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Sunday 28 December 2014

                                     अपने धुन में मगन मोदी




सर्वमंगला मिश्रा -स्नेहा

सफलता एक सौगात होती है। जिसकी कुंजी शायद मोदी जी के हाथ लग गयी है। पूरा देश एक तरफ जहां देश की आजादी का पर्व मनाने में ही गर्व की अनुभूति करता रहता है वहीं प्रधानमंत्री बिना रुके बिना थके अविरल गति से एक के बाद एक योजनाओं को लागू करने के साथ साथ सभी प्रोजेक्ट्स को एक एक गुट को सौंपते चले जा रहे हैं। परीक्षा हाल में पेपर लाइन से सबको देकर फिर निश्चित अवधि समाप्त होने पर उत्तर पुस्तिका वापस ले ली जाती है। प्रधानमंत्री की कार्यशैली भी कुछ ऐसा ही आभास करा रही है। नौरत्नों को स्वच्छता अभियान में लगाकर उन्होंने पूरे देश को स्वच्छ बनाने का बीड़ा हर भारतवासी के कंधों पर डाल दिया है। स्वंय सफाई कर यह भी दिखा दिया कि कोई भी काम छोटा नहीं होता और जितने स्टार प्रचारक प्रचार करेंगें युवा वर्ग उनसे प्रभावित होकर उस कार्य का बीड़ा स्वयं उठायेगा।इसी तरह गंगा को निर्मल बनाने की मुहिम पूरे देश ही नहीं विदेशों में भी चर्चा का विषय बन गयी है। देश में भाजपा के छोटे बड़े नेताओं के बीच गंगा बचाओ अभियान में हर नेता ने कसम खायी है गंगा को बचाने की। गो हत्या पर भी सरकार सख्ती बरतने का प्रयास कर रही है। जुर्माना और कारावास की सजा के तौर पर। हाइ स्पीड मेट्रो का ट्रेलर पूरे देश ने देखा। जम्मू से वैष्णो देवी जाने का मार्ग सुलभ हो गया। टीचर्स डे के दिन पूरे देश के बच्चों से वाडियो कान्फ्रेसिंग अपने आपमें एक नया जीवंत प्रयास था जिसे चुपके चुपके ही सही हर आम व खास ने सराहा। तीन शहरों को स्मार्ट सिटी के तौर पर बनाने की परिकल्पना जहां हाई टेक गतिविधियां होंगी। सी सी टी वी के अलावा प्रति पल प्रति क्षण आप पर तकनीकी मशीनें नजर रखेंगी। एक तरह से आप आम से खास बन जायेंगें। वहीं दूसरी तरफ एक पल एकांत को भी तरसेंगें। पर स्मार्ट सिटी बनाने में अमेरिका मदद की मदद मिलेगी। वहीं अपने चुनावी भाषणों में इतिहास का जिक्र करने वाले मोदी इतिहास को पढाने ही नहीं पढने में भी यकीन रखते हैं।तभी तो गांधी जी की तरह स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने की मुहिम भी साथ में छेड़ दी है।खादी पर जोर देने के साथ जीवन शैली को सरल तौर पर जीने के नियम को भी अपने मंत्रीमंडल से लेकर सम्पूर्ण भाजपा को शिविर लगावाकर समझाया। अपने संसदीय क्षेत्र में डेयरी उद्दोग से बेरोजगारी दूर करने का भी प्रोग्राम है।  तो गांधी जी के आदर्शों पर चलने वाले मोदी गांवों को नहीं भूले हैं। हर एक सांसद एक आदर्श ग्राम की योजना पर कार्यरत होगा। जिससे 282 आदर्श गांव कम से कम 5 सालों में तो तैयार हो ही जायेगा। प्रधानमंत्री ने खुद भी अपने संसदीय क्षेत्र से एक गांव को गोद ले लिया है। अब उसे पाल पोषकर बड़ा करेंगें, लायक बनाकर एक उदाहरण खड़ा करेंगें। तभी देश उन्नति के पथ पर अग्रसर होगा।
रिंग में एक मास्टर अपनी छड़ी और आंखों के सहारे यानी बुद्धिमता और कार्यक्षमता के बल पर सभी शेरों का करतब जनता के सामने पेश करता है। जनता की ताली नो डाउट की उस रिंग मास्टर के लिए ही होती है क्योंकि उसके इशारे के बिना करतब का क –शब्द की उम्मीद भी करना बेवकूफी है।अगर खेल दिखाना एक कला है तो खेल को सीमाबद्ध तरीके से सीखाना भी एक सौगात है। प्रधानमंत्री जी भी नेताओं से लेकर सरकारी बाबूओं तक सबको उचित शिक्षा और अनुशासन सीखाने में लगे हैं। अधिकारी वर्ग जहां पहले दोपहर के बाद अपने कार्यालय में प्रवेश करता था वहीं अब परंपरा बदल रही है। बाबूओं के लिए प्रतीक्षारत नहीं होना पड़ता।
