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Sunday, 13 August 2017

खाली करो गोरखपुर- ये अगस्त का महीना है

सर्वमंगला मिश्रा

आजकल देश में हर राज्य का रंग एक ही नजर आता है और वो है भगवा रंग-यानी भाजपा। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जीत का जश्न मना रहे हैं और साथ ही विजय रथ को आगे बढ़ाते चले जा रहे हैं। उत्तरप्रदेश के वाराणसी से ही प्रधानमंत्री मोदी ने जीत का झंडा लहराया तो गंगा मैया का आशीर्वाद लेकर देश के सर्वश्रेष्ठ पद पर आसीन हो गये। लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब मोदी जी ने सिर्फ और सिर्फ अपने चेहरे के बल पर उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव जीतकर भाजपा को सर्वश्रेष्ठ पार्टी का तमगा जनता से दिलवा दिया। सोने पर सुहागा तब हुआ जब सबको पीछे छोड़ते हुए मोदी जी ने योगी आदित्यनाथ के कंधे पर हाथ रखा। एक भगवाधारी योगी –जो संसार से परे रहते हैं पर यह भगवाधारी पांच बार विधानसभा का चुनाव जीतकर एक नयी कहानी लिख चुका था। योगी जी के आते ही जनमानस नाच उठा अब आयेगा रामराज्य। यह राम भक्त सबको एकदृष्टि से देखेगा, सारी समस्याओं का हल निकल जायेगा। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज़ होने के एक माह तक मीडिया जगत में छाये रहे योगी और उनका उत्तम उत्तर प्रदेश।

उत्तर प्रदेश फिर से छाया है मीडिया में वजह इस बार शाबासी नहीं है बल्कि लापरवाही है। गोरखपुर जहां से स्वयं योगी जी चुनकर आये हैं। एक बार नहीं बल्कि पांच बार...। हर साल इन्सेफलाइटिस की वजह से अनगिनत बच्चों की जान जाती है। पर, सरकार चाहे योगी जी की हो , अखिलेश जी को या फिर मायावती जी की। सब पिछली सरकार के मत्थे ठिकरा फोड़ना चाहते हैं।

चलिए समस्याएं तो आती हैं पर लाल बहादुर शास्त्री के पोते और उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्यमंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने अगस्त माह को मौत का महीना बोल डाला। यानी अगस्त महीना को ब्लैक महीना बोलना चाहिए। मंत्रीजी यह नहीं बता पा रहे हैं कि आक्सीजन की सप्लाई करने वाली संस्था ने किस आफिसर के कहने पर इस कार्य को अंजाम दिया। अगर अगस्त महीना मौत का महीना होता है तो सिंह जी को पहले से इस आने वाले संकट की रोकथाम करने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए थे। वह क्यों नहीं हुआ..?? इसकी जवाबदेही किसकी होनी चाहिए विभागीय मंत्री की या मुख्यमंत्री की?

लाल बहादुर शास्त्री जिनकी देशभक्ति का पूरा भारतवर्ष कायल है। नाम आते ही श्रद्धा से सिर झुक जाता है। जिनकी मौत ताशकंद के समझौते पर हस्ताक्षर के बाद संदिग्ध परिस्थितियों में हुई थी। उनके पोते के मुख से ऐसी अशोभनीय भाषा शोभा नहीं देती। सिंह जी ने दबी जुबान में स्वीकारा कि आक्सीजन की कमी के चलते ऐसे हुआ था। पर, आधिकारिक तौर पर इसे नकारते ही रहे।

लोग योगी जी को दोष दे रहे हैं क्योंकि दो दिन पहले ही उन्होंने दौरा किया था। अधिकारियों ने जाहिर तौर पर सम्पूर्ण स्थिति का ब्यौरा नहीं दिया था। लेकिन विभागीय मंत्री की यह जिम्मेदारी बनती है कि मौत के महीने को नियंत्रित करने के लिए क्या कदम उठाने के निर्देश उन्होंने जारी किये थे। यदि जारी किये थे तो वे कौन से पदाधिकारी रहे जिन्होंने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया।
बीआरडी मेडिकल कालेज क्या मौलिक व्यवस्थाओँ से वंचित रहा है? सरकार ने उचित संसाधन मुहैया क्यों नहीं कराया। प्रिंसिपल को निलंबित करना उचित कदम है पर क्या स्वास्थ्य विभाग के उन अधिकारियों पर गाज़ नहीं गिरनी चाहिए जिन्होंने हर साल इस बीमारी से मरते हुए बच्चों को देखा है। केवल देखा है कोई ठोस कदम नहीं उठाए।


देश के प्रधानमंत्री मोदी जी ने स्वच्छता मिशन तो उठाया पर लगता है गोरखपुर में कुछ खास सर नहीं हुआ वरना इंसेफलाइटिस से मरने वाले बच्चों की संख्या में इज़ाफा नहीं होता वरन कमी आती। गैर भाजपा दलों को चिखने का मौका हाथ लग गया है। पर, शायद उन्हें अपना शासनकाल याद नहीं होगा। यहां ओछी राजनीति खूब चलती है क्योंकि यही बिकती है। धरातल पर राजनीति करने वाले तो अब इस धरती पर रहे नहीं। 70 बच्चों की मौत का तमाशा सरकार देख सकती है पर एक योगी की आत्मा क्या उसे नहीं झकझोरेगी ? क्या योगी जी को स्वास्थ्य मंत्री को जिम्मेवार नहीं ठहराना चाहिए? क्या उन्हें उनके पद से हटाना उचित न होगा ? क्या उन माताओँ और परिवारों की आह यूंही हवा में धुंआ बनकर उड़ जायेगी। उड़ भी सकती है क्योंकि ये अगस्त का महीना है जहां मौत का जमावड़ा लगता है। लाशों की बस बोली नहीं लगती। तो अगस्त का महीना अभी आधा ही गया है आधा बाकी है और अगले साल फिर अगस्त आयेगा और नये दुधमुंहों को मौत अपने गले लगाएगा। 

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