आई पी एल का बवाल या अन्दरुनी हंगामा....??
आई पी एल में चल रही धांधली
का खुलासा जब दिल्ली पुलिस ने किया तो जैसे सबके मुंह हक्के बक्के से रह गये.....सबसे
पहले नाम आया श्रीसंत, चंडीला और चवन का....लोगों की आंखें ये नहीं देख रही थीं कि
अरे !! ये क्या हो गया बल्कि इस बार कैसे और कितना बड़ा घोटाला करने में हमारे वीर
सपूत और उनके मार्गदर्शकों ने शतरंज की चाल को भी कितनी बड़ी मात दी और किस
शातिराना अंदाज में.....
जी हां, इस बार आई पी एल का
असली रंग सामने आया वरना लोग शायद फिक्सिंग की हरकत को नजरन्दाज कर रहे
थे....शिटोरियों का इतिहास भी पुराना है....जब साउथ अफ्रीका के कप्तान हैंसी
क्रोनिये, अजय जाड़ेजा, मों अजहरुद्दीन और 1983 में भारत को विश्व कप जीताने वाले –(एक
मात्र 2011 के पहले तक )कपिल देव का शामिल भी नाम उछला था....उससे पहले से
शिटोरियों का जन्म हो चुका था...तभी पुराने मैचों की क्लिपिंग जिसे मिल जाय वो देख
सकेंगें कि रन न बने तो, कोई आउट हो तो कुछ लोगों का इक्सप्रेशन देखते ही बनता
था....साथ ही दिमाग में एक और बात भी उमड़ रही है कि दांव लगाना तो परंपरागत
है.....महाभारत के समय से....लोगों का फेवरेट एपिसोड़ द्रौपदी का चीरहरण...ये
किसका जाम था....खेल में दांव लगाने का.....नवाब लोग आज के जमाने के हिसाब से कहुं
तो मध्यकाल से ही इन सब चीजों का शौक रखते थे....घोड़ों की रेस हो, बफेलो फाइट हो
या इंसान को लहूलहान कर देने वाला खेल....पर इतनी पुरानी बातों को छोड़िये....डब्लू
डब्लू एफ में जो धमाधम फिक्सिंग की बौछार चलती है....उसका क्या कहना.....तो आई सी सी
के मैच से लेकर आई पी एल तक हर जगह फिक्सिंग ही चलती है....तो इस बार इस बात पर
इतना बवाल क्यों भाई....???
विंदू दारा सिंह, अजय गर्ग,
सीएसके गुरु मईयप्पन...ये तो शुरुआत है..पर इस इंटरनेट का जाल किस किस को फांसेगा
कहना बहुत मुश्किल नहीं है और बहुत मुश्किल भी....कई ट्रकी मैच जीतने पर महेन्द्र
सिंह पर मेरी आंखें टिकी सी रह गयी थीं....मतलब हाउ इट कूड बी पासिबल....? जब सी एस के और आर सी बी
का मैच चल रहा था और अंतिम ओवर में आर पी सिंह ने जो किया वो किसी की समझ ही नहीं
आया यहां तक कि उनके कैप्टन विराट कोहली साहब भी कन्फ्यूज होकर जीत का जश्न मनना
शुरु कर ही रहे थे तब तक सहयोगी ने इशारों में बताया कि हम हार चुके हैं मैच...और
महेन्द्र सिंह जीत का जश्न बल्ले से गेंद को मारकर रन पूरा करते मना रहे थे....इस
मैच के पूरा होते ही सभी ठगा सा महसूस कर रहे थे....और स्टूडियो में बैठे सुनील
गवास्कर साहब ने कहा कि विराट कोहली बहुत अच्छे कप्तान हैं कि इस एक बाल से हारने
के बाद भी वो उनकी तारीफ किये...”पर मैं होता तो ड्रेसिंग रुम में......”.और क्रिस गेल के 17 छक्के
....?? या वल्ड कप के कप्तान धोनी जी....का आलमोस्ट हर मैच जीत जाना....कुछ
संदेहात्मक था.....खैर अब तो मामला खुलकर आलमोस्ट आ चुका है कि धोनी भी किसी के
इशारों पर चलते थे और हैं भी.... चंडिला ने तो कबूल कर ही लिया है कि सीजन 5 के
मैचेस भी फिक्सिंग की बलि चढे थे....- “सचिन तेंदुलकर का एक फेमस कोट मुझे याद आ रहा है...कि
क्रिकेट अनिश्चितताओं का खेल है”....ये बिल्कुल सही भी है और गलत भी.....वो यूं कि चंडिला
जैसे इंगित करना बूल गये पर 14 रन दे दिये और बूकिज को पैसे भी वापस करने पड़े....बूकिज
और क्रिकेटर्स के बीच फिक्सिंग हो जाती है तो अनिश्चितता कहां रह जाती है....
आज इस आर्टिकल के द्वारा ये
कहना चाह रही हूं कि फिक्सिंग तो शुरु से होती रही है....तो क्या ये दलगत विभिन्नताओं
के कारण हुआ....क्या ललित मोदी जो लंदन में कारावास झेल रहे हैं उन्होनें
श्रीनिवासन को दलदल में फंसाया या फंसते हुए देखना चाहते थे...क्या शरद पवार अपनी
कुर्सी बी सी सीआई की राजीव शुक्ला से छीन लेना चाहते हैं या दिल्ली पुलिस के
कमिश्नर साहब जो अभी कुछ दिनों में रिटायर होने वाले हैं खुद को तमगा और बाकी
नाकामियों को छुपाने के लिए इसका पर्दाफाश किये.....या दिल्ली सरकार के इशारों पर
चलने वाली पुलिस ने कांग्रेस की झोली में एक और शील जाल दिया है......
सर्वमंगला मिश्रा
9717827056
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