ममता पड़ गयी अकेले
सर्वमंगला मिश्रा
बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एक बार फिर अकेले युद्ध लड़ रही हैं। एक तरफ जहां पूरे देश में एक ही नाम का डंका बज रहा है वो है मोदी । ऐसे में अकेले ममता दीदी ने मोर्चा संभाला हुआ है। ममता मोदी और शाह के विपरीत काम कर रही हैं। वहीं, हाल ही में अलग राज्य की मांग कर रहे -गोरखा वासियों ने ममता के विरुद्ध केंद्र से छुपकर हाथ मिलाकर मुसीबत खड़ी कर दी है। तो 34 साल के वामपंथियों को उखाड़ फेंकने वाली दीदी, अभी भी झांसी की रानी की तरह लड़ने को तैयार है।
मोदी सरकार बंगाल में अपना परचम लहराना चाहती है। जिसके लिए वह कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। आपको याद होगा जब बंगाल में विधानसभा के चुनाव हुए उसके पहले से शाह बंगाल का चक्कर लगाने लगे। भाजपा के स्टेट प्रेसिडेंट राहुल जी को भी साइड लाइन किया ताकि जनता में परिवर्तन के आस की मशाल जगायी जा सके । उसके बाद मिटिंग पर मीटिंग की, रैलियां निकाली , ममता दीदी के सामने दहाड़े पर दीदी और बंगाल वासियों ने अपनी सहमति और विश्वास दोनों दीदी के प्रति दिखाया। अब बिहार में नीतीश कुमार के साथ आने से भाजपा प्रचंड जोश में एक बार फिर नजर आ रही है। तो कहीं न कहीं बंगाल की लड़ाई असहज होती दिख रही है।
क्या वजह है जो लोग ममता दीदी के प्रति इतने श्रद्धावान हैं...
ममता दीदी अपने कालेज के जमाने से सीपीएम के विरोध में झंड़ा उठा ली थी। वो झंड़ा तब हाथ से छोड़ा जब 2011 में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिराजीं।
ममता दीदी हर गरीब के दुख में उसके पास होती हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद इसमें थोड़ा परिवर्तन आया।
ममता आज भी गरीब की भाषा बोलती हैं और उसके लिए लड़ना पसंद करती हैं।
आज भी ममता ने कोई ऐशो आराम नहीं लिया। वही सादा और नीले रंग की साड़ी में खूब फबती हैं।
वहीं मोदी सरकार हर किला जितना चाहती है। तो भला बंगाल कैसे छोड़ सकती हैं फिर। इसके लिए केंद्र ने परदे के पीछे से चाल चली है और उसी वजह से आज दार्जिलिंग की अवस्था बद से बदतर होने की कगार पर है। पहले बिहार साथ था तो अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी मुहरों को मात दे डाला है। ऐसे में बंगाल का एक सुख -दुख का साथी बिछड़ गया है।अब देखना दिलचस्प होगा कि ममता के विरोध का झंड़ा कबतक सीधा खड़ा रहता है।
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