इतिहास के पन्ने पलटे जायें तो हर दशक में एक चेहरा ऐसा उभर कर आता है जो उस दशक का एक मात्र परिवर्तनशील कल्पना से परे होता है। मोदी जी ने पाक के प्रति अपने शपथ समारोह में जिस तरह पाक के नवाज शरीफ को आमंत्रित कर दरियादिली दिखायी तो वक्त की नज़ाकत देखते हुए कड़ा रुख भी अब अपना लिया है प्रधानमंत्री ने।इसका असर क्या होगा यह कहना तो मुश्किल होगा क्योंकि जो दुश्मनी आजादी से चली आ रही हो उसका अर्थ इतनी जल्दी तो नहीं निकल सकता। दोनों ओर काफी समानताऐं और असमानतायें हैं। आजाद हुए जितने साल भारत को हुए पाकिस्तान को भी। बंटवारे के वक्त कुछ हिन्दु भारत से पाक और कुछ मुसलमान पाक से भारत की ओर कूच कर गये थे। हालांकि इसमें काफी असमंजस की स्थितियां भी बाद में पैदा हुई थीं जो अब भी बरकरार हैं। हर बार सीमा उल्लंघन होता है।हर बार दोनों तरफ से न जाने कितनी जानें जा रहीं हैं। पर हल नहीं निकल पा रहा।  शायद इसमें कुछ राजनीतिक चाल है। मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला की सोच किसी भिन्न दिशा में चल रही है।
देश एक अजीब दौर से गुज रहा है। जहां खाप पंचायतें फरमान पर फरमान सुनाये चली जा रही हैं। तो मोदी गांधी की प्रतिज्ञा को पूरा करने में जी जान से जुटे हैं- हर गांव को स्वर्ग बनाना उनकी प्राथमिकता बन गयी है। स्वच्छ भारत, सुंदर भारत। हर युवा को मार्गदर्शन देने की बात से लेकर महिलाओं की सुरक्षा, बेरोजगारी को मिटाने की बात करने वाले प्रधानमंत्री मोदी लोगों को आश्वस्त करते हुए देश के पश्चिमी हिस्से में बसा और व्यापारिक केन्द्र माने जाने वाला चहुमुखी विकास की ओर अग्रसर मुम्बई में जहां आने वाले सप्ताह में गठबंधन में चटख आना किसके लिए हानिकारक और किसके लिए फायदेमंद होगा जल्द ही तस्वीर स्पष्ट हो जायेगी। हर बंधन से स्वयं को मुक्त करते नजर आते मोदी आत्मविश्वास की मजबूत रस्सी से पूरे देश को एक सूत्र में पिरोना चाहते हैं। हिन्दू, मुस्लिम की दृष्टि से इंसान को इंसान की दृष्टि से एक दूसरे को देखने का नजरिया देना चाहते हैं। पर, देश की जनता क्या इतनी परिपक्व है कि देश के प्रधानमंत्री की बात एक बार में समझ आ जाये। समझ आ भी जाये तो राजनीति, कूटनीति सत्ता मोह से उपर सोच नहीं पाती, सोचती भी है तो समझौते के तहत ही गठबंधन बनता है। फिर जहां मामला अटकता है बस 25 साल के रिश्ते भी टूट जाते हैं। आर एस एस और शिवसेना भाजपा की रीढ़ की हड्डी के समान मानी जाती थी। पर, साधो सब दिन होत न एक समाना। मोदी ने ऐलान कर पुरानी पार्टियों को चुनौती दे डाली है तो स्वंय को अग्निपरीक्षा की आग में झोंक डाला है। अब सोना कितना खरा है कसौटी पर घिसने के बाद ही पता चलेगा। चलो चलें मोदी के साथ या हुड्डा जी का काम काम अथवा कांग्रेस को सफल बनायें जैसे विज्ञापन ने 10 साल के राज काज को समझा या मोदी चक्रवात की तरह हर मस्तिष्क में विकास का दूसरा नाम बनकर छाये हैं। 19 अक्टूबर को मराठा और बीजेपी की जंग भी एक किनारा पकड़ लेगी। मोदी एक नये भारत का आविर्भाव करने में लगे हैं। जनता इस खिलाड़ी के परफार्मेंस का आंकलन नहीं करना चाहती। इस खेल का परिणाम जीत चाहती है। यह टेस्ट मैच है जिसमें वन डे मैच के तर्ज पर परिणाम घोषित नहीं हो सकता। टेस्ट मैच की जनता को धीरज रखना पड़ता है। मोदी में साहस है तो धैर्य की परीक्षा देने से पीछे नहीं हटे तो अब लेने में भी पीछे नहीं हटते। तमाम प्रोजेक्ट्स का शिलान्यास करने वाले पी एम मोदी जी आउटलाइन तैयार कर रहे हैं। फिर वक्त आयेगा यह देखने का कि रंग वास्तविकता से परे हैं या सब कल्पना मात्र ही था और अगला चुनाव देश के सामने मुंह बाये खड़ा है। जहां देश की जनता एक बार फिर बोलने को मजबूर हो जायेगी- कि सब राजनीति है। देश का भला करवे वाले जन्म ही नहीं लेते केवल सपनों को लूटने और उसके सौदागर ही पैदा होते हैं। इतिहास भी इंतजार कर रहा है क ऐसी कहानी देश के नाम लिखने को जहां लोग उस पन्ने को बार बार पलट कर पढना चाहें और कहें ऐसा भी हो सकता है। तब मोदी को अपने नाम की चालीसा छपवानी नहीं पड़ेगी अपितु हर कोर्स में धामिक पन्ने की भांति गांधी के बाद याद किया जाने वाला नाम बन जायेगा। 

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