की मशाल एक टोपी ने फिर पैदा की, जिसने पूरे भारत के दिल दिल्ली की
राजनीति को एक बार ही सही पर, भूकंप के झटकों की तरह हिलाकर रख दिया।जिससे कुछ तहस
–नहस हो गया और सबकुछ कुछ हद तक यथावत हो गया। अरविंद केजरीवाल, जिसने अन्ना से
हटकर एक पार्टी का निर्माण किया-आम आदमी पार्टी जिसने टोपी पहनकर अपनी पहचान हटकर
बनायी- जिसपर उकेरा गया था- “मैं आम आदमी हूं “, “मुझे स्वराज चाहिए” जैसे उत्साहवर्धन करने वाले नारे छापे
गये। केजरीवाल की टीम आज भी कहीं भी बिना टोपी के नहीं जाती। आज सादी टोपी पर लिखे
गये वाक्य आप पार्टी को चिन्हित करते हैं। वहीं केसरिया टोपी जिस पर नमो नमो लिखा
रहता है कारण आज मोदी की लहर पूरे भारत में शीत लहर की तरह चल रही है। जिससे बच
पाना अमूमन मुश्किल सा लगता है। वहीं सपा की टोपी कोरी है। तो गांधी टोपी सादे रंग
की शांति का प्रतीक थी जो अन्ना आज भी पहनते हैं। परंपरा को निभाने में मोदी जी अब
एक कदम आगे ही नजर आ रहे हैं। जहां भी जाते हैं उसी के हो जाते हैं- हरियाणा में
हरियाणवी पगड़ी, हिमाचल में हिमाचली टोपी, पंजाब में पंजाबी पगड़ी में नजर आते
हैं। पश्चिम बंगाल के एक खेल मंत्री सुभाष चक्रवर्ती हैट या कभी टोपी पहनते थे। एक
बार एक पत्रकार ने उनसे इसपर सवाल पूछा तो मजाकिया लहजे में उनका जवाब था कि- “आमी टूपी पोरी कारोन
आमाके जेमोन केउ टूपी पोराते ना पारे” पर्याय यह था कि मैं टोपी इसलिए पहनता हूं ताकि
कोई और मुझे टोपी न पहना सके। गांधी के जमाने की आन –बान और शान समझी जाने वाली
टोपी अब वो टोपी नहीं रही। अब लोग टोपी पहनकर एक दूसरे को टोपी पहना रहे हैं। क्या
मर्यादा की सीमा और उसके मायने बदल गये है ???? फिर हम किस गांधी की बात करते
हैं...मुन्ना भाई एम बी बी एस??? आज केजरीवाल स्वराज की बात करते हैं। क्या अपनी
ढफली अपना राग सुनाना ही स्वराज है?? राजकपूर साहब पर फिल्माया हुआ एक गीत याद आ गया-
सर पर लाल टोपी रुसी फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी.....ऐसा कुछ होना चाहिए...या सादी
और गेरुआ टोपी में दिल इग्लिशतानी ??? क्योंकि एक बार पगड़ी उतर गयी तो आपका पानी चला
गया....नेतागण जो भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं उन्हें अपनी और जनता की शान रखनी
चाहिए....
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